Monday, January 14, 2013

यौन अपराध अधिनियम 2012 के कार्यान्वयन के बावजूद हालात ज्यों के त्यों

बहुप्रचारित ‘‘यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण अधिनियम’’ (POCSO) 14 नवंबर 2012 से अस्तित्व में आया। अधिनियम के कार्यान्वयन के समय महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमति कृष्णा तीरथ ने दावा किया था कि यह अधिनियम देश में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की संख्या में वृद्धि के कारण पैदा हुईं सभी समस्याओं का हल निकालने में सक्षम है।
उस समय एक बैठक को संबोधित करते हुए श्रीमति कृष्णा तीरथ ने क्हा था कि आईपीसी के मौजूदा कानून न केवल अपर्याप्त बल्कि बच्चों और व्यस्कों के बीच अंतर नहीं कर रहे थे। उन्होने क्हा था कि इस अधिनियम में बच्चों के साथ यौन अपराधों के लिए कड़ी और कठोर सज़ा निर्धारित की गई है।
मंत्री ने यह भी क्हा था कि पुलिस और न्यायपालिका के अतिरिक्त केन्द्र और राज्य सरकारों के स्तर पर कर्मचारियों की ट्रेनिंग इस अधिनियम के क्रियान्वयन को प्रभावी बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। इस अधिनियम के तहत राज्य सरकारों की जिम्मेवारी है कि वह हर जिले में स्पेशल सैशन कोर्ट बनाएं और स्पैशल पब्लिक प्रासिक्यूटर, विशेष किशोर पुलिस, बाल कल्याण समिति और जिला बाल संरक्षण इकाईयों की स्थापना करें। यौन अत्याचार के शिकार बच्चों के मुआवजे के भुगतान के लिए योजनाओं का निर्माण भी राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, उन्होंने क्हा था। 
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जहां एक ओर यह सब क्हा और किया जा रहा था, इस अधिनियम के पारित होने के करीब 50 दिन बाद भी जमीनी स्तर पर अधिक बदलाव नहीं आया है। दिल्ली के नरेला में गत 25 नवंबर को चार वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार किया गया। आम आदमी पार्टी के कार्यकत्र्ता वंश सलूजा ने रियल न्यूज को बताया कि जब यह मामला आम आदमी पार्टी के स्वयंसेवकों के संज्ञान में आया तो उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाया कि बच्ची का चिकित्सा परीक्षण कराया जाए। लेकिन उनके भरपूर प्रयासों के बावजूद पुलिस ने बच्ची की चिकित्सा जांच नहीं कराई। इस से बुरा यह हुआ कि एक दिसंबर को जब आम आदमी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं ने जांच के लिए पुलिस पर दबाव बनाने की चेष्टा की तो उनपर लाठियां भांजी गईं।
हालांकि अरविंद केजरीवाल और गोपाल राय के नरेला पुलिस स्टेशन के बाहर धरने पर बैठने के पश्चात उन तीन पुसिल कर्मियों जिन्होंने कार्यकत्र्ताओं पर लाठियां चलाई थीं के खिलाफ धारा 376 और 511 के तहत कार्यवाई की गई आम आदमी पार्टी के स्वयंसेवकों ने पुलिस की ओर से संवेदनशीलता की कमी दिखाने के लिए डीसीपी बाहरी क्षेत्र दिल्ली बीएस जायसवाल से बातचीत को यूटयूब पर पोस्ट किया है। 
इस प्रकार के मुद्दों की ओर संवेदनशीलता की कमी का अंदाजा इस बात से भी हो सकता है कि यौन अपराध अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन से संबंधित रियल न्यूज की ओर से दिल्ली पुलिस के वरिष्ट अफसरों को भेजी गई प्रश्नावली का केवल एक अफसर ने उत्तर देना आवश्यक समझा।
