Monday, September 6, 2010

सुप्रबंधन से होगा समस्या का समाधान


सहज शब्दों में कहें, तो गर्भावस्था के दौरान ब्लड शुगर के अत्यधिक बढ़ जाने को जेस्टेशनल डाइबिटीज मेलीटस कहते हैं।

[परीक्षण]

सामान्यत: गर्भावस्था के दौरान 24 से 28 हफ्तों के मध्य 'स्क्रीनिंग व डाइबिटीज से संबंधित परीक्षण कराए जाते हैं। एक सर्वाधिक सहज स्क्रीनिंग 'नॉन फास्टिंग ओरल ग्लूकोज चैलैन्ज टेस्ट' है। इस टेस्ट में रोगी को 50 ग्राम ग्लूकोज देकर एक घंटे के बाद ब्लड शुगर का नमूना लिया जाता है। यदि ब्लड शुगर का आकलन 140 द्वद्द/स्त्रद्य या इससे अधिक है, तो लगभग 80 प्रतिशत महिलाओं के 'जी डी एम' से ग्रस्त होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

[इलाज]

'जी डी एम' के इलाज में खान-पान के संदर्भ में कुछ बुनियादी बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। जैसे-

* रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स(मैदा, शुगर, जैम्स,कन्फैक्शनरी आइटम्स) और मीठे खाद्य पदार्र्थो के स्थान पर कॉम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेट्स जैसे अनाजों, ताजे फलों और सब्जियों को आहार में वरीयता दें।

* वसायुक्त खाद्य पदार्र्थो का कम से कम प्रयोग करें।

* इस मर्ज से ग्रस्त मरीजों को दिन में तीन बार प्रमुख आहार जैसे ब्रेक फास्ट, लंच व डिनर के अतिरिक्त एक निश्चित अंतराल पर तीन से चार बार तक स्नैक्स भी लेना चाहिए। एक नियत समय पर भोजन और स्नैक्स लें। शुगर और शहद से युक्त खाद्य व पेय पदार्र्थो से परहेज करें।

* खान-पान के संदर्भ में डाइबिटिक काउंसलर या डाइटीशियन से परामर्श लें।

[शारीरिक सक्रियता व व्यायाम]

अनेक शोध-अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि जो महिलाएं शारीरिक श्रम करती हैं, उनमें गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की शिकायतें(जी डी एम)बहुत कम होती हैं। प्रतिदिन 30 मिनट तक एक निश्चित समय पर व्यायाम(जैसे टहलना, जॉगिंग और एरोबिक्स) करें। ऐसे व्यायाम न करें , जिनसे पेट की मांसपेशियों पर अत्यधिक जोर पड़ता हो।

[दवाएं]

जब खान-पान और व्यायाम से 'जी डी एम' नियंत्रित नहीं होता, तब दवाओं खासकर इंसुलिन का प्रयोग किया जाता है। हालांकि ओरल एंटीडायबिटिक दवाएं भी हैं, लेकिन गर्भावस्था के दौरान डाइबिटीज को नियंत्रित करने में फिलवक्त इंसुलिन ही कारगर विकल्प है।

[डॉ. विवेक झा]

कंसल्टेट इंटरनल मेडिसिन,श्रॉफ हॉस्पिटल, दिल्ली

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