Friday, April 29, 2011

बांधों का मालिकाना हक हमारा है: मध्य प्रदेश


1- बांधों के बकाये राजस्व की राशि 2007 तक 71 करोड़ 82 लाख 32 हजार पांच सौ सतहत्तर रूपये हैं बाकी।
2- उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक नहीं किया राजस्व का भुगतान।
3- हर साल लाखों घर होते हैं बेघर बाढ़ की तपिश मे।

मध्य प्रदेश की जमीन पर बने उत्तर प्रदेश के आधा दर्जन बांधों के कारण पिछले कई दशक से मध्य प्रदेश हर साल बाढ़ से तबाही झेल रहा है। इन बांधों से मध्य प्रदेश को दोहरी मार पड़ रही है। एक तो यहां जमीनें खराब हो रही हैं और साथ ही बांधों के बकाये राजस्व की राशि 2007 तक 71 करोड़ 82 लाख 32 हजार पांच सौ सतहत्तर रूपये पहुंच चुकी है।

मध्य प्रदेश सरकार को होने वाली इस राजस्व की क्षति की वसूली के लिये प्रदेश की सरकारों ने कभी पहल नहीं की जबकि दूसरी ओर एक बड़े रकबे में भूमि सिंचित करने और बकाया भू-भाटक कोई जमा न करने से उत्तर प्रदेश सरकार के दोनों हाथों में लड्डू हैं। ऐसा मानना है मध्य प्रदेश के बिहड़ों में बसने वाले उन हजारों बासिंदों का जो साल दर साल बांधों की पैबन्द में बाढ़ की तपिश के साथ घर से बेघर हो जाते हैं।

इस बीच केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना पर भी सवालिया निशान उठ रहे हैं। इन बांधों के कारण मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा हुआ छतरपुर जिला अरसे से बाढ़ त्रासदी को झेल रहा है। जंगल और जमीन मध्य प्रदेश की है लेकिन उसका दोहन उत्तर प्रदेश कर रहा है। मध्य प्रदेश की आवाम का कहना है कि बांधों का मालिकाना हक हमारा है। गौरतलब है कि आजादी से पहले एकीकृत बुन्देलखण्ड में सिंचाई की व्यवस्था थी। लेकिन प्रदेशों के गठन के बाद मध्य प्रदेश को इन बांधों के कारण दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। बांधों का निर्माण तो मध्य प्रदेश की जमीन पर हुआ है लेकिन व्यवसायिक उपयोग उत्तर प्रदेश कर रहा है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में कुल 6 बांध निर्मित हैं जो उत्तर प्रदेश की सम्पत्ति हैं। लहचुरा पिकअप वियर का निर्माण सन् 1910 में ब्रिटिश सरकार ने कराया था। इसमें मध्य प्रदेश की 607.88 एकड़ भूमि समाहित है। तत्कालीन अलीपुरा नरेश और ब्रिटिश सरकार के बीच अलीपुरा के राजा को लीज के रकम के भुगतान के लिये अनुबन्ध हुआ था। आजादी के बाद नियमों के तहत लीज रेट का भुगतान मध्य प्रदेश सरकार केा मिलना चाहिए था लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई भुगतान नहीं किया। नियम कायदों के हिसाबसे लहचुरा पिकअप वियर ग्राम सरसेड के पास है इसलिये 15.30 रूपया प्रति 10 वर्गफुट के मान से 607.88 एकड़ का 40 लाख 51 हजार 318 रूपया वार्षिक भू-भाटक संगणित होता है। इस लिहाज से सन् 1950 से बीते साल 2007 तक 23 करोड़ 9 लाख 25 हजार 126 रूपये की रकम उत्तर प्रदेश पर बकाया है।

इसी तरह पहाड़ी पिकअप वियर का निर्माण 1912 में ब्रिटिश सरकार ने कराया था। अनुबन्ध की शर्तों के मुताबिक दिनांक 01 अप्रैल 1908 से 806 रूपया और 1 अप्रैल 1920 से 789 रूपया अर्थात 1595 रूपया वार्षिक लीज रेट तय किया गया था। पहाड़ी पिकअप वियर के डूब क्षेत्र 935.21 एकड़ का वार्षिक भू-भाटक 62 लाख 32 हजार 875 रूपया होता है। यह राशि 1950 से आज तक उत्तर प्रदेश सरकार ने जमा नहीं की। इसके बकाये की रकम 35 करोड़ 52 लाख 73 हजार 875 रूपये पहुंच चुकी है। करोड़ों रूपयों के इस बकाया के साथ-साथ बरियारपुर पिकअप वियर का भी सालाना भू-भाटक 8 लाख 36 हजार 352 रूपया होता है। इस वियर को भी 1908 में अंग्रेजी हुकूमत ने तैयार कराया था। इसमें तकरीबन 800 एकड़ भूमि डूब क्षेत्र में आती है। इस तरह अगर 1950 से इस पिकअप वियर के डूब क्षेत्र की गणना की जाये तो यह रकम 4 करोड़ 76 लाख 72 हजार 64 रूपये होती है।

छतरपुर के पश्चिम में पन्ना जिले की सीमा से सटे गंगऊ पिकअप वियर का निर्माण 1915 में अंग्रेजी सरकार ने कराया था। जिसमें 1000 एकड़ डूब क्षेत्र है। 6 लाख 53 हजार 400 रूपया वार्षिक भू-भाटक के हिसाब से यह राशि 3 करोड़ 72 लाख 43 हजार 800 रूपये पहुंच जाती है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने अन्य बांधों की तरह इस भू-भाटक राशि को भी आज तक जमा नहीं किया। छतरपुर एवं पन्ना जिले की सीमा को जोड़ने वाले रनगुंवा बांध का निर्माण 1953 में उत्तर प्रदेश सरकार ने कराया था। इसका डूब क्षेत्र भी तकरीबन 1000 एकड़ है। इस प्रकार से वार्षिक भू-भाटक 6 लाख 53 हजार 400 रूपये के हिसाब से पिछले 54 वर्षों में 3 करोड़ 52 लाख 83 हजार 600 रूपये होता है। इस राशि को भी उत्तर प्रदेश सरकार की रहनुमाई का इन्तजार है। वर्ष 1995 में उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश की सीमा को जोड़ने वाली उर्मिल नदी पर बांध का निर्माण कराया था। इसके निर्माण के बाद मध्य प्रदेश की 1548 हेक्टेयर भूमि डूब क्षेत्र में आ गयी। इसका सालाना अनुमानित भू-भाटक 9 लाख 86 हजार 176 रूपये बनता है। पिछले 12 साल में यह राशि 1 करोड़ 18 लाख 34 हजार 112 रूपये पहुंच चुकी है। छतरपुर में गरीबी और उत्तर प्रदेश की सम्पन्नता का कारण बने इन छः बांधों के कुल वार्षिक भू-भाटक की राशि वर्ष 2007 तक 71 करोड़ 82 लाख 32 हजार 577 रूपये पहुंची है पर उत्तर प्रदेश की सरकार समय के साथ बदलती रही और मध्य प्रदेश बाढ़ त्रासदी की चपेट में जल आपदा का शिकार बनता गया। हर बरसात में मध्य प्रदेश के गांवों को भीषण बाढ़ का सामना करने के साथ-साथ पलायन और रोजगार के लिये उत्तर प्रदेश के उद्यमी शहर गाजियाबाद और नोयडा में निर्भर रहने की जद्दोजहद में संघर्ष करना उनके जीवन यापन के हिस्सों का मुलम्मा है। इससे भी बड़ा खतरा यहां की जमीनों का बताया जाता है जिनमें हजारों एकड़ तक भूमि के ऊपर सिल्ट जमा होने से कृषि भूमि खराब हो रही है। उत्तर प्रदेश के इन अधिकांश बांधों की समय सीमा अब लगभग समाप्त हो चुकी है। इनसे निकलने वाली नहरों के रख-रखाव पर न ही सरकारों ने कोई ध्यान दिया और न ही जल प्रबन्धन के सकारात्मक समाधान तैयार किये हैं। रनगुंवा बांध से मध्य प्रदेश को अब पानी भी नहीं मिल पाता है। जल-जंगल और जमीन इन तीन मुद्दों के बीच पिसती उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की हांसिये पर खड़ी आम जनता की यह पीड़ा कहीं न कहीं उन बांध परियोजनाओं के कारण ही उपजी है। जिसने दो प्रदेशों के बीच वर्तमान में पानी की जंग और भविष्य में बिन पानी बुन्देलखण्ड के अध्याय लिखने की तैयारी कर ली है।
बकौल धीरज चतुर्वेदी वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि मध्य प्रदेश के बांधों का मालिकाना हक उत्तर प्रदेश का है। कहीं न कहीं एक पत्रकार की कलम के शब्द भी गाहे-बगाहे जब दो प्रदेशों के बीच जल-जमीन-जंगल के मालिकाना हक की बात बड़ी बेबाकी से लिखते हैं, तो यह कहना बिकाऊ खबर नहीं बल्कि जमीन की हकीकत है कि दोनों प्रदेशों की शासन सरकारों को ऐसी बांध परियोजनाओं पर पूर्ण विराम लगा देना चाहिए। जो जनता के करोड़ों रूपया विनाश की शर्त पर विकास के नाम में से खर्च होते हैं और उसके बदले मिलती है जल त्रासदी, जल संकट, पलायन और कर्ज डूबे किसान।

