Wednesday, September 29, 2010
Saturday, September 25, 2010
हिंदी के जाने माने लेखक और पत्रकार कन्हैयालाल नंदन का शनिवार तड़के यहाँ एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे 77 वर्ष के थे।
हिंदी के जाने माने लेखक और पत्रकार कन्हैयालाल नंदन का शनिवार तड़के यहाँ एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे 77 वर्ष के थे।
पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि उन्हें बुधवार की शाम निम्न रक्तचाप और साँस लेने में तकलीफ होने के बाद राजधानी के रॉकलैंड अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उन्होंने शनिवार तड़के तीन बजकर 10 मिनट पर अंतिम साँस ली। वे पिछले आठ साल से डायलिसिस पर थे।
उनके परिवार में पत्नी और दो पुत्रियाँ हैं। उनके शव को साकेत के पुष्पावती सिंघानिया शोध संस्थान (पीएसआरआई) में रखा गया है। सूत्रों ने बताया कि उनकी छोटी बेटी के कनाडा से आने के बाद उनका अंतिम संस्कार रविवार सुबह 11 बजे लोधी रोड श्मशान घाट पर किया जाएगा।
नंदन का जन्म उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले के परस्तेपुर गाँव में एक जुलाई 1933 को हुआ था। डीएवी कानपुर से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया और भावनगर विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की।
पत्रकारिता में आने से पहले कन्हैयालाल नंदन ने करीब चार साल तक मुंबई विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया था। वे वर्ष 1961 से 1972 तक धर्मयुग में सहायक संपादक रहे। इसके बाद उन्होंने टाइम्स ऑफ इडिया की पत्रिकाओं पराग, सारिका और दिनमान में संपादक का कार्यभार संभाला। तीन सालों तक वह नवभारत टाइम्स के फीचर संपादक भी रहे।
टाइम्स समूह से अलग होने के बाद वे छह साल तक हिन्दी के साप्ताहिक अखबार संडे मेल के प्रधान संपादक रहे। 1995 से उन्होंने इंडसइंड मीडिया में बतौर निदेशक कार्य किया। नंदन को पद्मश्री, भारतेंदु पुरस्कार, अज्ञेय पुरस्कार और नेहरू फेलोशिप सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
उन्होंने विभिन्न विधाओं में तीन दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं। वे मंचीय कवि और गीतकार के रूप में मशहूर रहे। उनकी प्रमुख कृतियाँ ‘लुकुआ का शाहनामा’, ‘घाट-घाट का पानी’, ‘आग के रंग’, ‘गुजरा कहाँ कहाँ से’ आदि हैं।
पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि डायलिसिस पर रहते हुए पिछले आठ साल के दौरान उन्होंने कई किताबें लिखीं। मुंबई के संस्मरणों पर आधारित किताब ‘कहना जरूरी था’ अभी प्रेस में है।
शोक की लहर : केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी सहित पत्रकार और साहित्य जगत के तमाम लोगों ने नंदन के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त की है।
सोनी ने अपने संदेश में कहा कि कन्हैयालाल नंदन के निधन से हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में आई रिक्तता को भरना बेहद मुश्किल है। नंदन एक विचारशील लेखक थे, जिनमें कई पीढ़ियों से संवाद करने की क्षमता थी। उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता और हिन्दी साहित्य के आंदोलन को नई दृष्टि दी।
उन्होंने कहा कि पत्रकारिता और साहित्य में उनके द्वारा किया कार्य मानक हैं, जो नयी पीढ़ी का मार्गदर्शन करेगा। उनके निधन से देश ने एक बहुमुखी प्रतिभा का धनी व्यक्ति खो दिया है, जिसकी रचनात्मकता को सभी लोगों ने सिर आँखों पर लिया।
दिल्ली हिन्दी अकादमी के उपाध्यक्ष और कवि अशोक चक्रधर ने कहा कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी उदारमना व्यक्ति थे। वाचिक परंपरा से जुड़े होने के बावजूद उन्हें साहित्यिक हलकों में भी स्वीकार किया जाता था। उन्होंने सांस्कृतिक शिक्षक के रूप में कार्य किया और श्रोताओं में अच्छी कविता सुनने का शऊर पैदा किया।
आल इंडिया न्यूज पेपर एडिटर्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष विश्वबंधु गुप्ता ने कहा कि उनका निधन हिन्दी साहित्य और संस्कृति के लिए बड़ा नुकसान है। नंदन ने पत्रकार, लेखक और कवि के रूप में लैंगिक न्याय और वैश्विक प्रेम का संदेश दिया। उनकी मानवीय प्रेम को दर्शाने वाली कहानियाँ अंदर तक छूती हैं।
वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता में ऐसे लोग बिरले हैं, जिनके 18 साल के पत्रकार से लेकर अज्ञेय तक समान संबंध रहे हैं। उनकी पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी को जोड़ने में अहम भूमिका रही।
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा है कि प्रख्यात पत्रकार और लेखक नंदन के निधन से भारत के साहित्य एवं पत्रकारिता जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। आडवाणी ने शोक संदेश में कहा कि भारतीय साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में कई प्रसिद्ध पत्रकार एवं साहित्यकार हुए पर ऐसे बहुत कम लोग कलम के धनी होते हैं, जो एक विधा के प्रतीक बन जाते हैं। नंदन विचारक, चिंतक और कवि हृदय थे।
उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई नए आयाम स्थापित किए। उन्होंने बाल पत्रिका का भी कुशल संपादन कर बालकों के मन में कथा और कहानियाँ पढ़ने की ललक पैदा की। नंदन साहित्य एवं पत्रकार जगत के सशक्त हस्ताक्षर थे।
भाजपा में उमा की वापसी पर आडवाणी ने चुप्पी साधी
नई दिल्ली। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के साथ सोमनाथ यात्रा पर गईं उमा भारती की निकट भविष्य में पार्टी में वापसी की किसी भी संभावना से भाजपा ने इंकार किया है।
भाजपा की पूर्व नेता उमा भारती की पार्टी में वापसी की संभावना के बारे में पूछे जाने पर आडवाणी ने बात को टालते हुए कहाकि उमा ने मेरे साथ सोमनाथ आने की इच्छा जताई थी और इसी वजह से वह यहां मेरे साथ हैं।
किसी समय भाजपा की कद्दावर नेता समझीं जाने वाली उमा भारती आडवाणी के निकट मानी जाती हैं। उमा भारती को 2005 में बीजेपी से निष्कासित कर दिया गया था। वो मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।
भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा यह सिर्फ इबादत है, इसे सियासत के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। गौरतलब है कि आडवाणी हर साल 25 सितंबर को सोमनाथ यात्रा पर जाते हैं। इसी दिन उन्होंने समोनाथ से अयोध्या तक की यात्रा शुरू की थी।
प्रतिमाओं से हटेंगी पुरानी मालाएं
चौराहों पर लगी प्रतिमाओं से पुरानी मालाओं और बिजली के खम्बों पर लगे बोडरें पर चिपके समस्त इश्तहारों और पम्पलेटों को हटाने के निर्देश नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बाबूलाल गौर ने नगर निगम अधिकारियों को शुक्रवार को दिए। उन्होंने कहा कि चौराहों पर लगी महापुरुषों की प्रतिमाओं पर लम्बे समय तक सूखी फूल मालाएं लटकी रहने से प्रतिमाओं का अपमान तो होता ही साथ ही वे अशोभनीय भी लगती हैं। श्री गौर ने कहा कि मूर्तियों की महीने में कम से कम एक बार साफ-सफाई कराई जानी चाहिये।उन्होंने निगम अधिकारियों को इसका गंभीरता से पालन करने के निर्देश दिए।
रोडवेजकर्मी फिर बस अड्डों पर लौटे
इंदौर । भाजपा सरकार और उसके नौकरशाहों ने रोडवेज की तालाबंदी को मजाक बनाकर रख दिया है। सात दिन पहले परिवहन सचिव अनिरूद्ध मुखर्जी का फरमान जारी होता है कि प्रदेशभर के रोडवेजकर्मी मुख्यालय हाजिरी दें, नहीं तो कार्रवाई। मामले में जिला प्रशासन की वो गुहार भी अनसुनी की गई कि सब कर्मचारी चले जाएंगे तो बस अaों को कौन संभालेगा? हारकर कलेक्टर को ताबड़तोड़ सभी विभाग की संयुक्त बैठक बुलाना पड़ी। अब फिर से उसी अफसर के आदेश से सभी कर्मचारियों की सेवाएं फिर बस अaों को लौटा दी गई हैं।
ये हो रहा है उस रोडवेज (सपनि) में जिसे सरकार बंद करने पर आमादा है। उसने 30 सितंबर को रोडवेज की आखिरी तारीख घोषित कर ये कदम उठाया है। सरवटे और गंगवाल जैसे बस अaों और संभागीय कार्यालय पर 41 कर्मचारी थे। सभी के भोपाल जाने से बस अaे लावारिस हो गए थे और हारकर महापौर व कलेक्टर को व्यवस्था हाथ में लेना पड़ी थी। अब 41 कर्मचारी लौट आए हैं। इसमें 11 सरवटे और 7 गंगवाल पर तैनात किए गए हैं। शेष डिवीजनल ऑफिस में रहेंगे। इनको ये कह भेजा है कि 30 तक ड्यूटी करो, फिर देखेंगे।
indor25-8-2010
ये हो रहा है उस रोडवेज (सपनि) में जिसे सरकार बंद करने पर आमादा है। उसने 30 सितंबर को रोडवेज की आखिरी तारीख घोषित कर ये कदम उठाया है। सरवटे और गंगवाल जैसे बस अaों और संभागीय कार्यालय पर 41 कर्मचारी थे। सभी के भोपाल जाने से बस अaे लावारिस हो गए थे और हारकर महापौर व कलेक्टर को व्यवस्था हाथ में लेना पड़ी थी। अब 41 कर्मचारी लौट आए हैं। इसमें 11 सरवटे और 7 गंगवाल पर तैनात किए गए हैं। शेष डिवीजनल ऑफिस में रहेंगे। इनको ये कह भेजा है कि 30 तक ड्यूटी करो, फिर देखेंगे।
indor25-8-2010
सुप्रीम कोर्ट का फैसला मैं समझा नहीं: आडवाणी
सोमनाथ, गुजरातः अयोध्या मामले में अंतिम फ़ैसला सुनाए जाने पर अंतरिम रोक लगाने के उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले पर आश्चर्य प्रकट करते हुए भारतीय जनता पार्टी भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने आज उम्मीद जतायी कि शीर्ष अदालत अगले सप्ताह इलाहाबाद उच्च न्यायायालय को इस दिशा में आगे बढने देगी.
उन्होंने लोगों से और भाजपा कार्यकर्ताओं से अदालतों के प्रति सम्मान का भाव रखने और शांति बनाए रखने की अपील भी की. यहां प्रसिद्ध शिव मंदिर में पूजा अर्जना के बाद आडवाणी ने संवाददाताओं से कहा कि मैं उच्चतम न्यायालय का फ़ैसला समझ नहीं पाया.
बीस साल पहले इसी स्थान से उन्होंने अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली थी. उन्होंने कहा कि मैं देश की न्यायपालिका का सम्मान करता हूं. लेकिन जिस समय जनता अयोध्या मामले पर अदालत के फ़ैसले का इंतजार कर रही है जिस समय इस मामले के पक्षकार भी फ़ैसला चाहते हैं और जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी फ़ैसला टालने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया है तब यह निर्णय उच्चतम न्यायालय से आया है.
आडवाणी के साथ भाजपा से निष्कासित नेता उमा भारती भी थीं. उन्होंने कहा कि लेकिन अब मैं लोगों से और भाजपा कार्यकर्ताओं से हमारी अदालतों के सम्मान के रूप में कुछ और दिनों तक शांति बनाए रखने की अपील करूंगा.
Date25-8-2010
झारखंड : सारंडा में विस्फ़ोट, जवान शहीद
किरीबुरू: सारंडा के दीघा नाले के पास नक्सलियों ने आज लैंड माइन विस्फोट किया जिसमें सीआरपीएफ का एक जवान शहीद हो गया और सहायक कमांडेंट घायल हो गये.कमांडेट को हेलीकॉप्टर से इलाज के लिए ले जाया गया है.
दूसरी ओर सारंडा जंगल में माओवादियों द्वारा अत्याधुनिक प्रशिक्षण शिविर चलाये जाने की खबर के बाद झारखंड व ओड़िशा पुलिस द्वारा संयुक्त ऑपरेशन दूसरे दिन भी जारी है.ऑपरेशन का नेतृत्व कोल्हान के डीआइजी नवीन कुमार कर रहे हैं.
ऑपरेशन को लेकर विभिन्न जिलों में तैनात सीआरपीएफ, झारखंड जगुआर, कोबरा, झारखंड पुलिस के जवान सारंडा के बीहड़ में घुसे हुए हैं. इधर कल रात नक्सलियों ने जरईकेला में एक डंपर में आग लगा दी. पुलिस को खुफिया सूचना मिली थी कि भाकपा माओवादी की सेंट्रल कमेटी के शीर्ष नेता के नेतृत्व में करीब 400 माओवादियों को सारंडा में शिविर लगाकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
सूत्रों के अनुसार इसमें उन्हें अत्याधुनिक मोर्टार, रॉकेट लांचर ओद का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. झारखंड-ओड़िशा सीमा पर वृहद प्रशिक्षण शिविर लगाया गया है. आशंका है कि यह शिविर थलकोबाद के समीप टोयबो झरना, तिरिलपोसी, नवागांव आदि क्षेत्रों में बनाये गये हैं, जिसमें किशन जी, अनमोल जी, समरजी, अनल दा, कुंदन ओद केंद्रीय कमेटी के सदस्य भी शामिल हो सकते हैं.
डंपर में लगायी आग : सारंडा में पुलिस द्वारा नक्सलियों के खिलाफ़ छेड़े गये अभियान का विरोध करते हुए शुक्रवार की रात जरईकेला(झारखंड) थाना क्षेत्र के पंचपइया गांव में नक्सलियों ने डंपर में आग लगा दी. हालांकि गांववालों के प्रयास से आग पर काबू पा लिया गया. रात में ही डंपर को जरइकेला लाया गया.
इधर माओवादियों के प्रवक्ता समरजी ने कहा कि सारंडा में पुलिस द्वारा शुरू किये ऑपरेशन के खिलाफ़ उक्त कार्रवाई की गयी है. डंपर का नंबर जेएच-02ए-4099 है. गांववालों के मुताबिक रात 10 बजे दो नक्सली मोटरसाइकिल पर सवार होकर आये. उसने किरोसिन तेल फेंक कर आग लगा दी. तभी गांव के लोगों की नजर उस पर पड़ी. गांव वालों ने पानी डाल कर आग बुझायी.
इसके बाद वाहन चालक तुरंत जरईकेला निवासी वाहन मालिक के घर आया व डंपर को वहीं खड़ा कर दिया.
Date 25-8-2010
दूसरी ओर सारंडा जंगल में माओवादियों द्वारा अत्याधुनिक प्रशिक्षण शिविर चलाये जाने की खबर के बाद झारखंड व ओड़िशा पुलिस द्वारा संयुक्त ऑपरेशन दूसरे दिन भी जारी है.ऑपरेशन का नेतृत्व कोल्हान के डीआइजी नवीन कुमार कर रहे हैं.
ऑपरेशन को लेकर विभिन्न जिलों में तैनात सीआरपीएफ, झारखंड जगुआर, कोबरा, झारखंड पुलिस के जवान सारंडा के बीहड़ में घुसे हुए हैं. इधर कल रात नक्सलियों ने जरईकेला में एक डंपर में आग लगा दी. पुलिस को खुफिया सूचना मिली थी कि भाकपा माओवादी की सेंट्रल कमेटी के शीर्ष नेता के नेतृत्व में करीब 400 माओवादियों को सारंडा में शिविर लगाकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
सूत्रों के अनुसार इसमें उन्हें अत्याधुनिक मोर्टार, रॉकेट लांचर ओद का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. झारखंड-ओड़िशा सीमा पर वृहद प्रशिक्षण शिविर लगाया गया है. आशंका है कि यह शिविर थलकोबाद के समीप टोयबो झरना, तिरिलपोसी, नवागांव आदि क्षेत्रों में बनाये गये हैं, जिसमें किशन जी, अनमोल जी, समरजी, अनल दा, कुंदन ओद केंद्रीय कमेटी के सदस्य भी शामिल हो सकते हैं.
डंपर में लगायी आग : सारंडा में पुलिस द्वारा नक्सलियों के खिलाफ़ छेड़े गये अभियान का विरोध करते हुए शुक्रवार की रात जरईकेला(झारखंड) थाना क्षेत्र के पंचपइया गांव में नक्सलियों ने डंपर में आग लगा दी. हालांकि गांववालों के प्रयास से आग पर काबू पा लिया गया. रात में ही डंपर को जरइकेला लाया गया.
इधर माओवादियों के प्रवक्ता समरजी ने कहा कि सारंडा में पुलिस द्वारा शुरू किये ऑपरेशन के खिलाफ़ उक्त कार्रवाई की गयी है. डंपर का नंबर जेएच-02ए-4099 है. गांववालों के मुताबिक रात 10 बजे दो नक्सली मोटरसाइकिल पर सवार होकर आये. उसने किरोसिन तेल फेंक कर आग लगा दी. तभी गांव के लोगों की नजर उस पर पड़ी. गांव वालों ने पानी डाल कर आग बुझायी.
इसके बाद वाहन चालक तुरंत जरईकेला निवासी वाहन मालिक के घर आया व डंपर को वहीं खड़ा कर दिया.
Date 25-8-2010
हां गलती के लिए मैं जिम्मेवार हूं: कलमाडी
नयी दिल्लीः कई आलोचनाओं के बाद राष्ट्रमंडल खेल ऑर्गानाइजिंग कमिटी के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी ने आज मीडिया के सामने ये स्वीकार किया है कि हां खेल के पहले हुई गडबडियों की मैं नैतिक जिम्मेवारी लेता हूं.
उन्होंने कहा कि मैं अध्यक्ष हूं इसलिए मैं सारी जिम्मेवारी लूंगा किन्तु खेल स्थल हमें देर से सौंपा गया था, हमें कुछ पहले ये सौंपा जाना चाहिए था. उन्होंने ये भी कहा कि ऑर्गानाइजिंग कमिटी के सचिव ललित भनोत का स्वास्थ्य के संबंध में भारत का दूसरे देशों के साथ तुलना करना सही नहीं है.
कॉमनवेल्थ गेम फेडेरेशन के अध्यक्ष माइक फेनेल तथा सीइओ माइक हूपर की मौजूदगी में बात करते हुए कलमाडी ने कहा कि अभी भी कुछ और काम किये जाने की जरूरत है किन्तु हमें पूरा विश्वास है कि तीन अक्टूबर को ओपनिंग समारोह के शुरूहोने के पहले ये सारे काम भी कर लिये जायेंगे
उन्होंने कहा कि मैं अध्यक्ष हूं इसलिए मैं सारी जिम्मेवारी लूंगा किन्तु खेल स्थल हमें देर से सौंपा गया था, हमें कुछ पहले ये सौंपा जाना चाहिए था. उन्होंने ये भी कहा कि ऑर्गानाइजिंग कमिटी के सचिव ललित भनोत का स्वास्थ्य के संबंध में भारत का दूसरे देशों के साथ तुलना करना सही नहीं है.
कॉमनवेल्थ गेम फेडेरेशन के अध्यक्ष माइक फेनेल तथा सीइओ माइक हूपर की मौजूदगी में बात करते हुए कलमाडी ने कहा कि अभी भी कुछ और काम किये जाने की जरूरत है किन्तु हमें पूरा विश्वास है कि तीन अक्टूबर को ओपनिंग समारोह के शुरूहोने के पहले ये सारे काम भी कर लिये जायेंगे
अयोध्या विवाद : चीफ जस्टिस की बेंच में सुनवाई
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ अयोध्या मालिकाना हक मामले में इलाहाबाद हाइकोर्ट के फ़ैसले को टाल देने की मांग करती विशेष अनुमति याचिका के भविष्य पर मंगलवार को निर्णय करेगी.
इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश के साथ ही न्यायमूर्ति आफ़ताब आलम और न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन भी हैं. इस मामले को एजेंडे में सबसे पहले सुबह साढ़े दस बजे के लिये सूचीबद्ध किया गया है. शीर्ष अदालत ने सेवानिवृत्त नौकरशाह रमेश चंद त्रिपाठी की याचिका के बाद इलाहाबाद हाइकोर्ट के फ़ैसले पर बीते गुरुवार रोक लगा दी थी. इस याचिका में आपसी बातचीत के जरिये मसले का हल निकालने की संभावनाएं तलाशने के मकसद से अदालती फ़ैसला टालने की मांग की गयी थी.
अदालती फ़ैसले पर रोक लगाने के मुद्दे पर न्यायमूर्ति आरवी रविंद्रन और न्यायमूर्ति एचएल गोखले के बीच मतभेद होने के बीच शीर्ष अदालत ने अंतरिम रोक के आदेश दिये थे. त्रिपाठी की याचिका में अनुरोध किया गया था कि 60 वर्ष पुराने राम जन्मभूमि -बाबरी मसजिद मालिकाना हक विवाद का अदालत से बाहर हल निकालने की संभावनाएं तलाशी जायें.
सुप्रीम कोर्ट ने एटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती से भी कहा था कि जब मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई होगी तो वह खुद मौजूद रहें और न्यायालय की मदद करें. न्यायमूर्ति रविंद्रन का यह मत था कि त्रिपाठी की ओर से दाखिल विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया जाये, जबकि न्यायमूर्ति गोखले ने कहा था कि समाधान के विकल्प तलाशने के लिये नोटिस जारी किया जाना चाहिये.
इसके बावजूद, पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति रविंद्रन ने न्यायमूर्ति गोखले का पक्ष लेते हुए समाधान तलाशने की एक कोशिश करने को तरजीह दी.
Date25-8-2010
Sunday, September 19, 2010
Friday, September 17, 2010
Thursday, September 16, 2010
Wednesday, September 15, 2010
अटल जी महान कवि और लेखक : लता
नयी दिल्ली: स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का मानना है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक महान कवि और लेखक हैं जिन्होंने हिंदी भाषा के प्रसार के लिये बहुत कुछ किया.
अटल जी को अपने पिता तुल्य मानने वाली लता ने माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट ट्विटर पर कहा, मैं अटल जी को महान कवि और लेखक मानती हूं. उन्होंने हिंदी भाषा के प्रसार के लिये बहुत कुछ किया. वह मेरे पिता समान हैं.
अपनी सुरीली आवाज से करोड़ों लोगों को दीवाना बनाने वाली लता ने हिंदी दिवस के अवसर पर कहा, हमारे देश में हिंदी दिवस है और आज मुङो वह सब महान लोग याद आ रहे हैं जिनका इस भाषा के प्रसार और उत्कर्ष में एक अतुलनीय योगदान रहा है तथा जिनसे मैं प्रभावित हूं.
उन्होंने कहा, इन लोगों में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, महाकवि हरिवंश राय बच्चन, सुमित्रानंद पंत, दिनकरजी, राष्ट्रकवि प्रदीपजी और मेरे बहुत पूज्य पंडित नरेंद्र शर्मा जैसे नाम शामिल हैं. इन सभी विभूतियों का हिंदी भाषा के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान रहा. इन सभी लोगों का मेरे उपर भी असीम प्रभाव रहा.
Tuesday, September 14, 2010
नक्सलियों द्वारा आहूत सात राज्यों में बंद के पहले दिन तीन घटनाओं के बाद दूसरा दिन शांत रहा
रांची: नक्सलियों द्वारा आहूत सात राज्यों में बंद के पहले दिन तीन घटनाओं के बाद दूसरा दिन शांत रहा. पुलिस मुख्यालय के प्रवक्ता आइजी ऑपरेशन आरके मल्लिक ने बताया कि कहीं से भी किसी अप्रिय खबर नहीं मिली है.
जानकारी के मुताबिक बंद का दूसरा दिन भी राज्य भर में असरदार रहा. हालांकि टाटा-पटना, जीटी रोड पर सामान्य दिनों की तरह वाहन चले. रांची, बोकारो, धनबाद, हजारीबाग, जमशेदपुर ओद शहरों व उसके आसपास के इलाकों में बंद का कोई असर नहीं दिखा. लेकिन नक्सल प्रभावित बेरमो, खलारी, लोहरदगा, लातेहार, पलामू, चतरा, गुमला, सिमडेगा, गढ़वा, चाईबासा, गिरिडीह में बंद के कारण सबकुछ ठप हो गया.
बाजार, दुकान नहीं खुले. छोटे-बड़े वाहन नहीं चले. आम लोग घर में ही रहने को मजबूर हुए. इन जिलों के ग्रमीण इलाकों के लोगों की जिंदगी लगातार दो दिनों तक बंधकों जैसी रही. वह न कहीं जा सकते हैं और न ही उनके यहां बाहर से कोई आ सकता है. प्रभावित इलाकों के हाट-बाजार की कोई दुकान नहीं खुला.
कोयला क्षेत्र में उत्पादन का काम तो अन्य दिनों तरह चलता रहा, पर ढ़ुलाई का काम पुरी तरह बंद रहा. इसी तरह कोल्हान प्रमंडल में लौह अयस्क की ढ़ुलाई का काम ठप रहा. लोहरदगा स्थित बॉक्साइट माइंस में उत्खनन और ढ़ुलाई दोनों काम बंद रहा.
