Sunday, April 3, 2011
एमपी भाजपा खुलासा करे कि कौन सी तीस सीटों पर अभी से वाकोंवर दे दिया हैं?
भोपाल। भाजपा प्रदेश में हेट्रिक बनाने के लिये काफी पहले से योजना बनाने में जुटी हुयी हैं। पहले कांग्रेस से हारी हुयी सीटों को चिन्हित कर प्रभारी नियुक्त किये गये थे जिनमें भी कद्दावर इंका विधायकों के क्षेत्र में काफी बौने नेताओं को प्रभार दिया गया था। हाल ही में उज्जैन में हुयी प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति में तीस सीटों पर अभी से वाकोवर देकर दो सौ सीटें जीतने की योजना बनायी गयी हैं। इसमें कांग्रेस के दिग्गजों से सौदे बाजी की बू आ रही हैं। ऐसा भी समझा जा रहा हैं कि इस सौदेबाजी में लोकसभा की कुछ सीटें भी बलि चढ़ेंगी। वैसे प्रदेश में यह कोई नयी बात नहीं हैं दिग्गी राजा के कार्यकाल में कांग्रस लोकसभा हार कर विधानसभा चुनाव जीत जाती थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और प्रदेश भाजपा पिछले कई महीनों से हेट्रिक बनाने की योजना बनाने और उस पर अमल करने में जुटे हुये हैं। इस सिलसिले में आज से कुछ महीने पहले यह तय किया था कि भाजपा उन सभी सीटों को जीतने की रणनीति बनायेगी जो सीटें वो इस चुनाव में कांग्रेस से हारी थी। इसके लिये उसने विधानसभावार प्रभारी भी नियुक्त किये थे। प्रभारियोंकी जो सूची जारी हुयी थी उसे लेकर भी राजनैतिक क्षेत्रों में आश्चर्य व्यक्त किया गया था। कांग्रेस के कई कद्दावर नेताओं के क्षेत्रों में जो पर्यवेक्षक नियुक्त किये थे उनका राजनैतिक कद बहुत बौना था। उदाहरण के लिये विधानसभा उपध्यक्ष हरवंश सिंह के केवलारी विधानसभा क्षेत्र में विधायक जयसिंह मरावी को प्रभारी बनाया गया था। प्रभारी बनने के बाद से वे आज तक केवलारी क्षेत्र में नहीं आये हैं। इसे लेकर मुख्यमंत्री के सिवनी जिले के सुकतरा प्रवास के दौरान क्षेत्र के भाजपाइयों ने शिकायत भी की थी जिसे मुख्यमंत्री ने यह कह कर टाल दिया था कि यदि आप चुनाव में भाजपा को जिता देते तो यह नौबत ही नहीं आती। अब वे विधानसभा उपाध्यक्ष हैं तो उनकी बात तो अधिकारी सुनेंगें ही। यह तो रहा प्रभारियों का आलम। अब हाल ही में उज्जैन में आयोजित प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी में भाजपा ने यह तय किया हैं कि वो 200 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चलेगी। वैसे तो यह बात सही हैं कि कोई भी राजनैतिक दल प्रदेश की सभी सीटें नहीं जीतती लेकिन दो साल पहले से ऐसा भी नहीं किया जाता कि कई सीटे छोड़ देने की मांसकिता बनायी जाये और उसे सार्वजनिक किया जाय। प््राद्रेश भाजपा के इस निर्णय से यह बात साफ हो जाती हैं कि भाजपा ने अभी से तीस सीटें छोड़ देने का मन बना लिया हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं हैं कि प्रदेश के कांग्रेस के दिग्गजों दिग्विजय सिंह,कमलनाथ,सुरेश पचैरी और ज्यातिरादित्य सिंधिया के चुनिंदा समर्थक विधायकों के लिये अभी से वाकोवर देने की रणनीति बना ली हैं ताकि आसानी से तीसरी पारी खेली जा सके। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का यह भी मानना हैं कि परदे के पीछे खेले जा रहे इस खेल में कुछ भाजपायी लोकसभा सीटों की भी सौदेबजी करने की योजना हो। वैसे भी प्रदेश में यह कोई नई बात नहीं हैं जब भाजपा और कांग्रेस के चुनिंदा नेताओं के बीच ऐसे राजनैतिक सौदे ना हुये हों। जब दिल्ली में अटल बिहारी की सरकार थी तब भी ऐसा ही कुछ दिग्गी राजा के कार्यकाल में भी होता था। प्रदेश में कांग्रेस लोकसभा की अधिकांश सीटे हार जाती थी और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन जाती थी। ऐसा ही कुछ पिछले लोकसभा चुनाव में शिवराज के राज में हुआ जब कांग्रेस प्रदेश में चार से सोलह लोंकसभा सीटें जीत गयी थी। जबकि कुछ ही महीनों पहले हुये चुनाव में भारी बहुमत से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी। ऐसी ही कुछ योजना तीसरी पारी खेलने के लिये यदि बनायी जा रही हो तोकोई बड़ी बात नहीं हैं। अब तो सभी को इस बात की उत्सुकता हैं कि वे कौन सी तीस सीटें हैं जिन्हें भाजपा ने अभी से छोड़ दिया हैं। भाजपा को चाहिये कि वो इस बात का खुलासा करें। राजनैतिक क्षेत्रों में यह भी चर्चा हैं कि ऐसी सौदेबाजी करने में माहिर नेताओं ने अपनी जुगाड़ जरूर जमा ली होगी।सियासी हल्कों में यह भी चर्चा जोरों पर हैं कि कहीं इन तीस सीटों में विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की केवलारी सीट सहित कई कद्दावर विधायकों की सीटें तो शामिल नहीं हैं?इसका खुलासा तो दो साल बाद टिकिट बटने पर ही होगा तब तक लोग शायद यह भूल भी जायेंगें कि कभी ऐसा कुछ लिखा गया था।
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