जनसंवेदना ने अध्यात्मिक साधिका का किया अपमान, भक्त करेगें मानहानी का दावा
भोपाल 30 अक्टूबर 2011। भोपाल में अपने आप को समाज सेवा को समर्पित कही जानी वाली संस्था जनसंवेदना ने 10 अक्टूबर को भोपाल में अध्यात्मिक साधिका सुश्री तनुजा ठाकुर को भोपाल में दो दिन के लिए आमंत्रित किया और रविन्द्र भवन में उन के प्रवचन करवायें और इसी कार्यक्रम की आड़ में चंदा उगाही करी साधिका सुश्री तनुजा ठाकुर के भक्तों एवं उन के फेसबुक मित्रों के यहां जाकर जनसंवेदना के संचालक अघ्यक्ष ने जाकर जनसंवेदना के माध्यम से पैसे मांगे और इस हेतू सभी समाचार पत्रों में विज्ञापन और पत्रकारवार्ता बुला कर इसका उल्लेख करते हुए संस्था के लिए एक गाड़ी जरूरी है कह कर भी चंदा मांगा और उस प्रवचन में लोगों को बुलाने का इंतज़ाम तक नहीं किया गया। वहीं 'अतिथि देवों भवः' की परम्परा निभाते के नाम पर साधिका सुश्री तनुजा ठाकुर को उन्हें ऐसी जगह ठहराया गया जो अनके लोगों को पसंद नहीं आया जहां पानी तक का सही बंदोबस्त नहीं किया गया। प्रवचन के उपरांत दक्षिणा तो दूर जन संवेदना पत्रिका में उन्हें एक साधिका के स्थान पर अध्यात्मिक व्यवसायी लिख कर संबोधित किया गया। अब जब संस्था को गाड़ी मिल गई जो सुश्री तनुजा ठाकुर के हाथों की संस्था के अध्यक्ष ने ग्रहण की, यह 5.50 लाख की गाड़ी एक सांसद ने सांसद निधि से दी है। इस के बाद जैसे अपना उल्लू मानों सीधा हो गया फिर क्या था जनसंवेदना जैसे संवेदनहीन हो गई और सुश्री तनुजा ठाकुर को भोपाल में अपमानित करने के बाद फेस बुक पर भला बुरा कहना शुरू कर दिया। सुश्री तनुजा ठाकुर के फेसबुक मित्रों एवं भारतवर्ष में फैले उन के भक्तों ने जन संवेदना संस्था के अध्यक्ष सहित सभी पद अधिकारियों पर मानहानि का दांवा ठोकने का मन बना लिया है, उन का कहना है की भले ही हमारी दीदी तनुजा ठाकुर ने माफ कर दिया हो पर हम अपने गुरू का अपमान सहन नहीं करेगें। जनसंवेदना जैसी संस्था जो लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार के नाम पर चंदा उगाही कर संस्था की आड़ में जमीन, गाड़ीया और भवन निर्माण कर रही है ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाही तो होनी चाहिए और उन का बेनकाब होना जरूरी है।
Sunday, October 30, 2011
Saturday, October 29, 2011
Can our slain RTI activists ever get justice?
Shehla Masood, the RTI activist from Madhya Pradesh who was shot and killed recently, joined the unfortunate list of seventeen other known cases of RTI activists who have suffered the same fate over the last couple of years. According to a close associate of Shehla, she filed more than one thousand RTI applications in diverse areas ranging from the judiciary, the tendering process, the enforcement of Wildlife and Forest laws, heritage conservation, the lavish spending of public money, and human rights abuses. Quite understandably, she had accumulated a host of enemies across a broad range of departments until some vested interests decided it was time to snuff out this passionate and committed voice forever. Shehla Masood is not an isolated case. Such executions have been taking place every few months with almost predictable precision: Firebrand activist files several RTI applications, becomes a threat to those in power, gets killed by unknown assailants who are never traced.
How many more of our young men and women who have dedicated their lives to public service should we lose before we choose to take notice? Today, thanks to the Right to Information Act, citizens have the right to seek information from the government. But what use is it if those among us who care enough to file these applications are routinely targeted and eliminated by their enemies? “Great work! But do it at your own risk, good luck to you!” is the message we are sending to those with similar drive and motivation. Can’t we do better? Can we at least ensure that those who wish to reform the system or serve the country don’t have to fear for their lives?
