Friday, October 29, 2010

मध्यप्रदेश के महू में बाबा साहब आंबेडकर की परिनिर्माण भूमि को राजघाट के बराबर दर्जा दिलाने के लिए प्रारंभ किए जाने वाले आंदोलन से भाजपा ने अपना पल्ला

भोपाल। मध्यप्रदेश के महू में बाबा साहब आंबेडकर की परिनिर्माण भूमि को राजघाट के बराबर दर्जा दिलाने के लिए प्रारंभ किए जाने वाले आंदोलन से भाजपा ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। पार्टी का कहना है कि उसका प्रस्तावित आंदोलन से कोई संबंध नहीं है।

गौरतलब है कि डॉ.आबेडकर परिनिर्माण भूमि सम्मान कार्यक्रम समिति ने अपनी उपर्युक्त मांग को लेकर 31 अक्टूबर को भोपाल से एक आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है। उसकी एक मांग यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को राजघाट के साथ आबेडकर की परिनिर्माण भूमि पर भी ले जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष इंद्रेश गजभिए ने बुधवार को यहां बताया था कि अपनी मांग पूरी होने तक सभी दलों के दलित सासद एवं मंत्रीगण गाधी परिवार के सदस्यों और राष्ट्रपिता के समाधि स्थल राजघाट का बहिष्कार करेंगे।

इस मामले में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व सांसद थावरचंद गहलोत ने कहा कि उन्हें इस तरह के आंदोलन की कोई जानकारी नहीं है और न ही इसका भाजपा से कोई संबंध है। गहलोत के मुताबिक समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने क्या कहा, यह भी उन्हें नहीं पता। जहां तक आंबेडकर की परिनिर्माण भूमि का प्रश्न है तो शिवराज सरकार ने वहां दस करोड़ रूपए खर्च किए हैं। हर साल महाकुंभ होता है, जिसमें लाखों लोगों के भोजन-पानी की व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाती है।

गहलोत का कहना है कि राजघाट से तुलना क्यों की जा रही है, इस बारे में वह कुछ नहीं कह सकते। केन्द्र सरकार राजघाट को विशेष दर्जे के तहत कौन सी सुविधाएं दे रही है, इसकी जानकारी भी उन्हें नहीं है।

भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष और सांसद प्रभात झा ने भी कहा कि इस आंदोलन से पार्टी का कोई वास्ता नहीं है।

दरअसल इस मामले में भाजपा की भागीदारी का सवाल इसलिए उठा, क्योंकि समिति के अध्यक्ष गजभिए भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा में रह चुके हैं। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए गजभिए को राज्य अल्पसंख्यक आयोग का सदस्य भी बनाया गया था।

उन्होंने राजघाट के बहिष्कार आंदोलन में भाजपा के गहलोत के अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया, सांसद अशोक अर्गल, लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष चरणजीत सिंह अटवाल आदि के नाम गिनाते हुए कहा था कि ये सभी आंदोलन में भाग लेंगे।

समिति के राष्ट्रीय संयोजक टीएम कुमार ने भाजपा नेताओं के अलावा रामविलास पासवान, जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष डॉ.उदित राज, पूर्व केन्द्रीय मंत्री योगेन्द्र मकवाना, एच हनुमंथप्पा,रामदास अठवाले, सासद जीडी सीलम, टीएम कुमार, विधायक आत्माराम भाई आदि के नाम भी बताए थे। उनका कहना था कि यदि उनकी माग जल्द पूरी नहीं होती तो देश के सभी राज्यों में धरना-प्रदर्शन किया जाएगा। जिसकी शुरूआत भोपाल में 31 अक्टूबर बोर्ड आफिस चौराहे पर धरना प्रदर्शन से होगी। इसके बाद 6 दिसंबर को दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मान रैली निकाली जाएगी।

यात्रा नहीं, वनवासियों की हालत सुधारें सीएम

भोपाल। मध्यप्रदेश काग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचौरी ने कहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को वनवासी सम्मान यात्रा करने की बजाए वनवासियों और आदिवासियों को उनके हक दिलाने में अपनी ऊर्जा खर्च करना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि एक तरफ चौहान वनवासी सम्मान यात्रा कर रहे हैं, दूसरी ओर पूरा प्रशासन वनवासियों और आदिवासियों के अधिकारों को कुचलने में लगा है।

पचौरी ने शुक्रवार को यहा कुछ पत्रकारों से चर्चा करते हुए आरोप लगाया कि यूपीए सरकार ने काग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाधी की पहल पर वनवासियों को वन अधिकार कानून के तहत वन भूमि के पट्टे देने का निर्णय लिया है, परंतु मध्यप्रदेश में इस अधिनियम का सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है। कानून के तहत प्रदेश में वनवासियों के चार लाख 482 आवेदन राज्य सरकार को प्राप्त हुए हैं, जिनमें केवल 94 हजार 154 वनवासियों को ही वन भूमि के पट्टे दिए गए हैं। 2 लाख 53 हजार आवेदनों को निरस्त कर दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने पहले इस अधिनियम को लागू करने में देरी की और अब वह अनियमितताएं कर रही है।

पचौरी ने बताया कि मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र बुधनी के खटपुरा गाव की आदिवासी महिला सुकमा बाई के परिवार को उनकी काबिज वन भूमि का मालिकाना हक अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी अधिनियम के तहत मिलना था, पर यह हक देने की बजाए अधिकारियों ने उसे प्रताड़ित किया और झूठे मुकदमे में जेल भेज दिया। उन्होंने कहा कि प्रदेश के आदिवासी जिलों में बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। प्रदेश में कुपोषित बच्चों का अनुपात पिछले सात वर्षो में 53.5 प्रतिशत से बढ़कर 60.3 प्रतिशत हो गया है। अनूसूचित जाति और जनजातियों पर अत्याचार लगातार बढ़ते जा रहे हैं और सरकार इस मामले में असंवेदनशील बनी हुई है।

कांग्रेस अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री चौहान और सत्तारुढ़ भाजपा के इस आरोप को भी बेबुनियाद बताया कि केन्द्र सरकार मप्र के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है और सूबे की जनता के अधिकारों में कटौती की जा रही है। उन्होंने बताया कि केन्द्र ने एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय योजना के तहत प्रदेश में आठ विद्यालय प्रारंभ करने के लिए 12 करोड़ रूपए की राशि स्वीकृत कर दी है लेकिन राज्य सरकार ने कई स्थानों पर इस विद्यालय को खोलने के लिए 20 एकड़ भूमि चिन्हित कर प्रस्ताव अभी तक केन्द्र सरकार को नहीं भेजा है।

पचौरी ने बताया कि भाजपा बिजली का रोना रोती है, जबकि सच्चाई यह है कि केन्द्र में एनडीए की सरकार ने वर्ष 2003-04 में मप्र को जहां 1697 मेगावाट बिजली प्राप्त हुई थी वहीं 2009-10 में 2389 मेगावाट बिजली प्राप्त हुई है। इसी तरह इंदिरा आवास, प्रधानमंत्री सड़क, मनरेगा, जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन बुंदेलखण्ड पैकेज के तहत मप्र को केन्द्र से भरपूर पैसा दिया गया है। पचौरी ने एनडीए सरकार की तुलना में पत्रकारों को आंकड़े भी उपलब्ध करवाए। उन्होंने कहा कि मप्र सरकार कर्ज में बुरी तरह डूबी है और राज्य में कानून-व्यवस्था की हालत भी बिगड़ती जा रही है।

भोपाल के गैस पीड़ित भी सक्रिय रहेंगे।

भोपाल। अगले हफ्ते भारत की यात्रा पर आ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा पर दबाव बनाने के लिए भोपाल के गैस पीड़ित भी सक्रिय रहेंगे। इस बारे में गैस पीड़ितों की तरफ से प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को एक चिट्ठी लिखी जा रही है, जिसमें उनसे आग्रह किया जाएगा कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति से वारेन एण्डरसन के प्रत्यर्पण के बारे में भी चर्चा करें। ताकि भोपाल के हजारों लोगों की मौत का कारण बने एण्डरसन को उसकी गलतियों की सजा मिल सके।

याद रहे कि इसी वर्ष 7 जून को भोपाल की सीजेएम कोर्ट ने वारेन एण्डरसन सहित अन्य आरोपियों को दो-दो साल के कारावास की सजा सुनाई थी। पर इस मामले में भारत सरकार के रवैये से भोपाल के गैस पीड़ित संगठनों में निराशा है और वह मानकर चल रहे हैं कि उनकी लड़ाई को मुकाम मिलने वाला नहीं है।

पिछले पच्चीस वर्षो से भोपाल के गैस पीड़ितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने 'जागरण' से कहा कि दुनिया की भीषणतम रासायनिक गैस त्रासदी का सबसे दुखद पहलू यह है कि दोनों अमेरिकी कंपनियों यूनियन कार्बाइड और डाव केमिकल ने अब तक कोई जवाबदारी नहीं ली है। भोपाल की सीजेएम कोर्ट से यूनियन कार्बाइड के सर्वेसर्वा होने के नाते वारेन एण्डरसन को दो साल की सजा के बाद भारत सरकार ने गैस पीड़ितों के प्रति जो सहानुभूति दिखाई थी, वह भी धीरे-धीरे पुरानी बेरुखी की तरफ लौट रही है।

जब्बार ने कहा कि प्रधानमंत्री यदि 27/ 11 के मुम्बई हमले के आरोपी हेडली के बारे में ओबामा से बात कर सकते हैं तो एण्डरसन के बारे में उन्हें हर हाल में चर्चा करना चाहिए। क्योंकि एण्डरसन तो भोपाल के 15 हजार निर्दोष लोगों की मौत का जिम्मेदार है।

उन्होंने बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान अपना पक्ष रखने के लिए भोपाल के गैस पीड़ित 11 नवम्बर को दिल्ली में प्रदर्शन करने वाले थे पर सरकारी बंदिश के कारण अब 10 नवम्बर को भोपाल में प्रदर्शन करेंगे। दिल्ली में किया जाने वाला प्रदर्शन 22 नवम्बर को होगा।

कमलाकर सिंह अब नहीं रहे डॉक्टर,छिनेगी उपाधि

भोपाल. भोज मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति कमलाकर सिंह से डॉक्टरेट की उपाधि छिनने जा रही है। नकल कर पीएचडी की थीसिस पूरी करने का आरोप साबित होने के बाद बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) की कार्यपरिषद ने उपाधि वापस लेने का फैसला लिया । शुक्रवार को हुई बैठक में ये मुद्दा छाया रहा। पीएचडी हासिल करने के तकरीबन 23 साल बाद डॉक्टरेट की उपाधि वापस लिए जाने का यह मामला इसलिए भी खास हो जाता है, क्योंकि कमलाकर सिंह पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अजरुन सिंह के नजदीकियों में शुमार किए जाते हैं।

सिंह ने बीयू में सहायक कुलसचिव रहते हुए वर्ष 1987 में विवि से पीएचडी की थी। उन्होंने अपने पीएचडी गाइड एसपी नार्टन की थीसिस की नकल की थी। सूत्रों के मुताबिक सिंह पीएचडी के लिए आरडीसी में शामिल नहीं हुए थे। उन्होंने अपनी थीसिस को विवि के लिम्नोलॉजी विभाग के प्रो. प्रदीप सिंह से अग्रेषित कराने के बाद जमा किया था। इसके अलावा सिंह ने विवि में पीएचडी मूल्यांकन की फीस जमा नहीं की थी।

सदस्यों ने कहा - वापस लो पीएचडी

पीएचडी की थीसिस में नकल करना विवि को धोखा देना है, इसलिए कमलाकर सिंह से पीएचडी की उपाधि वापस ली जाए। यह बात एक सुर में कार्यपरिषद के 15 सदस्यों ने कही, जबकि कार्यपरिषद सदस्य प्रो. एपीएस चौहान और प्रो. टीपी सिंह ने कमलाकर सिंह से पीएचडी वापस लेने के निर्णय पर अपना विरोध दर्ज कराया।

कौन थे एसपी नार्टन ?

नकल से पीएचडी करने वाले कमलाकर सिंह के गाइड डॉ. एसपी नार्टन थे। नार्टन बीयू में जूलॉजी विभाग में प्रोफेसर थे।

धोखाधड़ी का मामला दर्ज हो

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने बरकतउल्ला विवि प्रबंधन और सरकार से नकल से पीएचडी करने वाले कमलाकर सिंह के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने की मांग की है। एबीवीपी के राष्ट्रीय महामंत्री विष्णुदत्त शर्मा ने बताया कि सिंह को पीएचडी में नकल के लिए कठोर दंड दिया जाए, जिससे भविष्य में कोई भी पीएचडी की थीसिस में नकल करने की कोशिश न करें। साथ ही श्री शर्मा ने सरकार से बीयू कार्यपरिषद में सिंह की पीएचडी खारिज करने के निर्णय पर आपत्ति दर्ज कराने वाले दोनों प्रोफेसरों के शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच कराने की मांग की है।

अब ये हो सकता है ..

* पीएचडी के रूप में लिए लाभ की वसूली।

* धोखाधड़ी का मामाल कायम हो सकता है।

* विश्वसनीयता संदिग्ध होने पर सिंह की नौकरी संकट में फंस सकती है।

* कार्यपरिषद के फैसले को सिंह कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं।

* सिंह कोर्ट से कार्यपरिषद के फैसले पर स्टे ले सकते हैं।

यह विवि कार्यपरिषद का निर्णय है। यदि कमलाकर सिंह ने गलत लाभ लिए होंगे तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

चीन को खटका भारत का लोकतंत्र, बहुदलीय प्रणाली को कोसा

बीजिंग. चीन को भारत सहित कई देशों में चल रही लोकतांत्रिक बहुदलीय प्रणाली पर सख्त आपत्ति है। चीन ने इन देशों से कहा है कि वे अपनी राजनीतिक व्यवस्था पर फिर विचार करें और इसे चीन की तरह एक दलीय प्रणाली बनाएं।

चीन में लोकतंत्र नहीं है बल्कि तानाशाही जैसा माहौल है। वहां केवल एक ही दल कम्युनिस्ट पार्टी सक्रिय है। यहां राजनीतिक व्यवस्था में फेरबदल की वकालत करने वालों के साथ काफी कड़ाई से निबटा जाता है। राजनीतिक सुधार चाहने वाले कई नेता जेल में बंद हैं। यहां तक कि चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के भाषणों में भी राजनीतिक सुधार का संकेत मिलने के बाद उन्हें सेंसर कर दिया गया।

विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र भारत सहित कई देशों में बहुदलीय प्रणाली आधारित राजनीतिक व्यवस्था है, जहां विरोधियों को भी मुखरता से बोलने की पूरी आजादी है। लेकिन चीन चाहता है कि विश्व के सभी देशों को उनके देश में लागू प्रणाली अपनाना चाहिए। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेली ने अपने संपादकीय में बहुपार्टी प्रणाली की आलोचना की है। अखबार ने अपने संपादकीय में चीन की राजनीतिक व्यवस्था की तारीफ करते हुए सत्ता एक ही पार्टी के हाथों में रखे जाने की वकालत की है। लेक के अनुसार इससे विकास की गति को बढ़ाने में मदद मिलती है।

डेली के अनुसार कई देशों में अपनाई गई बहुदलीय प्रणाली उपनिवेशवाद और गुलामी का प्रतीक है। संपादकीय में कहा गया है कि यदि चीन इन देशों की व्यवस्था को अपना ले तो एकजुट होकर देशहित में संघर्ष करने और नेतृत्व की मजबूती खत्म हो जाएगी और देश बिखर जाएगा।

चीन में बहुदलीय प्रणाली के समर्थकों के साथ शासन सख्ती से निबटता है। हाल ही में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त लिउ जियाबाओ भी इसी आरोप में 11 साल की सजा काट रहे हैं। पुरस्कार की घोषणा होने के बाद उनकी पत्नी और कुछ समर्थकों को नजरबंद कर दिया गया है।

चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने भी राजनीतिक व्यवस्था में किसी ठोस सुधार की वकालत नहीं की थी बल्कि आर्थिक उन्नति जारी रखने के लिए साधारण बदलाव की बात कही थी। लेकिन उसे भी चीन की कम्युनिस्ट सत्ता पचा नहीं सकी। उनके भाषणों को ही सरकार ने चार बार सेंसर कर दिया। वेन पार्टी में तीसरे बड़े नेता हैं। उन्हें 2012 की खुरुआत में अपना पद छोड़ना

नेपाल में विद्रोह का खतरा, पीएम बोले-तबाही के कगार पर खड़ा है देश

काठमांडू. नेपाल एक बार फिर बड़े राजनैतिक संकट के मुहाने पर खड़ा है। नेपाल में कामचलाऊ प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने आशंका जाहिर की है कि हाल ही में पीपल लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कुछ कमांडरों का चीन दौरा नेपाल में बगावत की एक नई शुरुआत हो सकती है। पोखरा एयरपोर्ट पर पत्रकारों से बात करते हुए माधव कुमार ने यह बात कही।

माधव कुमार ने कहा, 'मुझे शक है कि माओवादी देश को तबाही की तरफ ले जा रहे हैं, वे विकास के कामों में बाधा डाल रहे हैं। बजट की राह में रोड़़े अटका कर माओवादी हजारों लोगों को बेरोज़गार बना रहे हैं।' उनके मुताबिक, अपनी छावनियों में हथियारों का जमावड़ा और बजट रोकने के पीछे उनका मकसद विद्रोह भी हो सकता है। नेपाल के मुताबिक, वे देश को और अस्थिर करना चाहते हैं, जिसके लिए वे बगावत की तैयारी कर रहे हैं। कार्यवाहक प्रधानमंत्री के इस आरोप से तिलमिलाए यूनिफाइड माओवादी पार्टी ने माधव कुमार नेपाल के बयान को शांति की प्रक्रिया के खिलाफ और गैरजिम्मेदाराना बताया है। पार्टी के प्रवक्ता ने दीना नाथ शर्मा ने कहा, उनकी टिप्पणी से शांति वार्ता पटरी से उतर जाएगी। गौरतलब है कि नेपाल राजनैतिक अस्थिरता का शिकार है। उधर, शुक्रवार को 14 वीं बार नेपाली संसद नए प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं कर पाई। शुक्रवार को हुई वोटिंग में प्रधानमंत्री पद के इकलौते उम्मीदवार राम चंद्र पौडेल बहुमत पाने में नाकाम रहे।



