जब हम विकास पत्रकारिता को एक विधा के रूप में देखते हैं तो उसका अर्थ भौतिक विकास के साथ जुड़ जाता है। विकास पत्रकारिता से तात्पर्य उन समाचारों से जुड़ा हुआ है जो विकास से संबंधित हो। समाचार पत्रों में विकास समाचारों को प्रमुखता से छापना ही विकास पत्रकारिता है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्य चाहे वो कृषि,शिक्षा , मनोरंजन, सांस्कृतिक, रोजगार, ग्रामीण विकास क्षेत्रों से हो सकते हैं। संक्षेप में व्यक्ति की खुषहाली के समाचार या विकास की मुख्य धारा से कटे हुए लोगों की खबरें विकास पत्रकारिता का विषय बनती है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में होने वाली गतिविघयों को विकास पत्रकारिता से जोड़ा जा सकता है।
द्वितीय प्रेस आयोग ने विकास पत्रकारिता के अर्थ को स्पष्ट करते हुए रिपोर्ट में लिखा है ‘‘ विकास रपट में सही और गलत काम की पूरी तस्वीर प्रस्तुत करना चाहिए। उसमें आम आदमी के जीवन को प्रभवित करने वाले विभिन्न विकास कार्यक्रमों की विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न स्थानों पर सफलता और विफलता के कारणों की छानबीन होनी चाहिए।‘‘
प्रेस आयोग की इस टिप्पणी से न केवल विकास पत्रकारिता का अर्थ स्पष्ट हो जाता है, बल्कि वह उसकी व्यापकता का भी रेखांकित करती है। विकास समाचारों की खोजबीन के काम पर होने वाले भारी खर्च भी विकास संवाददाता के काम में बाधक बनता है। प्रायः यह देखा गया है कि पत्र पत्रिकाओं के प्रबंधक ऐसे कार्य पर खर्च करने से कतराते हैं जिसका परिणाम यह देखने को मिलता है कि ऐसी खबरों को पढ़ने वाले पाठकों की संख्या में कमी आती है। दूसरी तरफ विकास समाचारों की जांच पड़ताल बिना ही छाप दिया जाता है। जिससे लोगों को सम्पूर्ण जानकारी नहीं मिल पाती। वैसे अगर ऐसे समाचारों में विष्वसनीयता बरती जाए तो यह समाचार राजनीति की दिषा को तय कर सकते हंै।
विकास कके बाधक तत्वों में आज के पत्रकार, संवाददाताओं का भी अहम रोल है। आज के संवाददाता कड़ी मेहनत करने की बजाय आसानी से मिलने वाली खबरों की और दौड़ते हैं जिससे विकास से संबंधित समाचार पीछे छूट जाते हैं। विकास के समाचारों के जो आंकड़े मिलते है उन्हें ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर दिया जाता है।
विकास समाचारों के संकलन में निहित स्वार्थ वाले लोग भी बाधा डालते हंै। बड़े बड़े पदों पर आसीन अधिकारी इस बात से डरते हंै कि सच्चाई सामने आने पर वे कठघरे में खड़े कर दिए जाएंगे। दूसरी तरफ विकास पर खर्च होने वाले धन को बीच में ही अधिकारियों और प्रभावषाली लोगों द्वारा गोलमाल कर दिया जाता है। जिससे विकास पर आया धन आम जनता तक पहंुच ही नहीं पाता। विकास समाचारों व विकास पत्रकारिता के सही और समुचित विकास के लिए जरूरी था कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के पत्रकार उसे एक चुनौती के रूप् में स्वीकार करते, तभी इसका ठीक से विकास हो सकता था। ऐसा नहीं हुआ। विकास से संबंधित समाचारों को उतना महत्व नहीं दिया जितना देना चाहिए था।
इसके अलावा सरकारी तौर पर जो सूचनाएं या विकास संबंधी जानकारी या आंकड़े प्रायः इकतरफा होते हैं। जिससे विकास में रुकावटें पैदा होती है और आम जनता को आधी अधूरी जानकारी मिलती है। सरकारी प्रसार माध्यमों द्वारा दी जाने वाली परियोजनाओं की जानकारी कितनी इकतरफा होती है, इस पर टिप्पणी करते हुए द्वितीय प्रेस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है-
‘‘ विकास को दिखाने के सरकारी मीडिया के प्रयास प्रायः प्रस्तुति के अति सरलीकरण के षिकार बनते हंै। कंेद्र में प्रेस सूचना ब्यूरो और राज्यों के सूचना विभागों द्वारा दिए जाने वाले विकास संबंधी विवरणों में अनेक को प्रेस प्रमुखता से नहीं छापता क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उनमें परिवर्तन की तस्वीर का एक ही पक्ष होता है, जबकि वास्तविक जीवन में विकास की प्रक्रिया आसान नहीं होती। उसके दौरान कठिनाइयां तथा ठोकरें मिलती हैं और उसे सफल बनाने के लिए दृढ़ प्रयास करने पड़ते हैं।‘‘