The recent anti-corruption movement in India witnessed so many young people shed their apathy and come forward to join a mass movement. These young men and women stepped up to the plate not because they adored Anna. Team Anna was only a catalyst for action. The people who actively participated in the movement did it for themselves and for their future generations. They believed that by participating they could actually make a difference. The dream of a corruption-free India resonated with them, and inspired and motivated them to act. For the first time since Independence the youth of our country displayed that they could think beyond themselves and actively engage in critical civic discourse. As a nation, we need to nurture and build upon this momentum and ensure that this interest is sustained and does not turn out to be a one-time effort. We owe it to them and to future generations to implement tough laws that protect whistle blowers.
A good place to start would be to ensure that justice is served in the case of Shehla Masood and other similar victims. But is our political class capable of this? Without a truly independent investigative agency can justice be served? Given the track record of our past investigations, what confidence, if any, can one have that the CBI investigation will lead to anything at all?
It all circles back to our politics, our democracy and our elected representatives. We have a democratically elected Ruling Party which appears to be leaderless and an Opposition that is grappling to remain relevant. We have investigative agencies that are merely puppets at the beck and call of those in power. We have a judicial system that seems incapable of speedy delivery of justice. To top it all, we don’t have strong laws to nail the criminals.
Every time a murder of this kind occurs, it remains in the media eye for a couple of months and then vanishes almost completely from public attention. The family is left to deal with the irreparable loss and the criminals go scot-free.
If surveys are to be trusted, the Congress is on the decline and the BJP is on the ascent. But at the end of the day these two parties are no different from each other, while the rest are inconsequential. The reality is that RTI activists are at risk no matter which party is in power. Corruption is deeply ingrained in the DNA of all our parties. There are no easy answers to this predicament, but the sooner we realize that all our political options are equally horrific, the faster we will coalesce towards a solution. In the meantime tough laws (a.k.a Jan Lokpal bill) are our best bet and hope, and a baby step towards curtailing corruption and ensuring justice. Until such time, it is highly unlikely that the unfortunate victims among us will ever receive justice.
Author
Pran Kurup
(A blogger at Economic Times)
Twitter : www.twitter.com/pkurup
Facebook : www.facebook.com/pran.kurup
About the Author
Mr. Pran Kurup
Pran Kurup graduated from IIT Kharagpur in 1989. He is Founder, President and CEO of Vitalect, an e-learning company, providing online training and learning solutions to create and manage online content. Pran is also actively involved in social activities. He co-founded the alumni Web site of IIT Kharagpur, is member of The Indus Entrepreneurs (TiE) and previously served as the Chairman of the Silicon Valley Indian Professionals Association (SIPA).
Tuesday, October 25, 2011
कीर आदिवासी समाज द्वारा दीपावली पर्व पर किया जाता है पितरों को तर्पण
राजेंद्र कश्यप, दीपक शर्मा द्वारा)