शुक्रवार को नेपाली कांग्रेस पार्लियामेंटरी पार्टी के नेता पौडेल के पक्ष में 96 वोट पड़े जबकि उनके विरोध में दो वोट पड़े। 40 सांसद तटस्थ रहे। इससे पहले 13वें दौर में पौडेल को 98 वोट मिले थे। स्पीकर सुभाष चंद्र नेंबंग ने नतीजे का ऐलान करते हुए कहा, नेपाली कांग्रेस के प्रस्ताव को नामंजूर किया जाता है क्योंकि इसे साधारण बहुमत भी नहीं मिल पाया है। अब 15वें दौर की वोटिंग के लिए एक नवंबर का दिन तय किया गया है। प्रधानमंत्री पद की रेस से माओवादी नेता पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड नेपाली संसद में छठे दौर की वोटिंग के बेनतीजा रहने के बाद हट गए थे। कार्यवाहक प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने 30 जून को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से कोई भी नेता संसद में बहुमत हासिल नहीं कर पा रहा है।




अस्थिरता का शिकार है नेपाल



माओवादियों ने मई 2009 में सरकार से इस्तीफा दिया था। वजह यह थी कि सेना प्रमुख रुकमांगद कटवाल को बर्खास्त करने के प्रयास में माओवादियों ने राष्ट्रीय सेना में कमान बदलने को लेकर अड़ियल रवैया अख्तियार कर लिया था। तभी से राष्ट्रपति रामबरन यादव और प्रधानमंत्री नेपाल माओवादियों के निशाने बन गए थे। माओवादियों को जल्दी ही इस्तीफा देने की अपनी भयानक भूल का अहसास हो गया। उन्होंने प्रधानमंत्री नेपाल को अपदस्थ करने का कोई तरीका बाकी नहीं छोड़ा। माधव कुमार नेपाल प्रारंभ से ही कमजोर प्रधानमंत्री थे। खुद नेपाल को हालांकि शुचिता और ईमानदारी के लिए जाना जाता था, लेकिन उनकी सरकार में न इच्छाशक्ति थी, न सामर्थ्य। ऊपर से कई मंत्री भ्रष्टाचार व ज्यादतियों के आरोपों से घिरे थे।

लेकिन एक कमजोर सरकार को भी संवैधानिक और संसदीय प्रक्रिया से ही गिराया जाना चाहिए और माओवादी यही नहीं कर पा रहे थे। सत्तारूढ़ गठबंधन की छोटी-बड़ी सभी 22 पार्टियों में माओवादियों का भय इस कदर था कि कोई भी पार्टी नेपाल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की माओवादियों की कोशिश के समर्थन में टूटकर नहीं आई। प्रधानमंत्री नेपाल को मजबूर करने के लिए माओवादी तीखे भाषणों और सड़कों पर उतर आए। पहले पांच महीने तो उन्होंने संसद का बहिष्कार और उसे ठप किया।

उससे भी बात नहीं बनी तो सीधा कार्रवाई करते हुए मई की शुरुआत में अनिश्चितकालीन राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल कर दी। उन्हें लगता था कि इसके बाद जनता विद्रोह कर देगी और सरकार गिर जाएगी। लेकिन हुआ यह कि योजना व तैयारी के साथ आयोजित उनकी मई दिवस रैली पर काठमांडु के दरबार चौक में आयोजित स्वत:स्फूर्त शांति सभा भारी साबित हुई। आम हड़ताल से मकसद नहीं सधा। नेपाल सरकार तो नहीं ही झुकी, देश भर में माओवाद-विरोधी भावना गहराने लगी। लोग कहने लगे कि माओवादी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ने पिछले वर्ष गंवाई प्रधानमंत्री की कुर्सी वापस पाने के अपने निजी एजेंडे के लिए पार्टी और समाज दोनों को बंधक बना लिया है। अंतत: हड़ताल वापस लेनी पड़ी।

जून 2010 के घटनाक्रम को लेकर खुद माओवादी नेताओं में मतभेद उभरने लगे। पार्टी ने तय किया कि वह सरकार के बजट का समर्थन नहीं करेगी। राष्ट्रपति यादव ने सभी राजनीतिक दलों से कहा है कि वे सरकार के नेतृत्व के लिए सर्वानुमत उम्मीदवार 7 जुलाई तक खोज लें। इस समय सीमा में यह हो पाना अब संभव दिखाई नहीं देता। संविधान की रचना के लिए बेहतर यही है कि सभी दलों की राष्ट्रीय सरकार सत्ता में आए, लेकिन साफ है कि बहुमत-प्राप्त गठबंधन सरकार ही बन सकती है। संभावना कम है कि अन्य बड़ी पार्टियां यूसीपीएन (माओवादी) को गठबंधन का नेतृत्व सौंपने पर राजी होंगी। बावजूद इसके कि यह सदन में 38 फीसदी उपस्थिति के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। अन्य दल माओवादियों को समर्थन देने से इसलिए हिचकते हैं क्योंकि उन्होंने अपने सैन्य और अर्धसैन्य संगठनों को कायम रखा है। 30 जून, 2010 को माधव कुमार नेपाल ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

बहन के प्रेम-प्रसंग से नाराज भाइयों ने युवक की हत्या की


भोपाल. राजधानी में एक बार फिर ऑनर किलिंग का मामला सामने आया है। बहन के प्रेम-प्रसंग से नाराज भाइयों ने युवक की हत्या कर उसकी लाश कलियासोत नदी में फेंक दी थी। पुलिस ने लड़की समेत पांच लोगों के खिलाफ हत्या, मारपीट और हत्या की साजिश रचने का मामला दर्ज किया है। बुधवार शाम कमलानगर पुलिस को कलियासोत डेम के पास शिवमंदिर के पीछे एक युवक की लाश मिली थी। मृतक के दाहिने हाथ पर देवराज लिखा था।



शॉर्ट पीएम रिपोर्ट में पता चला कि उसकी मौत चोट लगने से हुई थी। युवक की शिनाख्त सीहोर के धावला माता निवासी देवराज परमार पिता रामरतन परमार (२क्) के रूप में हुई। देवराज ग्यारहवीं का छात्र है। उसके जीजा फूलसिंह ने पुलिस को बताया कि पिछले दो-तीन साल से देवराज और उसकी सहपाठी रश्मि मेवाड़ा (बदला हुआ नाम) का प्रेम प्रसंग चलता था। यही बात रश्मि के घर वालों को नागवार गुजरी और उसके भाइयों ने देवराज को पीटकर डेम के पास फेंक दिया। पुलिस ने पांच लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।



रश्मि एक बड़े घर की लड़की थी, जबकि देवराज एक मामूली किसान का बेटा। एक दिन रश्मि के परिजनों को दोनों के बीच गहरी दोस्ती की भनक लग गई। इसके बाद लड़की का भाई संजय जुलाई महीने में उसे लेकर भोपाल आ गया था, लेकिन यहां भी दोनों की बात फोन पर होती रहती थी।







पुलिस के मुताबिक रश्मि ने 25 अक्टूबर को फोन करके देवराज को सीहोर से बुलाया था। यह बात भी फूल¨सह ने ही पुलिस को बताई है। देवराज, फूलसिंह के मोबाइल पर ही रश्मि से बात किया करता था। फूलसिंह ने पुलिस को बताया है कि रश्मि ने फोन पर देवराज से कहा था कि यदि तुम नहीं आए तो मैं आत्महत्या कर लूंगी। यह सुनते ही देवराज तत्काल भोपाल के लिए रवाना हो गया।





देवराज यहां कोलार स्थित बंगला नंबर ७, सीआई व्यू कॉलोनी पहुंचा जहां रश्मि अपने भाइयों के साथ रहती थी। पुलिस के मुताबिक यहां पहुंचते ही रश्मि के भाइयों ने उसे बंधक बना लिया। दिनभर बंधक बनाने के बाद देर रात आरोपियों ने देवराज के साथ जमकर मारपीट शुरू कर दी। चीख-पुकार की आवाज सुनकर पड़ोसी भी बाहर आ गए। रश्मि के भाइयों ने पड़ोसियों को बताया कि घर में चोर घुस गया था, जिसे हमने पकड़ लिया है। इसके बाद आरोपी उसे कलियासोत डेम ले गए और वहां उसे फेंक दिया। इसके बाद उन्होंने घर में चोरी होने का आवेदन कोलार थाने में दिया।







जांच में खुलासा होने के बाद कमला नगर पुलिस ने जीरो पर पांच लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर केस डायरी कोलार पुलिस को सौंप दी है। आरोपियों में रश्मि मेवाड़ा (बदला हुआ नाम) उसके भाई संजय मेवाड़ा, सुरेश मेवाड़ा, विनय मेवाड़ा और उसकी भाभी सलोनी मेवाड़ा शामिल हैं। इस मामले में सभी आरोपी अभी फरार हैं।

Tuesday, October 26, 2010

मुझे भारत पर तरस आता है : अरुंधति रॉय


श्रीनगर। बुकर विजेता अरुंधति रॉय एक के बाद एक बयान देकर अपने लिए मुसीबत खड़ी करती जा रही है, कश्मीर को भारत का हिस्सा न बताकर अपने लिए मुसीबत खड़ी करने वाली अरुंधति रॉय ने फिर कहा है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है और न ही कुछ गलत कहा है, उन्हें उस मुल्क पर दया आती है जहां इंसाफ की बात करने वालों को जेल में डाला जाता है। उन्होंने कहा कि उनकी ओर से कश्मीरियों के लिए सिर्फ इंसाफ की आवाज उठाई गई है। इसलिए मुझे भारत पर तरस आ रहा है।

कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली में हुर्रियत के कट्टरपंथी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी के साथ एक कार्यक्रम में कथित तौर पर कश्मीर की आजादी के पक्ष में भाषण दिया था। इसी के मद्देनजर उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किए जाने की संभावना जताई जा रही है।


इन दिनों श्रीनगर में मौजूद अरुंधति ने मंगलवार सुबह एक बयान जारी कर कहा, "मैं इस वक्त श्रीनगर में हूं। आज के अखबारों में लिखा गया है कि मैं गिरफ्तार हो सकती हूं। मैंने हाल ही में कश्मीर पर आयोजित एक सभा में जो कुछ कहा, उसके लिए मेरे ऊपर देशद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। मैंने वही बात ही थी जो यहां (कश्मीर) के लाखों लोग रोजाना करते हैं। मैंने इंसाफ की बात की थी।"

उन्होंने कहा, "मुझे उस राष्ट्र पर दया आती है जहां लेखकों को अपने विचार व्यक्त करने से रोका जाता है। इस बात के लिए भी दया आती है कि इंसाफ की बात करने वालों को जेल में भेजने की जरूरत पड़ती है। दूसरी ओर साम्प्रदायिक हिंसा करने वाले, नरसंहार करने वाले, कारपोरेट घोटालेबाज, लुटेरे, बलात्कारी और गरीबों पर जुल्म ढाहने वाले खुले घूम रहे हैं। मुझे इस पर दया आती है।"

भोपाल प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी खतरे में है

नदियों तक पानी पहुंचाने वाले 50 फीसदी तटीय क्षेत्र खत्म, एक अध्यन में खुलासा

भोपाल प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी खतरे में है। इसकी वजह है नर्मदा के तटीय क्षेत्रों का तेजी से खत्म होना। इन तटीय क्षेत्रों से ही पानी नर्मदा नदी में पहुंचता है, लेकिन एक ताजा अध्ययन के अनुसार प्रदेश में नर्मदा के 50 फीसदी तटीय क्षेत्र नष्ट हो चुके हैं। ऐसा इन तटीय क्षेत्रों पर अतिक्रमण की वजह से हुआ है।

तटीय क्षेत्र नदियों के लिए ‘दिल’ का काम करते हैं। जिस तरह दिल पूरे शरीर में ऑक्सीजन की पंपिंग करते हैं, उसी तरह ये तटीय क्षेत्र बारिश के पानी को नदियों तक पहुंचाते हैं। इनके नष्ट होने पर किसी भी नदी या तालाब की भराव क्षमता सीधे तौर पर प्रभावित होती है।

हाल ही में बरकतउल्ला विवि के सरोवर विज्ञान विभाग द्वारा नर्मदा नदी के तटीय क्षेत्रों पर हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इसके आधे से ज्यादा तटीय क्षेत्र अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। कमोबेश ऐसी ही स्थिति प्रदेश की बाकी नदियों और तालाबों की भी है।


क्या है वजह?

नदी के तटीय क्षेत्रों में झाड़ियां और छोटे पेड़ होते हैं जो बहकर आने वाले बरसात के जल को अपने में समेट लेते हैं। ये क्षेत्र नदियों और तालाबों के आकार के हिसाब से तट से लगे 15 से 100 मीटर तक के क्षेत्रफल में फैले हो सकते हैं। यहां से पानी रिसकर नदियों और जलाशयों में पहुंचता है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में झाड़ियां और छोटे पेड़ों को साफ करके वहां खेती की जा रही है। इस वजह से तटीय क्षेत्र खत्म हो गए। शहरी क्षेत्रों में निर्माण कार्यों की वजह से तटीय क्षेत्र बड़ी तेजी से समाप्त होते जा रहे हैं। नर्मदा नदी किस तरह से सिकुड़ती जा रही है, इसकी पुष्टी प्रदेश के जल संसाधन विभाग के डाटा सेंटर के आंकड़ों से भी होती है।


बरगी से होशंगाबाद का क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित
इस बारे में भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल बताते हैं कि नर्मदा के तटीय क्षेत्रों का क्षरण बिल्कुल सही बात है। उन्होंने अपनी नर्मदा यात्रा के दौरान कई तटीय क्षेत्रों में खेती और अतिक्रमण होते देखा है। नर्मदा को बचाने और उसके सफाई अभियान में सक्रिय भूमिका निभाने वाले पटेल कहते हैं कि पहले नदियों के आसपास रंजड़ी (छोटा जंगल) होता था। नर्मदा के तटीय क्षेत्र ही 500 से 1000 मीटर तक हुआ करते थे। लेकिन अब यह सिमटकर नदी के बिल्कुल किनारे तक आ गए हैं। रेत के उत्खनन से सबसे ज्यादा प्रभावित बरगी से होशंगाबाद का क्षेत्र है जहां नदी का सबसे अधिक कटाव हुआ है। इस वजह से नर्मदा की जल भराव क्षमता भी प्रभावित हुई है। ऐसे सिकुड़ रही नर्मदा

नर्मदा नदी किस तरह से सिकुड़ती जा रही है, इसकी पुष्टि प्रदेश के जल संसाधन विभाग के डाटा सेंटर के आंकड़ों से भी होती है। इसके अनुसार वर्ष २क्क्६ में नर्मदा नदी में पानी का अधिकतम औसत जल स्तर समुद्र तल से 323 मीटर था, जो 2009 में घटकर 308 मीटर रह गया। नदी के उद्गम स्थलों पर स्वस्थ तटीय क्षेत्रों की सबसे अधिक जरूरत होती है। अगर अब भी हम स्थिति को संभालना चाहें तो तटीय क्षेत्रों को बचाकर नई शुरुआत कर सकते हैं।

डॉ.विपिन व्यास, अध्ययनकर्ता, बरकतउल्ला विवि, भोपाल


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Bhasker who was supposed to make a love story titled

Director Bhasker who was supposed to make a love story titled Orange with Ramcharan in lead, was initially given 20 crores budget.
But bhasker spent almost Rs.35 crores to make this movie.
Magadheera, which was made with extensive graphics and periodical sets+costumes was actually made with Rs.38 crores budget.
The reason behind increased budget was said to be unplanned and unprepared director ‘Bhasker’.
The unit went to malaysia twice and australia thrice to shoot scenes and all those could have been done in single trips to those countries.
Chiranjeevi wondered how can a love story require that much budget.
Bhasker changed cinematographer, spent too much time to scout locations and also changed script twice in between shooting.
Chiranjeevi was unhappy with this unprofessional attitude.

