Tuesday, April 30, 2013

आदतन अपराधी अपर सचिव गृह के पद पर...?


केदारलाल शर्मा (आई.ए.एस.) ने  सरकार को अँधेरे में रख कर पाया पद
भोपाल,  30 अप्रैल, 2013। मध्यप्रदेश सरकार के अपर सचिव गृह केदारलाल शर्मा (आईएएस) की आपराधिक पृष्ठभूमि को नजरअंदाज करते हुए उन्हंे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गयी है। जिसके चलते षिवराज शासन के सुषासन का सपना चकनाचूर हो रहा है। जिस केदारलाल शर्मा पर 1996 में डकैती का प्रकरण, जान से मारने की एफआईआर, सरकार को गुमराह करके प्रमोषन पाना और गृह मंत्रलाय में बैठकर अपने ही अपराधों को और दस्तावेजों को गायब करने जैसा गंभीर आरोप प्रमाणित हो चुका है। हाल ही में सरकार ने उन्हें निदेषक अभियोजन मध्यप्रदेष के पद से हटाया जरूर, मगर वो भी उच्च न्यायालय के निर्देष पर। उल्लेखनीय है कि केदारलाल शर्मा और उनका परिवार आपराधिक पृष्ठभूमि का है जिसके कारण उन पर 02.03.1997 को उज्जैन के माधव नगर थाने में एफआईआर दर्ज हुई है। जिसमें एक अन्य डिप्टी कलेक्टर प्रकाष रेवाल, तहसीलदार बोथरा आदि शामिल है।
सूत्रों ने बताया कि बल्लभ भवन में पदस्थ उप सचिव के के खरे जो इन दिनों ग्वालियर के संभाग आयुक्त है। उनके साथ डकैती की घटना केदारलाल शर्मा द्वारा की गयी जिसकी एफआईआर 02.03.1997 को माधव नगर थाना उज्जैन में दर्ज हुई है। केदारलाल शर्मा ने पांच अन्य लोगों के साथ मिलकर खरे के आवास में डकैती की थी जो एफआईआर में उल्लेखित है। केदारलाल शर्मा जब देवास में पदस्थ थे तब वहां के एसडीएम रहे अषोक भार्गव को प्रमोषन से रोकने के लिए उन्हें एक झूठी अजा, अजजा अधिनियम की रिपोर्ट में उलझा दिया था। इसी तरह केदारलाल शर्मा जब माध्यमिक षिक्षा मंडल भोपाल में सचिव के पद पर थे तब उन्होनें आषा अग्रवाल नामक महिला को महज इसलिए हटा दिया था कि उसने फर्जी मार्कषीट के गोरखधंधे को उजागर करते हुए केदारलाल शर्मा की असलियत जाहिर कर दी थी।
इसी प्रकार 4 मई 2000 को एक नकल प्रकरण में तत्कालीन एडीएम उज्जैन रहे केदारलाल शर्मा की पत्नी मनीषा शर्मा माधव कालेज उज्जैन में नकल करते पकड़ी गयी और अपने पति का प्रभाव दिखाकर प्राचार्य डा.षिव शर्मा को जान से मारने की धमकी देने की आरोपी है। इसी तरह एक अन्य आपराधिक षड़यंत्र एवं धोखाधड़ी तथा कूटरचना का मामला थाना अपराध अनुसंधान विभाग पीएचक्यू में दर्ज है। जिसमें आपराधिक कृत्य होने के कारण केदारलाल शर्मा एवं इनकी एक अन्य सहयोगी प्रीति जैन ने 22.10.1999 को अपनी अग्रिम जमानत करवाई। लेकिन इन दोनों ने शासन को आपराधिक कृत्य छुपाने के लिए गुमराह भी किया। प्रीती जैन के पति एनके जैन तत्कालीन न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी उज्जैन को पद के दुरूपयोग और कृत्यों को छिपाने के कारण एडीजे फास्टट्रैक इंदौर की पदस्थापना के दौरान उच्च न्यायालय इंदौर/जबलपुर ने निलंबित किया और तीन साल बाद पदावन्नत करके मंडला में इन दिनों पदस्थापना की है।
यहंा यह उल्लेखनीय है कि जब एक आरोपी आईएएस केदारलाल शर्मा को गृह मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गयी है जिसमें वे भारतीय पुलिस सेवा जैसी महत्वपूर्ण शाखा संचालित कर रहे है। वहां अपने पुराने कृत्यों कें रिकार्ड में हेराफेरी और महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब करने जैसे अपराध भी कर गुजरेंगे। क्या गृह मंत्रालय मध्यप्रदेष शासन ऐसे आदतन आपराधिक प्रवृत्ति के अधिकारियों के भरोसे ही प्रदेष की कानून व्यवस्था चलायेंगे ?
इस संबंध में मध्यप्रदेश के गृहमंत्री उमाषंकर गुप्ता से जब पूछा गया तो उन्होने कहा कि "मुझे प्रकरण की जानकारी अभी मिली है यदि अपर सचिव गृह शर्मा इस प्रवृत्ति के है और उन पर ये मामलें है तो सरकार सिरे से विचार करेंगी।"


