Sunday, April 3, 2011

श्री राम निषाद की मित्रता, दो संस्कृति का संगम



श्री राम निषाद की मित्रता, दो संस्कृति का संगम श्री राम निषाद की मित्रता, दो संस्कृति का संगम

राजेन्द्र कश्यप


प्राचीन जम्बूदीप के अन्तर्गत रघुकुल वंश के प्रतापी राजा दशरथ के राज्य आयोध्या की सीमा कोशल राज्य और निषाद देश से मिली हुई थी। राजा

दशरथ की पुत्री शान्ता का विवाह श्रृंगी ऋषि से हुआ था। गुह राज निषाद राज्य की राजधानी श्रग्वेरपुर सुव्यवस्थित आदिवासियों का सम्पन्न राज्य था। गृहराज

निषाद और दशरथ्र पुत्र रामचन्द्र जी ने वान्यकाल में एक ही गुरूकुल में राजनीति, व्यवहार,आचरण और शास्त्र की विद्या प्राप्त की थी। शिक्षा प्राप्त करते

समय ही निषाद राजकुमार गुह ने बाल सुलळा मन से रामचन्द्र जी से निषाद देश में कभी आने का आमन्त्रण दिया था, श्रंृंग्वेरपुर के राजा गुह के बनने के

समय उनके राज्य में श्रंगी ऋषि के कारण वन में काफी यक्षकर्ता, नागरिक,व्यापारी,मुनी,तपस्वी और जंगली वन सम्पदा से राज्य सम्पन्न था। राज्य की सैन्य एवं

गुप्तचर व्यवस्था उत्तम थी । शहर के निवासी सुखपुर्वक निवास करते थे। वन सम्पदा से राज्य सम्पन्न था। राज्य के नागरिक सेनिकों ओर कड़ी गुप्तचर व्यवस्था

सुदृड़ होने के कारण सुखपूर्वक रहते थे।


गुप्तचरों द्वारा राम, लक्ष्मण और सीताजी के वनवासी देश के राज्य की में प्रवेश करने पर गृह राज निषाद स्वयं अपनी पत्नी ,मन्त्री,सेनापति,सेनिकों

ओर कुटुम्बियों सहित अगवानी हेतु सीमा पर पहुंच गये । राजकुमार रामचन्द्र आगे बढ़कर निषादराज को गले लगाकर उनके बन्धु बान्धव कुटुबियों और राज्य के

नागरिकों की कुशलक्षेम पूछी। गुहराज ने अपनी पत्नी, ओैर कुटुबिंयों सहित राज्य की कुशलता दर्शा कर श्री राम का स्वागत किया।

अयोध्या के राजकुमार राम,लक्ष्मण ओर सीता को वनवासी वेश में देख निषाद राज बहुत विस्मय में पड़ गये,कयोंकि उस युग में राजघरानें राजा,

राजकुमारों की वेशभूषा निर्धारित थी। सेनापति ओर मन्त्री भी अपनी वििश्ष्ट वेशभूषा में रहते थे। राजरानी सीता भी वनवासी वेषभूषा में थीं। कुशलक्षेम के

पश्चात जब राजकुमार ने वनवास का कारण ओर अपने वचनों की बात राजा गुह को बताई। तब राजा गुह ने राजकुमार राम,लक्ष्मण और सीता को प्रेमवश

पूरा राज्य समर्पित करते हुए 14 वर्ष श्रंग्वेरपर राज्य में ही निवास करने का निवेदन किया। रामचन्द्र जी ने राजधानी और नगर में चलने से वनवास के कारण

वन में ही रूकने का कहा। निषाद राज के मन्त्री ओर सेवक वनवासियों ने तत्काल उनके निवास के लिये कुटिया,आसन्दी और सीता जी के स्नान के लिये पृथक

से जल कुण्ड का निर्माण कर दिया निषाद राज ने राजकुमार राम, लक्ष्मण सीताजी को विभिन्न पकवानों,फल फूल कन्द का भोजन प्रस्तुत किया। प्रतीज्ञा में बन्धे

राम ने पकवान को छोड़कर वन फलों को सप्रेम स्वीकार किया। लक्ष्मण ने एक वृक्ष के नीचे घासफूस और पत्तियों की शैया बना दी। राम एवं सीता ने वहीं

पर विश्राम किया। पास ही लक्ष्मण धनुषबाण लेकर सुरक्षा के लिये खड़े हो गये राजकुमार लक्ष्मण राजा गुह की मेत्री भावना को देख बहुत ही प्रसन्न ओर

