Saturday, April 24, 2010

उदयपुर के दिव्या मार्बल को लाभ पहुंचाने का मामला

उदयपुर के दिव्या मार्बल को लाभ पहुंचाने का मामला

रवीन्द्र जैन
भोपाल। मध्यप्रदेश के आईएएस अधिकारियों पर लोकायुक्त का शिकंजा कंसता जा रहा है। शनिवार को प्रदेश की आईएएस अधिकारी अंजूसिंह बघेल के खिलाफ लोकायुक्त में एक शिकायत दर्ज हुई है। उन पर कटनी में कलेक्टर के पद रहते सुप्रीम कोर्ट के आदेश के स्थगन के बाद भी वन भूमि में मार्बल व्यपारियों को उत्खनन की अनुमति देकर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया गया है। अंजूसिंह बघेल भ्रष्टाचार के आरोप में पहले से ही निलंबित हैं।
शिकायतकर्ता कटनी निवासी अरुण अग्रवाल ने शुक्रवार को लोकायुक्त के समक्ष शपथ पत्र के साथ की शिकायत में कहा है कि - कटनी की तत्कालीन कलेक्टर अंजूसिंह बघेल, खनिज निरीक्षक क्यूए रहमान, तत्कालीन नायब तहसीलदार सीएस मिश्रा तथा राजस्व निरीक्षक प्रभाष बागरी, पटवारी अशोक खरे ने राजस्थान के खनिज व्यापारी और दिव्या मार्बल के पार्टनर शांतिलाल सिंघवी उदयपुरवालों से करोड़ों रुपए रिश्वत लेकर कटनी जिले की बोहरीबंद तहसील के ग्राम निमास के खसरा क्रमांक 220 की वनभूमि में अवैध उत्खनन करवाकर शासन करोड़ों रुपए का अनुचित लाभ लेकर शासन को राजस्व का नुक्सान पहुंचाया है।
सूत्रों के अनुसार लोकायुक्त ने इस शिकायत को गंभीरता से लिया है। लोकायुक्त के निेर्दश पर ही उक्त शिकायत पंजीकृत की गई है। उक्त शिकायत में दावा किया गया है कि - प्रतिबङ्क्षधत क्षेत्र में मार्बल व्यापारियों ने अफसरों की मिलीभगत से लगभग दो करोड़ रुपए का मिनरल उत्खनन किया है। इस शिकायत के साथ प्रमाण के रुप में 38 दस्तावेज संलग्र किए गए हैं।
प्रस्तुतकर्ता RAVINDRA JAIN पर 8:30:00 AM 0 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक
156 (3) का काटा पानी नहीं मांगता
मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों धारा 156 (3) का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। यह धारा विरोधियों को निपटाने के लिए एक अच्छा उपकरण सिद्ध हुई है। आम पाठक की विधिक निरक्षरता का फायदा लेकर इस धारा के सहारे तत्काल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को पटकनी दी जा सकती है। अभी हाल में कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला जिस राजनीतिक ऊहापोह में फँसे हैं, उसके पीछे भी यही धारा है और इसके पहले म.प्र. के पूर्व डीजीपी स्वराजपुरी, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान, पूर्व लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय ङ्क्षसह, नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी तक के विरुद्ध यह धारा काम में लाई गई है। इनमें से श्री पुरी के हाथों से डीजीपी का पद जाता रहा। मुख्यमंत्री के सामने भी एक बड़ा राजनीतिक संकट आ खड़ा हुआ। पूर्व लोकायुक्त श्री दयाल को भी पता लगा कि यह कड़वी गोली उन्हें भी निगलनी पड़ सकती है।
धारा 156 (3) है क्या?
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुसार कोई मजिस्ट्रेट, जिसे धारा 190 में इस हेतु स़ाक्त किया गया हो, 156 (3) के तहत जांच के आदेश दे सकता है। यह प्राइव्हेट कंप्लेंट की तरह है जिसके तहत मजिस्ट्रेट पुलिस को विवेचना के लिए निर्देशित करता है। धारा 156 (3) के तहत न तो मजिस्ट्रेट को कोई सुविस्तृत आदेश देना होता है, न उसे अपने आदेश के कारण बताने होते हैं। यह मजिस्ट्रेट के भीतर निहित दृष्टिकोण है कि वह ऐसा करता है या नहीं। इसके तहत वह मामले का संज्ञान भी नहीं लेता। इसलिए हुआ यह है कि धारा 156 (3) मैकेनिकल कार्यवाही हो गई है। यह सिर्फ शिकायत को पुलिस के पास प्रेषण-अग्रेषण करने के काम आ रही है।
इसके विरुद्ध किसी तरह की राहत नहीं है। यहां होता यह है कि आदेश एक न्यायालय द्वारा किया जाता है। प्राय: शिकायत के दिन ही आदेश हो जाता है। संबंधित पक्ष को सुने बिना ही हो जाता है। उनकी पीठ पीछे ही। इकतरफा होने के बाद भी इससे आहत होने वाला पक्ष चूं नहीं कर पाता। न्यायालयीन आदेश होने से पूरा मीडिया इसकी ओर दौड़ पड़ता है और आहत पक्ष को भारी सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिष्ठा की क्षति उठानी पड़ती है।
कई प्रकरणों में उच्च न्यायालय एवं सुप्रीम कोर्ट तक ने बार-बार यह अभिनिर्धारित किया है कि धारा 156 मजिस्ट्रेट को निर्देश की जो शक्ति देती है, वह शक्ति न्यायोचित तरह से इस्तेमाल होनी चाहिए, यांत्रिक तरीके से नहीं। लेकिन आज तक कभी भी 'न्यायोचितÓ और 'यांत्रिकÓ का फर्क एकदम स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं किया जा सका। लिहाजा 156 (3) तुरंत दान महाकल्याण की तरह चलती है। चूंकि भारत में अदालतों की सामाजिक प्रतिष्ठा काफी ऊंची है, वे 'संप्रभुÓ का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए उनका आदेश भले ही वह बिना गुण दोष पर विचार किए दिया गया हो और आहत पक्ष के पीठ पीछे दिया गया हो। अपनी तरह की एक 'प्रभाÓ अर्जित कर लेता है और सबको लगता है, कोई बड़ी चीज हो गई। अदालत ने आदेश दिया है तो कुछ सोच-समझ कर ही दिया होगा। अदालत ने आदेश दिया है तो जरूर कोई बात होगी। वैसे भी राजनेताओं और उच्च पदस्थ अधिकारियों के विरुद्ध एक तरह का सिनिसिज्म तो चलता ही है। वे कितनी ही मेहनत करें, लेकिन सोच यही है कि मजा करते हैं।
न इस प्रकरण में कोई गुण-दोष ण्वमऱ्ा हुआ है, न स्वराज पुरी के मामले में हुआ था, न दिग्विजय ङ्क्षसह या शिवराज ङ्क्षसह चौहान के, लेकिन चोट सभी को लगी। कम या ज्यादा पर विवाद हो सकता है। अदालतों के 'निर्णयÓ की वी.आई.पी. - विजिबिलिटी ज्यादा है। इससे तो बेहतर है कि अधिकारी और राजनेता अपने विरुद्ध एफ.आई.आर. प्रशासनिक तरीके से ही हो जाने दिया करें। कम से कम उनसे इतना बड़ा ड्रामा तो नहीं क्रिएट होगा। या फिर ठंडे मन से धारा 156, दंड प्रक्रिया संहिता में पंजाब जैसे राज्यों की तरह राज्य-संशोधन लाने पर विचार किया जाए ताकि इस धारा के माध्यम से सार्वजनिक छवियों के ये युद्ध रोके जा सकें। मीडिया को कोसने का अब बहुत ज्यादा अर्थ रह नहीं गया है क्योंकि उन्होंने तो सनसनी बेचने को अपना नैतिक अधिकार ही नहीं, पैतृक धंधा बना लिया है। लेकिन फस्र्ट इनफॉर्मेशन रिपोर्ट को फस्र्ट इंपल्स रिपोर्ट बनने से रोकना ही होगा। जो प्रकटत: निर्दोष-सा दिखने वाला आदेश 156 (3) के मामलों में दिया जाता है कि पुलिस जांच करे और दोषी पाए तो कार्रवाई करे, नहीं पाए तो रिपोर्ट करें, वह इतना मासूम भी नहीं होता और हँसी-हँसी में किसी की इज्जत की सरे-बाजार, बीच चौराहे इज्जत उतार ली जाती है। कैलाश विजयवर्गीय आज इसे भुगत रहे हैं, किन्तु कल इसे भुगतने वाले आप भी हो सकते हैं।
प्रस्तुतकर्ता RAVINDRA JAIN पर 8:28:00 AM 0 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक
Wednesday, April 14, 2010
भ्रष्ट कलेक्टरपर कार्यवाही क्यों नहीं?





रवीन्द्र जैन
भोपाल। शिवपुरी के महाभ्रष्ट कलेक्टर राजकुमार पाठक को कौन बचा रहा है? उन्हें बचाने के लिए फोन कौन कर रहा है? आईएएस अफसर की जांच के लिए नॉन आईएएस अधिकारियों को झाबुआ भेजने का निर्णय किसने और किसके इशारे पर लिया? जांच रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के प्रमाण सामने आने के बाद भी अभी तक किसी के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की गई? उन सप्लायरों के खिलाफ आज तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई जिन्होंने आदिवासी बच्चों की शिक्षा के नाम पर पांच करोड़ की शिक्षा सामग्री सप्लाई किए बिना ही भुगतान डकार लिया। सारे प्रमाण होने के बाद भी आखिर क्या बात है कि आईएएस अधिकारी राजकुमार पाठक ठप्पे से कुर्सी पर बैठकर पूरी सरकार को ठेंगा दिखा रहे हैं? आईएएस अधिकारी केपी राही और अंजूसिंह बघेल को निलंबित करने में जिस सरकार के हाथ नहीं कांपे, उस सरकार के हाथ पाठक के खिलाफ कार्यवाही करने से क्यों कांप रहे हैं? इस पूरे मामले में मप्र की शिक्षामंत्री अर्चना चिटनिस की रहस्यमय चुप्पी भी आश्चर्यजनक बनी हुई हैं।
कांग्रेस पार्टी ने राजकुमार पाठक के खिलाफ लोकायुक्त में शिकायत दर्ज करा दी है। पार्टी के प्रवक्ता केके मिश्रा ने शपथ पत्र के साथ की शिकायत में 102 पेज के वे दस्तावेज संलग्र किए हैं जो पांच करोड़ के भ्रष्टाचार के प्रमाण हैं। यह प्रकरण वर्ष 2007 का है। झाबुआ के तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने सर्वशिक्षा अभियान की राशि के पांच करोड़ निकालकर झाबुआ ब्लाक में जमा कराए। फिर अपने हाथ से ही इंदौर, भोपाल, धार के सप्लायरों को शिक्षा सामग्री क्रय करने के सीधे आदेश दिए। जबकि सर्वशिक्षा अभियान में शिक्षा सामग्री क्रय करने का अधिकार पालक शिक्षक संघ को ही हैं। कलेक्टर जैसे अधिकारी ने इस बात की भी परवाह नहीं की कि 25 हजार से अधिक का सामान क्रय करने के लिए निवदाएं आंमत्रित की जाती हैं। सप्लायरों ने कलेक्टर की योजना के अनुरूप साधे कागज पर बिल बनाकर सीधे कलेक्टर को दिए और कलेक्टर ने इन बिलों के साथ अपना कवरिंग लेटर लगाकर खंड स्त्रोत समन्वयक को भुगतान के निर्देश देते हुए यह भी लिखा कि - यह भुगतान पांच करोड़ की राशि में से किया जाए। यानि कलेक्टर ने उक्त पांच करोड़ की राशि जानबूझकर ब्लाक में जमा कराई थी, ताकि कम लोगों की नजर इस पर पड़े। भोपाल में बैठे आईएएस अधिकारी इस पर आपत्ति न करें, इसलिए इसी राशि में से भोपाल में आईएएस एसोसिएशन द्वारा आयोजित फिल्म समारोह के लिए भी पच्चीस हजार रुपए दे दिए गए।
सूत्र बताते हैं कि - ऐसा केेवल झाबुआ में ही नहीं हुआ, बल्कि बड़वानी, धार, खरगौन में भी हुआ है। आदिवासी विभाग के दो अधिकारी बीजी मेहता व संतोष शुक्ला को ऐसे कारनामों का मास्टर माइंड माना जाता है। मेहता ने शाजापुर में करोड़ों रुपए की बेनामी सम्पत्ति बना ली है। इन अफसरों पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। तत्कालीन खंड स्त्रोत समन्वयक जीवनलाल शर्मा अचानक फरार हो गया है। आदिवासी विभाग के इस कर्मचारी को निलंबित करने की फाइल तैयार हो चुकी है।
सबसे बड़ा सप्लायर : इंदौर अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि.ने इस घपले में महती भूमिका अदा की है। राज्य सरकार के हाथ अभी तक इस सप्लायर तक नहीं पहुंचे हैं। झाबुआ घोटाले में सवा दो करोड़ रुपए का भुगतान अकेले इस कंपनी ने लिया है, जबकि स्टॉक रजिस्टर के अनुसार सामान कुछ भी सप्लाई नही हुआ है। इस कंपनी ने साधे कागज पर बिल बनाए। इन बिलों पर न तो बिल नंबर हैं और न ही तिथि डाली गई है। सबसे गंभीर बात यह है कि प्रा. लि. कंपनी होने के बाद भी इस कंपनी के पास सेल्स टैक्स नंबर तक नहीं है, जबकि मप्र वैट अधिनियम के तहत जो सामान कंपनी ने सप्लाई किया है, उस पर 12.5 प्रतिशत बैट कर लगाया जाना है। सवा करोड़ की सप्लाई में 28 लाख की कर चोरी तो इसी कंपनी ने की है। दूसरी ओर खंड स्त्रोत समन्वयक को कायदे से टीडीएस काटकर ही इस कंपनी को भुगतान करना था, वह भी नहीं काटा गया। सूत्रों का कहना है कि - इस कंपनी ने किसी बैंक में अवैध खाता खुलवाकर उक्त राशि आहरित कर ली है।
सात सौ के स्थान सैंतीस सौ पचास : अबेकस प्रा. लि. मप्र के कई शहरों में बच्चों की क्लास भी संचालित करती है। अबेकस की अधिकृत वेबसाइट के अनुसार उक्त क्लास में आने वाले बच्चों को कंपनी की ओर से अबेकस किट लेना अनिवार्य है। वेबसाइट पर अबेकस किट की कीमत 700 रुपए बताई गई है, जबकि इस कंपनी ने झाबुआ में अबेकस किट की सप्लाई सैंतीस सौ पचास रुपए में करते हुए भुगतान लेना बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने इस कंपनी को तत्काल ब्लैक लिस्टेट करने एवं इस कंपनी द्वारा मप्र शिक्षा विभाग में अभी तक की गई सप्लाई की जांच कराने की मांग की गई है। उन्होंने लोकायुक्त में की गई शिकायत में भी इस कंपनी को हुए भुगतान का ब्यौरा भी दिया है।
कहां गए कम्प्यूटर : भोपाल की स्वास्तिक एजेंसी को कम्प्युटर सप्लाई के नाम से साढ़े सात लाख का
भुगतान किया गया है। लेकिन इन कम्प्यूटरों का अभी तक पता नहीं है।
शिक्षामंत्री रहस्यमयी चुप्पी : एक अप्रेल को राज एक्सप्रेस में खबर छपने के बाद मप्र की शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनिस एकदम हरकत में आईं। उन्होंने उसी दिन विभाग के अफसरों की आपात बैठक बुलाकर उन्हें राज एक्सप्रेस की प्रतियां थमाते हुए इस घपले के बारे में उनसे जबाव मांगा था। स्वयं शिक्षामंत्री ने राज एक्सप्रेस संवाददाता से चर्चा में कहा था कि - मैं इन धपलों को रोकने के लिए दीर्घकालीन योजना बना रहीं हूं, लेकिन सप्रमाण खबर छपने के पन्द्रह दिन हो गए हैं और शिक्षामंत्री ने रहस्यमय चुप्पी साध ली हैं। अबेकस ने अपनी बेवसाइट पर शिक्षामंत्री अर्चना चिटनीस का मुस्कारता हुआ चित्र डाल रखा है। यह चित्र राज्य की शिक्षा व्यवस्था को चिढ़ाता ैहुआ नजर आ रहा है।
प्रस्तुतकर्ता RAVINDRA JAIN पर 10:21:00 AM 0 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक
Friday, April 02, 2010
Corruption in Madhya Pradesh
Corruption in Madhya Pradesh