मक्का-मदीना जाने वालों की सूची जारी


भोपाल 30 अप्रैल 2013। मक्का और मदीना की हसरत रखने वाले खुदा के महमानों के लिए हज कुरा संपन्न हुआ। प्रदेश हज कमेटी द्वारा प्रदेश के हज कुरे के लिए 11143 लोगों में से 1443 लोगों का टिकिट कन्फर्म हुआ। भोपाल के 2094 लोगों में से 160 लोगों को स्थान मिला। सबसे कम 16 आवेदन डिंडोरी जिले से प्राप्त हुए जिनमें से 2 लोगों को मौका मिला। हज कुरा संपन्न होने के पूर्व शहर काजी सै. मुश्ताक अली नदवी ने चयनित लोगों को बधाई देते हुए कहा कि वह अल्लाह का शुक्र अदा करें और जिन लोगों का कुरा नहीं खुला वे मायूस न हों अल्लाह से मांगें एक दिन उनका भी नंबर आयेगा। इस अवसर पर शहर काजी के अलावा प्रदेश हज कमेटी के अध्यक्ष डॉ. सनव्वर पटेल, हज कमेटी ईओ दाऊद खान सहित अनेक लोग उपस्थित थे।


अब एमएएस से ऑनलाइन मिलेगी बिल्डिंग परमीशन


भोपाल 30 अप्रैल 2013। नगर निगम में परिवर्तन की शुरूआत हो गई है। निगम आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद आईएएस विशेष गढ़पाले ने निगम की कार्य प्रणाली में पारदर्शिता लाने हेतु म्युनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम (एमएएस) को पूर्ण रूप से लागू करने की ठान ली है। श्री गढ़पाले ने लेखा विभाग में चल रहे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए ठेकेदारों को कोई भी चैक सीधे जारी न कर म्युनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम से ऑन लाइन जारी करने, भवन अनुज्ञा अनुमति तथा लायसेंस को भी कम्प्युटीकृत कर म्युनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम से ऑनलाइन जारी करने के निर्देश दिये। साथ ही निगम कर्मचारी-अधिकारियों का संपूर्ण डाटा भी ऑनलाइन करने को कहा है।
नगर निगम लोगों के रोजमर्रा के कामकाज से सीधा जुड़ा है। नगर निगम में अधिकारियों से लेकर कर्मचारी बिना रिश्वत के काम नहीं करते। यह सभी जानते है, परन्तु अब तक जितने भी निगम आयुक्त रहे, उन्होंने नगर निगम के ढर्रे को बदलने की चेस्टा नहीं की। सिवाय पूर्व आयुक्त गुलशन बामरा और मनीष सिंह के अलावा किसी अन्य आयुक्त ने जैसा है, वैसे ही सिस्टम में काम करना बेहतर समझा। अब विशेष गढ़पाले ने न सिर्फ अधिकारी-कर्मचारियों की नकेल कसना शुरू किया है, बल्कि काम में लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ कार्रवाई की है। नगर निगम के लेखा विभाग में पेमेंट पाने की आस में ठेकेदारों का जमावड़ा लगा रहता। श्री गढ़पाले ने लेखा विभाग को निर्देशित किया है कि 1 जून 2013 से कोई भी चैक सीधे जारी न कर म्युनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम के तहत ऑन लाइन जारी किए जाएं। साथ ही 5 मई से भवन अनुज्ञा कम्प्यूटरीकृत कर म्युनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम से जारी करने के निर्देश दिये। इसके साथ ही निगम के लायसेंस को भी कम्प्यूटरीकृत करने को कहा है। उन्होंने ठोस अपशिष्ठ प्रबंधन (उपभोक्ता प्रभार) के सभी खाते कम्प्यूटरीकृत करने को कहा है। नगर निगम ने परियोजना उत्थान के तहत म्युनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम लागू किया है। इस सिस्टम हेतु विकसित साफ्टवेयर में नगर निगम की सभी प्रक्रियाओं को कम्प्यूटरीकृत किये जाने का प्रावधान है। एमएएस सिस्टम को लागू करने के मामले में नगर निगम को पुरस्कार भी मिल चुका है।

महिला मोर्चा ने बनाई मंडल स्तर की कार्य योजना


भोपाल, 29 अप्रैल, 2013। भाजपा की महिला मोर्चा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में मंडल, नगर, ग्राम और मतदान केंद्र स्तर तक की कार्ययोजना तैयार की गई। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए खासतौर पर महिला मोर्चा को सक्रिय किया जा रहा है।
आज प्रदेश भाजपा कार्यालय में हुई महिला मोर्चा की बैठक में मोर्चा की राष्टïरीय अध्यक्ष सरोज पांडे, प्रदेशाध्यक्ष लता वानखेड़े, प्रदेश महामंत्री एवं मोर्चा प्रभारी माया सिंह सहित लगभग सभी पदाधिकारी मौजूद थे। महिला मोर्चा की प्रदेश कार्यकारिणी की इस बैठक में शामिल होने आई लगभग सभी पदाधिकारी भगवा रंग की साड़ी में नजर आ रही थी। महिला मोर्चा की इस बैठक में प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और प्रदेश संगठन महामंत्री अरविंद मेनन भी मौजूद थे। 


Wednesday, April 10, 2013

Tuesday, April 9, 2013

जनसंपर्क विभाग की संचार प्रतिनिधि कल्याण समिति गठित

जनसंपर्क विभाग की संचार प्रतिनिधि कल्याण समिति गठित
भोपाल। राज्य शासन ने जनसंपर्क विभाग की 24 सदस्यीय संचार प्रतिनिधि कल्याण समिति का गठन किया है। यह समिति आदेश जारी होने की दिनांक 5 अप्रैल 2013 से एक वर्ष के लिये प्रभावशील रहेगी। समिति में सर्वश्री गिरिजाशंकर, मनीष दीक्षित, अजय त्रिपाठी, प्रशांत जैन, मनोज शर्मा, राजेन्द्र शर्मा, दीपक तिवारी, शरद द्विवेदी, गणेश साकल्ले, राजेश सिरोठिया तथा सिकंदर अहमद, भोपाल को शामिल किया गया है। समिति के अन्य सदस्यों में सर्वश्री धनंजय प्रताप सिंह, जबलपुर, विनोद तिवारी भोपाल, राकेश पाठक, ग्वालियर, दिनेश गुप्ता, इंदौर, सीताराम ठाकुर, सुरेश शर्मा, कीर्ति राणा, प्रकाश भटनागर, के.के. अग्निहोत्री, लेमुअल लाल, भोपाल, दिनेश गुप्ता, ग्वालियर तथा प्रकाश हिन्दुस्तानी, इंदौर सम्मिलित हैं।