दीपावली पर्व सारे देश में विभिन्न मान्यताओं के साथ मनाया जाता है। कीर आदिवासी राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में बहुलता से निवासी करते हैं। कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात:काल से समाज के स्त्री, पुरूष और बच्चे निवास के पास के नदी या तालाब के पास पहुंच कर स्नान कर नए रंगबिरंगे वस्त्र पहनते हैं, और उपवास रख़ते हुए नदी के किनारे ही शु़द्धतापूर्वक भोजन बनाकर सूर्य अस्त होने के पूर्व ही अपने पितरों को जल धूप नारियल प्रसाद अग्नि में अर्पित करते हैं। कीर आदिवासियों की मान्यता है कि केवल इस दिन ही हमारे पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर आकर होम ग्रहण करती है। शाम होने पर नदी किनारे और अपने घरों पर श्रद्धापूर्वक दिए जलाते है। जिसकी रोशनी देख पितरों की पवित्र आत्माएं पृथ्वी पर आकर उस होम को ग्रहण कर लें। पितरों के होम के पूर्व गोरा और महादेव की पूजा अर्चना कर गीत गाए जाते हैं।
कीर समाज की मुख्य भूमि राजस्थान है वहीं से मुगलों कर लड़ते -लड़ते उत्तर प्रदेश, राजस्थान गुजरात और मध्यप्रदेश की नदियों और तालाब के किनारे बसते गए। मध्य प्रदेश में भूपाल राज्य में मुख्यत: निवास करते रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति डा0 शंकर दयाल शर्मा ने भोजपुर मिंदर के पास कीर समाज के निवासियों के टीले के बीच एक स्तंभ का शिलान्यास वर्षों पूर्व किया था।
कीर समाज के बुजुर्गों की मान्यता है कि शिवशक्ति का केंद्र भोजपुर मंदिर की रक्षा करने के लिए हजारों वर्षों से हम इसके पास के गांवों में रहते रहे हैं। हमेशा भोजपुर की रक्षा करते रहेंगे।
कीर समाज के लोग किसी भी प्रदेश में रहे उनकी भाषा में आज भी राजस्थानी पुट रहता है। स्त्रियों की वेशभूषा राजस्थानी रहती है। कार्तिक अमावस्या को पितरों को होम देकर संकल्प करते हैं कि प्रत्येक परिस्थितियों में अपना गांव नदी तालाब के किनारे की जलीय खेती, तरबूज, खरबूज, सिंघाड़ा आदि सब्जियों का उत्पादन बढ़ाकर अपने व्यवस्था की रक्षा और समृद्धि करते हुए शिव मंदिरों की रक्षा करते रहेंगे।
इस अवसर पर कुल देवताओं और पितरों की मनौती पूरी करना और घर परिवार के साथ गांव क्षेत्र की खुशहाली तथा समृद्धि की तमन्ना के साथ ही अपने पशुओं की रक्षा की प्राथना होती है। अपनी अनूठी परंपरानुसार दीपावली पर्व पितरों के होम तर्पण के रूप में पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन सांडनी की पूजा विशेष रूप से की जाती है, जिस पर बैठकर ही कीर समाज का दूल्हा बारात लेकर जाता है। कई वर्षों पूर्व भोजपुर के पास कीर नगर नामक गांव इसी आदिवासी समाज द्वारा बसाया गया है।
Date: 25-10-2011
Monday, October 24, 2011
कीर आदिवासी समाज द्वारा दीपावली पर्व पर पितरों को तर्पण किया जाता है।
कीर आदिवासी समाज द्वारा दीपावली पर्व पर पितरों को तर्पण किया जाता है।
(राजेंद्र कश्यप,दीपक शर्मा द्वारा)
दीपावली पर्व सारे देश में विभिन्न मान्यताओं के साथ मनाया जाता है। कीर आदिवासी राजस्थान, गुजरात ,उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में बहुलता से निवासी करते हैं। कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात:काल से समाज के स्त्री ,पुरूष और बच्चे निवास के पास के नदी या तालाब के पास पहुंच कर स्नान कर नए रंगबिरंगे वस्त्र पहनते हैं,और उपवास रख़ते हुए नदी के किनारे ही शु़द्धतापूर्वक भोजन बनाकर सूर्य अस्त होने के पूर्व ही अपने पितरों को जल धूप नारियल प्रसाद अग्नि में अर्पित करते हैं। कीर आदिवासियों की मान्यता है कि केवल इस दिन ही हमारे पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर आकर होम ग्रहण करती है। शाम होने पर नदी किनारे और अपने घरों पर श्रद्धापूर्वक दिए जलाते है। जिसकी रोशनी देख पितरों की पवित्र आत्माएं पृथ्वी पर आकर उस होम को ग्रहण कर लें। पितरों के होम के पूर्व गोरा और महादेव की पूजा अर्चना कर गीत गाए जाते हैं।
कीर समाज की मुख्य भूमि राजस्थान है वहीं से मुगलों कर लड़ते -लड़ते उत्तर प्रदेश,राजस्थान गुजरात और मध्यप्रदेश की नदियों और तालाब के किनारे बसते गए। मध्य प्रदेश में भूपाल राज्य में मुख्यत: निवास करते रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति डा0 शंकर दयाल शर्मा ने भोजपुर मिंदर के पास कीर समाज के निवासियों के टीले के बीच एक स्तंभ का शिलान्यास वषाzें पूर्व किया था। कीर समाज के बुजुर्गों की मान्यता है कि शिवशक्ति का केंद्र भोजपुर मंदिर की रक्षा करने के लिए हजारों वषोzं से हम इसके पास के गांवों में रहते रहे हैं। हमेशा भोजपुूर की रक्षा करते रहेंगे।