जानकारी के मुताबिक बंद का दूसरा दिन भी राज्य भर में असरदार रहा. हालांकि टाटा-पटना, जीटी रोड पर सामान्य दिनों की तरह वाहन चले. रांची, बोकारो, धनबाद, हजारीबाग, जमशेदपुर ओद शहरों व उसके आसपास के इलाकों में बंद का कोई असर नहीं दिखा. लेकिन नक्सल प्रभावित बेरमो, खलारी, लोहरदगा, लातेहार, पलामू, चतरा, गुमला, सिमडेगा, गढ़वा, चाईबासा, गिरिडीह में बंद के कारण सबकुछ ठप हो गया.
बाजार, दुकान नहीं खुले. छोटे-बड़े वाहन नहीं चले. आम लोग घर में ही रहने को मजबूर हुए. इन जिलों के ग्रमीण इलाकों के लोगों की जिंदगी लगातार दो दिनों तक बंधकों जैसी रही. वह न कहीं जा सकते हैं और न ही उनके यहां बाहर से कोई आ सकता है. प्रभावित इलाकों के हाट-बाजार की कोई दुकान नहीं खुला.
कोयला क्षेत्र में उत्पादन का काम तो अन्य दिनों तरह चलता रहा, पर ढ़ुलाई का काम पुरी तरह बंद रहा. इसी तरह कोल्हान प्रमंडल में लौह अयस्क की ढ़ुलाई का काम ठप रहा. लोहरदगा स्थित बॉक्साइट माइंस में उत्खनन और ढ़ुलाई दोनों काम बंद रहा.
बांग्लादेश में हिंदू मंदिर में तोड़फ़ोड़
बांग्लादेश में हिंदू मंदिर में तोड़फ़ोड़
9/14/2010
ढाका: बांग्लादेश में दक्षिण पूर्वी चटगांव जिले में असामाजिक तत्वों ने एक हिंदू मंदिर में तोड़फ़ोड़ की, जिसके बाद अल्पसंख्यक समुदाय विरोध स्वरूप सड़क पर उतर आया.
स्थानीय लोगों और मंदिर की प्रबंधन समिति के अधिकारियों ने कहा कि शराब के नशे में धुत छह से सात युवक शनिवार को शिव मंदिर में घुस गये. शनिवार को ईद का त्योहार मनाया जा रहा था और संयोग से उस दिन गणेश चतुर्थी भी थी. पुलिस और मंदिर के पुजारियों ने कहा कि देवी देवताओं की दो प्रतिमाओं को क्षतिग्रस्त करने और सोने के कुछ आभूषणों को लूटने के बाद हमलावर भाग खड़े हुए. हालांकि पड़ोसियों ने उन्हें दूर तक खदेड़ा भी.
शरारती तत्वों को दंडित करने की मांग को लेकर हिंदू समुदाय ने प्रदर्शन किया. इस अभियान में उनका साथ बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी दिया.
9/14/2010
ढाका: बांग्लादेश में दक्षिण पूर्वी चटगांव जिले में असामाजिक तत्वों ने एक हिंदू मंदिर में तोड़फ़ोड़ की, जिसके बाद अल्पसंख्यक समुदाय विरोध स्वरूप सड़क पर उतर आया.
स्थानीय लोगों और मंदिर की प्रबंधन समिति के अधिकारियों ने कहा कि शराब के नशे में धुत छह से सात युवक शनिवार को शिव मंदिर में घुस गये. शनिवार को ईद का त्योहार मनाया जा रहा था और संयोग से उस दिन गणेश चतुर्थी भी थी. पुलिस और मंदिर के पुजारियों ने कहा कि देवी देवताओं की दो प्रतिमाओं को क्षतिग्रस्त करने और सोने के कुछ आभूषणों को लूटने के बाद हमलावर भाग खड़े हुए. हालांकि पड़ोसियों ने उन्हें दूर तक खदेड़ा भी.
शरारती तत्वों को दंडित करने की मांग को लेकर हिंदू समुदाय ने प्रदर्शन किया. इस अभियान में उनका साथ बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी दिया.
नक्सली बंदी : रेल पटरी उडाने का प्रयास असफ़ल
मोतिहारी : बिहार के पूर्वी चंपारण जिला अंतर्गत पूर्व मध्य रेलवे के मुजफ्फ़रपुर-नरकटियागंज रेलखंड पर स्थित मेहसी रेलवे स्टेशन के समीप नक्सलियों ने मंगलवार को एक गैस सिलेंडर में विस्फ़ोट कर रेल पटरी उडाने का असफ़ल प्रयास किया.
सेक्शन इंजीनियर (रेलवे) ओम प्रकाश सिंह ने बताया कि मेहसी रेलवे स्टेशन से उत्तर-पूर्व 800 मीटर की दूरी पर नक्सलियों ने एक पांच किलोग्राम के गैस सिलेंडर में विस्फ़ोट कर रेल पटरी को उडाने का असफ़ल प्रयास किया.
उन्होंने बताया कि इस विस्फ़ोट के कारण रेल पटरी पर लगे क्षतिग्रस्त स्लीपर की मरम्मत कर दी गयी है.
इस मामले में सहायक सेक्शन इंजीनियर रंभू साह ने मोतिहारी रेलवे स्टेशन स्थित राजकीय रेल पुलिस थाने में अज्ञात नक्सलियों के खिलाफ़ प्राथमिकी दर्ज करायी है.
लोग पत्रकार क्यों बनते
रामदत्त त्रिपाठी | साभार बीबीसी
अभी दो दिन पहले कानपुर गया था, आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफल एक ग़रीब मोची के बेटे से साक्षात्कार करने. लेकिन वहाँ मुझे एक और सच्चाई से साक्षात्कार करना पड़ा.अपना काम खत्म करके चलने लगा तो एक सज्जन सकुचाते हुए आए अपनी समस्या बताने.वो कोई डिप्लोमा होल्डर डॉक्टर हैं और उसी ग़रीब बस्ती में प्रैक्टिस करते हैं. मोहल्ले के लोग उनकी बड़ा आदर करते हैं.
उनकी समस्या ये है कि किसी लोकल चैनल के एक पत्रकार आए. उनकी क्लीनिक की तस्वीरें उतारीं, फिर डराया कि वो झोलाछाप डाक्टर हैं और अगर उनसे लेन देन करके मामले में कुछ समझौता नहीं कर लेते तो वह अफसरों से कहकर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करा देंगे.
पत्रकारों के इस तरह के ब्लैकमेलिंग के किस्से काफ़ी दिनों से सुनाई दे रहे हैं. लेकिन दूसरों के मुंह से. पहली बार किसी भुक्तभोगी के मुंह से यह बात सीधे सुनने को मिली.
रविवार को हिंदी पत्रकारिता दिवस है और इस मौक़े पर यही किस्सा मेरे दिमाग में गूंज रहा है. लोग पत्रकार क्यों बनते हैं. जन सेवा के लिए या फिर जैसे- तैसे पैसा कमाने के लिए.
यह बात केवल लोकल चैनल के पत्रकारों पर लागू नहीं होती. कई बड़े बड़े चैनलों और अख़बारों के पत्रकारों, संपादकों और मालिकों के बारे में भी यही बातें सुनने को मिलती हैं.
कई अखबार और चैनल रिपोर्टर बनाने के लिए अग्रिम पैसा लेते हैं.
अनेक अपने संवाददाताओं से नियमित रूप से विज्ञापन एजेंट का काम करवाते हैं, जो बिजनेस बढ़ाने के लिए ख़बरों के माध्यम से दबाव बनाते हैं. फिर कई चैनल और अख़बार बाकायदा पेड न्यूज़ छापते या दिखाते हैं.
प्रेस काउन्सिल है मगर वह भी कुछ कर नही सकती.
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर जब हम लोग गोष्ठियों में गणेश शंकर विद्यार्थी और पराडकर जी का गुणगान करेंगे, शायद हमें सामूहिक रूप से इस समस्या पर भी आत्मचिंतन करना चाहिए.
माना कि पत्रकारिता अब मिशन नहीं, यह एक प्रोफेशन और बिजनेस है. मगर क्या हर प्रोफेशन और बिजनेस का कोई एथिक्स नही होता?
अभी दो दिन पहले कानपुर गया था, आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफल एक ग़रीब मोची के बेटे से साक्षात्कार करने. लेकिन वहाँ मुझे एक और सच्चाई से साक्षात्कार करना पड़ा.अपना काम खत्म करके चलने लगा तो एक सज्जन सकुचाते हुए आए अपनी समस्या बताने.वो कोई डिप्लोमा होल्डर डॉक्टर हैं और उसी ग़रीब बस्ती में प्रैक्टिस करते हैं. मोहल्ले के लोग उनकी बड़ा आदर करते हैं.
उनकी समस्या ये है कि किसी लोकल चैनल के एक पत्रकार आए. उनकी क्लीनिक की तस्वीरें उतारीं, फिर डराया कि वो झोलाछाप डाक्टर हैं और अगर उनसे लेन देन करके मामले में कुछ समझौता नहीं कर लेते तो वह अफसरों से कहकर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करा देंगे.
पत्रकारों के इस तरह के ब्लैकमेलिंग के किस्से काफ़ी दिनों से सुनाई दे रहे हैं. लेकिन दूसरों के मुंह से. पहली बार किसी भुक्तभोगी के मुंह से यह बात सीधे सुनने को मिली.
रविवार को हिंदी पत्रकारिता दिवस है और इस मौक़े पर यही किस्सा मेरे दिमाग में गूंज रहा है. लोग पत्रकार क्यों बनते हैं. जन सेवा के लिए या फिर जैसे- तैसे पैसा कमाने के लिए.
यह बात केवल लोकल चैनल के पत्रकारों पर लागू नहीं होती. कई बड़े बड़े चैनलों और अख़बारों के पत्रकारों, संपादकों और मालिकों के बारे में भी यही बातें सुनने को मिलती हैं.
कई अखबार और चैनल रिपोर्टर बनाने के लिए अग्रिम पैसा लेते हैं.
अनेक अपने संवाददाताओं से नियमित रूप से विज्ञापन एजेंट का काम करवाते हैं, जो बिजनेस बढ़ाने के लिए ख़बरों के माध्यम से दबाव बनाते हैं. फिर कई चैनल और अख़बार बाकायदा पेड न्यूज़ छापते या दिखाते हैं.
प्रेस काउन्सिल है मगर वह भी कुछ कर नही सकती.
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर जब हम लोग गोष्ठियों में गणेश शंकर विद्यार्थी और पराडकर जी का गुणगान करेंगे, शायद हमें सामूहिक रूप से इस समस्या पर भी आत्मचिंतन करना चाहिए.
माना कि पत्रकारिता अब मिशन नहीं, यह एक प्रोफेशन और बिजनेस है. मगर क्या हर प्रोफेशन और बिजनेस का कोई एथिक्स नही होता?
पत्रकारिता की आड़ में अपनी राजनैतिक दुकान चलाते हैं
पत्रकारिता के मायने बदलते ही जा रहे हैं. फर्जी और ब्लैकमेलर लोग अपने आप को पत्रकार बता कर गौरवान्वित महसूस करते हैं. वहीं सही मायने में पत्रकारिता से जुड़ा पत्रकार इनके सामने अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है.
फर्जी पत्रकारिता को वास्तविक रीके से बढ़ावा देने का श्रेय मध्य प्रदेश में संचालित हो रहे पत्रकार संगठनों को जाता है जो पत्रकारिता की आड़ में अपनी राजनैतिक दुकान चलाते हैं. इन संगठनों के मुखिया संगठनों में सांप की तरह कुंडली मारकर बैठे हुए हैं.
प्रदेश स्तर के चुनाव तो बहुत दूर की बात है, ये ब्लाक इकाइयों के चुनाव भी मनोनयन के जरिये करने के लिए भरपूर दबाब बनाते हैं. खास कर उन लोगों को दूर ही रखा जाता है जो इनकी दुकान के लिए खतरा बन सकते हैं. इन पत्रकार संगठनों के सदस्यों की सूची उठा कर देखिए. अधिकांश सदस्य मात्र इन संगठनों की सदस्यता लेकर ही खुद को पत्रकार बतलाया करते हैं.
इन संगठनों के कुछ पदाधिकारी तो ऐसे हैं जो राजनैतिक दलाली में जुटे रहते हैं. उन्हें पत्रकारिता का ककहरा भी नहीं आता है. फिर भी ये लोग पत्रकार संगठनों के पदाधिकारी बने हुए हैं. खाली अपने कुकर्मों को ढंकने के लिए पत्रकार संगठनों में मोटा चंदा देते हैं और पत्रकारिता का फर्जी लबादा ओढ़ कर इस पवित्र मिशन को कलंकित करने लग जाते हैं.
इन संगठनों के मुखिया जो अपने आप को इन संगठनों का माई-बाप मानते हैं, प्रदेश भर के भोले भाले पत्रकारों को लच्छेदार भाषणों की घुट्टी पिला कर इसकी आड़ में अपनी राजनैतिक दुकान चलाते रहते हैं. आज तक इन्होंने पत्रकारों के हित में कोई एक भी ऐसा काम नहीं किया जिससे पत्रकारों को इन संगठनों में शामिल होने पर गर्व हो सके.
राधा बल्लभ शारदा, शलभ भदौरिया, जयंत वर्मा. तीनों मध्य प्रदेश में पत्रकारों के हितों के लिए संगठन चला रहे हैं. तीनों अपने आप को असली बताते हैं. जब तीनों ही असली हैं तो फिर नकली कौन हैं. तीनों ने आज तक प्रदेश के पत्रकारों के हित में क्या किया है, ये भी तो बतायें या फिर प्रति वर्ष सदस्यता शुल्क के नाम पर लाखों रुपये वसूल कर चाय और पान के दुकानदारों को सदस्यता के नाम पर पत्रकारिता का फर्जी लायसेंस बांट रहे हैं.
अरे कुछ तो शर्म करो. इस पत्रकारिता के मिशन की लाज न बेचो.
राजेश स्थापक
जबलपुर
rajeshsthapaksahara@gmail.com
फर्जी पत्रकारिता को वास्तविक रीके से बढ़ावा देने का श्रेय मध्य प्रदेश में संचालित हो रहे पत्रकार संगठनों को जाता है जो पत्रकारिता की आड़ में अपनी राजनैतिक दुकान चलाते हैं. इन संगठनों के मुखिया संगठनों में सांप की तरह कुंडली मारकर बैठे हुए हैं.
प्रदेश स्तर के चुनाव तो बहुत दूर की बात है, ये ब्लाक इकाइयों के चुनाव भी मनोनयन के जरिये करने के लिए भरपूर दबाब बनाते हैं. खास कर उन लोगों को दूर ही रखा जाता है जो इनकी दुकान के लिए खतरा बन सकते हैं. इन पत्रकार संगठनों के सदस्यों की सूची उठा कर देखिए. अधिकांश सदस्य मात्र इन संगठनों की सदस्यता लेकर ही खुद को पत्रकार बतलाया करते हैं.
इन संगठनों के कुछ पदाधिकारी तो ऐसे हैं जो राजनैतिक दलाली में जुटे रहते हैं. उन्हें पत्रकारिता का ककहरा भी नहीं आता है. फिर भी ये लोग पत्रकार संगठनों के पदाधिकारी बने हुए हैं. खाली अपने कुकर्मों को ढंकने के लिए पत्रकार संगठनों में मोटा चंदा देते हैं और पत्रकारिता का फर्जी लबादा ओढ़ कर इस पवित्र मिशन को कलंकित करने लग जाते हैं.
इन संगठनों के मुखिया जो अपने आप को इन संगठनों का माई-बाप मानते हैं, प्रदेश भर के भोले भाले पत्रकारों को लच्छेदार भाषणों की घुट्टी पिला कर इसकी आड़ में अपनी राजनैतिक दुकान चलाते रहते हैं. आज तक इन्होंने पत्रकारों के हित में कोई एक भी ऐसा काम नहीं किया जिससे पत्रकारों को इन संगठनों में शामिल होने पर गर्व हो सके.
राधा बल्लभ शारदा, शलभ भदौरिया, जयंत वर्मा. तीनों मध्य प्रदेश में पत्रकारों के हितों के लिए संगठन चला रहे हैं. तीनों अपने आप को असली बताते हैं. जब तीनों ही असली हैं तो फिर नकली कौन हैं. तीनों ने आज तक प्रदेश के पत्रकारों के हित में क्या किया है, ये भी तो बतायें या फिर प्रति वर्ष सदस्यता शुल्क के नाम पर लाखों रुपये वसूल कर चाय और पान के दुकानदारों को सदस्यता के नाम पर पत्रकारिता का फर्जी लायसेंस बांट रहे हैं.
अरे कुछ तो शर्म करो. इस पत्रकारिता के मिशन की लाज न बेचो.
राजेश स्थापक
जबलपुर
rajeshsthapaksahara@gmail.com
Monday, September 13, 2010
श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन: राष्ट्रीय अस्मिता की अभिव्यक्ति
श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन: राष्ट्रीय अस्मिता की अभिव्यक्ति
- विनायकराव देशपाण्डे
श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन केवल हिन्दू मुस्लिम संघर्ष नहीं, मंदिर-मस्जिद विवाद नहीं यह राष्ट्रीयता बनाम अराष्ट्रीय का संघर्ष है। राष्ट्र माने केवल भू भाग, जमीन का टुकड़ा नहीं वरन् उस जमीन पर बसने वाले समाज में विद्यमान एकत्व की भावना है। यह भावना देश का इतिहास, परम्परा, संस्कृति से निर्माण होती है।
राम इस देश का इतिहास ही नहीं बल्कि एक संस्कृति और मर्यादा का प्रतीक हैं, एक जीता जागता आदर्श हैं। इस राष्ट्र की हजारों वर्ष की सनातन परम्परा के मूलपुरुष हैं। हिन्दुस्थान का हर व्यक्ति, चाहे पुरुष हो, महिला हो, किसी प्रांत या भाषा का हो उसे राम से, रामकथा से जो लगाव है, उसकी जितनी जानकारी है, जितनी श्रद्धा है और किसी में भी नहीं है। भगवान् राम राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं। राम राष्ट्र की आत्मा हैं।
संविधान निर्माताओं ने भी संविधान की प्रथम प्रति में लंका विजय के बाद पुष्पक विमान में बैठकर जाने वाले श्रीराम, माता जानकी व लक्ष्मण जी का चित्र दिया है। संविधान सभा में तो सभी मत-मतान्तरों के लोग थे। सभी की सहमति से ही चित्र छपा है। उस प्रथम प्रति में गीतोपदेश करते भगवान् श्रीकृष्ण, भगवान् बुद्ध, भगवान् महावीर आदि श्रेष्ठ पुरूषों के चित्र हैं। ये हमारे राष्ट्रीय महापुरुष हैं। अतः ऐसे भगवान् राम के जन्मस्थान की रक्षा करना हमारा संवैधानिक दायित्व भी है।
डॉ0 राम मनोहर लोहिया का कथन
समाजवादी विचारधारा के सुप्रसिद्ध, भारतीय विद्वान् डॉ0 राममनोहर लोहिया जी को हम सब जानते हैं। उन्होंने कहा है-‘‘राम-कृष्ण-शिव हमारे आदर्श हैं। राम ने उत्तर-दक्षिण जोड़ा और कृष्ण ने पूर्व-पश्चिम जोड़ा। अपने जीवन के आदर्श इस दृष्टि से सारी जनता राम-कृष्ण-शिव की तरफ देखती है। राम मर्यादित जीवन का परमोत्कर्ष हैं, कृष्ण उन्मुक्त जीवन की सिद्धि हैं और शिव यह असीमित व्यक्तित्व की संपूर्णता है। हे भारत माता ! हमें शिव की बुद्धि दो, कृष्ण का हृदय दो और राम की कर्मशक्ति, एकवचनता दो।’’ ऐसे राष्ट्रीय महापुरूष के जन्मस्थान की रक्षा करना हमारा राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। देश की एकता और अखण्डता के लिए करणीय कार्य है।
सोमनाथ मंदिर -पुनर्निर्माण
श्रीराम जन्मभूमि राष्ट्रीय अस्मिता व स्वाभिमान का विषय है। अपमान का परिमार्जन करना ही पुरुषार्थ है। इसके लिए यह आन्दोलन है। स्वाभिमान जागरण से ही देश खड़ा होता है और सारी समस्याओं का हल करने का सामर्थ्य बढ़ता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसा प्रयत्न अपवाद स्वरूप में ही हुआ। सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण यह अपवाद था। यह मंदिर 1026 से इक्कीस बार तोड़ा गया परन्तु बार-बार उसका पुनर्निर्माण होता रहा। आखिर औरंगजेब के आदेश से सन् 1706 में यह मंदिर तोड़ा गया और वहां मस्जिद निर्माण की गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गुलामी के चिह्न हटाने और स्वाभिमान जागरण के लिए सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। महात्मा गांधी जी ने उसका समर्थन किया। पं0 नेहरूजी के मंत्रिमण्डल ने जिसमें मौलाना आजाद भी एक मंत्री थे, सभी ने सोमनाथ मंदिर निर्माण की अनुमति दी। संसद ने प्रस्ताव पारित किया।
उस समय देश के प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद जी थे। उनके करकमलों से 11 मई, 1951 को सोमनाथ में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। उनके वहां जाने का कुछ सेक्युलरिस्टों ने विरोध किया परन्तु उन्होंने माना नहीं। यह देश की अस्मिता का, प्रतिष्ठा का विषय है, ऐसी डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद की भावना थी। उस समय सोमनाथ में उन्होंने कहा, ‘‘सोमनाथ भारतीयों का श्रद्धा स्थान है। श्रद्धा के प्रतीक का किसी ने विध्वंस किया तो भी श्रद्धा का स्फूर्तिस्रोत नष्ट नहीं हो सकता। इस मंदिर के पुनर्निर्माण का हमारा सपना साकार हुआ। उसका आनन्द अवर्णनीय है।’’ इस कार्यक्रम में भगवान् सोमनाथ को 121 तोपों से सलामी दी गई थी।’’
25 दिसम्बर 1947 को दिल्ली के बिरला हाउस में महात्मा गांधी जी द्वारा दिया गया प्रवचन महत्व का है। एक उर्दू समाचार पत्र में लेख आया था कि अगर सोमनाथ होगा तो फिर से गजनी आयेगा। उस प्रवचन में महात्मा गांधीजी बोले--मोहम्मद गजनी ने जंगली, हीन काम किया। उसके बारे में यहां के मुसलमान गर्व का अनुभव करते हैं तो यह दुर्भाग्य का विषय है। इस्लामी राज में जो बुराइयाँ हुईं, उन्हें मुस्लिमों को समझना और कबूल करना चाहिए। अगर यहां के मुसलमान फिर से गजनी की भाषा बोलेंगे तो इसे यहां कोई बर्दाश्त नहीं करेगा।’’
सोमनाथ मंदिर के सम्बन्ध में जो भावना महात्मा गांधी, सरदार पटेल, डॉ0 राजेन्द्रप्रसाद आदि महानुभावों की थी, वही भावना श्रीराम जन्मभूमि के संबंध में हमारी है।
गुलामी के चिह्न हटाना
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के चौराहों में, बगीचों में लगी विक्टोरिया रानी और पंचम जार्ज की मूर्तियां हटाई गईं। सड़कों के नाम बदले, दिल्ली का इर्विन अस्पताल जयप्रकाश नारायण अस्पताल बना, मिण्टो ब्रिज को शिवाजी ब्रिज कहने लगे। मुम्बई में विन्सेट रोड डॉ0 बाबा साहेब अम्बेडकर रोड हो गया और विक्टोरिया टर्मिनल रेलवे स्टेशन का नाम छत्रपति शिवाजी टर्मिनल हो गया। ये पुराने नाम गुलामी के चिह्न थे इसीलिए हटाए गए। बाबरी ढांचा गुलामी का चिह्न था; राम जन्मभूमि मंदिर यह स्वतंत्रता का चिह्न है।
पोलैण्ड का चर्च
आधा यूरोप अनेक साल इस्लामी वर्चस्व में रहा। उस समय इस्लामी आक्रान्ताओं ने अनेक चर्च गिराकर वहां मस्जिदें बनाईं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन ईसाई यूरोपियन देशों ने ऐसी मस्जिदें ध्वस्त करके वहां फिर से चर्च बनाए। यह अपमान का परिमार्जन था। 1815 में पोलैण्ड रूस ने जीता। जीतने के बाद रूस ने पोलैण्ड की राजधानी वारसा में एक बड़े चौराहे पर एक चर्च का निर्माण किया। प्रथम महायुद्ध की समाप्ति के समय 1918 में पोलैण्ड स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पोलैण्ड की सरकार ने रूस निर्मित चर्च गिराया और उसी जगह दूसरे चर्च का निर्माण किया। रूस और पोलैण्ड दोनों ईसाई हैं, तो भी रूसी चर्च क्यों गिराया गया ? स्वाभिमानी पोलैण्ड की सरकार का उत्तर था-रूसी चर्च गुलामी का चिह्न था, इसीलिए वह गिराया और अब यह नया चर्च हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक है। इसको कहते हैं राष्ट्रीय स्वाभिमान। इसी भावना से अयोध्या, मथुरा, काशी के धर्मस्थान मुक्त होने चाहिए।
छत्रपति शिवाजी का सपना
हम सब जानते हैं कि 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ का मंदिर तोडा और वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनाई। यह समाचार मिलते ही शिवाजी ने औरंगजेब को चेतावनी देने वाला और काशी विश्वनाथ सहित अन्य धर्मस्थान मुक्त करने का संकल्प व्यक्त करने वाला पत्र लिखा था। अपने अन्य सरदार, मंत्रियों के साथ धर्मस्थान मुक्ति की चर्चा छत्रपति शिवाजी करते थे। स्वयं छत्रपति शिवाजी महाराज ने अनेक मंदिरों का पुनर्निर्माण किया था। वे जब दक्षिण भारत में गए थे तो आज के तमिलनाडु में दो मंदिरों का पुनर्निर्माण किया। कुछ वर्ष पहले दोनों मंदिर गिराकर मुसलमानों ने वहां मस्जिदें बनायी थी। मस्जिदें गिराकर फिर से मंदिर का निर्माण किया गया। सभी मराठा सरदार, पेशवा इस संकल्प पूर्ति के लिए प्रयत्न करते थे। सुप्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग त्र्यम्बकेश्वर, तीर्थ क्षेत्र नासिक स्थित सुंदर नारायण मंदिर, उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर जैसे अनेक मंदिरों का मुगल राज ने विध्वंस किया था। इन मंदिरों का पुनर्निर्माण मराठों ने बाद में किया था।
जब मराठों के विजयी घोड़े उत्तर भारत में दौड़ने लगे तो धर्मस्थान मुक्ति का प्रयत्न प्रारंभ हुआ। सन् 1751 से 1759 में अवध के नवाब को अयोध्या, प्रयाग, काशी की मुक्ति की शर्त लगाकर ही मदद की गयी थी। मराठों का लगातार दबाव रहा था। दुर्भाग्य से पानीपत की सन् 1761 की लड़ाई में हार हुई और काशी, अयोध्या उस समय मुक्त नहीं हो सके।
भारत के मुसलमान ध्यान दें !