जनसंपर्क विभाग की राज्य-स्तरीय अधिमान्यता समिति का गठन

जनसंपर्क विभाग की राज्य-स्तरीय अधिमान्यता समिति का गठन
भोपाल। राज्य शासन ने जनसंपर्क विभाग की राज्य-स्तरीय अधिमान्यता समिति का गठन किया है। समिति में 24 सदस्य शामिल किए गए है। यह समिति आदेश जारी होने के दिनांक 5 अप्रैल, 2013 से एक वर्ष के लिये प्रभावशील रहेगी।
समिति में सर्वश्री हेमंत शर्मा, अरुण चौहान, इंदौर, मृगेन्द्र सिंह, नितेन्द्र शर्मा, रंजन श्रीवास्तव, वीरेन्द्र शर्मा, भोपाल, पंकज शुक्ला, जबलपुर, लोकेन्द्र पाराशर, ग्वालियर, मिलिंद घटवई, अनुराग उपाध्याय, बृजेश राजपूत, आत्मदीप, अमित जैन, सुशील शर्मा, अक्षत शर्मा, भोपाल, धर्मेन्द्र भदौरिया, ग्वालियर, गिरीश उपाध्याय, ह्रदयेश दीक्षित, श्रीमती दीप्ति चौरसिया, भोपाल को शामिल किया गया है। इसी प्रकार समिति में श्री प्रवीण खारीवाल, श्री अरविंद तिवारी, इंदौर, श्री सतीश एलिया, श्री जिनेश जैन तथा श्री सिद्धार्थ रंजन दास, भोपाल को भी सम्मिलित किया गया है।

जनसंपर्क विभाग की संचार प्रतिनिधि कल्याण समिति गठित
भोपाल। राज्य शासन ने जनसंपर्क विभाग की 24 सदस्यीय संचार प्रतिनिधि कल्याण समिति का गठन किया है। यह समिति आदेश जारी होने की दिनांक 5 अप्रैल 2013 से एक वर्ष के लिये प्रभावशील रहेगी। समिति में सर्वश्री गिरिजाशंकर, मनीष दीक्षित, अजय त्रिपाठी, प्रशांत जैन, मनोज शर्मा, राजेन्द्र शर्मा, दीपक तिवारी, शरद द्विवेदी, गणेश साकल्ले, राजेश सिरोठिया तथा सिकंदर अहमद, भोपाल को शामिल किया गया है। समिति के अन्य सदस्यों में सर्वश्री धनंजय प्रताप सिंह, जबलपुर, विनोद तिवारी भोपाल, राकेश पाठक, ग्वालियर, दिनेश गुप्ता, इंदौर, सीताराम ठाकुर, सुरेश शर्मा, कीर्ति राणा, प्रकाश भटनागर, के.के. अग्निहोत्री, लेमुअल लाल, भोपाल, दिनेश गुप्ता, ग्वालियर तथा प्रकाश हिन्दुस्तानी, इंदौर सम्मिलित हैं।

Sunday, April 7, 2013

आदिवासियों का मुख्य शत्रु राज्य है. माओवादियों की भांति वे भी चाहते है


 आदिवासियों का मुख्य शत्रु राज्य है. माओवादियों की भांति वे भी चाहते है लोकतंत्र के मंदिर पर बंदूकधारियों का कब्ज़ा हो. ज़ाहिर है बंदूकधारी माओवादियों और उनके कलमधारी समर्थकों का अजेंडा एक है. आंबेडकर की भाषा में कहा जाय तो वेद्विश्वासी आर्यों का दोनों ही खेमा आदिवासियों को जंगली व असभ्य बनाये रखना चाहता है. 

