Monday, September 6, 2010

आत्महत्या करने वाले की मनोस्थिति

किसी को आत्महत्या से बचाने के लिए आपका डॉक्टर होना जरूरी नहीं है। रोगी के परिजन व उसके संगी-साथी अनेक बार बेहतर रूप से रोगी की सहायता कर सकते है। इस क्रम में 'चार कदम' का यह नियम अपनाएं-

[पहला कदम]

[मनोस्थिति समझें]

समझें कि आत्महत्या करने वाले की मनोस्थिति जीवन और मृत्यु की दुविधा में झूलती रहती है। वह दिल से तो जीना चाहता है लेकिन उसे अपनी तकलीफों का अंत आत्महत्या में ही दिखता है। इस कारण वह मन के विरुद्ध गलत निर्णय ले बैठता है। ऐसे में परिजन यदि उसकी तकलीफों को समझ लें और उन्हें बाँट लें तो रोगी सहज रूप से जीवन जीना स्वीकार कर लेता है।

[दूसरा कदम]

आत्महत्या से पूर्व आए व्यावहारिक परिवर्तन को पहचानें जैसे-

* मन उदास होना व गुमशुम रहना।

* आत्मग्लानि की बात बार-बार कहना।

* मरने की बातें बार-बार कहना।

* शराब या नशे की मात्रा बढ़ा देना।

* नींद न आना व भूख न लगना।

* लापरवाही से खुद को जोखिम में डालना।

[तीसरा कदम]

* आत्महत्या के विषय में बात करने से न हिचकिचाएं।

* रोगी को स्पष्ट शब्दों में बताएं कि वह परिवार के लिए व बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

* रोगी को यह बार-बार समझाएं कि हम उसकी तकलीफों को समझते है और हर वक्त उसके लिए उपलब्ध हैं।

* रोगी को इस बात का विश्वास दिलाएं कि उसके कष्ट सीमित समय के लिए हैं और कुछ दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाएगा।

[चौथा कदम]

यदि रोगी न माने तो उसे तब तक अकेला न छोड़े, जब तक मनोचिकित्सक की सुविधा उपलब्ध न हो जाए। आपका यह छोटा सहयोग एक जीवन को बचा सकता है।

[डॉ. उन्नति कुमार मनोरोग विशेषज्ञ]

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