हमारा बाबर का क्या सम्बन्ध है ? वो एक विदेशी, विधर्मी हमलावर था। बाबर मध्य एशिया का था। उसने पहले अफगानिस्तान जीता, बाद में भारत में आया। बाबर की कब्र अफगानिस्तान में है। भारत का एक प्रतिनिधि मण्डल 1969 में अफगानिस्तान गया था। उसमें सुप्रसिद्ध विचारक, अफगानिस्तान-नीति के विशेषज्ञ डॉ0 वेदप्रताप वैदिक भी थे। वे बाबर की कब्र देखने गए। वह कब्र जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थी। उन्होंने एक अफगानी नेता से पूछा, बाबर के कब्र की ऐसी दुरावस्था क्यों ? अफगान नेता का उत्तर था-बाबर का हमारा क्या सम्बन्ध ? बाबर एक विदेशी हमलावर था, उसने हमारे ऊपर आक्रमण किया, हमें गुलाम बनाया। वह मुसलमान था इसीलिए यह कब्र हमने गिरायी नहीं। परन्तु जिस दिन गिरेगी, उस समय हरेक अफगानी को आनन्द होगा। बाबर हमारा शत्रु था, यह बोलने वाले श्री बबरक करमाल 1981 में अफगान प्रधानमंत्री बने। उनकी भावना भारत के मुसलमानों ने ध्यान में लेनी चाहिए।
इण्डोनेशिया की 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। वह घोषित मुस्लिम देश है। परन्तु उनका सर्वश्रेष्ठ आदर्श आज भी ‘‘राम’’ है। वहां के प्राथमिक विद्यालय में रामायण का अध्ययन अनिवार्य है। भारत में क्यों नहीं ? इण्डोनेशिया 700 वर्ष पहले हिन्दू-बौद्ध था। उन्होंने अपनी परंपराएं नहीं छोड़ी है।
ईरान मुस्लिम देश है परन्तु वे रूस्तम, सोहराब को राष्ट्रीय पुरूष मानते हैं। रूस्तक, सोहराब तीन हजार साल पहले हुए और वे पारसी थे; मुस्लिम नहीं। मिस्र देश में पिरामिड राष्ट्रीय प्रतीक है। पिरामिड साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व के हैं और उस समय इस्लाम था ही नहीं। भगवान् राम हजारों वर्ष पूर्व हुए; उस समय इस्लाम था ही नहीं। भारत के मुसलमान भी 200-400-800 साल पहले हिन्दू ही थे। तो भारत के मुस्लिम राम को अपना पूर्वज, भारत का राष्ट्रीय महापुरूष क्यों नहीं मानते ?
ईरान और मिस्र के मुस्लिमों का आदर्श यहां के मुसलमान रखेंगे तो सारी समस्या का हल हो जायेगा। भारत का उत्थान हो जायेगा। राष्ट्रीय एकता आयेगी।
राष्ट्रीयता बनाम अराष्ट्रीयता
भगवान् श्रीराम भारत की पहचान है, राष्ट्रीयता के प्रतीक हैं। बाबर विदेशी हमलावर, हमारा शत्रु था। बाबर के संबंध में गुरू नानकदेवजी ने कहा है, बाबर का राज माने पाप की बारात। उस बाबर ने मंदिर तोडा, उस बाबरी ढांचे के लिए चिल्लाना यह अराष्ट्रीयता है। हम राम के भक्त है या बाबर के वारिस यह प्रश्न सबको पूछना चाहिए ? राम मंदिर निर्माण यह राष्ट्रीयता का विषय है। उस पर समझौता नहीं हो सकता।
(श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर-निर्माण आन्दोलन से सक्रियरूपेण जुड़े लेखक विहिप के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री हैं)
- विनायकराव देशपाण्डे
श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन केवल हिन्दू मुस्लिम संघर्ष नहीं, मंदिर-मस्जिद विवाद नहीं यह राष्ट्रीयता बनाम अराष्ट्रीय का संघर्ष है। राष्ट्र माने केवल भू भाग, जमीन का टुकड़ा नहीं वरन् उस जमीन पर बसने वाले समाज में विद्यमान एकत्व की भावना है। यह भावना देश का इतिहास, परम्परा, संस्कृति से निर्माण होती है।
राम इस देश का इतिहास ही नहीं बल्कि एक संस्कृति और मर्यादा का प्रतीक हैं, एक जीता जागता आदर्श हैं। इस राष्ट्र की हजारों वर्ष की सनातन परम्परा के मूलपुरुष हैं। हिन्दुस्थान का हर व्यक्ति, चाहे पुरुष हो, महिला हो, किसी प्रांत या भाषा का हो उसे राम से, रामकथा से जो लगाव है, उसकी जितनी जानकारी है, जितनी श्रद्धा है और किसी में भी नहीं है। भगवान् राम राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं। राम राष्ट्र की आत्मा हैं।
संविधान निर्माताओं ने भी संविधान की प्रथम प्रति में लंका विजय के बाद पुष्पक विमान में बैठकर जाने वाले श्रीराम, माता जानकी व लक्ष्मण जी का चित्र दिया है। संविधान सभा में तो सभी मत-मतान्तरों के लोग थे। सभी की सहमति से ही चित्र छपा है। उस प्रथम प्रति में गीतोपदेश करते भगवान् श्रीकृष्ण, भगवान् बुद्ध, भगवान् महावीर आदि श्रेष्ठ पुरूषों के चित्र हैं। ये हमारे राष्ट्रीय महापुरुष हैं। अतः ऐसे भगवान् राम के जन्मस्थान की रक्षा करना हमारा संवैधानिक दायित्व भी है।
डॉ0 राम मनोहर लोहिया का कथन
समाजवादी विचारधारा के सुप्रसिद्ध, भारतीय विद्वान् डॉ0 राममनोहर लोहिया जी को हम सब जानते हैं। उन्होंने कहा है-‘‘राम-कृष्ण-शिव हमारे आदर्श हैं। राम ने उत्तर-दक्षिण जोड़ा और कृष्ण ने पूर्व-पश्चिम जोड़ा। अपने जीवन के आदर्श इस दृष्टि से सारी जनता राम-कृष्ण-शिव की तरफ देखती है। राम मर्यादित जीवन का परमोत्कर्ष हैं, कृष्ण उन्मुक्त जीवन की सिद्धि हैं और शिव यह असीमित व्यक्तित्व की संपूर्णता है। हे भारत माता ! हमें शिव की बुद्धि दो, कृष्ण का हृदय दो और राम की कर्मशक्ति, एकवचनता दो।’’ ऐसे राष्ट्रीय महापुरूष के जन्मस्थान की रक्षा करना हमारा राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। देश की एकता और अखण्डता के लिए करणीय कार्य है।
सोमनाथ मंदिर -पुनर्निर्माण
श्रीराम जन्मभूमि राष्ट्रीय अस्मिता व स्वाभिमान का विषय है। अपमान का परिमार्जन करना ही पुरुषार्थ है। इसके लिए यह आन्दोलन है। स्वाभिमान जागरण से ही देश खड़ा होता है और सारी समस्याओं का हल करने का सामर्थ्य बढ़ता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसा प्रयत्न अपवाद स्वरूप में ही हुआ। सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण यह अपवाद था। यह मंदिर 1026 से इक्कीस बार तोड़ा गया परन्तु बार-बार उसका पुनर्निर्माण होता रहा। आखिर औरंगजेब के आदेश से सन् 1706 में यह मंदिर तोड़ा गया और वहां मस्जिद निर्माण की गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गुलामी के चिह्न हटाने और स्वाभिमान जागरण के लिए सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। महात्मा गांधी जी ने उसका समर्थन किया। पं0 नेहरूजी के मंत्रिमण्डल ने जिसमें मौलाना आजाद भी एक मंत्री थे, सभी ने सोमनाथ मंदिर निर्माण की अनुमति दी। संसद ने प्रस्ताव पारित किया।
उस समय देश के प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद जी थे। उनके करकमलों से 11 मई, 1951 को सोमनाथ में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। उनके वहां जाने का कुछ सेक्युलरिस्टों ने विरोध किया परन्तु उन्होंने माना नहीं। यह देश की अस्मिता का, प्रतिष्ठा का विषय है, ऐसी डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद की भावना थी। उस समय सोमनाथ में उन्होंने कहा, ‘‘सोमनाथ भारतीयों का श्रद्धा स्थान है। श्रद्धा के प्रतीक का किसी ने विध्वंस किया तो भी श्रद्धा का स्फूर्तिस्रोत नष्ट नहीं हो सकता। इस मंदिर के पुनर्निर्माण का हमारा सपना साकार हुआ। उसका आनन्द अवर्णनीय है।’’ इस कार्यक्रम में भगवान् सोमनाथ को 121 तोपों से सलामी दी गई थी।’’
25 दिसम्बर 1947 को दिल्ली के बिरला हाउस में महात्मा गांधी जी द्वारा दिया गया प्रवचन महत्व का है। एक उर्दू समाचार पत्र में लेख आया था कि अगर सोमनाथ होगा तो फिर से गजनी आयेगा। उस प्रवचन में महात्मा गांधीजी बोले--मोहम्मद गजनी ने जंगली, हीन काम किया। उसके बारे में यहां के मुसलमान गर्व का अनुभव करते हैं तो यह दुर्भाग्य का विषय है। इस्लामी राज में जो बुराइयाँ हुईं, उन्हें मुस्लिमों को समझना और कबूल करना चाहिए। अगर यहां के मुसलमान फिर से गजनी की भाषा बोलेंगे तो इसे यहां कोई बर्दाश्त नहीं करेगा।’’
सोमनाथ मंदिर के सम्बन्ध में जो भावना महात्मा गांधी, सरदार पटेल, डॉ0 राजेन्द्रप्रसाद आदि महानुभावों की थी, वही भावना श्रीराम जन्मभूमि के संबंध में हमारी है।
गुलामी के चिह्न हटाना
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के चौराहों में, बगीचों में लगी विक्टोरिया रानी और पंचम जार्ज की मूर्तियां हटाई गईं। सड़कों के नाम बदले, दिल्ली का इर्विन अस्पताल जयप्रकाश नारायण अस्पताल बना, मिण्टो ब्रिज को शिवाजी ब्रिज कहने लगे। मुम्बई में विन्सेट रोड डॉ0 बाबा साहेब अम्बेडकर रोड हो गया और विक्टोरिया टर्मिनल रेलवे स्टेशन का नाम छत्रपति शिवाजी टर्मिनल हो गया। ये पुराने नाम गुलामी के चिह्न थे इसीलिए हटाए गए। बाबरी ढांचा गुलामी का चिह्न था; राम जन्मभूमि मंदिर यह स्वतंत्रता का चिह्न है।
पोलैण्ड का चर्च
आधा यूरोप अनेक साल इस्लामी वर्चस्व में रहा। उस समय इस्लामी आक्रान्ताओं ने अनेक चर्च गिराकर वहां मस्जिदें बनाईं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन ईसाई यूरोपियन देशों ने ऐसी मस्जिदें ध्वस्त करके वहां फिर से चर्च बनाए। यह अपमान का परिमार्जन था। 1815 में पोलैण्ड रूस ने जीता। जीतने के बाद रूस ने पोलैण्ड की राजधानी वारसा में एक बड़े चौराहे पर एक चर्च का निर्माण किया। प्रथम महायुद्ध की समाप्ति के समय 1918 में पोलैण्ड स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पोलैण्ड की सरकार ने रूस निर्मित चर्च गिराया और उसी जगह दूसरे चर्च का निर्माण किया। रूस और पोलैण्ड दोनों ईसाई हैं, तो भी रूसी चर्च क्यों गिराया गया ? स्वाभिमानी पोलैण्ड की सरकार का उत्तर था-रूसी चर्च गुलामी का चिह्न था, इसीलिए वह गिराया और अब यह नया चर्च हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक है। इसको कहते हैं राष्ट्रीय स्वाभिमान। इसी भावना से अयोध्या, मथुरा, काशी के धर्मस्थान मुक्त होने चाहिए।
छत्रपति शिवाजी का सपना
हम सब जानते हैं कि 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ का मंदिर तोडा और वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनाई। यह समाचार मिलते ही शिवाजी ने औरंगजेब को चेतावनी देने वाला और काशी विश्वनाथ सहित अन्य धर्मस्थान मुक्त करने का संकल्प व्यक्त करने वाला पत्र लिखा था। अपने अन्य सरदार, मंत्रियों के साथ धर्मस्थान मुक्ति की चर्चा छत्रपति शिवाजी करते थे। स्वयं छत्रपति शिवाजी महाराज ने अनेक मंदिरों का पुनर्निर्माण किया था। वे जब दक्षिण भारत में गए थे तो आज के तमिलनाडु में दो मंदिरों का पुनर्निर्माण किया। कुछ वर्ष पहले दोनों मंदिर गिराकर मुसलमानों ने वहां मस्जिदें बनायी थी। मस्जिदें गिराकर फिर से मंदिर का निर्माण किया गया। सभी मराठा सरदार, पेशवा इस संकल्प पूर्ति के लिए प्रयत्न करते थे। सुप्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग त्र्यम्बकेश्वर, तीर्थ क्षेत्र नासिक स्थित सुंदर नारायण मंदिर, उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर जैसे अनेक मंदिरों का मुगल राज ने विध्वंस किया था। इन मंदिरों का पुनर्निर्माण मराठों ने बाद में किया था।
जब मराठों के विजयी घोड़े उत्तर भारत में दौड़ने लगे तो धर्मस्थान मुक्ति का प्रयत्न प्रारंभ हुआ। सन् 1751 से 1759 में अवध के नवाब को अयोध्या, प्रयाग, काशी की मुक्ति की शर्त लगाकर ही मदद की गयी थी। मराठों का लगातार दबाव रहा था। दुर्भाग्य से पानीपत की सन् 1761 की लड़ाई में हार हुई और काशी, अयोध्या उस समय मुक्त नहीं हो सके।
भारत के मुसलमान ध्यान दें !
हमारा बाबर का क्या सम्बन्ध है ? वो एक विदेशी, विधर्मी हमलावर था। बाबर मध्य एशिया का था। उसने पहले अफगानिस्तान जीता, बाद में भारत में आया। बाबर की कब्र अफगानिस्तान में है। भारत का एक प्रतिनिधि मण्डल 1969 में अफगानिस्तान गया था। उसमें सुप्रसिद्ध विचारक, अफगानिस्तान-नीति के विशेषज्ञ डॉ0 वेदप्रताप वैदिक भी थे। वे बाबर की कब्र देखने गए। वह कब्र जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थी। उन्होंने एक अफगानी नेता से पूछा, बाबर के कब्र की ऐसी दुरावस्था क्यों ? अफगान नेता का उत्तर था-बाबर का हमारा क्या सम्बन्ध ? बाबर एक विदेशी हमलावर था, उसने हमारे ऊपर आक्रमण किया, हमें गुलाम बनाया। वह मुसलमान था इसीलिए यह कब्र हमने गिरायी नहीं। परन्तु जिस दिन गिरेगी, उस समय हरेक अफगानी को आनन्द होगा। बाबर हमारा शत्रु था, यह बोलने वाले श्री बबरक करमाल 1981 में अफगान प्रधानमंत्री बने। उनकी भावना भारत के मुसलमानों ने ध्यान में लेनी चाहिए।
इण्डोनेशिया की 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। वह घोषित मुस्लिम देश है। परन्तु उनका सर्वश्रेष्ठ आदर्श आज भी ‘‘राम’’ है। वहां के प्राथमिक विद्यालय में रामायण का अध्ययन अनिवार्य है। भारत में क्यों नहीं ? इण्डोनेशिया 700 वर्ष पहले हिन्दू-बौद्ध था। उन्होंने अपनी परंपराएं नहीं छोड़ी है।
ईरान मुस्लिम देश है परन्तु वे रूस्तम, सोहराब को राष्ट्रीय पुरूष मानते हैं। रूस्तक, सोहराब तीन हजार साल पहले हुए और वे पारसी थे; मुस्लिम नहीं। मिस्र देश में पिरामिड राष्ट्रीय प्रतीक है। पिरामिड साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व के हैं और उस समय इस्लाम था ही नहीं। भगवान् राम हजारों वर्ष पूर्व हुए; उस समय इस्लाम था ही नहीं। भारत के मुसलमान भी 200-400-800 साल पहले हिन्दू ही थे। तो भारत के मुस्लिम राम को अपना पूर्वज, भारत का राष्ट्रीय महापुरूष क्यों नहीं मानते ?
ईरान और मिस्र के मुस्लिमों का आदर्श यहां के मुसलमान रखेंगे तो सारी समस्या का हल हो जायेगा। भारत का उत्थान हो जायेगा। राष्ट्रीय एकता आयेगी।
राष्ट्रीयता बनाम अराष्ट्रीयता
भगवान् श्रीराम भारत की पहचान है, राष्ट्रीयता के प्रतीक हैं। बाबर विदेशी हमलावर, हमारा शत्रु था। बाबर के संबंध में गुरू नानकदेवजी ने कहा है, बाबर का राज माने पाप की बारात। उस बाबर ने मंदिर तोडा, उस बाबरी ढांचे के लिए चिल्लाना यह अराष्ट्रीयता है। हम राम के भक्त है या बाबर के वारिस यह प्रश्न सबको पूछना चाहिए ? राम मंदिर निर्माण यह राष्ट्रीयता का विषय है। उस पर समझौता नहीं हो सकता।
(श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर-निर्माण आन्दोलन से सक्रियरूपेण जुड़े लेखक विहिप के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री हैं)
Monday, September 6, 2010
ईसाइयों की पवित्र धरती वेटिकन सिटी
तेहरान। ईसाइयों की पवित्र धरती वेटिकन सिटी ने ईरान में एक महिला को पत्थर मार कर दी जाने वाली मौत की सजा को 'नृशंस' करार देने के साथ, उसे बचाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। सकीना मुहम्मदी अस्तियानी नाम की इस महिला को व्यभिचार के आरोप में यह सजा सुनाई गई है। रविवार को सकीना को अभद्रता के आरोप में मौत से पहले 99 बेंत मारने की सजा का भी एलान किया गया।
अब वेटिकन सकीना को सजा से बचाने के लिए कूटनीतिक रास्ता अपनाना चाहता है। वेटिकन के प्रवक्ता रेवरेंड फेडरिको लोम्बार्दी ने कहा कि कैथोलिक चर्च किसी भी रूप में मौत की सजा की निंदा करता है। हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि वेटिकन ने सकीना को बचाने के लिए क्या प्रयास किए हैं?
सकीना को 2006 में व्यभिचार का दोषी ठहराया गया था। इटली की समाचार संस्था को दिए साक्षात्कार में सकीना के बेटे सजद गदरजदा ने 16वें पोप बेनेडिक्ट से अपनी मां को बचाने की गुहार लगाई है। इटली के ईरान से आर्थिक संबंध काफी मजबूत हैं। इटली के विदेश मंत्री फ्रांको फ्रेटिनी ने ईरान से सकीना की सजा माफ करने की अपील की है।
अब वेटिकन भी ईरान के खिलाफ
अब वेटिकन भी ईरान के खिलाफ तेहरान। ईसाइयों की पवित्र धरती वेटिकन सिटी ने ईरान में एक महिला को पत्थर मार कर दी जाने वाली मौत की सजा को 'नृशंस' करार देने के साथ, उसे बचाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। सकीना मुहम्मदी अस्तियानी नाम की इस महिला को व्यभिचार के आरोप में यह सजा सुनाई गई है। रविवार को सकीना को अभद्रता के आरोप में मौत से पहले 99 बेंत मारने की सजा का भी एलान किया गया।
अब वेटिकन सकीना को सजा से बचाने के लिए कूटनीतिक रास्ता अपनाना चाहता है। वेटिकन के प्रवक्ता रेवरेंड फेडरिको लोम्बार्दी ने कहा कि कैथोलिक चर्च किसी भी रूप में मौत की सजा की निंदा करता है। हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि वेटिकन ने सकीना को बचाने के लिए क्या प्रयास किए हैं?
सकीना को 2006 में व्यभिचार का दोषी ठहराया गया था। इटली की समाचार संस्था को दिए साक्षात्कार में सकीना के बेटे सजद गदरजदा ने 16वें पोप बेनेडिक्ट से अपनी मां को बचाने की गुहार लगाई है। इटली के ईरान से आर्थिक संबंध काफी मजबूत हैं। इटली के विदेश मंत्री फ्रांको फ्रेटिनी ने ईरान से सकीना की सजा माफ करने की अपील की है।
अब वेटिकन सकीना को सजा से बचाने के लिए कूटनीतिक रास्ता अपनाना चाहता है। वेटिकन के प्रवक्ता रेवरेंड फेडरिको लोम्बार्दी ने कहा कि कैथोलिक चर्च किसी भी रूप में मौत की सजा की निंदा करता है। हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि वेटिकन ने सकीना को बचाने के लिए क्या प्रयास किए हैं?
सकीना को 2006 में व्यभिचार का दोषी ठहराया गया था। इटली की समाचार संस्था को दिए साक्षात्कार में सकीना के बेटे सजद गदरजदा ने 16वें पोप बेनेडिक्ट से अपनी मां को बचाने की गुहार लगाई है। इटली के ईरान से आर्थिक संबंध काफी मजबूत हैं। इटली के विदेश मंत्री फ्रांको फ्रेटिनी ने ईरान से सकीना की सजा माफ करने की अपील की है।
रेत का महल
मैंने अपना हैडबैग खिड़की के पास रखा और आराम से बैठ गई। कम सामान, खिड़की के किनारे की सीट, तो वह यात्रा जन्नत की सैर से कम नहीं लगती, अब सहयात्री भी जरा सभ्य सा आ जाये तो बाकी का रास्ता भी चैन से गुजरे। सोचते हुए जाने क्यों बचपन की रेल यात्राएं याद आ गई। खिड़की के पास बैठने के लिए हम दोनों बहनें झगड़ने लगती थीं। और फिर हमारे पापा सिक्का उछालकर पहले क्रम निश्चित करते, उसके पश्चात घड़ी देखकर बारी-बारी से पंद्रह-पंद्रह मिनट हम दोनों खिड़की के किनारे बैठकर बाहर के दृश्यों का मजा लूटते।
खोई हुई थी कि तीखा स्वर गूंज उठा, ''अरे जल्दी आओ.. क्या कर रही हो? सामान गिन लिये? बच्चों को अंदर बैठाओ.. अबे कुली धीरे रख!'' सामने देखा तो एक महाशय अपने परिवार के साथ प्रवेश कर रहे थे, दो बेटियां, पत्नी और सामान।
''मैंने तुमसे कहा था कि थोड़ा 'टाइम-मार्जिन' लेकर चला करो.. सामान और बच्चों के साथ, पर नहीं! तुम्हे तो आखिरी पल तक कुछ न कुछ काम याद आ जाता है। देखा नहीं, कुली ने दुगने पैसे ले लिये।'' साहब अपनी पत्नी पर नाराज हो रहे थे परन्तु पत्नी जी भी कोई कम न थीं, ''देर घर पर नहीं, शनिदेवता के मंदिर में हुई, आपसे कहा भी कि थोड़ा शॉर्ट कर लीजिए.. पर नहीं, पूरी आरती वो भी ऊंचे सुर में गानी जरूरी थी क्या?''
