कीर आदिवासी समाज द्वारा दीपावली पर्व पर पितरों को तर्पण किया जाता है।
(राजेंद्र कश्यप,दीपक शर्मा द्वारा)
दीपावली पर्व सारे देश में विभिन्न मान्यताओं के साथ मनाया जाता है। कीर आदिवासी राजस्थान, गुजरात ,उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में बहुलता से निवासी करते हैं। कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात:काल से समाज के स्त्री ,पुरूष और बच्चे निवास के पास के नदी या तालाब के पास पहुंच कर स्नान कर नए रंगबिरंगे वस्त्र पहनते हैं,और उपवास रख़ते हुए नदी के किनारे ही शु़द्धतापूर्वक भोजन बनाकर सूर्य अस्त होने के पूर्व ही अपने पितरों को जल धूप नारियल प्रसाद अग्नि में अर्पित करते हैं। कीर आदिवासियों की मान्यता है कि केवल इस दिन ही हमारे पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर आकर होम ग्रहण करती है। शाम होने पर नदी किनारे और अपने घरों पर श्रद्धापूर्वक दिए जलाते है। जिसकी रोशनी देख पितरों की पवित्र आत्माएं पृथ्वी पर आकर उस होम को ग्रहण कर लें। पितरों के होम के पूर्व गोरा और महादेव की पूजा अर्चना कर गीत गाए जाते हैं।
कीर समाज की मुख्य भूमि राजस्थान है वहीं से मुगलों कर लड़ते -लड़ते उत्तर प्रदेश,राजस्थान गुजरात और मध्यप्रदेश की नदियों और तालाब के किनारे बसते गए। मध्य प्रदेश में भूपाल राज्य में मुख्यत: निवास करते रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति डा0 शंकर दयाल शर्मा ने भोजपुर मिंदर के पास कीर समाज के निवासियों के टीले के बीच एक स्तंभ का शिलान्यास वषाzें पूर्व किया था। कीर समाज के बुजुर्गों की मान्यता है कि शिवशक्ति का केंद्र भोजपुर मंदिर की रक्षा करने के लिए हजारों वषोzं से हम इसके पास के गांवों में रहते रहे हैं। हमेशा भोजपुूर की रक्षा करते रहेंगे।
कीर समाज के लोग किसी भी प्रदेश में रहे उनकी भाषा में आज भी राजस्थानी पुट रहता है। स्त्रियों की वेशभूषा राजस्थानी रहती है। कार्तिक अमावस्या को पितरों को होम देकर संकल्प करते हैं कि प्रत्येक परिस्थितियों में अपना गांव नदी तालाब के किनारे की जलीय खेती, तरबूज,खरबूज,सिंघाड़ा आदि सब्जियों का उत्पादन बढ़ाकर अपने व्यवस्था की रक्षा और समृद्धि करते हुए शिव मंदिरों की रक्षा करते रहेंगे।
इस अवसर पर कुल देवताओं और पितरों की मनौती पूरी करना और घर परिवार के साथ गांव क्षेत्र की खुशहाली तथा समृद्धि की तमन्ना के साथ ही अपने पशुओं की रक्षा की प्राथना होती है। अपनी अनूठी परंपरानुसार दीपावली पर्व पितरों के होम तर्पण के रूप में पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन सांडनी की पूजा विशेष रूप से की जाती है, जिस पर बैठकर ही कीर समाज का दूल्हा बारात लेकर जाता है। कई वषोzं पूर्व भोजपुर के पास कीर नगर नामक गांव इसी आदिवासी समाज द्वारा बसाया गया है।
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