Chiranjeevi was also worried about Charan trying bungee jumping from 4000 feet, whereas Chiru tried it at 250 feet height in Baavagaaru

मत्स्यजीवियों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय ने गत पंद्रह सितंबर 2010 को कोस्टल रेगुलेशन जोन (सीआरजेड) 2010 शीर्षक से जो अध्यादेश जारी किया है, उसमें देश के मत्स्यजीवियों के हितों की निर्मम तरीके से अनदेखी की गई है। सीआरजेड के लागू होने के बाद बंगाल के दो लाख और पूरे देश के एक करोड़ मत्स्यजीवी संकट में पड़ जाएंगे।

सीआरजेड की पांच सौ मीटर के भीतर आवासन परियोजनाओं से लेकर विशेष आर्थिक क्षेत्र व अन्य संयंत्रों को लाने के प्रस्ताव से लगता है कि अतीत की सारी गलतियों को वैधता देना इसका एक मकसद रहा है। इसमें किसी को भी संदेह नहीं है कि सीआरजेड के लागू होने के बाद समुद्र इलाकों खासतौर पर किनारों पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा।

समुद्र किनारों का क्षरण रोकना असंभव होगा। नए प्रस्ताव के मुताबिक अब हर समुद्र किनारे का नया मानचित्र बनाना होगा। उसके साथ ही नया कोस्टल जोन मैनेजमेंट प्लान भी बनाना होगा। इस प्रक्रिया में कई समुद्र किनारों के नाम भी बदले जाने की संभावना है। हो सकता है कि सीआरजेड-1 का नाम सीआरजेड-2 हो जाए। वैसे यह नाम परिवर्तन इतना आसान नहीं होगा। यह परिवर्तन सीआरजेड 1991 के नियमों के तहत ही किया जा सकेगा।

नया अध्यादेश दरअसल सीआरजेड 1991 का परिवर्तित रूप है। 1991 के कानून में संशोधन कर नए परिवर्तन नहीं लाए गए हैं, बल्कि अध्यादेश जारी कर उसे बदला गया है। नए अध्यादेश में एक नया शब्द जोड़ा गया है- विपद रेखा। यह नहीं बताया गया है कि इस शब्द का व्यवहार क्यों किया गया है।

मत्स्यजीवियों ने जिस शब्द को बाहर रखा था, नया शब्द देकर सीआरजेड 2010 में उसे वापस लाया गया है। विपद रेखा जब जमीन की तरफ पांच सौ मीटर आ जाएगी तो वह इलाका सीआरजेड के नियंत्रण में आ जाएगा। विपद रेखा जब समुद्र की तरफ जाएगी तो वह इलाका सीआरजेड के नियंत्रण में नहीं माना जाएगा। कहने की जरूरत नहीं कि पर्यावरण व वन मंत्रालय के साथ विश्व बैंक का जो करार हुआ था, उसे वैधता देने के लिए ही 500 मीटर क्षेत्र की विपदा रेखा को जोड़ा-घटाया गया है।

नए अध्यादेश में जल क्षेत्र को जोड़ा गया है पर उसके लिए यह नहीं दर्शाया गया है कि उसका अलग से अर्थतंत्र कैसे विकसित किया जाएगा। स्वामीनाथन कमेटी ने भी जल क्षेत्र में पर्यावरण की रक्षा पर जोर दिया था पर नए अध्यादेश में जल क्षेत्रों में इसके लिए अलग से अर्थतंत्र का बंदोबस्त नहीं किया गया है। मत्स्यजीवी सदा जल क्षेत्र के पर्यावरण की रक्षा के लिए चिंतित रहे हैं। उनकी चिंताओं पर नए अध्यादेश ने चुप्पी ओढ़ ली है।

नए अध्यादेश में कुछ राज्यों के समुद्र इलाकों को अतिरिक्त महत्व दिया गया है। अतिरिक्त महत्व देने का कारण नहीं बताया गया है। यह नहीं बताया गया है कि मुंबई, गोवा, केरल व सुंदरवन को विशेष सुविधाएं किस आधार पर दी जाएंगी? मुझे तो लगता है कि पर्यावरण व वन मंत्रालय की मंशा नए अध्यादेश को कड़ाई से लागू कर मैनेजमेंट प्लान की आड़ में समुद्र इलाकों को बड़े उद्योगपतियों के हवाले करना है और इसके लिए मत्स्यजीवियों को कई सुयोग-सुविधा नहीं देने का जैसे संकल्प कर लिया गया है।

समुद्र किनारों का चेहरा सुरक्षित रखने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि मत्स्यजीवियों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। समुद्र इलाकों में मछली मारने के अधिकार से मत्स्यजीवियों को कदापि वंचित नहीं रखा जाना चाहिए। सीआरजेड-3 में दो सौ मीटर क्षेत्र में मछली मारने का अधिकार मत्स्यजीवियों को दिया गया है पर सीआरजेड-1 और सीआरजेड-2 से उन्हें बहिष्कृत करना निर्मम होगा।

उनके घर बनाने के अधिकार में भी कटौती की गई है। यदि कोई कानून एक बड़ी आबादी के हितों को रौंदते हुए बनता है तो उसे जनता ठुकरा देती है। मुझे यह देखकर राहत मिली है कि मत्स्यजीवियों के संगठन नेशनल फिशवर्कर्स फोरम ने सीआरजेड 2010 के खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा है। सभी जन संगठनों को उनके आंदोलन का समर्थन करना चाहिए।


समुद्र किनारों का चेहरा सुरक्षित रखने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि मत्स्यजीवियों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। समुद्र इलाकों में मछली मारने के अधिकार से मत्स्यजीवियों को कदापि वंचित नहीं रखा जाना चाहिए। केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय ने गत पंद्रह सितंबर 2010 को कोस्टल रेगुलेशन जोन (सीआरजेड) 2010 शीर्षक से जो अध्यादेश जारी किया है, उसमें देश के मत्स्यजीवियों के हितों की निर्मम तरीके से अनदेखी की गई है। सीआरजेड के लागू होने के बाद बंगाल के दो लाख और पूरे देश के एक करोड़ मत्स्यजीवी

Friday, October 22, 2010

प्लेबॉय मॉडल सारा जीन अंडरवुड का प्रेम योग तो समझ में आया लेकिन ये कैसा योग, जिसमें बदन की खुलकर नुमाइश की गई हो।


प्लेबॉय मॉडल सारा जीन अंडरवुड का प्रेम योग तो समझ में आया लेकिन ये कैसा योग, जिसमें बदन की खुलकर नुमाइश की गई हो।लेकिन, सच्चाई यही है कि सारा एक वीडियो में पूरी तरह से नग्न होकर योग की विभिन्न मुद्राओं में दिखाई दे रही हैं। भारतीय समुदाय में सारा के इस भौतिकवादी योग को लेकर भारी रोष है।एस शोबिज ऑनलाइन ने खबर दी है कि सारा का योग से जुड़ा यह कामोत्तेजक वीडियो प्लेबॉय की वेबसाइट पर उपलब्ध है। सारा के इस कृत्य से कई लोगों को ठेस पहुँची है।हिन्दुओं के नेता राजन जेड ने प्लेबॉय के कर्ताधर्ताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि योग के इस तरह से दुरुपयोग को लेकर हिन्दू काफी विचलित हैं। हमारा उनसे कहना है कि वे योग से जुड़े सभी उत्पादों, लेखों और वीडियो को अपनी वेबसाइट से हटा लें।इतना ही नहीं योग संबंधी इस वीडियो के प्रचार के लिए वेबसाइट पर जो योग मुद्रा में नग्न तस्वीरें जारी की गई हैं उनका शीषर्क ‘इरोटिक न्यूड योग’, ‘टोटली न्यूड योग’ और ‘इरोटिक योग फॉर कपल्स’ दिया गया है। इस नग्न एवं फूहड़ योग को एस शोबिज डॉट कॉम पर देखा जा सकता है। तो समझ में आया लेकिन ये कैसा योग, जिसमें बदन की खुलकर नुमाइश की गई हो।लेकिन, सच्चाई यही है कि सारा एक वीडियो में पूरी तरह से नग्न होकर योग की विभिन्न मुद्राओं में दिखाई दे रही हैं। भारतीय समुदाय में सारा के इस भौतिकवादी योग को लेकर भारी रोष है।एस शोबिज ऑनलाइन ने खबर दी है कि सारा का योग से जुड़ा यह कामोत्तेजक वीडियो प्लेबॉय की वेबसाइट पर उपलब्ध है। सारा के इस कृत्य से कई लोगों को ठेस पहुँची है।हिन्दुओं के नेता राजन जेड ने प्लेबॉय के कर्ताधर्ताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि योग के इस तरह से दुरुपयोग को लेकर हिन्दू काफी विचलित हैं। हमारा उनसे कहना है कि वे योग से जुड़े सभी उत्पादों, लेखों और वीडियो को अपनी वेबसाइट से हटा लें।इतना ही नहीं योग संबंधी इस वीडियो के प्रचार के लिए वेबसाइट पर जो योग मुद्रा में नग्न तस्वीरें जारी की गई हैं उनका शीषर्क ‘इरोटिक न्यूड योग’, ‘टोटली न्यूड योग’ और ‘इरोटिक योग फॉर कपल्स’ दिया गया है। इस नग्न एवं फूहड़ योग को एस शोबिज डॉट कॉम पर देखा जा सकता है।

नींद में सेक्स की बात भले अविश्वसनीय सी लगती हो, लेकिन ऐसे कुछेक मामले सामने आए हैं जिनके बारे में वैज्ञानिकों ने पहली बार पता लगाया है कि इनका कारण आ

नींद में सेक्स की बात भले अविश्वसनीय सी लगती हो, लेकिन ऐसे कुछेक मामले सामने आए हैं जिनके बारे में वैज्ञानिकों ने पहली बार पता लगाया है कि इनका कारण आनुवांशिक है।गेरार्ड कैनेटी की अगुवाई में विक्टोरिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने यह दावा एक पिता-पुत्र की जोड़ी की यौन संबंधी असामान्य स्थिति (सेक्सोमेनिया) के आधार पर किया है। वैज्ञानिकों का यह दल क्राइस्टचर्च में होने वाले ‘स्लीप कॉन्फ्रेंस' में सैक्सोमेनिया से जुड़े इस मामले को पेश करेगा।प्रोफेसर कैनेडी के हवाले से ‘सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड’ ने कहा है कि दुनिया में यह पहला मामला हो सकता है जिसमें हम यह कह सकते हैं कि यह एक ही परिवार की अलग-अलग पीढ़ियों में यह रोग चला जाता है।वैज्ञानिकों के अनुसार पिता और पुत्र दोनों अपनी पहली नींद में सोने के दौरान 50 से 70 मिनट बाद जब सपना देखने की अवस्था आने से ठीक पहले यौन क्रियाएँ करना शुरू कर देते हैं।नींद में ही यौन क्रिया को लेकर वे इतना उत्तेजित रहते हैं कि उन्हें इस बात का खयाल नहीं रहता कि उनका सहयोगी किस अवस्था में है और उसे यौन संबंधी जरूरत है या नहीं। यहाँ तक कि उन पर चीखने-चिल्लाने या पीटने का भी कोई असर नहीं होता। (भाषा

पेगन धर्म को मानने वालों को जर्मन के हिथ मूल का माना जाता है


दुनिया के जितने भी प्राचीन धर्म हैं उनमें तीन बातें सदा से रही- मूर्ति पूजा, प्रकृति पूजा और बहुदेववाद। वर्तमान में जो भी धर्म हैं उक्त धर्मों में यह तीनों ही बातें किसी न किसी रूप में विद्‍यमान है। बहुत से धर्मानुयायी इन्हें बुराई मानते हैं, लेकिन इस पर विचार किए जाने की आवश्यकता है कि आखिर इसमें बुराई क्या है?

वैदिक धर्म के लोग प्रारंभ में ईश्वर, प्रकृति और बहुत सारे देवी-देवताओं की स्तुति करते थे बाद में जब इस धर्म में पुराणपंथी प्रवृतियों का प्रचलन बढ़ा तो मूर्ति पूजा भी शुरू हो गई। योरप में मूर्ति पूजकों के धर्म को पेगन धर्म कहा जाता था।

पेगन धर्म को मानने वालों को जर्मन के हिथ मूल का माना जाता है, लेकिन यह रोम, अरब और अन्य इलाकों में भी बहुतायत में थे। हालाँकि इसका विस्तार यूरोप में ही ज्यादा था। एक मान्यता अनुसार यह अरब के मुशरिकों के धर्म की तरह था और इसका प्रचार-प्रसार अरब में भी काफी फैल चुका था। यह धर्म ईसाई धर्म के पूर्व अस्तित्व में था।

ईसाई धर्म के प्रचलन के बाद इस धर्म के लोग या तो ईसाई बनते गए या यह अपने क्षेत्र विशेष से पलायन करने को मजबूर हो गए। माना जाता है कि उनके धार्मिक ग्रंथ को जला डाला गया। उन्होंने जो भी कहा, लिखा या भोगा आज वह किसी भी रूप में मौजूद नहीं है। यह इतिहासकारों की खोज का विषय बन गया है।


WDईसाईयत से पहले पेगन धर्म के लोगों की ही तादाद ज्यादा थी और वे अग्नि और सूर्य आदि प्राकृतिक तत्वों के मंदिर बनाकर उसमें उनकी मूर्तियाँ स्थापित करते थे जहाँ विधिवत पूजा-पाठ वगैरह होता था।

पेगन धर्म के लोग यह मानते थे कि यह ब्रह्मांड ईश्‍वर की प्रतिकृ‍ति है इसीलिए वे प्रकृति के सभी तत्वों की आराधना करते थे। चाहे वृक्ष हो, पशु हो, पहाड़, नदी, पक्षी हो, औरत हो, महान मनुष्य हो या निर्जिव वस्तु। वे प्रकृति, मौसम, जीवन और मृत्यु के चक्र को मानकर उनके अनुसार ही जीवन जीते थे।

यह ठीक हिंदुओं के पौराणिक पार्ट की तरह है। यह भी हो सकता है कि यह हिंदू धर्म की एक शाखा रही हो। हालाँकि यह अभी शोध का विषय है।

आश्विन मास की शरद पूर्णिमा को आदि कवि भगवान वाल्मीकि का जन्म दिवस मनाया जाता है।



आश्विन मास की शरद पूर्णिमा को आदि कवि भगवान वाल्मीकि का जन्म दिवस मनाया जाता है। भगवान वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की जो संसार का पहला लोककाव्य है। एक दिन अनायास ही विहार करते हुए क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक पक्षी को व्याध ने मार डाला। पक्षी की चीत्कार सुन, वहीं पर गिरता देख, उन्हें इतना दुख हुआ कि उनके मुख से एक छंद निकल पड़ा, फिर उसी छंद में उन्होंने नारद से सुना हुआ श्रीराम का उज्ज्वल चरित्र निबद्ध किया।

श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग किया तो देवर लक्ष्मण ने आम के पास गर्भवती सीता जी को छोड़ दिया था। ऋषि वाल्मीकि ने सीता जी को अपने आश्रम में रखा, जहाँ उन्होंने लव और कुश को जन्म दिया। उन्होंने दोनों बच्चों का लालन-पालन किया और महारानी सीता की जीवन लीला सुनाई। बच्चों के मधुर स्वर द्वारा श्लोकों में संगीतमय राम-कथा सबके मन को मोहित करती थी। एकतारे पर दोनों भाई वाल्मीकि के निर्देशानुसार गायन करते थे।

घोर तपस्या एवं भगवान के ध्यान में इतना मग्न हो गए कि उनके शरीर पर चीटियों ने अपना घर बना लिया। उनके संपूर्ण शरीर पर बॉबी बन गई इसलिए उन्हें महातपस्वी भगवान वाल्मीकि के नाम से पुकारा जाने लगा। लोग उन्हें आज तक पूजते हैं। जन्मदिन पर शोभा यात्रा निकालते हैं। मंदिरों में पूजा पाठ कीर्तन आदि करते हैं।


NDएक दिन लव-कुश दोनों मित्रों के साथ बाहर खेल रहे थे। इतने में एक श्याम वर्ण का घोड़ा आया। उसके मस्तक पर स्वर्ण पट्टिका थी जिस पर लिखा था यह अयोध्या के राजा श्रीराम का घोड़ा है जो श्रीराम को राजा न माने, वह घोड़ा पकड़ ले और पीछे आ रही सेना से युद्ध करे।

दोनों बालकों ने घोड़े की लगाम पकड़ ली। सेना के साथ विकट युद्ध करने लगे। सेनापति शत्रुघ्न वहाँ आए और बच्चों की वीरता देख चकित हो गए। तभी सीता माता कुटिया से बाहर आईं। इस प्रकार अयोध्या की सारी सेनाओं बंधन में आने के बाद स्वयं राम अश्वमेघ का घोड़ा छुड़ाने के लिए वहाँ पहुँचते हैं और भीषण युद्ध होता है। इसी बीच सीता जी वहाँ पहुँचती हैं और इस रहस्य से पर्दा उठता है कि लव-कुश श्रीराम और सीता के पुत्र हैं।


NDवाल्मीकि रामायण में तत्कालीन भारतीय समाज का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत है। भारत का आचार विचार सदैव से आदर्श और मर्यादित रहा है। धर्म से अनुशासित होने के कारण सारे संस्कार तथा समय संपन्न होते थे। वेद का अध्ययन और अध्यापन सर्वव्यापी था। रामायण महाकाव्य को तत्कालीन समाज ने हृदय से स्वागत किया। रामायण गान उनके लिए नया, चमत्कारी और सुख देने वाला अनुभव सिद्ध हुआ।

हिंदू संस्कृति के सभी क्षेत्रों में रामायण का विशेष प्रभाव पड़ा। वाल्मीकि जी के चरित्र नायक श्रीराम की पूजा हिंदू धर्म का अमिट अंग है। भगवान वाल्मीकि जी से प्रभावित होकर ही रामानुज, रामानन्द, कबीर, तुलसीदास ने श्रीराम को एक आदर्श राजा और ईश्वरीय अवतार के रूप में प्रस्तुत किया। यह देश-विदेश में भारतीय संस्कृति का आधार स्तंभ बन गए। भगवान वाल्मीकि द्वारा रचित राम कथा महाकाव्य एवं उसकी शिक्षा समाज को सदैव प्रेरित करती रहेगी।

नारी सम्मान, शक्ति, शास्त्र, शासन व्यवस्था, राष्ट्र की सुरक्षा, अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना एवं साहित्य की साधना इत्यादि अनेक प्रकार की प्रेरणा हमें भगवाना वाल्मीकि के रामायण से प्राप्त होती है। (दिल्ली नईदुनिया)