आशीष सागर (लेखक सामाजिक कार्यकर्ता है, वन एंव पर्यावरण के संबध में बुन्देलखण्ड अंचल में सक्रिय, प्रवास संस्था के संस्थापक के तौर पर, मानव संसाधनों व महिलाओं की हिमायत, पर्यावरण व जैव-विविधता के संवर्धन व सरंक्षण में सक्रिय, चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय से एम०एस० डब्ल्यु० करने के उपरान्त भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के उपक्रम कपाट में दो वर्षों का कार्यानुभव, उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद में निवास, इनसे ashishdixit01@gmail.com पर संपर्क कर सकते

शानदार तरीके से संपन्न हुई शाही शादी


शुक्रवार, अप्रैल 29, 2011,17:37 [ISTलंदन। ब्रिटिश राजघराने के राजकुमार विलियम और केट मिडिलटन की शादी वेस्टमिंस्टर एब्बी में संपन्न हो गई है। हजार साल पुराने वेस्टमिंस्टर एबी में एंग्लिकन चर्च के आर्चबिशप रोवन विलियम्स ने वर प्रिंस विलियम और वधु केट की शादी की रस्में पूरी कर उन्हें पति पत्नी घोषित किया।
पहना था विलियम और केट ने

29 साल की दुल्हन केट ने सफेद और ऑइवरी रंग की लेस लगा गाउन पहना था जिसे सराह बर्टन ने डिजाइन किया था। जबकि 28 साल के दूल्हे प्रिंस विलियम ने सेना की लाल रंग की आईरिश गार्ड्स कर्नल की पोशाक पहनी थी।

डच और डचेस बने विलियम-केट
विलियम और केट की शादी के मौके पर महारानी एलिजाबेथ ने प्रिंस विलियम को ड्यूक ऑफ कैम्ब्रिज की उपाधि दी, केट डचेस ऑफ कैम्ब्रिज के नाम से जानी जाएंगी। इस शादी के लिए लंदन में जश्न का माहौल है और नवविवाहित जोड़े की एक झलक पाने के लिए कई लोगों ने सड़कों पर तंबू डालकर रात बिताई। इस शादी का सीधा प्रसारण पुरी दुनिया में दो अरब लोगों ने देखा।कौन-कौन था मेहमान

इस पूरे आयोजन के दौरान लंदन का मौसम खुशनुमा बना रहा। गौरतलब है कि इस शाही शादी के दिन लंदन में बारिश की आशंका जताई जा रही थी। इस शादी में 19000 मेहमान मौजूद थे। मेहमानों में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन, मशहूर गायक एल्टन जॉन और फुटबॉल डेविड बेखम मौजूद थे। एल्टन जॉन को स्वर्गीय प्रिंसेस डायना का करीबी माना जाता है। ब्रिटिश राजघराने की पारंपरिक रीति-रिवाज से शादी संपन्न होने के बाद ये नव विवाहित जोड़ा बंकिघम पैलेस रवाना हो गया जहां शाही शादी से जुड़े अन्य आयोजन किए गए हैं।

संसदीय पत्रकारिता में उत्कृष्ट योगदान के लिये पुरस्कार योजना

संसदीय पत्रकारिता में उत्कृष्ट योगदान के लिये पुरस्कार योजना
प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया के अनुभवी पत्रकार पुरस्कृत होंगे
भोपाल 29 अप्रैल 2011 । मध्यप्रदेश विधानसभा की कार्यवाही की रिपोर्टिंग का कार्य कर रहे पत्रकारों के लिये पंडित कुंजीलाल दुबे राष्ट्रीय संसदीय विद्यापीठ द्वारा संसदीय पत्रकारिता रिपोर्टिंग पुरस्कार योजना शुरू की गई है। इस पुरस्कार योजना में विधानसभा के आगामी वर्षाकालीन, शीतकालीन और बजट सत्र में की गई रिपोर्टिंग के आधार पर पत्रकारों को पुरस्कार दिये जायेंगे।
पंडित कुंजीलाल दुबे राष्ट्रीय संसदीय विद्यापीठ द्वारा संसदीय पत्रकारिता रिपोर्टिंग पुरस्कार नियमावली बनाई गई है। यह नियम गत एक अप्रैल 2011 से प्रभावशील माने जायेंगे। पुरस्कार योजना के तहत प्रिंट मीडिया में कार्यरत पत्रकारों को संसदीय पत्रकारिता रिपोर्टिंग के संबंध में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिये 20 हजार Rs. का प्रथम पुरस्कार, 15 हजार Rs. का द्वितीय पुरस्कार और 10 हजार Rs. का तृतीय पुरस्कार दिया जायेगा। इसी प्रकार इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधियों को संसदीय पत्रकारिता रिपोर्टिंग के संबंध में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिये 20 हजार Rs. का प्रथम पुरस्कार, 15 हजार Rs. का द्वितीय पुरस्कार और 10 हजार Rs. का तृतीय पुरस्कार दिया जायेगा। चयनित पत्रकारों को शाल, श्रीफल और प्रशस्ति-पत्र प्रदान कर पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जायेगा। इस पुरस्कार के लिये आवेदक पत्रकार कम से कम स्नातक शिक्षा प्राप्त हो और 35 वर्ष आयु होना चाहिये। पत्रकारिता में 5 वर्ष का अनुभव तथा विधानसभा रिपोर्टिंग के क्षेत्र में 5 वर्ष से कार्यरत होना चाहिये। चयन के समय पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय होना आवश्यक होगा।
पुरस्कार योजना के संबंध में पंडित कुंजीलाल दुबे राष्ट्रीय संसदीय विद्यापीठ द्वारा प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के संपादक और ब्यूरो प्रमुख को पुरस्कार नियामवली की जानकारी भेजते हुए उनके संस्थान के पत्रकारों के नामांकन चाहे गये हैं। चयनित पत्रकारों को संसदीय विद्यापीठ के वार्षिक पुरस्कार समारोह अथवा अन्य महत्वपूर्ण समारोह में पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जायेगा।

कीटनाशक पर पाबंदी के मामले में अच्युतानंद के साथ है मप्र

कीटनाशक पर पाबंदी के मामले में अच्युतानंद के साथ है मप्र
भोपाल, 29 अप्रैल। कीटनाशक दवा एंडोसल्फान के खिलाफ केरल के मुख्यमंत्री अच्युतानंद द्वारा शुरु की गई मुहिम में मध्य प्रदेश भी उनके साथ है। प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया ने अच्युतानंद को पत्र लिखकर अभियान को देश व मानवीय हित में बताते हुए अपना समर्थन जताया है।
कुसमरिया ने अच्युतानंद को लिखे पत्र में कहा कि कृषि क्षेत्र में अत्याधिक जहरीले रसायनों के इस्तेमाल के खिलाफ संघर्ष में वे पूरी तरह से उनके साथ हैं और भारत सरकार से मांग करते हैं कि इस तरह के रसायनों के इस्तेमाल पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए, जिसका मानव जाति और आसपास के परिवेश पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने कहा कि भोपाल ने वर्ष 1984 में दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी झेली, जिसमें हजारों लोग काल के गाल में समा गए थे और लाखों लोग जीवनभर के लिये बीमार हो गए। इसीलिए मध्यप्रदेश इस मानव निर्मित त्रासदी के दुष्प्रभाव को खूब अच्छी तरह समझता है।
कुसमरिया ने पत्र में कहा कि एंडोसल्फान दवा के इस्तेमाल पर दुनिया के अनेक देशों में प्रतिबंध है। यहां तक कि बांग्लादेश, इंडोनेशिया, कोलम्बिया, श्रीलंका सहित अन्य देशों ने भी इसे सर्वाधिक प्रतिबंधित दवाओं की सूची में शामिल किया है। इसके बावजूद एंडोसल्फान भारत के अधिकतर राज्यों में धड़ल्ले से बिक रही है। इसके बेजा उपयोग से इंसानों और पर्यावरण पर बहुत बुरा असर हो रहा है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने अच्युतानंद को पत्र लिखकर उनके द्वारा केरल में एंडोसल्फान के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिये किए गए उपवास को एक ठोस कदम बताया और कहा है कि इससे उनकी विचारधारा से सहमत सभी लोगों को प्रोत्साहन मिला है जो मानव जाति के अस्तित्व को लेकर चंतित है।
कुसमरिया ने केन्द्रीय कृषि एवं सहकारिता मंत्री शरद पवार को अलग से पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है, "कृषि को अर्थव्यवस्था के विकास के प्रमुख आधार के रूप में विकसित करने के हमारे सभी प्रयासों के बावजूद मुझे इस बात की तकलीफ है कि एंडोसल्फान हमारे देश में बिक रही है।" उन्होंने इस दवा पर पाबंदी लगाये जाने के मुद्दे पर पवार से कारगर पहल की उम्मीद जताई है।
Date: 29-04-2011

