मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में अफसर हैं रोड़ा
दीपक कुमार तिवारी
मध्यप्रदेश में . अफसरों ने भ्रष्टाचार की ऐसी आंधी चलाई है कि उसके आगे न केवल मंत्री, मुख्यमंत्री के आदेशों-निर्देशों की धज्जियाँ उड़ रही है बल्कि अब वे सच का पर्दा उठाने वाले मीडिया पर अपना गुस्सा निकालने में लगे हैं । मध्यप्रदेश में अकूत सम्पत्ति अर्जित करने वाले अरविन्द जोशी, टीनू जोशी, डॉ० राजेश राजौरा जैसे आई.ए.एस. अफसरों के कारनामे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं, अपनी बिगड़ी सूरत सुधारने की बजाय अब वे आईना तोड़ने में लग गए हैं । बीते दिनों राज्य मंत्रालय, विधानसभा, राजभवन में आई.ए.एस. अफसरों के पर्चे बंटे, एक वेबसाइट ने जब सच को आम जनता में प्रचारित करने का साहस दिखाया तो आई.ए.एस. अफसर गिरोहबद्ध होकर मीडिया की स्वतंत्रता पर ही हमला करने लगे । उन्होंने आईपीएस की शरण लेकर मीडिया को सताने की नाकाम कोशिश शुरू कर दी । वे शायद भूल गए हैं कि देश का संविधान अभी किसी अफसर की तिजोरी का दस्तावेज नहीं बन सका है । देश का संविधान आम जनता के धन को लूटने वालों का साथ नहीं देता, भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे सरमाएदारों की वकालत नहीं करता और मीडिया की आवाज को चन्द बेसुरे दबा नहीं सकते । गीदड़ों के झुण्ड एक शेर का भी शिकार नहीं कर सकते ।
मध्यप्रदेश के ऊर्जावान मुख्यमंत्री जिस बुराई से लड़ने के लिए कमर कस के मैदान में हैं, उन्हीं का साथ वेब जर्नलिज्म, प्रिन्ट जर्नलिज्म और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दे रहा है, बावजूद इसके अफसरशाह अपनी हरकतों से मैली नदी को और बदबूदार बना रहे हैं ।
एक बेनामी पर्चे ने आई.ए.एस. अफसरों को हिला दिया । पर्चे में अज्ञात व्यक्ति ने अफसरों के शौक, उनकी आदतों का सिलसिलेवार व्यौरा दिया था । यकीनन परचा कोई अधिकृत दस्तावेज नहीं होता बावजूद इसके मीडिया में और राजनैतिक, प्रशासनिक हलकों में इसकी व्यापक प्रतिक्रिया रही । चूँकि परचे की भाषा असंसदीय थी, इस कारण प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इसका संपादित अंश ही सामने आया, परन्तु एक वेब साईट (न्यूज फायर ऑन लाइन) ने हू-ब-हू परचे को अपने विजिटर्स के लिए रखा । इससे नाराज होकर नौकरशाहों ने खुद को सुधारने की बजाय वेबसाइट को ही अपना निशाना बनाया । जिन आईपीएस अफसरों को हमेशा अछूत समझते हैं उन्हीं की गोद में आई.ए.एस. एसोसिएशन जा पहुँची । भारतीय संविधान की कसमें खाने वालों ने विधि का सहारा न लेते हुए पुलिस के डन्डे को अपना अस्त्र बनाया । क्या किसी सच को दिखाने की एवज में पुलिसिया जोर दिखाया जा सकता है ?
मीडिया जगत में वेबसाइट के विरूद्ध पुलिस अपराध दर्ज कराने की आई.ए.एस. एसोसिएशन की इस हरकत की निन्दा की जा रही है । राज्य के गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता स्वयं इस बात पर खेद प्रकट कर चुके हैं ।
मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष शलभ भदौरिया कहते हैं कि अफसर कोई खुदा तो नहीं होते, किसी भी खबर पर संवैधानिक प्रक्रिया के तहत ही पक्ष रखा जा सकता है, पत्रकार की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को पुलिसिया आतंक से नहीं दबाया जा सकता है । उन्होंने कहा कि यदि कोई शिकायत है तो सक्षम न्यायालय में जाएं, विधि सम्मत कानूनी प्रक्रिया को अपनाए, बगैर जाँच के किसी पत्रकार पर प्रकरण दर्ज किया ही नहीं जा सकता है वहीं वरिष्ठ पत्रकार शिवअनुराग पटैरिया कहते हैं कि पत्रकारों के ऊपर कोई कार्रवाई की प्रक्रिया है तो वह विधि सम्मत होनी चाहिए, प्रेस मामले को जनता के सामने लाती है, प्रेस पर हमला निंदनीय है । इसी मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा कहते हैं कि जो निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे हैं और जो खबरों के लिए लिख रहे हैं, उन पर पुलिस द्वारा दबाव बनाना अनुचित है । जर्नलिस्ट यूनियन ऑफ एम.पी. के अध्यक्ष सुरेश शर्मा कहते हैं कि पत्रकारिता के क्षेत्र में पुलिस का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं है, पत्रकारों के काम पर पुलिस प्रहार जारी रहा और उन्हें सरकार ने नहीं रोका तो हम आन्दोलन के लिए बाध्य होंगे ।इस पूरे मामले में पर्चे में जो बाते उठाई गई थी अफसरों की टीम उसे तो दबा गई और अफसरों की बदनामी का ढिंढोरा पीटने लगी | जबकि पर्चे में दिए गए तथ्यों की बिंदुवार जाँच कराइ जाती और फिर दूध का दूध और पानी का पानी किया जाता तो आज तमाम वे लोग अफसरों के साथ खड़े नजर आते जो हमेशा अफसर और अफसर शाही को कोसते रहते हैं, जगजाहिर हैं आज भी पूरे समाज की तरह अफसरों में भी दो धाराएँ हैं इमानदार और बेईमानों की | अब तक बेईमानों के किस्से सुर्खिया बने हैं और इमानदार नेकनीयती से अपने काम में लगे हैं उन्हें न पर्चों की फिकर होती हैं न मीडिया की, रहा सवाल मध्यप्रदेश का तो सरे आम यह कहा जा सकता हैं कि यहाँ इमानदार अफसरों कि तादाद बेईमानों से कहीं ज्यादा हैं | (दखल)
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