Thursday, October 21, 2010

माफिया की गिरफ्त में मध्यप्रदेश की उच्च शिक्षा

माफिया की गिरफ्त में मध्यप्रदेश की उच्च शिक्षा
भोपाल 11 अक्टूबर. चंद आपराधिक प्रवृत्ति के शिक्षाविदों और राजनेताओं की मिलीभगत से जन्मे शिक्षा माफिया ने देश में उच्च शिक्षा के माहौल को धराशायी कर दिया है. इसकी छोटी तस्वीर राजधानी भोपाल के बरकतउल्ला विवि में सहज तौर पर देखी जा सकती है. यहां कब्जा जमाए बैठे माफिया की कारगुजारियां देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह समाज को अंधे कुएं में धकेलने की मुहिम चलाई जा रही है. यहां के पाठ्यक्रमों की मान्यता खतरे में है.कई पाठ्यक्रमों की मान्यता तो समाप्त हो चुकी है. इसके बावजूद विवि प्रशासन बाकायदा झूठे दस्तावेज गढ़कर समाज को धोखा देने का प्रयास कर रहा है. मौजूदा कुलपति निशा मिश्रा इन सभी षड़यंत्रों से अनजान बनी हुई हैं.
ताजा मामला विवि में चल रहे शिक्षा के पाठ्य क्रमों की कलई खोल रहा है. विवि के पास बीएड का पाठ्यक्रम चलाने की पात्रता ही नहीं है इसके बावजूद विवि से जुड़े ढेरों कॉलेज धड़ल्ले से बीएड की डिग्रियां बेच रहे हैं. हर डिग्री करीब 80 हजार से एक लाख और सवा लाख रुपए तक में बेची जा रही है. इस व्यवस्था में सुधार करने के प्रयासों पर यहां का माफिया तरह तरह के अनर्गल आरोप लगा रहा है.
इन दिनों यहां जो विवाद गहरा रहा है उसकी नींव मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के एक पत्र से पड़ी थी. सुधार के इन प्रयासों को विवि में कब्जा जमाए बैठा माफिया शिक्षकों की आपसी प्रतिद्वंदिता का मामला बताने का प्रयास कर रहा है. जबकि यह हकीकत में मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के हस्तक्षेप के कारण यह स्थिति निर्मित हुई है. उच्च शिक्षा विभाग के अवर सचिव डी.एस.परिहार के हस्ताक्षरों से नौ फरवरी 2010 को एक आदेश बरकतउल्ला विवि के कुलसचिव संजय तिवारी को भेजा गया था. इस पत्र में उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की टीप संलग्न की गई थी. जिस आदेश में कहा गया था कि प्रो.आशा शुक्ला को अतिरिक्त प्रभार देकर बीएड विभाग का विभागाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव भेजा जाए.
इस पत्र का विवि प्रशासन ने तत्काल कोई जवाब नहीं दिया और बीएड के विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.हेमंत खंडाई ,संचालक प्रो.कालिका यादव, और विभागाध्यक्ष प्रो.नीरजा शर्मा से प्रो.आशा शुक्ला के बारे में राय व्यक्त करने के निर्देश दिए. विभाग के संचालक बरकतउल्ला विवि शिक्षक संगठन के अध्यक्ष भी हैं और उनके ही मार्गदर्शन में यहां निजी कॉलेजों से बीएड कराने का पूरा माफिया संचालित होता है. इन तीनों प्रभारियों का शिक्षकों के शिक्षण और प्रशिक्षण से कोई लेना देना नहीं है. कालिका यादव अर्थ शास्त्र में एम.ए. हैं,जबकि नीरजा शर्मा मनोविज्ञान में एम.ए. हैं. हेमंत खंडाई एम.एड ही नहीं हैं. यहां पदस्थ पूरा स्टाफ अस्थायी है और उसके पास पर्याप्त शैक्षणिक योग्यता ही नहीं है.
इन सभी शिक्षकों को जब ये महसूस हुआ कि मध्यप्रदेश का उच्च शिक्षा विभाग उनके हाथों से काली कमाई का झरना छीनना चाह रहा है तो उन्होंने प्रो.आशा शुक्ला के बारे में अनर्गल तथ्यों से भरी एक शिकायत कुलसचिव को भेजी इस पत्र की प्रति जब प्रो. आशा शुक्ला को मिली तो उन्होंने सूचना के अधिकार अधिनियम में बीएड विभाग के बारे मे जानकारी मांगी जिससे विभाग की असलियत का खुलासा हुआ है. जिन शिक्षकों के पास शिक्षकों के प्रशिक्षण की आधारभूत योग्यता नहीं है वे कैसे यह विभाग चला रहे हैं. इन जानकारियों के खुलासे के बाद प्रो.आशा शुक्ला ने विवि के तीनों शिक्षकों को एक कानूनी नोटिस थमा दिया है जिससे विवि प्रशासन हक्का बक्का है. विवि के सूत्र इस मामले को शिक्षकों की आपसी प्रतिद्वंदिता बताकर मामले की लीपापोती करने की कोशिश में जुटा है जबकि मामले की गंभीरता इससे कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण है.
प्रो. आशा शुक्ला ने जो नोटिस दिया है उसमें उन्होंने अपने बारे में की गई शिकायत का बिंदुवार हवाला दिया है. विवि के महिला अध्ययन केन्द्र में विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत प्रो.आशा शुक्ला ने अपने कानूनी सलाहकार एडव्होकेट रजनीश बरया के माध्यम से जो नोटिस भेजा है उसमें कहा गया है कि तीनों शिक्षकों ने मनगढ़ंत तौर पर जो आरोप लगाए हैं उनके बारे में यथायोग्य माफी मांगे अन्यथा वे अपनी पक्षकारा को हुई मानसिक प्रताड़ना के लिए उन पर पांच लाख रुपए का हरजाना देने का दावा अदालत में प्रस्तुत करेंगे.
प्रो.आशा शुक्ला का कहना है कि अव्वल तो उन्होंने विवि में शिक्षा विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिए जाने का कोई आवेदन उच्च शिक्षा विभाग को दिया ही नहीं था. इसके बावजूद यदि माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी ने कोई आदेश दिया था तो उसके जवाब में उनके विरुद्ध अनर्गल आरोपों से भरा षड़यंत्र किया जा रहा है. उन्होंने कुलपति और अन्य शिक्षकों के भेजे पत्र में अपने ऊपर लगाए गए आरोपों का जवाब भी दिया है.
उन्होंने बताया कि उनकी नियुक्ति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से दसवीं पंचवर्षीय योजना में मंजूर एक परियोजना में महिला अध्ययन केन्द्र की प्रभारी के संचालक के तौर पर प्रोफेसर वेतनमान में धारा 49 के अंतर्गत की गई थी. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में भी इस परियोजना को जारी रखा गया. बाद मे जब परियोजना समाप्त हो गई तो कार्यपरिषद के निर्देशों के आधार पर प्रो.शुक्ला की सेवाएं विवि में संविलियित कर ली गईं. बाद में विवाद उठने पर माननीय उच्च न्यायालय ने भी इस प्रक्रिया को उचित ठहराया था.
प्रो.आशा शुक्ला ने हवाबाग महिला महाविद्यालय जबलपुर, शिक्षा विभाग कानपुर विवि और केन्द्रीय हिंदी संस्थान आगरा जैसी संस्थाओं में लगातार 16 सालों तक बी.एड.,एम.एड, और एम.फिल. जैसे पाठ्यक्रमों के लिए अध्यापन का कार्य किया है. उनके निर्देशन में पांच पीएचडी, 16 एमफिल, और 30एम.एड. स्तरीय शोध पत्र पूरे हो चुके हैं. अध्यापक शिक्षा पर 2 मोनो ग्राफ समेत कई शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं. वे अमेरिका में 1994 में हुई अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा गोष्ठी में अपना शोधपत्र भी पढ़ चुकी हैं.मप्र. भोज मुक्त विवि में वे शिक्षा विषय में शोध गाईड भी हैं. इससे पहले वे कानपुर विवि और रानी दुर्गावती विवि में भी शोध गाईड रह चुकी हैं. वे राष्ट्रीय शिक्षण प्रशिक्षण काऊंसिल (एन.सी.टी.ई.) में तीन सालों तक शोध अधिकारी भी रह चुकी हैं.एनसीटीई के नियमों के अनुसार निर्धारित पात्रता वाली वे विवि की एकमात्र शिक्षिका हैं जिसके पास एम.ए.,एम.एड.,एम.फिल.(शिक्षा),और पीएचडी(शिक्षा) जैसी उपाधियां हैं.
उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के निर्देशों को कचरे के डिब्बे मे डालने के लिए विवि प्रशासन ने जैसा षड़यंत्र रचा उसकी कलई वैसे ही खुल भी गई. मजेदार बात तो यह है कि इस खींचतान में उन पत्रों का भी खुलासा हो गया है जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि स्वयं कुलपति निशा मिश्रा भी इस घोटाले में आरोपों के घेरे में आ गईं हैं. एनसीटीई की मान्यता के लिए जो जानकारी विवि प्रशासन ने तैयार कराई उस पर कुलपति निशा मिश्रा के भी हस्ताक्षर करवा लिए गए थे. विवि के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि यह मंजूरी बीएड की डिग्रियां बेचने में जुटे कॉलेजों के संचालकों से प्राप्त धन के आधार पर ही दी गई थी. इसके बावजूद एनसीटीई ने विवि को दी गई मान्यता समाप्त कर दी और अपनी वेवसाईट से भी विवि का नाम हटा दिया.
विवि प्रशासन ने एनसीटीई को झूठी जानकारी भेजी जिसमें कहा गया कि डॉ.रश्मि चतुर्वेदी, सुश्री सोनिया स्थापक, श्रीमती लता बर्वे, श्रीमती पूजा कश्यप, डॉ.ममता सिंघई, श्रीमती अल्पना वर्मा, श्री सुनील सेन, आदि नियमित शिक्षक के बतौर कार्यरत हैं जबकि हकीकत में ये सभी शिक्षक केवल अस्थायी नियुक्ति के आधार पर पढ़ा रहे हैं.
हकीकत तो यह है कि इस पूरे कारोबार को शिक्षा माफिया अपनी ही रौ में चला रहा है. विद्यार्थी संगठनों को भी इस काले कारोबार में शरीक कर लिया गया है और बीएड की डिग्रियां बेचने का कारोबार धड़ल्ले से चलाया जा रहा है. सरकार ने शैक्षणिक कार्यों के लिए बीएड की अनिवार्यता तय कर दी है और तबसे ये डिग्रियां देश भर के विद्यार्थी मंहगे दामों पर खरीद रहे हैं. उच्च शिक्षा का बेड़ा गर्क करने में इस तरह सरकार और शिक्षाविद दोनों ही सहयोगी साबित हो रहे हैं. यदि भाजपा सरकार का उच्च शिक्षा विभाग इस काले कारोबार में कुछ सुधार करने की भूमिका बना रहा है तो उसे खुलकर आगे आना होगा और विश्विवद्यालयों की आड़ में चल रहे ज्ञान के इस काले कारोबार पर अंकुश लगाना होगा.

बिना आधार अयोग्य करार - दैनिक भास्कर से साभार
भोपाल. बीयू में प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग के तीन प्रोफेसरों द्वारा लिखा गया पत्र कुलसचिव के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। यह पत्र 30 मार्च 2010 को लिखा गया और इसमें प्रो. आशा शुक्ला को शिक्षण में कम अनुभवी बताने के साथ बूटा (बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन) का उपाध्यक्ष बनाना भी अवैधानिक बताया।
पड़ताल की तो इस पत्र को लिखने वजह के रूप में सामने आया फरवरी और मार्च में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा लिखी गई नोटशीट और अवर सचिव डी.एस. परिहार का पत्र। फरवरी 2010 में विभागीय मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा को नोटशीट भेजकर प्रो.आशा शुक्ला को बीएड का विभागाध्यक्ष बनाए जाने के लिए प्रस्ताव मांगा।
जब इसका जवाब नहीं मिला तो मार्च 2010 में अवर सचिव डीएस परिहार ने कुलसचिव को पत्र लिखकर पुन: प्रो.शुक्ला को बीएड का विभागाध्यक्ष बनाए जाने के लिए प्रस्ताव भेजने के लिए लिखा। दूसरे पत्र के बाद प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा के तीनों प्रोफेसर ने कुलसचिव को प्रो.शुक्ला के अयोग्य होने के साथ अन्य आरोप लगाते हुए पत्र लिखा।
इस पत्र के लिखे जाने के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने प्रो.शुक्ला को बीएड विभाग का अतिरिक्त प्रभार देने के मामले को लंबित कर दिया। इस बात की जानकारी प्रो.शुक्ला को मिली तो उन्होंने सूचना के अधिकार में समस्त जानकारी मांगी। इसके बाद उन्हें जो जानकारी मिली उसमें तीनों प्रोफेसर द्वारा लिखा गया पत्र भी शामिल था।
पत्र मिलने के बाद प्रो.शुक्ला को बहुत दुख हुआ और उन्होंने पत्र में लिखे गए तथ्यों की असलियत के साथ 18 अगस्त 2010 को बीयू कुलपति, कुलसचिव और बूटा अध्यक्ष को सूचित करने के साथ कार्रवाई हेतू पत्र लिखा।
कार्रवाई तो नहीं हुई,पर 10 दिन बाद प्रो. शुक्ला को एक पत्र मिला जो कि प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा के तीनों प्रोफेसर ने लिखा था। उन्होंने लिखा कि प्रो. शुक्ला की शैक्षणिक योग्यता एवं अनुभव के बारे में बिना किसी दुराग्रह के प्राप्त जानकारी के आधार पर कुलसचिव को पत्र लिखा था।
इसके बाद 31 अगस्त को पुन: प्रो.शुक्ला ने प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा के साथ बीयू प्रशासन व बूटा अध्यक्ष को पत्र लिखकर वह आदेश मांगा, जिसके तहत तीनों एकमत होकर उनकी शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाया। जब इसका जवाब नहीं मिला तो 27 सितंबर को तीनों प्रोफेसर को नोटिस भेजा,लेकिन इसका भी जवाब नहीं मिला।
ऐसे हुआ खुलासा
सतत शिक्षा तथा विस्तार विभाग में प्रो. नीरजा शर्मा , प्रो. कालिका यादव और डॉ. हेमंत खंडाई हैं। तीनों ही प्रशासनिक पद पर हैं, इसलिए प्रत्येक पत्र लिखने के पहले किसी का आदेश होना जरूरी है। डीबी स्टार को तीनों ने ही रिकॉर्डेड बातचीत में बताया है कि उन्हें कुलसचिव व कुलपति की तरफ से नोटशीट मिली थी, जिसमें उन्हें प्रो.शुक्ला के बारे में लिखने के लिए कहा गया था।
जब इस बात की सच्चई जानने के लिए कुलपति और कुलसचिव से पूछा तो उन्होंने नोटशीट लिखे जाने से इंकार कर दिया। लेकिन तीनों प्रोफेसर द्वारा लिखे गए पत्र के कारण उच्च शिक्षा विभाग भ्रमित हो गया और प्रो.शुक्ला को अतिरिक्त प्रभार दिए जाने के मामले लंबित कर दिया गया।
पत्र में लिखे गए तथ्यों की असलियत
एक- प्रो. शुक्ला यूजीसी द्वारा स्वीकृत परियोजना महिला अध्ययन केंद्र में संचालक हैं और यह पद निश्चित अवधि के लिए स्वीकृत है।
असलियत- यूजीसी की 10वीं पंचवर्षीय योजना के तहत प्रो. शुक्ला की नियुक्ति हुई थी और 22 मार्च 2010 को जारी अधिसूचना के अनुसार संचालक नहीं विभागाध्यक्ष हैं। यह बीयू का विभाग है।
दो- प्रो. शुक्ला के पास शिक्षण का अनुभव नहीं है और वे शिक्षक भी नहीं हैं।
असलियत- प्रो.शुक्ला के निर्देशन में 16 वर्ष तक बीएड, एमएड, एमफिल (शिक्षा), शिक्षण कार्य करने के साथ पांच पीएचडी, 16 एमफिल, 30 एमएड स्तरी शोध कार्य भी हुए। एनसीटीई में 3 वर्ष तक शोध अधिकारी का जिम्मा भी संभाला। बीयू से भी पीएचडी कराने की अनुमति मांगी है।
तीन- सतत शिक्षा विभाग के तत्वावधान में संचालित बीएड का विभागाध्यक्ष बनना अनाधिकृत चेष्टा है। इसलिए कोई विचार नहीं किया जाए।
असलियत- बीएड का विभागाध्यक्ष बनने के लिए प्रो. शुक्ला ने प्रयास नहीं किया। बल्कि मंत्री ने स्वयं प्रस्ताव मांगा था और उनके पत्र के विरोध में विचार नहीं किया जाना शासन को भ्रमित करना है।
सीधी बात
प्रो. निशा दुबे/ कुलपति, बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी
जिस्ट्रार को फॉरवर्ड किया मामला
?तीन जिम्मेदार अधिकारियों ने प्रो. आशा शुक्ला के खिलाफ पत्र लिखा। क्या ये पत्र लिखने के लिए आपने कहा था?
—मुझे इस बारे में पता ही नहीं है। ये सब मेरे आने से पहले हुआ।
?तो फिर आपको पूरे मामले की जानकारी है?
—मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। हां एक शिकायत आई थी प्रो. शुक्ला की, जिसमें उन्होंने पीएचडी कराने देने की अनुमति मांगी है, उस मामले में मैंने समिति बना दी है।
?प्रो. शुक्ला ने 18 अगस्त को ही इस बारे में आपको शिकायत कर दी है?
—अच्छा वो शिकायत, उसे तो मैंने रजिस्ट्रार को फॉरवर्ड कर दिया है। अब वे ही मामला देख रहे हैं।
मैं उन्हें क्यों कहूंगा
डॉ. संजय तिवारी/ कुलसचिव,बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी
?फरवरी में उच्च शिक्षा विभाग ने प्रो. शुक्ला को बीएड विभाग का अतिरिक्त प्रभार देने के लिए लिखा था, उसका क्या हुआ?
—वह मामला प्रोसेस में है।
?उसी पत्र के बाद प्रौढ़ शिक्षा के जिम्मेदारों की तरफ से प्रो. शुक्ला को बीएड के योग्य नहीं होने के लिए पत्र लिखा गया था और तीनों जिम्मेदारों का कहना है कि ऐसा करने के लिए आपने नोटशीट भेजी थी?
—मैं ऐसा क्यों करूंगा, वे कोई बच्चे हैं।
?अगर ऐसा है तो यह मामला पद के दुरुपयोग का है, तो क्या आप तीनों के खिलाफ कोई कार्रवाई करेंगे?
—अगर शिकायत मिलती है तो फिर देखेंगे कि मामले में क्या करना है।







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जरूरी है पर्सनल हाइजीन का ध्यान

जरूरी है पर्सनल हाइजीन का ध्यान
रोज की भाग-दौड़ में हम सारे काम तो निपटाते चले जाते हैं, लेकिन पर्सनल हाइजीन के लिए समय नहीं निकाल पाते। अगर आप चाहती हैं कि आप कई बीमारियों व संक्रमण से बची रहें, तो पर्सनल हाइजीन को इग्नोर न करें : महिला और पुरुष दोनों के लिए हाइजेनिक होना बेहद जरूरी है। लेकिन महिलाओं के लिए यह थोड़ा ज्यादा जरूरी हो जाता है, क्योंकि हाइजीन की जरा सी भी चूक होने पर महिलाओं को कई तरह की परेशानियों से रूबरू होना पड़ जाता है।
बार- बार हाथ धोएं
दिन भर हमारे हाथों को जाने कितने ही बैक्टीरिया के संपर्क से गुजरना पड़ता है। कोल्ड और फ्लू का इन्फेक्शन सबसे ज्यादा हाथों और मुंह से ही होता है, इसलिए हाथों को साफ रखने से आप कई बीमारियों से बच सकती हैं। हाथों को साफ करने के लिए सोप का इस्तेमाल जरूर करें। खाना खाने के बाद, पेट्स के साथ खेलने के बाद या टॉयलेट से आने के बाद- हैंड वॉश बहुत जरूरी है। गार्डनिंग करते समय ग्लव्स पहन लीजिए। और हां, एक बात का ध्यान और रखें कि हाथ जितनी बार धोएं, उतनी बार उनको सूखाएं भी।
पसीने की बदबू
सफाई न रखने से पसीने की बदबू आने लगती है। पसीना से निकलने वाले केमिकल फेरामॉन्स को अगर समय- समय पर साफ न किया जाए, तो वह स्मैल देने लगते हैं। इसके अलावा, गंदे कपड़े पहनने से भी बदबू आती है। अगर आपको बहुत पसीना आता है और आप उसे बार- बार साफ नहीं कर पाते, तो नहाने के पानी में नीबू या तुलसी की पत्तियां डालें। कुछ ही दिनों में स्मैल की दिक्कत कम होती जाएगी। पसीने की बदबू से बचने ढेर सारा परफ्यूम या डिओ इस्तेमाल कर लेने का कोई मतलब नहीं है।
सांस की बदबू
अगर आपके सांसों में बदबू आती है, तो लोग आपसे बात करने से बचने लगते हैं। इसलिए अगर आप इस दिक्कत से बचना चाहती हैं, तो आपको ओरल हाइजीन का खास ख्याल रखना ही होगा। डेंटिस्ट डॉ. राजन मेहरा का कहना है, च्हमें जब दांतों की कोई दिक्कत होती है, तभी हम डेंटिस्ट के पास जाते हैं। जो गलत है। बिना किसी दिक्कत के भी नियमित अंतराल पर दांत दिखाते रहने चाहिए। दिन में कम से कम दो बार ब्रश करें। ब्रश करने के बाद किसी अच्छे माउथ वॉश या माउथ स्प्रे का इस्तेमाल करें। फ्लेवर्ड च्यूइंगम भी सांसों को कुछ समय के लिए महकाने का अच्छा ऑप्शन है।
पीरियड्स के दौरान
पीरियड्स के दौरान नहाते समय बाकी दिनों के बजाय ज्यादा क्लीनिंग करें। नैपकिन दिनभर में चार से पांच बार बार बदलें। वॉश रूम से आने के बाद हाथों को माइल्ड सोप से साफ करें। टाइट या सिंथेटिक अंडरवेयर पहनना अवाइड करें। कॉटन अंडरवेयर पहनें और दिन में दो बार चेंज करें।
इस तरह छोटी - छोटी बातों का ध्यान रखने से आप कई बीमारियों व संक्रमण से बची रह सकती हैं।
Date: 29-09-2010 Time: 01:01:

