चिड़िया-कौवे , चील गिद्ध और पेड न्यूज़
अनुराग उपाध्याय
कुछ चिड़िया, कौवों ने सभा कर के चील और गिद्धों की आलोचना की | आलोचना भी इस बात की कि चील और गिद्ध कुछ ज्यादा ही मांसाहारी हो गए हैं | अब वे पेड न्यूज़ पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं | यह कथा समझ से परे हैं, क्योंकि इन चिड़ियों और कौवों में सिर्फ तीन चिड़िया ऐसी थी जो मासाहारी नहीं (इमानदार हैं)हो पाई हैं , बाकी के काले चिठ्ठे तो ऐसे हैं कि उन्हें लिखने के लिए भोपाल के तालाब के पानी को स्याही बना लें तो वो भी कम पड़ जायेगा |
भोपाल की इस कथा में चिड़िया,कौवे,चील और गिद्ध सब प्रतीकात्मक हैं | जिन चिड़िया-कौवों के पास इस वक्त कुछ काम नहीं बचा था वे सब जमा हो गए, मौसम गर्मी का था सो लगे अपनी गर्मी उतारने | इनके निशाने पर थे चील और गिद्ध| यहाँ बता देना जरुरी हैं कि देश भर के मीडिया मालिकों को इस नजर से भोपाल में देखने की कोशिश की गई | उन्हें मांसाहारी यानी रुपयाखोर बताया और कहा गया की यह लोग पेड़ न्यूज़ को बढ़ावा दे रहे हैं | सारे चिड़िया कौवे जैसे लोग खुद को पाक साफ़ जताने की कोशिश करते रहे | वे यह भूल गए की इनमे से कोई किसी मुख्यमंत्री से खबर के बदले स्कोर्पियो लेता है, तो कोई इंपेक्ट फीचर के नाम पर मालिक की तिजोरी भरके खुद कमीशन खाता हैं | कोई भावी बुंदेलखंड राज्य में अभी से दलाली की दुकान खोलना चाहता हैं |
पिछले चुनाव में तो मध्यप्रदेश का एक रीजनल चैनल सिर्फ इसलिए डूब गया कि वहाँ बैठे कौवे नुमा पत्रकार बाकायदा रसीद काटकर पेड़ न्यूज़ दिखाते रहे और मालिक का करोड़ों रुपया भी डकार गए | सो चैनल में तालाबंदी होना ही थी | चैनल एक बंद हुआ तो दूसरा जिंदाबाद वो भी तब तक, जब तक वहां भट्टा नहीं बैठ जाता , या मालिक लात मरकर नहीं भगा देता | इन लोगो का नारा हैं खबरे बनाना हमारा मकसद नहीं ख़बरों से रुपया बनाना हमारा धंधा हैं |
इसी किस्म के धंधेबाज चिड़िया और कौवे अब पेड़ न्यूज़ पर स्यापा कर रहे हैं जबकि इनकी पूरी जिंदगी इसी तरह के काम करते गुजर गई | नए पत्रकार बनाने की फैक्ट्री माखनलाल के स्टुडेंट भी चिड़िया कौवों की इस सभा में गए तो वे इनके दोहरे चेहरे देखकर चौंक गए |,उनके पैरों से जमीन खिसक गई क्यूंकि भोपाल के कुछ बड़े अय्याश पत्रकार अपने मिशन को पूरा करने के लिए माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविध्यालय के परिसर को भी अपने नापाक इरादों से लगातार गन्दा कर रहे हैं | खैर साहब मसला "पेड़ न्यूज़" का हैं तो इस पर वेवजह की बहस करवाने वाले अपने जन्मदाताओं की कसम खाएं कि वे ऐसे मालिकों के साथ काम नहीं करेंगे जो उन पर पेड़ पेड़ न्यूज़ के लिए दबाव बनाते हैं | इन लोगो में इतना नैतिक सहस भी नहीं हैं क्योंकि यह जिन मालिकों के बैनर से जुड़े हैं उसी की वजह से किसी को स्कोर्पियो,किसी को ठेके,तो किसी का दलिया बिक रहा हैं |
"पेड़ न्यूज़" पर स्यापा करने वाले इन लोगो की सच्चाई यह हैं कि यह अपना सारा काम एक संगठित गिरोह की तरह कर रहे हैं | ये लोग अपने बीच के भ्रष्ट,बलात्कारियों और रिश्वतखोरों को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगते हैं | मालिकों को चील गिद्ध ठहराकर उन्हें कटघरे में लाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं | मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जब से रुपया लेकर खबर दिखाने और छापने के मसले पर अंगुलियाँ मीडिया पर उठाना शुरू की हैं तब से भोपाल के कुछ कथित बुद्धिजीवी फुर्सत में इस तरह के शगल में लग गए हैं ताकि शिवराज सिंह से इसी बहाने कुछ झटक लिया जाये |
पेड़ न्यूज़ का रोना रोने वाले यह लोग अंडरवियर-बनियान और बंडी पसंद का पहनने का दंभ भरते हैं लेकिन इनका मालिक कैसा होगा यह तय नहीं कर पाते | भोपाल के धंधेबाज पत्रकार इन दिनों पेड न्यूज़-पेड न्यूज़ की जुगाली कर रहे हैं ताकि खुद को दूध का धुला और मीडिया मालिकों को भ्रष्ट साबित किया जा सके |(www.anuragupadhyay. com से साभार ,अनुराग चर्चित टीवी पत्रकार हैं )
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