सांसद ने वापस मांगी एंबुलेंस

सांसद ने वापस मांगी एंबुलेंस
- निगम पर लगाया अमानत में खयानत का आरोप
उज्जैन, 29 अप्रैल 2011 (डॉ. अरुण जैन)। सांसद प्रेमचंद गुड्डू ने नगर निगम पर अमानत में खयानत का आरोप लगाते हुए पुलिस अधीक्षक को शिकायत कर प्रकरण दर्ज करने की मांग की है। सांसद ने बताया स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के तहत निगम को 4 एंबुलेंस दी गई थी, लेकिन हाल ही में हुई घटनाओं में जब ये एंबुलेंस उपयोग में नहीं आई तो निगम से जानकारी मांगी गई लेकिन निगम से एंबुलेंस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। इसकी शिकायत कलेक्टर को भी की गई है। सांसद ने एसपी से आग्रह किया है कि अमानत में खयानत का प्रकरण दर्ज कर मामले की जांच की जाए तथा गायब एंबुलेंस जब्त करें। एसपी सतीश सक्सेना के अनुसार सांसद के शिकायती आवेदन पर जांच कर कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि निगम ने एंबुलेंस मरीजों के हित में उपयोग करने के लिए जिला अस्पताल प्रशासन को सौंपी है, जहां उनका उपयोग किया जा रहा है। सांसद गुड्डू ने नगर निगम को सौंपे गए पानी टैंकर भी वापस मांगे हैं। निगमायुक्त मुकेश शुक्ल ने पीएचई अधिकारियों को सांसद से प्राप्त टैंकर लौटाने के निर्देश दिए हैं।
Date: 29-04-2011

कम वेतन वाले परिवारों के बच्चे कुपोषित : क्राई

कम वेतन वाले परिवारों के बच्चे कुपोषित : क्राई
नई दिल्ली, 29 अप्रैल 2011)। गैर सरकारी संस्था 'चाइल्ड राइट्स एंड यू' (क्राई) के मुताबिक कुपोषण और गरीबी दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और देश की प्रगति में बाधक हैं। जिन परिवारों में कुपोषित बच्चे हैं, उनमें से ज्यादा संख्या ऐसे परिवारों की है जिनके सदस्य बुनियादी न्यूनतम मजदूरी भी अर्जित नहीं करते हैं।
क्राई की निदेशक योगिता वर्मा ने गुरुवार को यहां कहा, "जिन परिवारों में कुपोषित बच्चे हैं, उनमें से ज्यादा संख्या ऐसे परिवारों की है जिनके सदस्य न्यूनतम मजदूरी भी अर्जित नहीं करते हैं।"
क्राई और इसके दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में स्थित साझेदार संगठनों के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कुपोषण के अधिक मामले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गो में हैं।
उन्होंने कहा, "ऐसे परिवारों के ज्यादातर लोग दैनिक मजदूरी पाते हैं।"
अध्ययन के अनुसार दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाले 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
योगिता ने कहा, "दिल्ली की 20 प्रतिशत आबादी झुग्गियों में रहती है। इन झुग्गियों में रहने वाले 66 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।"
अध्ययन में सामने आया है कि मध्य प्रदेश में 60 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 85 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी पाई गई है, जबकि 41.6 प्रतिशत का वजन जरूरत से कम है। राष्ट्रीय आंकड़े के मुताबिक 40 प्रतिशत बच्चों का वजन जरूरत से कम है और 45 प्रतिशत की वृद्धि रुकी हुई है।
वर्मा ने सुझाव दिया कि जन वितरण प्रणाली, समेकित बाल विकास परियोजना एवं राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसी विभिन्न योजनाओं में सुधार लाने की जरूरत है तथा समस्या से निजात पाने के लिए कड़ी निगरानी की जरूरत है।
Date: 29-04-2011

Wednesday, April 20, 2011

साईबेरिया में मिला एलियन का शव ?

साईबेरिया में मिला एलियन का शव ? एजेंसी, लंदन। साईबेरिया की बर्फ में दो पदयात्रियों ने एक एलियन के शव मिलने का दावा किया है। एलियन का यह शव रूस के इर्कुक इलाके में देखा गया है। बर्फ में धंसे इस एलियन की गर्दन तिरछी तथा मुंह खुला हुआ है। उसका शरीर बुरी तरह क्षतिग्रस्त है। जिस इलाके में यह शव मिला है वह उड़नतश्तरियों के आवागमन का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। बुरी तरह क्षतिग्रस्त इस एलियन की लंबाई दो फीट है। उसका दांया पैर गायब है तथा आंख के स्थान पर दो गहरे सुराख हैं। माना जा रहा है कि इस इलाके में उड़नतश्तरी के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के बाद दूसरे ग्रह के निवासी शव को यहां छोड़कर चले गए हैं। इस इलाके में हर साल उड़नतश्तरी देखे जाने की दर्जन भर से अधिक घटनाएं सामने आती हैं। उल्लेखनीय है कि एक माह पूर्व ही इस इलाके में एक यूएफओ के तेजी से पृथ्वी की ओर गिरने की खबरें सामने आर्ई थीं। इस शव को अपने वीडियो कैमरे में कैद करने वाले इगोर मोलोविक का कहना है कि जब हमने शव को देखा तो हमें विश्वास ही नहीं हुआ। सबसे भयावह बात यह थी कि शव के आसपास किसी अंतरिक्ष यान के अवशेष नहीं थे। हो सकता है कि दुर्घटना के बाद दूसरे ग्रह के निवासी अंतरिक्ष यान को अपने साथ किसी तरह ले गए हों और एलियन के शरीर पर ध्यान न दिया हो। इंटरनेट पर डाले गए इस नजारे की तस्वीर को अब तक सात लाख लोग देख चुके हैं।

साईबेरिया में मिला एलियन का शव ?