सरकार के द्वारा परेशानी रहती है


सरकार के द्वारा परेशानी रहती है

Q. नौकरी बार बार छूट जाती है ?
Ans :- 10 साधुओं को हर साल खाना खिलाए पर उनको पैसे ना दें, 43 दिन तक गेंहू और गुड़ मिला कर उनके लड्डू बनाए और स्कूल के बच्चो को बाँटे, हर रोज केसर का तिलक माथे ज़ुबान और नाभि मे लगाए, 43 दिन तक तीन केले मंदिर मे दान दें
Q. बहुत इंटरव्यू दिए पर पास नही हो पाता, कोई ना कोई बात रह जाती है ?
Ans:- 43 दिन दो मुट्ठी सौंफ सरकारी संस्थान मे दान दें, 43 दिन पतीसा पिता को खिलाएँ, पिता को 7 रत्ती का मूँगा सोने मे डाल कर पहनाए

Q. सरकार के द्वारा परेशानी रहती है ?
Ans:- राहु की वस्तु से परहेज करें जैसे काले नीले रंग से, आदित्या हारदीए सूत्रा का पाठ करें, बंदरो को गुड़ खिलाते रहे, मंदिर से पैसा उठा कर लाल कपड़े मे बाँध कर जेब मे रखे (तांबे का पैसा हो तो सही), हर सूर्या ग्रहण मे 4 नारियल 400 ग्राम साबुत बादाम जल प्रवाह करें, इन लोगो की पिता से नही बनती या इनके पिता किसी काबिल नही होते है, सूर्या मध्यम राही मार्तंड यंत्रा गले मे पहेने |

Q. सरकारी कामो मे हाथ डालता हूँ, पर काम नही बनता ?
Ans :- राहु की वस्तुओं से परहेज करें, जैसे काले नीले रंग से, आदित्या हरदीए सूत्रा का पाठ करें, बंदरो को गुड़ खिलाते रहे, मंदिर से पैसा उठा कर लाल कपड़े मे बाँध कर जेब मे रखे (तांबे का पैसा हो तो सही), हर सूर्या ग्रहण मे 4 नारियल 400 ग्राम साबुत बादाम जल प्रवाह करें, जिन लोगो की पिता से नही बनती या जिनके पिता किसी काबिल नही होते है, वह सूर्या रही मध्यम राही मार्तंड यंत्रा गले मे पहने |

Q. घर मे रोज झगड़ा होता रहता है ?
Ans:- 43 दिन सिरहाने पानी रख कर कीकर के पेड़ मे डाले, 43 दिन 3 केले मंदिर मे दें, चाँदी के बर्तन मे गंगा जल और चाँदी का चकोर टुकड़ा डाल कर रखे, विद्वान या माता के पावं मे हाथ लगाकर आशीर्वाद ले, घर के उत्तर पूर्व कोने से संदूक, ट्रंक या किसी भी प्रकार की गंदगी हो तो हटा दे, (चंद्र केतु मध्यम मार्तंड यंत्रा गले मे धारण करे)

Q. जो काम करता हूँ, पूरा नही होता ?
Ans:- 43 दिन गाय के घी का दीपक मंदिर मे जलाएँ, ज़मीन मे पैदा हुई सब्जी धार्मिक स्थान मे दे, सूर्या मध्यम मार्तंड यंत्रा गले मे धारण करें


Q. मुझे रात को नींद नही आती है ?
Ans :- 2 किलो सौंफ सूती लाल कपड़े मे बाँध कर सोने वाले कमरे मे रखे, 2 किलो देसी खंड, लाल कपड़े मे बाँध रखें, हर रोज सिरहाने पानी रख कर सोए, और रोज किसी बड़े पेड़ मे डाल दे पिए नही, पूरब और उत्तर की तरफ सर रख कर ना सोए, 48 दिन 3केले मंदिर मे दे, कुत्तो की सेवा करें, और केतु मध्यम मार्तंड यंत्र गले मे पहनें, कमर पावं मे दर्द हो तो उल्टे हाथ मे सोना शुरू करें.
Q. उदास रहता हूँ ?
Ans :- हरे और नीले रंग से परहेज रखे, बुध और राहु की वस्तुएँ घर से निकालें, बुध राहु मार्तंड यंत्र गले मे डाले, 6 दिन के लिए नाक छेदन करवाएँ, सोना या चाँदी की तार या सफेद धागा नाक मे पहने, 6 दिन 6 कन्याओं को 6-6 साबुत बादाम दें.

Q. हमेशा डर लगा रहता है ?
Ans:- सोने वाले तकिये मे लाल रंग की फिटकरी रखे, 43 दिन नारियल बादाम मंदिर मे रखे या जल प्रवाह करे, जल्दी से कान छेदन करवा कर सोना धारण करें, गुस्सा बहुत आता हो तो सूर्य शनि मार्तंड यंत्रा गले मे धारण करें, और यदि गुस्सा ना आता हो तो चंद्र राहु मार्तंड यंत्रा धारण करें,

Q . मरने का डर लगता है ?
Ans :- 96 दिन के लिए नाक छेदन करवा कर चाँदी धारण करे, 43 दिन खाली मटका जल प्रवाह करें, लोहे का छल्ला बीच वाली उंगली मे धारण करे, (बुध गुरु सर्वा मार्तंड यंत्रा गले मे धारण करे, और तांबे के छेड़ वाला पैसा गले मे पहने)

Q. पढ़ाई मे मन नही लगता है ?
Ans :- 43 दिन 500 ग्राम दूध मंदिर मे दें, सूर्या अस्त के बाद दूध और चावल का इस्तेमाल ना करे, चाँदी के बर्तन मे गंगा जल रखे, हर रोज केसर का तिलक माथे ज़ुबान और नाभि मे करे, 43 दिन बड़ के पेड़ पर दूध चड़ा कर गीली मिट्टी का तिलक करे, हर गुरुवार और सोमवार को सफेद घोड़े या पीले घोड़े को चने की दाल खिलाएँ, चंद गुरु मध्यम मार्तंड यंत्रा गले मे धारण करे

Q. किसी काम मे मन नही लगता है ?
Ans :- 43 दिन 500 ग्राम दूध मंदिर मे दें, सूर्य अस्त के बाद दूध और चावल का इस्तेमाल ना करे, चाँदी के बर्तन मे गंगा जल करें, हर रोज केसर का तिलक माथे ज़ुबान और नाभि मे करे, 43 दिन बड़ के पेड़ पर दूध चड़ा कर गीली मिट्टी का तिलक करे, हर गुरुवार और सोमवार को सफेद घोड़े या पीले घोड़े को चने की दाल खिलाएँ, चंद गुरु मध्यम मार्तंड यंत्र गले मे धारण करे

Q. सब से अधिक अपने आपको ग़रीब बेसहारा समझता हूँ ?
Ans :- हर सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण पर 4 नारियल और 400 ग्राम साबुत बादाम जल प्रवाह करें, घर के उत्तर पूर्व मे पानी का कुंभ लगाएँ, चाँदी तन मे धारण करें, हर शुक्रवार अपने वजन के बराबर हरा चारा गाए को खिलाए, हर रोज इत्र का इस्तेमाल करें, हर रोज नहा कर साफ़ कपड़े प्रेस किए हुए पहने, हर रोज उगते हुए सूरज के सामने खड़े हों.

Q. कुछ ऑपर्चुनिटी मिलती है, पर डर के कारण उसको ले नही पाता?
Ans :- अंडर गारमेंट मे पीले रंग के कपड़ो का इस्तेमाल करें, पीले कपड़ो मे 9 लाल मिर्च बांद कर घर में कील पर टाँगे, 43 दिन फिटकरी से दाँत सॉफ करन, राहु मध्यम मार्तंड यंत्रा गले मे धारण करें.

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दिखाई नहीं दे रहा है जिसका ऑपरेशन किया गया था।

प्रशासन ने आंख की रोशनी की कीमत 30 हजार रुपये लगाई
मण्डला, 21 अक्टूबर। मध्य प्रदेश में मण्डला जिले के प्रशासन ने आंख की रोशनी की कीमत 30 हजार रुपये लगाई है। जिला प्रशासन ने एक अस्पताल में ऑपरेशन कराकर अपनी आंखों की रोशनी गंवाने वाले यहां के 30 लोगों को हर्जाने के नाम पर 30 हजार रुपये की रकम देने आदेश दिया है।
राज्य के जनजातीय बहुल जिले मण्डला में योगीराज हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर अस्पताल ने 10 सितम्बर से 16 सितम्बर के बीच 113 लोगों की आंखों के नि:शुल्क ऑपरेशन किए। इनमें से 30 ऐसे लोग सामने आए हैं, जिन्हें उस आंख से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है जिसका ऑपरेशन किया गया था।
मिली जानकारी के अनुसार जिन लोगों की रोशनी गई है, वे पहले से ही लाचार थे। उनकी जिंदगी दूसरों के सहारे पर चल रही थी। उन्होंने अपनी शेष बची जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए ही आंख का ऑपरेशन कराया था। अब उनकी जिंदगी पहले से कहीं ज्यादा कष्टदायी हो गई है। पहले तो ऑपरेशन वाली आंख से कुछ दिखाई भी देता था लेकिन अब तो वह मुसीबत का सबब बन गई है।
मंडला कलेक्टर के. के. खरे ने अस्पताल के प्रबंधन को निर्देश दिए हैं कि वह ऑपरेशन के बाद रोशनी गंवाने वालों को 30 हजार रुपये की तात्कालिक मदद दे और 500 रुपये की आजीवन मासिक सहायता भी दे। खरे ने बताया है कि आंख की रोशनी जाने की कोई कीमत नहीं है। यह तो तात्कालिक मदद हैं।
मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डा आर.के. श्रीवास्तव ने बताया कि 10 से 16 सितम्बर के बीच योगीराज हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर अस्पताल में ऑपरेशन कराने वाले 113 लोगों में से 30 पीड़ितों ने दिखाई न देने की शिकायत की है। इस मामले की जांच कराई जा रही है कि आखिर कितने और ऐसे लोग है जिनकी रोशनी गई है। जांच के बाद ही खुलासा हो सकेगा कि रोशनी जाने की वजह क्या है।

ग्रामीण इलाकों में आवास निर्माण पर स्टाम्प शुल्क की छूट

ग्रामीण इलाकों में आवास निर्माण पर स्टाम्प शुल्क की छूट
भोपाल, 22 अक्टूबर । मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों के आवासहीन परिवारों को आवास सुविधा दिलाने के लिए चल रहे प्रयासों के क्रम में सरकार अब आवास निर्माण पर लगने वाले स्टाम्प शुल्क नहीं लेगी।
प्रदेश में ग्रामीण आवास मिशन के तहत कम लागत के आवास निर्माण की नीति पर आयोजित कार्यशाला में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि इस मिशन के तहत बनने वाले आवास में रहने वालों को आजीविका की गतिविधियों, समग्र स्वच्छता अभियान, मुख्यमंत्री पेयजल योजना, मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क येाजना सहित अन्य योजनाओं से जोड़ा जाएगा। इतना ही नहीं आवास की डिजाइन भी ग्रामीणो की जरूरत के मुताबिक बनाई जाएगी।
चैहान ने आवासहीनों को स्वयं का आवास बनाने के लिए प्रेरित करने पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे परिवारों की सरकार हरसंभव मदद करेगी। आवास निर्माण पर लगने वाले स्टाम्प शुल्क नहीं लिया जाएगा। वहीं आवास निर्माण में आने वाली कठिनाइयों को तमाम विभाग आपसी समन्वय से निपटाएंगे।

Wednesday, October 20, 2010

कांग्रेस ने इन्वेस्टर्स समिट पर सवाल उठाए

भोपाल। कांग्रेस ने खजुराहो में होने वाली इन्वेस्टर्स समिट पर सवाल उठाए हैं। पार्टी का आरोप है कि पहले की तरह यह समिट भी सरकारी प्रचार का माध्यम बनकर रह गई है और प्रदेश के राजस्व कोष से करोड़ों रूपए की बर्बादी होने के सिवाए इसका कोई सुखद परिणाम नहीं निकलने वाला।

कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने बुधवार को यहां जारी एक बयान में कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यह बताना चाहिए कि अब तक जितने एमओयू किए गए, उनकी धरातल पर क्या स्थिति है?

पार्टी का कहना है कि अभी तक राज्य सरकार पाँच समिट कर चुकी है और इनमें 4 लाख 60 हजार करोड़ रूपए के 321 करार किए गए। मगर धरातल पर अनुभव ठीक नहीं रहा है। लिहाजा सरकार को चाहिए कि वह इस पर एक श्वेत पत्र जारी करे। कांग्रेस प्रवक्ता के मुताबिक मप्र में अधोसंरचना की कमी है, उद्योगों के लिए सुरक्षा का भी अभाव है। जिससे उद्योगपति एमओयू करके पीछे हट जाते हैं।

सरकारी कर्मचारी आज हड़ताल करेंगे

भोपाल। मप्र के लगभग पाँच लाख शासकीय कर्मचारी कल 21 अक्टूबर को हड़ताल पर रहेंगे। मप्र अधिकारी कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने यह दावा करते हुए कहा है कि सरकार अब कर्मचारी आदोलन को तोड़ नहीं पाएगी।

समिति के प्रदेश अध्यक्ष इंजी. राजेन्द्र सिंह भदौरिया, संयोजक रमेश चंद्र शर्मा तथा महामंत्री एवं प्रवक्ता अरुण द्विवेदी ने बताया कि 21 अक्टूबर को प्रदेश के सभी पाच लाख से अधिक अधिकारी कर्मचारी अपनी मागों को लेकर शासन के विरूद्ध मोर्चा खोलेंगे।

संघर्ष समिति का कहना है कि प्रदेश के कर्मचारियों को केन्द्र की तरह छठवें वेतन आयोग का लाभ जस का तस देने की मुख्यमंत्री की घोषणा का आज दिनाक तक पालन नहीं हुआ। उल्टा महंगाई भत्ते का लाभ केन्द्र सरकार की तिथि की बजाए नौ माह बाद देकर कर्मचारियों को आर्थिक क्षति पहुंचाई गई है। जबकि इसके पूर्व हमेशा केन्द्र सरकार की तारीख से ही महंगाई भत्ता दिया जाता रहा है। पे ग्रेड कम करके भी कर्मचारियों को छला गया है। समिति ने बताया कि प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर कर्मचारी संगठनों द्वारा दोपहर 12 से 2 बजे तक धरना तथा प्रदर्शन सत्याग्रह कर कलेक्टर और कमिश्नर के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजे जाएंगे।

पुरुषों के लिए एक सलाह, आप दोपहर के वक्त महिलाओं के साथ पंगा न लें।

लंदन।। पुरुषों के लिए एक सलाह, आप दोपहर के वक्त महिलाओं के साथ पंगा न लें। एक सर्वे से पता चला है कि द
ोपहर के वक्त महिलाओं से बहसबाजी पुरुषों को भारी पड़ सकती है।

लोगों के मूड पर किए गए एक सर्वे के नतीजों पर यकीन करें, तो पुरुषों को यह सलाह अमल में जरूर लाना चाहिए वरना उन्हें महिलाओं से मात खानी पड़ सकती है। अध्ययन के नतीजों में यह भी कहा गया है कि यदि महिलाएं पुरुषों से कुछ कहना चाहती हैं तो उन्हें शाम के 6 बजे तक इंतजार करना चाहिए क्योंकि उस वक्त पुरुष अपने करीबी लोगों की मुराद पूरी करते
कई दिलचस्प नतीजे देने वाली इस स्टडी में ब्रिटेन के 1000 पुरुषों और महिलाओं को शामिल किया गया था। अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि जब किसी महिला को तनख्वाह में इजाफे या प्रोमोशन की बात अपने बॉस से कहनी हो तो वह यह काम सुबह में न कर दोपहर एक बजे करें। इस वक्त महिला की मुराद पूरी होने की ज्यादा संभावना रहती है।

नतीजों के मुताबिक, दोपहर एक बजे के बाद का समय ऐसा होता है जब मैनेजर अपने कर्मचारियों की मांग के प्रति बहुत उदार होता है।

डेली मेल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाएं यह जानकर काफी खुश होंगी कि मूड में होने वाले उतार-चढ़ाव से सिर्फ वहीं पीड़ित नहीं हैं बल्कि ऐसा पुरुषों में भी देखा जाता है।

क्या चाहता है महिलाओं का 'मन'?

