मोकर्रम खान)
हाल ही में भोपाल के कुछ समाचार पत्रों में यह खबर छपी कि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को कांग्रेस ने चुप रहने की नसीहत दी है. इस खबर को भोपाल के कुछ चुनिंदा अखबारों ने अलग अलग ढंग से नमक मिर्च लगा कर छापा. एक ने लिखा ‘’दिग्विजय के मुंह पर ताला’’, दूसरे ने लिखा ‘’दिग्विजय सिंह को पार्टी की चुप रहने की नसीहत’’, तीसरे ने लिखा ‘’दिग्गी को झटका’’ चौथे ने तो यह तक लिख दिया कि ‘’दिग्विजय सिंह हाशिये पर चले गये’’. कटु तथा कठोर सत्य यह है कि इनमें से अधिकतर समाचार पत्रों के संपादक/स्वामी दो दशक पहले तक मिडिल इनकम ग्रुप में आते थे और अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिये विज्ञापनों के जुगाड़ में रात दिन परिश्रम करते थे. कई तो उस समय मुख्यमंत्री रहे दिग्गी राजा के दरबार में अघोषित भाट (राजा के प्रशंशागीत गाने वाले प्रोफेशनल गायक) का भी कार्य करते थे. गायनोपरांत पुरस्कार स्वरूप आर्थिक सहायता के लिये गिड़गिड़ाते थे. कभी विज्ञापन, कभी अधिकारियों के ट्रांसफर या मलाईदार पद पर पोस्टिंग, कभी ठेके, कभी सप्लाई आर्डर्स. दिग्गी राजा लगातार 10 वर्ष तक मुख्य मंत्री रहे. इन लोगों ने जम कर चांदी काटी और मिडिल इनकम ग्रुप से सुपर हायर इनकम ग्रुप में पहुंच गये, अखबार के साथ साथ बड़े बड़े उद्योग धंधे भी चलाने लगे. नाजायज कमाई और कृतघ्नता एवं अवसरवादिता का चोली दामन का साथ होता है. दिग्विजय सिंह ने 2003 के मध्य प्रदेश विधान सभा चुनावों के दौरान यह प्रतिज्ञा कर ली कि यदि कांग्रेस मध्य प्रदेश में हारती है तो मैं 10 वर्ष तक सरकार में कोई पद नहीं लूंगा, इसलिये केंद्र में कांग्रेसनीत यू0पी0ए0 सरकार में मंत्री पद नहीं लिया. प्रशंशागीत गाने वाले पूर्णत: प्रोफेशनल होते हैं. यदि सामने वाले के वालेट में माल है तो गाते रहेंगे, नहीं तो उसका दामन छोड़, जिसकी अंटी में रुपये हैं उसके घर के सामने हारमोनियम तबला ले कर बैठ जायेंगे, वही हुआ. दिग्गी राजा के सन्यास की घोषणा का लाभ कुछ ऐसे लोगों को मिल गया जिनका कोई जनाधार ही नहीं था, उन्हें मलाईदार पद मिल गये. राजनीति में महत्वपूर्ण पद पाने तथा उसे बचाये रखने के लिये जनाधार बढ़ाते रहना आवश्यक होता है किंतु यदि किसी व्यक्ति को बिना जनाधार के ही लाटरी की रकम की तरह पद मिल जाये तो उसके दिमाग में महत्वाकांक्षायें सागर की लहरों की तरह हिलोरे मारने लगती हैं और वह हर उस इंसान का अस्तित्व समाप्त करने के प्रयास में लग जाता है जिसके पास जनाधार होता है क्योंकि उसका जनाधार, जनाधारविहीन व्यक्ति को हर समय मुंह चिढ़ाता तथा डराता रहता है. जनाधारविहीन व्यक्ति, जनाधार रखने वाले व्यक्ति से सीधे टकराने का साहस नहीं कर सकता क्योंकि राजनीति के अखाड़े में जनबल के बिना मल्लयुद्ध संभव ही नहीं है. ऐसे में अनुचित आर्थिक लाभ के लिये मुंह फाड़े बैठे कुछ मीडिया हाउस जो पीत पत्रकारिता के माध्यम से किसी की इमेज बनाने या गिराने का बाकायदा ठेका लेते हैं, ऐसे लोगों का साथ देने पहुंच जाते हैं. राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के