शर्मिन्दा होते हुए पतिदेव ने कनखियों से मेरी ओर देखा, परन्तु मैं बाहर देखने का नाटक करने लगी।
''मम्मी! खिड़की के किनारे मैं बैठूंगी।'' यह वाक्य सुनते ही मेरे चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गई। मन उल्लासित सा हो गया और मैं कनखियों से दोनों बहनों के बीच होने वाली बहस का दृश्य देखने को लालायित सी हो उठी, परन्तु यह क्या! यहां पर तो पिता का निर्णय निष्पक्ष न था, ''दीदी का जो मन है वो करने दो।'' पिता व साथ में मां भी इस मुद्दे पर अपनी पिछली लड़ाई भूलकर, अचानक एकमत हो गये। मैं आश्चर्य में पड़ गई। मैंने छोटी के चेहरे की ओर देखा। उसकी उदासी मुझसे नहीं देखी गई और फिर मैंने अपनी जगह छोड़कर उसे बैठने को कहा, क्योंकि मैं जानती थी कि इस उम्र में ही इस सीट का असली सुख मिल सकता है।
''थैंक्यू आंटी!''- ''कोई बात नहीं बेटा, आप भी मुंबई जा रही हो क्या?''
''जी हां।'' जवाब पिताजी ने दिया क्योंकि वो तो कुछ महत्वपूर्ण बात बताने के लिए उतावले से हुए जा रहे थे, ''असल में हमारी इस बेटी का 'सुर साधना' के ऑडीशन में सेलेक्शन हो गया है। अब उन लोगों ने हमें मुंबई बुलाया है।'' कहते हुए उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की ओर इशारा किया। अपना जिक्र आते ही उस बेटी ने अपनी गर्वपूर्ण मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा। उसे देख कर मुझे बड़ा अफसोस सा हुआ, क्योंकि उसके चेहरे पर भोलेपन की झलक नहीं थी, समय से पहले ही परिपक्वता आ चुकी थी।
- ''तभी तो पापा शनि देवता के मंदिर में जोर-जोर से आरती गा रहे थे ताकि पचास-लाख का इनाम दीदी को मिल जाये और फिर हम बड़ा वाला फ्लैट ले लें।'' कहते हुए छोटी-बेटी ने परिवार का सीक्रेट-आउट कर दिया।
- ''चुप रहो, बहुत बोलती हो।'' कहते हुए मां ने अपनी बेटी को जोर से डांट लगाकर चुप कर दिया। दोनों बच्चियों को देखकर मेरे मन को अत्यधिक कष्ट हुआ.. कैसा भाग्य लेकर आए है ये बच्चे!.. इनके माता-पिता ने इनके कमजोर कंधों पर अपना 'रेत का महल' खड़ा करने की ठान ली है। ठीक इसी प्रकार हमारे कॉलोनी के सिंह साहब ने किया था। उनका बेटा अपने कॉलेज की क्रिकेट टीम में था और उसने कई बार शतक बना कर कॉलेज की टीम को जिता क्या दिया कि लोगों ने उसे 'जूनियर धोनी' का खिताब दे दिया। धीरे-धीरे लड़के ने भी अपने आपको धोनी मानकर अपने बाल बढ़ा लिये और कुछ समय पश्चात सिंह साहब को भी लगने लगा कि उन्होंने थोड़ा और प्रयास किया तो मान, शान.. धन सभी मिल जायेगा। अत: वे एक साल की 'लीव विद आऊट पे' लेकर तथा गांव की अपनी जमीन बेचकर, मुंबई अपने बेटे को कोचिंग दिलाने चले गये। किन्तु उनका बेटा नेशनल-टीम में कभी नहीं दिखा।
बच्चों की योग्यता पहचानकर, उन्हे उस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित करने का अर्थ यह तो नहीं कि पूरा परिवार उनके नाजुक कंधों पर अपनी आकांक्षाओं का बोझ डालकर उनका स्वाभाविक विकास ही रोक दे। मेरा मन अत्यन्त बोझिल होने लगा था कि अचानक पूरी व अचार की सुगंध ने मेरा ध्यान बरबस ही मेरे सहयात्रियों की ओर आकर्षित कर दिया।
वे लोग खाना खाने की तैयारी कर रहे थे।
''मम्मी! मैं भी आम का अचार लूंगी।'' बड़ी बेटी अपनी मां से मनुहार कर रही थी। - ''तुम्हारा डिनर अलग पैक है बेटा! न खट्टा, न चिकना, आपको तो फल, ब्रैड व सॉस, जैम ही खाना है ना। नहीं तो गला खराब हो जायेगा।''- ''ओफ्फो! मम्मी।'' कहते-कहते बच्ची का गला भर आया। मेरा मन फिर व्याकुल होने लगा, जब मैं इस उम्र में खुशबू से ही ललचा गई तो ये तो बिचारी.. सोचते हुए मैंने कनखियों से उधर देखा। ये क्या? बड़ी बेटी ने चुपचाप एक आम के अचार की फांक अपनी मुट्ठी में दबा ली थी। मैं मुस्करा दी।- ''मम्मी मैं खा चुकी, अब हाथ धोने जा रही हूं।'' कहते हुए वह लपककर बाहर निकली।
मुझे भी हाथ तो धोने ही थे। मैं भी उठी। उत्सुकता भी थी!! उस बच्ची को देखने की, देखा तो दृश्य अत्यन्त मर्मस्पर्शी था। उस समय मुझे महसूस हुआ कि महाकवि सूरदास के माखनचोर कृष्ण मेरे सामने खड़े है। वह बच्ची आंखें बन्द कर अत्यन्त संतुष्ट भाव से, अचार की फांक को कसकर मुंह में दबाकर तृप्त हो रही थी। बेचारी!! घर पर तो मां का पहरा होगा, अत: मौका लगते ही बालमन सारे बंधन तोड़कर अपना करतब दिखा गया। मैं आगे बढ़ी, क्योंकि मैं उसके सुख में व्यवधान डालने का अपराध नहीं कर सकती थी, परन्तु अचानक उसने अपनी आंखें खोल दीं डर के मारे उसका चेहरा सफेद पड़ गया, ''आण्टी प्लीज! मम्मी से मत कहियेगा।''
- ''बिल्कुल नहीं बेटा! डरो मत।'' स्नेह से कहते हुए मैं हाथ धोकर वापस आ गई। इतने बंधन, इतनी रोक-टोक, वो भी इस उम्र में। सोचते-सोचते मैं अपनी सीट पर आकर बैठ गई। - ''आण्टी! क्या अब मैं आपके पास बैठ सकती हूं?'' देखा तो वही लड़की बाहर से आकर मुझसे ये प्रश्न कर रही थी। हो सकता है कि उसे, चोरी करने में, मेरे द्वारा दिया गया संरक्षण एक प्रकार का मित्रवत् व्यवहार सा लगा हो और इसीलिये अब वह मेरे पास बैठकर ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रही हो।
''हां-हां आओ, बैठो बेटा और बताओ कि तुम कौन सा गाना गाने वाली हो प्रतियोगिता में?''
''आण्टी! कई गाने तैयार किये है और मुझे लगता भी है कि मैं जीत जाऊंगी।'' कहते-कहते अचानक वो फिर से अपनी उम्र से बहुत बड़ी लगने लगी।
''हां बेटा, अभ्यास किया है तो जीतोगी ही।'' मैंने भी उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा।
''वो तो है आण्टी पर जानती है ये प्रतियोगिता शुक्रवार को है इसीलिये मम्मी ने मुझसे शुक्रवार के व्रत शुरू करवाये है और हमारे बाबाजी महाराज ने कहा है कि उस दिन जब मैं 'बड़ा-पाठ' करके गाना गाऊंगी तो कोई ताकत मुझे फर्स्ट आने से नहीं रोक सकती।'' कहते-कहते उसका चेहरा खुशी से सराबोर हो गया। उसकी आंखों में हजारों सपने दिखाई दे रहे थे। उफ् क्या होगा यदि यह बच्ची जीत न पाई तो..।
जीतने की चाह रखना बुरा नहीं.. परन्तु कोमल नाजुक कन्धों पर अपनी इच्छाओं के महल की बुनियाद रखना तो घृणित पाप करने जैसा है। कहीं ऐसा न हो कि 'रेत का महल' ढहने से ये नन्हीं जान भी उसी के नीचे कुचल जाये। मैं सिहर उठी परन्तु कुछ कह न सकी।
अगले दिन मुंबई आने पर उस परिवार, विशेष कर उस बच्ची से विदा लेकर, मैं अपनी मंजिल की ओर चल पड़ी, घर पहुंच कर फिर मैं अपनी दिनचर्या व परिवार में इतनी व्यस्त हो गई कि ट्रेन की यह घटना बिल्कुल भूल गई किन्तु शनिवार की सुबह जब समाचार-पत्र खोला, तो अचानक 'सुर-साधना' के समाचार पर दृष्टि पड़ी। फाइनल-राउन्ड में पहुंचने वाले बच्चों की फोटो छपी थी, जिसमें मेरी नन्हीं सहयात्री नहीं थी.. वही हुआ जिसका अंदेशा था। मेरी आंखें भर आर्इं.. कितनी दुखद घटना थी और उसके जिम्मेदार उस बच्ची के माता-पिता ही थे.. उनके कारण उस बच्ची ने जाने कितना स्वर्णिम-समय यानी अपना बचपन गंवा दिया। जो कभी भी लौटकर नहीं आयेगा। हे ईश्वर! उस निरपराध बच्ची की रक्षा करना, कहते-कहते मैंने आंखें बन्द कर, सच्चे मन से प्रार्थना की।
[डॉ. रेनू मित्तल]
द्वारा- प्रो.ए.के. मित्तल, कुलपति,
डॉ. रा.म.लो. अवध विश्वविद्यालय
खोई हुई थी कि तीखा स्वर गूंज उठा, ''अरे जल्दी आओ.. क्या कर रही हो? सामान गिन लिये? बच्चों को अंदर बैठाओ.. अबे कुली धीरे रख!'' सामने देखा तो एक महाशय अपने परिवार के साथ प्रवेश कर रहे थे, दो बेटियां, पत्नी और सामान।
''मैंने तुमसे कहा था कि थोड़ा 'टाइम-मार्जिन' लेकर चला करो.. सामान और बच्चों के साथ, पर नहीं! तुम्हे तो आखिरी पल तक कुछ न कुछ काम याद आ जाता है। देखा नहीं, कुली ने दुगने पैसे ले लिये।'' साहब अपनी पत्नी पर नाराज हो रहे थे परन्तु पत्नी जी भी कोई कम न थीं, ''देर घर पर नहीं, शनिदेवता के मंदिर में हुई, आपसे कहा भी कि थोड़ा शॉर्ट कर लीजिए.. पर नहीं, पूरी आरती वो भी ऊंचे सुर में गानी जरूरी थी क्या?''
शर्मिन्दा होते हुए पतिदेव ने कनखियों से मेरी ओर देखा, परन्तु मैं बाहर देखने का नाटक करने लगी।
''मम्मी! खिड़की के किनारे मैं बैठूंगी।'' यह वाक्य सुनते ही मेरे चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गई। मन उल्लासित सा हो गया और मैं कनखियों से दोनों बहनों के बीच होने वाली बहस का दृश्य देखने को लालायित सी हो उठी, परन्तु यह क्या! यहां पर तो पिता का निर्णय निष्पक्ष न था, ''दीदी का जो मन है वो करने दो।'' पिता व साथ में मां भी इस मुद्दे पर अपनी पिछली लड़ाई भूलकर, अचानक एकमत हो गये। मैं आश्चर्य में पड़ गई। मैंने छोटी के चेहरे की ओर देखा। उसकी उदासी मुझसे नहीं देखी गई और फिर मैंने अपनी जगह छोड़कर उसे बैठने को कहा, क्योंकि मैं जानती थी कि इस उम्र में ही इस सीट का असली सुख मिल सकता है।
''थैंक्यू आंटी!''- ''कोई बात नहीं बेटा, आप भी मुंबई जा रही हो क्या?''
''जी हां।'' जवाब पिताजी ने दिया क्योंकि वो तो कुछ महत्वपूर्ण बात बताने के लिए उतावले से हुए जा रहे थे, ''असल में हमारी इस बेटी का 'सुर साधना' के ऑडीशन में सेलेक्शन हो गया है। अब उन लोगों ने हमें मुंबई बुलाया है।'' कहते हुए उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की ओर इशारा किया। अपना जिक्र आते ही उस बेटी ने अपनी गर्वपूर्ण मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा। उसे देख कर मुझे बड़ा अफसोस सा हुआ, क्योंकि उसके चेहरे पर भोलेपन की झलक नहीं थी, समय से पहले ही परिपक्वता आ चुकी थी।
- ''तभी तो पापा शनि देवता के मंदिर में जोर-जोर से आरती गा रहे थे ताकि पचास-लाख का इनाम दीदी को मिल जाये और फिर हम बड़ा वाला फ्लैट ले लें।'' कहते हुए छोटी-बेटी ने परिवार का सीक्रेट-आउट कर दिया।
- ''चुप रहो, बहुत बोलती हो।'' कहते हुए मां ने अपनी बेटी को जोर से डांट लगाकर चुप कर दिया। दोनों बच्चियों को देखकर मेरे मन को अत्यधिक कष्ट हुआ.. कैसा भाग्य लेकर आए है ये बच्चे!.. इनके माता-पिता ने इनके कमजोर कंधों पर अपना 'रेत का महल' खड़ा करने की ठान ली है। ठीक इसी प्रकार हमारे कॉलोनी के सिंह साहब ने किया था। उनका बेटा अपने कॉलेज की क्रिकेट टीम में था और उसने कई बार शतक बना कर कॉलेज की टीम को जिता क्या दिया कि लोगों ने उसे 'जूनियर धोनी' का खिताब दे दिया। धीरे-धीरे लड़के ने भी अपने आपको धोनी मानकर अपने बाल बढ़ा लिये और कुछ समय पश्चात सिंह साहब को भी लगने लगा कि उन्होंने थोड़ा और प्रयास किया तो मान, शान.. धन सभी मिल जायेगा। अत: वे एक साल की 'लीव विद आऊट पे' लेकर तथा गांव की अपनी जमीन बेचकर, मुंबई अपने बेटे को कोचिंग दिलाने चले गये। किन्तु उनका बेटा नेशनल-टीम में कभी नहीं दिखा।
बच्चों की योग्यता पहचानकर, उन्हे उस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित करने का अर्थ यह तो नहीं कि पूरा परिवार उनके नाजुक कंधों पर अपनी आकांक्षाओं का बोझ डालकर उनका स्वाभाविक विकास ही रोक दे। मेरा मन अत्यन्त बोझिल होने लगा था कि अचानक पूरी व अचार की सुगंध ने मेरा ध्यान बरबस ही मेरे सहयात्रियों की ओर आकर्षित कर दिया।
वे लोग खाना खाने की तैयारी कर रहे थे।
''मम्मी! मैं भी आम का अचार लूंगी।'' बड़ी बेटी अपनी मां से मनुहार कर रही थी। - ''तुम्हारा डिनर अलग पैक है बेटा! न खट्टा, न चिकना, आपको तो फल, ब्रैड व सॉस, जैम ही खाना है ना। नहीं तो गला खराब हो जायेगा।''- ''ओफ्फो! मम्मी।'' कहते-कहते बच्ची का गला भर आया। मेरा मन फिर व्याकुल होने लगा, जब मैं इस उम्र में खुशबू से ही ललचा गई तो ये तो बिचारी.. सोचते हुए मैंने कनखियों से उधर देखा। ये क्या? बड़ी बेटी ने चुपचाप एक आम के अचार की फांक अपनी मुट्ठी में दबा ली थी। मैं मुस्करा दी।- ''मम्मी मैं खा चुकी, अब हाथ धोने जा रही हूं।'' कहते हुए वह लपककर बाहर निकली।
मुझे भी हाथ तो धोने ही थे। मैं भी उठी। उत्सुकता भी थी!! उस बच्ची को देखने की, देखा तो दृश्य अत्यन्त मर्मस्पर्शी था। उस समय मुझे महसूस हुआ कि महाकवि सूरदास के माखनचोर कृष्ण मेरे सामने खड़े है। वह बच्ची आंखें बन्द कर अत्यन्त संतुष्ट भाव से, अचार की फांक को कसकर मुंह में दबाकर तृप्त हो रही थी। बेचारी!! घर पर तो मां का पहरा होगा, अत: मौका लगते ही बालमन सारे बंधन तोड़कर अपना करतब दिखा गया। मैं आगे बढ़ी, क्योंकि मैं उसके सुख में व्यवधान डालने का अपराध नहीं कर सकती थी, परन्तु अचानक उसने अपनी आंखें खोल दीं डर के मारे उसका चेहरा सफेद पड़ गया, ''आण्टी प्लीज! मम्मी से मत कहियेगा।''
- ''बिल्कुल नहीं बेटा! डरो मत।'' स्नेह से कहते हुए मैं हाथ धोकर वापस आ गई। इतने बंधन, इतनी रोक-टोक, वो भी इस उम्र में। सोचते-सोचते मैं अपनी सीट पर आकर बैठ गई। - ''आण्टी! क्या अब मैं आपके पास बैठ सकती हूं?'' देखा तो वही लड़की बाहर से आकर मुझसे ये प्रश्न कर रही थी। हो सकता है कि उसे, चोरी करने में, मेरे द्वारा दिया गया संरक्षण एक प्रकार का मित्रवत् व्यवहार सा लगा हो और इसीलिये अब वह मेरे पास बैठकर ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रही हो।
''हां-हां आओ, बैठो बेटा और बताओ कि तुम कौन सा गाना गाने वाली हो प्रतियोगिता में?''
''आण्टी! कई गाने तैयार किये है और मुझे लगता भी है कि मैं जीत जाऊंगी।'' कहते-कहते अचानक वो फिर से अपनी उम्र से बहुत बड़ी लगने लगी।
''हां बेटा, अभ्यास किया है तो जीतोगी ही।'' मैंने भी उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा।
''वो तो है आण्टी पर जानती है ये प्रतियोगिता शुक्रवार को है इसीलिये मम्मी ने मुझसे शुक्रवार के व्रत शुरू करवाये है और हमारे बाबाजी महाराज ने कहा है कि उस दिन जब मैं 'बड़ा-पाठ' करके गाना गाऊंगी तो कोई ताकत मुझे फर्स्ट आने से नहीं रोक सकती।'' कहते-कहते उसका चेहरा खुशी से सराबोर हो गया। उसकी आंखों में हजारों सपने दिखाई दे रहे थे। उफ् क्या होगा यदि यह बच्ची जीत न पाई तो..।
जीतने की चाह रखना बुरा नहीं.. परन्तु कोमल नाजुक कन्धों पर अपनी इच्छाओं के महल की बुनियाद रखना तो घृणित पाप करने जैसा है। कहीं ऐसा न हो कि 'रेत का महल' ढहने से ये नन्हीं जान भी उसी के नीचे कुचल जाये। मैं सिहर उठी परन्तु कुछ कह न सकी।
अगले दिन मुंबई आने पर उस परिवार, विशेष कर उस बच्ची से विदा लेकर, मैं अपनी मंजिल की ओर चल पड़ी, घर पहुंच कर फिर मैं अपनी दिनचर्या व परिवार में इतनी व्यस्त हो गई कि ट्रेन की यह घटना बिल्कुल भूल गई किन्तु शनिवार की सुबह जब समाचार-पत्र खोला, तो अचानक 'सुर-साधना' के समाचार पर दृष्टि पड़ी। फाइनल-राउन्ड में पहुंचने वाले बच्चों की फोटो छपी थी, जिसमें मेरी नन्हीं सहयात्री नहीं थी.. वही हुआ जिसका अंदेशा था। मेरी आंखें भर आर्इं.. कितनी दुखद घटना थी और उसके जिम्मेदार उस बच्ची के माता-पिता ही थे.. उनके कारण उस बच्ची ने जाने कितना स्वर्णिम-समय यानी अपना बचपन गंवा दिया। जो कभी भी लौटकर नहीं आयेगा। हे ईश्वर! उस निरपराध बच्ची की रक्षा करना, कहते-कहते मैंने आंखें बन्द कर, सच्चे मन से प्रार्थना की।
[डॉ. रेनू मित्तल]
द्वारा- प्रो.ए.के. मित्तल, कुलपति,
डॉ. रा.म.लो. अवध विश्वविद्यालय
आत्महत्या करने वाले की मनोस्थिति
किसी को आत्महत्या से बचाने के लिए आपका डॉक्टर होना जरूरी नहीं है। रोगी के परिजन व उसके संगी-साथी अनेक बार बेहतर रूप से रोगी की सहायता कर सकते है। इस क्रम में 'चार कदम' का यह नियम अपनाएं-
[पहला कदम]
[मनोस्थिति समझें]
समझें कि आत्महत्या करने वाले की मनोस्थिति जीवन और मृत्यु की दुविधा में झूलती रहती है। वह दिल से तो जीना चाहता है लेकिन उसे अपनी तकलीफों का अंत आत्महत्या में ही दिखता है। इस कारण वह मन के विरुद्ध गलत निर्णय ले बैठता है। ऐसे में परिजन यदि उसकी तकलीफों को समझ लें और उन्हें बाँट लें तो रोगी सहज रूप से जीवन जीना स्वीकार कर लेता है।
[दूसरा कदम]
आत्महत्या से पूर्व आए व्यावहारिक परिवर्तन को पहचानें जैसे-
* मन उदास होना व गुमशुम रहना।
* आत्मग्लानि की बात बार-बार कहना।
* मरने की बातें बार-बार कहना।
* शराब या नशे की मात्रा बढ़ा देना।
* नींद न आना व भूख न लगना।
* लापरवाही से खुद को जोखिम में डालना।
[तीसरा कदम]
* आत्महत्या के विषय में बात करने से न हिचकिचाएं।
* रोगी को स्पष्ट शब्दों में बताएं कि वह परिवार के लिए व बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
* रोगी को यह बार-बार समझाएं कि हम उसकी तकलीफों को समझते है और हर वक्त उसके लिए उपलब्ध हैं।
* रोगी को इस बात का विश्वास दिलाएं कि उसके कष्ट सीमित समय के लिए हैं और कुछ दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाएगा।
[चौथा कदम]
यदि रोगी न माने तो उसे तब तक अकेला न छोड़े, जब तक मनोचिकित्सक की सुविधा उपलब्ध न हो जाए। आपका यह छोटा सहयोग एक जीवन को बचा सकता है।
[डॉ. उन्नति कुमार मनोरोग विशेषज्ञ]
[पहला कदम]
[मनोस्थिति समझें]
समझें कि आत्महत्या करने वाले की मनोस्थिति जीवन और मृत्यु की दुविधा में झूलती रहती है। वह दिल से तो जीना चाहता है लेकिन उसे अपनी तकलीफों का अंत आत्महत्या में ही दिखता है। इस कारण वह मन के विरुद्ध गलत निर्णय ले बैठता है। ऐसे में परिजन यदि उसकी तकलीफों को समझ लें और उन्हें बाँट लें तो रोगी सहज रूप से जीवन जीना स्वीकार कर लेता है।
[दूसरा कदम]
आत्महत्या से पूर्व आए व्यावहारिक परिवर्तन को पहचानें जैसे-
* मन उदास होना व गुमशुम रहना।
* आत्मग्लानि की बात बार-बार कहना।
* मरने की बातें बार-बार कहना।
* शराब या नशे की मात्रा बढ़ा देना।
* नींद न आना व भूख न लगना।
* लापरवाही से खुद को जोखिम में डालना।
[तीसरा कदम]
* आत्महत्या के विषय में बात करने से न हिचकिचाएं।
* रोगी को स्पष्ट शब्दों में बताएं कि वह परिवार के लिए व बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
* रोगी को यह बार-बार समझाएं कि हम उसकी तकलीफों को समझते है और हर वक्त उसके लिए उपलब्ध हैं।
* रोगी को इस बात का विश्वास दिलाएं कि उसके कष्ट सीमित समय के लिए हैं और कुछ दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाएगा।
[चौथा कदम]
यदि रोगी न माने तो उसे तब तक अकेला न छोड़े, जब तक मनोचिकित्सक की सुविधा उपलब्ध न हो जाए। आपका यह छोटा सहयोग एक जीवन को बचा सकता है।
[डॉ. उन्नति कुमार मनोरोग विशेषज्ञ]
कैसे बचें डेंगू के डंक से
मन से यह धारणा निकाल दें कि डेंगू लाइलाज मर्ज है। समय रहते सचेत रहने और उचित इलाज से इस बीमारी पर अंकुश लगाया जा सकता है। पढि़ए कैसे..
डेगू एक वाइरस से होता है। यह मर्ज एडीज मच्छर के काटने से होता है। इस मच्छर में ही वाइरस पलता है। सामान्यत: डेंगू बुखार दो से पांच दिनों में ठीक हो जाता है, लेकिन चिकित्सा में लापरवाही बरतने से प्राय: यह मर्ज गंभीर रूप अख्तियार कर लेता है जिसे 'हैमरैजिक फीवर' कहते है, जो जानलेवा भी बन सकता है।
[लक्षण]
* डेंगू में बुखार व बदन में तेज दर्द होता है। कपकपी भी संभव है।
* जोड़ों, मांसपेशियों और सिर में तेज दर्द संभव है।
* आंखों में दर्द व जलन संभव है। पेट व गले में खराश की शिकायत और घबराहट भी महसूस हो सकती है।
* चेहरे, गले व सीने पर महीन दाने या लाल रंग के चकत्ते पड़ सकते है। यह चौथे या पांचवें दिन होता है।
[खतरे की स्थिति]
डेंगू हैमरैजिक फीवर के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
* मरीज अचेत अवस्था में चला जाता है।
* रोगी का 'ब्लड काउंट' कम हो सकता है और 'प्लेटलेट्स' की मात्रा बहुत घट जाती है।
* प्लेटलेट्स शरीर के रक्त को जमाकर खून का रिसाव रोकती हैं।
* मरीज का ब्लड प्रेशर लो होने लगता है।
* उसे तेज बुखार चढ़ता है।
* चक्कर आना और कई बार उल्टियां होना।
* रोगी के मुंह नाक, पेशाब, गुदा मार्ग आदि अंगों से रक्त-स्राव संभव है।
[इलाज]
इस मर्ज में लक्षणों के आधार पर रोगी का इलाज किया जाता है। मर्ज की गंभीर स्थिति में डेंगू ग्रस्त व्यक्ति का समुचित इलाज सघन चिकित्सा कक्ष में ही संभव है। इसके बावजूद मरीज को..