महिलाओं को सेक्स से जुड़ी कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं। झिझक की वजह से ज्यादातर वे अपनी दिक्कतें किस
ी से शेयर नहीं कर पातीं और ताउम्र परेशान रहती हैं। ऐसी ही तमाम दिक्कतों पर डॉ. प्रकाश कोठारी की खास रिपोर्ट:

आम धारणा के उलट महिलाओं को भी पुरुषों की तरह ही सेक्स की इच्छा होती है। सहवास तरीके से पूरा न होने पर उन्हें शारीरिक और मानसिक परेशानी हो सकती है। उन्हें ख्याल और स्पर्श से सेक्स की इच्छा होती है। सेक्स का सेंटर दिमाग में होता है। ख्याल या स्पर्श से जब जोश महसूस होता है तो पूरे शरीर में खून का बहाव बढ़ जाता है। स्त्री जनन अंग में दौरा ज्यादा होता है। इसके बाद ऐसा मुकाम होता है, जहां सुकून का अहसास होता है।


इसे ही ऑर्गेज्म, क्लाइमैक्स या चरम सुख कहा जाता है। सेक्स के इस पूरे प्रोसेस को कई महिलाएं इंजॉय नहीं कर पातीं। महिलाओं को सेक्स से जुड़ी नीचे लिखीं दिक्कतें हो सकती हैं

कामेच्छा में कमी- बहुत-सी महिलाओं को सेक्स की चाहत ही नहीं होती। अगर वे पार्टनर के कहने पर तैयार होती हैं तो भी बिल्कुल ऐक्टिव नहीं हो पातीं। बस अपनी ड्यूटी समझकर 'काम' निबटा देती हैं। बच्चे होने के बाद यह समस्या ज्यादा होती है।

वजह : डिप्रेशन, थकान या तनाव की वजह से यह दिक्कत हो सकती है। कई बार बचपन की किसी बुरी घटना की वजह से भी सेक्स में दिलचस्पी खत्म हो जाती है। इसके अलावा कुछ और वजहें भी सकती हैं, मसलन पार्टनर जिस तरह छूता है, वह पसंद नहीं आना, उसके शरीर की महक नापसंद होना, उसे बहुत ज्यादा पसीना आना, उसके मुंह से पान-तंबाकू वगैरा की बदबू आना आदि। कई महिलाओं को शरीर के कुछ खास हिस्सों पर हाथ लगाने से दर्द महसूस होता है या अच्छा नहीं लगता। इससे भी वे सेक्स से बचने लगती हैं।

इलाज : पार्टनर को सबसे पहले यह समझना चाहिए कि साथी महिला को क्या पसंद है और क्या नापसंद। उसी के मुताबिक आगे बढ़ना चाहिए। फोरप्ले में ज्यादा वक्त बिताना चाहिए। इससे महिला मानसिक और शारीरिक रूप से अच्छी तरह तैयार हो जाती है। जब एक्साइटमेंट ज्यादा हो, तभी आगे बढ़ना चाहिए। अगर डिप्रेशन की वजह से दिक्कत है तो पहले उसका इलाज कराएं। डिप्रेशन से मुक्त होने पर ही कामेच्छा जागेगी। 'सेंसेट फोकस एक्सरसाइज' या 'प्लेजरिंग सेशन' से काफी फायदा हो सकता है। इस सेशन में स्पर्श पर सारा फोकस होता है और सहवास की मनाही होती है। इसका तरीका यह है कि बारी-बारी से स्त्री व पुरुष एक-दूसरे को प्यार से सहलाएं और एक-दूसरे के शरीर पर उत्तेजना केंद्र खोजें। दोनों एक-दूसरे को बताएं कि उन्हें कहां अच्छा लगता है। इससे महिलाओं की झिझक भी कम होती है। साथ ही परफॉर्मेंस का प्रेशर नहीं होता। वे कपल जिन्हें कोई दिक्कत नहीं है, वे भी तीन-चार महीनों में अगर एक हफ्ते इस सेशन को करें और सहवास से परहेज रखें तो सेक्स लाइफ को ज्यादा इंजॉय कर सकते हैं।

लुब्रिकेशन की कमी- स्त्री जनन अंग में लुब्रिकेशन (गीलापन) को उत्तेजना का पैमाना माना जाता है। कुछ महिलाओं को इसमें कमी की शिकायत हो सकती है। ऐसे में सहवास काफी तकलीफदेह हो जाता है।

वजह : लुब्रिकेशन में कमी तीन वजहों से हो सकती है। इन्फेक्शन, हार्मोंस में गड़बड़ी या फिर तरीके से फोरप्ले न होना। अगर जनन अंग में खुजली हो, खून आता हो, कपड़े पर धब्बे पड़ जाते हों या बहुत बदबू आती हो तो इन्फेक्शन हो सकता है। हार्मोंस में गड़बड़ी यानी एस्ट्रोजन की कमी आमतौर पर मीनोपॉज के बाद ज्यादा होती है। पार्टनर का महिला की जरूरत न समझ पाना या फोरप्ले में ज्यादा वक्त न गुजारना भी इसकी वजह हो सकती है।

इलाज : अगर इन्फेक्शन है या हॉर्मोंस में गड़बड़ी है तो फौरन अच्छे डॉक्टर को दिखाकर इलाज कराएं। हॉर्मोंस वाली दिक्कत अक्सर मरीज को खुद पता नहीं लगती। डॉक्टर जांच के बाद इसका पता लगा पाते हैं। तीसरी वजह है तो पार्टनर से बातचीत और समझ से प्रॉब्लम दूर की जा सकती है। पार्टनर को फोरप्ले में ज्यादा वक्त देना चाहिए क्योंकि यह बहुत अहम होता है। इसी से सेक्स को सही ढंग से इंजॉय किया जा सकता है।

सहवास में दर्द और वैजिनिस्मस- कुछ महिलाओं को सहवास के दौरान दर्द होता है। कई बार यह दर्द बहुत ज्यादा होता है और ऐसे में महिला सेक्स से बचने लगती है। साथी को इस दर्द का अहसास नहीं होता। उसे लगता है कि साथी महिला उसे सहयोग नहीं दे रही। यह दोनों के बीच झगड़े की वजह बनता है। इस प्रॉब्लम को डिस्परयूनिया (पेनफुल इंटरकोर्स) कहा जाता है। अगर पूरे इलाज या सलाह के बिना संबंध बनाने की कोशिश की जाती है तो प्रॉब्लम और बढ़ जाती है।

वजह : संबंध बनाते वक्त दर्द की वजह लुब्रिकेशन में कमी या सही ढंग से फोरप्ले न होना हो सकता है। कई बार इन्फेक्शन या एंडोमेट्रियोसिस यानी ओवरी में ब्लड जमा होने पर यह प्रॉब्लम हो सकती है। एंडोमेट्रियोसिस के लिए हॉर्मोन थेरपी या फिर जरूरत पड़ने पर लेप्रोस्कोपी भी की जाती है।

वैजिनिस्मस : वैजिनिस्मस का मतलब है किसी बाहरी चीज के स्त्री जनन अंग में जाने का डर। इसमें संभोग की कोशिश या संभावना का आभास मिलते ही महिला जनन अंग के बाहरी एक-तिहाई हिस्से में अनैच्छिक संकुचन आ जाता है। इससे समागम नहीं हो पाता और साथी अगर जबरन कोशिश करता है तो दिक्कत और दर्द दोनों बढ़ जाते हैं।

वजह : इसके मानसिक कारण होते हैं - जैसे कि कई बार महिला के मन में सहवास को लेकर डर बैठ जाता है कि इस दौरान काफी दर्द होता है। इसके अलावा, किसी तरह की जोर-जबरदस्ती, सेक्स को पाप या गलत समझने और अपने जननांगों को गंदे या बदबूदार मानने की भावना से भी यह परेशानी हो सकती है।

इलाज : इस परेशानी की कोई दवा या सर्जरी नहीं होती। यह मानसिक बीमारी है और इसे काउंसलिंग से बहुत हद तक सुधारा जा सकता है। पीड़ित महिला के मन से सेक्स संबंधी डर दूर किया जाता है। उसे समझाया जाता है कि जनन अंग इलास्टिक की तरह होता है, जो जरूरत के मुताबिक बढ़ जाता है। इससे उसके दिमाग से काफी हद तक फिक्र निकल जाती है और वह मानसिक तौर पर राहत महसूस करने लगती है। इसके बाद एक खास थेरपी के जरिए जनन अंग को धीरे-धीरे बाहरी चीज के टच के प्रति सहज किया जाता है। फिर डाइलेटर की मदद से ज्यादा जगह बनाई जाती है। इसके लिए कीजल एक्सरसाइज भी की जा सकती है। इसका तरीका यह है कि महिला पेशाब को रोके और छोड़ दे। फिर रोके, फिर छोड़ दे। इस तरह जनन अंग पर उसका कंट्रोल बढ़ जाता है।

सलाह : डॉक्टर कहते हैं कि संबंध कायम करने के दौरान प्रवेश का काम औरत को ही करना चाहिए क्योंकि उसे ही मालूम है कि वह कब तैयार है। ऐसे में उसे संबंध के दौरान दर्द नहीं झेलना पड़ेगा।

क्लाइमैक्स न होना या देर से होना- महिलाओं में यह शिकायत आम है कि उनका पार्टनर उन्हें संतुष्ट किए बिना ही छोड़ देता है। कुछ को ऑर्गेज्म (क्लाइमैक्स) नहीं होता और कुछ को होता है, पर महसूस नहीं होता। कुछ महिलाओं को लुब्रिकेशन के दौरान ही जल्दी क्लाइमैक्स हो जाता है। कुछ को बहुत देर से क्लाइमैक्स होता है। असल में क्लाइमैक्स के दौरान महिला को अपने जनन अंग में लयात्मक संकुचन महसूस होता है और फिर मन एकदम शांत हो जाता है। लेकिन लयात्मक संकुचन 10 में से 8 महिलाओं को ही होता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि बाकी दो को क्लाइमैक्स नहीं होता। उन्हें भी क्लाइमैक्स होता है, बस अहसास नहीं होता। वैसे, कुछ महिलाओं में पुरुषों की प्रीमैच्योर इजाकुलेशन की तरह शीघ्र क्लाइमैक्स होता है।

वजह : इस समस्या की वजह महिला खुद और साथी दोनों हो सकते हैं। आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अपने पार्टनर को संतुष्ट करना ही उसकी जिम्मेदारी है। इस सोच की वजह से वह अपनी इच्छा बता नहीं पाती। दूसरी ओर, पुरुष भी कई बार खुद संतुष्ट होने के बाद महिला साथी के बारे में सोचता ही नहीं है।

इलाज : महिला अपनी झिझक खत्म करे और साथी को बताए कि वह संतुष्ट हुई या नहीं। ऐसे मुकाम पर पहुंचना जरूरी है, जहां पूरी तरह संतुष्टि महसूस हो। पुरुष को अपनी पार्टनर की इच्छा समझनी चाहिए। वैसे भी कहा जाता है कि उत्तम पुरुष वह है, जो महिला के कहे बिना ही उसकी बात समझ कर उसे संतुष्ट करे। मध्यम पुरुष वह है, जो कहने पर उसे संतुष्ट करे और अधम पुरुष वह है, जो कहने के बावजूद उसे असंतुष्ट छोड़ दे।

मीनोपॉज- पुष्पांजलि क्रॉसले हॉस्पिटल के गाइनिकॉलजी डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ. शारदा जैन के मुताबिक आमतौर पर मीनोपॉज हो जाने पर कुछ महिलाओं में सेक्स की इच्छा काफी घट जाती है। लुब्रिकेशन भी कम हो जाता है। इससे संबंध बनाते हुए तकलीफ होती है। जाहिर है, महिला इससे बचने की कोशिश करने लगती है।

वजह : हॉर्मोंस में बदलाव की वजह से ऐसा होता है। इस दौरान महिलाओं के शरीर में सेक्स हॉर्मोन का लेवल काफी कम हो जाता है।

इलाज : फोर-प्ले में ज्यादा वक्त बिताएं। इससे नेचरल लुब्रिकेशन होता है। जरूरत पड़े तो बाहरी लुब्रिकेशन का इस्तेमाल करें। नारियल तेल अच्छा ऑप्शन हो सकता है। जरूरत पड़ने एस्ट्रोजन क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं। मीनोपॉज हो जाने पर ऐसी डाइट लें, जिसमें एस्ट्रोजन ज्यादा हो जैसे सोयाबीन, हरी सब्जियां, उड़द, राजमा आदि। डॉक्टर की सलाह पर सिंथेटिक एस्ट्रोजन की गोलियां भी ले सकती हैं।

पीरियड्स के दौरान सेक्स- अगर दोनों को इच्छा हो तो पीरियड्स के दौरान भी सेक्स कर सकते हैं, बल्कि कुछ लोग तो इसे ज्यादा सेफ मानते हैं क्योंकि इस दौरान प्रेग्नेंसी के चांस नहीं होते। साथ ही, पहले से ही गीलापन होने से आसानी भी होती है। लेकिन कुछ लोग इसे हाइजिनिक नहीं मानते। ऐसे में कॉन्डोम का इस्तेमाल बेहतर है।

मास्टरबेशन- पुरुषों की तरह महिलाएं भी खुद को संतुष्ट करने के लिए मास्टरबेशन करती हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक करीब 50 फीसदी महिलाएं ऐसा करती हैं। इसका कोई नुकसान नहीं है, बल्कि एक्सपर्ट्स इसे बेहतर ही मानते हैं क्योंकि एक तो इसमें प्रेग्नेंसी के चांस नहीं होते। दूसरे इसमें कोई दूसरा शख्स अपनी पसंद-नापसंद को महिला पर थोप नहीं पाता। तीसरा एसटीडी (सेक्स ट्रांसमिटेड डिजीज) और एड्स की आशंका नहीं होती।

वैजाइनल पेन (वुलवुडेनिया पेल्विक पेन)- कभी-कभी महिलाओं को नाभि के नीचे और प्यूबिक एरिया के आसपास दर्द महसूस होता है। यह दर्द वैसा ही होता है, जैसा पीरियड्स के दौरान होता है। इसकी वजह यह है कि उत्तेजना होने पर प्राइवेट पार्ट के आसपास खून का बहाव होता है। ऐसे में लुब्रिकेशन होता है, पर क्लाइमैक्स नहीं होता। इससे इस एरिया में खून जम जाता है और दर्द होने लगता है। ऐसे में संतुष्ट होना जरूरी है, फिर चाहे महिला खुद संतुष्ट हो या पुरुष उसे संतुष्ट करे। ऐसा न होने पर दर्द होता रह सकता है और महिला चिड़चिड़ी हो सकती है।

लेक्स पैरिनियम- मैक्स हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. अनुराधा कपूर के मुताबिक उम्र बढ़ने और बच्चे होने के बाद कुछ महिलाओं का जनन अंग ढीला पड़ जाता है, जिससे दोनों को पूरी संतुष्टि का अहसास नहीं होता। आमतौर पर यह समस्या 40 साल के आसपास और दो-तीन बच्चे होने पर होती है। इसके लिए कीजल एक्सरसाइज और जरूरत पड़ने पर सर्जरी (वैजाइनोप्लास्टी) की जाती है। चार हफ्ते तक कीजल एक्सरसाइज करने से स्त्री जनन अंग में कसाव आने लगता है।

जी स्पॉट : महिला जनन अंग में एक ऐसा क्षेत्र होता है, जहां सेक्स संबंधी संवेदनशीलता ज्यादा होती है। यह स्पॉट दो इंच की गहराई पर होता है। उत्तेजना बढ़ने पर यह स्पॉट थोड़ा फूल जाता है या कठोर हो जाता है। महिला को सबसे ज्यादा संतुष्टि इसी स्पॉट के छुए जाने पर होती है।

मिथ और सचाई
महिलाओं को सेक्स की इच्छा कम होती है।
महिलाओं को भी पुरुषों की तरह ही सेक्स की इच्छा होती है। बच्चे होने के बाद भी कमी नहीं होती हालांकि कई बार परफॉर्मेंस में कमी आ जाती है। इसकी शारीरिक और मानसिक दोनों वजहें होती हैं।

पहली बार सेक्स करते हुए ब्लड निकलना ही चाहिए।
लोग मानते हैं अगर महिला वर्जिन है तो पहली बार सेक्स के दौरान इसे ब्लीडिंग होनी ही चाहिए। यह सच नहीं है क्योंकि कुछ खेलकूद या साइकल चलाते वक्त भी कुछ महिलाओं की हाइमेन टूट सकती है। ऐसे में पहली बार सहवास के दौरान ब्लड नहीं निकलता।

महिलाओं को भी पुरुषों की तरह डिस्चार्ज होता है।
महिलाओं में पुरुषों की तरह डिस्चार्ज नहीं होता। 100 में से बमुश्किल एक महिला को थोड़ा-बहुत डिस्चार्ज होता है। उत्तेजना के दौरान होने वाले लुब्रिकेशन को ही ज्यादातर लोग डिस्चार्ज समझ लेते हैं। हालांकि डिस्चार्ज होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि महिला को असली सुकून क्लाइमैक्स पर पहुंचने से ही मिलता है।

महिलाओं को क्लाइमैक्स नहीं होता।
यह पूरी तरह गलत है। महिलाओं को भी क्लाइमैक्स होता है। ऐसे में पुरुष का उसकी जरूरत को समझना और उसके मुताबिक काम करना जरूरी है।

महिलाओं को ज्यादा वक्त लगता है।
सभी महिलाएं क्लाइमैक्स पर पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लेतीं। अगर पार्टनर उनकी पसंद का है तो वे जल्दी मुकाम पर पहुंच जाती हैं। हालांकि कुछ को ज्यादा वक्त भी लग सकता है।

बिहार में एक बार फिर जनमत की बिसात बिछ चुकी है।

बिहार में एक बार फिर जनमत की बिसात बिछ चुकी है।-


नीतीश कुमार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तीन दशक से ज्यादा के राजनीतिक जीवन में यह पहला चुनाव ऐसा है जो उनके नाम पर लड़ा जा रहा है। जेडीयू-बीजेपी गठबंधन तो सत्ता में वापसी के लिए नीतीश के नाम की माला जप ही रहे हैं। विपक्ष का भी पूरा चुनाव अभियान नीतीश के इर्दगिर्द ही केंद्रित हो गया है। नीतीश के लिए ये चुनाव लॉन्चिंग पैड साबित हो सकते हैं। अगर वे बड़ी हुई सीटों के साथ वापसी कर गए तो विपक्ष नेताओं के बीच उनका कद बहुत ऊंचा उठ जाएगा।

