Monday, September 6, 2010
दर्द गर्दन में हो या फिर घुटने में
दर्द गर्दन में हो या फिर घुटने में, जंजाल बन जाता है लेकिन थोड़ी सावधानी बरतें तो इससे बचा जा सकता है।
यही नहीं, अगर दर्द हो जाए तो भी सही इलाज और एक्सर्साइज से इससे छुटकारा पाया जा सकता है। गर्दन दर्द और घुटने के दर्द से जुड़ी समस्याओं और उनसे बचाव व इलाज के बारे में बता रही हैं प्रियंका सिंह :
कैसे-कैसे दर्द
हड्डी में किन्हीं वजहों से जॉइंट स्टिफ हो जाते हैं। इसे सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस कहा जाता है। इसमें कई बार हाथ और पैर में भी दर्द आ जाता है। पहले आमतौर पर ज्यादा उम्र में यह दिक्कत होती थी लेकिन सिडेंटरी (कम चलना-फिरना) लाइफस्टाइल की वजह से अब यह दर्द युवाओं में भी होने लगा है। गर्दन के दर्द में सबसे कॉमन यही है।
स्पाइन में सूजन आ जाए तो उसे एनक्लोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस कहा जाता है। यह सूजन किसी चोट आदि से भी सकती है और हड्डी में किसी दिक्कत की वजह से भी।
हमारी रीढ़ की हड्डी में सॉफ्ट मटीरियल होता है, जिसे डिस्क कहते हैं। बॉडी को गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं तो डिस्क बाहर आ जाती है। इस स्थिति को डिस्क बल्ज कहा जाता है। इस स्थिति में गर्दन में भारी दर्द होता है।
ट्रिगर पॉइंट्स (मसल्स के अंदर जो गांठें बन जाती हैं) की वजह से भी दर्द होता है। कई बार यह दर्द आंखों के आसपास तक भी पहुंच जाता है।
ऑस्टोपोरोसिस दर्द की वजह बनता है। इसमें हड्डी बेहद कमजोर और भुरभुरी हो जाती हैं। न्यूट्रिशन की कमी और मिनोपॉज के बाद अक्सर महिलाएं इससे पीड़ित हो जाती हैं। इसके लिए कैल्शियम के साथ विटामिन-डी की टैब्लेट भी दी जाती है और कुछ देर सूरज की रोशनी में रहने की सलाह भी दी जाती है। गर्दन में दर्द की और भी वजहें हो सकती हैं।
माइक्रोट्रॉमा (छोटी-मोटी अंदरूनी चोटें) दर्द की वजह बनती हैं। ड्रिल आदि पर काम करनेवालों की बॉडी में बहुत वाइब्रेशन होते हैं, जिनकी वजह से दर्द की आशंका बढ़ जाती है।
दर्द की वजहें
तनाव : स्ट्रेस की वजह से मसल्स स्पाज्म में चली जाती हैं और दर्द की वजह बनती हैं।
गलत पॉश्चर : घंटों सिर झुकाकर कंप्यूटर पर काम करने, लिखने-पढ़ने और बेड पर आधा लेटकर टीवी देखने से दर्द हो सकता है।
मोटा तकिया : कई लोग बहुत मोटा तकिया और कुशन लगाकर सोते हैं, जोकि गलत है।
प्रेग्नेंसी : प्रेग्नेंसी में स्पाइन पीछे को जाने लगती है। इस पोजिशन को लॉडोर्स कहते हैं और इससे कमर व गर्दन में दर्द हो सकता है।
बढ़ती उम्र : उम्र बढ़ने के साथ बॉडी की हीलिंग कपैसिटी कम हो जाती है और छोटी-मोटी दिक्कतें दर्द की वजह बनती हैं।