Tuesday, April 19, 2011

लव के पीछे है केमिकल लोचा


आखिर 'लव' में ऐसा क्या है जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी मिस्ट्री माना गया है। अपने प्रेमी के लिए ललक ऐसी चीज है, जिसने वैज्ञानिकों को भी लम्बे वक्त तक हैरान किया है। प्यार करने वालों के बीच इस पागलपन का कारण जानने के लिए जाने कितनी खोजें हुई। अगर उन खोजों पर यकीन करें तो दो प्रेमियों की इमोशंस और उनके चेंज होने के पीछे जो असली कारण है, वह है शरीर में होने वाला केमिकल लोचा।
वैज्ञानिकों के अनुसार प्यार की अलग-अलग स्टेजेस जैसे इन्फैचुएशन, कडलिंग, अट्रैक्शन यहां तक कि बिट्रेयल के पीछे भी काम करते हैं कुछ खास केमिकल्स।
वैज्ञानिक मानते हैं कि आकर्षण असल में इन न्यूरोकेमिकल्स के वर्चुअल एक्सप्लोजन जैसा है। जिसके बाद आपको फील गुड होने लगता है। पीईए, एक केमिकल है जो नर्व सेल्स के बीच इन्फॉर्मेशन का फ्लो बढ़ा देता है। इस केमिस्ट्री में डोपामाइन और नोरिफिनेराइन नामक दो केमिकल्स भी बड़ा इंट्रेस्टिंग काम करते हैं। डोपामाइन हमें फील गुड का अहसास कराता है और नोरिफिनेराइन एड्रिनैलिन का प्रोडक्शन बढ़ा देता है। किसी को देखकर बढ़ने वाली हार्ट बीट इन कैमिकल्स की ही देन है, जिसे प्रेमी कुछ कुछ होना समझ बैठते हैं। ये तीनों कैमिकल्स कम्बाइन होकर काम करते हैं। इन्फैचुएशन जिसे इन जनरल लोग आपकी 'केमिस्ट्री' कहते हैं। यही कारण है कि नए प्रेमी खुद को हवा में उड़ता हुआ, बेहद ऊर्जावान सा फील करते हैं।
किसी के साथ कडल अप करने का मन बस यूं ही नहीं होता। इसके पीछे भी एक केमिकल है जनाब! ये है ऑक्सिटोसिन, जिसे कडलिंग केमिकल भी कहा गया है। वैसे तो ऑक्सिटोसिन को मदरहुड से भी संबंध किया जाता है लेकिन ये भी माना जाता है कि ये महिला और पुरूष दोनों को ज्यादा कूल और दूसरों की फीलिंग्स के लिए सेंसिटिव बनाता है। सेक्सुअल अराउजल में भी इसका खास रोल है। ऑक्सिटोसिन प्रोडक्शन ट्रिगर करने के पीछे इमोशनल रीजंस भी हो सकते हैं और फिजिकल भी। यानी अपने लवर की फोटो देखने, उसके बारे में सोचने से लेकर उसकी आवाज सुनने, उसके किसी खास अपीयरेंस तक कुछ भी आपकी बॉडी में ऑक्सिटोसिन का प्रोडक्शन बढ़ा सकता है। अगर प्रेमी फिजिकली प्रेजेंट हैं तो यही हार्मोन एक-दूसरे को गले लगाने और कडल करने के लिए उकसाता है।
इन्फैचुएशन कम होते ही केमिकल्स का एक नया ग्रुप टेकओवर कर लेता है। इसे क्रिएट करते हैं एन्डॉर्फिन्स। ये केमिकल्स पीईए जैसे एक्साइटिंग नहीं होते लेकिन ज्यादा एडिक्टिव और कूल करने वाले होते हैं। यही कारण है कि इन्फैचुएशन के बाद प्यार की अगली स्टेज यानी अटैचमेंट में इंटिमेसी के साथ-साथ ट्रस्ट, वॉ‌र्म्थ और साथ वक्त बिताने जैसी इमोशंस फील की जाती हैं। जितना ज्यादा लोग इन केमिकल्स के आदी हो जाएं वो उतना ही इनसे दूर नहीं रह सकते। यही कारण है कि लम्बे चलने वाले लव अफेयर्स या कोई खास रिश्ता टूटना आप बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसके पीछे रीजन है इन केमिकल्स का लत लगना। अपने पार्टनर के दूर जाने पर उसे मिस करने के पीछे भी यही एंडॉर्फिन्स होते हैं।
प्रेमी के दूर जाने पर ये केमिकल्स बॉडी में कम होने लगते हैं और इनके आदी होने की वजह से आप अपने प्रेमी, या विज्ञान की भाषा में कहें तो इन हारमोन्स की कमी महसूस करने लगते हैं।

Tuesday, April 12, 2011

जानकीवल्लभ शास्त्री का निवास होने से तीर्थ बना हुआ था.

भक्त प्रवर रामकृष्ण परमहंस अक्सर कहा करते थे कोई स्थल तीर्थस्थल नहीं होता,तीर्थस्थान तो वहीं बन जाता है जहाँ महान आत्माएं निवास करती हैं.बिहार की सांस्कृतिक राजधानी कहलाने का गौरव धारण करनेवाला मुजफ्फरपुर अब तक आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का निवास होने से तीर्थ बना हुआ था.चाहे साहित्यकार हो या साहित्यिक अभिरुचिवाला नेता-अभिनेता हो,उनकी बिहार यात्रा बिना निराला निकेतन की चौखट लांघे बिना पूरी ही नहीं होती थी.अब छायावाद का अंतिम छायादर वृक्ष हमसे छिन चुका है.मुजफ्फरपुर नगरी निराधार हो चुकी हैं और सरस्वती असहाय.सरस्वती का मानसपुत्र उम्रभर सरस्वती की निस्स्वार्थ सेवा करने के बाद मृत्यु अटल है की उक्ति को कटु सत्य साबित करते हुए मृत्यु की गोद में सो गया,हमेशा-हमेशा के लिए.
आचार्य श्री एक व्यक्ति नहीं थे बल्कि जीवंत इतिहास थे.उन्होंने कई महाकवियों के रचना-कर्म को ही नहीं देखा-परखा था बल्कि उनकी रचना-प्रक्रिया के भी एकमात्र जीवित साक्षी थे.निराला ने अपनी महान छंदोबद्ध कविता राम की शक्ति पूजा आचार्य श्री के साथ वाराणसी में रहते हुए ही लिखी थी और मेहनताने से मिले पैसे से दोनों ने छककर जलेबियाँ उडाई थी.आचार्य श्री को यह महान कविता पूर्णतः कंठस्थ थी और वे इसका कुछ इस अंदाज में पाठ करते थे कि स्वयं निराला ने भी माना था कि वे इस कविता का उतनी अच्छी तरह पाठ नहीं कर सकते जितनी अच्छी तरह से आचार्य श्री करते हैं.निराला के कहने पर ही आचार्य श्री ने संस्कृत छोड़कर हिंदी में कविता लिखनी शुरू की थी और इस प्रकार हिंदी को अपना हिंदी-कोकिल मिला,बिना वसंत के भी निरंतर मीठे गीत गाते रहनेवाला.
आचार्य श्री पर निराला का इतना गहरा प्रभाव था कि उन्होंने जब मुजफ्फरपुर को अपना स्थायी निवास बनाया तो घर का नाम रखा निराला निकेतन.यह निराला निकेतन सिर्फ नाम से ही निराला नहीं था बल्कि काम से भी निराला था.इस घर में रहनेवाले बिल्ली,कुत्ता,गाय,खरगोश सभी आचार्य परिवार के सदस्य थे.इनकी जब मृत्यु हुई तो मानव की ही भांति इनका का भी अंतिम संस्कार किया गया वह भी परिसर के भीतर ही और उनकी समाधि भी बनाई गयी.हिंदी के अन्य कवियों ने तो अपनी रचनाओं में सिर्फ अमानवों का मानवीकरण ही किया था मानवीकरण अलंकार का प्रयोग करके;आचार्यश्री ने इन्हें सचमुच मानवों जैसा आदर और प्यार दिया;मानव बना दिया.आचार्य श्री सच्चे प्रकृति-प्रेमी थे पन्त की तरह और मानवता से ओत-प्रोत थे निराला की तरह.वे एकसाथ इन दोनों महान साहित्यिक व्यक्तित्वों को धारण करते थे.
आचार्य श्री के अहसास की जद में सारा जमाना था.उन्होंने मुजफ्फरपुर के जिस भाग में घर बनाया उसे लोग चतुर्भुज स्थान के नाम से जानते हैं.यूं तो इस मोहल्ले का नाम भगवान विष्णु के ऐतिहासिक मंदिर के नाम पर रखा गया है लेकिन यह जगह ज्यादा प्रसिद्ध है रेड लाईट एरिया यानि देह-व्यापार की मंडी के रूप में.शायद इसलिए भद्र लोग इस इलाके का नाम लेने में भी हिचकते हैं.लेकिन आचार्य श्री तो ठहरे मानवता के अनन्य पुजारी.चन्दन वृक्ष के समान पवित्र और शीतल.उन्हें तो सबसे प्यार था,पूरी दुनिया उनका परिवार थी;कोई उनका शत्रु नहीं था और न ही उनके लिए कोई पराया ही था.हालाँकि हिंदी के ठेकेदार आलोचकों ने उनकी घोर उपेक्षा की लेकिन आचार्य श्री सारी उपेक्षाओं और आलोचनाओं को नजरंदाज करते हुए निर्विकार होकर अपने रचना-कर्म के लगे रहे.
सूरज आज भी पूरे ताव में चमक रहा है;उसे क्या लेना-देना इस बात से कि हिंदी साहित्याकाश का सूरज कल ही अस्त हो चुका है.अब मुजफ्फरपुर और मुजफ्फरपुरवासी कभी इस बात पर गर्व नहीं कर पाएँगे कि उनके शहर को छायावाद का अंतिम छायादार वृक्ष छाया दे रहा है.वर्तमान भूत बन चुका है.अपने पदचिन्हों को पीछे छोड़ते हुए अपनी यात्रा पूरी कर चुका है.एक युग का अंत हो चुका है लेकिन अभी दूसरे युग की शुरुआत नहीं हुई.हिंदी-भाषिक संसार जैसे ठिठक गया है,किंकर्तव्यविमूढ़-सा और विदाई दे रहा है अपने अंतिम महायात्री को उसकी महायात्रा के मौके पर.हे महामना!तुम्हें इस अकिंचन की और से भी शत-शत नमन;अलविदा.
6:02 AM 4/13/2011