चूंकि माओवादी नेता आदिवासी इलाकों में व्याप्त शोषण और गरीबी को हथियार बनाकर ही अपना लक्ष्य पूरा करना चाहते हैं इसलिए वे अपने इच्छित लक्ष्य के लिए नरेगा-मनरेगा जैसी राहत टाइप की योजनाओं में भी बाधक बनते तथा अलेक्स पाल मेनन जैसे कर्तव्यनिष्ठ अफसरों का अपहरण करते रहेंगे। अब अगर सरकारें वेद विश्वासियों के शिकंजे से आदिवासियों को मुक्त कर उन्हें 21 वीं सदी में पहुँचाना चाहती है तो उनकी आकांक्षा के अनुरूप कार्ययोजना बनायें.

21वीं सदी के सूचनातंत्र ने आदिवासियों की आकांक्षाएं जल-जंगल-जमीन से बहुत आगे बढ़ा दी है. वे भी मेट्रोपोलिटन शहरों के लोगों की भांति अत्याधुनिक सुख-सुविधाओं का भोग करना चाहते हैं. वे भी उद्योगपति-व्यापारी;अख़बारों और फिल्म स्टूडियो के मालिक तथा किसी एमएनसी के सीइओ बनने जैसे सपने देखना शुरू कर दिए है. ऐसे में माओवाद प्रभावित इलाकों की सरकारें यदि ईमानदारीपूर्वक आदिवासियों को सप्लाई,डीलरशिप,ठेकों ,पार्किंग-परिवहन,प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मिडिया इत्यादि में सख्यानुपात में भागीदारी देने की ठोस नीति की घोषणा कर दें ,परिदृश्य पूरी तरह बदल जायेगा. तब नरेगा-मनरेगा में एवरेस्ट बननेवाले माओवादी उनकी आकांक्षा को देखते हुए क्रांति के लिए किसी और समुदाय कि तलाश में निकल जायेंगे.

अगर सरकारें माओवाद के खात्मे तथा अदिवासियों को सभ्यतर जीवन प्रदान करने के लिए ऐसी नीति पर अमल करना चाहती हैं तो 13 जनवरी 2002 को भोपाल के ऐतिहासिक दलित –आदिवासी सम्मलेन,जिसमे महान आदिवासी विद्वान दिवंगत रामदयाल मुंडा ने भी शिरकत किया था, से जारी डाइवर्सिटी केंद्रित ‘भोपाल-घोषणापत्र’ एक मार्गदर्शन का काम कर सकता है.इसमे दलित-आदिवासियों को कैसे उद्योगपति-व्यापारी,ठेकेदार इत्यादि बनाया जाय,इसका उपाय सुझाया गया है. इससे प्रेरणा पाकर ही आज अम्बेडकरवादी आन्दोलन डाइवर्सिटी आन्दोलन में तब्दील हो चुका है.
hl-dusadhएच एल दुसाध  डाइवर्सिटी मिशन के अध्यक्ष हैं.

adevase

यही नहीं, उनका दुर्भाग्य यही तक सीमित नहीं रहा। निरीह आदिवासियों के बीच गैर-अदिवासी इलाकों के ढेरों और वेदविश्वासी पहुंचे. वैदिकों की नंबर-2 टीम ने अपनी तिकडमबाजी और जालसाजी के चलते अपना राज कायम कर, उन्हें गुलाम बना लिया. जमीन उनकी और मालिक बन गए बाबुसाहेब और बाबाजी. मेहनत उनकी और फसल काटते रहे बाबाजी-बाबूसाहेब. ये उनके श्रम के साथ उनकी इज्ज़त-आबरू भी बेरोक-टोक लुटते रहे.इन इलाकों में सपोर्टेशन,सप्लाई,डीलरशिप इत्यादि सहित जो भी थोड़ी बहुत आर्थिक गतिविधियां थी,सब पर इनका कब्ज़ा कायम हो गया.