नीतीश अपने कामों की दम पर जनता की अदालत में जा रहे हैं। पिछले पांच साल में नीतीश ने बिहार में उम्मीद की लौ जला दी है। नीतीश कहते हैं कि इन उम्मीदों को पूरा करने के लिए उन्हें एक मौका और दिया जाए। नीतीश की राजनीति बिहार में मजबूत इच्छा शक्ति की राजनीति मानी जाती है। नीतीश से पहले के 15 साल बिहार में अराजक शासन के माने जाते हैं। कानून-व्यवस्था की हालत बहुत खराब थी। मां-बाप जवान लड़कों को भी शाम होने के साथ ही घर में छिपा लेते थे। सड़के सूनी हो जाती थीं। मगर आज शहरों में ही नहीं कस्बों और गांवों में भी लोग जब चाहे आते-जाते हैं। अगर कानून व्यवस्था का मुद्दा वोटों में तब्दील हो गया तो माना जा रहा है कि नीतीश की अच्छे बहुमत के साथ वापसी पक्की है।

लालू यादव
लालू प्रसाद यादव के लिए यह चुनाव उनके राजनीतिक अस्तित्व का सवाल है। लोकसभा चुनाव में इनकी पार्टी आरजेडी की बुरी गत हुई थी। राज्य में लगातार 15 साल शासन करना उनके लिए लाभ के बदले घाटे का सौदा बना हुआ है। नीतीश के एक कार्यकाल की तुलना उनके और राबड़ी देवी के तीन कार्यकालों से की जा रही है। लालू कामकाज के तुलनात्मक विश्लेषण से बचने के लिए दूसरे मुद्दे उठा रहे हैं। जातिगत समीकरण के साथ उनके पास अब केवल करिश्मा ही बचा है।

लालू के लिए अपनी पार्टी बचाए रखने के साथ इन चुनावों में परिवार को एक बनाए रखना भी बड़ी चुनौती बन गई। उनके दोनों साले सुभाष और साधु यादव उन्हें छोड़ गए हैं। बेहद मजबूरी में उन्हें अपने 20 साल के क्रिकेटर बेटे तेजस्वी को समयपूर्व राजनीति में उतारना पड़ा है। अच्छे बेट्समैन तेजस्वी अपनी शुरुआत बहुत ही टफ पिच पर कर रहे हैं। अपने राजनीतिक वारिस तेजस्वी को मैदान में लाने का फैसला ही बताता है कि लालू कितने संकट में हैं। हालांकि, मुकाबला नीतीश और लालू के बीच ही है। मगर नंबर एक और दो के बीच फासला कितना रहेगा यह बताना अभी मुश्किल है।

राहुल गांधी
कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी को बिहार के अपने पहले चुनावी दौरे पर कहना पड़ा कि बिहार में कांग्रेस की वापसी में देर लग सकती है। राहुल यूपी की तरह बिहार में भी क्षेत्रीय दलों को पीछे धकेल कर कांग्रेस को वापस राजनीति के केन्द में लाना चाहते थे। मगर आपस में ही लड़ते रहे कांग्रेसियों ने ही राहुल के रास्ते में कांटे बिछा दिए।

राहुल ने इस साल के शुरू में जब बिहार का दौर किया और उसके फौरन बाद मुंबई जाकर बिहार के युवाओं के देश भर में कहीं भी जाकर काम करने के अधिकार की आवाज बुलंद की तो बिहार की राजनीति में कांग्रेस का ग्राफ तेजी के साथ ऊपर चढ़ा। राहुल ने जाति और धर्म की राजनीति के मुकाबले युवाओं और भविष्य की राजनीति की बात करके युवाओं में एक नया उत्साह भर दिया था। मगर राज्य के इंचार्ज जगदीश टाइटलर उस समय पप्पू यादव, उनकी पत्नी रंजीता रंजन और लालू के साले साधु यादव जैसे संदिग्ध छवि के लोगों को पार्टी में आगे बढ़ाने में लगे हुए थे। राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल शर्मा ने उनका विरोध किया। नतीजे में चुनाव से ठीक पहले दोनों की कुसीर् गई। मगर तब तक पाटीर् की छवि खराब हो चुकी थी।

राज्य में पार्टी साफ संदेश देने में सफल नहीं हुई।

ग्वालियर में मां, बेटी को गोली मारी

ग्वालियर में मां, बेटी को गोली मारी
ग्वालियर, 20 अक्टूबर। मध्य प्रदेश में ग्वालियर के गोला का मंदिर इलाके में दिनदहाड़े कुछ लोगों ने एक घर में घुसकर मां-बेटी को गोली मार दी। महिला की मौत हो गई है जबकि बेटी की हालत गंभीर बनी हुई है।
गोला का मंदिर थाने से मिली जानकारी के मुताबिक बुधवार को अमलताश कॉलोनी में रहने वाले राधाकृष्ण शर्मा के घर में घुसकर मीरा शर्मा और उनकी बेटी नेहा को गोली मार दी गई। मीरा को गले में गोली लगी और उसकी मौत हो गई जबकि नेहा की हालत नाजुक बनी हुई है।
गोला का मंदिर थाने के पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया है। गोली किसने और क्यों चलाई, इसका पता नहीं चल पाया है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

करंट लगने से 2 विद्युतकर्मियों की मौत

करंट लगने से 2 विद्युतकर्मियों की मौत
रतलाम, 20 अक्टूबर। मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में चल रहे सुधार कार्य के दौरान अचानक बिजली आ जाने से दो विद्युत कर्मचारियों की मौत हो गई है। इस हादसे से गुस्साए ग्रामीणों ने जमकर हंगामा कर विद्युत दफ्तर में तोड़फोड़ की।
पुलिस नियंत्रण कक्ष से मिली जानकारी के अनुसार बुधवार को सैलाना थाना क्षेत्र के धामनौद में बिजली विभाग के कर्मचारी लाइन के सुधार कार्य में लगे थे। तभी अचानक बिजली चालू हो गई और करंट लगने से दो कर्मचारियों की मौके पर ही मौत हो गई।
दो बिजली कर्मचारियों की मौत की खबर मिलते ही ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने हंगामा करते हुए विद्युत दफ्तर में तोड़फोड़ कर दी। हालात तनावपूर्ण हैं और इलाके में भारी पुलिस बल की तैनाती कर दी गई है।

मंदिर-मस्जिद विवाद को सुलह समझौते से हल करने के प्रयास को खारिज करते हुए

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर-मस्जिद विवाद को सुलह समझौते से हल करने के प्रयास को खारिज करते हुए आज संत उच्चाधिकार समिति ने स्पष्ट कहा कि पूरी विवादित जमीन 'रामलला' की है और इसे रामलला को सौंपने की माँग को लेकर आगामी 23 या 24 अक्टूबर को समिति का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलेगा।

संत समिति ने प्रस्ताव पारित करके कहा कि रामलला विराजमान स्थल और उसके आसपास की पूरी अधिग्रहीत 70 एकड़ जमीन रामलला की है। इसे 'रामलला' को सौंपने के लिए प्रधानमंत्री से भी मिला जाएगा। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया जाएगा।

प्रस्ताव में कहा गया कि इसके साथ ही पूरे देश में जनजागरण अभियान चलाकर अधिग्रहीत परिसर रामलला को सौंपे जाने के लिए माहौल तैयार किया जाएगा। 21-10-2010

विदेश सचिव निरुपमा राव को सेवा विस्तार मिलने की संभावना है।


सरकार ने गृह सचिव, कैबिनेट सचिव, खुफिया प्रमुखों जैसे देश के प्रमुख राजनयिक पदों का कार्यकाल दो साल निर्धारित करने का फैसला किया है और विदेश सचिव निरुपमा राव को सेवा विस्तार मिलने की संभावना है।

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सरकार ने सिद्धांत रूप में विदेश सचिव का कार्यकाल भी इन शीर्ष अधिकारियों की तरह न्यूनतम दो साल निर्धारित करने का फैसला किया है, जो सुरक्षा मुद्दों से जुड़े होते हैं।

निरुपमा राव इस साल दिसंबर में सेवानिवृत्त होने वाली थी और उन्हें अगले साल जुलाई महीने तक के लिए सेवा विस्तार दिया जाएगा। उन्होंने शिवशंकर मेनन का स्थान लिया था, जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया था।

छह दिसंबर 1950 को पैदा हुई निरुपमा पहली अगस्त 2009 को विदेश सचिव नियुक्त की गई थीं। वह इस पद पर नियुक्त होने वाली दूसरी महिला हैं। अपने 37 साल के कार्यकाल में निरुपमा पेरू, चीन आदि में राजदूत रह चुकी हैं।

दिल की धमनियों के रोग के इलाज के लिए आधुनिकतम एंजियोप्लास्टी तकनीक

भारतीय डॉक्टरों ने दिल की धमनियों के रोग के इलाज के लिए आधुनिकतम एंजियोप्लास्टी तकनीक के तौर पर दवा युक्त एक गुब्बारे का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है और उनका कहना है कि स्टेंट की तुलना में यह गुब्बारा तकनीक अधिक असरकारी है।

जसलोक अस्पताल के हृदय रोग विभाग के निदेशक डॉ. एबी मेहता ने कहा कि देश भर में 2007 के बाद से लगभग 240 रोगियों पर नई तकनीक के परीक्षण किए गए और भारत के औषधि महा नियंत्रक से हाल में अनुमोदन मिलने के बाद हमने 160 और रोगियों पर इसका परीक्षण किया है।

उन्होंने कहा कि यह परीक्षण जसलोक अस्पताल, नानावती और एस्कोर्ट्स अस्पताल के अलावा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, सीएमसी वैल्लौर और मद्रास मेडिकल कालेज में किए गए।

मेहता ने इस तकनीक के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि स्टेंट वाली एंजियोप्लास्टी में गुब्बारे जैसे उपकरण को मैट्रिक्स तकनीक से विकसित दवा को कोट कर दिया जाता है और इसे 45 सेकंड के लिए धमनी के वसा वाले स्थानों पर रखा जाता है। वसा वाले यह हिस्से दवा को अवशोषित कर लेते हैं।

डॉ. मेहता ने कहा कि इस इलाज को विशेष तौर पर रेस्टेनोसिस के रोगी अधिक पसंद करते हैं, जब दूसरे स्टेंट को पुराने ब्लाक पर ही लगाया जाता है। इसके अलावा स्टेंट को लगाने में दिक्कत होने की स्थिति में भी इस इलाज को तरजीह दी जाती है। इस इलाज में लगभग 99,700 रुपए का खर्च आता है।

मेहता ने कहा कि यूरोपियन सोसायटी ऑफ कॉर्डियोलॉजी एंड नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हैल्थ एंड क्लीनिकल एक्सीलेंस, लंदनद्वारा अनुमोदित यह नया तरीका लंबे समय में स्टेंट के मुकाबले अधिक सुरक्षित भी है क्योंकि धमनियों में थक्का जमने की कम गुंजाइश होती है।

भारत की आर्थिक राजधानी मुंबईमें 200 साल पुरानी एक सुरंग मिली है।


भारत की आर्थिक राजधानी मुंबईमें 200 साल पुरानी एक सुरंग मिली है। इतिहासकारों का कहना है कि निर्माण कार्य के दौरान अनायास इस सुरंग के मिलने से मिट्टी में दबे पड़े अतीत से जुड़े तमाम महत्वपूर्ण नए तथ्यों का पता चलेगा।

मुंबई में डाक विभाग की ओर से की जा रही खुदाई के दौरान मजदूरों को इस सुरंग का पता चला। यह सुरंग दक्षिण मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल इलाके में स्थित डाक घर के नीचे मिली है।

डाक विभाग की निदेशक आभा सिंह ने बताया कि इस जगह पर अब तक झंडारोहण होता था और किसी को इसके ठीक नीचे मौजूद सुरंग के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। मजदूरों ने जब पामस की नाली को साफ करने के लिए मामूली सी खुदाई की तो कुछ सीढ़ियाँ दिखाई दीं। इनको साफ करने पर देखा गया कि सीढ़ियाँ सुरंग की ओर जा रही थी।

इससे पहले बीते शुक्रवार को एक अखबार के रिपोर्टर ने भी सीढ़ियों की तरफ डाक विभाग का ध्यान आकर्षित किया था। उसकी सूचना पर ही मजदूरों को कूड़ा करकट से अटी पड़ी सीढ़ियों की तरफ खुदाई करने को कहा गया।

मोटी दीवारों और पिलर के सहारे बनाई गई इस सुरंग में नीचे एक बड़ा सा हॉल पाया गया जिसके फर्श पर बिखरी पड़ी गंदगी के बीच कुछ अनजान पौधे मिले हैं जिनपर सुंदर फूल भी पाए गए। इसके अलावा भी तमाम पुरानी चीजें बिखरी पाई गई।

मुंबई में पुरातत्व अधिकारी दिनेश अफजालपुरकर ने बताया कि इस सुरंग का दौरा कर इसके पुरातात्विक महत्व का पता लगाया जाएगा। इसके बाद ही इसके संरक्षण और उपयोग संबंधी भविष्य की रूपरेखा तय की जाएगी।

ऑस्ट्रेलिया को दूसरे एक दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में पाँच विकेट से पराजित कर दिया।

युवा बल्लेबाज विराट कोहली (118) के शतकीय पराक्रम और युवराज सिंह (58) तथा सुरेश रैना (नाबाद 71) की शानदार अर्धशतकीय पारियों के दम पर भारत ने 290 रन का विशाल लक्ष्य होने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया को दूसरे एक दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में पाँच विकेट से पराजित कर दिया।

भारत ने इसके साथ ही विशाखापट्टनम में अपनी जीत की हैट्रिक पूरी कर ली और तीन मैचों की श्रृंखला में 1-0 की बढ़त हासिल कर ली। कोच्चि में पहला वनडे वर्षा के कारण रद्द रहा था। महेन्द्र सिंह धोनी की कप्तान के रूप में यह 50वीं जीत है।

'मैन ऑफ द मैच' कोहली ने अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ पारी खेलते हुए अपना तीसरा वनडे शतक बनाया और वह भारत की इस शानदार जीत के सूत्रधार रहे। कोहली ने 121 गेंदों में 11 चौकों और एक छक्के की मदद से बेहतरीन 118 रन बनाकर भारत को विश्व की नंबर एक टीम के खिलाफ यादगार जीत दिला दी।

भारत ने सात गेंद शेष रहते पाँच विकेट पर 292 रन बनाकर मैच अपनी झोली में डाल लिया। ऑस्ट्रेलिया ने हालाँकि कप्तान माइकल क्लार्क (नाबाद111) के पाँचवे शतक और कैमरून व्हाइट की नाबाद 89 रन की तूफानी पारी की बदौलत तीन विकेट पर 289 रन का मजबूत स्कोर खड़ा किया लेकिन अकेले कोहली का पराक्रम इन दोनों बल्लेबाजों पर भारी पड़ गया।

भारत ने हालाँकि अपने दो विकेट 35 रन पर गँवा दिए थे। ओपनर शिखर धवन अपने पदार्पण वनडे में खाता खोले बिना आउट हुए जबकि मुरली विजय 15 रन बनाकर आउट हुए, लेकिन इसके बाद कोहली ने अपने से कहीं सीनियर युवराज के साथ तीसरे विकेट के लिए 137 रन की साझेदारी कर भारत को जीत के रास्ते पर डाल दिया।

युवराज 87 गेंदों में पाँच चौकों की मदद से 58 रन बनाकर आउट हुए, लेकिन कोहली ने फिर रैना के साथ चौथे विकेट के लिए 84 रन जोड़कर भारत को जीत की दहलीज पर ला खड़ा किया। कोहली सीधा ऊँचा शॉट खेलने की कोशिश में चौथे विकेट के रुप में 256 के स्कोर पर आउट हुए।

कप्तान धोनी खाता खोले बिना बोल्ड हो गएँ लेकिन रैना ने फिर भारत को और कोई नुकसान नहीं होने दिया और सौरभ तिवारी (नाबाद 12) के साथ भारत को जीत की मंजिल पर पहुँचा दिया।

रैना ने मात्र 47 गेंदों में नौ चौकों और एक छक्के की मदद से नाबाद 71 रन ठोंके जबकि अपना पहला वनडे खेल रहे तिवारी ने अपनी पारी में दो चौके लगाए। भारत का विजयी चौका तिवारी के बल्ले से ही निकला।

ऑस्ट्रेलिया की तरफ से क्लाइंट मैके ने 55 रन पर तीन विकेट और जॉन हेस्टिंग्स ने 46 रन पर दो विकेट लिए। ऑस्ट्रेलिया को भारत दौरे में लगातार तीसरी हार का सामना करना पड़ा।

इससे पहले क्लार्क और व्हाइट ने सिर्फ 13.3 ओवर में चौथे विकेट के लिए 129 रन की ताबड़तोब साझेदारी कर ऑस्ट्रेलिया को मजबूत स्थिति में पहुँचा दिया। क्लार्क ने 138 गेंदों में सात चौकों और एक छक्के की मदद से नाबाद 111 रन बनाए जबकि व्हाइट ने बेहद खतरनाक अंदाज में खेलते हुए मात्र 49 गेंदों में छह चौके और छह गगनचुंबी छक्के उडाकर नाबाद 89 रन ठोक डाले।

व्हाइट के प्रहारों के सामने भारतीय गेंदबाज पूरी तरह बेदम नजर आए। व्हाइट ने 46वें ओवर में अपने छक्के उडाने की शुरुआत की और उन्होंने अपने छह छक्कों में से चार छक्के तो आर विनय कुमार की गेंदों पर ठोंके। व्हाइट का एक छक्का सीमारेखा को पार करता हुए दर्शकों के बीच गिरा। उन्होंने आखिरी ओवर में विनय कुमार की गेंदों पर तीन छक्के उड़ाए।

विनय के आखिरी ओवर में 23 रन पडे और वह भारत की तरफ से सबसे महँगे गेंदबाज साबित हुए। उन्होंने अपने नौ ओवर में 71 रन लुटाए। प्रवीण कुमार ने 51 रन दिए जबकि आशीष नेहरा ने 57 रन पर दो विकेट लिए। ऑफ स्पिनर आर अश्विन को 34 रन पर एक विकेट मिला।

क्लार्क ने दो विकेट मात्र 16 रन पर गिर जाने के बाद माइक हसी (69) के साथ तीसरे विकेट के लिए 144 रन और फिर व्हाइट के साथ चौथे विकेट की अविजित साझेदारी में 129 रन जोड़े। इन 129 रन में अकेले व्हाइट का योगदान 89 रन का था।

भारतीय कप्तान धोनी ने टॉस जीतकर पहले क्षेत्ररक्षण करने का फैसला किया। उनका फैसला उस समय तक ठीक दिखाई दे रहा था जब आशीष नेहरा ने ओपनर शान मार्श को शून्य पर बोल्ड कर दिया और उनके जोडीदार टिम पेन (9) को विनय कुमार के हाथों कैच कराया।