दिल्ली के बहुप्रचारित बलात्कार मामले से कुछ दिन पूर्व रियल न्यूज ने इस अधिनियम के संबंध में जानकारी पाने हेतु श्री संजय कुमार जैन (डीसीपी अपराध और रेलवे), श्री बीएस जायसवाल (डीसीपी बाहरी दिल्ली), श्री रोमिल बनिया (डीसीपी नार्थवेस्ट), श्रीमति सिंधु पिल्ले (डीसीपी उत्तरी दिल्ली), श्री वीवी चैधरी (डीसीपी पूर्वोत्तर दिल्ली), श्री प्रभाकर (डीसीपी पूर्व दिल्ली), श्रीमति छाया शर्मा (डीसीपी दक्षिण दिल्ली), श्री अजय चैधरी (अतिरिक्त सीपी दक्षिण पूर्वी दिल्ली), श्री वी रंगनाथन (अतिरिक्त सीपी पश्चिमी दिल्ली), श्री अनिल कुमार ओझा (अतिरिक्त सीपी दक्षिण पश्चिम दिल्ली), श्री डीसी श्रीवास्तव (अतिरिक्त सीपी सेंटल), श्री केसी द्विवेदी (अतिरिक्त सीपी नई दिल्ली) के अतिरिक्त अन्य वरिष्ट अधिकारियों जैसे श्री एमएस बिष्ट को एक प्रश्नावली भेजी थी। 
अपनी प्रतिक्रिया में श्रीमति सिंधु पिल्लई (आईपीएस और डीसीपी उत्तरी दिल्ली) ने क्हा कि ‘‘यह अधिनियम न केवल बच्चों के साथ शोषण और आक्रामक यौन गतिविधियों में आने वाले तमाम अपराधों को परिभाषित करता है बल्कि सजा के प्रावधान भी बनाता है और विशेष अदालतों, विशेष पब्लिक प्रासिक्यूटर और कई अन्य विशेष सेवा वितरण एजेंटों को निर्धारित करता है। प्रथम दृष्टया यह अधिनियम संवेदनशील दिखाई पड़ता है और बच्चे जिन कठिनाईयों का सामना करते हैं उनका समाधान पेश करता है परन्तु साथ ही यह कुछ पहलुओं को अंदेखा कर देता है जिन से अधिनियम लागू होने के पश्चात निपटना आवश्यक होगा।’’
श्रीमति पिल्लई ने आगे बताया कि उत्तरी दिल्ली के सभी एसीपी और एसएचओ को इस अधिनियम के प्रावधानों को सच्ची भावना के साथ लागू करने के निर्देश दे दिए गए हैं। उन्होंने क्हा कि वह सहमत हैं कि एक संवेदनशील प्रशिक्षण कार्यक्रम/कार्यशाला के आयोजन की आवश्यकता है ताकि इस अधिनियम में मौजूद विभिन्न सुविधाओं और प्रावधानों के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके।
हाल ही में चलती बस में युवती के साथ बलात्कार और उससे संबंधित घटनाओं से पता चलता है कि संवेदिकरण प्रशिक्षण कार्यक्रमों/कार्यशालाओं का न केवल राष्ट्रीय राजधानी में बल्कि सभी राज्यों में और सभी स्तर पर आयोजन आवश्यक है क्योंकि भारत के दूरस्थ भागों में ऐसे मामलों में असंवेदनशीलता दिखाए जाने के कई मामले सामने आए हैं।
दिल्ली में हुआ बलात्कार का मामला भले ही मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध से संबंधित घटनाओं की अभी भी अंदेखी की जा रही है। चार साल की बच्ची के साथ बलात्कार की घटना के कुछ ही दिन बाद दिल्ली में एक नौ वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार का मामला भी सामने आ चुका है। सीतापुर में दो दिन पूर्व एक सात वर्षीय बच्ची की बलात्कार के पश्चात हत्या कर दी गई और उसी रोज फैजाबाद में एक 15 वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार की रिपोर्ट लिखाई गई। बागपत में भी एक 15 वर्षीय लड़की के अपहरण और बलात्कार की कोशिश का मामला सामने आया है। जहां रोजाना इस प्रकार के मामले सामने आ रहे हैं, हमारे नेता और प्रशासन अभी भी लापरवाह नजर आ रहे हैं जिसके कारण इस प्रकार के अधिनियम केवल कागजों पर ही अच्छे दिखाई देते हैं।

रियल न्यूज इंटरनेश्नल न्यूज ब्यूरो

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