Sunday, June 19, 2011
बाबा को बदनाम करने के लिए 5 दिन में 1700 करोड़ का विज्ञापन
बाबा रामदेव को बदनाम करने के लिए 5 दिनों में टेलीविजन मीडिया पर खर्च की गई राशि श्री बाबा रामदेव की 17 साल की संपूर्ण संपत्ति से भी अधिक है |
10 second TV ads charges = 10 lacs Rs.
10 hrs in a day for a channel = 35 crore
5 days for a channel = 175 crore
10 such channel for 5 days = 1750 crore
इलेक्ट्रोनिक मीडिया की ख़बरों के पीछे विज्ञापन का अंकगणित कितना प्रभावी है इसकी एक छोटी सी झलकी ऊपर की तालिका से स्पष्ट हो जाती है |
पिछले दो सालों में पेड न्यूज को लेकर देश भर में बड़ी बहस शुरू हुई थी | स्वर्गीय प्रभाष जोशी की पहल पर उनके कई साथी पत्रकारों ने इस पर काम भी किया , रिपोर्ट भी बनी लेकिन सरकारी स्तर पर इसको रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये | ” पेड न्यूज “, एडवर्टोरियल , जैसे शब्द आज पत्रकारिता में अपनी स्वीकार्यता बना चुके हैं | सरकारी-गैरसरकारी विज्ञापन चैनलों और अख़बारों की जुबान पर ताला लगा चुके हैं और उनकी आँखों पर सरकारी चश्मा चढ़ चुका है | आज मीडिया वही दिखाती है जो सरकार दिखाना चाहती है | सरकारी विज्ञापन कब और किस उद्देश्य से जारी किये जा रहे हैं इस पर राष्ट्रीय बहस की जरुरत है |
सरकारी प्रचार और विज्ञापन को लेकर दिशा-निर्देश में चार केंद्रीय बिंदु हैं – यह सरकार की जिम्मेदारियों से जुड़े हुए हों, सीधे-सपाट तरीके से उद्देश्य की पूर्ति करते हों, वस्तुनिष्ठ हों और उन्हें प्रचारित किए जाने की वजह साफ हो, वे पक्षपातपूर्ण या विवादात्मक न हों, किसी पार्टी के राजनीतिक प्रचार का औजार न हों और ऐसी समझदारी से किए जाएं कि वे जनता के पैसों के इस खर्च की न्यायसंगत वजह पेश करते हों।*1
भारत में आज तक पाठकीय संप्रभुता बन ही नहीं पाई. आगे के समय में यह और भी संभव नहीं दिखाई देता है क्योंकि यह वित्तीय मुद्रा व मुद्रा के वर्चस्व का युग है | राजनीति और मुख्यधारा के मीडिया दोनों पर पूंजी का दबाव है | उन्होंने आगे कहा कि पहले जनाधार और कैडर आधारित पार्टियां मुख्यधारा के मीडिया को अपने लिहाज से महत्वहीन मानती थीं | लेकिन जैसे-जैसे समय बदला जनाधार कमजोर हुआ, पार्टियां कैडरविहीनता की स्थिति में आने लगीं, पार्टियां मीडिया के द्वारा छवि निर्माण करने लगीं | पार्टियां मुख्यधारा के मीडिया का इस्तेमाल कर उन पैसिव वोटरों को प्रभावित करने लगीं जो पाठक-दर्शक है | ऐसे में ही पार्टियों और मुख्यधारा के मीडिया का नापाक गठबंधन शुरू हुआ | पत्रकारिता तो नैसर्गिक प्रतिपक्ष है |*2
लेकिन वर्तमान हालात में पत्रकारिता / मीडिया जो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाती है उसका चेहरा वही है लेकिन अन्दर का चरित्र बदल चुका है | मीडिया का नैसर्गिक प्रतिपक्ष होने की बात बार-बार बेमानी साबित हो रही है | सत्ता के इशारे पर शीर्षासन करने वाली मीडिया इमेज बनाने और बिगाड़ने के खेल में माहिर हो गयी है | बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के मामले में मीडिया यही तो कर रही है | केन्द्रीय सत्ता के इशारे पर मीडिया ने रामलीला मैदान में हुई पुलिसिया बर्बरता की गैर-लोकतांत्रिक कार्यवाई पर सरकार को घेरने के बजाय बाबा रामदेव , आचार्य बालकृष्ण और भ्रष्टाचार के विरुद्ध सत्याग्रह से जुडे प्रमुख लोगों को ही निशाने पर ले लिया है | आखिर क्या वजह है कि एक तरफ इलेक्ट्रोनिक मीडिया बाबा रामदेव की जड़ें खोदने में लगी हुई है दूसरी तरफ हर चैनल पर “भारत निर्माण ” के विज्ञापन की बाढ़ आ गयी है ?
निश्चित रूप से यह विज्ञापन सरकारी घुस है जो सरकारी अजेंडे के मुताबिक खबरों के प्रसारण हेतु मीडिया को दिया गया है | बाबा रामदेव प्रकरण में मीडिया की भूमिका संदिग्ध और जांच का विषय है | यही मीडिया थी जिनके प्रसारण की सुबह बाबा रामदेव के योग क्लास से होती थी | बाबा रामदेव को अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बनाने में इसी मीडिया ने सालों दिन-रात की मेहनत की है | आखिर क्या वजहें थी कि मीडिया को उस दौरान बाबा रामदेव की संपत्ति और उनके तथाकथित फर्जीवाड़े का पता नहीं चल पाया ? आखिर बाबा रामदेव से जुडे दर्जनों खुलासे, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यूपीए सरकार और काले धन को लेकर कांग्रेस पर बाबा के सीधे प्रहार के बाद , ही सामने आने लगे ? बहरहाल , ऊपर दिए गये सरकारी विज्ञापन के आंकडें चीख-चीख सारे सवालों के जबाव दे रहे हैं |
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*1 सरकारी विज्ञापनों के बहाने ‘प्रचार’ , मीडियाखबर.कॉम
*2 वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र दुबे के विचार , हाशिया ब्लॉग
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भाई कम से कम कोई लेख कहीं कॉपी कीजिये तो उस वेबसाईट का जिक्र जरुर कीजिये ! यह लेख हमने जनोक्ति पर लिखा त५ह जिसे आपने हुबहू बिना साभार पोस्ट किया है जो गलत है !
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