लेकिन इसके बाद क्लार्क ने हसी के साथ संभलकर खेलते हुए पहले टीम की स्थिति को सुधारा और फिर स्कोर को मजबूती की तरफ अग्रसर कर दिया। ऑस्ट्रेलिया के 100 रन 26वें ओवर में पूरे हुए थे जबकि उसके बाद 189 रन 24.3 ओवर में पूरे हुए। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने जमने के बाद कितनी शानदार बल्लेबाजी की और उनके सामने भारतीय गेंदबाज कितने बेबस नजर आए।

क्लार्क ने अपना अर्द्धशतक 76 गेंदों में चार चौकों की मदद से और हसी ने अपना अर्द्धशतक 62 गेंदों में पाँच चौकों की मदद से पूरा किया। अश्विन ने हसी को पगबाधा आउट कर भारत को तीसरी सफलता दिलाई। हसी ने 78 गेंदों में पर 69 रन की अपनी पारी में सात चौके लगाए।

लेकिन इसके बाद क्लार्क और व्हाइट ने भारतीय गेंदबाजी की बखिया उधेड दी। ऑस्ट्रेलिया ने आखिरी दो ओवर में 39 रन बटोरे। क्लार्क ने अपना पाँचवाँ वनडे शतक 133 गेंदों में सात चौकों की मदद से पूरा किया।

फार्म के लिए जूझ रहे क्लार्क ने सही समय में फार्म में वापसी की और डेढ़ वर्ष के अंतराल के बाद जाकर अपना पाँचवाँ वनडे शतक बनाया। उन्होंने गत 30 जून को इंग्लैंड के खिलाफ ओवल में नाबाद 99 रन बनाए थे। उनका पिछला शतक गत वर्ष मई में अबूधाबी में पाकिस्तान के खिलाफ बना था।

Tuesday, October 19, 2010

Tuesday, October 12, 2010

विशेष पर्यटन क्षेत्र स्थापित होंगे, राज्य पर्यटन विकास परिषद का गठन

विशेष पर्यटन क्षेत्र स्थापित होंगे, राज्य पर्यटन विकास परिषद का गठन

विलासिता कर, मनोरंजन और मुद्रांक शुल्क में छूट, प्रदेश की नयी पर्यटन नीति का मंत्रिपरिषद द्वारा अनुमोदन
Bhopal:Tuesday, October 12, 2010:


मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आज यहां सम्पन्न मंत्रिपरिषद की बैठक में प्रदेश की नयी पर्यटन नीति का अनुमोदन किया गया। नीति में निजी निवेश प्रोत्साहन, पीपीपी परियोजनाओं, सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण, विभिन्न विभागों और संस्थाओं की भागीदारी और ईको पर्यटन सहित विभिन्न विषयों पर महत्वपूर्ण प्रावधान किये गये हैं।

नीति में राज्य पर्यटन विकास परिषद के गठन का प्रावधान है। परिषद के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे तथा संभावित विभागों के मंत्री, अधिकारी और पर्यटन क्षेत्र के स्टेक होल्डर्स इसके सदस्य होंगे। जिला पर्यटन संवर्धन परिषद का गठन भी किया जायेगा। पर्यटन विभाग को जिला कलेक्टरों के साथ विचार विमर्श कर इनके स्वरूप को अंतिम रूप देने के लिये अधिकृत किया गया है।

प्रदेश के अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर्यटन की अपार संभावनाएं है लेकिन वहां निवेश की कोई पहल नहीं की गई है, इनमें इंदिरा सागर, गांधी सागर, संजय नेशनल पार्क, चम्बल, तामिया आदि शामिल हैं। ऐसे क्षेत्रों का चयन कर उन्हें विशेष पर्यटन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जायेगा। इन क्षेत्रों को चिन्हित करने तथा उनकी भौगोलिक सीमाओं के निर्धारण का कार्य राज्य पर्यटन संवर्धन एवं विकास परिषद द्वारा किया जायेगा। ऐसे क्षेत्रों में जो पर्यटक परियोजनाएं स्थापित होंगी, उन्हें भूमि के क्रय विक्रय के संव्यवहारों पर देय समस्त पंजीयन शुल्क से छूट रहेगी जो परियोजना शुरू होने के बाद पर्यटन विभाग द्वारा प्रतिपूर्ति के रूप में दी जायेगी। बार/होटलों को एफएल-2/3 बी लायसेंस फीस में 75 प्रतिशत की छूट दी जायेगी और वे न्यूनतम गारंटी की शर्त से मुक्त रहेंगे। इन परियोजनाओं को व्यपवर्तन प्रीमियम तथा शुल्क से भी छूट रहेगी। इन क्षेत्रों में पर्यटकों के परिवहन के उपयोग में लाये जा रहे वाहनों को परिवहन कर से पांच वर्ष की अवधि तक शत-प्रतिशत छूट दी जायेगी।

नयी नीति में यह प्रावधान है कि मध्यप्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम पूर्ववत पर्यटक सेवाओं को प्रदान करने का कार्य करता रहेगा, परंतु ऐसी इकाईयों को जो संतोषजनक लाभ का केन्द्र नहीं बनी है उन्हें प्रबंधकीय अनुबंध तथा दीर्घ अवधि की लीज पर निजी क्षेत्र को दे सकेगा। पर्यटन उद्योग के सभी हितधारी पक्षों के साथ समन्वय रखकर निगम समस्याओं के समाधान की पहल करेगा। ऐसे नये क्षेत्रों में निवेश करेगा जहां पर पर्यटन की संभावना है परंतु अधोसंरचना का विकास नहीं हुआ है। इससे उस क्षेत्र में निजी निवेश का मार्ग प्रशस्त होगा।

वर्तमान में होटल तथा वास गृहों में विलास वस्तुओं पर 500 रूपये तक विलासिता कर पर छूट है। इसके अलावा 501 से 1000 रूपये पर 5 प्रतिशत, तथा 1000 रूपये से अधिक पर 10 प्रतिशत कर लिया जाता है। नयी नीति में पूर्ण छूट के लिये 500 रूपये की सीमा को बढ़ाकर 2000 रूपये किया गया है। इससे अधिक राशि पर कर की दर 10 प्रतिशत रखी गई है। आफ सीजन में विलासिता कर शून्य किया गया है। आफ सीजन की अधिकतम अवधि तीन माह रहेगी।

नये होटलों के लिये वर्तमान में इंदौर, भोपाल ग्वालियर, जबलपुर और खजुराहो में पांच वर्ष तथा अन्य स्थानों में आठ वर्ष के लिये छूट है। इसके लिये एक करोड़ रूपये का न्यूनतम पूंजी निवेश तथा 10 कमरों का निर्माण आवश्यक है। नयी नीति में इंदौर, भोपाल को पांच वर्ष तथा शेष के लिये आठ वर्ष की अवधि रहेगी। 10 कमरों के प्रतिबंध को समाप्त कर दिया गया है। अगर पूर्व से संचालित होटल में 50 लाख रूपये से अधिक का पूंजी निवेश कर विस्तार किया जाता है तो के विस्तारित अंश को उपरोक्त अनुसार छूट रहेगी।

बेड एण्ड ब्रेकफास्ट योजना के अंतर्गत 5 कमरों की स्थापित इकाईयां विलासिता कर से मुक्त रहेंगी। उन पर पूंजी निवेश की सीमा तथा कमरों की संख्या का प्रतिबंध नहीं रहेगा।

एक अप्रेल 2006 के बाद किसी क्षेत्र में यदि नये हेरिटेज होटल की स्थापना की गई है तो उसे भी 10 वर्ष के लिये छूट की पात्रता होगी। ऐसे होटलों पर कमरों की संख्या का प्रतिबंध लागू नहीं होगा। होटल के निर्माण में न्यूनतम एक करोड़ रूपये के पूंजी निवेश की शर्त होगी।

आबकारी के संबंध में नीति में प्रावधान है कि मध्यप्रदेश पर्यटन निगम की सभी इकाईयों को न्यूनतम गारंटी के बंधन से मुक्त रखा जायेगा। मनोरंजन कर के संबंध में प्रावधान है कि पर्यटक परियोजनाओं में मनोरंजन के स्थाई साधनों के लिये 10 वर्ष तक छूट रहेगी। इन परियोजनाओं में आयोजित नृत्य संगीत आदि अस्थाई स्वरूप के मनोरंजन कार्यक्रमों पर भी परियोजना स्थापित होने के बाद 6 वर्ष की अवधि के लिये मनोरंजन कर से छूट दी जायेगी।

पर्यटन नीति में केसिनो खोले जाने के बारे में कोई प्रावधान नहीं है।

नयी नीति में नयी हेरिटेज पर्यटक परियोजना की स्थापना के लिये संबंधित हेरिटेज भवन के निर्मित क्षेत्र फल तथा उससे लगी अधिकतम एक हेक्टेयर भूमि के मूल्य पर पंजीयन एवं मुद्रांक शुल्क पर शत-प्रतिशत छूट दी जायेगी। पर्यटन विभाग द्वारा जो शासकीय भूमियां पर्यटन परियोजनाओं के लिये लीज/विकास अनुबंध पर दी जायेंगी उन पर पंजीयन एवं मुद्रांक शुल्क देय नहीं होगा।

पर्यटन विभाग द्वारा विनिर्दिष्ट पर्यटन मार्गों पर पर्यटन ऑपरेटरों को मोटर यान कर से दो वर्ष की छूट दी जायेगी। इस प्रावधान में नागपुर-पेंच-भेड़ाघाट-जबलपुर-मैहर-चित्रकूट तथा इंदौर-उज्जैन-बड़नगर-रतलाम-मंदसौर-नीमच पर्यटन मार्गों को भी जोड़ा जायेगा।

वर्तमान में सरकारी जमीन का नीलाम द्वारा निवर्तन करने की नीति के अनुसार निजी क्षेत्र को भूमि पट्टे पर आवंटित की जाती है। पर्यटन विभाग द्वारा इस निर्धारित नीति के अंतर्गत भूमि 90 वर्ष के पट्टे पर ही दी जायेगी। पर्यटन विभाग को हस्तांतरित कपितय भूमि को 90 वर्ष के पट्टे पर देने के स्थान पर उसका निस्तारण पीपीपी के माध्यम से किया जाना उपयुक्त हो सकता है। ऐसी भूमियों पर पर्यटन संबंधी गतिविधियों का विकास निजी निवेशकों के साथ विकास अनुबंध के माध्यम से किया जायेगा।

जो भी नयी पर्यटन परियोजनाएं स्थापित होंगी अथवा पुरानी स्थापित पुरानी योजनाओं के द्वारा नयी भूमि क्रय परियोजना का विस्तार किया जायेगा तो उन पर डायवर्सन शुल्क भू-राजस्व संहिता के अंतर्गत बने नियम के अनुसार आवासीय प्रयोजन के लिये निर्धारित दर के 20 प्रतिशत के बराबर होगी। यह लाभ परियोजना संचालन की अवधि के लिये होगा।

ईको तथा साहसिक पर्यटन के संबंध में यह प्रावधान है कि पर्यटन विभाग ईको/साहसिक पर्यटन से संबंधित गतिविधि का निर्धारण करने के लिये स्वतंत्र होगा। निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये पर्यटन विभाग द्वारा प्रस्ताव आमंत्रित किये जायेंगे। अगर उसे उस भूमि की लम्बे समय की आवश्यकता है तो उसे वह भूमि तीस वर्षीय विकास अनुबंध पर दी जायेगी।

यदि कोई हेरिटेज होटल तथा अन्य पर्यटक परियोजना केप्टिव पावर प्लांट स्थापित करता है तो उसे विद्युत उपकर से शत-प्रतिशत छूट दी जायेगी।

मध्यप्रदेश में फिल्म निर्माताओं द्वारा दिखाई जा रही रूचि को ध्यान में रखते हुये यह प्रावधान किया गया है कि पर्यटन विभाग द्वारा एक ऐसा प्लेटफार्म उपलब्ध कराया जायेगा जो फिल्म निर्माताओं को विधि मान्य अनुमतियां शासकीय विभागों से प्राप्त करने के लिये समन्वय करेगा। राज्य शासन द्वारा पर्यटन नीति में जल पर्यटन नीति, वायुसेवा तथा नागरिकों के लिये रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण से संबंधित प्रावधान भी शामिल किये गये हैं।

सेमेस्टर प्रणाली पर मंथन कर सुधार किया जाएगा : श्री लक्ष्मीकांत शर्मा

सेमेस्टर प्रणाली पर मंथन कर सुधार किया जाएगा : श्री लक्ष्मीकांत शर्मा

अतिथि विद्वानों के लिए नीति बनेगी, शासकीय महाविद्यालयों के प्राचार्यो की राज्य स्तरीय बैठक
Bhopal:Tuesday, October 12, 2010:


उच्च शिक्षा मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा है कि सेमेस्टर प्रणाली में सुधार के लिए विशेषज्ञों के साथ मंथन किया जाएगा। अगली शिक्षा सत्र से सेमेस्टर प्रणाली की कमियों को दूर कर लिया जाएगा और प्राचार्यों के सुझावों को भी ध्यान में रखा जाएगा। श्री शर्मा आज यहाँ समन्वय भवन में प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों के प्राचार्यों की बैठक को सम्बोधित कर रहे थे।

उच्च शिक्षा मंत्री श्री शर्मा ने कहा कि भवन विहीन महाविद्यालयों में भवन निर्माण की एक योजना तैयार की गई है। लगभग तीन करोड़ की लागत से महाविद्यालय भवन की एक माडल डिजाईन तैयार की गई है। जल्दी ही इस योजना को लागू करने के बारे निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि अतिथि विद्वानों के संबंध में भी नई नीति शीघ्र तैयार की जाएगी। अगले शिक्षा सत्र से अतिथि विद्वानों की नियुक्ति के लिए आवेदन आन लाईन राज्य स्तर पर प्राप्त कर शैक्षिणिक सत्र के पूर्व नियुक्तियां कर दी जाएगी। छत्तीसगढ़ में अतिथि विद्वानों की व्यवस्था का भी अध्ययन किया जाएगा। बैठक में प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा श्री प्रभांशु कमल और आयुक्त उच्च शिक्षा श्री राजीव रंजन भी उपस्थित थे।

महाविद्यालय के प्राचार्यों ने एक प्रमुख समस्या यह बताई की जनभागीदारी, यू.जी.सी और अन्य मदों से होने वाले निर्माण कार्यों में लोक निर्माण विभाग द्वारा समय पर कार्य नहीं करने से लागत बढ़ जाती है। कार्य अधूरे रह जाते है। उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि इस पर लोक निर्माण विभाग से चर्चा की जाएगी और महाविद्यालय स्तर पर एक ऐसी निर्माण समिति गठित करने पर विचार किया जाएगा जिसमें सभी प्रमुख लोग हो। यह समिति गुणवत्तापूर्ण निर्माण कार्य सुनिश्चित करेगी। प्राध्यापकों और स्टाफ की कमी की समस्याओं पर उच्च शिक्षा मंत्री श्री शर्मा ने कहा कि महाविद्यालयों में बढ़ी हुई विद्यार्थियों की संख्या को देखते हुए पदों का नया सेटअप तैयार कर मंत्रिपरिषद के सामने ले जाया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्राचार्यों को अधिकारों का विकेन्द्रीकरण किया जाएगा ताकि उनके अधीनस्थ प्राध्यापकों और कर्मचारियों का प्रशासनिक नियंत्रण बेहतर एवं अनुशासित ढ़ंग से हो सके।

श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने सभी प्राचार्यों से उनके महाविद्यालय की समस्याओं और उपलब्धियों तथा भविष्य की योजनाओं के संबंध में लिखित प्रतिवेदन बुधवार तक देने के लिए कहा। इस प्रतिवेदन पर छ: माह के भीतर कार्यवाही सुनिश्चित करने का आश्वासन देते हुए उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि छ: माह बाद पुन: प्राचार्यों की बैठक होगी और उसमे समस्याओं के निराकरण की समीक्षा की जाएगी और निदान नहीं करने के लिए जवाबदार लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने कहा कि जनभागीदारी समितियों से लाभ हुआ है। स्थानीय स्तर पर संसाधन जुटाने में सफलता मिली है और उच्च शिक्षा से समाज जुड़ा है। उन्होंने यू.जी.सी. से अधिकतम फन्ड लेने और महाविद्यालयों में प्रोफेशनल कोर्स बड़ी संख्या में शुरू करने के निर्देश दिये।

प्राचार्यों ने इस बैठक को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलाव के लिए महत्वपूर्व अवसर बताया। यह पहला मौका है जब प्रदेश में महाविद्यालीन प्राचार्यों की बैठक उच्च शिक्षा में सुधार के लिए हो रही है। कल जनभागीदारी समितियों के अध्यक्षों की बैठक भी प्राचार्यों के साथ होगी। यह बैठक खुले मंच के रूप में हुई जब उच्च शिक्षा के मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा और प्रमुख सचिव और आयुक्त सामने बैठकर प्राचार्यों से उनकी दिक्कतें सुन रहे थे, और शिक्षा में सुधार के उनके सुझाव नोट कर रहे थे।

प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा श्री प्रभांशु कमल ने बैठक के उद्देश्यों के बारे में बताते हुए कहा कि अकादमिक कलेण्डर का दृढ़ता से पालन, गुणवत्ता और रोजगारोंमुखी शिक्षा बढ़ाने के साथ ही सकल प्रवेश अनुपात बढ़ाने का सरकार का लक्ष्य है। आयुक्त उच्च शिक्षा श्री राजीव रंजन ने प्राचार्यों को समय पर आनलाईन जानकारियां भेजने के निर्देश दिये। सुबह 11 बजे शुरू हुई यह बैठक शाम 6 बजे तक चली। उच्च शिक्षा मंत्री उद्घाटन के बाद केबिनेट बैठक में भाग लेने के उपरान्त अन्त तक बैठक में उपस्थित रहे। इस दौरान कुलपति इंदौर विश्वविद्यालय श्री पी.के.मिश्रा, श्रीमती शशि राय, इग्नू के क्षेत्रीय निदेशक श्री के.एस. तिवारी और सरोजनी नायडू कन्या महाविद्यालय की प्राचार्य श्रीमती शोभना मारु और ई लाइब्रेरी के संबंध में विशेषज्ञों ने प्राचार्यों को जानकारी दी। जनभागीदारी समिति के अध्यक्षों की बैठक आज शासकीय महाविद्यालयों के प्राचार्यो के साथ जनभागीदारी समिति के अध्यक्षों की संयुक्त बैठक बुधवार 13 अम्टूबर से 10:30 बजे को समन्वय भवन में होगी।




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