कीर समाज के लोग किसी भी प्रदेश में रहे उनकी भाषा में आज भी राजस्थानी पुट रहता है। स्त्रियों की वेशभूषा राजस्थानी रहती है। कार्तिक अमावस्या को पितरों को होम देकर संकल्प करते हैं कि प्रत्येक परिस्थितियों में अपना गांव नदी तालाब के किनारे की जलीय खेती, तरबूज,खरबूज,सिंघाड़ा आदि सब्जियों का उत्पादन बढ़ाकर अपने व्यवस्था की रक्षा और समृद्धि करते हुए शिव मंदिरों की रक्षा करते रहेंगे।
इस अवसर पर कुल देवताओं और पितरों की मनौती पूरी करना और घर परिवार के साथ गांव क्षेत्र की खुशहाली तथा समृद्धि की तमन्ना के साथ ही अपने पशुओं की रक्षा की प्राथना होती है। अपनी अनूठी परंपरानुसार दीपावली पर्व पितरों के होम तर्पण के रूप में पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन सांडनी की पूजा विशेष रूप से की जाती है, जिस पर बैठकर ही कीर समाज का दूल्हा बारात लेकर जाता है। कई वषोzं पूर्व भोजपुर के पास कीर नगर नामक गांव इसी आदिवासी समाज द्वारा बसाया गया है।
www.eklavyashakti@gmail.com
(राजेंद्र कश्यप,दीपक शर्मा द्वारा)
दीपावली पर्व सारे देश में विभिन्न मान्यताओं के साथ मनाया जाता है। कीर आदिवासी राजस्थान, गुजरात ,उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में बहुलता से निवासी करते हैं। कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात:काल से समाज के स्त्री ,पुरूष और बच्चे निवास के पास के नदी या तालाब के पास पहुंच कर स्नान कर नए रंगबिरंगे वस्त्र पहनते हैं,और उपवास रख़ते हुए नदी के किनारे ही शु़द्धतापूर्वक भोजन बनाकर सूर्य अस्त होने के पूर्व ही अपने पितरों को जल धूप नारियल प्रसाद अग्नि में अर्पित करते हैं। कीर आदिवासियों की मान्यता है कि केवल इस दिन ही हमारे पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर आकर होम ग्रहण करती है। शाम होने पर नदी किनारे और अपने घरों पर श्रद्धापूर्वक दिए जलाते है। जिसकी रोशनी देख पितरों की पवित्र आत्माएं पृथ्वी पर आकर उस होम को ग्रहण कर लें। पितरों के होम के पूर्व गोरा और महादेव की पूजा अर्चना कर गीत गाए जाते हैं।
कीर समाज की मुख्य भूमि राजस्थान है वहीं से मुगलों कर लड़ते -लड़ते उत्तर प्रदेश,राजस्थान गुजरात और मध्यप्रदेश की नदियों और तालाब के किनारे बसते गए। मध्य प्रदेश में भूपाल राज्य में मुख्यत: निवास करते रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति डा0 शंकर दयाल शर्मा ने भोजपुर मिंदर के पास कीर समाज के निवासियों के टीले के बीच एक स्तंभ का शिलान्यास वषाzें पूर्व किया था। कीर समाज के बुजुर्गों की मान्यता है कि शिवशक्ति का केंद्र भोजपुर मंदिर की रक्षा करने के लिए हजारों वषोzं से हम इसके पास के गांवों में रहते रहे हैं। हमेशा भोजपुूर की रक्षा करते रहेंगे।
कीर समाज के लोग किसी भी प्रदेश में रहे उनकी भाषा में आज भी राजस्थानी पुट रहता है। स्त्रियों की वेशभूषा राजस्थानी रहती है। कार्तिक अमावस्या को पितरों को होम देकर संकल्प करते हैं कि प्रत्येक परिस्थितियों में अपना गांव नदी तालाब के किनारे की जलीय खेती, तरबूज,खरबूज,सिंघाड़ा आदि सब्जियों का उत्पादन बढ़ाकर अपने व्यवस्था की रक्षा और समृद्धि करते हुए शिव मंदिरों की रक्षा करते रहेंगे।
इस अवसर पर कुल देवताओं और पितरों की मनौती पूरी करना और घर परिवार के साथ गांव क्षेत्र की खुशहाली तथा समृद्धि की तमन्ना के साथ ही अपने पशुओं की रक्षा की प्राथना होती है। अपनी अनूठी परंपरानुसार दीपावली पर्व पितरों के होम तर्पण के रूप में पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन सांडनी की पूजा विशेष रूप से की जाती है, जिस पर बैठकर ही कीर समाज का दूल्हा बारात लेकर जाता है। कई वषोzं पूर्व भोजपुर के पास कीर नगर नामक गांव इसी आदिवासी समाज द्वारा बसाया गया है।
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Wednesday, October 5, 2011
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