* ड्रिप के जरिए आईवी फ्लूइड्स व इलेक्ट्रोलाइट देना चाहिए।
* रक्तस्राव रोकने के लिए प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन।
* दर्द व बुखार से संबधित दवाएं और जरूरत पड़ने पर एंटीबॉयटिक मेडिसिन्स दी जाती हैं।
[इन बातों पर दें ध्यान]
* डेंगू संक्रमित मच्छर अक्सर दिन के वक्त ही काटते हैं। इसलिए अच्छा हो कि आप दिन के समय नमी वाली जगहों पर न जाएं।
* घर में मच्छरों के प्रकोप को दूर करने के लिए मच्छर मारने वाली विधियों का प्रयोग करें।
* घर के भीतरी भाग के अलावा आस-पास भी सफाई रखें। वॉश-बेसिन, सिंक, नालियां और जहां भी धुलाई-सफाई का कार्य होता है, उन जगहों को साफ रखें।
* बरसात के पानी को अपने घर के पास-पड़ोस में संचित न होने दें।
* कूलर में जमा पानी को साफ करते रहें। ड्रम आदि में सँभालकर रखे गए पानी को हर हफ्ते बदलते रहें।
* मर्ज के शुरुआती लक्षणों के प्रकट होते ही डॉक्टर से संपर्क करें।
[डॉ.आरती लालचंदानी फिजीशियन]
[डॉ. विशाल चतुर्वेदी, मुंबई]...
डेगू एक वाइरस से होता है। यह मर्ज एडीज मच्छर के काटने से होता है। इस मच्छर में ही वाइरस पलता है। सामान्यत: डेंगू बुखार दो से पांच दिनों में ठीक हो जाता है, लेकिन चिकित्सा में लापरवाही बरतने से प्राय: यह मर्ज गंभीर रूप अख्तियार कर लेता है जिसे 'हैमरैजिक फीवर' कहते है, जो जानलेवा भी बन सकता है।
[लक्षण]
* डेंगू में बुखार व बदन में तेज दर्द होता है। कपकपी भी संभव है।
* जोड़ों, मांसपेशियों और सिर में तेज दर्द संभव है।
* आंखों में दर्द व जलन संभव है। पेट व गले में खराश की शिकायत और घबराहट भी महसूस हो सकती है।
* चेहरे, गले व सीने पर महीन दाने या लाल रंग के चकत्ते पड़ सकते है। यह चौथे या पांचवें दिन होता है।
[खतरे की स्थिति]
डेंगू हैमरैजिक फीवर के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
* मरीज अचेत अवस्था में चला जाता है।
* रोगी का 'ब्लड काउंट' कम हो सकता है और 'प्लेटलेट्स' की मात्रा बहुत घट जाती है।
* प्लेटलेट्स शरीर के रक्त को जमाकर खून का रिसाव रोकती हैं।
* मरीज का ब्लड प्रेशर लो होने लगता है।
* उसे तेज बुखार चढ़ता है।
* चक्कर आना और कई बार उल्टियां होना।
* रोगी के मुंह नाक, पेशाब, गुदा मार्ग आदि अंगों से रक्त-स्राव संभव है।
[इलाज]
इस मर्ज में लक्षणों के आधार पर रोगी का इलाज किया जाता है। मर्ज की गंभीर स्थिति में डेंगू ग्रस्त व्यक्ति का समुचित इलाज सघन चिकित्सा कक्ष में ही संभव है। इसके बावजूद मरीज को..
* ड्रिप के जरिए आईवी फ्लूइड्स व इलेक्ट्रोलाइट देना चाहिए।
* रक्तस्राव रोकने के लिए प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन।
* दर्द व बुखार से संबधित दवाएं और जरूरत पड़ने पर एंटीबॉयटिक मेडिसिन्स दी जाती हैं।
[इन बातों पर दें ध्यान]
* डेंगू संक्रमित मच्छर अक्सर दिन के वक्त ही काटते हैं। इसलिए अच्छा हो कि आप दिन के समय नमी वाली जगहों पर न जाएं।
* घर में मच्छरों के प्रकोप को दूर करने के लिए मच्छर मारने वाली विधियों का प्रयोग करें।
* घर के भीतरी भाग के अलावा आस-पास भी सफाई रखें। वॉश-बेसिन, सिंक, नालियां और जहां भी धुलाई-सफाई का कार्य होता है, उन जगहों को साफ रखें।
* बरसात के पानी को अपने घर के पास-पड़ोस में संचित न होने दें।
* कूलर में जमा पानी को साफ करते रहें। ड्रम आदि में सँभालकर रखे गए पानी को हर हफ्ते बदलते रहें।
* मर्ज के शुरुआती लक्षणों के प्रकट होते ही डॉक्टर से संपर्क करें।
[डॉ.आरती लालचंदानी फिजीशियन]
[डॉ. विशाल चतुर्वेदी, मुंबई]...
सुप्रबंधन से होगा समस्या का समाधान
सहज शब्दों में कहें, तो गर्भावस्था के दौरान ब्लड शुगर के अत्यधिक बढ़ जाने को जेस्टेशनल डाइबिटीज मेलीटस कहते हैं।
[परीक्षण]
सामान्यत: गर्भावस्था के दौरान 24 से 28 हफ्तों के मध्य 'स्क्रीनिंग व डाइबिटीज से संबंधित परीक्षण कराए जाते हैं। एक सर्वाधिक सहज स्क्रीनिंग 'नॉन फास्टिंग ओरल ग्लूकोज चैलैन्ज टेस्ट' है। इस टेस्ट में रोगी को 50 ग्राम ग्लूकोज देकर एक घंटे के बाद ब्लड शुगर का नमूना लिया जाता है। यदि ब्लड शुगर का आकलन 140 द्वद्द/स्त्रद्य या इससे अधिक है, तो लगभग 80 प्रतिशत महिलाओं के 'जी डी एम' से ग्रस्त होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
[इलाज]
'जी डी एम' के इलाज में खान-पान के संदर्भ में कुछ बुनियादी बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। जैसे-
* रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स(मैदा, शुगर, जैम्स,कन्फैक्शनरी आइटम्स) और मीठे खाद्य पदार्र्थो के स्थान पर कॉम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेट्स जैसे अनाजों, ताजे फलों और सब्जियों को आहार में वरीयता दें।
* वसायुक्त खाद्य पदार्र्थो का कम से कम प्रयोग करें।
* इस मर्ज से ग्रस्त मरीजों को दिन में तीन बार प्रमुख आहार जैसे ब्रेक फास्ट, लंच व डिनर के अतिरिक्त एक निश्चित अंतराल पर तीन से चार बार तक स्नैक्स भी लेना चाहिए। एक नियत समय पर भोजन और स्नैक्स लें। शुगर और शहद से युक्त खाद्य व पेय पदार्र्थो से परहेज करें।
* खान-पान के संदर्भ में डाइबिटिक काउंसलर या डाइटीशियन से परामर्श लें।
[शारीरिक सक्रियता व व्यायाम]
अनेक शोध-अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि जो महिलाएं शारीरिक श्रम करती हैं, उनमें गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की शिकायतें(जी डी एम)बहुत कम होती हैं। प्रतिदिन 30 मिनट तक एक निश्चित समय पर व्यायाम(जैसे टहलना, जॉगिंग और एरोबिक्स) करें। ऐसे व्यायाम न करें , जिनसे पेट की मांसपेशियों पर अत्यधिक जोर पड़ता हो।
[दवाएं]
जब खान-पान और व्यायाम से 'जी डी एम' नियंत्रित नहीं होता, तब दवाओं खासकर इंसुलिन का प्रयोग किया जाता है। हालांकि ओरल एंटीडायबिटिक दवाएं भी हैं, लेकिन गर्भावस्था के दौरान डाइबिटीज को नियंत्रित करने में फिलवक्त इंसुलिन ही कारगर विकल्प है।
[डॉ. विवेक झा]
कंसल्टेट इंटरनल मेडिसिन,श्रॉफ हॉस्पिटल, दिल्ली
कम मसालेदार, पर बेहद मजेदार छोले-भठूरे
रामेश्वर दयाल
इस बार हम आपको पहाड़गंज ले चलते हैं और वहां के गरमागरम छोले-भठूरों का स्वाद चखा
ते हैं। कम मसालेवाले छोलों के साथ फूले हुए गरमागरम भठूरे, साथ में हरी मिर्च, प्याज और मौसमी अचार, ये सभी चीजें मिलकर स्वाद बहुत बढ़ा देती हैं।
कहां पर है दुकान
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से पहाड़गंज की ओर मेन बाजार में जानेवाली सड़क के कोने पर अमृत कौर माकेर्ट है। इसी मार्केट में 'राधेश्याम सुभाष कुमार' नाम से छोले-भठूरे की दुकान है। कभी ये छोले-भठूरे इंपीरियल सिनेमा के सामने रेहड़ी पर बिका करते थे। 60 के दशक में राधेश्याम ने छोले-भठूरे बेचने शुरू किए थे। इमरजेंसी के दौरान वहां से रेहड़ी वाले हटा दिए गए और दुकान इस मार्केट में आ गई। आजकल इस दुकान को राधेश्याम के बेटे अनिल, गणेश और सुभाष गुप्ता चलाते हैं।
छोले-भठूरों का जवाब नहीं
इस दुकान पर सिर्फ छोले-भठूरे मिलते हैं, पर दुकान के सामने लगी भीड़ बता देती है कि यहां के स्वाद में वाकई कुछ खास है। 30 रुपये की एक प्लेट में दो भठूरे, छोले, साथ में हरी चटनी, हरी मिर्च, कटा प्याज और सीजनल अचार रखकर दिया जाता है। हाफ प्लेट (छोले और एक भठूरा) 20 रुपये और खाली छोले 15 रुपये में मिलते हैं। छोलों की खासियत यह है कि ये तीखे मसालेदार नहीं हैं, लेकिन स्वाद भरपूर है। कई बरसों से इस दुकान पर छोले-भठूरे खाने के लिए आनेवाले हीरा सोढ़ी का कहना है कि यहां के छोले-भठूरे खाने के बाद भारीपन महसूस नहीं होता। वैसे, इस दुकान के आसपास लस्सी की दो-तीन दुकानें भी हैं। छोले-भठूरे के साथ लस्सी पीकर स्वाद और बढ़ाया जा सकता है।
कोई छुट्टी नहीं
इस दुकान पर सुबह 8 बजे माल बिकना शुरू हो जाता है, जो शाम 4 बजे तक मिलता है। होली को छोड़कर साल भर कोई छुट्टी नहीं होती। दुकान के आगे बहुत बड़ा स्पेस है, जहां वीइकल पार्क किया जा सकता है।
कहां : पहाड़गंज की अमृत कौर मार्केट में
खासियत : कम मसाले के स्वादिष्ट छोले-भठूरे
कीमत : 30 रु. में फुल प्लेट या 20 रु. में हाफ प्लेट
छुट्टी : होली को छोड़ कोई छुट्टी नहीं
इस बार हम आपको पहाड़गंज ले चलते हैं और वहां के गरमागरम छोले-भठूरों का स्वाद चखा
ते हैं। कम मसालेवाले छोलों के साथ फूले हुए गरमागरम भठूरे, साथ में हरी मिर्च, प्याज और मौसमी अचार, ये सभी चीजें मिलकर स्वाद बहुत बढ़ा देती हैं।
कहां पर है दुकान
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से पहाड़गंज की ओर मेन बाजार में जानेवाली सड़क के कोने पर अमृत कौर माकेर्ट है। इसी मार्केट में 'राधेश्याम सुभाष कुमार' नाम से छोले-भठूरे की दुकान है। कभी ये छोले-भठूरे इंपीरियल सिनेमा के सामने रेहड़ी पर बिका करते थे। 60 के दशक में राधेश्याम ने छोले-भठूरे बेचने शुरू किए थे। इमरजेंसी के दौरान वहां से रेहड़ी वाले हटा दिए गए और दुकान इस मार्केट में आ गई। आजकल इस दुकान को राधेश्याम के बेटे अनिल, गणेश और सुभाष गुप्ता चलाते हैं।
छोले-भठूरों का जवाब नहीं
इस दुकान पर सिर्फ छोले-भठूरे मिलते हैं, पर दुकान के सामने लगी भीड़ बता देती है कि यहां के स्वाद में वाकई कुछ खास है। 30 रुपये की एक प्लेट में दो भठूरे, छोले, साथ में हरी चटनी, हरी मिर्च, कटा प्याज और सीजनल अचार रखकर दिया जाता है। हाफ प्लेट (छोले और एक भठूरा) 20 रुपये और खाली छोले 15 रुपये में मिलते हैं। छोलों की खासियत यह है कि ये तीखे मसालेदार नहीं हैं, लेकिन स्वाद भरपूर है। कई बरसों से इस दुकान पर छोले-भठूरे खाने के लिए आनेवाले हीरा सोढ़ी का कहना है कि यहां के छोले-भठूरे खाने के बाद भारीपन महसूस नहीं होता। वैसे, इस दुकान के आसपास लस्सी की दो-तीन दुकानें भी हैं। छोले-भठूरे के साथ लस्सी पीकर स्वाद और बढ़ाया जा सकता है।
कोई छुट्टी नहीं
इस दुकान पर सुबह 8 बजे माल बिकना शुरू हो जाता है, जो शाम 4 बजे तक मिलता है। होली को छोड़कर साल भर कोई छुट्टी नहीं होती। दुकान के आगे बहुत बड़ा स्पेस है, जहां वीइकल पार्क किया जा सकता है।
कहां : पहाड़गंज की अमृत कौर मार्केट में
खासियत : कम मसाले के स्वादिष्ट छोले-भठूरे
कीमत : 30 रु. में फुल प्लेट या 20 रु. में हाफ प्लेट
छुट्टी : होली को छोड़ कोई छुट्टी नहीं
गंजेपन से कैसे पाएं निजात
गंजेपन को दूर करने के लिए आजकल मार्केट में कई अडवांस तकनीक हैं। मोटे तौर पर इस पूरे प्रॉसेस को हेयर रेस्टोरेश
न कहा जाता है। हेयर रेस्टोरेशन के दो तरीके हैं। पहला सर्जिकल और दूसरा नॉन-सर्जिकल। सर्जिकल के तहत आता है हेयर ट्रांसप्लांटेशन और नॉन-सर्जिकल के तहत हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग आते हैं। सलमान खान ने फ्रंटल के लिए सर्जिकल तरीका अपनाया है और सिर के दूसरे हिस्सों के लिए नॉन-सर्जिकल। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये तरीके बिल्कुल सेफ हैं। पूरी जानकारी दे रहे हैं प्रभात गौड़ ।
सर्जिकल मैथडः हेयर ट्रांसप्लांटेशन
क्या है
हेयर ट्रांसप्लांटेशन एक ऐसा आर्टिस्टिक और सर्जिकल मैथड है, जिसकी मदद से सिर के पिछले व साइड वाले हिस्से से, दाढ़ी, छाती आदि से बालों को लेकर सिर के गंजे भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है। इंप्लांट किए गए ये बाल परमानेंट होते हैं। वजह यह कि सिर के पिछले और साइड वाले हिस्सों के बाल आमतौर पर नहीं झड़ते। इंप्लांट होने के तकरीबन दो हफ्ते बाद ये उगने शुरू हो जाते हैं और एक साल के बाद इनमें फुल इंप्रूवमेंट नजर आने लगता है और नेचरल बालों जैसे दिखने लगते हैं। इन बालों की खूबी यह है कि ये परमानेंट होते हैं और जिंदगी भर रहते हैं, हालांकि कुछ केस ऐसे भी देखे गए हैं, जिनमें ये बाल उम्र बढ़ने के साथ साथ खत्म हो जाते हैं। जिस एरिया से बाल लिए जाते हैं, उसे डोनर एरिया कहते हैं। बाल लेने के बाद वहां टांके लगा दिए जाते हैं। कुछ दिनों के बाद वह जगह सामान्य हो जाती है।
कैसे होता है
स्ट्रिप मैथड : पहले मरीज को लोकल एनास्थीसिया दिया जाता है। उसके बाद डोनर एरिया से आधे इंच की एक स्ट्रिप निकाल ली जाती है और उसे सिर के उस भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आधे इंच की एक स्ट्रिप में आमतौर पर दो से ढाई हजार तक फॉलिकल हो सकते हैं और एक फॉलिकल में दो से तीन बालों की रूट्स होती हैं। इंप्लांट करने के बाद डोनर एरिया में खुद घुल जाने वाले टांके लगा दिया जाते हैं। यह जगह कुछ दिनों बाद सामान्य हो जाती है। जिस एरिया में बाल लगाए जाते हैं, उस पर एक रात के लिए पट्टियां लगा दी जाती हैं, जिन्हें अगले दिन क्लिनिक में जाकर पेशेंट हटवा सकता है या खुद भी हटा सकता है। जहां तक दर्द का सवाल है तो यह उतना ही होता है जितना इंजेक्शन (यहां सिर को सुन्न करने का) लगवाने में होता है। सिर का हिस्सा सुन्न हो जाने के कारण बाद में दर्द नहीं होता।
एसयूई मैथड : स्ट्रिप मैथड में जहां डोनर एरिया से एक स्ट्रिप लेकर उसे इंप्लांट किया जाता है, वहीं एसयूई मैथड में एक-एक फॉलिकल को लेकर इंप्लांट किया जाता है। एक सिटिंग में 6 से 8 घंटे का समय लग जाता है। इसमें 2000 तक फोलिकल इंसर्ट कर दिए जाते हैं। एडमिट होने की जरूरत नहीं होती। अगर इससे भी गंजापन दूर नहीं होता है तो मरीज को दूसरी सिटिंग के लिए बुलाया जा सकता है। दूसरी सिटिंग छह महीने से एक साल के बाद होती है।
खर्च
एसयूई मैथड में 120 से 150 रुपये प्रति फॉलिकल का खर्च आता है। महंगा होने की वजह यह है कि इसमें डॉक्टर को ही सारा काम करना होता है। एक-एक रूट को निकालकर रोपना पड़ता है, जबकि स्ट्रिप मैथड में काफी काम टेक्निशियन भी कर देते हैं। स्ट्रिप मैथड में प्रति फॉलिकल 60 से 65 रुपये का खर्च आता है।
देखभाल
- हेयर ट्रांसप्लांटेशन के बाद आनेवाले बाल बिल्कुल आपके नेचरल बालों की तरह ही होते हैं। ये बिल्कुल वैसे ही ग्रो करेंगे, जैसे नेचरल बाल करते हैं। ऐसे में जैसे नेचरल बालों की देखरेख होती है, ठीक वैसे ही इनकी भी होती है।
- आप इन्हें कटा सकते हैं, शैंपू कर सकते हैं, तेल लगा सकते हैं और कॉम्ब भी कर सकते हैं।
- इन बालों को आप कलर करा सकते हैं या फिर मनचाहा स्टाइल दे सकते हैं। आप इनकी कटिंग भी करवा सकते हैं। कुछ दिनों बाद ये फिर से आ जाएंगे।
- जो बाल ट्रांसप्लांट कराए गए हैं, वे ताउम्र बने रहते हैं। वे गिरते नहीं। हालांकि कुछेक मामलों में देखा गया है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ ये बाल गिरने लगते हैं।
- बाल चूंकि नेचरली ग्रो करते हैं इसलिए बालों का लुक थिन ही रहता है। कई बार लोग सर्जिकल और नॉन-सर्जिकल दोनों तरीकों को अपना लेते हैं।
डॉक्टर को बताएं अगर
- डायबीटीज, हाइपरटेंशन, मेटाबॉलिक डिस्ऑर्डर्स जैसी कोई क्रॉनिक बीमारी हो।
- बॉडी में अगर पेसमेकर जैसा कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस हो।
- किसी खास ड्रग्स से एलर्जी हो।
- अगर किसी खास बीमारी के लिए कोई दवाएं ले रहे हों।
दूसरा पहलू
इसमें दिक्कत यह होती है कि आपके सिर के दूसरे हिस्सों के नॉर्मल बाल पहले की रफ्तार से गिरते रह सकते हैं। ऐसे में ट्रांसप्लांट कराने के बाद भी लगातार कुछ खास दवाएं लेते रहने की जरूरत है, जिससे बाकी के बालों को गिरने से बचाया जा सके या उनके गिरने की रफ्तार को कम किया जा सके। ट्रांसप्लांटेशन के बाद अगर बालों का गिरना जारी रहे तो मरीज के पास उस जगह पर दोबारा ट्रांसप्लांटेशन कराने का ऑप्शन है, लेकिन इसमें यह देखना होगा कि डोनर एरिया पर उसके लायक बाल बचे भी हैं कि नहीं। डोनर एरिया पर ज्यादा बाल न होने की हालत में दोबारा ट्रांसप्लांटेशन संभव नहीं हो पाता। अगर बाल हैं, तो करा सकते हैं।
नॉन-सर्जिकल मैथड : हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग
हेयर वीविंग
हेयर वीविंग एक ऐसी टेक्निक है, जिसके जरिए नॉर्मल ह्यूमन हेयर या सिंथेटिक हेयर को खोपड़ी के उस भाग पर वीव कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आमतौर पर हेयर कटिंग कराने के बाद जो बाल मिलते हैं, उन्हें हेयर मैन्युफैक्चरर को बेच दिया जाता है। उसके बाद इन्हीं बालों को वीविंग के काम में यूज किया जाता है। ये थोड़े महंगे होते हैं, जबकि दूसरी तरफ सिंथेटिक हेयर नॉर्मल हेयर के मुकाबले थोड़े सस्ते होते हैं। सिंथेटिक हेयर कई तरह के सिंथेटिक फाइबर के बने होते हैं। बॉलिवुड में अक्षय खन्ना, अमिताभ बच्चन, सनी देओल और सुरेश ओबेराय ने हेयर वीविंग कराई है।
कैसे होती है
जहां-जहां बाल नहीं हैं, वहां-वहां हेयर यूनिट लगाई जाती है। इसके लिए सिर पर मौजूद तीन साइड के बालों की मदद से मशीन और धागे के जरिए एक बेस बनाते हैं। इस बेस के ऊपर हेयर यूनिट को स्टिच कर दिया जाता है। इस पूरे प्रॉसेस में दो घंटे लगते हैं और एक ही सिटिंग में काम पूरा हो जाता है। डेढ़ महीने के बाद जब आपके ओरिजनल बाल ग्रो होते हैं तो बेस ढीला हो जाता है जिसके चलते स्टिच की गई यूनिट भी ढीली हो जाती हैं। इन्हें ठीक कराने के लिए एक्सपर्ट के पास जाना पड़ता है।
- ये बाल सेमी-परमानेंट होते हैं। हर 15 दिन के बाद इनकी सर्विसिंग करानी पड़ती है। सर्विसिंग के काम में दो घंटे का वक्त लग जाता है।
- जो लोग अच्छी तरह से मेनटेन कर लेते हैं, उन्हें दो महीने बाद सर्विस की जरूरत होती है।
- देखभाल बिल्कुल नेचरल बालों की तरह ही करनी है। ऑयल यूज नहीं करना है। मोटे दांतों वाले कंघे का यूज किया जाता है।
- हर 15 दिनों के बाद होनेवाली सर्विस में 500 से 1500 रुपये तक का खर्च आ जाता है।
- इनकी लाइफ कम होती है। छह महीने से एक साल तक चल जाते हैं। हालांकि अच्छी देखभाल की जाए तो चार साल तक चल जाते हैं। एक बार बाल खराब हो जाने के बाद वीविंग का पूरा प्रॉसिजर दोहराना पड़ता है।
- इसे प्रॉसिजर में कई पेशेंट्स को दर्द होता है और यह दर्द पूरे एक दिन रहता है, जिसे कम करने के लिए पेनकिलर्स दिए जाते हैं।
बॉन्डिंग
बॉन्डिंग भी नॉन-सर्जिकल मैथड है। इसे क्लिपिंग सिस्टम कहा जाता है।
इसमें हेयर यूनिट के तीन साइड में क्लिप लगाते हैं। यह क्लिप यूनिट के अंदर से लगाया जाता है। इस क्लिप की मदद से यूनिट को पहले से मौजूद बालों के साथ अटैच कर दिया जाता है। इन्हें दिन में लगा सकते हैं और रात को खोल कर रख सकते हैं, लेकिन यह आपकी सुविधा पर निर्भर है। ऐसा करना जरूरी नहीं है।
सर्विस कराने की जरूरत नहीं होती। हेयर कट करा सकते हैं, लेकिन हेयर ड्रेसर को यह पता होना चाहिए कि आपके ऑरिजनल और नकली बाल कौन से हैं। उसी के हिसाब से उसे कटिंग करनी होगी। इसमें प्रॉसिजर में 1 घंटे का वक्त लगता है और इसमें दर्द नहीं होता। खराब हो जाने के बाद इसे दोबारा करा सकते हैं।
सिलिकॉन सिस्टम
अगर आप दर्द भी नहीं चाहते और बॉन्डिंग भी नहीं चाहते तो आप इस सिस्टम को अपना सकते हैं।
इसमें आसपास के ऑरिजनल बालों को ट्रिम किया जाता है। इसके बाद उस पर ग्लू (सिलिकॉन जेल) लगाते हैं और फिर हेयर यूनिट को इस पर चिपका देते हैं।
यह एक से डेढ़ महीने तक फिक्स रहता है उसके बाद ढीला होने लगता है। ऐसे में सर्विस कराने की जरूरत होती है। सर्विस में डेढ़ घंटा लगता है और इसकी फीस होती है 1000 से 1500 रुपये।
टेपिंग
यह भी एक नॉन-सर्जिकल मैथड है जिसमें हेयर यूनिट का इस्तेमाल करते हैं। इस्तेमाल करने का तरीका अलग होता है।
इस प्रॉसिजर में एक टेप का इस्तेमाल किया जाता है, जो दो तरफ से स्टिकी होता है और ट्रांसपैरंट होता है। यह आम लोगों को नजर नहीं आता। दो स्टिकी सिरों में से एक सिर में लगती है और दूसरी यूनिट में।
इसमें भी 15 दिनों बाद सर्विस की जरूरत पड़ती है। लेकिन इसमें फायदा यह है कि कुछ फीस देकर सैलून में ही सर्विस करने का तरीका सीखा जा सकता है और फिर हर 15 दिन बाद खुद ही सर्विस की जा सकती है। जो लोग देश से बाहर ज्यादा रहते हैं, उनके लिए यह तरीका मुनासिब है।
नोट : इन चारों तरीकों का खर्च वीव किए जानेवाले बालों की क्वॉलिटी पर निर्भर करता है, गंजेपन की स्थिति या मैथड पर नहीं। बालों की क्वॉलिटी के हिसाब से आमतौर पर इसका खर्च पांच हजार से 80 हजार रुपये के बीच आता है।
विग
जिस तरह पहले विग यूज होती थी, उसी का अडवांस वर्जन आज भी यूज होता है, लेकिन हेयर वीविंग और विग में बहुत फर्क है। हेयर वीविंग सिर्फ उस जगह की जाती है, जहां गंजापन है, जबकि विग को फोरहेड लाइन से ईयर लाइन तक पूरा पहना जाता है, गंजापन भले ही कहीं पर भी हो। आजकल विग को लोग कम प्रेफर करते हैं क्योंकि पहनने के यह काफी टाइट लगती है।
बी केयरफुल
