Monday, December 5, 2011

संपादक हो गये सौमित्र जी


संपादक हो गये सौमित्र जीBy संजअनिल सौमित्र जब भी मुझे मिलते हैं मैं हमेशा उन्हें कहता हूं- अनिल जी के सौ मित्र, उसमें से एक मैं भी हूं. सौमित्र का संधि विच्छेद करके जो विशेषण निकलता है वे उस विशेषण के बिल्कुल अनुरूप हैं. सौम्य हैं. शांत हैं. और मित्र तो ऐसे बनाते हैं जैसे कोई चना चबैना हो. आसान सफर हो या मुश्किल डगर, जैसे चना चबैना सबसे सस्ता और सुमग होता है वैसे ही अपने अनिल सौमित्र सबके लिए सुगम हैं. यही अनिल सौमित्र अब संपादक हो गये हैं.

पिछले तीन चार सालों में विस्फोट ने जो कुनबा तैयार किया है उसमें अनिल सौमित्र का आगमन भी अपने आप ही होता है. ठीक ठीक याद नहीं कि कैसे संपर्क हुआ लेकिन शुरूआत फोन से हुई. अनिल सौमित्र वैसे तो रहते भोपाल में हैं लेकिन पढ़ाई लिखाई दिल्ली से की है. पढ़ाई भी कौन सी. वही पत्रकारिता वाली. दिल्ली के दक्खिन में जो देश का सबसे प्रतिष्ठित पत्रकारिता विद्यालय है उसी इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मास कम्युनिकेशन से अनिल सौमित्र ने भी पत्रकारिता पढ़ी है. पत्रकारिता पढ़े और दिल्ली में कुछ दिन दौड़े भी. कोशिश की कि डिग्री दीवार पर टांगने से अच्छा है किसी अखबार के दफ्तर में दिखा दी जाए और कुछ सैलेरी वैलरी वाली नौकरी कर ली जाए. लेकिन कोशिश कामयाब हो यह जरूरी तो नहीं होता है. पत्रकारिता में नौकरी होने के लिए ढेर सारे संयोगों का होना जरूरी होता है. इन समस्त संयोगों में नैतिकता का नाश, जी हुजुरी का विलास और स्वामिभक्ति का मोहपाश तो दिखना ही चाहिए. अनिल जी कुछ कच्चे थे इसलिए न नौकरी मिली न पत्रकारिता हुई.

तो, दिल्ली छोड़ भोपाल की ओर दौड़ गये. इधर अब जबकि मैं उनके सौ मित्रों में शामिल हूं तो एक दफा मैंने पूछा आप भोपाल क्यों गये तो कारण उन्होंने वह नहीं बताया जो हम आंकलन कर रहे हैं. उन्होंने जो कारण बताया वहीं से हम अनिल जी को समझने की कोशिश भी कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि दिल्ली बहुत बड़ा शहर है. यहां का भीमकाय रूप और भागभाग की जिन्दगी दोनों यहां से दूर जाने के लिए मजबूर करती हैं. बिहार से दिल्ली होते हुए अब वे पूरे भोपाली हो चले हैं. बातचीत में बार बार मालवा की बोली हौ हौ भी बोलते हैं जिससे लगता है कि हम सचमुच किसी भोपाली से ही बात कर रहे हैं. भोपाल में उन्होंने जाकर नौकरी कर ली हो ऐसी बात भी नहीं है. लेकिन पत्रकारिता और एक खास विचारधारा की पक्षधरता उन्होंने जारी रखी.
खास विचारधारा की पक्षधरता इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आरएसएस जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कहते हैं उसकी शाखाओं से निकले पत्रकार अक्सर अपनी पहचान छुपाते हैं. ऐसा वे क्यों करते हैं पता नहीं. हो सकता है वे पत्रकारिता में छापामार बनकर काम करना चाहते हों या ये भी हो सकता है कि उन्हें अपनी ही विचारधारा पर अविश्वास हो इसलिए पहचान छुपाते हैं. अनिल सौमित्र ऐसे नहीं है. लंबे समय तक उन्होंने आरएसएस के पत्रकारिता विभाग विश्व संवाद केन्द्र के लिए काम किया और इसे अपनी पहचान भी बनाया. वे जानते थे कि इस पहचान के कारण तथाकथित मुख्य धारा की पत्रकारिता के आंगन में पेड़ लगाना मुश्किल होगा लेकिन मानों वे अपनी विचारधारा के गमले में ही खुश थे. उन्हें गमले से निकलकर विस्तार पाने की ऐसी छद्म लालसा कभी नहीं रही है जिसमें विचारधारा का संकट पैदा होता हो. उन्हें यह बताने में हमेशा खुशी होती है कि वे राष्ट्रवादी विचारधारा के पत्रकार हैं.

लेकिन इस राष्ट्रवादी विचारधारा के बीच भी कोई लकीर के फकीर नहीं हैं. वे अपने परिचय में हमेशा एक लाइन जोड़ते हैं कि वे मीडिया एक्टिविस्ट हैं. आरएसएस की विचारधारा के बीच रहते हुए मीडिया एक्टिविज्म को प्रासंगिक रख पाना उनके मुखर स्वभाव का ही परिणाम है. इसी एक्टिविज्म को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने भोपाल में सामाजिक और राजनीतिक संपर्कों की एक लंबी श्रृंखला निर्मित कर रखी है. अगर आप अनिल सौमित्र की इस श्रृंखला में प्रवेश करेंगे तो पायेंगे कि माला की तरह हर मनके के बाद सौमित्र जी सूत की तरह मौजूद रहते हैं. उनका सौम्य स्वभाव उनको प्रासंगिक बनाये रखता है और कई बार गधा, घोड़ा खच्चर भी बना देता है. जो आता है, चार काम लाद कर चला जाता है. लेकिन अनिल सौमित्र ने कभी किसी को ना नहीं किया. लिखने पढ़ने और परिवार में पूरा समय देने के बाद भी लोगों के लिए लगातार काम करते रहना उनकी खासियत है.

यही अनिल सौमित्र अब संपादक हो गये हैं. मध्य प्रदेश में भाजपा की पत्रिका चरैवेति के. बताते हैं कि पत्रिका करीब पैंसठ हजार छपती है और भाजपा कैडर तथा कार्यकर्ताओं के वैचारिक स्तर पर संपर्क बनाये रखने का सशक्त माध्यम है. लेकिन जितना हम अनिल जी को जानते समझते हैं हम उम्मीद कर सकते हैं कि संपादक होने के बाद भी उनका एक्टिविज्म जारी रहेगा जिसका फायदा किसी को हो न हो कम से उस विचारधारा और उस पत्रिका को जरूर होगा जो अब उनका अगला काम है.
य तिवारी

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