Wednesday, April 14, 2010

जलकुआँ में लौटा 40 साल पुराना इतिहास

बुजुर्गों ने दी थी नसीहत, खुदगर्जी और कुदरत से खिलवाड़ ने बिगाड़े थे हालात
Bhopal:Wednesday, April 14, 2010:Updated 17:41IST

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अब यह साबित हो चुका है कि कुदरत से खिलवाड़ की नापाक कोशिश इंसानी कौम को तहस-नहस कर देगी। भीषण गर्मी जो अब रूकने का नाम नहीं ले रही है, यह साफ इशारा कर रही है कि अगर वक्त रहते संभलने की कोशिशें नहीं की गई तो कयामत से बचना असंभव हो जाएगा। ऐसे ही कुछ हालात खंडवा जिले के जलकुआँ गाँव में भी पसरे थे लेकिन बुजुर्गों की नसीहत ने उस तबाही से इस गाँव को चंद कदमों के फासले पर इसलिए बचा लिया कि वहां वक्त रहते पानी को बचाने के इंतजाम कर लिये गये हैं। इसके नतीजे में 40 साल पुराना पानी का समृद्ध इतिहास फिर से दोहराने को तैयार है।

एक जमाने में खंडवा जिले की पंधाना जनपद के तहत ग्राम पंचायत जलकुआँ अपनी नाम की प्रतिष्ठा के अनुरूप जल समृद्धि को लेकर पहचानी जाती थी। गाँव के बुजुर्गों की मानें तो यह गाँव पहले भाम नदी के किनारे बसा था और इस नदी में इतना पानी होता था कि एक खाट की पूरी रस्सी उस नदी में डाल देने के बावजूद पानी की गहराई मालूम नहीं पड़ पाती थी। पानी की इस प्रचुरता के चलते इस नदी में मगर हुआ करते थे। यही वजह थी कि कालांतर में नदी के किनारे उस गाँव के लोग वहाँ से निकल कर दो किलोमीटर दूर जा बसे। उस जमीन का आलम यह था कि थोड़ी सी खुदाई करने पर ही कुएँ पानी से लबालब हो जाते थे। इसी तथ्य को लेकर गाँव का नाम जलकुआँ पड़ा था। वक्त जब बदला तो हालात ने इस गाँव में ऐसी करवट ली कि पानी की प्रचुरता का उसका इतिहास धूमिल पड़ गया। लोगों ने पानी का अंधाधुंध इस्तेमाल शुरू किया और देखते-देखते जल स्तर घटने लगा। यहाँ तक कि बारिश में जिन जल संरचनाओं में पानी भर जाता था वह भी बहकर दूर निकल गया। गाँव वालों ने खुदगर्जी के चलते पूरी नर्सरी काट दी और उससे मिली लकड़ियों का इस्तेमान ईधन में कर लिया। पूरे गाँव का पर्यावरण बिगड़ता गया और पानी की त्राही-त्राही होने लगी। जानवर तो दूर मनुष्यों के पीने के पानी के ही लाले पड़ गए। यह हालात साल 2006-07 तक चले।

पाँच साल पहले गाँव के बुजुर्गों ने नौजवानों को जब पुरानी बाते बताई तो बरबस सभी की आँखों में आँसू छलक आये थे। इस बीच ही एक संकल्प लेकर आगे बढ़ने की ठानी गई और यह तय किया गया कि हरसंभव उपाय से बिगड़े हालात संभाले जायेंगे। पहली कड़ी में लोगों द्वारा अतिक्रमण की गई कोई 50 एकड़ जमीन को मुक्त कराया गया। वहाँ राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत कंटूर ट्रेंचों का निर्माण कराया गया और पौधे रोपित किये गये। इन कोशिशों के साथ ही हालात में भी धीरे-धीरे बदलाव आने लगा। इन कोशिशों को थमने नहीं दिया गया। कोई सात हजार कंटूर ट्रेंच अब तक बनाये जा चुके हैं और यह सिलसिला जारी है। इनमें से प्रत्येक कंटूर में एक बार की बारिश पर करीब एक हजार लीटर पानी इकट्ठा हो जाता है। इस तरह इन सारे कंटूर ट्रेंचों में एक बार की बारिश 70 लाख लीटर पानी न सिर्फ इकट्ठा करती है बल्कि इनके जरिए जमीन के भीतर गहरे तक पानी पहुँचा देती है। इसके अलावा कोई 2000 पौधे लगाये गये हैं जो भीषण गर्मी में भी पानी की उपलब्धता के चलते जीवित हैं। कपिलधारा के 29 कुओं के साथ ही उनमें रिचार्ज पीट भी लगाये गये हैं। इससे पुर्नभरण प्रबंधन हो रहा है। अब 5 साल बाद यह जलकुआँ पंचायत अपने पुराने स्वरूप में फिर से उभर आई है।

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