हेयर रेस्टोरेशन के ऊपर बताए गए तरीकों से वैसे तो कोई खास और स्थायी साइड इफेक्ट्स या नुकसान नहीं होता है, फिर भी कुछ पेशेंट्स को कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं। ये इस तरह हैं:
- हेयर रेस्टोरेशन के बाद पहले से मौजूद ओरिजनल बाल कुछ वक्त के लिए थिन हो सकते हैं। इस स्थिति को शॉक लॉस या शेडिंग के नाम से जाना जाता है। कुछ समय बाद यह स्थिति खुद-ब-खुद ठीक हो जाती है।
- खोपड़ी सुन्न हो सकती है या उसमें ढीलापन आ सकता है। यह भी कुछ महीनों में अपने आप ही ठीक हो जाता है।
- सिर में दर्द या खुजली की शिकायत हो सकती है।
- इंफेक्शन की भी आशंका होती है, जिसे एंटिबायोटिक्स के जरिए कुछ ही समय में ठीक कर दिया जाता है।
- कुछ दिनों के लिए आंखों और माथे पर सूजन आ सकती है।
दर्द गर्दन में हो या फिर घुटने में
दर्द गर्दन में हो या फिर घुटने में, जंजाल बन जाता है लेकिन थोड़ी सावधानी बरतें तो इससे बचा जा सकता है।
यही नहीं, अगर दर्द हो जाए तो भी सही इलाज और एक्सर्साइज से इससे छुटकारा पाया जा सकता है। गर्दन दर्द और घुटने के दर्द से जुड़ी समस्याओं और उनसे बचाव व इलाज के बारे में बता रही हैं प्रियंका सिंह :
कैसे-कैसे दर्द
हड्डी में किन्हीं वजहों से जॉइंट स्टिफ हो जाते हैं। इसे सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस कहा जाता है। इसमें कई बार हाथ और पैर में भी दर्द आ जाता है। पहले आमतौर पर ज्यादा उम्र में यह दिक्कत होती थी लेकिन सिडेंटरी (कम चलना-फिरना) लाइफस्टाइल की वजह से अब यह दर्द युवाओं में भी होने लगा है। गर्दन के दर्द में सबसे कॉमन यही है।
स्पाइन में सूजन आ जाए तो उसे एनक्लोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस कहा जाता है। यह सूजन किसी चोट आदि से भी सकती है और हड्डी में किसी दिक्कत की वजह से भी।
हमारी रीढ़ की हड्डी में सॉफ्ट मटीरियल होता है, जिसे डिस्क कहते हैं। बॉडी को गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं तो डिस्क बाहर आ जाती है। इस स्थिति को डिस्क बल्ज कहा जाता है। इस स्थिति में गर्दन में भारी दर्द होता है।
ट्रिगर पॉइंट्स (मसल्स के अंदर जो गांठें बन जाती हैं) की वजह से भी दर्द होता है। कई बार यह दर्द आंखों के आसपास तक भी पहुंच जाता है।
ऑस्टोपोरोसिस दर्द की वजह बनता है। इसमें हड्डी बेहद कमजोर और भुरभुरी हो जाती हैं। न्यूट्रिशन की कमी और मिनोपॉज के बाद अक्सर महिलाएं इससे पीड़ित हो जाती हैं। इसके लिए कैल्शियम के साथ विटामिन-डी की टैब्लेट भी दी जाती है और कुछ देर सूरज की रोशनी में रहने की सलाह भी दी जाती है। गर्दन में दर्द की और भी वजहें हो सकती हैं।
माइक्रोट्रॉमा (छोटी-मोटी अंदरूनी चोटें) दर्द की वजह बनती हैं। ड्रिल आदि पर काम करनेवालों की बॉडी में बहुत वाइब्रेशन होते हैं, जिनकी वजह से दर्द की आशंका बढ़ जाती है।
दर्द की वजहें
तनाव : स्ट्रेस की वजह से मसल्स स्पाज्म में चली जाती हैं और दर्द की वजह बनती हैं।
गलत पॉश्चर : घंटों सिर झुकाकर कंप्यूटर पर काम करने, लिखने-पढ़ने और बेड पर आधा लेटकर टीवी देखने से दर्द हो सकता है।
मोटा तकिया : कई लोग बहुत मोटा तकिया और कुशन लगाकर सोते हैं, जोकि गलत है।
प्रेग्नेंसी : प्रेग्नेंसी में स्पाइन पीछे को जाने लगती है। इस पोजिशन को लॉडोर्स कहते हैं और इससे कमर व गर्दन में दर्द हो सकता है।
बढ़ती उम्र : उम्र बढ़ने के साथ बॉडी की हीलिंग कपैसिटी कम हो जाती है और छोटी-मोटी दिक्कतें दर्द की वजह बनती हैं।
सिडेंटरी लाइफस्टाइल : ऐसा प्रफेशन, जिसमें चलना-फिरना बहुत कम हो।
फोन पर लंबी बातें : कंधे और कान के बीच फोन लगाकर एक ओर सिर झुकाकर लंबे वक्त तक बातें न करें। अक्सर लोग ऐसा किचन में काम करते हुए, कंप्यूटर पर टाइप करते हुए और ड्राइविंग के वक्त करते हैं। ऐसा करने के बजाय हेड फोन या ईयरफोन लगा लें।
नीची स्लैब : किचन में स्लैब नीची है तो स्टूल रखकर काम करें। ज्यादा झुकने से गर्दन में दिक्कत हो सकती है।
उलटी-सीधी एक्सर्साइज : योगासनों की शुरुआत किसी एक्सपर्ट की देखरेख में ही करें।
कम तापमान : घर या ऑफिस में एसी-कूलर के जरिए तापमान 18-20 तक न ले जाएं। 26-27 डिग्री तापमान ठीक है। ज्यादा ठंड से दर्द हो सकता है।
हड़बड़ी और बेचैनी : हमेशा काम के बोझ में दबे रहना सही नहीं है। अच्छे से सांस लें। डीप ब्रीदिंग से तन और मन, दोनों रिलैक्स रहते हैं।
हो सकता है बचाव
रोजाना स्ट्रेचिंग एक्स्रसाइज करें। सुबह पूरी बॉडी को स्ट्रेच करें। ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा न खिंचें। इससे मसल्स में लचीलापन बना रहता है। फिटनेस के लिए अरोबिक्स (रनिंग, जॉगिंग, साइक्लिंग, स्विमिंग आदि) और मजबूती के लिए स्ट्रेंथनिंग एक्सर्साइज (वेट लिफ्टिंग आदि) जरूर करें। स्ट्रेचिंग रोजाना करें। साथ में चार दिन अरोबिक्स और बाकी तीन दिन स्ट्रेंथनिंग एक्स्रसाइज करें। डेस्क जॉब करनेवालों को ऑफिस में बैठे-बैठे गर्दन और घुटनों की एक्सर्साइज करते रहना चाहिए।
क्या करें
दर्द हो जाए और फौरन डॉक्टर को दिखाना मुमकिन नहीं हो तो पैरासिटामॉल (क्रॉसिन आदि) या कोई दूसरी पेन किलर ले सकते हैं। एक्सर्साइज व योगासन बंद कर आराम करें। वॉलिनी, मूव, वॉवेरन जेल, डीएफओ जेल आदि किसी दर्दनिवारक बाम या जेल से हल्के हाथ से मालिश कर सकते हैं। सिकाई भी कर सकते हैं। दो-चार दिन में दर्द ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएं। लेकिन अगर गर्दन में दर्द के साथ हाथ में झनझनाहट, सुन्नपना या कमजोरी लगे तो फौरन मेडिकल एडवाइस लेना जरूरी है।
फिजियोथेरपी है कारगर
मसल्स से जुडे़ दर्द में फिजियोथेरपी कारगर हो सकती है। अगर पॉश्चर की प्रॉब्लम है यानी मसल वीकनेस है तो इलेक्ट्रोथेरपी की जाती है। डायथमीर्, सर्वाइकल ट्रैक्शन, आईएफटी एंड अल्ट्रासॉनिक थेरपी, लेजर थेरपी आदि से दर्द कम किया जाता है। कॉलर या टेपिंग से मसल्स को आराम दिया जाता है ताकि वे और न खिंचें। इसके बाद मसल्स स्ट्रेचिंग और स्ट्रेंथनिंग के लिए थेरपी दी जाती है।
सिकाई कैसे करें
किसी ताजा चोट की वजह से दर्द हो रहा है तो आइस बैग से सिकाई करें। किसी कपड़े में बर्फ रखकर उसे चोट की जगह पर लगाएं। चोट लगने के 48-72 घंटे के बाद गर्म पानी से सिकाई कर सकते हैं। सिकाई रोजाना दिन में दो-तीन बार 10-10 मिनट के लिए करें। वैसे, गर्म और ठंडी सिकाई कब करें, इसका सीधा-सा फॉर्म्युला है - अगर चोट लगी है या प्रभावित एरिया लाल और सूजा हुआ है तो बर्फ से सिकाईं करें। अगर अकड़ाहट है तो गर्म पानी से सिकाईं करें। वह एरिया नरम पड़ जाएगा और आराम मिलेगा। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि तेज दर्द है तो ठंडी सिकाई करें और दर्द पुराना हो गया है तो गर्म। सिकाई वॉटर बॉटल, कपड़ा या सिंपल हॉट पैक से कर सकते हैं। हॉट पैक केमिस्ट के पास मिल जाएंगे। बिजली से चलनेवाले हॉट पैक न यूज करें। इनसे जल जाने का खतरा है।
क्या सावधानी बरतें
डिस्क बल्ज है तो बैठने और चलने से बचना चाहिए।
कोशिश करें कि गर्दन को झटका न लगे।
टेबल-चेयर के बीच अनुपात सही हो, ताकि झुकना न पड़े।
जितना हो सके, पीछे की ओर गर्दन करें क्योंकि ज्यादातर काम आगे को सिर झुकाकर करने पड़ते हैं।
कॉलर लगाने के फायदे-नुकसान
आमतौर पर कॉलर एक हफ्ते तक लगा सकते हैं। इससे मसल्स को सपोर्ट मिलता है लेकिन इसे आदत न बनाएं क्योंकि यह प्रोटेक्शन है, ट्रीटमेंट नहीं।
तकिया और गर्दन दर्द में कनेक्शन
बहुत ऊंचा तकिया लेने या तकिया बिल्कुल न लेने से पॉश्चर में प्रॉब्लम हो सकती है, खासकर उन लोगों को, जिनकी मसल्स कमजोर हैं। अगर आप सीधा सोते हैं तो बिल्कुल पतला तकिया ले सकते हैं। करवट से सोते हैं तो 2-3 इंच मोटाई का नॉर्मल तकिया लें। तकिया बहुत सॉफ्ट या हार्ड नहीं होना चाहिए। फाइबर या कॉटन, कोई भी तकिया ले सकते हैं। ध्यान रहे कि कॉटन अच्छी तरह से धुना गया हो और उसमें नरमी बाकी हो। तकिया इस तरह लगाएं कि कॉन्टैक्ट स्पेस काफी ज्यादा हो और कंधे व कान के बीच के एरिया को सपोर्ट मिले। जिनकी गर्दन में दर्द है, उन्हें भी पतला तकिया लगाना चाहिए। माकेर्ट में मिलनेवाले सर्वाइकल पिलो भी कुछ लोगों को सूट करते हैं।
आयुर्वेद और नैचुरोपैथी
योगराज गुग्गुल, महायोगराज गुग्गुल, रासना गुग्गुल या अमृत गुग्गुल आदि में से किसी भी गुग्गुल की दो-दो गोलियां सुबह-शाम पानी से ले सकते हैं।
वातनाशक तेल से गर्दन के पीछे हल्के हाथ से मालिश करें। मालिश के वक्त ध्यान रखें कि हड्डी पर दबाव न पड़े और आसपास के एरिया की मालिश हो जाए।
तांबे के बर्तन में रात भर पानी भरकर रखें और सुबह उठकर पी लें। इसमें एक चम्मच मेथी भी भिगोकर रख सकते हैं। सुबह पानी पीने के बाद मेथी दानों को चबा लें।
गाजर खाएं या गाजर का जूस पिएं। गाजर नैचरल पेनकिलर है।
कच्चे लहसुन की दो-दो कलियां रोजाना सुबह-शाम साबुत पानी के साथ निगलें।
पालक के नीचे के डंठलों का सूप या साग बनाकर खाएं।
एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी डालकर पिएं।
चावल, राजमा, उड़द दाल, चना दाल, भिंडी, अरबी, फूलगोभी और खट्टी चीजें न खाएं।
योगासन
भुजंगासन, अर्ध्यमत्स्येंदासन, मकरासन, गोमुखासन और कटिचक्रासन स्पाइन के लिए फायदेमंद हैं। इसके अलावा, गर्दन को मजबूत बनानेवाली सूक्ष्म क्रियाएं करें। सिर को पूरा गोल घुमाएं। एक बार दाईं से बाईं ओर फिर बाईं से दाईं ओर से पूरा चक्कर लगाएं।
कंधों को गोल-गोल घुमाएं।
हाथों को कंधों पर रखकर कोहनियां गोल-गोल घुमाएं।
पेट के बल लेटकर मुट्ठियों को ठोड़ी के नीचे रखें और सिर को दाएं-बाएं घुमाएं।
ये न करें : स्पाइन से जुड़े दर्द में शीर्षासन, विपरीतकर्णी और जानुशिरासन।
ध्यान रहे
पेनकिलर की आदत न डालें। दर्द हुआ और एक टैब्लेट खा ली, ऐसा नहीं करना चाहिए। लंबे समय तक पेनकिलर लेने से लिवर, किडनी आदि पर बुरा असर पड़ता है और गैस्ट्रिक अल्सर तक हो सकता है। इसी तरह पेन मैनेजमेंट के लिए डाइट पर खास ध्यान देना जरूरी है। दर्द न हो इसके लिए कैल्शियम, विटामिन-डी, एल्फा-थ्री व प्रोटीन (जैसे कि दूध, पनीर, स्प्राउट्स, दालें, गुड़ आदि) से भरपूर डाइट लें। इसके अलावा, गर्दन को चारों तरफ अच्छी तरह घुमाएं। हमारी बॉडी में जितने जॉइंट्स हैं, उनका अच्छी तरह मूवमेंट करते रहना चाहिए वरना उनके जाम होने या खिंचने की आशंका होती है।
घुटने का दर्द
घुटने के दर्द की वजहें भी गर्दन दर्द से मिलती-जुलती हैं। लाइफस्टाइल, टेंशन और खराब पॉश्चर के अलावा मोटापा भी घुटने के दर्द की बड़ी वजह होता है।
अचानक किसी नस के खिंचने या चोट लगने से घुटने में दर्द हो सकता है। इसके अलावा, कार्टिलेज में टूट-फूट या जॉइंट्स को कवर करनेवाले कैप्सूल के टाइट होने या हड्डियों का सही तालमेल न होने की वजह से दर्द हो सकता है।
उम्र बढ़ने के साथ घुटने में दर्द होने की आशंका बढ़ जाती है। 55 साल से ज्यादा की उम्र में जोड़ों में दर्द आम है।
स्पोर्ट्स इंजरी और गठिया बाय भी दर्द की बड़ी वजहें हैं। स्पोर्ट्स इंजरी में थाइ बोन और लेग बोन के बीच का कुशन (मिनेस्कस) डैमेज हो जाता है।
पुरुषों में यूरिक एसिड बढ़ने और महिलाओं में मिनोपॉज के बाद दर्द हो सकता है।
प्रेग्नेंसी में भी कई बार कार्टलेज डेमेज हो जाता है।
बचे रह सकते हैं दर्द से
अपने घुटनों को लगातार चलाते रहें। इससे वे सेहतमंद रहेंगे। हफ्ते में तीन दिन वॉकिंग, जॉगिंग, डांस या दूसरी तरह की अरोबिक्स एक्सरसाइज करें तो घुटने मजबूत रहेंगे। इसके अलावा घुटने के जॉइंट के आसपास की मसल्स और कैप्सूल्स की रेग्युलर स्टेचिंग करें। हमेशा अच्छी क्वॉलिटी के जूते या सैंडल पहनें। हील्स कम पहनें।
दर्द हो तो...
अगर चोट लगने की वजह से घुटने में दर्द हो जाए तो फिजियोथेरपिस्ट को दिखाएं। फौरन ऐसा मुमकिन नहीं है तो RICE का फॉर्म्युला अपनाएं।
REST: आराम करें। ज्यादा घूमे-फिरे नहीं, न ही देर तक खड़े रहें।
ICE: एक कपड़े या बैग में बर्फ रखें और दिन में 4-5 बार 10-10 मिनट के लिए दर्द की जगह पर लगाएं।
COMPRESSION: घुटने पर क्रेप बैंडेज या नी कैप लगाएं। बैंडेज ज्यादा टाइट या लूज न हो।
ELEVATION: लेटते वक्त पैर के नीचे तकिया रख लें ताकि घुटना थोड़ा ऊंचा रहे।
घुटने में चोट के बाद मेडिकल एडवाइस जरूर लें क्योंकि हो सकता है कि दर्द कुछ दिनों में चला जाए लेकिन कई बार मसल्स में हमेशा के लिए कमजोरी बनी रह जाती है। फिजियोथेरपिस्ट इसमें मददगार हो सकते हैं।
अगर दर्द की वजह चोट लगना नहीं है, घुटने के आसपास सूजन नहीं है और किसी पॉश्चर में रहने की वजह से दर्द की आशंका है तो ऑस्टियोऑर्थराटिस हो सकता है। फौरन मेडिकल एडवाइस नहीं ले सकते तो हॉट वॉटर बॉटल से सिकाई करें। थोड़ी ऊंचाई से घुटने पर गर्म पानी डाल सकते हैं। घुटने को ज्यादा स्ट्रेच न करें।
अगर दर्द अचानक या धीरे-धीरे आता है लेकिन चोट इसकी वजह नहीं है और घुटने के आसपास सूजन और लालिमा है और दर्द रात को बढ़ जाता है तो इसकी वजह इन्फेक्शन या गठिया बाय हो सकता है। फौरन ऑथोर्पेडिशियन को दिखाएं।
दर्द में बरतें सावधानी
जमीन पर न बैठें। जमीन पर उठने-बैठने से घुटनों पर कई गुना प्रेशर पड़ता है।
पालथी मारकर न बैठें।
इंडियन स्टाइल टॉयलेट यूज न करें।
हाई हील न पहनें। इससे घुटनों पर प्रेशर पड़ता है।
सीढ़ियों के बजाय लिफ्ट का इस्तेमाल करें।
एक्सर्साइज या योगासन न करें।
दौड़ने से बचें। ट्रेडमिल न करें।
ज्यादा ट्रैवलिंग न करें और ऊबड़-खाबड़ रास्तों से बचें।
ध्यान दें : शरीर के लिए खासकर जॉइंट्स के लिए असेंशल फैटी एसिड्स जरूरी हैं। इसके लिए रोजाना पांच बादाम खाएं। बादाम रात को पानी में भिगो दें और सुबह उठकर खा लें। अगर दर्द ऑस्टियो ऑर्थराइटिस की वजह है तो एक ग्लूकोज अमीन टैब्लेट रोजाना एक-दो महीने तक ले सकते हैं। यह जॉइंट्स के लिए फायदेमंद हो सकती है।
आयुर्वेद
अगर मोटापे की वजह से घुटनों में दर्द है तो सबसे पहले वजन घटाएं। फिर ऑयल थेरपी (तेल से मसाज), क्रोमो थेरपी (लाल रंग की लाइट से सेल्स को हिलाते हैं) और एक्सर्साइज करवाएं।
घुटने के दर्द में कोल्ड एंड हॉट पैक भी लगा सकते हैं। इसके लिए कॉटन की पट्टी को सादा पानी में भिगोकर पैर पर लपेटें। उसके ऊपर ऊनी कपड़ा लपेटें। इससे पैर को सेक मिलेगा।
कढ़ी पत्ता, तुलसी और नीम के 50-50 ग्राम पत्ते लें और एक लीटर नारियल तेल में उबाल लें। पहले तेल का रंग हरा होगा और फिर भूरा। ठंडा करके बोतल में भर लें। इससे घुटनों की मालिश करें।
कुर्सी पर बैठ जाएं और पैर को सामने दूसरी कुसीर् पर रख लें। थोड़ी ऊंचाई से गुनगुना पानी डालें।
ऐक्युप्रेशर और ऐक्युपंक्चर
ऐक्युप्रेशर से एनर्जी का फ्लो होता है। दर्द अगर इतना हो कि हिल नहीं सकते तो एक्युपंक्चर बहुत तेजी से काम करता है। इससे बॉडी से नैचरल पेनकिलर निकलते हैं। ऐक्युपंक्चर हमेशा एक्सपर्ट डॉक्टर (एक्युपंक्चरिस्ट) से ही कराएं। उसके पास एमबीबीएस डिग्री जरूरी है। गली-मुहल्ले में बैठनेवाले झोलाछाप लोगों से न कराएं। ऐक्युपंक्चर में 10 दिन की एक सिटिंग होती है। तेज दर्द में ऐसी एक सिटिंग और पुराने दर्द में तीन सिटिंग्स में मरीज को काफी फायदा हो जाता है। तेज दर्द में 10 से 25 दिन और पुराने दर्द में 45 दिन की एक्युप्रेशर थेरपी काफी होती है।
कब बदलवाएं घुटना
अगर कोई बीमारी नहीं है तो भी 50-60 साल की उम्र से घुटनों का दर्द सता सकता है। दरअसल, हमारे जॉइंट्स काफी स्मूद होते हैं लेकिन उम्र बढ़ने के बाद इनमें कई बार क्रेटर बनने लगते हैं। खासकर महिलाओं में कार्टिलेज सॉफ्ट हो जाता है। दवा और एक्सर्साइज से आराम नहीं आ रहा और पेनकिलर बार-बार लेना पड़ रहा है, दर्द बर्दाश्त से बाहर हो, चलने में छड़ी की जरूरत महसूस हो रही हो तो ऑपरेशन की जरूरत
अगर मोटापे की वजह से घुटनों में दर्द है
सीढ़ियों के बजाय लिफ्ट का इस्तेमाल करें।
एक्सर्साइज या योगासन न करें।
दौड़ने से बचें। ट्रेडमिल न करें।
ज्यादा ट्रैवलिंग न करें और ऊबड़-खाबड़ रास्तों से बचें।
ध्यान दें : शरीर के लिए खासकर जॉइंट्स के लिए असेंशल फैटी एसिड्स जरूरी हैं। इसके लिए रोजाना पांच बादाम खाएं। बादाम रात को पानी में भिगो दें और सुबह उठकर खा लें। अगर दर्द ऑस्टियो ऑर्थराइटिस की वजह है तो एक ग्लूकोज अमीन टैब्लेट रोजाना एक-दो महीने तक ले सकते हैं। यह जॉइंट्स के लिए फायदेमंद हो सकती है।
आयुर्वेद
अगर मोटापे की वजह से घुटनों में दर्द है तो सबसे पहले वजन घटाएं। फिर ऑयल थेरपी (तेल से मसाज), क्रोमो थेरपी (लाल रंग की लाइट से सेल्स को हिलाते हैं) और एक्सर्साइज करवाएं।
घुटने के दर्द में कोल्ड एंड हॉट पैक भी लगा सकते हैं। इसके लिए कॉटन की पट्टी को सादा पानी में भिगोकर पैर पर लपेटें। उसके ऊपर ऊनी कपड़ा लपेटें। इससे पैर को सेक मिलेगा।
कढ़ी पत्ता, तुलसी और नीम के 50-50 ग्राम पत्ते लें और एक लीटर नारियल तेल में उबाल लें। पहले तेल का रंग हरा होगा और फिर भूरा। ठंडा करके बोतल में भर लें। इससे घुटनों की मालिश करें।
कुर्सी पर बैठ जाएं और पैर को सामने दूसरी कुसीर् पर रख लें। थोड़ी ऊंचाई से गुनगुना पानी डालें।
ऐक्युप्रेशर और ऐक्युपंक्चर
ऐक्युप्रेशर से एनर्जी का फ्लो होता है। दर्द अगर इतना हो कि हिल नहीं सकते तो एक्युपंक्चर बहुत तेजी से काम करता है। इससे बॉडी से नैचरल पेनकिलर निकलते हैं। ऐक्युपंक्चर हमेशा एक्सपर्ट डॉक्टर (एक्युपंक्चरिस्ट) से ही कराएं। उसके पास एमबीबीएस डिग्री जरूरी है। गली-मुहल्ले में बैठनेवाले झोलाछाप लोगों से न कराएं। ऐक्युपंक्चर में 10 दिन की एक सिटिंग होती है। तेज दर्द में ऐसी एक सिटिंग और पुराने दर्द में तीन सिटिंग्स में मरीज को काफी फायदा हो जाता है। तेज दर्द में 10 से 25 दिन और पुराने दर्द में 45 दिन की एक्युप्रेशर थेरपी काफी होती है।
कब बदलवाएं घुटना
अगर कोई बीमारी नहीं है तो भी 50-60 साल की उम्र से घुटनों का दर्द सता सकता है। दरअसल, हमारे जॉइंट्स काफी स्मूद होते हैं लेकिन उम्र बढ़ने के बाद इनमें कई बार क्रेटर बनने लगते हैं। खासकर महिलाओं में कार्टिलेज सॉफ्ट हो जाता है। दवा और एक्सर्साइज से आराम नहीं आ रहा और पेनकिलर बार-बार लेना पड़ रहा है, दर्द बर्दाश्त से बाहर हो, चलने में छड़ी की जरूरत महसूस हो रही हो तो ऑपरेशन की जरूरत हो सकती है।
एक्सर्साइज या योगासन न करें।
दौड़ने से बचें। ट्रेडमिल न करें।
ज्यादा ट्रैवलिंग न करें और ऊबड़-खाबड़ रास्तों से बचें।
ध्यान दें : शरीर के लिए खासकर जॉइंट्स के लिए असेंशल फैटी एसिड्स जरूरी हैं। इसके लिए रोजाना पांच बादाम खाएं। बादाम रात को पानी में भिगो दें और सुबह उठकर खा लें। अगर दर्द ऑस्टियो ऑर्थराइटिस की वजह है तो एक ग्लूकोज अमीन टैब्लेट रोजाना एक-दो महीने तक ले सकते हैं। यह जॉइंट्स के लिए फायदेमंद हो सकती है।
आयुर्वेद
अगर मोटापे की वजह से घुटनों में दर्द है तो सबसे पहले वजन घटाएं। फिर ऑयल थेरपी (तेल से मसाज), क्रोमो थेरपी (लाल रंग की लाइट से सेल्स को हिलाते हैं) और एक्सर्साइज करवाएं।
घुटने के दर्द में कोल्ड एंड हॉट पैक भी लगा सकते हैं। इसके लिए कॉटन की पट्टी को सादा पानी में भिगोकर पैर पर लपेटें। उसके ऊपर ऊनी कपड़ा लपेटें। इससे पैर को सेक मिलेगा।
कढ़ी पत्ता, तुलसी और नीम के 50-50 ग्राम पत्ते लें और एक लीटर नारियल तेल में उबाल लें। पहले तेल का रंग हरा होगा और फिर भूरा। ठंडा करके बोतल में भर लें। इससे घुटनों की मालिश करें।
कुर्सी पर बैठ जाएं और पैर को सामने दूसरी कुसीर् पर रख लें। थोड़ी ऊंचाई से गुनगुना पानी डालें।
ऐक्युप्रेशर और ऐक्युपंक्चर
ऐक्युप्रेशर से एनर्जी का फ्लो होता है। दर्द अगर इतना हो कि हिल नहीं सकते तो एक्युपंक्चर बहुत तेजी से काम करता है। इससे बॉडी से नैचरल पेनकिलर निकलते हैं। ऐक्युपंक्चर हमेशा एक्सपर्ट डॉक्टर (एक्युपंक्चरिस्ट) से ही कराएं। उसके पास एमबीबीएस डिग्री जरूरी है। गली-मुहल्ले में बैठनेवाले झोलाछाप लोगों से न कराएं। ऐक्युपंक्चर में 10 दिन की एक सिटिंग होती है। तेज दर्द में ऐसी एक सिटिंग और पुराने दर्द में तीन सिटिंग्स में मरीज को काफी फायदा हो जाता है। तेज दर्द में 10 से 25 दिन और पुराने दर्द में 45 दिन की एक्युप्रेशर थेरपी काफी होती है।
कब बदलवाएं घुटना
अगर कोई बीमारी नहीं है तो भी 50-60 साल की उम्र से घुटनों का दर्द सता सकता है। दरअसल, हमारे जॉइंट्स काफी स्मूद होते हैं लेकिन उम्र बढ़ने के बाद इनमें कई बार क्रेटर बनने लगते हैं। खासकर महिलाओं में कार्टिलेज सॉफ्ट हो जाता है। दवा और एक्सर्साइज से आराम नहीं आ रहा और पेनकिलर बार-बार लेना पड़ रहा है, दर्द बर्दाश्त से बाहर हो, चलने में छड़ी की जरूरत महसूस हो रही हो तो ऑपरेशन की जरूरत हो सकती है।
पेन क्यों लेना?
