सफेद हाथी साबित हो रहा है प्रदूषण मंडल
प्रदेश में 248 उद्योग जलवायु को कर रहा प्रदूषित
भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने भले ही प्रदेश की जनता की चिंता करते हुए राज्य प्रदूषण मंडल की स्थापना की हो। लेकिन ऐसा नहीं लग रहा है कि यह मंडल की जनता के हितों की रक्षा करने में अपने कर्त्तव्यओ का निर्वाहन कर रहा है। राज्य में स्थापित उद्योगों और प्रदूषण मंडल के अधिकारियों की सांठ-गांठ के चलते राज्य में उद्योगों द्वारा प्रदूषण फैलाया जा रहा हैं। लेकिन यह सिवाय कागजी खाना पूर्ति के कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। लगता है कि प्रदेश शासन और यह प्रदूषण मंडल तभी जागेगा जब राज्य में एक और यूनियन कार्बाइट जैसी घटना घटित हो जाए।
जहां तक राज्य प्रदूषण मंडल बोर्ड का सवाल है इसके बारे यदि कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासन काल में सोम डिस्टलरी के बारे में प्रस्तुत एक याचिका का प्रतिवेदन देते हुए याचिका समिति ने अपने तीसवां प्रतिवेदन (भाग-दो) बेतवा नदी में प्रदूषण संबंधी फरवरी-मार्च 1997 सत्र में प्रस्तुत याचिका क्रमांक 2644 जो कि एक मई 1998 को विधानसभा में प्रस्तुत की गई थी। उक्त समिति ने अपने प्रतिवेदन में प्रदूषण मंडल के अध्यक्ष से लेकर छोटे कर्मचारी तक जो टिप्पणी थी लगता है कि वह टिप्पणी का एक-एक शद आज भी प्रदूषण मंडल बोर्ड के अध्यक्ष से लेकर निचले स्तर तक के कर्मचारी पर लागू हो रही है। समिति ने अपने निष्कर्ष में बोर्ड के बारे में कहा था प्रदूषण निर्माण मंडल के शीर्ष स्थल से निचले स्तर तक की जो भूमिका है वह निश्चत ही दुर्भाग्य पूर्ण और उदासीनता यह दर्शाती है। मंडल अध्यक्ष जैसे जिम्मेदार व्यक्ति जब समिति के समक्ष प्रोसीक्यूशन की कार्रवाई संबंधी बात कहकर जाएं और उसका पालन न करें। तो निचले अमले से अधिक उम्मीद नहीं की जा सकती। सोम डिस्टलरी के बेतवा प्रदूषण के संबंध में समिति ने जो निष्कर्ष राज्य प्रदूषण मंडल के बारे में दिए थे। इससे यह साबित होता है कि प्रदूषण मंडल प्रदेश की जनता को जहर पीने पर मजबूर कर रहा हैं। क्योंकि उद्योगों से सांठ-गांठ करके राज्य की पवित्र नदियां प्रदूषित तो हो रही हैं तो वहीं राज्य में स्थापित उद्योगों से निकलने वाली हवा और पानी जहर घोल रही हैं। राज्य में स्थापित एक दूसरे के उद्योग के बार में राज्य प्रदूषण मंडल की जो भूमिका रही वहीं संदेह के घेरे में हैं। आज राजधानी में स्थित यूनियन कार्बाइट के जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए राज्य सरकार से लेकर केन्द्र सरकार भी चिंतित है, लेकिन राज्य की पीथमपुर में स्थापित रामकी उद्योग जिसका काम प्रदेश के उद्योगों से निकलने वाले कचरों को नष्ट करने के लिए स्थापित की गई हैं। उक्त कंपनी को राज्य शासन के आदेश द्वारा प्रदेश के कई उद्योगों से लाखों रूपए अग्रिम भुगतान जहरीले कचरे को नष्ट कराने के लिए कराया गया है। प्रदेश में ऐसी कंपनी होने के बावजूद यूनियन कार्बाइट का कचरा जर्मन में नष्ट कराने की प्रक्रिया चले तो फिर उक्त कंपनी का राज्य में औचित्य क्या? हालांकि इस कंपनी के स्थल चयन को लेकर जो बोर्ड ने हेराफेरी की वह भी जांच का विषय हैं। कुल मिलाकर ऐसे कई मामले है जिनमें राज्य प्रदूषण मंडल बोर्ड के अध्यक्ष से लेकर निचले स्तर तक के कर्मचारियों की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े करते हैं।