THANKS
RAVINDRA JAIN
प्रस्तुतकर्ता RAVINDRA JAIN पर 11:01:00 AM 0 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक
Thursday, April 01, 2010
कलेक्टर ने डकारे करोड़ों
सर्वशिक्षा अभियान का सबसे बड़ा घोटाला

रवीन्द्र जैन

झाबुआ/भोपाल। मध्यप्रदेश का आईएएस अधिकारी जो अपनी जड़े मुख्यमंत्री सचिवालय में बताता है, वह आदिवासी बहुल जिले झाबुआ की कलेक्टरी मिलते ही इतना भ्रष्ट कैसे हो जाता है कि गरीब आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए आने वाले सर्वशिक्षा अभियान की राशि में से पांच करोड़ की राशि नकली बिल लगाकर, अपने असली हस्ताक्षर करके कैसे निकाल लेता है? इतना ही नहीं यह कलेक्टर चार साल झाबुआ में कई गुल खिलाने के बाद शिवपुरी जैसे जिले में अपनी पदस्थापना भी करा लेता है। राज एक्सप्रेस की जाबांज रिपोटर्स की टीम ने इस महाभ्रष्ट कलेक्टर राजकुमार पाठक की काली करतूतों के पुख्ता प्रमाण हासिल कर लिए हैं।
राजकुमार पाठक मप्र के प्रामोटी आईएएस अधिकारी हैं। मुख्यमंत्री के सचिव एसके मिश्रा उनके सगे साले हैं तो जाहिर है कि उन्हें बेहतर पोस्टिंग मिलनी ही हैं। राज कुमार पाठक लगभग चार तक झाबुआ में कलेक्टर रहे। उनकी नजर जिले के विकास पर कम और इस आदिवासी जिले के लिए केन्द्र व राज्य से आने वाली राशि पर ज्यादा टिकी रही। बताते हैं कि राजकुमार पाठक ने सर्वशिक्षा अभियान के पैसे को अपने बुढ़ापे को सहारा बनाने के लिए जैसा चाहा, वैसा उपयोग किया। यहां बता दें कि पाठक अगले साल मई में सरकारी नौकरी से रिटायर हो जाएंगे, लेकिन झाबुआ में उन्होंने जो पाप किए हैं उनसे वे शायद अपनी अंतिम सांस तक छुटकारा न पा सकें। यह तो रही खबर की भूमिका, अब असली मुद्दे पर आते हैं।
कैसे हुआ भ्रष्टाचार : हमने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत वर्ष 2007 एवं 2008 की जो जानकारी जुटाई है, वह आपके सामने पेश है। तत्कालीन कलेक्टर पाठक झाबुआ जिले के सर्वशिक्षा अभियान के पदेन मिशन संचालक भी थे। मार्च 2007 में सर्वशिक्षा अभियान की राशि में गोलमाल करने के नीयत से उन्होंने लगभग पांच करोड़ रुपए की राशि बीआरसी यानि खंड स्त्रोत समन्वयक, झाबुआ के खाते में जमा कराई ताकि जिले में इस भ्रष्टाचार के बारे में किसी को पता न चल जाए। इसके बाद इंदौर, भोपाल, धार आदि की फर्मों के नाम से कथित रुप से फर्जी बिल तैयार कराए गए और बिना सामान सप्लाई हुए करोड़ों रुपए का भुगतान कर दिया गया।
कैसे हुई सप्लाई : सबसे पहले इंदौर के अबेकस प्रा. लि. की फर्जी सप्लाई के बारे में जान लीजिए। गीता भवन चौराहा इंदौर की इस फर्म को कलेक्टर ने सीधे अबकस सप्लाई करने का ठेका दिया। अबेकस यानि छोटे बच्चों को गिनती सिखाने के लिए जिस छोटे से खिलौने का उपयोग किया जाता है, उसे अबेकस कहते हैं। भोपाल के मारवाडी रोड स्थित जय स्टेशनरी पर अबेकस किट की कीमत ढाई सौ रुपए है। लेकिन अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर ने अपने कथित फर्जी बिल में अबेकस किट की कीमत 3750 रुपए के अलावा किट के बैग की कीमत 792 रुपए दर्शाई है। उक्त बिल के अनुसार तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने अबेकस की 3600 किट गैग सहित सप्लाई का आदेश दिया था। अबेकस प्रा. लि. इंदौर ने बिना एक किट सप्लाई किए कलेक्टर पाठक के नाम दो बिल दिए। पहले बिल 95 लाख 38 हजार 200 रुपए का, दूसरा बिल 68 लाख 13 हजार रुपए का, साधे कागज पर बने इन बिलों पर न तो तारीख है और न ही बिल नंबर, सेल्स टेक्स नंबर आदि है। तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने इन बिलों को अपने कवरिंग लेटर के साथ खंड स्त्रोत समन्वयक को भेजते हुए सीधे भुगतान के निर्देश दे दिए। इस भुगतान के बारे में कैश बुक में स्पष्ट लिखा है कि कलेक्टर के निर्देश पर उक्त भुगतान किया गया। मजेदार बात यह है कि अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर के 68 लाख 13 हजार रुपए वाले बिल का भुगतान जिला सर्व शिक्षा केन्द्र से भी कराया गया है।
धड़ाधड़ छपवाए नकली बिल : केवल अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर इन फर्जी बिलों के आधार पर करोड़ों रुपए के भुगतान के बाद भी तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक का पेट नहीं भरा तो उन्होंने मप्र राज्य सहकारी उपभेक्ता संघ मर्यादित, इंदौर के कथित फर्जी बिलों के आधार पर एक करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया। स्टॉक रजिस्टर के अनुसार संघ ने इस अवधि में कोई सामान ही सप्लाई नहीं किया है।





भ्रष्टाचार में डूबे अधिकारी
- राजकुमार पाठक तत्कालीन कलेकटर झाबुआ
- बीजी मेहता, तत्कालीन जिला योजना समन्वयक
- जीवनलाल शर्मा, खंंड स्त्रोत समन्वयक झाबुआ

इन फर्मों को भुगतान किया गया, लेकिन सामान सप्लाई नहीं हुआ
- अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर 68,01,077.00 दिनांक 7 अप्रेल 07
- अबेकस एज्युकेशन प्रा. लि. इंदौर 95,38,2000.00 दिनांक 23 अप्रेल 07
- मप्र राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ मर्यादित इंदौर 47,68,838.00 दिनांक 7 अप्रेल 07
- मप्र राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ मर्यादित इंदौर 78,23,040.00 दिनांक 7 अप्रेल 07
- स्वास्तिक एजेंसी, मारवाडी रोड इंदौर 7,67,306.00 दिनांक 7 अप्रेल 07
- होलीपेथ इंटरनेशनल प्रा. लि. भोपाल 7,86,800.00 दिनांक 16 अप्रेल 07
- महावीर प्रिटिंग प्रेस, धार 5,54,700.00 दिनांक 16 अप्रेल 07
- द रिपब्लिकन प्रेस इलाहबाद 28,29,048.00 दिनांक 16 अप्रेल 07
- गोयनका आफसेट प्रिंटिंग, इंदौर 8,95,600.00 दिनांक 18 मई 07

अफसरों का कहना है
- उस समय जिला योजना समन्वयक का चार्ज बीजी मेहता के पास था और वे प्रथम श्रेणी अधिकारी हैं। इसलिए उन्हें मेरे समक्ष समस्त दस्तावेज सतर्कता व सावधानी से प्रस्तुत करना चाहिए था। कलेक्टर के पास कार्यग् की अधिकता होती है अत: प्रथम श्रेणी अधिकारी द्वारा प्रस्तुत दस्तावजों पर हस्ताक्षर करते समय ज्यादा गहराई में नहीं जाते हैं।
राजकुमार पाठक
तत्कालीन कलेक्टर

- मुझे जैसा कलेक्टर का लिखित निर्देश मिलता गया मैं भुगतान करता गया। सामग्री खरीदने के न तो मैंने आदेश दिए और न ही मैंने खरीदी है। कलेक्टर के निर्देश पर मेरे कार्यालय के खाते में पांच करोड़ रुपए जमा किए गए थे, और उनके निर्देश पर ही उक्त राशि व्यय की गई।
- जीवनलाल शर्मा
खंड स्त्रोत समन्वयक, झाबुआ

- जिला योजना समन्वयक हमसे डीडी बनवाकर अपने पास बुला लेते थे। इसके बाद किसे भुगतान कर रहे हें किसे नहीं हमें कुछ नहीं मालूम।
- राजेश वागरेचा
लेखापाल, बीआरसी, झाबुआ

- मेहता नदारत
जिला योजना समन्वयक बीजी मेहता इस संबंध में किसी से बात करने को तैयार नहीं है, इस बारे में पूछने पर वे अपना मोबाईल बंद कर लेते हैं। यहां बता दें कि मेहता मूलरुप से आदिवासी विकास विभाग से हैं तथा उनकी छवि जादूगर की है जो उल्टा सीधा करके करोड़ों रुपए बनाना जानते हैं। बताते हैं कि इस नौकरी में मेहता ने लगभग तीस करोड़ से अधिक की सम्पत्ति जुटा ली है।

वर्तमान अधिकारी परेशान
- झाबुआ में पदस्थ वर्तमान जिला योजन समन्वयक बी सुभाष त्रिवेदी से जब अबेकस सप्लाई के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते कि अबेकस क्या होता है। उन्होंने इसका नाम ही पहली बार सुना है। त्रिवेदी का कहना है कि वर्ष 2007 में जो राशि बीआरसी में जमा की गई थी, वह शिक्षकों के वेतन की राशि थी।
- खंढ स्त्रोत समन्वयक झाबुआ पद पर वर्तमान में पदस्थ बीआरसी सोमसिंह भूरिया ने बताया कि - उनकी जानकारी एवं स्टॉक रजिस्टर के अनुसार 2007 में जिस सामान का भुगतान किया गया है वह सामान विभाग में आया ही नहीं। उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार के तहत आप भी स्टॉक रजिस्टर लेकर चेक कर सकते हैं।

राज्य सरकार को मालूम है :
संयुक्त संचालक कोष एवं लेखा चांचोलकर का कहना है कि आडिट में उक्त गउग़डी पकड़ ली गई थी तथा इस गंभीर आर्थिक अनियमितता की शिकायत राज्य सरकार तक पहुंचा दी गई है।