विकास के मामले में सबसी बड़ी बाधा तब आती है जब सूचना के सरकारी स्त्रोत से हमें विकास परियोजनाओं की सफलता और विफलता की पूरी और सही जानकारी नहीं मिल पाती।
विकास समाचारों के संकलन में साधनों और पैनी दृष्टि की जरूरत होती है। साथ ही अनुसंधान की जरूरत पड़ती है। लेकिन ऐसे थोड़े बहुत ही संवाददाता मिलेंगे जो वास्तविकता जानने के लिए गांव की धूल फांकना पसंद करते है। कुछ ऐसे भी संवाददाता मिल जायेंगे जो हकीकत जाने बिना ही घर बैठे बैठे ही समाचारों का आंकलन कर डालते हैं जबकि वास्तविकता यह होनी चाहिए की विकास के मामले में पूरी छानबीन बरती जाए।
विकास में सबसे बड़ी बाधा पयाप्र्त रूप से धन न मिल पाना है। विकास पर खर्च किए जाने वाल धन का एक बड़ा भाग अधिकारियों और प्रभवषाली लोगों की जेबों में चला जाता है। जिससे गांवों के बेरोजगार युवकों, समाज के दुबर्ल वर्गों, महिलाओं आदि को अपेक्षित लाभ नहीं मिलता। इसके अलावा ग्रामीण विकास के लिए कई योजनाएं जैसे मजदूर परियोजनाएं,राष्ट्रीय प्रौढ़ षिक्षा कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम निर्धारित किए जाते हंैं जिससे ग्रामीण जनता को फायदा पहंुच सकें। लेकिन ऐसे कार्यक्रमों का समुचित विकास नहीं हो पाता है। ग्रामीण जनता के बीच आने से पहले ही दम तोड़ देते हंैं। न कि ऐसे कार्यक्रमों की सही रिपोर्टिंग हो पाती है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि अगर विकास को त्वरित गति से आगे बढ़ाना है तो विकास परियोजनाआंे को डूबने से बचाना होगा। साथ ही विकास परियोजनाओं को देष के आर्थिक विकास और लोगों की आर्थिक खुषहाली से जोड़कर रखना होगा। क्योंकि यह परियोजनाएं देष के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन की नब्ज होती है और इस नब्ज को टटोले बिना देष के विकास में व्याप्त रोगों का निदान नहीं किया जा सकता है।
निः संदेह देश के विकास को सही दिशा तभी मिल सकती है जब इस तरह की परियोजनाओं का क्रियांवयन हो तथा विकास पर आने वाले धन का समुचित उपयोग हो। साथ ही विकास से संबंधित समाचारों का आंकलन सही हो और उन्हें प्रमुखता से प्रकाशित किया जाए |
प्रेस आयोग की इस टिप्पणी से न केवल विकास पत्रकारिता का अर्थ स्पष्ट हो जाता है, बल्कि वह उसकी व्यापकता का भी रेखांकित करती है। विकास समाचारों की खोजबीन के काम पर होने वाले भारी खर्च भी विकास संवाददाता के काम में बाधक बनता है। प्रायः यह देखा गया है कि पत्र पत्रिकाओं के प्रबंधक ऐसे कार्य पर खर्च करने से कतराते हैं जिसका परिणाम यह देखने को मिलता है कि ऐसी खबरों को पढ़ने वाले पाठकों की संख्या में कमी आती है। दूसरी तरफ विकास समाचारों की जांच पड़ताल बिना ही छाप दिया जाता है। जिससे लोगों को सम्पूर्ण जानकारी नहीं मिल पाती। वैसे अगर ऐसे समाचारों में विष्वसनीयता बरती जाए तो यह समाचार राजनीति की दिषा को तय कर सकते हंै।
विकास कके बाधक तत्वों में आज के पत्रकार, संवाददाताओं का भी अहम रोल है। आज के संवाददाता कड़ी मेहनत करने की बजाय आसानी से मिलने वाली खबरों की और दौड़ते हैं जिससे विकास से संबंधित समाचार पीछे छूट जाते हैं। विकास के समाचारों के जो आंकड़े मिलते है उन्हें ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर दिया जाता है।
