Saturday, December 10, 2011

भोपाल में दुनिया का सबसे बड़ा तब्लीगी इज्तिमा शुरू

भोपाल 10 दिसंबर 2011। सरजमीने भोपाल की पहचान यहां की मलिकाओं और मस्जिदों के बाद भोपाल के तब्लीगी इज्तेमा से है। 64 वर्ष पूर्व चंद अल्लाह के दीवानों ने दीन की गौर ओ फिक्र में भोपाल को चुना। उनके इखलास और नीयत की बदौलत आज पूरी दुनिया में दावत और दीन की हवाएं चल रही हैं। भोपाल की ताजुल मसाजिद के प्रांगण में 64 साल पूर्व एक जमात की कार्यकारिणी से आज पूरे विश्व में ताजुल मसाजिद के मीनारों की सदाएं गूंज रही हैं। इस जमात की विशेषता यह है कि इसके पास एक ऐसा फार्मूला है जिसकी बदौलत समाज में वो बदलाव आता है जो आज के संवैधानिक तौर-तरीकों से भी नामुमकिन है। दावत के जरिए बुजुर्गाने दीन के मुंह से निकली बात से बड़े-बड़े डाकू भी सब कुछ छोड़कर राहे दीन में उतर आए वहीं यूरोपीय और एशिया के अनेक मुल्कों में लोग ईमान से सरफराज हो गए और यह सिलसिला निरंतर जारी है। इस जमात की एक और विशेषता यह है कि इस जमात का हर कार्यकर्ता वही अहमियत रखता है जो कि आला जमाती रखता है। इसमें दिखावा और राजनीतिक हस्तक्षेप की गुंजाइश तो बहुत दूर उसका छींटा भी नजर नहीं आता। पूरा कार्य नीयत और अमल पर है। इस्लामी देशों में सऊदी अरब, ईरान, इराक, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे मुल्क भी इस बात का लोहा मानते हैं कि भारत में भोपाल एक ऐसा शहर है जहां पर दीन का सरचश्मा बह रहा है।

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