यह भी संदेह के दायरे में
तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक के निर्देश पर संविदा शिक्षकों के मानदेय के नाम पर 6 अप्रेल 07 को डेढ़ करोड़ की राशि बीआरसी से निकाली गई है। यह भी संदेह के दायरे में है।


संविदा शिक्षक वर्ग 2
विकास खंड शिक्षकों की संख्या राशि
जोबट 20 4,90,000
अलीराजपुर 27 6,15,000
भाभरा 25 7,00,000
थांदला 22 5,14,000
कुल राशि 23,66,000

संविदा शिक्षक वर्ग 3
विकास खंड शिक्षकों की संख्या राशि
पेटलावद 102 18,55,000
रामा 8 40,000
उदयगढ़ 116 18,32,500
जोबट 151 24,20,000
अलीराजपुर 88 14,25,000
भाभरा 95 16,57,500
सोण्डवा 89 14,17,500
थांदला 122 20,05,000
कुल राशि 1,26,525,00


- सर्वशिक्षा अभियान योजना में शत प्रतिशत राशि केन्द्र सरकार से मिलती है। इसके योजना के संचालन का जिम्मा सरकार ने कलेक्टरों को सौंपा है।
- कलेक्टर भी इस योजना की राशि का दुरूपयोग न कर सकें, इसलिए इस योजना की राशि से सामग्री क्रय करने का अधिकार पालन शिक्षक संघ को दिया गया है।
- मप्र राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ मर्यादित को केवल 25 आयटम ही सप्लाई करने का अधिकार है। लेकिन उसके कथित फर्जी बिलों पर कई ऐसे आयटम खरीदना बताया गया है, जो उसे सप्लाई करने का अधिकार ही नहीं है।
- राज्य भंडार क्रय नियमों के अनुसार 25 हजार रुपए से अधिक का सामान क्रय करने पर कम से कम तीन कुटेशन बुलाना जरूरी है।
- लगभग पांच करोड़ से अधिक की इस खरीदी के लिए न तो टेंडर बुलाए गए और न ही अखबारों में विज्ञप्ति प्रकाशित की गई।
- तत्कालीन कलेक्टर राजकुमार पाठक ने सीधे तौर नपर ठेकेदारों को सप्लाई के आदेश दे दिए और उनसे बिल भी अपने नाम बुलवाकर बीआरसी से भुगतान भी करवा दिया गया।










प्रस्तुतकर्ता RAVINDRA JAIN पर 6:49:00 AM 9 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक
Friday, March 19, 2010


मिस्टर विधायक ... यह चोरी है

विधायकों के फर्जी यात्रा देयकों पर करोड़ों का भुगतान
जांच हुई तो छिन सकती है सदस्यता, हो सकती है जेल






रवीन्द्र जैन
भोपाल। मध्यप्रदेश के विधायक धडल्ले से विधानसभा सचिवालय में फर्जी यात्रा देयक लगाकर राज्य सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगा रहे हैं, लेकिन सब कुछ जानते हुए इस फर्जीवाडे को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं है। इस संबंध में एक पूर्व हाईकोर्ट जज का कहना है कि - इस मामले की गंभीरता से जांच हुई तो न केवल मप्र के सौ से अधिक विधायकों की सदस्यता समाप्त हो सकती है, बल्कि उन्हें जेल भी भेजा जा सकता है।

विधानसभा में सौ से अधिक विधायक विधानसभा सत्र के दौरान भोपाल आने जाने की यात्रा ट्रेन से करते हैं और उसी तिथि में अपने वाहन से आने जाने का फर्जी देयक बनाकर विधानसभा सचिवालय से सड़क मार्ग से आने का भी भुगतान ले लेते हैं। इनमें ग्वालियर चंबल संभाग एवं रीवा सतना के विधायकों की संख्या सबसे अधिक है। राज एक्सप्रेस ने सूचना के अधिकार के तहत विधानसभा सचिवालय से जानकारी निकाल कर इस फर्जीवाडे को उजागर करने का प्रयास किया है।

क्या है नियम : मप्र में विधायकों को विधानसभा सत्र के दौरान बैठकों में शामिल होने भोपाल आने जाने के लिए रेल अथवा वाहन भत्ते की पात्रता है। वाहन से आने विधायकों के लिए मप्र विधान मंडल यात्रा भत्ता नियम 1957 है एवं रेल से आने वालों के लिए मप्र विधानसभा सदस्य रेल द्वारा निशुल्क अभिवहन नियम 1978 प्रभावशील है। पहले वाहन से आने वालों के बारे में चर्चा करते हैं। विधायक यदि सत्र में सम्मलित होने के लिए स्वयं के वाहन से आते हैं तो उन्हें आने एवं जाने के लिए 6 रुपए किलोमीटर की दर से यात्रा भत्ता पाने का हक है, लेकिन इसमें स्पष्ट है कि उक्त वाहन सदस्य के नाम रजिस्टर्ड होना चाहिए। इसी प्रकार रेल यात्रा के संबंध में सभी विधयकों को राज्य के अंदर असीमित एवं राज्य के बाहर एक वर्ष में अधितम 6000 किलोमीटर यात्रा की पात्रता है।

क्या कर रहे हैं विधायक : मप्र के लगभग आधे विधायक विधानसभा के सत्र के दौरान रेल से यात्रा करके भोपाल पहुंचते हैं तथा विधानसभा सचिवालय में वाहन से आने का यात्रा देयक बनाकर वाहन किराया वसूल लेते हैं। नियम में साफ लिखा है कि - वाहन भत्ता उसी वाहन का दिया जाएगा जो विधायक के स्वयं के नाम रजिस्टर्ड हो। लेकिन सूचना के अधिकार में मिली जानकारी के अनुसार अनेक विधायकों ने दूसरे के वाहन का नंबर देकर देयह तैयार कराए हैं और विधानसभा सचिवालय ने भी बिना जांच किए भुगतान कर दिया।

सचिवालय की भूमिका संदिग्ध : इस संबंध में विधानसभा सचिवालय की भूमिका भी संदिग्ध है। नियमों में स्पष्ट लिखा है कि विधायक के निजी वाहन पर ही यात्रा भत्ते की पात्रता है, ऐसे में सचिवालय बिना जांच किए कैसे यात्रा भत्ते का भुगतान कर रहा है? इसके अलावा प्रमुख सचिव के बिना जांच के यह भुगतान कैसे कर रहे हैं। नियमों में लिखा है कि विधायक अनी यात्रा का विवरण प्रमुख सचिव को देगा। इसके बाद विधानसभा सचिवालय देयकों की दो प्रति तैयार कर उन दोनों पर विधायक के हस्ताक्षर कराएंगा तथा एक प्रति पर प्रमुख सचिव के हस्ताक्षर के बाद भुगतान किया जाएगा। यहां बता दें कि विधानसभा सचिवालय के लगभग सभी अधिकारियों, कर्मचारियों को जानकारी है कि - विधायक वाहन व रेल का किराया एक साथ ले रहे हैं, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं है उन्हें ऐसा करने से रोकने दें।

यह तो वर्षों से हो रहा है : इस संबंध में जब हमने सूचना के अधिकार के तहत विधानसभा सचिवालय में आवेदन लागया तो मप्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ लडऩे वाले एक वरिष्ठ विधायक हमें सलाह दी कि - ऐसा मत करो, क्योंकि यह तो वर्षों से हो रहा है। यदि पीछे पड़े मप्र विधानसभा के चुनाव दुबारा कराने पड़ेंगे, क्योंकि बहुत कम विधायक बचेंगे, जो यह घपला नहीं कर रहा है। कांग्रेस विधायक दल के सचेतक एनपी प्रजापति से इस संबंध में टिप्पणी के लिए अनुरोध किया तो उन्होंने कहा कि - केवल विधायकों के पीछे क्यों पड़े हो? मप्र के कई अधिकारी भी फर्जी यात्रा देयक ले रहे हैं।

भोपाल के विधायक भी पीछे नहीं : नियमों में साफ लिखा है कि भोपाल से आठ किलोमीटर दूर से आने वाले वाहन यात्रा भत्ता पाने के हकदार हैं, लेकिन भोपाल के सभी विधायकों ने विधानसभा से मनचाहा वाहन भत्ता वसूल किया है। जनवरी से दिसम्बर 2009 तक भोपाल के विधायकों ने वाहन भत्ते के रुप में हजारों रुपए लिए व हजारों रुपए के रेल कूपन भी लिए।

विधायक वाहन भत्ता रेल कूपन राशि

1 - ब्रम्हानंद रत्नाकर बैरसिया 23780 18,000

2 - आरिफ अकील 27200 18,000

3 - विश्वास सारंग 32000 94,000

4 - उमाशंकर गुप्ता 48968 2,68,000

5 - ध्रुवनारायण सिंह 14000 66,000

6 - जितेन्द्र डागा 22800 36,000



जानकारी मिली तो करूंगा कार्यवाही : इस संबंध में स्पीकर ईश्वरदास रोहाणी ने कहा कि विधायक ऐसा कर रहे हैं, इसकी जानकारी मुझे नहीं है। यदि कोई इस संबंध में सप्रमाण शिकायत मिली तो मैं सख्त कार्यवाही करुंगा।









सभी पर कार्यवाही होना चाहिए : नेता प्रतिपक्ष जमुनादेवी का कहना है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होना चाहिए और सभी दोषी विधायक वे चाहे किसी भी दल के हों, उनके विरूद्ध सख्त कार्यवाही होना चाहिए।






एक वर्ष में सबसे ज्यादा वाहन भत्ता लेने वाले विधायक

विभा क्षेत्र क्रमांक विधायक रेल राशि वाहनों का राशि

3 सुरेश चौधरी 1,66,792 95,684

7 शिवमंगल सिंह तोमर 1,98,000 99,660

18 लाखन सिंह यादव 2,00,000 93,600

62 जुगलकिशोर बागरी 1,88,000 1,10,004

67 रामलखन सिंह 1,10,000 1,03,628

71 लक्ष्मण तिवारी 1,43,150 1,31, 684

72 गिरिश गौतम 2,70,000 1,18,304

78 विश्वमित्र पाठक 1,32,000 1,20,000

80 राम लल्लू वैश्य 70,000 91,280

81 रामचरित्र 86,000 97,799


87 बिसाहूलाल सिंह 1,26,000 1,12,588

94 निथिश पटेल 1,86,000 1,66,299

226 राधेश्याम पाटीदार 48020 96,740

229 खुमानसिंह शिवाजी 18,000 95,832


230 ओमप्रकाश सचलेचा 1,38,000 1,24,500
प्रस्तुतकर्ता RAVINDRA JAIN पर 12:01:00 AM 1 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक
Tuesday, March 16, 2010
किसानों के नाम पर 200 करोड़ का घोटाला

राज्य सरकार ने इस घोटाले में 2200

कर्मचारियों को दोषी करार दिया




















रवीन्द्र जैन

भोपाल । लीजिए मप्र में एक और बड़ा घोटाला हाजिर है। मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों की ऋण माफी के नाम पर 114 करोड़ का घोलमाल होना स्वीकार कर लिया है। लेकिन अभी जांच जारी है और घपला दो सौ करोड़ से अधिक हो सकता है। राज्य की सहकारी बैंकों व प्राथमिक सहकारी समितियों ने धडल्ले से अपात्रों से मिलीभगत करके यह घपला किया है। इस घपले में जिला सहकारी बैंकों के 299 अधिकारी, 395 कर्मचारी एवं प्राथमिक सहकारी समितियों के 1507 कर्मचारी दोषी पाए गए हैं किन्तु राज्य सरकार ने अभी तक केवल 10 कर्मचारियों को ही सेवा से पृथक करने की कार्यवाही की है।

क्या है योजना : केन्द्र सरकार ने मप्र के गरीब एवं बैंकों का कर्ज न पटा सकने वाले किसानों के ऋण माफ करने एवं उन्हें ऋण चुकाने में राहत देने की योजना के तहत राज्य सरकार को 914 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई थी। इस राशि से जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को उन किसानों के ऋण पूरी तरह माफ करने थे जिनके पास 5 एकड़ से कम भूमि है तथा वे 1997 से 2007 के बीच अपना कर्ज अदा नहीं कर सके हैं, इसके अलावा पांच एकड़ से अधिक भूमि वाले ऐसे किसानों के लिए भी केन्द्र सरकार ने ऋण राहत योजना प्रारंभ की थी जो पिछले दस वर्षों तक बैंकों का ऋण नहीं चुका सके थे।

कैसे आई राशि : केन्द्र सरकार ने नाबार्ड के माध्यम से कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना 2008 के तहत यह राशि मप्र राज्य सहकारी बैंक को दी तथा मप्र राज्य सहकारी बैंक ने यह राशि जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को राशि की थी।

कैसे हुई गड़बडिय़ां : जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार किसानों की ऋण माफी एवं ऋण राहत करना थी। ऋण राहत योजना में 5 एकड़ से बड़े किसानों को एकमुश्त राशि जमा करने पर 25 प्रतिशत ऋण से मुक्ति देने की योजना थी। लेकिन यह जानते हुए कि सहकारी बैंकों में बैठे नेता और दलाल घपले से बाज नहीं आएंगे, राज्य सहकारी बैंक ने यह राशि सभी जिलों सहकारी बैंकों को भेज दी। सहकारी बैंको ने भी बेहद लापरवाही का परिचय दिया और ऋण राहत एवं ऋण माफी के प्रकरण प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से तैयार कराए। इन समितियों में स्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं होती। जिला सहकारी बैंकों के कर्मचारियों, अधिकारियों एवं समितियों ने सदस्यों ने मनमाने ढंग से जिस किसान का ले देकर कर्ज माफ कर दिया। केन्द्र सरकार ने निर्देश दिए थे कि केवल कृषि ऋण ही माफ किया जाएगा, लेकिन बैंकों एवं सहकारी समितियों ने मकान, मोटर सायकिल, चार पहिया वाहनों के ऋण भी माफ कर दिए।

