Sunday, July 25, 2010

सफेद घर में आपका स

सफेद घर में आपका स

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Sunday 25 July 2010
संडे के दिन पत्नी के बजाय जब मैंने डोसा बनाया... कुछ रोचक राजनीतिक अनुभव हुए .....जाना कि डोसा बनाना भी एक कला है....आखिर देश एक तवा जो ठहरा.........सतीश पंचम
आज sunday वाली छुट्टी के दिन जब घर में डोसा बनाया जा रहा था तब उसी वक्त पीने का पानी भी आ गया। अब या तो डोसा बनाया जाय या पानी भरा जाय। ऐसे में पत्नी को मैंने कहा कि चलो आज तुम पानी भरो और मैं डोसा बनाता हूँ। वैसे पहले कभी मैंने डोसा नहीं बनाया था....हाँ खाया खूब है।



तो, मैं कूद गया डोसा बनाओ अभियान में। पहले पैन में तेल की परत लगाने हेतु आधे कटे प्याज को तेल में डुबोकर उसे रगड़ा। सीं सीं की सनसनाहट हुई। लगा कि हाँ बर्तन गरम हो गया है। तुरंत एक कलछुल डोसा पेस्ट डाला। अब उसे फैलाना भी जरूरी है। सो उसी कलछुल से फैलाने भी लगा....लेकिन वह पेस्ट न जाने कौन सा आकर्षण बल लिए था कि गर्मी में फैलने की बजाय वह थोड़ा कड़ा होकर कलछुल से ही लिपट गया। जितना ही फैलाने की कोशिश करूँ.....उतना ही चिपका जाय। अब क्या तो तवे पर फैलाउं और क्या तो डोसा बनाउँ। लग रहा था जैसे कि मेरा कलछुल बंगाल है और सफेद डोसा पेस्ट ..... ममता बनरजी...जितना ही पूरे देश के तवे में रेल फैलाने की कोशिश करूँ ............ममता उतनी ही सख्ती से बंगाल से चिपकी रहें ।

खैर, किसी तरह से खराब-खुरूब बना कर रख दिया। अब सोचा कि अबकी तेल की परत थोड़ा मोटा रहना चाहिए ताकि चिपके नहीं.....इसलिए ज्यादा तेल डाल दिया। अब जैसे ही डोसा पेस्ट को तवे में डाला तो किनारे पर कुछ पेस्ट का हिस्सा चला गया। तवे के उसी किनारे पर सारा तेल जाकर पहले से इकट्ठा हो गया था। अब क्या...एक ओर सफेद डोसा पेस्ट.....दूसरी ओर तेलीहर क्षेत्र.........दोनों के मिलन स्थल पर सनसनाहट सी दिखने लगी.....पतले किनारे तो तेल की परत से हल्के हल्के फड़फड़ाने लगे। लग रहा था जैसे कि सीमा विवाद उत्पन्न हो गया हो। डोसा कहे यह मेरा क्षेत्र है....तेल कहे यह मेरा.....अब नीचे से आग तो नेताओं की तरह मैंने ही लगाई थी.....सो जाहिर है दोनों के मिलन स्थल पर हलचल होगी ही। लेकिन यह माजरा ज्यादा देर तक न चला। आग से कुछ ही देर में डोसा की वह गीली परत सूख गई और तेल भी समझ गया कि अब लड़ने झगड़ने से कोई फायदा नहीं है.....अब समय काफी बीत चुका है.... सो ठीक हमारी जनता की अन्य समस्याओं की तरह खुद- ब - खुद मामला सुलट गया......समय बड़ा बलवान होता है यह फिर साबित हो गया।