उनके दुर्भाग्य का चक्का यहीं नहीं थमा. शोषण और गरीबी के दलदल में धकेले गए आदिवासियों पर नजर पड़ी वैदिकों की ही एक और टीम की. वैदिकों की नंबर-3 टीम शोषण-गरीबी को हथियार बनाकर भारत में मार्क्स और माओ का सपना पूरा करने के लिए उपयुक्त लोगों की तलाश में थी. उन्होंने पहाड़ी-विद्रोह(1756-1773 ),चुवार-विद्रोह(1793-1800),गोंड-विद्रोह(1819-1842),कोल-विद्रोह(1831-1832),संथाल-विद्रोह(1855-1856)और सरदार मुंडा-विद्रोह (1859-1894)के इतिहास के आईने में यह गणित तैयार कर लिया कि सिद्धू-कानू-विरसा मुंडा की संतानों को गरीबी-और शोषण के सहारे क्रांति के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसे में अपने लक्ष्य के लिए विस्तृत भूभाग में फैले आदिवासियों पर ही ध्यान केंद्रित किया और इनके लिए बड़ी चालाकी से जल-जंगल और जमीन के अधिकार की लड़ाई का सुरक्षित अजेंडा स्थिर किया. इससे वे अपने सजाति वैदिकों की नंबर-२ टीम के उद्योग-व्यापार आदि पर कब्जे को सुरक्षित रखते हुए जल-जंगल-जमीन की अंतहीन लड़ाई में खुद को व्यस्त रख सकते थे.

आदिवासी इलाकों में माओवाद/नक्सलवाद के प्रसार के साथ माओवादियों के समर्थन में हाथ में कलम लिए वैदिकों की एक और टीम मैदान में उतर आई. वैदिकों की इस टीम नंबर-4 में लेखक –पत्रकार, कालेज और विश्वविद्यालयों के अध्यापक तथा विदेशों से करोड़ो-करोड़ों का अनुदान पानेवाले एनजीओ संचालक हैं. माओवाद के बौद्धिक समर्थक विलासितापूर्ण जीवन शैली के अभ्यस्त हैं. 

ये महंगी से महंगी शराब और सिगरेट का सेवन करते तथा शहरों के आभिजात्य इलाकों में वास करते हैं.ये मंचों से अमेरिका की बखिया उधेड़ते हैं किन्तु अपने बच्चो को वहां सेटल करने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं.इन बौद्धिकों की मिडिया में सीधी पहुँच है, लिहाजा माओवाद तथा आदिवासी मामलों के एक्सपर्ट के रूप में ये अपनी छवि स्थापित का लिए हैं. आदिवासी समस्या पर आमलोग इनकी ही भाषा बोलते नजर आते हैं.

आदिवासी और माओवादियों के बीच इनका बेरोक-टोक आना-जाना रहता है. आदिवासियों की बेहतरी के लिए इनका क्या अजेंडा है? इनका पहला अजेंडा यह है कि आदिवासी इलाकों में उद्योग-धंधे न लगें. इससे उनका विस्थापन और शोषण होता है. दूसरा,आदिवासी संस्कृति को बाहरी प्रभाव से बचाया जाय और आदिवासियों को जल,जंगल और जमीन का बेरोक-टोक अधिकार दिया जाय. तीसरा,कुछ हद तक हिडेन है और वह यह है कि आ

सवर्णों के कब्जे में आदिवासी संघर्ष



 शोषण और गरीबी के दलदल में धकेले गए आदिवासियों पर नजर पड़ी वैदिकों की ही एक और टीम की. वैदिकों की नंबर-3 टीम शोषण-गरीबी को हथियार बनाकर भारत में मार्क्स और माओ का सपना पूरा करने के लिए लोगों की तलाश में थी...
एच एल दुसाध 