कैसे हुआ खुलासा : मप्र विधानसभा में कांग्रेस के विधायक डा. गोविन्द सिंह ने 28 जुलाई 2009 को यह मामला विधानसभा में उठाया। इसके बाद 23 जुलाइ्र 2009 को विपक्षी सदस्यों ने इस मुद्दे पर

ध्यानाकर्षण सूचना के तहत सरकार का ध्यान इस घपले की ओर आकर्षित किया। तब सहकरिता मंत्री ने घपले को स्वीकार करते हुए 31 दिसम्बर तक इसकी जांच कराने एवं दोषी अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का भरोसा दिलाया था। लेकिन इस घपले की जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है।

अब तक 114 करोड़ का घपला : 10 मार्च 2010 को कांग्रेस के डा. गोविन्द सिंह ने प्रश्र के माध्यम से फिर से इस मामले को विधानसभा में उठाया तो सहकारिता मंत्री बिसेन ने चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होंने सदन में स्वीकार किया कि इस योजना में अभी तक की जांच में 114.81 करोड़ की अनियमितता हो चुकी है। उन्होंने इन अनियमिततओं के लिए जिला सहकारी बैंकों के 218 अधिकारियों, 395 कर्मचारियों को दोषी बताते हुए कहा कि प्राथमिक सहकारी समितियों के 1507 कर्मचारी भी इसके लिए दोषी हैं। उन्होंने कहा कि 2201 दोषी अधिकारी कर्मचारियों में से प्राथमिक सहकारी समिति के केवल 10 कर्मचारियों को सेवा से पृथक कर दिया गया है।

रिकार्ड ही गायब : सहकारिता मंत्री ने विधानसभा में यह कहकर सबको चौंका दिया कि सीधी जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक से इस घपले का रिकार्ड गायब कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस रिकार्ड को जप्त करने की कार्यवाही की जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि इसकी जांच में अभी तीन महिने से ज्यादा लग सकते हैं, जब घपले की राशि का सही सही अनुमान लगाया जा सकता है।

भिण्ड में 17 करोड़ का घपला : भिण्ड जिले में इस योजना के तहत सबसे ज्यादा राशि का गोलमाल किया गया है। सहकारिता मंत्री के अनुसार भिण्ड में 16.73 करोड़ की अनियमितता पाई गई है।

सीहोर में लीपापोती के प्रयास : सीहोर जिले में लगभग साठ लाख का घपला है, लेकिन बताया जाता है कि बैंक के अधिकारी कर्मचारी मिलकर इसे दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।



एक नजर में

- योजना का नाम : कृषि ऋण माफी एवं ऋण राहत योजना 2008
- कुल आंवटित राशि : 916 करोड़ रुपए
- सरकार द्वारा स्वीकार घपला : 114.81 करोड़
- कुल घपला : लगभग 200 करोड़
- दोषी अधिकारी : 218
- दोषी कर्मचारी : 395 बैंक के
- दोषी कर्मचारी : 1507 प्राथमिक सहकारी समिति के
- देाषी कर्मचारी सेवा से पृथक : मात्र 10 प्राथमिक समितियों के


- यह मप्र के इतिहास में किसानों के नाम पर किया गया अभी तक का सबसे बड़ा घोटाला है। राज्य सरकार द्वारा दोषी अधिकारियों कर्मचारियों को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं, इससे उसकी नीयत पर भी शक हो रहा है। कांग्रेस पार्टी इस घपले की विस्तृत शिकायत केन्द्र सरकार से करने जा रही है।



डा. गोविन्द सिंह, विधायक
प्रस्तुतकर्ता RAVINDRA JAIN पर 12:39:00 AM 0 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक
Wednesday, March 03, 2010
परिवहन विभाग, यानि

सरकार के संरक्षण में भ्रष्टाचार

अवैध कमाई को लेकर दो अफसरों में खींचतान शुरू

आयकर विभाग कर सकता है बड़ी कार्यवाही

प्रशासनिक संवाददाता

भोपाल। मध्यप्रदेश में एक सरकारी विभाग ऐसा भी है जिसमें सरकार के संरक्षण में ही भ्रष्टाचार होता है। स्वयं सरकार ने सभी जांच एजेंसियों को इस विभाग के भ्रष्टाचार की ओर मुंह उठाकर भी न देखने को कह दिया है। राज्य के परिवहन विभाग में चोरी छिपे नहीं डंके की चोट पर सरेआम भ्रष्टाचार किया जाता है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं जो इस भ्रष्टाचार के खिलाफ मुंह खोल सके। मप्र में परिवहन विभाग के चेकपेास्टों पर खुलेआम होने वाले भ्रष्टाचार इस सीमा तक पहुंच गया है कि चेकपोस्टों पर सरकारी आय से ढाई गुना राशि भ्रष्टाचार के रास्ते आ रही है। यह पैसा मंत्री से लेकर अफसरों तक में बंटा जाता है।

मप्र परिवहन विभाग का भाग्य अच्छा है कि उसे तीन महिने बाद आयुक्त के रुप में एसएस लाल नसीब हो गए हैं। लाल साहब ने इस कुर्सी तक पहुंचने के लिए कितने पापड़ बेले, यह तो वे ही जानते हैं। लेकिन आखिर लाल साहब इस कुर्सी पर क्यों आना चाहते थे तथा इस विभाग के उपायुक्त ने अपने प्रभाव का उपयोग करके तीन महिने तक इस कुर्सी को खाली क्यों रखा? यह रोचक किस्सा है। पहले इतना जान लीजिए कि आयुक्त की नियुक्ति के बाद भी इस महकमे में उपायुक्त की ही चल रही है। फिलहाल आयकर विभाग के निशाने परिवहन विभाग के कई अधिकारी हैं। कोई बड़ी बात नहीं है कि आईएएस अधिकारी अरविन्द जोशी की तरह अगले कुछ दिनों में परिवहन विभाग राज्य सरकार के लिए नया सिरदर्द बन जाए। सूत्रों के अनुसार विभाग के दो अफसरों में हर महिने आने वाली लगभग बीस करोड़ रुपए की कमाई के हिस्से को लेकर खींचतान शुरू हो गई है।

मप्र परिवहन विभाग के लगभग चालीस चेकपोस्ट हैं। पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार परिवहन विभाग की कुल 831 करोड़ रुपए की आय में 91 करोड़ रुपए चेकपोस्टों से आए थे। विभाग के सूत्रों के अनुसार बीते वर्ष इन चेकपोस्टों से 200 करोड़ से अधिक की अवैध कमाई की गई थी। अकेल नयागांव बैरियर से प्रतिमाह तीन करोड़ रुपए ऊपर बसूले जा रहे हैं, जो कायदे से सरकारी खाते में जमा होना चाहिए। इनके अलावा शाहपुरफाटा, मुल्ताई, खबासा, सोयत एवं खिलचीपुर बैरियरों से भी जमकर चांदी काटी जा रही है। इन बैरियरों से गुजरने वाले ट्रक 9 टन के स्थान पर 12 से 14 टन तक माल भरकर धडल्ले से निकल रहे हैं। खास बात यह है कि परिवहन विभाग के आधे से ज्यादा सिपाही एवं हवलदारों की नियुक्ति इन पांच बैरियरों पर कर दी गई है।

सेंधवा पर कमाई बंद : मप्र में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला बैरियर सेंधवा है जहां से राज्य सरकार को हर साल लगभग 25 करोड़ रुपए साल की आय होती है वहां पर्याप्त स्टाफ नहीं है, क्योंकि सेंधवा बैरियर पर इलेक्टॉनिक तौलकांटा लग जाने के कारण वहां अवैध कमाई पूरी तरह बंद है। परिवहन विभाग ने नयागांव व अन्य मलाईदार बैरियरों पर नियुक्त सिपाही हवलदारों को क्रम से सेंधवा पर छह माह में से एक माह नौकरी करने के निर्देश दिए हैं। विभाग के यह सिपाही एवं हवलदार हर छह महिने में मोटी रकम

देकर मलाईदार बैरियरों पर नियुक्ति कराते हैं। इन्हें मजबूरी में छह में से एक माह सेंधवा जाना पड़ता है जहां ऊपर की कमाई नहीं होती। लेकिन विभाग के अधिकारियों के पासव इसव बात कर जबाव नहीं है कि अन्य बैरियरों की तरह सेंधवा बैरियर जहां से सबसे ज्यादा राजस्व प्राप्त होता है, वहां सिपाही हवलदारों की सीधी नियुक्ति क्यों नहीं की जाती?

कमाई को विवाद शुरू : बताया जाता है कि परिवहन विभाग में बैरियरों से आने वाली अवैध कमाई में हिस्सें को लेकर दो अधिकारियों में विवाद शुरू हो गया है। परिवहन विभाग के तत्कालीन आयुक्त एनके त्रिपाठी के समय से ही विभाग के उपायुक्त ने अपनी चालाकी से बंटवारे में अपना हिस्सा बढ़ा लिया था। इस अधिकारी ने अपने खास संबंधों के आधार पर आयुक्त की कुर्सी को तीन महिने तक खाली रखवाने में भी सफलता पा ली थी, इस दौरान उन्होंने न केवल हर तीन महने में होने वाले रोटेशन को किया, बल्कि कुछ अधिकारियों की डीपीसी करके पदोन्नति भी कर डाली।

मंत्री व प्रमुखसचिव दूर : शायद किसी को विश्वारस न हो, लेकिन विभाग के सूत्रों का दावा है कि परिवहन विभाग की अवैध कमाई के बारे में अभी भी विभाग के प्रमुखसचिव राजन कटोच एवं मंत्री जगदीश देवडा को सही सही जानकारी नहीं है। मंत्री देवडा सरकार को चलाने वाली अदृश्य शक्तियों के इशारे पर काम करने को मजबूर हैं। विभाग में मंत्री से चांदी उनके निजी स्टाफ में पदस्थ अफसर काट रहे हैं। जबकि प्रमुख सचिव कटोच एकदम ईमानदार अफसर है। उनके सामने किसी की हिम्मत नहीं होती कि - चेकपोस्टों के बारे में चर्चा भी कर सकें।

लोकायुक्त में भी पहुंचता है हिस्सा : यह भी चौंकाने वाला तथ्य है कि मप्र में ईमानदार लोकायुक्त होने के बाद भी चेकपोस्टों से लोकायुक्त कार्यालय के कइ्र अधिकारियों ने महिना बांध रखा है। यहीं कारण है कि पिछले चार साल में लोकायुकत संगठन ने अभी तक मप्र के किसी चेकपोस्ट पर न तो छापा मारा है और न ही इस खुली लूट को लेकर कोई सख्त कार्रवाही की है। मजेदार बात यह है कि लगभग हर चेकपोस्ट पर चौबीस घंटे सड़क पर लूटपाट चलती रहती है, लेकिन लोकायुक्त संगठन सहित किसी एजेंसी की इस पर नजर क्यों नहीं पड़ती?

क्या हैं कटर : लगभग हर चेकपोस्ट पर कुछ कटर रखे जाते हैं जो अवैध कमाई को रखते हैं। यह एक तरह से प्राईवेट स्टाफ रहता है जो यदि किसी कारण से चेकपोस्ट पर छापा पड़ जाए तो यह बताया जा सके कि नगद रकम प्राइवेट आदमी के पास से बरामद हुई है। यह कटर कई वर्षों से बैरियरों पर जमे हुए हैं। अवैध कमाई के हिसाब की डायरी कटर ही मेंटेन करता है। कई जिलों में कलेक्टर, एसपी, सांसद, विधायक व स्थानीय नेताओं को भी हिस्सा पहुंचाने का काम कटर ही करते हैं।



तीन बसें जप्त, यात्री हुए पेरशान

परिवहन विभाग के विशेष जांच दल ने बुधवार को भोपाल में बड़ी कार्यवाही करते हुए इंदौर-भोपाल रोड़ पर तीन बसों को बिना परमिट के सवारियों को ढोते हुए पकड़ा। तीनों बसों को जप्त कर लिया
गया है। सूत्रों के अनुसार परिवहन आयुक्त एसएस लाल ने विशेष जांच दल को इंदौर भोपाल रोड़ पर अवैध बसों को पकडऩे के निर्देश दिए थे। दल के निरीक्षक संजय तिवारी ने फंदा के पास अचानक चैकिंग करके भोपाल से इंदौर जा रही तीन बसों को पकड़ा। इनमें एक बस पूर्व मंत्री प्रकाश सोनकर के रिश्तेदार की थी। बसें जप्त होने के कारण इनमें यात्रा कर रही सवारियों को परेशानी का सामना करना पड़ा। तीनों बसों को खजूरी सड़क थाने में रखा गया है।
प्रस्तुतकर्ता RAVINDRA JAIN पर 7:11:00 AM 1 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक
पुराने पोस्ट मुखपृष्ठ
सदस्यता लें संदेश (Atom)