चकित हो गये। एक राजा मित्रतावश अपना पूरा राज्य अपने मित्र को समर्पित कर दे ऐसी विराट प्रेम भावना, समर्पण ओर निष्टा लक्ष्मण को मोहित कर गई।


रात्रि होने पर लक्ष्मण को गुहराज ने विश्राम करने का आग्रह किया तो उन्होनें रात्रि में जंगली जानवरों से रक्षा के लिये जीवन भर न सोने का

संकल्प लेने का प्रण किया। निषाद राज गुह ने भी लक्ष्मण के साथ रात्रि भर जागरण किया। जितेन्द्र लक्ष्मण ने 14 वर्ष तक रात्रि में कभी सोये नहीं जब

रावण के पुत्र इन्द्रजीत ने शक्तिबाण से मुछित होने पर हनुमान जी द्वारा सञ्जीवनी बूटी के सेवन करने पर ही होश में आये थे।

अयोध्या के राजकुमार भरत ओर शत्रुघ्न के लोटने पर महामन्त्री सुमन्त के साथ रथ पर सवार सेना, मन्त्री गणमान्य नागरिकों के साथ राम, लक्ष्मण

और सीताजी को अयोध्या वापिस लोटाकर लाने के लिये भरतजी श्रग्वेरपुर की सीमा पर सैनिकों सहित पहुंचे। भरत के आने के समाचार मिलने पर लक्ष्मण

क्रोधित हुए तब निषाद राज ने अपनी सेना तैयार होने का आदेश दिया परन्तु गुप्तचरों द्वारा ज्ञात होने पर ही महामन्त्री सुमन्त के साथ भरत ओर शत्रुध्न

सममान सहित राम,लक्ष्मण ओर सीताजी को वनवास से लोटा कर अयोध्या में राम का राज्याभिषेक कराने की इच्दा से आये हैं, तब राजा गुह ने भरत सहित

सेना को श्रग्वेरपुुर की सीमा प्रवेश की आज्ञा दी।

रामभरत मिलाप हुआ परन्तु रामचन्द्र जी वनवास से लोटने से इंकार कर दिया और भरत को अयोध्या में राज्य सम्भालने की आज्ञा दी। राम और भरत

के प्रेम से निषादराज गुह काफी प्रभावित हुये । भरत रामचन्द्र जी की पादुका लेकर अयोध्या लोट गये। कुछ समय पश्चात केवट द्वारा राम लक्ष्मण और सीता

जी गंगा नदी पार कर शेशल राज्य में प्रवेश करने पर मातृभूमि की माटी को छूकर प्रणाम कर गुहराज निषाद वन में भारद्वाज ऋषि से मिलवाने के बाद

रामचन्द्र जी ने निषाद राज को अपने राज्य वापिस लोटने को कहा इस पर गुह राज ने इंकार कर दिया, तब श्री राम ने निषाद राज को मित्रता निभाने का

आग्रह किया और अयोध्या की सीमा की रक्षा एचं भरत के छोटे भाई की तरह रक्षा करने की बात की तब गुहराजा श्रग्वेरपुर वापिस लोटे। अयोध्या की राक्षा

का दायित्व मित्रता का बन्धन बन गया।

रावण वध के पश्चात राम के अयोध्या में पहंचने पर जब रामचन्द्र जी का राज्याभिषेक होने जा रहा था। निषाद राजगुह की ससम्मान अयोघ्या

सपत्नी,मत्री सहित आमन्त्रित किया। वनवासी निषाद,राजा गुह राज्यािभेषक में सम्मिलित हुए। इस तरह हम समझते हैं कि राम और निषाद की मित्रता और

उनका मिलन वास्तव में भारत की प्राचीन निषाद संस्कृति और आर्य संस्कृती का मिलन था। दोनों संस्कृतियों के बीच एकता हुई और अंशाति फेलाने वाली

दुष्ट रक्ष संस्कृति के निर्माता रावण अपने वंश सहित समाप्त हो गया। ऋषि, मुनि, तपस्वी ओर वनवासी सुख पूर्वक रहने लगे।

शुक्ल पक्ष की पंचमी को निषाद राज गुह की ओर शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान रामचन्द्र की जयन्ती पूरे देश में मनायी जाती है।

1 comment:

  1. We all nishadvanshi thaks to sir. Please give us the references from where you have taken this script

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