Saturday, September 25, 2010
हिंदी के जाने माने लेखक और पत्रकार कन्हैयालाल नंदन का शनिवार तड़के यहाँ एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे 77 वर्ष के थे।
हिंदी के जाने माने लेखक और पत्रकार कन्हैयालाल नंदन का शनिवार तड़के यहाँ एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे 77 वर्ष के थे।
पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि उन्हें बुधवार की शाम निम्न रक्तचाप और साँस लेने में तकलीफ होने के बाद राजधानी के रॉकलैंड अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उन्होंने शनिवार तड़के तीन बजकर 10 मिनट पर अंतिम साँस ली। वे पिछले आठ साल से डायलिसिस पर थे।
उनके परिवार में पत्नी और दो पुत्रियाँ हैं। उनके शव को साकेत के पुष्पावती सिंघानिया शोध संस्थान (पीएसआरआई) में रखा गया है। सूत्रों ने बताया कि उनकी छोटी बेटी के कनाडा से आने के बाद उनका अंतिम संस्कार रविवार सुबह 11 बजे लोधी रोड श्मशान घाट पर किया जाएगा।
नंदन का जन्म उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले के परस्तेपुर गाँव में एक जुलाई 1933 को हुआ था। डीएवी कानपुर से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया और भावनगर विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की।
पत्रकारिता में आने से पहले कन्हैयालाल नंदन ने करीब चार साल तक मुंबई विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया था। वे वर्ष 1961 से 1972 तक धर्मयुग में सहायक संपादक रहे। इसके बाद उन्होंने टाइम्स ऑफ इडिया की पत्रिकाओं पराग, सारिका और दिनमान में संपादक का कार्यभार संभाला। तीन सालों तक वह नवभारत टाइम्स के फीचर संपादक भी रहे।
टाइम्स समूह से अलग होने के बाद वे छह साल तक हिन्दी के साप्ताहिक अखबार संडे मेल के प्रधान संपादक रहे। 1995 से उन्होंने इंडसइंड मीडिया में बतौर निदेशक कार्य किया। नंदन को पद्मश्री, भारतेंदु पुरस्कार, अज्ञेय पुरस्कार और नेहरू फेलोशिप सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
उन्होंने विभिन्न विधाओं में तीन दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं। वे मंचीय कवि और गीतकार के रूप में मशहूर रहे। उनकी प्रमुख कृतियाँ ‘लुकुआ का शाहनामा’, ‘घाट-घाट का पानी’, ‘आग के रंग’, ‘गुजरा कहाँ कहाँ से’ आदि हैं।
पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि डायलिसिस पर रहते हुए पिछले आठ साल के दौरान उन्होंने कई किताबें लिखीं। मुंबई के संस्मरणों पर आधारित किताब ‘कहना जरूरी था’ अभी प्रेस में है।
शोक की लहर : केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी सहित पत्रकार और साहित्य जगत के तमाम लोगों ने नंदन के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त की है।
सोनी ने अपने संदेश में कहा कि कन्हैयालाल नंदन के निधन से हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में आई रिक्तता को भरना बेहद मुश्किल है। नंदन एक विचारशील लेखक थे, जिनमें कई पीढ़ियों से संवाद करने की क्षमता थी। उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता और हिन्दी साहित्य के आंदोलन को नई दृष्टि दी।
उन्होंने कहा कि पत्रकारिता और साहित्य में उनके द्वारा किया कार्य मानक हैं, जो नयी पीढ़ी का मार्गदर्शन करेगा। उनके निधन से देश ने एक बहुमुखी प्रतिभा का धनी व्यक्ति खो दिया है, जिसकी रचनात्मकता को सभी लोगों ने सिर आँखों पर लिया।
दिल्ली हिन्दी अकादमी के उपाध्यक्ष और कवि अशोक चक्रधर ने कहा कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी उदारमना व्यक्ति थे। वाचिक परंपरा से जुड़े होने के बावजूद उन्हें साहित्यिक हलकों में भी स्वीकार किया जाता था। उन्होंने सांस्कृतिक शिक्षक के रूप में कार्य किया और श्रोताओं में अच्छी कविता सुनने का शऊर पैदा किया।
आल इंडिया न्यूज पेपर एडिटर्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष विश्वबंधु गुप्ता ने कहा कि उनका निधन हिन्दी साहित्य और संस्कृति के लिए बड़ा नुकसान है। नंदन ने पत्रकार, लेखक और कवि के रूप में लैंगिक न्याय और वैश्विक प्रेम का संदेश दिया। उनकी मानवीय प्रेम को दर्शाने वाली कहानियाँ अंदर तक छूती हैं।
वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता में ऐसे लोग बिरले हैं, जिनके 18 साल के पत्रकार से लेकर अज्ञेय तक समान संबंध रहे हैं। उनकी पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी को जोड़ने में अहम भूमिका रही।
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा है कि प्रख्यात पत्रकार और लेखक नंदन के निधन से भारत के साहित्य एवं पत्रकारिता जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। आडवाणी ने शोक संदेश में कहा कि भारतीय साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में कई प्रसिद्ध पत्रकार एवं साहित्यकार हुए पर ऐसे बहुत कम लोग कलम के धनी होते हैं, जो एक विधा के प्रतीक बन जाते हैं। नंदन विचारक, चिंतक और कवि हृदय थे।
उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई नए आयाम स्थापित किए। उन्होंने बाल पत्रिका का भी कुशल संपादन कर बालकों के मन में कथा और कहानियाँ पढ़ने की ललक पैदा की। नंदन साहित्य एवं पत्रकार जगत के सशक्त हस्ताक्षर थे।
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