Tuesday, April 20, 2010

नवभारत के मालिक प्रफुल्ल माहेश्वरी फर्जीवाड़ा करते सी.बी.आई. की चपेट में

नवभारत के मालिक प्रफुल्ल माहेश्वरी फर्जीवाड़ा करते सी.बी.आई. की चपेट में
भोपाल । नवभारत (म.प्र.) के मालिकों ने जो धोखाधड़ी की घटना ने पत्रकारिता को शर्मासार कर दिया। मशीन के नामपर 16 करोड़ के प्रकरण से सभी हतप्रभ है। प्रजातन्त्र के चौथे स्तंभ पर सबकी नज़र रहती है सरकार और जनता के मध्य सेतू की भूमिका निभाता है परन्तु इन दिनों चौथे स्तंभ ने भी बड़े व्यापारी की भूमिाक अदा कर रहे है और व्यापारी अधिक पैसा कमाने के लिये कई तरह के गलत कार्य कर बैठता है। एक नहीं कई उल्टे कार्य दैनिक नवभारत (म.प्र.) के मालिकों द्वारा किये गये, एन.बी. प्लाटेंशन में करोड़ों रुपये जनता से लेकर डकार गये न्यायालय से धारा 138 के कई प्रकरण है जिनमें कई गैर जमानती वारंट जारी है परन्तु पुलिस विभाग समाचार पत्र मालिक एवं पूर्व सांसद होने के कारण प्रफुल्ल माहेश्वरी को गिरतार नहीं कर पा रही है जो आम जनता के साथ अन्याय तथा न्यायालय की अवमानना है इतना ही नहीं प्रफुल्ल माहेश्वरी ने समाज को मिली सरकारी जमीन को भी बेच दिया था आपत्ति लगने पर जमीन बिकने से रुकी ऐसे अनेकों प्रकरण है। ताजा महाराष्ट्र बैंक प्रकरण में केन्द्रीय जांच ब्यूरो, दिल्ली की टीम ने शुक्रवार को फर्जी लोन के मामले में राजधानी के बैंक अ‚फ महाराष्ट्र एवं मेसर्स नवाारत प्रेस के मालिक माहेश्वरी ग्रुप के आवास और सात ठिकानों पर छापे की कार्रवाई की है। साथ ही फर्जी लोन के मामले में पूर्व कांग्रेस सांसद प्रफुल्ल माहेश्वरी, सन्दीप माहेश्वरी, संजीव माहेश्वरी, श्रीमती बृज माहेश्वरी से भी पूछताछ की गई है। सीबीआई के एडीजीपी हर्ष बहल ने बताया कि वर्ष 2004 में माहेश्वरी के एमपी नगर जोन वन स्थित नवाारत प्रेस में मशीनरी लगाने के लिए बैंक अ‚फ महाराष्ट्र से 15.67 करोड रुपए ऋण के लिए आवेदन किया गया था। बैंक से मंजूरी मिलने के बाद बैंक मैनेजर राजन मल्होत्रा के सहयोग से चार व्यतियों सन्दीप चौरसिया, प्रदीप चौरसिया, राकेश भाटिया, अशोक सिंह के नाम से फर्जी एकाउंट खोले गए थे और पूरी ऋण राशि इन्हीं फर्जी एकाउंट में ट्रांसफर करा ली। इस पूरे मामले में बैंक को धोखा देने के आरोप में सीबीआई ने नवाारत प्रेस के डायरेटर प्रफुल्ल माहेश्वरी, संजीव माहेश्वरी, सन्दीप माहेश्वरी सहित चार निजी लोगों के खिलाफ 420 का मामला दर्ज कर लिया है। इसी सिलसिले में बैंक अ‚फ इण्डिया और सेंट्रल बैंक में भी सीबीआई की टीम पहुंची थी।

-----------------------------------------------------------------------
वर्ष 2007 से पत्रकार शलभ भदौरिया, विष्णु वर्मा पर धारा 120 बी,420, 467, 468, 471 भादवि में मामला ई.ओ.डब्ल्यू. में पंजीबध्द प्रकरण मुख्य न्यायायिक दण्डाधिकारी हेतु तैयार दबाव से रूका है।
भोपाल। जानकारी के अनुसार राय आर्थिक अनवेषण ब्यूरो भोपाल में प्रकरण क्रमांक 0506 पंजीयन दिनांक 23.2.06 को हुआ। प्रकरण का घटना स्थल पत्रकार भवन है। प्रकरण में फरियादी गुलाबसिंह राजपूत थाना प्रभारी रा.आ.अप. अन्वेषण ब्यूरो भोपाल है जिसमें सन्देहीआरोपी शलभ भदौरिया एवं विष्णु वर्मा विद्रोही है जिसकी विवेचना 30.10.2007 को पूर्व कर पुलिस अधीक्षक सुधीर लाड़ ब्यूरो इकाई भोपाल ने की। ब्यूरो में पंजीबध्द प्रकरण में श्रमजीवी पत्रकार मासिक पत्र का आर.एन.आई. प्रमाण पत्र क्र. 327672 दिनांक 12.8.72 दिया वह स्पूतनिक तेलगू पाक्षिक राजमून्दरी आंध्र प्रदेश का पाया गया।
उक्त प्रमाण फर्जी पत्र के आधार पर शलभ भदौरिया एवं विष्णु वर्मा विद्रोही ने डाक पंजीयन कराकर जनवरी 2003 से अगस्त 2003 तक 34.755 रु. का अवैध रूप से आर्थिक लाभ लिया। बुक पोस्ट की दरों में वृिध्द के कारण राशि 1,40625 हुई। अतरू प्रथम –ष्टा अन्तर्गत धारा 120 बी, 420, 467, 468, 471 भादवि का दण्डनीय पाये जाने से प्रकरण पंजीबध्द किया। पत्र के सम्बंध्द में विष्णु वर्मा ने जानकारी दी कि श्रमजीवी पत्रकार की 4500 प्रतियां प्रतिमाह सदस्यों को भेजी जाती है। झूठे प्रमाण पत्र के आधार पर आरोपी शलभ भदौरिया एवं विष्णु वर्मा द्वारा सांठगांठ कर कूट रचना की। जप्त दस्तावेजों के आधार एवं शलभ भदौरिया एवं विष्णु वर्मा के द्वारा दिये दस्तावेज एवं मौखिक साक्ष्य के आधार पर आरोप पूर्ण रूप से सत्य पाये।
जनसम्पर्क विभाग की सक्रियता एवं नियमों का पालन करने के कारण विभाग ने समस्त समाचार पत्र पत्रिकाओं मासिक एवं साप्ताहिक को विज्ञापन नीति के परिपालन के लिये आर.एन.आई. प्रमाण पत्र मांगे तब श्रमजीवी पत्रकार मासिक पत्र के प्रमाण पत्र की प्रति विष्णु वर्मा द्वारा दी गई 15.5.2002 को जांच में पाया गया कि वर्ष 1999 से 2003 तक श्रमजीवी पत्रकार समाचार पत्र के प्रधान संपादक शलभ भदौरिया थे तथा इनके द्वारा कार्यालय कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी भोपाल, प्रवर अधीक्षक डाक घर भोपाल में भी शलभ भदौरिया द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेज प्रस्तुत किये। फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर आर्थिक लाभ प्राप्त कर भारत शासन के साथ धोखाधड़ी कर शासन को 1,74970 रुपये की आर्थिक क्षति की।
मामला सम्पूर्ण दस्तावेजों एवं जांच रिपोर्ट के बाद महानिदेशक आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को वर्ष 2007 में भेजा जा चुका है जिसे माननीय मुख्य न्यायायिक दण्डाधिकारी महोदय जिला भोपाल में प्रस्तुत करना है। -राधावल्लभ शारदा
प्रदेश अध्यक्ष वकिंZग जर्नलिस्ट यूनियन

Thursday, April 15, 2010

सूचना के अधिकार के तहत जानकारी पाना आसान नहीं
शिवराज के नौकरशाह भाषण एवं अपमान करने में जुटे
भोपाल 15 अप्रैल 2010 (म.प्र.ब्यूरो)। मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के नौकरशाह किस हद में अपनी सेवाओं को जनता के प्रति करते हैं ऐसा वाक्या राज्य मन्त्रालय में पदस्थ प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारी ने अपीलीय लोसूचना अधिकारी की कुर्सी का महत्व बताते हुये आवेदनकर्ता को खरी-खोटी सुनाकर निर्णय के बारे में यह कहकर टाल दिया कि में इसका निर्णय बाद में करूंगा। जनसंवेदना के अध्यक्ष ने लोकसूचना अधिकारी (सामान्य प्रशासन) से प्रदेश के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने टम्म्ळन् जानकारी देने को कहते हुये विदेश यात्रा पर गये भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों की विस्तृत जानकारी देने से इन्कार कर दिया। अपीलीय अधिकारी सुदेश कुमार के यहां आज 15 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई थी।
अपीलीय अधिकारी सुदेश कुमार ने आध्याित्मक भाषण देना शुरू करते हुये कहा आवेदनकर्ता से कहा कि हिम्मत हो तो उस अधिकारी का नाम लेकर क्यों नहीं जानकारी लेते हुये। वह यह भी कहने लगे कि ईश्वर दोनों लोगोें को देखता है जिसका आप बुरा करने का सोच रहे हो, उसके साथ भी परमात्मा होगा। ईश्वर ने आवेदनकर्ता को सहन शक्ति प्रदान की, चूंकि उसने इस भाषण पर अपनी प्रतिक्रिया में यही कहा कि पारदर्शिता सब चीजों की होनी चाहिये।
यह आध्याित्मक संबोधन के समय लोकसूचना अधिकारी श्री पगारे भी मौजूद थे । इसी दौरान कुछ अधिकारियों का एक समूह आकर बैठ गया तो उनके सामने भी भाषण देते रहे। ईश्वर से प्रार्थना है कि प्रमुख सचिव सुदेश कुमार जैसे और अधिकारी पैदा करें जो कि लोगों को चलना सिखाने का पाठ पढाएं। फिलहाल मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान को ßपुरूषोत्तम मासÞ में कई कठिनाईयोें के दौर से गुजरना पड़ेगा। इस तरह की भविष्यवाणियां मृतक आत्माओं के मिलन के कारण कई बार की जा चुकी है।

महानाट्य राजयोगिनी अहिल्याबाई 16 अप्रैल से बुरहानपुर में

भोपाल 15 अप्रैल 2010। बुरहानपुर में 16 से 19 अप्रैल तक महानाट्य राजयोगिनी अहिल्याबाई का मंचन होगा। स्थानीय विधायक एवं स्कूल शिक्षा मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनीस की पहल पर प्रो. ब्रजमोहन मिश्रा स्मृति न्यास व जन-सहयोग परिषद द्वारा आयोजित महानाट्य में स्थानीय कलाकारों सहित करीब 400 कलाकार कला का प्रदर्शन करेंगे। 16 अप्रैल को महानाट्य के शुभारंभ पर संस्कार भारती नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष जम्मुकृष्ण शास्त्री, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख हस्तीमल व महर्षि पंतजलि संस्कृत संस्थान भोपाल के अध्यक्ष मिथिलाप्रसाद त्रिपाठी आदि उपस्थित रहेंगे। 4 दिवसीय महानाट्य में 19 अप्रैल तक पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, वित्त मंत्री राघवजी, भाजपा के प्रदेश सह संगठन मंत्री भगवतशरण माथुर, फिल्म कलाकार आशुतोष राणा, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल के उप कुलपति श्री कोटियाल आदि इस अवसर पर उपस्थित होंगे।
संस्कृति विभाग एवं पर्यटन विभाग के सहयोग से रेवा क्रियेशन द्वारा प्रस्तुत राजयोगिनी अहिल्याबाई देश का दूसरा बड़ा महानाट्य है। महानाट्य में देवी अहिल्या होलकर की भूमिका इंदौर की सुश्री अर्चना चितले ने निभाई है। इसके लेखक व निर्देशक किरण शानी हैं। संगीत एवं नृत्य निर्देशन दीपा शानी ने किया है। गीत चैतन्य शाह व पुनीत शर्मा के हैं। प्रमुख स्वर दीपा शानी, गौतम काले व किरण शानी ने दिए हैं। ध्वनि मुद्रण सिटी हार्ट स्टूडियो इंदौर के इशराक शेख का है तथा प्रकल्प प्रमुख अभिजीत निरखीवाले हैं।
राष्ट्र धर्म, भारतीय जीवन एवं ऋषि-मुनियों द्वारा राष्ट्रहित में किए गए प्रयासों के प्रतिस्थापन के उद्देश्य से ऐतिहासिक महानाट्य की रचना की गई है। महानाट्य में 18वीं सदी के समाज जीवन का जीवंत प्रदर्शन के लिए असंख्य कलावंतों व तकनीशियनों ने अनथक परिश्रम किया है। महानाट्य के लिए इंदौर के राजवाड़े की विराट अनुकृति से युक्त करीब 4 हजार वर्गफुट का भव्य मंच बनाया गया है। आधुनिक कर्णप्रिय ध्वनि व्यवस्था, लोकशैली आधारित सुमधुर संगीत, साक्षात हाथी, घोड़े, ऊँट, तोपें व पालकियों का मनोरम दृश्य के साथ विशाल महिला सैन्य शक्ति का प्रदर्शन होगा। महाराष्ट्र की लोक शैलियों पोवाडा, गोंधक, जागरण इत्यादि को आधार बनाकर प्रस्तुत महानाट्य का संगीत सामान्य जनमानस को मंत्रमुग्ध कर देने वाला है।