दर्द गर्दन में हो या फिर घुटने में, जंजाल बन जाता है लेकिन थोड़ी सावधानी बरतें तो इससे बचा जा सकता है।
यही नहीं, अगर दर्द हो जाए तो भी सही इलाज और एक्सर्साइज से इससे छुटकारा पाया जा सकता है। गर्दन दर्द और घुटने के दर्द से जुड़ी समस्याओं और उनसे बचाव व इलाज के बारे में बता रही हैं प्रियंका सिंह :
कैसे-कैसे दर्द
हड्डी में किन्हीं वजहों से जॉइंट स्टिफ हो जाते हैं। इसे सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस कहा जाता है। इसमें कई बार हाथ और पैर में भी दर्द आ जाता है। पहले आमतौर पर ज्यादा उम्र में यह दिक्कत होती थी लेकिन सिडेंटरी (कम चलना-फिरना) लाइफस्टाइल की वजह से अब यह दर्द युवाओं में भी होने लगा है। गर्दन के दर्द में सबसे कॉमन यही है।
स्पाइन में सूजन आ जाए तो उसे एनक्लोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस कहा जाता है। यह सूजन किसी चोट आदि से भी सकती है और हड्डी में किसी दिक्कत की वजह से भी।
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हमारी रीढ़ की हड्डी में सॉफ्ट मटीरियल होता है, जिसे डिस्क कहते हैं। बॉडी को गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं तो डिस्क बाहर आ जाती है। इस स्थिति को डिस्क बल्ज कहा जाता है। इस स्थिति में गर्दन में भारी दर्द होता है।
ट्रिगर पॉइंट्स (मसल्स के अंदर जो गांठें बन जाती हैं) की वजह से भी दर्द होता है। कई बार यह दर्द आंखों के आसपास तक भी पहुंच जाता है।
ऑस्टोपोरोसिस दर्द की वजह बनता है। इसमें हड्डी बेहद कमजोर और भुरभुरी हो जाती हैं। न्यूट्रिशन की कमी और मिनोपॉज के बाद अक्सर महिलाएं इससे पीड़ित हो जाती हैं। इसके लिए कैल्शियम के साथ विटामिन-डी की टैब्लेट भी दी जाती है और कुछ देर सूरज की रोशनी में रहने की सलाह भी दी जाती है। गर्दन में दर्द की और भी वजहें हो सकती हैं।
माइक्रोट्रॉमा (छोटी-मोटी अंदरूनी चोटें) दर्द की वजह बनती हैं। ड्रिल आदि पर काम करनेवालों की बॉडी में बहुत वाइब्रेशन होते हैं, जिनकी वजह से दर्द की आशंका बढ़ जाती है।
दर्द की वजहें
तनाव : स्ट्रेस की वजह से मसल्स स्पाज्म में चली जाती हैं और दर्द की वजह बनती हैं।
गलत पॉश्चर : घंटों सिर झुकाकर कंप्यूटर पर काम करने, लिखने-पढ़ने और बेड पर आधा लेटकर टीवी देखने से दर्द हो सकता है।
मोटा तकिया : कई लोग बहुत मोटा तकिया और कुशन लगाकर सोते हैं, जोकि गलत है।
प्रेग्नेंसी : प्रेग्नेंसी में स्पाइन पीछे को जाने लगती है। इस पोजिशन को लॉडोर्स कहते हैं और इससे कमर व गर्दन में दर्द हो सकता है।
बढ़ती उम्र : उम्र बढ़ने के साथ बॉडी की हीलिंग कपैसिटी कम हो जाती है और छोटी-मोटी दिक्कतें दर्द की वजह बनती हैं।
सिडेंटरी लाइफस्टाइल : ऐसा प्रफेशन, जिसमें चलना-फिरना बहुत कम हो।
फोन पर लंबी बातें : कंधे और कान के बीच फोन लगाकर एक ओर सिर झुकाकर लंबे वक्त तक बातें न करें। अक्सर लोग ऐसा किचन में काम करते हुए, कंप्यूटर पर टाइप करते हुए और ड्राइविंग के वक्त करते हैं। ऐसा करने के बजाय हेड फोन या ईयरफोन लगा लें।
नीची स्लैब : किचन में स्लैब नीची है तो स्टूल रखकर काम करें। ज्यादा झुकने से गर्दन में दिक्कत हो सकती है।
उलटी-सीधी एक्सर्साइज : योगासनों की शुरुआत किसी एक्सपर्ट की देखरेख में ही करें।
कम तापमान : घर या ऑफिस में एसी-कूलर के जरिए तापमान 18-20 तक न ले जाएं। 26-27 डिग्री तापमान ठीक है। ज्यादा ठंड से दर्द हो सकता है।
हड़बड़ी और बेचैनी : हमेशा काम के बोझ में दबे रहना सही नहीं है। अच्छे से सांस लें। डीप ब्रीदिंग से तन और मन, दोनों रिलैक्स रहते हैं।
हो सकता है बचाव
रोजाना स्ट्रेचिंग एक्स्रसाइज करें। सुबह पूरी बॉडी को स्ट्रेच करें। ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा न खिंचें। इससे मसल्स में लचीलापन बना रहता है। फिटनेस के लिए अरोबिक्स (रनिंग, जॉगिंग, साइक्लिंग, स्विमिंग आदि) और मजबूती के लिए स्ट्रेंथनिंग एक्सर्साइज (वेट लिफ्टिंग आदि) जरूर करें। स्ट्रेचिंग रोजाना करें। साथ में चार दिन अरोबिक्स और बाकी तीन दिन स्ट्रेंथनिंग एक्स्रसाइज करें। डेस्क जॉब करनेवालों को ऑफिस में बैठे-बैठे गर्दन और घुटनों की एक्सर्साइज करते रहना चाहिए।
क्या करें
दर्द हो जाए और फौरन डॉक्टर को दिखाना मुमकिन नहीं हो तो पैरासिटामॉल (क्रॉसिन आदि) या कोई दूसरी पेन किलर ले सकते हैं। एक्सर्साइज व योगासन बंद कर आराम करें। वॉलिनी, मूव, वॉवेरन जेल, डीएफओ जेल आदि किसी दर्दनिवारक बाम या जेल से हल्के हाथ से मालिश कर सकते हैं। सिकाई भी कर सकते हैं। दो-चार दिन में दर्द ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएं। लेकिन अगर गर्दन में दर्द के साथ हाथ में झनझनाहट, सुन्नपना या कमजोरी लगे तो फौरन मेडिकल एडवाइस लेना जरूरी है।
फिजियोथेरपी है कारगर
मसल्स से जुडे़ दर्द में फिजियोथेरपी कारगर हो सकती है। अगर पॉश्चर की प्रॉब्लम है यानी मसल वीकनेस है तो इलेक्ट्रोथेरपी की जाती है। डायथमीर्, सर्वाइकल ट्रैक्शन, आईएफटी एंड अल्ट्रासॉनिक थेरपी, लेजर थेरपी आदि से दर्द कम किया जाता है। कॉलर या टेपिंग से मसल्स को आराम दिया जाता है ताकि वे और न खिंचें। इसके बाद मसल्स स्ट्रेचिंग और स्ट्रेंथनिंग के लिए थेरपी दी जाती है।
सिकाई कैसे करें
किसी ताजा चोट की वजह से दर्द हो रहा है तो आइस बैग से सिकाई करें। किसी कपड़े में बर्फ रखकर उसे चोट की जगह पर लगाएं। चोट लगने के 48-72 घंटे के बाद गर्म पानी से सिकाई कर सकते हैं। सिकाई रोजाना दिन में दो-तीन बार 10-10 मिनट के लिए करें। वैसे, गर्म और ठंडी सिकाई कब करें, इसका सीधा-सा फॉर्म्युला है - अगर चोट लगी है या प्रभावित एरिया लाल और सूजा हुआ है तो बर्फ से सिकाईं करें। अगर अकड़ाहट है तो गर्म पानी से सिकाईं करें। वह एरिया नरम पड़ जाएगा और आराम मिलेगा। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि तेज दर्द है तो ठंडी सिकाई करें और दर्द पुराना हो गया है तो गर्म। सिकाई वॉटर बॉटल, कपड़ा या सिंपल हॉट पैक से कर सकते हैं। हॉट पैक केमिस्ट के पास मिल जाएंगे। बिजली से चलनेवाले हॉट पैक न यूज करें। इनसे जल जाने का खतरा है।
क्या सावधानी बरतें
डिस्क बल्ज है तो बैठने और चलने से बचना चाहिए।
कोशिश करें कि गर्दन को झटका न लगे।
टेबल-चेयर के बीच अनुपात सही हो, ताकि झुकना न पड़े।
जितना हो सके, पीछे की ओर गर्दन करें क्योंकि ज्यादातर काम आगे को सिर झुकाकर करने पड़ते हैं।
कॉलर लगाने के फायदे-नुकसान
आमतौर पर कॉलर एक हफ्ते तक लगा सकते हैं। इससे मसल्स को सपोर्ट मिलता है लेकिन इसे आदत न बनाएं क्योंकि यह प्रोटेक्शन है, ट्रीटमेंट नहीं।
तकिया और गर्दन दर्द में कनेक्शन
बहुत ऊंचा तकिया लेने या तकिया बिल्कुल न लेने से पॉश्चर में प्रॉब्लम हो सकती है, खासकर उन लोगों को, जिनकी मसल्स कमजोर हैं। अगर आप सीधा सोते हैं तो बिल्कुल पतला तकिया ले सकते हैं। करवट से सोते हैं तो 2-3 इंच मोटाई का नॉर्मल तकिया लें। तकिया बहुत सॉफ्ट या हार्ड नहीं होना चाहिए। फाइबर या कॉटन, कोई भी तकिया ले सकते हैं। ध्यान रहे कि कॉटन अच्छी तरह से धुना गया हो और उसमें नरमी बाकी हो। तकिया इस तरह लगाएं कि कॉन्टैक्ट स्पेस काफी ज्यादा हो और कंधे व कान के बीच के एरिया को सपोर्ट मिले। जिनकी गर्दन में दर्द है, उन्हें भी पतला तकिया लगाना चाहिए। माकेर्ट में मिलनेवाले सर्वाइकल पिलो भी कुछ लोगों को सूट करते हैं।
आयुर्वेद और नैचुरोपैथी
योगराज गुग्गुल, महायोगराज गुग्गुल, रासना गुग्गुल या अमृत गुग्गुल आदि में से किसी भी गुग्गुल की दो-दो गोलियां सुबह-शाम पानी से ले सकते हैं।
वातनाशक तेल से गर्दन के पीछे हल्के हाथ से मालिश करें। मालिश के वक्त ध्यान रखें कि हड्डी पर दबाव न पड़े और आसपास के एरिया की मालिश हो जाए।
तांबे के बर्तन में रात भर पानी भरकर रखें और सुबह उठकर पी लें। इसमें एक चम्मच मेथी भी भिगोकर रख सकते हैं। सुबह पानी पीने के बाद मेथी दानों को चबा लें।
गाजर खाएं या गाजर का जूस पिएं। गाजर नैचरल पेनकिलर है।
कच्चे लहसुन की दो-दो कलियां रोजाना सुबह-शाम साबुत पानी के साथ निगलें।
पालक के नीचे के डंठलों का सूप या साग बनाकर खाएं।
एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी डालकर पिएं।
चावल, राजमा, उड़द दाल, चना दाल, भिंडी, अरबी, फूलगोभी और खट्टी चीजें न खाएं।
योगासन
भुजंगासन, अर्ध्यमत्स्येंदासन, मकरासन, गोमुखासन और कटिचक्रासन स्पाइन के लिए फायदेमंद हैं। इसके अलावा, गर्दन को मजबूत बनानेवाली सूक्ष्म क्रियाएं करें। सिर को पूरा गोल घुमाएं। एक बार दाईं से बाईं ओर फिर बाईं से दाईं ओर से पूरा चक्कर लगाएं।
कंधों को गोल-गोल घुमाएं।
हाथों को कंधों पर रखकर कोहनियां गोल-गोल घुमाएं।
पेट के बल लेटकर मुट्ठियों को ठोड़ी के नीचे रखें और सिर को दाएं-बाएं घुमाएं।
ये न करें : स्पाइन से जुड़े दर्द में शीर्षासन, विपरीतकर्णी और जानुशिरासन।
ध्यान रहे
पेनकिलर की आदत न डालें। दर्द हुआ और एक टैब्लेट खा ली, ऐसा नहीं करना चाहिए। लंबे समय तक पेनकिलर लेने से लिवर, किडनी आदि पर बुरा असर पड़ता है और गैस्ट्रिक अल्सर तक हो सकता है। इसी तरह पेन मैनेजमेंट के लिए डाइट पर खास ध्यान देना जरूरी है। दर्द न हो इसके लिए कैल्शियम, विटामिन-डी, एल्फा-थ्री व प्रोटीन (जैसे कि दूध, पनीर, स्प्राउट्स, दालें, गुड़ आदि) से भरपूर डाइट लें। इसके अलावा, गर्दन को चारों तरफ अच्छी तरह घुमाएं। हमारी बॉडी में जितने जॉइंट्स हैं, उनका अच्छी तरह मूवमेंट करते रहना चाहिए वरना उनके जाम होने या खिंचने की आशंका होती है।
घुटने का दर्द
घुटने के दर्द की वजहें भी गर्दन दर्द से मिलती-जुलती हैं। लाइफस्टाइल, टेंशन और खराब पॉश्चर के अलावा मोटापा भी घुटने के दर्द की बड़ी वजह होता है।
अचानक किसी नस के खिंचने या चोट लगने से घुटने में दर्द हो सकता है। इसके अलावा, कार्टिलेज में टूट-फूट या जॉइंट्स को कवर करनेवाले कैप्सूल के टाइट होने या हड्डियों का सही तालमेल न होने की वजह से दर्द हो सकता है।
उम्र बढ़ने के साथ घुटने में दर्द होने की आशंका बढ़ जाती है। 55 साल से ज्यादा की उम्र में जोड़ों में दर्द आम है।
स्पोर्ट्स इंजरी और गठिया बाय भी दर्द की बड़ी वजहें हैं। स्पोर्ट्स इंजरी में थाइ बोन और लेग बोन के बीच का कुशन (मिनेस्कस) डैमेज हो जाता है।
पुरुषों में यूरिक एसिड बढ़ने और महिलाओं में मिनोपॉज के बाद दर्द हो सकता है।
प्रेग्नेंसी में भी कई बार कार्टलेज डेमेज हो जाता है।
बचे रह सकते हैं दर्द से
अपने घुटनों को लगातार चलाते रहें। इससे वे सेहतमंद रहेंगे। हफ्ते में तीन दिन वॉकिंग, जॉगिंग, डांस या दूसरी तरह की अरोबिक्स एक्सरसाइज करें तो घुटने मजबूत रहेंगे। इसके अलावा घुटने के जॉइंट के आसपास की मसल्स और कैप्सूल्स की रेग्युलर स्टेचिंग करें। हमेशा अच्छी क्वॉलिटी के जूते या सैंडल पहनें। हील्स कम पहनें।
दर्द हो तो...