समर में यदि जातिवाद का तड़का भी लग जाय तो युद्ध की तस्वीर ही बदल जाती है, करेला, ऊपर से नीम चढ़ा वाली स्थिति बन जाती है. प्रतिद्वंदिता तथा सौतिया डाह की भावना के कारण कई बार एक ही नाव के सवार इस हद तक लड़ बैठते हैं कि नाव पलट कर डूब जाने का ख़तरा पैदा हो जाता है. जिसने नाव बनाने तथा उसके मेंटेनेंस में अपना जान-माल लगाया है उसे तो दर्द होगा और वह भरसक प्रयास करेगा कि नाव डूबने न पाये भले ही उसे थोड़ा अपमान सहन करना पड़े क्योंकि उसे मालूम है कि नदी पार करने का एकमात्र साधन यह नाव ही है. यदि यह डूब गई तो पूरे परिवार का बंटाधार हो जायगा, किंतु जो व्यक्ति फ्री पास द्वारा नाव में सफर कर रहा है, उसे क्यों चिंता होगी, नाव कल डूबती है तो आज डूब जाये, अपन तो दूसरी नाव में जुगाड़ बैठा लेंगे.
अभी दिग्विजय सिंह के जिन बयानों के आधार पर कुछ मीडिया हाउस दिग्विजय सिंह के राजनीतिक वनवास का दु:स्वप्न देख रहे हैं, उनमें वास्तव में कोई दम ही नहीं है. मीडिया के अनुसार, दिग्विजय सिंह ने यह बयान दिया कि ममता बनर्जी राजनीति में कच्ची हैं और अपने फैसलों को ले कर डांवाडोल स्थिति में रहती हैं. ममता बार बार कांग्रेस के धैर्य की परीक्षा न लें. इस पर कांग्रेस ने बयान जारी किया कि दिग्विजय सिंह पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता नहीं हैं. दिग्विजय सिंह ने भी जवाब दे दिया कि मैं ने कब कहा कि मैं पार्टी का आधिकारिक प्रवक्ता हूं. सच्चाई यह है कि राजनीति के खेल निराले होते हैं. कई घटनायें प्रायोजित होती हैं. ममता बनजीं की रोज रोज की ब्लैकमेलिंग से कांग्रेस त्रस्त है, यह बात जग-जाहिर है. केवल सरकार को स्थिर रखने के लिये कांग्रेस ममता से सीधे पंगा नहीं ले रही है इसलिये पार्टी की भावना तथा अप्रत्यक्ष चेतावनी दिग्विजय सिंह के उक्त बयान के माध्यम से ममता दीदी तथा देश की जनता तक पहुंचा दी गई. इस चेतावनी का स्पष्ट प्रभाव भी देश की जनता ने देखा, ममता के तेवर नरम पड़ गये. किंतु इस घटना को ममता के सार्वजनिक अपमान के रूप में न ले लिया जाय इसलिये पार्टी ने इस बयान से अपने आप को अलग प्रदर्शित करने का प्रयास किया. यदि कांग्रेस इस बयान को पार्टी के अधिकृत बयान के रूप में स्वीकार कर लेती तो ममता तथा कांग्रेस दोनों के लिये गठबंधन बनाये रखना दुष्कर कार्य होता जो यूपीए सरकार की हेल्थ पर बुरा प्रभाव डालता. इसलिये यह रास्ता अपनाया गया जिससे सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी. किंतु धन्य हैं भोपाल के स्वयंभू मीडिया सम्राट जिन्होंने अपने आपको इतना शक्तिशाली समझ लिया कि दिग्गी राजा जैसे चतुर क्रिकेटर को भी क्लीन बोल्ड करने का ख्व़ाब देखने लगे. मज़े की बात यह है कि दिग्विजय सिंह के बयान से पार्टी ने किनारा कर लिया इस साधारण समाचार को केवल भोपाल के कुछ समाचार पत्रों ने इतना ज्यादा उछाला और अपने अपने ढंग से इसका विश्लेषण कर के जनता के सामने तोड़ मरोड़ कर पेश किया, जबकि यह एक अति साधारण घटना थी जिसे महत्व देने की आवश्यकता ही नहीं थी.