सूचना के अधिकार के तहत जानकारी पाना आसान नहीं

सूचना के अधिकार के तहत जानकारी पाना आसान नहीं
शिवराज के नौकरशाह भाषण एवं अपमान करने में जुटे
भोपाल 15 अप्रैल 2010 (म.प्र.ब्यूरो)। मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के नौकरशाह किस हद में अपनी सेवाओं को जनता के प्रति करते हैं ऐसा वाक्या राज्य मन्त्रालय में पदस्थ प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारी ने अपीलीय लोसूचना अधिकारी की कुर्सी का महत्व बताते हुये आवेदनकर्ता को खरी-खोटी सुनाकर निर्णय के बारे में यह कहकर टाल दिया कि में इसका निर्णय बाद में करूंगा। जनसंवेदना के अध्यक्ष ने लोकसूचना अधिकारी (सामान्य प्रशासन) से प्रदेश के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने टम्म्ळन् जानकारी देने को कहते हुये विदेश यात्रा पर गये भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों की विस्तृत जानकारी देने से इन्कार कर दिया। अपीलीय अधिकारी सुदेश कुमार के यहां आज 15 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई थी।
अपीलीय अधिकारी सुदेश कुमार ने आध्याित्मक भाषण देना शुरू करते हुये कहा आवेदनकर्ता से कहा कि हिम्मत हो तो उस अधिकारी का नाम लेकर क्यों नहीं जानकारी लेते हुये। वह यह भी कहने लगे कि ईश्वर दोनों लोगोें को देखता है जिसका आप बुरा करने का सोच रहे हो, उसके साथ भी परमात्मा होगा। ईश्वर ने आवेदनकर्ता को सहन शक्ति प्रदान की, चूंकि उसने इस भाषण पर अपनी प्रतिक्रिया में यही कहा कि पारदर्शिता सब चीजों की होनी चाहिये।
यह आध्याित्मक संबोधन के समय लोकसूचना अधिकारी श्री पगारे भी मौजूद थे । इसी दौरान कुछ अधिकारियों का एक समूह आकर बैठ गया तो उनके सामने भी भाषण देते रहे। ईश्वर से प्रार्थना है कि प्रमुख सचिव सुदेश कुमार जैसे और अधिकारी पैदा करें जो कि लोगों को चलना सिखाने का पाठ पढाएं। फिलहाल मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान को ßपुरूषोत्तम मासÞ में कई कठिनाईयोें के दौर से गुजरना पड़ेगा। इस तरह की भविष्यवाणियां मृतक आत्माओं के मिलन के कारण कई बार की जा चुकी है।

सूचना के अधिकार के तहत जानकारी पाना आसान नहीं

सूचना के अधिकार के तहत जानकारी पाना आसान नहीं
शिवराज के नौकरशाह भाषण एवं अपमान करने में जुटे
भोपाल 15 अप्रैल 2010 (म.प्र.ब्यूरो)। मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के नौकरशाह किस हद में अपनी सेवाओं को जनता के प्रति करते हैं ऐसा वाक्या राज्य मन्त्रालय में पदस्थ प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारी ने अपीलीय लोसूचना अधिकारी की कुर्सी का महत्व बताते हुये आवेदनकर्ता को खरी-खोटी सुनाकर निर्णय के बारे में यह कहकर टाल दिया कि में इसका निर्णय बाद में करूंगा। जनसंवेदना के अध्यक्ष ने लोकसूचना अधिकारी (सामान्य प्रशासन) से प्रदेश के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने टम्म्ळन् जानकारी देने को कहते हुये विदेश यात्रा पर गये भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों की विस्तृत जानकारी देने से इन्कार कर दिया। अपीलीय अधिकारी सुदेश कुमार के यहां आज 15 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई थी।
अपीलीय अधिकारी सुदेश कुमार ने आध्याित्मक भाषण देना शुरू करते हुये कहा आवेदनकर्ता से कहा कि हिम्मत हो तो उस अधिकारी का नाम लेकर क्यों नहीं जानकारी लेते हुये। वह यह भी कहने लगे कि ईश्वर दोनों लोगों को देखता है जिसका आप बुरा करने का सोच रहे हो, उसके साथ भी परमात्मा होगा। ईश्वर ने आवेदनकर्ता को सहन शक्ति प्रदान की, चूंकि उसने इस भाषण पर अपनी प्रतिक्रिया में यही कहा कि पारदर्शिता सब चीजों की होनी चाहिये।
यह आध्याित्मक संबोधन के समय लोकसूचना अधिकारी श्री पगारे भी मौजूद थे । इसी दौरान कुछ अधिकारियों का एक समूह आकर बैठ गया तो उनके सामने भी भाषण देते रहे। ईश्वर से प्रार्थना है कि प्रमुख सचिव सुदेश कुमार जैसे और अधिकारी पैदा करें जो कि लोगों को चलना सिखाने का पाठ पढाएं। फिलहाल मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान को पुरूषोत्तम मास में कई कठिनाईयों के दौर से गुजरना पड़ेगा। इस तरह की भविष्यवाणियां मृतक आत्माओं के मिलन के कारण कई बार की जा चुकी है।

Wednesday, April 14, 2010

वन विहार में बर्ड वाचिंग कैम्प समर 2010 का आयोजन मई में

Bhopal:Monday, April 12, 2010:Updated 18:52IST

--------------------------------------------------------------------------------


प्रकृति प्रेमियों, जन-सामान्य एवं छात्र-छात्राओं को पक्षियों का वर्गीकरण, पहचान एवं विशेषताएं तथा नेस्टिंग अवधि, आदि के बारे में सामान्य जानकारी उपलब्ध कराने के लिये वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भोपाल एवं आर.सी.व्ही.पी. नरोन्हा प्रशासन अकादमी, भोपाल द्वारा संयुक्त रूप से समर बर्ड वाचिंग कैम्प 2010 का आयोजन 2, 8, 15, 23, 17 एवं 30 मई को वन विहार में किया जा रहा है।

यह कैम्प एक दिवसीय है जो प्रात: 6 बजे से 2 बजे तक रहेगा। प्रत्येक कैम्प में 25 से 30 प्रतिभागियों को सम्मिलित किया जायेगा। कैम्प में प्रत्येक प्रतिभागी को कैम्प किट दी जायेगी। जिसमें रीडिंग मटेरियल, पेंसिल, नोटबुक, बैग एवं कैप रहेंगे। शिविर में प्रत्येक प्रतिभागी को चाय, नाश्ता एवं वर्किंग लंच की सुविधा दी जायेगी।

बर्ड वाचिंग कैम्प में कोई भी प्रकृति प्रेमी, छात्र-छात्राएं भाग लेना चाहते हों तो 200 रुपये जमा कर अपना पंजीयन अपनी सुविधानुसार तिथि हेतु करा सकते हैं। एक शिविर में अधिकतम 30 व्यक्तियों की भागीदारी की जायेगी। अत: पंजीयन ‘पहले आवे पहले पावे’ के सिद्धांत पर किया जायेगा। प्रतिभागियों का पंजीयन भदभदा गेट के नजदीक स्थित संचालक कार्यालय, वन विहार में कार्यालयीन समय में किया जायेगा। यदि किसी संस्था के एकमुश्त 25-30 सदस्य उपरोक्त तिथियों में सिर्फ अपनी संस्था के लिये बर्ड वाचिंग हेतु पंजीयन कराते हैं तो वह तिथि पूर्ण रूपेण उस संस्था को आरक्षित कर दी जायेगी। विस्तृत जानकारी हेतु संचालक वन विहार से दूरभाष क्रमांक 2674278, 9424790610 और सहायक संचालक से दूरभाष क्रमांक 2674278, 9424790615 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

जलकुआँ में लौटा 40 साल पुराना इतिहास

बुजुर्गों ने दी थी नसीहत, खुदगर्जी और कुदरत से खिलवाड़ ने बिगाड़े थे हालात
Bhopal:Wednesday, April 14, 2010:Updated 17:41IST

--------------------------------------------------------------------------------


अब यह साबित हो चुका है कि कुदरत से खिलवाड़ की नापाक कोशिश इंसानी कौम को तहस-नहस कर देगी। भीषण गर्मी जो अब रूकने का नाम नहीं ले रही है, यह साफ इशारा कर रही है कि अगर वक्त रहते संभलने की कोशिशें नहीं की गई तो कयामत से बचना असंभव हो जाएगा। ऐसे ही कुछ हालात खंडवा जिले के जलकुआँ गाँव में भी पसरे थे लेकिन बुजुर्गों की नसीहत ने उस तबाही से इस गाँव को चंद कदमों के फासले पर इसलिए बचा लिया कि वहां वक्त रहते पानी को बचाने के इंतजाम कर लिये गये हैं। इसके नतीजे में 40 साल पुराना पानी का समृद्ध इतिहास फिर से दोहराने को तैयार है।

एक जमाने में खंडवा जिले की पंधाना जनपद के तहत ग्राम पंचायत जलकुआँ अपनी नाम की प्रतिष्ठा के अनुरूप जल समृद्धि को लेकर पहचानी जाती थी। गाँव के बुजुर्गों की मानें तो यह गाँव पहले भाम नदी के किनारे बसा था और इस नदी में इतना पानी होता था कि एक खाट की पूरी रस्सी उस नदी में डाल देने के बावजूद पानी की गहराई मालूम नहीं पड़ पाती थी। पानी की इस प्रचुरता के चलते इस नदी में मगर हुआ करते थे। यही वजह थी कि कालांतर में नदी के किनारे उस गाँव के लोग वहाँ से निकल कर दो किलोमीटर दूर जा बसे। उस जमीन का आलम यह था कि थोड़ी सी खुदाई करने पर ही कुएँ पानी से लबालब हो जाते थे। इसी तथ्य को लेकर गाँव का नाम जलकुआँ पड़ा था। वक्त जब बदला तो हालात ने इस गाँव में ऐसी करवट ली कि पानी की प्रचुरता का उसका इतिहास धूमिल पड़ गया। लोगों ने पानी का अंधाधुंध इस्तेमाल शुरू किया और देखते-देखते जल स्तर घटने लगा। यहाँ तक कि बारिश में जिन जल संरचनाओं में पानी भर जाता था वह भी बहकर दूर निकल गया। गाँव वालों ने खुदगर्जी के चलते पूरी नर्सरी काट दी और उससे मिली लकड़ियों का इस्तेमान ईधन में कर लिया। पूरे गाँव का पर्यावरण बिगड़ता गया और पानी की त्राही-त्राही होने लगी। जानवर तो दूर मनुष्यों के पीने के पानी के ही लाले पड़ गए। यह हालात साल 2006-07 तक चले।

पाँच साल पहले गाँव के बुजुर्गों ने नौजवानों को जब पुरानी बाते बताई तो बरबस सभी की आँखों में आँसू छलक आये थे। इस बीच ही एक संकल्प लेकर आगे बढ़ने की ठानी गई और यह तय किया गया कि हरसंभव उपाय से बिगड़े हालात संभाले जायेंगे। पहली कड़ी में लोगों द्वारा अतिक्रमण की गई कोई 50 एकड़ जमीन को मुक्त कराया गया। वहाँ राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत कंटूर ट्रेंचों का निर्माण कराया गया और पौधे रोपित किये गये। इन कोशिशों के साथ ही हालात में भी धीरे-धीरे बदलाव आने लगा। इन कोशिशों को थमने नहीं दिया गया। कोई सात हजार कंटूर ट्रेंच अब तक बनाये जा चुके हैं और यह सिलसिला जारी है। इनमें से प्रत्येक कंटूर में एक बार की बारिश पर करीब एक हजार लीटर पानी इकट्ठा हो जाता है। इस तरह इन सारे कंटूर ट्रेंचों में एक बार की बारिश 70 लाख लीटर पानी न सिर्फ इकट्ठा करती है बल्कि इनके जरिए जमीन के भीतर गहरे तक पानी पहुँचा देती है। इसके अलावा कोई 2000 पौधे लगाये गये हैं जो भीषण गर्मी में भी पानी की उपलब्धता के चलते जीवित हैं। कपिलधारा के 29 कुओं के साथ ही उनमें रिचार्ज पीट भी लगाये गये हैं। इससे पुर्नभरण प्रबंधन हो रहा है। अब 5 साल बाद यह जलकुआँ पंचायत अपने पुराने स्वरूप में फिर से उभर आई है।

भगवान श्री राम की विश्राम स्थली ग्राम मुटवा की मिढ़ासन नदी होगी पुनर्जीवित

मुख्यमंत्री करेंगे शुरूआत
Bhopal:Wednesday, April 14, 2010:Updated 18:29IST

--------------------------------------------------------------------------------


मिढासन नदी जिस स्थान से निकलती है वह कभी भगवान श्री राम की विश्राम स्थली रही है। केन नदी की सहायक नदी मिढासन पन्ना जिले के मुटवा स्थान पर है। जहां 16 अप्रैल को मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जायेंगे और इस ऐतिहासिक धार्मिक महत्व की नदी को पुनर्जीवित करने के कार्यों का शुभारंभ करेंगे। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में जलाभिषेक अभियान के तहत ऐसी जल संरचनाओं को पुनर्जीवित करने का अभियान चलाया जा रहा है जो कभी अपने-अपने क्षेत्रों के जीवन रेखाएं होती थी।

पन्ना जिले के ग्राम मुटवा में स्थित मिढासन नदी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि उसके महत्व को रेखांकित करती हैं। पुरातनकालीन कथाओं के आधार पर ग्राम मुटवा के निवासी यह बतलाते है कि भगवान श्री राम ने जब चित्रकूट से पंचवटी जाते हुए जिन तीन स्थानों पर विश्राम किया था उसमें मरहा जो अब ग्राम मुटवा हो गया है में विश्राम किया था। भगवान श्री राम सारंग स्थित सुतीक्षण मुनी के आश्रम में रूकने के बाद यहां पहुंचे थे। उपेक्षा और पर्यावरण में आये बदलाव के बाद मुटवा गाँव की यह नदी पानी से धीरे-धीरे वंचित होने लगी। राज्य सरकार ने अपने इस बार के जलाभिषेक अभियान में ऐसी ही समृद्धशाली जल संरचनाओं को संरक्षित और पुनर्जीवित करने का अभियान पूरे प्रदेश में चलाया है।