Friday, April 8, 2011

जिंदगी की इनिंग्स में बड़ा स्कोर


जिस जिंदगी को लेकर हम और आप हर पल, हर जगह फिक्रमंद रहते हैं, वह एक इनिंग्स की तरह है। यहां आपको किसी क्रिकेट मैच से कहीं ज्यादा संभलकर खेलना है, क्योंकि हार-जीत से कहीं ज्यादा दांव पर लगा है। यहां सवाल जी के ललचाने और मुंह में पानी आने जैसी आदतों को रोकने का है। तो जिंदगी की दौड़ में वही जीतेगा, जिसे खुद पर कंट्रोल रखना आता है और जिसने नियमों को जीने का जरिया बना लिया है। आइये जानते हैं कि इस इनिंग्स में कब क्या खाएं, जिससे कि स्कोर लंबा बना पाएं। पूरी जानकारी दे रहे हैं सत्येंद्र कनौजिया :

जब हों 20 से कम

- किशोरावस्था के दौरान शरीर का विकास सबसे तेजी से होता है। इस स्टेज में मेटाबॉलिक रेट काफी ऊंचा होता है। मेटाबॉलिज्म से मतलब उस क्रिया से है, जिससे भोजन जीवित पदार्थों या जीवाणुओं में बदल जाता है। हम जो भी खाते हैं, वह एनर्जी में तब्दील हो जाता है।

- इस उम्र में रोजाना के खानपान में अगर डेरी प्रॉडक्ट्स और शाकाहारी भोजन को शामिल किया जाए, तो बेहद फायदा होता है। नियमित रूप से प्रोटीन लेते रहने से शरीर का विकास होता है।

- हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्शियम बेहद अहम है। किशोरावस्था की तरफ बढ़ने और इसमें दाखिल होने के वक्त स्केलिटल मास का 45 फीसदी हिस्सा विकसित होता है।

- शाकाहारी लोगों को भरपूर मात्रा में पनीर या सोया खाना चाहिए। इसे किसी भी रूप में डाइट में शामिल किया जा सकता है।

- लाइफ की इस स्टेज में चाय या कॉफी कम-से-कम मात्रा में लेना चाहिए, क्योंकि कैफीन हड्डियों से कैल्शियम लेने लगता है।

- युवावस्था में हड्डियों के विकास के लिए डाइट में विटामिंस की मौजूदगी जरूरी है। वयस्कों को अपनी डाइट में विटामिन ए (नारंगी और पीले रंग वाले सभी फल और सब्जियां), विटामिन सी (सिट्रस की मात्रा वाले फल और लाल मिर्च) और विटामिन ई (बादाम और पिस्ता) जरूर शामिल करने चाहिए। ये कोशिकाओं को मजबूत बनाते हैं। सभी तरह के विटामिन बी की भूमिका भी अहम होती है।

- इस दौरान एक समस्या आमतौर पर सामने आती है। एनीमिया और आयरन की कमी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती है। इससे बचने के लिए आयरन की मात्रा वाली चीजों को खाने में शामिल करें। सूखे अंजीर या मुनक्का/किशमिश और दाल में पालक का साग लिया जा सकता है।

जब हों 20 के पार

- इस उम्र में हम पर काम का दबाव होता है। शिड्यूल अस्त-व्यस्त हो जाता है। 20 से 30 साल के लोगों की डाइट में अक्सर जरूरी विटामिन और मिनरल्स की कमी होती है।

- इस स्टेज में शरीर को प्रोटीन की जरूरत होती है, ताकि टिश्यू का निर्माण हो सके। भोजन में ऐसे पदार्थों को शामिल करना चाहिए जो रेशेदार हों और जिनमें स्टार्च की मात्रा हो। ऐसे पदार्थ ब्रेन और मांसपेशियों के लिए एनर्जी के प्राइमरी सोर्स होते हैं। इनसे जंक फूड पर निर्भरता कम हो जाती है।

- पोटैशियम की भरपूर मात्रा वाली चीजें, जैसे केला, आलू और मशरूम आदि भी हेल्थ के लिहाज से फायदेमंद हैं। इस अवस्था में विटामिन सी की अहमियत गौर करने लायक है। यह ऐंटि- स्ट्रेस विटामिन है, जो तमाम तनावों से दूर रखने में मदद करता है। इसके अलावा यह आयरन का अवशोषण भी करता है।

- इस उम्र की महिलाओं को भरपूर मात्रा में हरी सब्जियों और साग का सेवन करना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे को जन्म देने के वक्त पैदा होने वाले खतरों में कमी आती है। दिल की बीमारियों की चपेट में आने की आशंका भी कम हो जाती है।

- पुरुषों को लेकोपीन (लाल रंग के फलों और सब्जियों में पाया जाने वाला कैरटिन) युक्त टमाटर खाना चाहिए। इससे प्रोस्टेट कैंसर का खतरा 35 फीसदी तक कम हो जाता है।

- अगर आप चाहते हैं कि हड्डियां मजबूत रहें तो आपको नियमित रूप से विटामिन डी युक्त दूध पीना होगा। कैल्शियम की जरूरत पूरी करने के लिए डिनर में ब्रोकली लेना अच्छा रहेगा। इसमें मैग्नीशियम, विटामिन के और फास्फोरस जैसे तत्व भी पाए जाते हैं।

- 20 से 30 साल के बीच हमारा रोजाना का खान-पान बेहद संतुलित होना चाहिए। फोकस ऐसी लाइफस्टाइल पर होना चाहिए, जिससे डायबीटीज, हाई ब्लडप्रेशर जैसी बीमारियों से बचा जा सके।

टर्निंग 30

- जब आप 30 और उसके पार पहुंचते हैं तो शरीर की जरूरतें बदल जाती हैं। इस अवस्था में मेटाबॉलिक रेट (चयापचय दर) काफी हद तक कम हो जाता है और वेट बढ़ जाता है, जो कि हेल्थ के लिहाज से नुकसानदायक होता है। इससे मोटापा बढ़ता है और पैदा होता है टाइप 2 डायबीटीज का खतरा।

- अगर आप अपनी लाइफस्टाइल में चेंज लाने को तैयार हैं तो चिंता की कोई बात नहीं है। आपको खाने में फैट और शुगर की मात्रा काफी हद तक घटानी होगी। नमकीन स्नैक्स, रंग-बिरंगे फलों और सब्जियों, जैसे गाजर और सेब को छोड़ना होगा। अब थाली में वाइट ब्रेड की जगह गेहूं की रोटी नजर आनी चाहिए।

- अब आपको खाने में ज्यादा-से-ज्यादा हरी सब्जियां लेनी होंगी। ये शरीर को आयरन, फोलिक एसिड, कैल्शियम और विटामिन के प्रदान करेंगी। सलाद और सब्जियों में जैतून के तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे कॉलेस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल में रखने में आसानी होगी।

- 30 की उम्र के बाद इसका ध्यान रखना चाहिए कि हड्डियों को नुकसान न पहुंचे। इस वक्त हड्डियों का विकास चरम पर होता है, मतलब यह कि उनका घनत्व अधिकतम हो जाता है। इसके लिए हड्डियों को मजबूती देने वाले पोषक तत्वों, जैसे कैल्शियम, विटामिन डी और के युक्त चीजों को खाने में शामिल करना चाहिए।

40 की चौखट पर

- यह वह स्टेज है, जब लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों का हमला शुरू हो जाता है। ऐसे में नट्स बेहद अहम हो जाते हैं। खासकर बादाम, क्योंकि ये कॉलेस्ट्रॉल लेवल को नीचे रखने में मददगार होते हैं और दिल की बीमारियों के खतरे को कम करते हैं। इस अवस्था में रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर पड़ता जाता है।

- कुछ लोग खाने में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा घटा देते हैं। उन्हें इसका अहसास नहीं होता कि कार्बोहाइड्रेट्स ऊर्जा पैदा करते हैं। उनकी गैरमौजूदगी में प्रोटींस कब्जा जमा लेते हैं, जिसके चलते ऊतकों के निर्माण और सेल रीजेनरेशन के काम पर असर पड़ता है।

- अब आपका फोकस ब्राउन वैरायटी पर होना चाहिए। खाने में वाइट के बजाय ब्राउन ब्रेड लें और गेहूं की रोटी का नियमित रूप से सेवन करें। इनमें फाइबर की काफी मात्रा होती है। ये ब्रेन और मांसपेशियों के लिए एनर्जी के प्राइमरी सोर्स हैं। फलों और सब्जियों से प्राप्त फाइबर भी अहम हैं। यह शुगर और कॉलेस्ट्रॉल जैसे लाइफस्टाइल डिस्ऑर्डर्स पर कंट्रोल करता है।