लेकिन अभी कहां....अभी तो मुझे और डोसा बनाना था। सो फिर एक बार डोसा पेस्ट डाला। अबकी डोसा पेस्ट तवे पर डालते समय उसके कुछ हिस्से डोसा के मूल बड़े भाग से अलग गिर गए हांलाकि वह गिरे तवे पर ही थे। जब मैंने ध्यान दिया तो लगा कि अरे यार यह वाला हिस्सा तो श्रीलंका की तरह अलग थलग द्वीप सा लग रहा है। इसे भी मूल डोसा का हिस्सा होना चाहिए। इसलिए मैंने मूल डोसा के गीले हिस्से को कलछुल से खींच खांच कर इस छोटे द्वीप से मिलाने की कोशिश की लेकिन मूल डोसे का उपरी हिस्सा तब तक आँच से सख्त हो गया था। भारत की तरह। मानों कह रहा हो...श्रीलंका की समस्या उसकी अपनी है। वह अलग थलग पड़ा तो तुम क्यों उसे मिलाने पर तुले हो। लेकिन डोसे का तमिलनाडु वाला हिस्सा कह रहा था कि नहीं...आखिर वहां के लोग भी तो हमारे डोसा पेस्ट वाले ही है। उन्हें यूँ नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इसी जद्दोजहद में समय बीतता गया और डोसा कड़क हो गया। जो जहां था वहीं का रहा। डोसे का मूल हिस्सा भारत की तरह अपनी जगह....श्रीलंका का छोटा हिस्सा अपनी जगह। समय फिर बलवान साबित हुआ।


अब फिर मैने पहले वाले डोसे को तवे से अलग कर तेल की परत जमाना शुरू किया। लेकिन तेल लगाते समय जो आधा कटा प्याज था वह अचानक खलरा छोड़ने लगा.... उसका छिलका उतरने लगा....मानों कह रहा हो कि क्या मैं ही बचा हूँ सीआरपीएफ की तरह हमेशा नक्सलियों से आफत मोल लेने के लिए। चमचों का इस्तेमाल क्यों नहीं करते इस तेल लगाउ अभियान में। अगर तुम्हारे चम्मचों ने सही से काम किया होता.....विकास की परत हर ओर बराबर फैलाई होती तो क्या मजाल जो नक्सली आँच का सामना करना पड़ता। लेकिन तुम अपने चम्मचों को तो शोकेस में सजाए हो और तेज आँच के बीच तेल लगाने मुझे भेज रहे हो...यह कहाँ का न्याय है। चलो हटो....अब मेरी परतें झड़ने लगी हैं।
मजबूरन मुझे चम्मच का सहारा लेना पड़ा और जब उससे तेल फैलाने लगा तवे पर.... तब आदतन तेल एक विशेष क्षेत्र की ओर जा कर टिक जाता....ठीक वैसे ही जैसे आरामपसंद राजनीतिज्ञ अपनी राजनीति की मलाईएक विशेष कोने में रखे हुए होते हैं। चूँकि पहला वाला आधा प्याज काफी घायल हो चुका था इसलिए मैने प्याज के बाकी बचे दूसरे टुकड़े वाले हिस्से को उपयोग में लाना शुरू किया। लेकिन वह प्याज चूँकि नया था सो तेल की परत लगाते समय ज्यादा सनसना रहा था। सीआरपीएफ की पुरानी टुकड़ी के मुकाबले उसे अनुभव कम था....जाहिर है....प्याज बयानबाजी कर रहा था। अनदेखे इलाके में आँच लगना स्वाभाविक था नये प्याज को।

इधर मैं अपनी पत्नी को एक से एक बहाने गढ़ कर बता रहा था कि आँच तेज थी...प्याज जल उठा.... इसलिए डोसा काला पड़ गया.... वगैरह वगैरह....ठीक चिदंबरम जैसी हर हमले के बाद वाली बातें .... बहाने वगैरह वगैरह।


थोड़ी देर बाद फिर वही हाल.....डोसा अब जल कर बहुत काला पड़ गया। मैंने पत्नी से कहा कि आसपास जरूर कोई रेडिओएक्टिव तत्व है जिसकी वजह से डोसे काले पड़ रहे हैं।


यह सिलसिला काफी देर चला। राम राम कर किसी तरह डोसे बन गए।


मैं अब सोचता हूँ कि यह देश एक डोसा मेकिंग एक्टिविटी की तरह है....नीचे से आँच तो नेता लोग लगाते ही रहते हैं.....लेकिन हर मसला समय बीतने के साथ या तो खुद ब खुद सुलझ जाता है या सख्त होकर कभी न सुलझने के लिए काला पड़ जाता है । इसी बीच रह रह कर काला पड़ने के लिए किसी बाहरी तत्व यानि की रेडियोएक्टिव तत्व की दलील जरूर दी जाती है :)

इन सारी बतियों में समय का बड़ा महत्व होता है। जब तक गीला है तब तक तेज आँच के बीच भी मामला सुलझ सकता है...समय बीतने पर .......दंतेवाडा़ और कश्मीर बनते देर नहीं लगती।


- सतीश पंचम

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