मिढासन नदी केन नदी की सहायक नदी है। यह पन्ना के मुटवा गांव से निकलती है और 81.5 किलोमीटर का सफर कर जिले के ही प्रसिद्ध स्थान पण्डवन में केन नदी में मिल जाती है। किसी समय मुटवा गांव के आस पास हरियाली का साम्राज्य था। मीठे पानी के झरने बहते थे। नदी ऊर्जावान थी। कालांतर में नदी को जीवन देने वाले नाले सूख गये। राज्य सरकार के जल अभिषेक अभियान के अंतर्गत पन्ना जिले की मिढासन नदी को 24 किलोमीटर लंबाई और इसके अंतर्गत आने वाले 214 वर्ग किमी क्षेत्र के उपचार की कार्ययोजना बनाई गई है।

इसमें वन विभाग के अंतर्गत 77.86 वर्ग किमी और राजस्व के अंतर्गत 136.53 वर्ग किमी. क्षेत्र में उपचार किया जायेगा। इस तीन वर्षीय कार्ययोजना में पहाडी क्षेत्रों में कंटूर ट्रेंच, बोल्डर चेक, मेढ़ बंधान और चेक डेम के कार्यों को किया जायेगा। मैदानी क्षेत्र में नये तालबों का निर्माण, पुराने तालाबों का पुनरूद्धार, चारागाह विकास, मेढ बंधान और पौधों के रोपण जैसे जीवनदायिनी कार्य किये जायेंगे।

मिढासन नदी के पुनः जीवित होने से जिले की 23 ग्राम पंचायतों की जनसंख्या को सीधा लाभ मिलेगा। इससे 14750 हेक्टेयर खेती की जमीन अच्छी फसल के लिये तैयार हो जायेगी। मिढासन नदी के उपचार क्षेत्र में 7611 हेक्टेयर खेती का क्षेत्र सिंचित नहीं है इसके कारण किसानों को अपेक्षित उत्पादन नहीं मिल पा रहा है। नदी के जीवित होने से किसानों को इसका सीधा लाभ मिलेगा।

23 ग्राम पंचायतों को होगा लाभ

मिढासन नदी के पुर्नजीवन से पन्ना की 23 ग्राम पंचायतों के रहवासियों को सीधे लाभ मिलेगा। ये ग्राम पंचायतें हैं मुटवा, बडागांव, सकरिया, रानीपुरा, रंजोरपुरा, रानीगंज पुरवा, डडवरिया, खपटहा, सिमरी मडैयन, बिरवाही, भटहरमेघा, देवरीगढी, समाना, जनवार, गढीपडरिया, ककरहटा, सरहंजा, विल्हा सुरदहा, पडेरी, श्यामरडाडा, लुहरगांव, तिघराबुजुर्ग और तिंदुनहाई।

केन्द्रीय मंत्री के आरोपों के तरीकों पर कड़ा ऐतराज

पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा सामाजिक न्याय मंत्री श्री गोपाल भार्गव ने केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री प्रदीप जैन द्वारा मध्यप्रदेश सरकार एवं उनके अधिकारियों पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम के तहत लगाये गये आरोपों के तरीकों पर कड़ा ऐतराज जताया है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार इस मामले में बेहद गैर जिम्मेदार रवैया अपना रही है।

पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री गोपाल भार्गव ने कहा कि उन्हें समाचार पत्रों से समय-समय पर केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम के तहत अनियमितता होने और राशि व्यय न होने संबंधी समाचार पढ़ने को मिलते हैं। श्री भार्गव ने कहा कि राज्य सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को प्रदेश में पूरी पारदर्शिता के साथ क्रियान्वित कर रही है। जब भी योजना में कहीं अनियमितता या भ्रष्टाचार की शिकायत प्राप्त हुई है। राज्य सरकार ने अपने स्तर पर इस दिशा में कड़े कदम उठाते हुये बड़े से बड़े अधिकारी को बक्शा नहीं है। पूरे देश में मध्यप्रदेश एक मात्र ऐसा राज्य जिसने न केवल योजना को प्रभावी ढ़ंग से जमीनी स्तर पर लागू किया है जरूरतमंदों को रोजगार उपलब्ध कराया इसके साथ ही योजना का स्थाई लाभ हितग्राहियों को मिले इस तरह के नवाचार भी योजनान्तर्गत मध्यप्रदेश में किये गये हैं। विभिन्न बिन्दुओं पर उत्कृष्टता के लिये भारत सरकार ने स्वयं मध्यप्रदेश को सराहा भी है। श्री भार्गव ने कहा कि केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रियों विशेषकर हाल ही में केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री द्वारा अपने मध्यप्रदेश प्रवास के दौरान मनरेगा को लेकर जो आरोप मध्यप्रदेश सरकार पर लगाये हैं उस पर उन्हें कड़ा ऐतराज है। उन्होंने कहा कि मनरेगा में किसी भी भ्रष्टाचार को दबाने और संबंधितों को बचाने की कतई मंशा राज्य सरकार की नहीं है ऐसा अगर होता तो हम कलेक्टर से लेकर मैदानी अफसरों, सरपंचों और सचिवों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाते। उन्होंने कहा कि अगर केन्द्र सरकार के पास ऐसे कोई तथ्य है कि मध्यप्रदेश में मनरेगा में कहीं कोई अधिकारी गड़बड़ी कर रहा है तो उसे तत्काल यह बात राज्य सरकार के ध्यान में लाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि उन्हें समाचार पत्रों के माध्यम से ही यह ज्ञात हो रहा है कि किस अधिकारी ने क्या अनियमितता की है जबकि आज तक केन्द्र ने इस संबंध में न कोई लिखित प्रतिवेदन भेजा है और न ही कोई तथ्य उपलब्ध कराये हैं। श्री भार्गव ने कहा कि केन्द्रीय मंत्री यह कह गये कि मध्यप्रदेश सरकार ने मनरेगा का 1500 करोड़ रूपये का उपयोग नहीं किया। उन्होंने कहा कि यह इस बात का द्योतक है कि केन्द्रीय राज्यमंत्री श्री जैन को इस पूरी योजना की जानकारी ही नहीं है। अगर उन्हें यह जानकारी होती तो वे ऐसा बयान न देते।

श्री भार्गव ने कहा कि फिर भी राज्य सरकार प्रत्येक जानकारी को गंभीरता से लेती है। केन्द्रीय राज्य मंत्री ने कथित तौर पर बालाघाट जिले के कलेक्टर पर जो आर्थिक अनियमितता संबंधी आरोप लगाये हैं राज्य सरकार उसकी उच्च स्तरीय जाँच करायेगी। इस संबंध में उप सचिव ग्रामीण विकास की अध्यक्षता में एक दल गठित किया है जिसमें लेखा अधिकारी भी शामिल रहेंगे जो मौके पर जाकर वस्तु स्थिति की जाँच कर राज्य शासन को अपना प्रतिवेदन देंगे। उन्होंने कहा कि अगर कोई भी अनियमितता पाई जाती है तो राज्य सरकार किसी भी अधिकारी को नहीं बक्शेगी जैसे कि उसने अभी तक किया है।

Tuesday, April 13, 2010

चिड़िया-कौवे , चील गिद्ध और पेड न्यूज़

चिड़िया-कौवे , चील गिद्ध और पेड न्यूज़
अनुराग उपाध्याय
कुछ चिड़िया, कौवों ने सभा कर के चील और गिद्धों की आलोचना की | आलोचना भी इस बात की कि चील और गिद्ध कुछ ज्यादा ही मांसाहारी हो गए हैं | अब वे पेड न्यूज़ पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं | यह कथा समझ से परे हैं, क्योंकि इन चिड़ियों और कौवों में सिर्फ तीन चिड़िया ऐसी थी जो मासाहारी नहीं (इमानदार हैं)हो पाई हैं , बाकी के काले चिठ्ठे तो ऐसे हैं कि उन्हें लिखने के लिए भोपाल के तालाब के पानी को स्याही बना लें तो वो भी कम पड़ जायेगा |
भोपाल की इस कथा में चिड़िया,कौवे,चील और गिद्ध सब प्रतीकात्मक हैं | जिन चिड़िया-कौवों के पास इस वक्त कुछ काम नहीं बचा था वे सब जमा हो गए, मौसम गर्मी का था सो लगे अपनी गर्मी उतारने | इनके निशाने पर थे चील और गिद्ध| यहाँ बता देना जरुरी हैं कि देश भर के मीडिया मालिकों को इस नजर से भोपाल में देखने की कोशिश की गई | उन्हें मांसाहारी यानी रुपयाखोर बताया और कहा गया की यह लोग पेड़ न्यूज़ को बढ़ावा दे रहे हैं | सारे चिड़िया कौवे जैसे लोग खुद को पाक साफ़ जताने की कोशिश करते रहे | वे यह भूल गए की इनमे से कोई किसी मुख्यमंत्री से खबर के बदले स्कोर्पियो लेता है, तो कोई इंपेक्ट फीचर के नाम पर मालिक की तिजोरी भरके खुद कमीशन खाता हैं | कोई भावी बुंदेलखंड राज्य में अभी से दलाली की दुकान खोलना चाहता हैं |
पिछले चुनाव में तो मध्यप्रदेश का एक रीजनल चैनल सिर्फ इसलिए डूब गया कि वहाँ बैठे कौवे नुमा पत्रकार बाकायदा रसीद काटकर पेड़ न्यूज़ दिखाते रहे और मालिक का करोड़ों रुपया भी डकार गए | सो चैनल में तालाबंदी होना ही थी | चैनल एक बंद हुआ तो दूसरा जिंदाबाद वो भी तब तक, जब तक वहां भट्टा नहीं बैठ जाता , या मालिक लात मरकर नहीं भगा देता | इन लोगो का नारा हैं खबरे बनाना हमारा मकसद नहीं ख़बरों से रुपया बनाना हमारा धंधा हैं |
इसी किस्म के धंधेबाज चिड़िया और कौवे अब पेड़ न्यूज़ पर स्यापा कर रहे हैं जबकि इनकी पूरी जिंदगी इसी तरह के काम करते गुजर गई | नए पत्रकार बनाने की फैक्ट्री माखनलाल के स्टुडेंट भी चिड़िया कौवों की इस सभा में गए तो वे इनके दोहरे चेहरे देखकर चौंक गए |,उनके पैरों से जमीन खिसक गई क्यूंकि भोपाल के कुछ बड़े अय्याश पत्रकार अपने मिशन को पूरा करने के लिए माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविध्यालय के परिसर को भी अपने नापाक इरादों से लगातार गन्दा कर रहे हैं | खैर साहब मसला "पेड़ न्यूज़" का हैं तो इस पर वेवजह की बहस करवाने वाले अपने जन्मदाताओं की कसम खाएं कि वे ऐसे मालिकों के साथ काम नहीं करेंगे जो उन पर पेड़ पेड़ न्यूज़ के लिए दबाव बनाते हैं | इन लोगो में इतना नैतिक सहस भी नहीं हैं क्योंकि यह जिन मालिकों के बैनर से जुड़े हैं उसी की वजह से किसी को स्कोर्पियो,किसी को ठेके,तो किसी का दलिया बिक रहा हैं |
"पेड़ न्यूज़" पर स्यापा करने वाले इन लोगो की सच्चाई यह हैं कि यह अपना सारा काम एक संगठित गिरोह की तरह कर रहे हैं | ये लोग अपने बीच के भ्रष्ट,बलात्कारियों और रिश्वतखोरों को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगते हैं | मालिकों को चील गिद्ध ठहराकर उन्हें कटघरे में लाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं | मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जब से रुपया लेकर खबर दिखाने और छापने के मसले पर अंगुलियाँ मीडिया पर उठाना शुरू की हैं तब से भोपाल के कुछ कथित बुद्धिजीवी फुर्सत में इस तरह के शगल में लग गए हैं ताकि शिवराज सिंह से इसी बहाने कुछ झटक लिया जाये |
पेड़ न्यूज़ का रोना रोने वाले यह लोग अंडरवियर-बनियान और बंडी पसंद का पहनने का दंभ भरते हैं लेकिन इनका मालिक कैसा होगा यह तय नहीं कर पाते | भोपाल के धंधेबाज पत्रकार इन दिनों पेड न्यूज़-पेड न्यूज़ की जुगाली कर रहे हैं ताकि खुद को दूध का धुला और मीडिया मालिकों को भ्रष्ट साबित किया जा सके |(www.anuragupadhyay. com से साभार ,अनुराग चर्चित टीवी पत्रकार हैं )
Reply Forwardprativad@gmail.com is not available to chat