विकास समाचारों के संकलन में निहित स्वार्थ वाले लोग भी बाधा डालते हंै। बड़े बड़े पदों पर आसीन अधिकारी इस बात से डरते हंै कि सच्चाई सामने आने पर वे कठघरे में खड़े कर दिए जाएंगे। दूसरी तरफ विकास पर खर्च होने वाले धन को बीच में ही अधिकारियों और प्रभावषाली लोगों द्वारा गोलमाल कर दिया जाता है। जिससे विकास पर आया धन आम जनता तक पहंुच ही नहीं पाता। विकास समाचारों व विकास पत्रकारिता के सही और समुचित विकास के लिए जरूरी था कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के पत्रकार उसे एक चुनौती के रूप् में स्वीकार करते, तभी इसका ठीक से विकास हो सकता था। ऐसा नहीं हुआ। विकास से संबंधित समाचारों को उतना महत्व नहीं दिया जितना देना चाहिए था।
इसके अलावा सरकारी तौर पर जो सूचनाएं या विकास संबंधी जानकारी या आंकड़े प्रायः इकतरफा होते हैं। जिससे विकास में रुकावटें पैदा होती है और आम जनता को आधी अधूरी जानकारी मिलती है। सरकारी प्रसार माध्यमों द्वारा दी जाने वाली परियोजनाओं की जानकारी कितनी इकतरफा होती है, इस पर टिप्पणी करते हुए द्वितीय प्रेस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है-
‘‘ विकास को दिखाने के सरकारी मीडिया के प्रयास प्रायः प्रस्तुति के अति सरलीकरण के षिकार बनते हंै। कंेद्र में प्रेस सूचना ब्यूरो और राज्यों के सूचना विभागों द्वारा दिए जाने वाले विकास संबंधी विवरणों में अनेक को प्रेस प्रमुखता से नहीं छापता क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उनमें परिवर्तन की तस्वीर का एक ही पक्ष होता है, जबकि वास्तविक जीवन में विकास की प्रक्रिया आसान नहीं होती। उसके दौरान कठिनाइयां तथा ठोकरें मिलती हैं और उसे सफल बनाने के लिए दृढ़ प्रयास करने पड़ते हैं।‘‘
विकास के मामले में सबसी बड़ी बाधा तब आती है जब सूचना के सरकारी स्त्रोत से हमें विकास परियोजनाओं की सफलता और विफलता की पूरी और सही जानकारी नहीं मिल पाती।
विकास समाचारों के संकलन में साधनों और पैनी दृष्टि की जरूरत होती है। साथ ही अनुसंधान की जरूरत पड़ती है। लेकिन ऐसे थोड़े बहुत ही संवाददाता मिलेंगे जो वास्तविकता जानने के लिए गांव की धूल फांकना पसंद करते है। कुछ ऐसे भी संवाददाता मिल जायेंगे जो हकीकत जाने बिना ही घर बैठे बैठे ही समाचारों का आंकलन कर डालते हैं जबकि वास्तविकता यह होनी चाहिए की विकास के मामले में पूरी छानबीन बरती जाए।
विकास में सबसे बड़ी बाधा पयाप्र्त रूप से धन न मिल पाना है। विकास पर खर्च किए जाने वाल धन का एक बड़ा भाग अधिकारियों और प्रभवषाली लोगों की जेबों में चला जाता है। जिससे गांवों के बेरोजगार युवकों, समाज के दुबर्ल वर्गों, महिलाओं आदि को अपेक्षित लाभ नहीं मिलता। इसके अलावा ग्रामीण विकास के लिए कई योजनाएं जैसे मजदूर परियोजनाएं,राष्ट्रीय प्रौढ़ षिक्षा कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम निर्धारित किए जाते हंैं जिससे ग्रामीण जनता को फायदा पहंुच सकें। लेकिन ऐसे कार्यक्रमों का समुचित विकास नहीं हो पाता है। ग्रामीण जनता के बीच आने से पहले ही दम तोड़ देते हंैं। न कि ऐसे कार्यक्रमों की सही रिपोर्टिंग हो पाती है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि अगर विकास को त्वरित गति से आगे बढ़ाना है तो विकास परियोजनाआंे को डूबने से बचाना होगा। साथ ही विकास परियोजनाओं को देष के आर्थिक विकास और लोगों की आर्थिक खुषहाली से जोड़कर रखना होगा। क्योंकि यह परियोजनाएं देष के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन की नब्ज होती है और इस नब्ज को टटोले बिना देष के विकास में व्याप्त रोगों का निदान नहीं किया जा सकता है।
निः संदेह देश के विकास को सही दिशा तभी मिल सकती है जब इस तरह की परियोजनाओं का क्रियांवयन हो तथा विकास पर आने वाले धन का समुचित उपयोग हो। साथ ही विकास से संबंधित समाचारों का आंकलन सही हो और उन्हें प्रमुखता से प्रकाशित किया जाए |
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