अगर चोट लगने की वजह से घुटने में दर्द हो जाए तो फिजियोथेरपिस्ट को दिखाएं। फौरन ऐसा मुमकिन नहीं है तो RICE का फॉर्म्युला अपनाएं।
REST: आराम करें। ज्यादा घूमे-फिरे नहीं, न ही देर तक खड़े रहें।
ICE: एक कपड़े या बैग में बर्फ रखें और दिन में 4-5 बार 10-10 मिनट के लिए दर्द की जगह पर लगाएं।
COMPRESSION: घुटने पर क्रेप बैंडेज या नी कैप लगाएं। बैंडेज ज्यादा टाइट या लूज न हो।
ELEVATION: लेटते वक्त पैर के नीचे तकिया रख लें ताकि घुटना थोड़ा ऊंचा रहे।
घुटने में चोट के बाद मेडिकल एडवाइस जरूर लें क्योंकि हो सकता है कि दर्द कुछ दिनों में चला जाए लेकिन कई बार मसल्स में हमेशा के लिए कमजोरी बनी रह जाती है। फिजियोथेरपिस्ट इसमें मददगार हो सकते हैं।
अगर दर्द की वजह चोट लगना नहीं है, घुटने के आसपास सूजन नहीं है और किसी पॉश्चर में रहने की वजह से दर्द की आशंका है तो ऑस्टियोऑर्थराटिस हो सकता है। फौरन मेडिकल एडवाइस नहीं ले सकते तो हॉट वॉटर बॉटल से सिकाई करें। थोड़ी ऊंचाई से घुटने पर गर्म पानी डाल सकते हैं। घुटने को ज्यादा स्ट्रेच न करें।
अगर दर्द अचानक या धीरे-धीरे आता है लेकिन चोट इसकी वजह नहीं है और घुटने के आसपास सूजन और लालिमा है और दर्द रात को बढ़ जाता है तो इसकी वजह इन्फेक्शन या गठिया बाय हो सकता है। फौरन ऑथोर्पेडिशियन को दिखाएं।
दर्द में बरतें सावधानी
जमीन पर न बैठें। जमीन पर उठने-बैठने से घुटनों पर कई गुना प्रेशर पड़ता है।
पालथी मारकर न बैठें।
इंडियन स्टाइल टॉयलेट यूज न करें।
हाई हील न पहनें। इससे घुटनों पर प्रेशर पड़ता है।
यही नहीं, अगर दर्द हो जाए तो भी सही इलाज और एक्सर्साइज से इससे छुटकारा पाया जा सकता है। गर्दन दर्द और घुटने के दर्द से जुड़ी समस्याओं और उनसे बचाव व इलाज के बारे में बता रही हैं प्रियंका सिंह :
कैसे-कैसे दर्द
हड्डी में किन्हीं वजहों से जॉइंट स्टिफ हो जाते हैं। इसे सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस कहा जाता है। इसमें कई बार हाथ और पैर में भी दर्द आ जाता है। पहले आमतौर पर ज्यादा उम्र में यह दिक्कत होती थी लेकिन सिडेंटरी (कम चलना-फिरना) लाइफस्टाइल की वजह से अब यह दर्द युवाओं में भी होने लगा है। गर्दन के दर्द में सबसे कॉमन यही है।
स्पाइन में सूजन आ जाए तो उसे एनक्लोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस कहा जाता है। यह सूजन किसी चोट आदि से भी सकती है और हड्डी में किसी दिक्कत की वजह से भी।
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हमारी रीढ़ की हड्डी में सॉफ्ट मटीरियल होता है, जिसे डिस्क कहते हैं। बॉडी को गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं तो डिस्क बाहर आ जाती है। इस स्थिति को डिस्क बल्ज कहा जाता है। इस स्थिति में गर्दन में भारी दर्द होता है।
ट्रिगर पॉइंट्स (मसल्स के अंदर जो गांठें बन जाती हैं) की वजह से भी दर्द होता है। कई बार यह दर्द आंखों के आसपास तक भी पहुंच जाता है।
ऑस्टोपोरोसिस दर्द की वजह बनता है। इसमें हड्डी बेहद कमजोर और भुरभुरी हो जाती हैं। न्यूट्रिशन की कमी और मिनोपॉज के बाद अक्सर महिलाएं इससे पीड़ित हो जाती हैं। इसके लिए कैल्शियम के साथ विटामिन-डी की टैब्लेट भी दी जाती है और कुछ देर सूरज की रोशनी में रहने की सलाह भी दी जाती है। गर्दन में दर्द की और भी वजहें हो सकती हैं।
माइक्रोट्रॉमा (छोटी-मोटी अंदरूनी चोटें) दर्द की वजह बनती हैं। ड्रिल आदि पर काम करनेवालों की बॉडी में बहुत वाइब्रेशन होते हैं, जिनकी वजह से दर्द की आशंका बढ़ जाती है।
दर्द की वजहें
तनाव : स्ट्रेस की वजह से मसल्स स्पाज्म में चली जाती हैं और दर्द की वजह बनती हैं।
गलत पॉश्चर : घंटों सिर झुकाकर कंप्यूटर पर काम करने, लिखने-पढ़ने और बेड पर आधा लेटकर टीवी देखने से दर्द हो सकता है।
मोटा तकिया : कई लोग बहुत मोटा तकिया और कुशन लगाकर सोते हैं, जोकि गलत है।
प्रेग्नेंसी : प्रेग्नेंसी में स्पाइन पीछे को जाने लगती है। इस पोजिशन को लॉडोर्स कहते हैं और इससे कमर व गर्दन में दर्द हो सकता है।
बढ़ती उम्र : उम्र बढ़ने के साथ बॉडी की हीलिंग कपैसिटी कम हो जाती है और छोटी-मोटी दिक्कतें दर्द की वजह बनती हैं।
सिडेंटरी लाइफस्टाइल : ऐसा प्रफेशन, जिसमें चलना-फिरना बहुत कम हो।
फोन पर लंबी बातें : कंधे और कान के बीच फोन लगाकर एक ओर सिर झुकाकर लंबे वक्त तक बातें न करें। अक्सर लोग ऐसा किचन में काम करते हुए, कंप्यूटर पर टाइप करते हुए और ड्राइविंग के वक्त करते हैं। ऐसा करने के बजाय हेड फोन या ईयरफोन लगा लें।
नीची स्लैब : किचन में स्लैब नीची है तो स्टूल रखकर काम करें। ज्यादा झुकने से गर्दन में दिक्कत हो सकती है।
उलटी-सीधी एक्सर्साइज : योगासनों की शुरुआत किसी एक्सपर्ट की देखरेख में ही करें।
कम तापमान : घर या ऑफिस में एसी-कूलर के जरिए तापमान 18-20 तक न ले जाएं। 26-27 डिग्री तापमान ठीक है। ज्यादा ठंड से दर्द हो सकता है।
हड़बड़ी और बेचैनी : हमेशा काम के बोझ में दबे रहना सही नहीं है। अच्छे से सांस लें। डीप ब्रीदिंग से तन और मन, दोनों रिलैक्स रहते हैं।
हो सकता है बचाव
रोजाना स्ट्रेचिंग एक्स्रसाइज करें। सुबह पूरी बॉडी को स्ट्रेच करें। ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा न खिंचें। इससे मसल्स में लचीलापन बना रहता है। फिटनेस के लिए अरोबिक्स (रनिंग, जॉगिंग, साइक्लिंग, स्विमिंग आदि) और मजबूती के लिए स्ट्रेंथनिंग एक्सर्साइज (वेट लिफ्टिंग आदि) जरूर करें। स्ट्रेचिंग रोजाना करें। साथ में चार दिन अरोबिक्स और बाकी तीन दिन स्ट्रेंथनिंग एक्स्रसाइज करें। डेस्क जॉब करनेवालों को ऑफिस में बैठे-बैठे गर्दन और घुटनों की एक्सर्साइज करते रहना चाहिए।
क्या करें
दर्द हो जाए और फौरन डॉक्टर को दिखाना मुमकिन नहीं हो तो पैरासिटामॉल (क्रॉसिन आदि) या कोई दूसरी पेन किलर ले सकते हैं। एक्सर्साइज व योगासन बंद कर आराम करें। वॉलिनी, मूव, वॉवेरन जेल, डीएफओ जेल आदि किसी दर्दनिवारक बाम या जेल से हल्के हाथ से मालिश कर सकते हैं। सिकाई भी कर सकते हैं। दो-चार दिन में दर्द ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएं। लेकिन अगर गर्दन में दर्द के साथ हाथ में झनझनाहट, सुन्नपना या कमजोरी लगे तो फौरन मेडिकल एडवाइस लेना जरूरी है।
फिजियोथेरपी है कारगर
मसल्स से जुडे़ दर्द में फिजियोथेरपी कारगर हो सकती है। अगर पॉश्चर की प्रॉब्लम है यानी मसल वीकनेस है तो इलेक्ट्रोथेरपी की जाती है। डायथमीर्, सर्वाइकल ट्रैक्शन, आईएफटी एंड अल्ट्रासॉनिक थेरपी, लेजर थेरपी आदि से दर्द कम किया जाता है। कॉलर या टेपिंग से मसल्स को आराम दिया जाता है ताकि वे और न खिंचें। इसके बाद मसल्स स्ट्रेचिंग और स्ट्रेंथनिंग के लिए थेरपी दी जाती है।
सिकाई कैसे करें
किसी ताजा चोट की वजह से दर्द हो रहा है तो आइस बैग से सिकाई करें। किसी कपड़े में बर्फ रखकर उसे चोट की जगह पर लगाएं। चोट लगने के 48-72 घंटे के बाद गर्म पानी से सिकाई कर सकते हैं। सिकाई रोजाना दिन में दो-तीन बार 10-10 मिनट के लिए करें। वैसे, गर्म और ठंडी सिकाई कब करें, इसका सीधा-सा फॉर्म्युला है - अगर चोट लगी है या प्रभावित एरिया लाल और सूजा हुआ है तो बर्फ से सिकाईं करें। अगर अकड़ाहट है तो गर्म पानी से सिकाईं करें। वह एरिया नरम पड़ जाएगा और आराम मिलेगा। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि तेज दर्द है तो ठंडी सिकाई करें और दर्द पुराना हो गया है तो गर्म। सिकाई वॉटर बॉटल, कपड़ा या सिंपल हॉट पैक से कर सकते हैं। हॉट पैक केमिस्ट के पास मिल जाएंगे। बिजली से चलनेवाले हॉट पैक न यूज करें। इनसे जल जाने का खतरा है।
क्या सावधानी बरतें
डिस्क बल्ज है तो बैठने और चलने से बचना चाहिए।
कोशिश करें कि गर्दन को झटका न लगे।
टेबल-चेयर के बीच अनुपात सही हो, ताकि झुकना न पड़े।
जितना हो सके, पीछे की ओर गर्दन करें क्योंकि ज्यादातर काम आगे को सिर झुकाकर करने पड़ते हैं।
कॉलर लगाने के फायदे-नुकसान
आमतौर पर कॉलर एक हफ्ते तक लगा सकते हैं। इससे मसल्स को सपोर्ट मिलता है लेकिन इसे आदत न बनाएं क्योंकि यह प्रोटेक्शन है, ट्रीटमेंट नहीं।
तकिया और गर्दन दर्द में कनेक्शन
बहुत ऊंचा तकिया लेने या तकिया बिल्कुल न लेने से पॉश्चर में प्रॉब्लम हो सकती है, खासकर उन लोगों को, जिनकी मसल्स कमजोर हैं। अगर आप सीधा सोते हैं तो बिल्कुल पतला तकिया ले सकते हैं। करवट से सोते हैं तो 2-3 इंच मोटाई का नॉर्मल तकिया लें। तकिया बहुत सॉफ्ट या हार्ड नहीं होना चाहिए। फाइबर या कॉटन, कोई भी तकिया ले सकते हैं। ध्यान रहे कि कॉटन अच्छी तरह से धुना गया हो और उसमें नरमी बाकी हो। तकिया इस तरह लगाएं कि कॉन्टैक्ट स्पेस काफी ज्यादा हो और कंधे व कान के बीच के एरिया को सपोर्ट मिले। जिनकी गर्दन में दर्द है, उन्हें भी पतला तकिया लगाना चाहिए। माकेर्ट में मिलनेवाले सर्वाइकल पिलो भी कुछ लोगों को सूट करते हैं।
आयुर्वेद और नैचुरोपैथी
योगराज गुग्गुल, महायोगराज गुग्गुल, रासना गुग्गुल या अमृत गुग्गुल आदि में से किसी भी गुग्गुल की दो-दो गोलियां सुबह-शाम पानी से ले सकते हैं।
वातनाशक तेल से गर्दन के पीछे हल्के हाथ से मालिश करें। मालिश के वक्त ध्यान रखें कि हड्डी पर दबाव न पड़े और आसपास के एरिया की मालिश हो जाए।
तांबे के बर्तन में रात भर पानी भरकर रखें और सुबह उठकर पी लें। इसमें एक चम्मच मेथी भी भिगोकर रख सकते हैं। सुबह पानी पीने के बाद मेथी दानों को चबा लें।
गाजर खाएं या गाजर का जूस पिएं। गाजर नैचरल पेनकिलर है।
कच्चे लहसुन की दो-दो कलियां रोजाना सुबह-शाम साबुत पानी के साथ निगलें।
पालक के नीचे के डंठलों का सूप या साग बनाकर खाएं।
एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी डालकर पिएं।
चावल, राजमा, उड़द दाल, चना दाल, भिंडी, अरबी, फूलगोभी और खट्टी चीजें न खाएं।
योगासन
भुजंगासन, अर्ध्यमत्स्येंदासन, मकरासन, गोमुखासन और कटिचक्रासन स्पाइन के लिए फायदेमंद हैं। इसके अलावा, गर्दन को मजबूत बनानेवाली सूक्ष्म क्रियाएं करें। सिर को पूरा गोल घुमाएं। एक बार दाईं से बाईं ओर फिर बाईं से दाईं ओर से पूरा चक्कर लगाएं।
कंधों को गोल-गोल घुमाएं।
हाथों को कंधों पर रखकर कोहनियां गोल-गोल घुमाएं।
पेट के बल लेटकर मुट्ठियों को ठोड़ी के नीचे रखें और सिर को दाएं-बाएं घुमाएं।
ये न करें : स्पाइन से जुड़े दर्द में शीर्षासन, विपरीतकर्णी और जानुशिरासन।
ध्यान रहे
पेनकिलर की आदत न डालें। दर्द हुआ और एक टैब्लेट खा ली, ऐसा नहीं करना चाहिए। लंबे समय तक पेनकिलर लेने से लिवर, किडनी आदि पर बुरा असर पड़ता है और गैस्ट्रिक अल्सर तक हो सकता है। इसी तरह पेन मैनेजमेंट के लिए डाइट पर खास ध्यान देना जरूरी है। दर्द न हो इसके लिए कैल्शियम, विटामिन-डी, एल्फा-थ्री व प्रोटीन (जैसे कि दूध, पनीर, स्प्राउट्स, दालें, गुड़ आदि) से भरपूर डाइट लें। इसके अलावा, गर्दन को चारों तरफ अच्छी तरह घुमाएं। हमारी बॉडी में जितने जॉइंट्स हैं, उनका अच्छी तरह मूवमेंट करते रहना चाहिए वरना उनके जाम होने या खिंचने की आशंका होती है।
घुटने का दर्द
घुटने के दर्द की वजहें भी गर्दन दर्द से मिलती-जुलती हैं। लाइफस्टाइल, टेंशन और खराब पॉश्चर के अलावा मोटापा भी घुटने के दर्द की बड़ी वजह होता है।
अचानक किसी नस के खिंचने या चोट लगने से घुटने में दर्द हो सकता है। इसके अलावा, कार्टिलेज में टूट-फूट या जॉइंट्स को कवर करनेवाले कैप्सूल के टाइट होने या हड्डियों का सही तालमेल न होने की वजह से दर्द हो सकता है।
उम्र बढ़ने के साथ घुटने में दर्द होने की आशंका बढ़ जाती है। 55 साल से ज्यादा की उम्र में जोड़ों में दर्द आम है।
स्पोर्ट्स इंजरी और गठिया बाय भी दर्द की बड़ी वजहें हैं। स्पोर्ट्स इंजरी में थाइ बोन और लेग बोन के बीच का कुशन (मिनेस्कस) डैमेज हो जाता है।
पुरुषों में यूरिक एसिड बढ़ने और महिलाओं में मिनोपॉज के बाद दर्द हो सकता है।
प्रेग्नेंसी में भी कई बार कार्टलेज डेमेज हो जाता है।
बचे रह सकते हैं दर्द से
अपने घुटनों को लगातार चलाते रहें। इससे वे सेहतमंद रहेंगे। हफ्ते में तीन दिन वॉकिंग, जॉगिंग, डांस या दूसरी तरह की अरोबिक्स एक्सरसाइज करें तो घुटने मजबूत रहेंगे। इसके अलावा घुटने के जॉइंट के आसपास की मसल्स और कैप्सूल्स की रेग्युलर स्टेचिंग करें। हमेशा अच्छी क्वॉलिटी के जूते या सैंडल पहनें। हील्स कम पहनें।
दर्द हो तो...
अगर चोट लगने की वजह से घुटने में दर्द हो जाए तो फिजियोथेरपिस्ट को दिखाएं। फौरन ऐसा मुमकिन नहीं है तो RICE का फॉर्म्युला अपनाएं।
REST: आराम करें। ज्यादा घूमे-फिरे नहीं, न ही देर तक खड़े रहें।
ICE: एक कपड़े या बैग में बर्फ रखें और दिन में 4-5 बार 10-10 मिनट के लिए दर्द की जगह पर लगाएं।
COMPRESSION: घुटने पर क्रेप बैंडेज या नी कैप लगाएं। बैंडेज ज्यादा टाइट या लूज न हो।
ELEVATION: लेटते वक्त पैर के नीचे तकिया रख लें ताकि घुटना थोड़ा ऊंचा रहे।
घुटने में चोट के बाद मेडिकल एडवाइस जरूर लें क्योंकि हो सकता है कि दर्द कुछ दिनों में चला जाए लेकिन कई बार मसल्स में हमेशा के लिए कमजोरी बनी रह जाती है। फिजियोथेरपिस्ट इसमें मददगार हो सकते हैं।
अगर दर्द की वजह चोट लगना नहीं है, घुटने के आसपास सूजन नहीं है और किसी पॉश्चर में रहने की वजह से दर्द की आशंका है तो ऑस्टियोऑर्थराटिस हो सकता है। फौरन मेडिकल एडवाइस नहीं ले सकते तो हॉट वॉटर बॉटल से सिकाई करें। थोड़ी ऊंचाई से घुटने पर गर्म पानी डाल सकते हैं। घुटने को ज्यादा स्ट्रेच न करें।
अगर दर्द अचानक या धीरे-धीरे आता है लेकिन चोट इसकी वजह नहीं है और घुटने के आसपास सूजन और लालिमा है और दर्द रात को बढ़ जाता है तो इसकी वजह इन्फेक्शन या गठिया बाय हो सकता है। फौरन ऑथोर्पेडिशियन को दिखाएं।
दर्द में बरतें सावधानी
जमीन पर न बैठें। जमीन पर उठने-बैठने से घुटनों पर कई गुना प्रेशर पड़ता है।
पालथी मारकर न बैठें।
इंडियन स्टाइल टॉयलेट यूज न करें।
हाई हील न पहनें। इससे घुटनों पर प्रेशर पड़ता है।
कभी राधा तो कभी कृष्ण बनकर नाचने वाले यूपी पुलिस के पूर्व आईजी डी
लखनऊ : कभी राधा तो कभी कृष्ण बनकर नाचने वाले यूपी पुलिस के पूर्व आईजी डी. के. पांडा क
ो अपनी मौत का पूर्वाभास हो चुका है। उन्होंने कहा कि कान्हा मुझे अपने पास बुला रहे हैं। मैं दुनिया छोड़कर जाने के लिए तैयार हूं। मुझे मालूम है कि मेरी मृत्यु कब, कहां और कैसे होगी? गौरतलब है कि एक समय पूर्व डीआईजी रहे पांडा ने कान्हा की 'राधा' बनने के लिए नारी वेश धारण कर अपनी पत्नी को छोड़ दिया था। तब कई लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया था। पांडा ने कहा कि पुलिस अफसर की नौकरी करते-करते कान्हा से मेरा साक्षात्कार अनेक बार हुआ। मैं अपनी पत्नी को यह सब बताता था तो वह उसे गंभीरता से नहीं लेती थी। तब मैने उन्हें उनका हक देकर अपने जीवन की धारा को बदल लिया। यह सब मैने नहीं किया, बल्कि खुद कान्हा ने किया। मुझ पर एक फिल्म भी बन रही है।
पांडा ने बताया कि खाकी से भक्ति मार्ग मैंने लिया और इसी को बेस बनाकर उनके जीवन पर एक फिल्म बनाई जा रही है। मैं चाहता हूं कि इस फिल्म को अपने- जीते-जी देख सकंू । उन्होंने कहा कि मेरे मोक्ष का समय आ गया है और यह काम खुद कान्हा ने किया है। आज भी कान्हा मुझसे रोज मिलते हैं और बातें करते हैं। लेकिन मैं क्यों बताऊं कि कृष्ण मुझसे सपने में क्या बात करते हैं?
ो अपनी मौत का पूर्वाभास हो चुका है। उन्होंने कहा कि कान्हा मुझे अपने पास बुला रहे हैं। मैं दुनिया छोड़कर जाने के लिए तैयार हूं। मुझे मालूम है कि मेरी मृत्यु कब, कहां और कैसे होगी? गौरतलब है कि एक समय पूर्व डीआईजी रहे पांडा ने कान्हा की 'राधा' बनने के लिए नारी वेश धारण कर अपनी पत्नी को छोड़ दिया था। तब कई लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया था। पांडा ने कहा कि पुलिस अफसर की नौकरी करते-करते कान्हा से मेरा साक्षात्कार अनेक बार हुआ। मैं अपनी पत्नी को यह सब बताता था तो वह उसे गंभीरता से नहीं लेती थी। तब मैने उन्हें उनका हक देकर अपने जीवन की धारा को बदल लिया। यह सब मैने नहीं किया, बल्कि खुद कान्हा ने किया। मुझ पर एक फिल्म भी बन रही है।
पांडा ने बताया कि खाकी से भक्ति मार्ग मैंने लिया और इसी को बेस बनाकर उनके जीवन पर एक फिल्म बनाई जा रही है। मैं चाहता हूं कि इस फिल्म को अपने- जीते-जी देख सकंू । उन्होंने कहा कि मेरे मोक्ष का समय आ गया है और यह काम खुद कान्हा ने किया है। आज भी कान्हा मुझसे रोज मिलते हैं और बातें करते हैं। लेकिन मैं क्यों बताऊं कि कृष्ण मुझसे सपने में क्या बात करते हैं?
रेप के आरोपी प्रिंसिपल पर एफआईआर
मुजफ्फरनगर : शहर के एक कॉलेज में कार्यरत महिला लेक्चरर का कथित तौर पर यौन उत्पीड़न करने का आरोप कॉलेज
के प्रिंसिपल और स्टाफ के तीन कलीग्स पर लगाया गया है। पुलिस ने बताया कि लेक्चरर का शील भंग करने की कोशिश का इल्जाम प्रिंसिपल समेत कॉलेज के तीन टीचरों पर लगाया गया है।
डिप्टी एसपी ने कहा कि पुलिस ने पीडि़ता की शिकायत पर एसडी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. दानिश, हिंदी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. कीर्ति वल्लभ और दो टीचरों डॉ. विश्वम्भर पांडे और डॉ. निकिता पर लगाया गया। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 504, 506, 509, 186 और 189 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
Date6-9-2010
के प्रिंसिपल और स्टाफ के तीन कलीग्स पर लगाया गया है। पुलिस ने बताया कि लेक्चरर का शील भंग करने की कोशिश का इल्जाम प्रिंसिपल समेत कॉलेज के तीन टीचरों पर लगाया गया है।
डिप्टी एसपी ने कहा कि पुलिस ने पीडि़ता की शिकायत पर एसडी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. दानिश, हिंदी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. कीर्ति वल्लभ और दो टीचरों डॉ. विश्वम्भर पांडे और डॉ. निकिता पर लगाया गया। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 504, 506, 509, 186 और 189 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
Date6-9-2010
लड़की चाहिए तो केले, नमक को कीजिए बाय
लंदन।। बेटी चाहिए? तो केले खाना बंद कर दीजिए, खाने में नमक लेना कम कीजिए और अक्सर साथ-साथ सोने जाइए। ऐGetty Images
सा कहना है कि एक नई स्टडी का। डेली मेल के मुताबिक, हॉलैंड की एक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में पाया कि सही फूड और सेक्स की टाइमिंग का मेल किसी मां बनने वाली महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के लड़का या लड़की होने पर प्रभाव डालता हैं।
वो सभी जो एक गर्ल चाइल्ड की इच्छा रखते हैं उन्हें सोडियम और पोटैशियम की ज्यादा मात्रा वाले खाने से बचना होगा। मसलन जैतून, सूअर का मांस, स्मोकिंग, झींगा, सुगंधित चावल, आलू, ब्रेड और पेस्ट्रीज। इनके बजाय महिलाओं को ऐसी चीजें खानी चाहिए जिनमें कैल्शियम और मैग्नीशियम की ज्यादा मात्रा होती है।
दही, पनीर, डिब्बामंद सामन फिश, बादाम, रेवाचीनी, पालक, सोयाबीन पनीर, गोभी, जौ का आटा और संतरे ऐसी चीजें हैं जिनमें कैल्शियम की काफी मात्रा होती है। ब्रेजिल, काजू, गेहूं, अंजीर और सेम ऐसी चीजें हैं जिनमें मैग्नीशियम की भरपूर मात्रा होती है।
हालांकि, वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि पिता के खानपान का होने वाले बच्चे के लिंग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। साइंटिस्ट नियमित सेक्स पर जोर देने के साथ ही, इसकी भी सलाह देते हैं कि अंडोत्सर्ग के ठीक पहले या ठीक बाद सेक्स से बचना चाहिए।
वैज्ञानिकों की खोजें उस विश्लेषण पर आधारित हैं जो उन्होंने 23 से 42 साल के बीच की 172 वेस्टर्न यूरोपियन महिलाओं पर की गई स्टडी से प्राप्त की हैं। इन सभी ने हाल में लड़कों को जन्म दिया है और ये सभी गर्ल चाइल्ड चाहती थीं।
इन्हें खाने में नमक कम करने और प्रतिदिन डेरी प्रॉडक्ट्स खाने की सलाह दी गई। उनके खाने में ब्रेड, सब्जियां, फल, मीट, चावल और पास्ता भी शामिल किया गया। सर्वे में शामिल 21 महिलाएं ही ऐसी थीं जो कि सेक्स संबंधी नियमों और फूड चार्ट का पालन कर सकीं। अस्सी प्रतिशत की सफलता दर के साथ इनमें से 16 महिलाओं ने लड़कियों को जन्म दिया।
स्ट्राइक से पहले कई उड़ानें रद्द
नई दिल्ली।। सेंट्रल ट्रेड यूनियनों की मंगलवार को घोषित हड़ताल का असर सोमवार रात से ही दिखना शुरू हो गय
ा। प्रमुख एयरलाइंस किंगफिशर और जेट ने 24 घंटे लंबी इस हड़ताल के मद्देनजर अपनी कई उड़ानें रद्द करने का ऐलान कर दिया। किंगफिशर ने एक इंटरनैशनल समेत 29 उड़ानें रद्द की हैं। जेट एयरवेज की सस्ती एयरलाइंस जेट लाइट ने नई दिल्ली से जाने वाली और नई दिल्ली को आने वाली कुल 70 फ्लाइटें रद्द कर दी हैं।
दोनों ही एयरलाइंस ने मुंबई, नई दिल्ली, सिलचर, बागडोगरा, आइजॉल, रांची, अगरतला, भुवनेश्वर, गुवाहाटी, पटना, चेन्नै, इम्फाल, विशाखापट्टनम, बेंगलुरु और पोर्ट ब्लेयर को आने-जाने वाली फ्लाइटों को कैंसल किया है। किंगफिशर ने अपनी ढाका फ्लाइट को कैंसल किया है, जबकि जेट ने बैंकॉक के लिए फ्लाइट कैंसल की है।
ा। प्रमुख एयरलाइंस किंगफिशर और जेट ने 24 घंटे लंबी इस हड़ताल के मद्देनजर अपनी कई उड़ानें रद्द करने का ऐलान कर दिया। किंगफिशर ने एक इंटरनैशनल समेत 29 उड़ानें रद्द की हैं। जेट एयरवेज की सस्ती एयरलाइंस जेट लाइट ने नई दिल्ली से जाने वाली और नई दिल्ली को आने वाली कुल 70 फ्लाइटें रद्द कर दी हैं।
दोनों ही एयरलाइंस ने मुंबई, नई दिल्ली, सिलचर, बागडोगरा, आइजॉल, रांची, अगरतला, भुवनेश्वर, गुवाहाटी, पटना, चेन्नै, इम्फाल, विशाखापट्टनम, बेंगलुरु और पोर्ट ब्लेयर को आने-जाने वाली फ्लाइटों को कैंसल किया है। किंगफिशर ने अपनी ढाका फ्लाइट को कैंसल किया है, जबकि जेट ने बैंकॉक के लिए फ्लाइट कैंसल की है।
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