चार दशक से चल रहे नक्सलवादी आन्दोलन के इतिहास में 6 मार्च 2010 एक खास दिन था. उस दिन माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी ने घोषणा किया था, ’हम 2050 के बहुत पहले भारत में तख्ता पलट कर रख देंगे. हमारे पास अपनी पूरी फ़ौज है.’ उनके उस बयान पर गृहसचिव जीके पिल्लई ने कहा था, ’माओवादी यह सपना देखते रहें, आखिर डेमोक्रेसी में सबको सपना देखने का अधिकार है.’ जाहिर है सरकार ने माओवदियों की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया था. किन्तु उसके बाद थोड़े-थोड़े अंतराल पर बड़ी-बड़ी वारदातों को अंजाम देकर यह संकेत देते रहे कि वे सिर्फ सपना ही नहीं देखते बल्कि उसे मूर्त रूप देने कि कूवत भी रखते हैं.
tribals-adivasis-of-indiaबहरहाल माओवादी जब-जब राष्ट्र को सकते में डालनेवाली घटनाओं को अंजाम देते हैं, तब-तब हमारे बुद्धिजीवी भी कलम के साथ सक्रिय हो जाते हैं. कोई सरकार को माओवादियों से कड़ाई से निपटने का सुझाव देता है तो कोई माओवाद प्रभावित इलाकों में विकास की गंगा बहाने का नुस्खा पेश करता है. कुछ बुद्धिजीवी विदेशी विद्वानों के अध्ययन के आधार पर नए सिरे से इस समस्या के जड़ को पहचानने की कोशिश करते हैं. किन्तु ऐसे लोग इसकी जड़ों की पहचान के लिए संविधान निर्माता डॉ आंबेडकर की ओर मुखातिब नहीं होते. जबकि सच्चाई यही है कि डॉ आंबेडकर को पढ़े बिना न तो हम इस समस्या की सही पहचान कर सकते हैं और न ही उपयुक्त समाधान 
 षण औआजाआजाद भारत में शक्ति के स्रोतों का जो असमान बंटवारा हुआ। उससे सर्वाधिक प्रभावित होनेवाले आदिवासी ही रहे. ऐसा क्यों कर हुआ,इसका जवाब डॉ आंबेडकर की महानतम रचना ’जाति का उच्छेद’ में ढूंढा जा सकता है. उन्होंने आदिवासियों की दुर्दशा के कारणों की खोज करते हुए इसमें लिखा है, ’अपने को सुसंस्कृत एवं सभ्य माननेवाले हिंदुओं के बीच ही करोड़ों से अधिक असभ्य और अपराधी जीवन व्यतीत करनेवाले आदिवासी विद्यमान हैं, परन्तु हिंदुओं ने कभी इस स्थिति को लज्जाजनक अनुभव नहीं किया. इस लज्जाहीनता की मिसाल मिलना कठिन है. हिंदुओं की इस उदासीनता का क्या कारण हो सकता है? क्या कारण है कि आदिवासियों को सुसभ्य व सम्मानित जीवन बिताने का अवसर प्रदान करने का कोई प्रयत्न नहीं किया गया?

हिंदुओं द्वारा ऐसा चाहते हुए भी संभव नहीं था. ईसाई मिशनरियों की भांति काम करके अदिवासियों को सम्मुनत बनाने का अर्थ होता, उन्हें अपने कुटुम्बियों की भांति अपनाना,उनके साथ रहना, उनमे परिजनों का भाव पैदा करना. सारांश यह कि उन्हें हर प्रकार से स्नेह प्रदान करना. किसी हिंदू के लिए यह कैसे संभव था ? हिंदू के जीवन का उद्देश्य ही अपनी संकुचित जाति की रक्षा करना है. जाति उसकी बहुमूल्य थाती है, जिसे वह किसी भी दशा में गंवा नहीं सकता, फिर भला वेदनिन्दित अनार्यों की संतान इन आदिवासियों के संसर्ग में आकर हिंदू अपनी जाति खोने को क्यों तैयार होते? बात यहीं तक नहीं है कि हिंदुओं को पतित मानवता के प्रति द्रवीभूत नहीं किया जा सकता. कठिनाई यह रही है कि कितना प्रभाव क्यों न डाला जाय, हिंदुओं को अपनी जाति निष्ठा छोडने के लिए राजी नहीं किया जा सकता .