राज्य सरकार द्वारा विकास के नाम पर प्रदेश में उद्योगों की स्थापना करने की भरपूर कोशिश की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद भी यह उद्योग अपने आसपास के रहवासियों के लिए प्रदूषण फैलाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। कार्रवाई के नाम पर प्रदूषण मंडल सिवाय नोटिसी कार्रवाई के अलावा कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता है। क्योंकि इसी तरह के नोटिस मिलने के बाद उद्योगपति प्रदूषण मंडल के अधिकारियों से सांठ-गांठ कर लेते हैं? मामला कुछ भी हो लेकिन प्रदूषण मंडल बोर्ड पर प्रतिवर्ष जनता की कमाई का करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी नतीजा शून्य ही नजर आता है। तभी तो प्रदेश के उद्योगों द्वारा किया जा रहा दूषित जल व वायु का उत्सर्जन रुकने का नाम नहीं ले रहा हैं। हवा व पानी को प्रदूषित करने में भोपाल के उद्योगों की संख्या सबसे ज्यादा है। वर्ष 2011-12 में भोपाल क्षेत्र के करीब 39 उद्योगों से जल प्रदूषण तथा 12 से वायु प्रदूषण मानक से अधिक होना पाया गया है।
इंदौर जैसे उद्योगिक क्षेत्र में मानक से अधिक उगलने वाले जल व वायु प्रदूषक उद्योगों की संख्या भोपाल, जबलपुर, धार व उज्जैन से कम हैं। भोपाल क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मंडीदीप में जल व वायु प्रदूषण की हालत काफी खराब है। मंडीदीप की 16 औद्योगिक इकाइयां जल प्रदूषक तथा 8 इकाइयां वायु प्रदूषक मानक से अधिक उगल रही हैं।
आरटीआई में हुआ खुलासा:- प्रयत्न संस्था द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारियों में जो तथ्य सामने आए हैं। उसके अनुसार प्रदेश में करीब 248 उद्योग ऐसे हैं जो जल व वायु को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। प्रदेश में करीब 194 उद्योगों द्वारा छोड़े जा रहे जल में प्रदूषक की मात्रा मानक से अधिक मिली है। वहीं लगभग 54 उद्योग ऐसे हैं जिनमें वायु प्रदूषक की मात्रा मानक से अधिक निकलना पायी गई है।
बंद हो चुके हैं कई उद्योग:- हालांकि खतरनाक कचरे के प्रबंधन में लापरवाही बरतने के चलते प्रदेश के कई उद्योगों में ताला लग चुका है। इन उद्योगों को खतरनाक अपशिष्ट नियम 2008 की उपेक्षा व सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन नहीं करने का दोषी पाया गया था। एमपीपीसीबी ने अदालम में विचाराधीन अवधि तक 144 उद्योगों को बंद कर दिया, लेकिन इनमें से 109 को बाद में खतनाक अपशिष्ट कचरा प्रबंधन के लिए उचित कार्रवाई करने पर संचालन की अनुमति दे दी। हालांकि अभी भी 35 उद्योगों में ताला जड़ा हुआ है।
राज्य प्रदूषण मंडल बोर्ड की लापरवाही और उद्योगपतियों के साथ सांठ-गांठ के चलते राज्य के चार शहर ऐसे है जिनमें सबसे ज्यादा प्रदूषण है।
वह जिले है इंदौर, देवास, सिंगरौली, पीथमपुर, लेकिन मजे की बात यह है कि इन सब सर्वाधिक जिलों की जानकारी राज्य के प्रदूषण मंडल बोर्ड के अध्यक्ष डा. एनपी शुक्ला को भी नहीं है। ऐसी स्थिति में जब जिस बोर्ड को प्रदेश में प्रदूषण मंडल को प्रदूषण नियंत्रण करने की जिम्मेदारी हो और उसके मुखिया को राज्य के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की जानकारी भर न हो। तो ऐसे में राज्य में प्रदूषण फैलाने वाले इन उद्योगों जिनके माध्यम से राज्य की जल और वायु को प्रदूषित किया जा रहा हो उसकी जानकारी उनको नहीं होगी। क्योंकि उन्हें अक्टूबर में इस पद से मुक्त होना है और ऐसे में वह अपने भविष्य की चिंता करें या फिर प्रदेश प्रदूषण झेल रही जनता की।
- अवधेश पुरोहित
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Monday, January 14, 2013
प्रदूषण मंडल की लापरवाही से प्रदेश की हवा-पानी में घोला जा रहा जहर
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