- इस अवस्था में ब्लैडर इन्फेक्शन का खतरा होता है। करौंदा इससे आपकी रक्षा कर सकता है। केले के सेवन से आपकी आंखों की रोशनी को फायदा होगा। 40 से 50 के बीच आहार में पोटैशियम युक्त चीजों, जैसे सभी अनाज, फल और सब्जियों को शामिल करना अच्छा रहेगा। इनमें मौजूद रोग प्रतिरोधी साइटोकेमिकल्स आपको चंगा रखेंगे।

- मछली का सेवन करने वालों को आर्थराइटिस का खतरा कम होता है। नियमित रूप से मछली खाने वालों के शरीर में ओमेगा-3 फैटी एसिड इकट्ठा हो जाता है। फिश ऑयल से कार्टिलेज (नरम हड्डियां) डीजेनरेशन रुकता है। ये इनफ्लेमेशन में कमी लाते हैं।

- भरपूर मात्रा में सेम खाने से आपके चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ेंगी। एक स्टडी के मुताबिक, वे लोग जो भोजन में फली और सब्जियां ले रहे थे, उनके चेहरे पर झुर्रियां नहीं थीं। वे सूरज की किरणों से होने वाली त्वचा संबंधी बीमारियों से भी बचे रहे। ऐसा इसलिए क्योंकि बीन्स में भारी मात्रा में ऐंटि-ऑक्सिडेंट्स होते हैं।

Thursday, April 7, 2011

eklavyashakti

r .m.p singh

shahed

vandya matram

vandya matram

desh

बीज गुण नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत 94 बीज विक्रेताओं के पंजीयन निलंबित

बीज गुण नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत 94 बीज विक्रेताओं के पंजीयन निलंबित
32 प्रकरणों में एफ.आई.आर. दर्ज
भोपाल 7 अप्रैल 2011। प्रदेश में किसानों को मानक स्तर का उन्नत बीज उपलब्ध हो, इसके लिए 4 बीज गुण नियंत्रण प्रयोगशालाएं स्थापित है। इनमें एक प्रयोगशाला विभागीय, दो बीज प्रमाणीकरण संस्था तथा एक तिलहन संघ के अधीन है। बीज अधिनियम 1966 की धारा 19 के अंतर्गत बीज गुण नियंत्रण एवं अनियमितता हेतु कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है। जिसके अंतर्गत वर्ष 2010-11 में बीज विक्रेताओं के 94 पंजीयन निलंबित और 81 पंजीयन निरस्त किए गए। 32 प्रकरणों में एफ. आई. आर. दर्ज कराई गई है।
उल्लेखनीय है कि विभागीय प्रयोगशाला ग्वालियर द्वारा वर्ष 2007-2008 में कुल 4013 बीज नमूनों का परीक्षण किया गया, जिसमें से 3250 नमूने मानक स्तर के पाए गए। वर्ष 2008-09 में 5600 नमूने परीक्षण का लक्ष्य रखा गया था जिसके विरुद्ध 3 हजार 529 नमूने विश्लेषित किए गए। वर्ष 2009-10 हेतु 6000 नमूने विश्लेषित करने का लक्ष्य रखा गया था जिसके विरुद्ध 4073 नमूनों का परीक्षण किया गया। वर्ष 2010-2011 में 6000 नमूनों के परीक्षण का लक्ष्य रखा गया था, जिसके विरुद्ध 4 हजार 511 नमूनों का परीक्षण किया गया।

डॉक्टर कपड़े उतारकर करती है इलाज!


डॉक्टर के सामने मरीज बेपर्दा होते तो आपने सुना होगा। लेकिन क्या बीमार के सामने डॉक्टर नेकेड हो सकती है। क्या एक-एक कर वो अपने कपड़े उतारकर इलाज कर सकती है। आप हैरान हो रहे होंगे, लेकिन ये हकीकत है।
अमेरिका की एक डॉक्टर मरीज के सामने धीरे-धीरे नेकेड हो जाती है। डॉक्टर का दावा है कि इससे वो मरीज का इलाज बेहतर ढंग से कर पाती है। इस नेकेड थेरेपी पर जबरदस्त बहस छिड़ चुकी है। इलाज के तस्वीरों को देख अच्छे खासे का दिमाग घूम सकता है। शरीर की नसों में हरकत शुरू हो सकती है। कपड़े उतारती लड़की भी तो यही चाहती है।
वो सामने मौजूद शख्स से बातें करती जाएगी और एक-एक कर कपड़े उतारती जाएंगी। इसके बाद लड़की और सामने बैठे शख्स के बीच कोई भी राज छिपा नहीं रह सकता। आदमी तोते की तरह बोलेगा। 25 साल की सराह भी तो यही चाहती हैं। वो मनोचिकित्सक हैं और ये है उनके इलाज का तरीका। उन्हें यकीन है कि इसके बाद एक ऐसी उत्तेजना शक्ति पैदा होती है जो क्लाइंट के अवचेतन में दबी परतों को आसानी से बाहर निकाल लेती हैं। मनोचिकित्सक सराह व्हाइट के पास से मरीजों की लंबी कतार है। लेकिन मरीजों में पुरुषों की संख्या सबसे ज्यादा है। सराह भी इस बात को मानती हैं कि महिलाओं की अपेक्षा वो पुरुषों में इस थेरेपी का बेहतर इस्तेमाल कर सकी हैं। सराह ने न्यूयॉकज़् यूनिवसिज़्टी से मनोविज्ञान की पढ़ाई के दौरान महसूस किया कि मनोचिकित्सा काफी नीरस है। लिहाजा उन्होंने इलाज में ओपन सेक्सुएलिटी को शामिल कर लिया। एक घंटे के सत्र के दौरान सराह जब बातचीत शुरू करती हैं तब उनके शरीर पर पूरे कपड़े होते हैं।
लेकिन सेंशन जैसे-जैसे आगे बढ़ता है वो सवाल पूछते-पूछते अपने कपड़े भी उतारने शुरू कर देती हैं। आखिर में उसके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं होता। सराह एक सेंशन के 150 डॉलर लेती हैं, इलाज की तीन प्रक्रिया है। पहले कंप्यूटर स्क्रीन पर वेब कैमरे और एकतरफा चैट के जरिए। फिर वीडियो अप्वाइंटमेंट के जरिए दो तरफा बातचीत और इसके बाद अगर जरूरत हो तो मरीज के साथ आमने-सामने रखकर ये नेकेड थैरेपी अपनाया जाता है। सराह के फ्राइड के सिद्धांतों से प्रभावित हैं। हालांकि वो फ्राइड के मुक्त साहचयज़् की जगह नेकेडनेस का प्रयोग करती है। ये बात अलग है कि सराह की नेकेड थेरेपी को किसी मेंटल हेल्थ एसोसिएशन ने मान्यता नहीं दी है। कई मनोचिकित्सकों सराह के इस प्रयोग का विरोध भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि सराह की नेकेड थेरेपी इंट्रैक्टिव सॉफ्ट-कोर इंटरनेट पोनज़् से ज्यादा कुछ नहीं है। सराह की नेकेड थेरेपी विवादों के घेरे में है। जानी-मानी मनोचिकित्स जयंती दत्ता का कहना है कि ये सब पैसा कमाने का तरीका है और पेशे को बदनाम कर रही है। वहीं मनोचिकित्सक संदीप वोहरा का कहना है कि ये बिल्कुल गलत है। सराह को खुद मनोचिकित्सा के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, वो खुद एक मरीज लगती हैं।

Sunday, April 3, 2011

एमपी भाजपा खुलासा करे कि कौन सी तीस सीटों पर अभी से वाकोंवर दे दिया हैं?