सिडेंटरी लाइफस्टाइल : ऐसा प्रफेशन, जिसमें चलना-फिरना बहुत कम हो।
फोन पर लंबी बातें : कंधे और कान के बीच फोन लगाकर एक ओर सिर झुकाकर लंबे वक्त तक बातें न करें। अक्सर लोग ऐसा किचन में काम करते हुए, कंप्यूटर पर टाइप करते हुए और ड्राइविंग के वक्त करते हैं। ऐसा करने के बजाय हेड फोन या ईयरफोन लगा लें।
नीची स्लैब : किचन में स्लैब नीची है तो स्टूल रखकर काम करें। ज्यादा झुकने से गर्दन में दिक्कत हो सकती है।
उलटी-सीधी एक्सर्साइज : योगासनों की शुरुआत किसी एक्सपर्ट की देखरेख में ही करें।
कम तापमान : घर या ऑफिस में एसी-कूलर के जरिए तापमान 18-20 तक न ले जाएं। 26-27 डिग्री तापमान ठीक है। ज्यादा ठंड से दर्द हो सकता है।
हड़बड़ी और बेचैनी : हमेशा काम के बोझ में दबे रहना सही नहीं है। अच्छे से सांस लें। डीप ब्रीदिंग से तन और मन, दोनों रिलैक्स रहते हैं।
हो सकता है बचाव
रोजाना स्ट्रेचिंग एक्स्रसाइज करें। सुबह पूरी बॉडी को स्ट्रेच करें। ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा न खिंचें। इससे मसल्स में लचीलापन बना रहता है। फिटनेस के लिए अरोबिक्स (रनिंग, जॉगिंग, साइक्लिंग, स्विमिंग आदि) और मजबूती के लिए स्ट्रेंथनिंग एक्सर्साइज (वेट लिफ्टिंग आदि) जरूर करें। स्ट्रेचिंग रोजाना करें। साथ में चार दिन अरोबिक्स और बाकी तीन दिन स्ट्रेंथनिंग एक्स्रसाइज करें। डेस्क जॉब करनेवालों को ऑफिस में बैठे-बैठे गर्दन और घुटनों की एक्सर्साइज करते रहना चाहिए।
क्या करें
दर्द हो जाए और फौरन डॉक्टर को दिखाना मुमकिन नहीं हो तो पैरासिटामॉल (क्रॉसिन आदि) या कोई दूसरी पेन किलर ले सकते हैं। एक्सर्साइज व योगासन बंद कर आराम करें। वॉलिनी, मूव, वॉवेरन जेल, डीएफओ जेल आदि किसी दर्दनिवारक बाम या जेल से हल्के हाथ से मालिश कर सकते हैं। सिकाई भी कर सकते हैं। दो-चार दिन में दर्द ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएं। लेकिन अगर गर्दन में दर्द के साथ हाथ में झनझनाहट, सुन्नपना या कमजोरी लगे तो फौरन मेडिकल एडवाइस लेना जरूरी है।
फिजियोथेरपी है कारगर
मसल्स से जुडे़ दर्द में फिजियोथेरपी कारगर हो सकती है। अगर पॉश्चर की प्रॉब्लम है यानी मसल वीकनेस है तो इलेक्ट्रोथेरपी की जाती है। डायथमीर्, सर्वाइकल ट्रैक्शन, आईएफटी एंड अल्ट्रासॉनिक थेरपी, लेजर थेरपी आदि से दर्द कम किया जाता है। कॉलर या टेपिंग से मसल्स को आराम दिया जाता है ताकि वे और न खिंचें। इसके बाद मसल्स स्ट्रेचिंग और स्ट्रेंथनिंग के लिए थेरपी दी जाती है।
सिकाई कैसे करें