वेदनिन्दित अनार्य आदिवासियों के दुर्भाग्य से आजाद भारत की सत्ता वेदविश्वासियों के हाथ में आई, जिन्होंने शक्ति के स्रोतों में इनका प्राप्य नहीं दिया. आदिवासी इलाकों में लगने वाली परियोजनाओं में बाबु से मैनेजर आर्य संतानें ही रहीं.यदि इन्होंने इनको उन परियोजनाओं की श्रमशक्ति,सप्लाई,डीलरशिप,ट्रांसपोर्टेशन इत्यादि में न्यायोचित भागीदारी तथा विस्थापन का उचित मुआवजा दिया होता, इनकी स्थित कुछ और होती.

यही नहीं, उनका दुर्भाग्य यही तक सीमित नहीं रहा। निरीह आदिवासियों के बीच गैर-अदिवासी इलाकों के ढेरों और वेदविश्वासी पहुंचे. वैदिकों की नंबर-2 टीम ने अपनी तिकडमबाजी और जालसाजी के चलते अपना राज कायम कर, उन्हें गुलाम बना लिया. जमीन उनकी और मालिक बन गए बाबुसाहेब और बाबाजी. मेहनत उनकी और फसल काटते रहे बाबाजी-बाबूसाहेब. ये उनके श्रम के साथ उनकी इज्ज़त-आबरूआजाद भारत में शक्ति के स्रोतों का जो असमान बंटवारा हुआ। उससे सर्वाधिक प्रभावित होनेवाले आदिवासी ही रहे. ऐसा क्यों कर हुआ,इसका जवाब डॉ आंबेडकर की महानतम रचना ’जाति का उच्छेद’ में ढूंढा जा सकता है. उन्होंने आदिवासियों की दुर्दशा के कारणों की खोज करते हुए इसमें लिखा है, ’अपने को सुसंस्कृत एवं सभ्य माननेवाले हिंदुओं के बीच ही करोड़ों से अधिक असभ्य और अपराधी जीवन व्यतीत करनेवाले आदिवासी विद्यमान हैं, परन्तु हिंदुओं ने कभी इस स्थिति को लज्जाजनक अनुभव नहीं किया. इस लज्जाहीनता की मिसाल मिलना कठिन है. हिंदुओं की इस उदासीनता का क्या कारण हो सकता है? क्या कारण है कि आदिवासियों को सुसभ्य व सम्मानित जीवन बिताने का अवसर प्रदान करने का कोई प्रयत्न नहीं किया गया?

हिंदुओं द्वारा ऐसा चाहते हुए भी संभव नहीं था. ईसाई मिशनरियों की भांति काम करके अदिवासियों को सम्मुनत बनाने का अर्थ होता, उन्हें अपने कुटुम्बियों की भांति अपनाना,उनके साथ रहना, उनमे परिजनों का भाव पैदा करना. सारांश यह कि उन्हें हर प्रकार से स्नेह प्रदान करना. किसी हिंदू के लिए यह कैसे संभव था ? हिंदू के जीवन का उद्देश्य ही अपनी संकुचित जाति की रक्षा करना है. जाति उसकी बहुमूल्य थाती है, जिसे वह किसी भी दशा में गंवा नहीं सकता, फिर भला वेदनिन्दित अनार्यों की संतान इन आदिवासियों के संसर्ग में आकर हिंदू अपनी जाति खोने को क्यों तैयार होते? बात यहीं तक नहीं है कि हिंदुओं को पतित मानवता के प्रति द्रवीभूत नहीं किया जा सकता. कठिनाई यह रही है कि कितना प्रभाव क्यों न डाला जाय, हिंदुओं को अपनी जाति निष्ठा छोडने के लिए राजी नहीं किया जा सकता .