Friday, February 8, 2013

नर्मदा किनारे बनेंगी चौकियां, लगेंगी चौपालें


बांद्राभान में होने वाले तीसरे अंतर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव में पूरे नर्मदा किनारे घाटों पर निगरानी चौकियां स्थापित करने और विभिन्न वर्गों की चौपालें लगाने की योजना पर विचार किया जाएगा। जहां चौकियां प्रदूषण व अन्य अवैध गतिविधियों पर नज़र रखने की जिम्मेदारी निभाएंगी, वहीं चौपालों के माध्यम से नर्मदा को लेकर समाज में संवेदनशीलता पैदा की जाएगी। ये सारी जिम्मेदारियां स्वतः स्फूर्त होंगी व समाज के माध्यम से कार्यान्वित की जाएंगी।
नदी महोत्सव के संयोजक व राज्यसभा सांसद श्री अनिल माधव दवे ने इस योजना का खुलासा करते हुए कहा कि नदियों के संरक्षण में समाज को सरकार से भी ज्यादा महती भूमिका निभानी होगी। उसे अपने अधिकारों व दायित्वों के प्रति जागरूक व सक्रिय होना होगा। उन्होंने कहा कि चौकियों के माध्यम से नर्मदा में होने वाले प्रदूषण, अवैध खनन और उसके आगम क्षेत्र में अवैध वन कटाई पर कड़ाई से नज़र रखी जाएगी। इसके लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जाएगा। नदी महोत्सव के दौरान एक पूरे दिन नदियों से संबंधित कानूनों व वन संबंधी विषयों पर चर्चा की जाएगी। इसका मुख्य उद्देश्य नर्मदा समग्र के कार्यकर्ताओं को सूचना के अधिकार व जनहित याचिकाओं जैसे उपलब्ध उपकरणों से उन्हें परिचित कराया जाएगा ताकि वे उनका अधिकाधिक इस्तेमाल कर सकें।
श्री दवे ने कहा कि नदियों के संरक्षण के बारे में नदी किनारे रहने वाले समाज को सर्वाधिक संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। उसमें नदियों के प्रति अपनत्व का भाव रहता भी है। लेकिन वह जन-जागरण तथा सामूहिक भावना के अभाव में अपने दायित्वों के निर्वहन नहीं कर पाता। चौपालों का उद्देश्य नदी किनारे रहने वाले जन समुदाय को नदियों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाना है। समाज के गणमान्य नागरिक, किसान, विद्यार्थी, महिलाएं, आदि अपने-अपने वर्गों के बीच नदी व पर्यावरण जैसे विषयों पर निरंतर चर्चा करें, गोष्ठियां करें, परिसंवाद करें, इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित व संगठित किया जाएगा।
नर्मदा किनारे के स्कूलों व कॉलेजों के माध्यम से नदी संरक्षण की योजनाएं बनाई जाएंगी व उनका कार्यान्वयन किया जाएगा। श्री दवे ने कहा कि नदी सिर्फ जलराशि वाली एक इकाई मात्र नहीं है। यह एक वृहद पर्यावरण-तंत्र है। इसके सभी आयामों पर चर्चा व काम करने की जरूरत है। उसके कैचमैंट एरिया के संरक्षण व संवर्धन से लेकर घाटों पर स्नानादि करते समय सफाई की व्यवस्था करना, नदी में साबुन का प्रवाह न होने देना, नदी में मरे हुए जानवर प्रवाहित न करना, वार-त्यौहार पर पूरे घाट को प्लास्टिक आच्छादित न कर देना, आदि बहुत से विषय हैं, जहां समाज को स्वयं अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।
श्री दवे ने कहा कि नर्मदा व उसकी सहायक नदियों का पूरा क्षेत्र जब तक जैविक विधि से खेती नहीं करने लगेगा, तब तक नर्मदा में जहर मिलने की प्रक्रिया को हम नहीं रोक सकते। जहरीले रसायनों से युक्त जो जल नर्मदा में मिल रहा है, वह उसकी पवित्रता से तो खिलवाड़ है ही, मनुष्य के अपने स्वास्थ्य और पूरी नस्ल को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। समय आ गया है, अब हम इसे और न बढ़ने दें, व मौजूदा हालात को भी स्वीकार न करें।



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