भोपाल। भाजपा प्रदेश में हेट्रिक बनाने के लिये काफी पहले से योजना बनाने में जुटी हुयी हैं। पहले कांग्रेस से हारी हुयी सीटों को चिन्हित कर प्रभारी नियुक्त किये गये थे जिनमें भी कद्दावर इंका विधायकों के क्षेत्र में काफी बौने नेताओं को प्रभार दिया गया था। हाल ही में उज्जैन में हुयी प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति में तीस सीटों पर अभी से वाकोवर देकर दो सौ सीटें जीतने की योजना बनायी गयी हैं। इसमें कांग्रेस के दिग्गजों से सौदे बाजी की बू आ रही हैं। ऐसा भी समझा जा रहा हैं कि इस सौदेबाजी में लोकसभा की कुछ सीटें भी बलि चढ़ेंगी। वैसे प्रदेश में यह कोई नयी बात नहीं हैं दिग्गी राजा के कार्यकाल में कांग्रस लोकसभा हार कर विधानसभा चुनाव जीत जाती थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और प्रदेश भाजपा पिछले कई महीनों से हेट्रिक बनाने की योजना बनाने और उस पर अमल करने में जुटे हुये हैं। इस सिलसिले में आज से कुछ महीने पहले यह तय किया था कि भाजपा उन सभी सीटों को जीतने की रणनीति बनायेगी जो सीटें वो इस चुनाव में कांग्रेस से हारी थी। इसके लिये उसने विधानसभावार प्रभारी भी नियुक्त किये थे। प्रभारियोंकी जो सूची जारी हुयी थी उसे लेकर भी राजनैतिक क्षेत्रों में आश्चर्य व्यक्त किया गया था। कांग्रेस के कई कद्दावर नेताओं के क्षेत्रों में जो पर्यवेक्षक नियुक्त किये थे उनका राजनैतिक कद बहुत बौना था। उदाहरण के लिये विधानसभा उपध्यक्ष हरवंश सिंह के केवलारी विधानसभा क्षेत्र में विधायक जयसिंह मरावी को प्रभारी बनाया गया था। प्रभारी बनने के बाद से वे आज तक केवलारी क्षेत्र में नहीं आये हैं। इसे लेकर मुख्यमंत्री के सिवनी जिले के सुकतरा प्रवास के दौरान क्षेत्र के भाजपाइयों ने शिकायत भी की थी जिसे मुख्यमंत्री ने यह कह कर टाल दिया था कि यदि आप चुनाव में भाजपा को जिता देते तो यह नौबत ही नहीं आती। अब वे विधानसभा उपाध्यक्ष हैं तो उनकी बात तो अधिकारी सुनेंगें ही। यह तो रहा प्रभारियों का आलम। अब हाल ही में उज्जैन में आयोजित प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी में भाजपा ने यह तय किया हैं कि वो 200 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चलेगी। वैसे तो यह बात सही हैं कि कोई भी राजनैतिक दल प्रदेश की सभी सीटें नहीं जीतती लेकिन दो साल पहले से ऐसा भी नहीं किया जाता कि कई सीटे छोड़ देने की मांसकिता बनायी जाये और उसे सार्वजनिक किया जाय। प््राद्रेश भाजपा के इस निर्णय से यह बात साफ हो जाती हैं कि भाजपा ने अभी से तीस सीटें छोड़ देने का मन बना लिया हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं हैं कि प्रदेश के कांग्रेस के दिग्गजों दिग्विजय सिंह,कमलनाथ,सुरेश पचैरी और ज्यातिरादित्य सिंधिया के चुनिंदा समर्थक विधायकों के लिये अभी से वाकोवर देने की रणनीति बना ली हैं ताकि आसानी से तीसरी पारी खेली जा सके। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का यह भी मानना हैं कि परदे के पीछे खेले जा रहे इस खेल में कुछ भाजपायी लोकसभा सीटों की भी सौदेबजी करने की योजना हो। वैसे भी प्रदेश में यह कोई नई बात नहीं हैं जब भाजपा और कांग्रेस के चुनिंदा नेताओं के बीच ऐसे राजनैतिक सौदे ना हुये हों। जब दिल्ली में अटल बिहारी की सरकार थी तब भी ऐसा ही कुछ दिग्गी राजा के कार्यकाल में भी होता था। प्रदेश में कांग्रेस लोकसभा की अधिकांश सीटे हार जाती थी और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन जाती थी। ऐसा ही कुछ पिछले लोकसभा चुनाव में शिवराज के राज में हुआ जब कांग्रेस प्रदेश में चार से सोलह लोंकसभा सीटें जीत गयी थी। जबकि कुछ ही महीनों पहले हुये चुनाव में भारी बहुमत से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी। ऐसी ही कुछ योजना तीसरी पारी खेलने के लिये यदि बनायी जा रही हो तोकोई बड़ी बात नहीं हैं। अब तो सभी को इस बात की उत्सुकता हैं कि वे कौन सी तीस सीटें हैं जिन्हें भाजपा ने अभी से छोड़ दिया हैं। भाजपा को चाहिये कि वो इस बात का खुलासा करें। राजनैतिक क्षेत्रों में यह भी चर्चा हैं कि ऐसी सौदेबाजी करने में माहिर नेताओं ने अपनी जुगाड़ जरूर जमा ली होगी।सियासी हल्कों में यह भी चर्चा जोरों पर हैं कि कहीं इन तीस सीटों में विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की केवलारी सीट सहित कई कद्दावर विधायकों की सीटें तो शामिल नहीं हैं?इसका खुलासा तो दो साल बाद टिकिट बटने पर ही होगा तब तक लोग शायद यह भूल भी जायेंगें कि कभी ऐसा कुछ लिखा गया था।

मरने से बचना है तो गाय की

मरने से बचना है तो गाय की
शरण में जाओं : मेघराज जैन

वर्तमान में राजनीतिक और सामाजिक विषमता का दौर है। हम अपनी स्थापित धार्मिक एवं सामाजिक परम्परायें भुलाते जा रहे हैं जबकि विज्ञान उन्हें स्वीकार करता है। प्राणी मात्र का कल्याण ही धर्म हैं। मरने से बचना है तो गाय की शरण में जाओं। गाय द्वारा प्रदत्त जीवन दायित्वों, एवं शाक्ति का उपयोंग करना जरुरी है।
उक्त विचार बतौर मुख्य अतिथी मध्य प्रदेश गौ पालन संवर्धन आयोग के अध्यक्ष श्री मेघराज जैन ने पत्रकार फाउण्डेशन वेल्फेयर एसोसिएशन द्वारा गौ संवर्धन आयोग भोपाल जिले में नवनियुक्त उपाध्यक्ष प्रमोद नेमा के अभिनन्दन समारोह में व्यक्त किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय एकता परिषद के उपाध्यक्ष, पत्रकार चिन्तक एवं विचारक रमेशशर्मा ने की। इस अवसर पर बृज मोहन रामकली गौ संरक्षण केन्द्र के अध्यक्ष प्रहलाद दास मंगल एवं झरनेश्वर नागरिक बैंक के संचालक मनमोहन कुरापा विशेष अतिथि के रुप में उपस्थित थे।
श्री जैन ने कहा कि गाय पर अनुंसधान का कोई केन्द्र नहीं है सिर्फ कसाई खानों को खोलने मेें हमारा विश्वास है, क्योकि गौ वंश मांस
का विदेशों में निर्यात कर कमाई का जरिया बनाये जा रहे हैं। श्री जैन ने बताया कि हिन्दुस्तान की भूमि बञ्जर नही होने का कारण गाय का गोबर है। गाय के दूध से कुपोषण दूर होता है। उन्होने कहा कि कम उम्र में समाज सेवा का संकल्प यदा कदा ही दिखाई देता है।
राष्ट्रीय एकता परिषद के उपाध्यक्ष रमेश शर्मा ने कहा कि कचरे में मिली पन्नी खाना गायों की मौत का कारण है। एक सौ पचास प्रकार कीबीमारियां गौ मूत्र और पंचगव्य से दूर की जा सकती हैं। गाय नहीं होगी तो हम नहीं होगें। विदेशी झूठन की तरफ हमारा ध्यान है
देश की संस्कृति को हम भूलते जा रहे हैं। उन्होने कहा कि गौ संरक्षण आवश्यक है।
पत्रकार फाउण्डेशन के अध्यक्ष ओम प्रकाश हयारण ने कहा कि गौ माता के शरीर में छत्तीस करोंड़ देवताओं का वास है। गौ माता के गौबर मे लक्ष्मी जी वास करती हैं। वहीं गौ मूत्र से बनी दवाओं से कैंसर जैसी कई बीमारियों का इलाज आसानी से हो जाता है। भोपाल मे पच्चीस गौ शाला होने के बावजूद भी गौ मूत्र से बनी दवाओं और उसके लाभ का प्रचार प्रसार यनही हो रहा है।
इसके पूर्व अतिथियों
ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शम्भारम्भ किया। तत्पश्चात श्री मेघराज जैन एवं श्री रमेश शर्मा ने गौ संवर्धन बोर्ड भोपाल जिले के उपाध्यक्ष प्रमोद नेमा का शाल श्रीफल, प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह पुष्पहार से अभिनन्दन किया। पत्रकार फाउण्डेशन की और से अध्यक्ष ओम प्रकाश हयारण सचिव असरार अली, वीरेन्द्र सिंह चौहान, सलीम खादीवाला, रानी यादव, जनसंवेदना के अध्यक्ष आर. एस. अग्रवाल, बड़वाले महादेव मन्दिर समिति के सञ्जय अग्रवाल पूड्ढी, बृजमोहन रामकली गौ शाला के अध्यक्ष प्रहलाद दास मंगल, मेडीकल एसोसियेशन के अध्यक्ष ललित जैन नेमा समाज के सञ्जय नेमा समेत नगर की अनेक धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं ने पुष्पहारों से अतिथियों एवं प्रमोद नेमा का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन विमल भण्डारी सुरताल ने तथा आभार मनमोहन कुरापा ने व्यक्त किया।

