Thursday, November 6, 2014

वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राधाल्लभ शारदा द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखा गया पत्र

वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राधाल्लभ शारदा द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखा गया पत्र


प्रति,
श्री शिवराज सिंह चौहान
मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश
भोपाल

विषय : प्रदेश के पत्रकारों में असंतोष एवं सरकार के प्रति आक्रोश।

महोदय,
भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र एवं राज्य सरकारें आम जनता के हितों को ध्यान में रखकर अच्छे निर्णय ले रही है और ये सारे निर्णय भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र के अनुसार है। यहां तक तो सब ठीक है परन्तु सरकार एवं संगठन द्वारा लिये गये निर्णयों एवं कार्यों को आम जन तक पहुंचाने वाले पत्रकार एवं छोटे समाचार पत्र मध्यप्रदेश सरकार के जनसम्पर्क विभाग के अधिकारियों की तानाशाही के शिकार हो रहे है। अधिकारी वर्ग पत्रकारों एवं छोटे समाचार पत्रों को अपनी तानाशाही से उद्वेलित कर भाजपा एवं सरकार के प्रति असंतोष उत्पन्न कर रहे है। 

जनसम्पर्क विभाग द्वारा किये जा रहे कार्य :-

1. विधानसभा चुनाव के पूर्व भाजपा के घोषणा पत्र में अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों को लेपटॉप देने की बात कही थी। विभाग को इस मद में 12 करोड़ मिल चुके है। परन्तु विभाग के अधिकारियों ने लेपटॉप देने के लिये जो नियम एवं शर्तें रखी है जो अनुचित है। घोषणा पत्र में नियम एवं शर्तों का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। विभाग द्वारा रखे नियम एवं शर्तों से ऐसा लगता है कि पत्रकारों को विभिन्न श्रेणी में बांटा गया। मुझे लगता है कि अंग्रेजों की नीति ‘फूट डालो राज करो’ का पालन किया जा रहा है। 

2. छोटे समाचार पत्रों को आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है। जहां सरकार छोटे उद्योगों को प्रदेश में बरियता देते हुए प्रोत्साहित कर रही है। वहीं आम जन एवं सरकार के मध्य सेतू का काम करने वाले समाचार पत्रों के लिये विज्ञापन देने में कटौती कर दी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने तो यहां तक कह दिया कि ‘समाचार पत्रों को विज्ञापन क्यों दे उनसे क्या लाभ’ का सीधा-सीधा अर्थ है कि अब सरकार को चलाने वाले अधिकारी जिनके परिवार एवं उनका पेट भरने, मौज-मस्ती के लिये जो वेतन एवं भत्ते प्रतिमाह मिलते है वो आम जनता से टैक्स के रूप में प्राप्त धन से दिये जाते है। नौकरी करने वाला व्यक्ति नौकर होता है परन्तु म.प्र. के जनसम्पर्क विभाग के अधिकारी अपने आप को मालिक समझ कर मनमाने निर्णय ले रहे है। 

3. जनसम्पर्क विभाग ने अधिमान्यता नियमों में संशोधन कर जटिल कर दिये है। पत्रकार को अधिमान्यता से रेलवे द्वारा 50 प्रतिशत किराये पर यात्रा का अधिकार मिलता है। अधिमान्यता कार्ड दिखाने पर वाहन का टोल टैक्स नहीं लगता तथा उसे कार्ड दिखाने पर मंत्रालय में प्रवेश हेतु पास नहीं बनवाना पड़ता है। विभाग द्वारा मात्र एक कार्ड दिया जाता है। 

4. राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के हवाला देते हुए जिन शासकीय आवासों में पत्रकार निवासरत है उन्हें खाली कराने का मन बना लिया है। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के समय कुछ पत्रकारों को शासकीय आवास आवंटित किये तब सरकारी अफसरों ने क्या सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं की। प्रदेश की आबादी के साथ-साथ समाचार पत्र एवं पत्रकारों की संख्या में भी वृद्धि हुई उस अनुपात में पत्रकारों के लिये शासकीय आवास का कोटा भी बढ़ाना था जो नहीं हुआ। 

5. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय अनुसार समाचार पत्रों में कार्यरत पत्रकारों को वेज बोर्ड के अनुसार वेतन मिलना चाहिये परन्तु इस ओर भी सरकारी अफसरों का ध्यान नहीं है। सरकार के श्रम विभाग के पास पत्रकारों एवं अन्य कर्मचारियों के आंकड़ें भी नहीं है कि किस समाचार पत्र में कितने पत्रकार और अन्य कर्मचारी कार्यरत है। 
सरकारी तंत्र भाजपा एवं सरकार के प्रति पत्रकारों एवं छोटे समाचार पत्र मालिकों में असंतोष की भावना फैलाने का कार्य कर रहा है। अत: हमारा आग्रह है कि पत्र के प्रत्येक बिन्दु की समीक्षा एक उच्च स्तरीय कमेटी से कराई जाए उस कमेटी में श्रम विभाग में पंजीयत पत्रकार संगठन के सदस्यों को रखा जाए। जब तक समीक्षा होकर निर्णय नहीं होता तब तक पुराने नियमों एवं घोषणा पत्र का पालन किया जाए। 
धन्यवाद,

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