करोड़पति बनना है तो पत्रकारिता छोड़ो फिल्में बनाओ

करोड़पति बनना है तो पत्रकारिता छोड़ो फिल्में बनाओ
भोपााल(पीआईसीएमपीडॉटकॉम). लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली ने भले ही शासकों की जिन्दगी थोड़ी आसान बना दी हो पर इसकी कितनी मंहगी कीमत आम जनता को चुकाना होती है इसका खुलासा विधानसभा में उजागर होने वाली जानकारियों से हो रहा है.करोड़ों रुपए खर्च करके चलाई जाने वाली विकास योजनाएं महज बजट को ठिकाने लगाने का माध्यम बन गईं हैं.जनसंपर्क महकमे ने विकास योजनाओं पर फिल्में बनाने में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए हैं लेकिन एक भी फिल्म ऐसी नहीं है जो जनता से सीधा संवाद स्थापित करती हो.
इस मामले की स\"ााई विधानसभा में पूछे गए विधायक देवेन्द्र पटेल के प्रश्न के जवाब में सामने आई है.तकनीकी शिक्षा और जनसंपर्क मन्त्री लक्ष्मीकान्त शर्मा ने माननीय विधायक महोदय के सवाल के जवाब में जो जानकारी दी है उससे तकनीकी क्रान्ति की मंहगी कीमत का अन्दाजा सहज ही लगाया जा सकता है. अतारांकित प्रश्न क्रमांक 3990 के परिशिष्ट दो में दी गई जानकारी के अनुसार श्री लक्ष्मीकान्त शर्मा ने बताया कि जनसंपर्क विभाग ने पिछले दो सालों में लगभग साढ़े चार करोड़ रुपयों की फिल्में बनवा डाली हैं.इन्हें प्रदेश के समाचार चैनलों पर दिखाया जा रहा है. फिल्म निर्माण की इस राशि में वह मूल्य शामिल नहीं है जो चैनलों पर प्रसारण के लिए चुकाया गया है. यह राशि इस आंकड़े से कई गुना ज्यादा है.
फिल्में बनवाने वाले अपर संचालक सुरेश तिवारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2008-09 में 1भ् संस्थाओं या व्यçक्तयों को कुल दो करोड़ सैन्तालीस लाख, इकहत्तर हजार,तीन सौ चौदह रुपयों का भुगतान फिल्में बनाने के एवज में किया गया है. जबकि वित्तीय वर्ष 2009-10 में मात्र 28 फरवरी तक 12 व्यçक्तयों या संस्थाओं को कुल एक करोड़, पंचानवे लाख, तेईस हजार, आठ सौ सोलह रुपयों का भुगतान किया जा चुका है.
जानकारी में बताया गया है कि वर्ष 2008-09 में मे.खोजी पिक्चर्स प्रा.लि.दिल्ली डेढ़ करोड़ रुपयों से ज्यादा का भुगतान महज बीटा फामेüट की टेप से डी.वी.सी. फामेüट की टेप में बदलने के लिए ही कर दिया गया. यह परिवर्तन दूरदर्शन केन्द्र भोपाल के लिए किया जाता है. कहा गया है कि इस राशि में दूरदर्शन का प्रसारण शुल्क भी शामिल है जबकि समाचारों में दूरदर्शन केन्द्र की ओर से मध्यप्रदेश के समाचारों के लिए निज्शुल्क स्थान दिया जाता है.इनसाईट टीवी न्यूज नेटवर्क को चौबीस लाख साठ हजार छह सौ चौरासी रुपयों का भुगतान किया गया है. उसकी बनाई गई फिल्में सहारा समय पर दिखाईं गईं बताई जा रही हैं. इसी प्रकार निकिता फिल्मस को पांच लाख,नवासी हजार, आठ सौ नव्वे रुपयों का भुगतान किया गया है. मध्यप्रदेश की विकास यात्रा के गीतों के लिए पचपन हजार रुपयों का भुगतान किया गया है. प्रचार एडव्हरटाईजिंग के लिए एक लाख उनतीस हजार आठ सौ रुपयों का भुगतान किया गया है.

फर्जी पत्रकार यानि भ्रष्ट तन्त्र की नाजायज औलाद

फर्जी पत्रकार यानि भ्रष्ट तन्त्र की नाजायज औलाद
राजधानी के कुछ पत्रकारों को शिखर स मान से नवाजे जाने वाली घटना की जो परतें खोलीं गई हैं उससे कई पत्रकार साथियों को अचंभा हो रहा है. यह कोई पहला आयोजन तो नहीं था जिसकी आलोचना लगभग गरियाने के अन्दाज में की जाए. अपने आयोजन की निन्दा से बैचेन कुछ लोगों ने कहना शुरु कर दिया है कि (नौकरशाही की नाकामियां छुपाने से गौरव गंध कैसे पा सकेंगे पत्रकार) शीर्षक से प्रकाशित लेख में पुरस्कार पाने वाले पत्रकारों को फर्जी कहा गया है. यह आरोप किसी गैर पत्रकार व्यçक्त की गढ़ी हुई कपोल कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं है.क्योंकि जब फर्जी पत्रकार कहा जाता है तो इस शब्द में ही पत्रकार शब्द छिपा हुआ है. उल्लेखित पूरे लेख में कहीं भी फर्जी पत्रकार शब्द ही नहीं लिखा गया है यह आसानी से देखा और पढ़ा जा सकता है. पुरस्कार पाने वाले साथियों को इस लेख में सलाह दी गई है कि ऐसे सतही आयोजनों में पुरस्कृत होने के बजाए वे यदि वास्तव में आम आदमी का दिल जीतेंगे और उसकी शुभकामनाएं पाएंगे तो वे स\"ो अथोZ में यशस्वी पत्रकार होंगे. सबसे बड़ी बात तो यह है कि पत्रकार क्या करना चाहते हैं और क्या कर रहे हैं यह उनका विशेषाधिकार है. उनके इस विशेषाधिकार को चुनौती देने का न तो हमारा साहस है और न ही उद्देश्य. इस लेख में जनता के संवेदनशील मुखयमन्त्री शिवराजसिंह चौहान को çझंझोड़ने की कोशिश की गई है ताकि वे अपने कार्यकाल में ऐसे कदम उठाएं जो उन्हें यशस्वी राजा के रूप में इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने का काम करें. इसके लिए सरकार के जनसंपर्क महकमे की कुछ बुराईयों का उल्लेख भी किया गया. ये बुराईयां पिछली सरकारों के कार्यकाल में पनपीं थीं और उनके ही कारण वे सरकारें अधोगति को प्राप्त भी हुईं.इसके बावजूद भाजपा की सरकार ने उन्हीं परिपाटियों को जारी रखा है. पत्रकार साथियों की वेदना को समझने की ईमानदार कोशिशें अपदस्थ कर दीं गईं उमा भारती के शासनकाल में की गई थी. लेकिन आधे भाजपाई ही बन पाए बाबू भाई के मुखयमन्त्री बनने के बाद वे तमाम प्रयास ढप हो गए. इसके बाद मुखयमन्त्री शिवराजसिंह चौहान ने किसानों और आम आदमी को अपने विकास तन्त्र का आधार बनाया इसलिए आम पत्रकारों की ओर उनकी निगाहें अब तक नहीं पहुंच पाई हैं. जिस तरह से अपने निजी सूचना तन्त्र का उल्लेख उन्होंने उस दिन पत्रकारों के आयोजन में किया उससे साफ नज़र आता है कि वे समाज के हित वाली सूचनाएं पाने के लिए कितने बेचैन रहते हैं. उनकी इस बैचेनी की आग में से ही पत्रकारों की दुदüशा की तस्वीर भी उजागर हुई है. इसे देखकर वे पत्रकारों के हित में कुछ ठोस कदम अवश्य उठा सकेंगे. उस लेख में जनता के खजाने से पत्रकारों को दिए जाने वाले विज्ञापनों का उल्लेख किया गया है. इस आर्थिक सहयोग से पत्रकार साथी चप्पे चप्पे की सूचनाएं शासन तक पहुंचा सकते हैं. लेकिन उस धन का दुरुपयोग कुछ बौड़म किस्म की नीतियों के चलते धड़ल्ले से चल रहा है. भाजपा सरकार को खुश करने के लिए पत्रकारों के कोटे का धन कई सामाजिक संस्थाओं को विज्ञापन देने में किया जा रहा है. इन संस्थाओं में से अधिकतर फर्जी हैं. एक ऐसी ही संस्था का उदाहरण विवाद का कारण बन गया है यदि विज्ञापन और आर्थिक सहयोग पाने वाली सभी संस्थाओं की सूची खंगाली जाए तो ढेरों उदाहरण मिल जाएंगे. इनमें से कई तो सिर्फ दिखावे के लिए अखबार या पत्रिका छपवाते हैं उनका मकसद सिर्फ जनता के खजाने की लूट करना होता है.ऐसे कथित पत्रकार बिचौलियों को कमीशन देने से भी कोई गुरेज नहीं करते हैं. इन पत्रकारों को बोलचाल की भाषा में फर्जी पत्रकार कह दिया जाता है. जबकि वे वास्तव में भ्रष्ट तन्त्र की अवैध सन्तानें हैं.ये लोग कलमजीवी पत्रकारों का हक मार रहे हैं.पिछली सरकार के कार्यकाल में भी इनका इकबाल बुलन्द था और आज भी वे भरपूर अवसर पा रहे हैं. दरअसल नकली और असली का खेल बड़ा निराला है. जो नागरिक अपने अखबार,चैनल या वेवसाईट से जनता और सरकार के बीच या जनता और दुनिया के बीच संवाद स्थापित करने का काम करते हैं. उन्हें सूचना प्रदाताओं की ओर से विज्ञापन पाने का पूरा हक है. ऐसे जो कलम शिल्पी सरकार और जनता के बीच संवाद स्थापित करते हैं वे सरकार से विज्ञापन पाने के हकदार हैं. लेकिन जो लोग कापोरेट जगत या बाजार और जनता के बीच संवाद स्थापित करते हैं वे भी जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा उड़ा रहे हैं. आम पत्रकार उनके सामने मुंह ताकता बैठा है. सरकार इन होडिZग किस्म के अखबारों पर अपने विज्ञापन देकर जनता से संवाद करती है तब उसका मकसद अखबार को आर्थिक मदद देना नहीं होता है.यह होना भी नहीं चाहिए. लेकिन जब वह छोटे पत्रकार को अखबार के प्रकाशन, वेवसाईट के प्रसारण या बीमारी में आर्थिक सहायता जैसे प्रकरणों से मदद की जाती है तब मकसद सूचना तन्त्र को मजबूत करना होता है. तब वास्तव में जनता के हित में अपना खून जलाकर सुधार के उपाय सुझाने वाले पत्रकारों को मदद पहुंचाना शासन का उद्देश्य होता है. यही पत्रकार का फर्ज है और यही उसकी पहचान है. जो लोग यह पहचान नहीं रखते वे पत्रकार कहलाने योग्य नहीं हैं. उन्हें फर्जी पत्रकार कहा जाए ,विज्ञापन कर्ता या शेर की खाल में भेçड़ए सभी जायज है. उन्हें पत्रकारों का हक मारकर मदद पहुंचाने वाले सरकारी अधिकारी हों या राजनेता वे वास्तव में पत्रकारों के दुश्मन हैं और उनका जनाजा पूरी जवाबदारी के साथ निकाला जाना चाहिए. (पीआईसीएमपीडॉटकॉम)

छतरपुर का भ्रष्ट पटवारी निलंबित

चार सहकारी समिति प्रबंधक भी हटाये, राज्यमंत्री श्री खटीक की कार्रवाई, लोगों ने की थी शिकायत
Bhopal:Tuesday, April 13, 2010: छतरपुर जिले के एक पटवारी की रिश्वत मांगने की प्रवृत्ति उसे महंगी पड़ गई है। जिले के प्रभारी और आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण राज्यमंत्री श्री हरिशंकर खटीक के निर्देश पर इस पटवारी को निलंबित कर दिया गया है। उनके ही निर्देश पर जिले की चार सेवा सहकारी समितियों के प्रबंधकों को भी उनके भ्रष्ट आचरण के चलते हटा दिया गया है। हाल ही में क्षेत्र के सघन दौरे पर ग्रामीणों ने राज्यमंत्री से इन लोगों के बारे में शिकायत कर तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा की थी।
राज्यमंत्री श्री खटीक को चंदला के पटवारी अशोक तिवारी की एकाधिक ग्रामीणों ने यह शिकायत की थी कि वह राहत राशि वितरण के लिये किये जा रहे सर्वेक्षण कार्य और राजस्व प्रकरणों के निराकरण के लिये पैसों की मांग करने का आदी है। श्री खटीक के निर्देश पर उसे निलंबित कर दिया गया। उनके निर्देश पर ही छतरपुर जिले की चार सेवा सहकारी समितियों बारीगढ़, महाराजपुर, अलीपुरा और टटम के प्रबंधकों को भी तत्काल प्रभाव से अपने मौजूदा कर्तव्य स्थल से हटा दिया गया है। ये प्रबंधक किसानों से समर्थन मूल्य पर खरीदे गये गेहूँ की कीमत का कम भुगतान कर रहे थे। ग्रामीणों ने ही श्री खटीक से इस बारे में शिकायत कर संतोषप्रद कार्रवाई की अपेक्षा की थी।
दो उपयंत्रियों पर भी कार्रवाई के निर्देश
राज्यमंत्री श्री खटीक ने छतरपुर जिले में पन्ना रोड पर सतई से देवरा, अमानगंज मार्ग के बीच एक नदी पर नव-निर्मित पुल के ढह जाने की घटना को गंभीरता से लिया और जिला कलेक्टर को लोक निर्माण विभाग के उपयंत्री विजय शुक्ला के निलंबन और मामले की आगे जांच के निर्देश दिये हैं। इसी तरह कदाचरण के एक अन्य मामले में उन्होंने महाराजपुर नगर पंचायत के उपयंत्री बाबूलाल चौरसिया के खिलाफ भी अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश दिये हैं।