भोपाल के एक मीडिया हाउस का यह कहना है कि दिग्विजय सिंह की ज़ुबान फिसल जाती है, कभी भी कहीं भी कुछ भी बोल देते हैं, कभी बाबा रामदेव के विरुद्ध, कभी अन्ना हजारे के विरुद्ध, कभी किसी राजनेता के विरुद्ध. बाबा रामदेव एपीसोड में इस मीडिया हाउस की वेब साइट पर दिग्विजय सिंह के बयानों को खूब उछाला गया, कुछ लोगों ने इन बयानों पर अश्लील टिप्पणियां कीं, कई ने तो गंदी गालियां भी लिखीं. वेब साइट वालों ने इन अश्लील टिप्पणियों तथा गंदी गालियों को बगैर किसी काट छांट के ज्यों का त्यों प्रकाशित कर दिया. कम से कम अपनी इमेज का तो ख्याल किया होता किंतु वह भी नहीं किया. ख़ैर, बात चल रही है दिग्विजय सिंह की ज़ुबान फिसलने की, तो सच्चाई यह है कि दिग्विजय सिंह राजनीति के चाणक्य हैं. दो बार लगातार मध्य प्रदेश जैसे विशाल राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, आज भी कई बड़े राजनेताओं के गुरु हैं. उनकी ज़ुबान फिसलने का प्रश्न ही नहीं उठता. वे जो भी बोलते हैं एक सोची समझी रणनीति के तहत बोलते हैं. उनकी रणनीति के कांग्रेस के धुरंधर नेता भी कायल हैं. जब बाबा रामदेव योग छोड़ राजनीति के भोग में लीन होने के प्रयास करने लगे तब दिग्विजय ने उन्हें व्यापारी कहा, कुछ लोगों को बहुत बुरा लगा किंतु बाबा ने तो स्वयं स्वीकार किया कि उनका वार्षिक टर्न ओवर कई सौ करोड़ है. बाबा रामदेव की 22 राज्यों में 152 दुकानें तथा 50 अस्पताल हैं, 236 प्रोडक्ट्स तथा 32 पैकेज हैं. इसके अलावा 166 आडियो तथा वीडियो कैसेट्स हैं. इन सबसे राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करोड़ों रुपये का व्यापार प्रति वर्ष होता है, फिर बुरा मानने की क्या बात है. दिग्विजय सिंह ने अन्ना हजारे के संबंध में कुछ हल्की फुल्की टिप्पणी कर दी तो लोग इसमें भी कूदने लगे किंतु क्या अन्ना हजारे तथा उनकी टीम के सभी सदस्य इतने बड़े संत हैं कि उनके अंदर कोई दोष हो ही नहीं सकता. ममता बनर्जी बार बार बखेड़ा खड़ा करती हैं, इसी बहाने डील के प्रयास भी करती हैं. अगर दिग्विजय सिंह ने यह कह दिया कि ममता कांग्रेस के धैर्य की बार बार परीक्षा न लें तो क्या गलत कह दिया. यदि दिग्विजय सिंह में राजनीतिक परिपक्वता का अभाव होता और वे कुछ भी अंड बंड बोलते होते तो अभी तक अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर बने न रह पाते. जो लोग यह भ्रम पाले हुये हैं कि दिग्विजय सिंह की जु़बान कभी भी कहीं भी फिसल जाती है जिसके कारण दिग्विजय सिंह कभी भी राजनीतिक वनवास में भेजे जा सकते हैं वे वास्तव में मृग-मरीचिका में भटक रहे हैं. ऐसे लोगों को चाहिये कि इस भ्रम की स्थिति से तत्काल बाहर आ जायें वर्ना दिग्विजय सिंह के 10 वर्षीय सन्यास की अवधि पूर्ण होने में थोड़ा ही समय बचा है.
मोकर्रम खान, वरिष्ठ पत्रकार/राजनीतिक विश्लेषक
पूर्व निजी सचिव, केंद्रीय शहरी विकास राज्य मंत्री.
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