श्री राम निषाद की मित्रता, दो संस्कृति का संगम



श्री राम निषाद की मित्रता, दो संस्कृति का संगम श्री राम निषाद की मित्रता, दो संस्कृति का संगम

राजेन्द्र कश्यप


प्राचीन जम्बूदीप के अन्तर्गत रघुकुल वंश के प्रतापी राजा दशरथ के राज्य आयोध्या की सीमा कोशल राज्य और निषाद देश से मिली हुई थी। राजा

दशरथ की पुत्री शान्ता का विवाह श्रृंगी ऋषि से हुआ था। गुह राज निषाद राज्य की राजधानी श्रग्वेरपुर सुव्यवस्थित आदिवासियों का सम्पन्न राज्य था। गृहराज

निषाद और दशरथ्र पुत्र रामचन्द्र जी ने वान्यकाल में एक ही गुरूकुल में राजनीति, व्यवहार,आचरण और शास्त्र की विद्या प्राप्त की थी। शिक्षा प्राप्त करते

समय ही निषाद राजकुमार गुह ने बाल सुलळा मन से रामचन्द्र जी से निषाद देश में कभी आने का आमन्त्रण दिया था, श्रंृंग्वेरपुर के राजा गुह के बनने के

समय उनके राज्य में श्रंगी ऋषि के कारण वन में काफी यक्षकर्ता, नागरिक,व्यापारी,मुनी,तपस्वी और जंगली वन सम्पदा से राज्य सम्पन्न था। राज्य की सैन्य एवं

गुप्तचर व्यवस्था उत्तम थी । शहर के निवासी सुखपुर्वक निवास करते थे। वन सम्पदा से राज्य सम्पन्न था। राज्य के नागरिक सेनिकों ओर कड़ी गुप्तचर व्यवस्था

सुदृड़ होने के कारण सुखपूर्वक रहते थे।


गुप्तचरों द्वारा राम, लक्ष्मण और सीताजी के वनवासी देश के राज्य की में प्रवेश करने पर गृह राज निषाद स्वयं अपनी पत्नी ,मन्त्री,सेनापति,सेनिकों

ओर कुटुम्बियों सहित अगवानी हेतु सीमा पर पहुंच गये । राजकुमार रामचन्द्र आगे बढ़कर निषादराज को गले लगाकर उनके बन्धु बान्धव कुटुबियों और राज्य के

नागरिकों की कुशलक्षेम पूछी। गुहराज ने अपनी पत्नी, ओैर कुटुबिंयों सहित राज्य की कुशलता दर्शा कर श्री राम का स्वागत किया।

अयोध्या के राजकुमार राम,लक्ष्मण ओर सीता को वनवासी वेश में देख निषाद राज बहुत विस्मय में पड़ गये,कयोंकि उस युग में राजघरानें राजा,

राजकुमारों की वेशभूषा निर्धारित थी। सेनापति ओर मन्त्री भी अपनी वििश्ष्ट वेशभूषा में रहते थे। राजरानी सीता भी वनवासी वेषभूषा में थीं। कुशलक्षेम के

पश्चात जब राजकुमार ने वनवास का कारण ओर अपने वचनों की बात राजा गुह को बताई। तब राजा गुह ने राजकुमार राम,लक्ष्मण और सीता को प्रेमवश

पूरा राज्य समर्पित करते हुए 14 वर्ष श्रंग्वेरपर राज्य में ही निवास करने का निवेदन किया। रामचन्द्र जी ने राजधानी और नगर में चलने से वनवास के कारण

वन में ही रूकने का कहा। निषाद राज के मन्त्री ओर सेवक वनवासियों ने तत्काल उनके निवास के लिये कुटिया,आसन्दी और सीता जी के स्नान के लिये पृथक

से जल कुण्ड का निर्माण कर दिया निषाद राज ने राजकुमार राम, लक्ष्मण सीताजी को विभिन्न पकवानों,फल फूल कन्द का भोजन प्रस्तुत किया। प्रतीज्ञा में बन्धे

राम ने पकवान को छोड़कर वन फलों को सप्रेम स्वीकार किया। लक्ष्मण ने एक वृक्ष के नीचे घासफूस और पत्तियों की शैया बना दी। राम एवं सीता ने वहीं

पर विश्राम किया। पास ही लक्ष्मण धनुषबाण लेकर सुरक्षा के लिये खड़े हो गये राजकुमार लक्ष्मण राजा गुह की मेत्री भावना को देख बहुत ही प्रसन्न ओर

चकित हो गये। एक राजा मित्रतावश अपना पूरा राज्य अपने मित्र को समर्पित कर दे ऐसी विराट प्रेम भावना, समर्पण ओर निष्टा लक्ष्मण को मोहित कर गई।


रात्रि होने पर लक्ष्मण को गुहराज ने विश्राम करने का आग्रह किया तो उन्होनें रात्रि में जंगली जानवरों से रक्षा के लिये जीवन भर न सोने का

संकल्प लेने का प्रण किया। निषाद राज गुह ने भी लक्ष्मण के साथ रात्रि भर जागरण किया। जितेन्द्र लक्ष्मण ने 14 वर्ष तक रात्रि में कभी सोये नहीं जब

रावण के पुत्र इन्द्रजीत ने शक्तिबाण से मुछित होने पर हनुमान जी द्वारा सञ्जीवनी बूटी के सेवन करने पर ही होश में आये थे।

अयोध्या के राजकुमार भरत ओर शत्रुघ्न के लोटने पर महामन्त्री सुमन्त के साथ रथ पर सवार सेना, मन्त्री गणमान्य नागरिकों के साथ राम, लक्ष्मण

और सीताजी को अयोध्या वापिस लोटाकर लाने के लिये भरतजी श्रग्वेरपुर की सीमा पर सैनिकों सहित पहुंचे। भरत के आने के समाचार मिलने पर लक्ष्मण

क्रोधित हुए तब निषाद राज ने अपनी सेना तैयार होने का आदेश दिया परन्तु गुप्तचरों द्वारा ज्ञात होने पर ही महामन्त्री सुमन्त के साथ भरत ओर शत्रुध्न

सममान सहित राम,लक्ष्मण ओर सीताजी को वनवास से लोटा कर अयोध्या में राम का राज्याभिषेक कराने की इच्दा से आये हैं, तब राजा गुह ने भरत सहित

सेना को श्रग्वेरपुुर की सीमा प्रवेश की आज्ञा दी।

रामभरत मिलाप हुआ परन्तु रामचन्द्र जी वनवास से लोटने से इंकार कर दिया और भरत को अयोध्या में राज्य सम्भालने की आज्ञा दी। राम और भरत

के प्रेम से निषादराज गुह काफी प्रभावित हुये । भरत रामचन्द्र जी की पादुका लेकर अयोध्या लोट गये। कुछ समय पश्चात केवट द्वारा राम लक्ष्मण और सीता

जी गंगा नदी पार कर शेशल राज्य में प्रवेश करने पर मातृभूमि की माटी को छूकर प्रणाम कर गुहराज निषाद वन में भारद्वाज ऋषि से मिलवाने के बाद

रामचन्द्र जी ने निषाद राज को अपने राज्य वापिस लोटने को कहा इस पर गुह राज ने इंकार कर दिया, तब श्री राम ने निषाद राज को मित्रता निभाने का

आग्रह किया और अयोध्या की सीमा की रक्षा एचं भरत के छोटे भाई की तरह रक्षा करने की बात की तब गुहराजा श्रग्वेरपुर वापिस लोटे। अयोध्या की राक्षा

का दायित्व मित्रता का बन्धन बन गया।

रावण वध के पश्चात राम के अयोध्या में पहंचने पर जब रामचन्द्र जी का राज्याभिषेक होने जा रहा था। निषाद राजगुह की ससम्मान अयोघ्या

सपत्नी,मत्री सहित आमन्त्रित किया। वनवासी निषाद,राजा गुह राज्यािभेषक में सम्मिलित हुए। इस तरह हम समझते हैं कि राम और निषाद की मित्रता और

उनका मिलन वास्तव में भारत की प्राचीन निषाद संस्कृति और आर्य संस्कृती का मिलन था। दोनों संस्कृतियों के बीच एकता हुई और अंशाति फेलाने वाली

दुष्ट रक्ष संस्कृति के निर्माता रावण अपने वंश सहित समाप्त हो गया। ऋषि, मुनि, तपस्वी ओर वनवासी सुख पूर्वक रहने लगे।

शुक्ल पक्ष की पंचमी को निषाद राज गुह की ओर शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान रामचन्द्र की जयन्ती पूरे देश में मनायी जाती है।