किसी ताजा चोट की वजह से दर्द हो रहा है तो आइस बैग से सिकाई करें। किसी कपड़े में बर्फ रखकर उसे चोट की जगह पर लगाएं। चोट लगने के 48-72 घंटे के बाद गर्म पानी से सिकाई कर सकते हैं। सिकाई रोजाना दिन में दो-तीन बार 10-10 मिनट के लिए करें। वैसे, गर्म और ठंडी सिकाई कब करें, इसका सीधा-सा फॉर्म्युला है - अगर चोट लगी है या प्रभावित एरिया लाल और सूजा हुआ है तो बर्फ से सिकाईं करें। अगर अकड़ाहट है तो गर्म पानी से सिकाईं करें। वह एरिया नरम पड़ जाएगा और आराम मिलेगा। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि तेज दर्द है तो ठंडी सिकाई करें और दर्द पुराना हो गया है तो गर्म। सिकाई वॉटर बॉटल, कपड़ा या सिंपल हॉट पैक से कर सकते हैं। हॉट पैक केमिस्ट के पास मिल जाएंगे। बिजली से चलनेवाले हॉट पैक न यूज करें। इनसे जल जाने का खतरा है।
क्या सावधानी बरतें
डिस्क बल्ज है तो बैठने और चलने से बचना चाहिए।
कोशिश करें कि गर्दन को झटका न लगे।
टेबल-चेयर के बीच अनुपात सही हो, ताकि झुकना न पड़े।
जितना हो सके, पीछे की ओर गर्दन करें क्योंकि ज्यादातर काम आगे को सिर झुकाकर करने पड़ते हैं।
कॉलर लगाने के फायदे-नुकसान
आमतौर पर कॉलर एक हफ्ते तक लगा सकते हैं। इससे मसल्स को सपोर्ट मिलता है लेकिन इसे आदत न बनाएं क्योंकि यह प्रोटेक्शन है, ट्रीटमेंट नहीं।
तकिया और गर्दन दर्द में कनेक्शन
बहुत ऊंचा तकिया लेने या तकिया बिल्कुल न लेने से पॉश्चर में प्रॉब्लम हो सकती है, खासकर उन लोगों को, जिनकी मसल्स कमजोर हैं। अगर आप सीधा सोते हैं तो बिल्कुल पतला तकिया ले सकते हैं। करवट से सोते हैं तो 2-3 इंच मोटाई का नॉर्मल तकिया लें। तकिया बहुत सॉफ्ट या हार्ड नहीं होना चाहिए। फाइबर या कॉटन, कोई भी तकिया ले सकते हैं। ध्यान रहे कि कॉटन अच्छी तरह से धुना गया हो और उसमें नरमी बाकी हो। तकिया इस तरह लगाएं कि कॉन्टैक्ट स्पेस काफी ज्यादा हो और कंधे व कान के बीच के एरिया को सपोर्ट मिले। जिनकी गर्दन में दर्द है, उन्हें भी पतला तकिया लगाना चाहिए। माकेर्ट में मिलनेवाले सर्वाइकल पिलो भी कुछ लोगों को सूट करते हैं।
आयुर्वेद और नैचुरोपैथी
योगराज गुग्गुल, महायोगराज गुग्गुल, रासना गुग्गुल या अमृत गुग्गुल आदि में से किसी भी गुग्गुल की दो-दो गोलियां सुबह-शाम पानी से ले सकते हैं।
वातनाशक तेल से गर्दन के पीछे हल्के हाथ से मालिश करें। मालिश के वक्त ध्यान रखें कि हड्डी पर दबाव न पड़े और आसपास के एरिया की मालिश हो जाए।
तांबे के बर्तन में रात भर पानी भरकर रखें और सुबह उठकर पी लें। इसमें एक चम्मच मेथी भी भिगोकर रख सकते हैं। सुबह पानी पीने के बाद मेथी दानों को चबा लें।
गाजर खाएं या गाजर का जूस पिएं। गाजर नैचरल पेनकिलर है।
कच्चे लहसुन की दो-दो कलियां रोजाना सुबह-शाम साबुत पानी के साथ निगलें।
पालक के नीचे के डंठलों का सूप या साग बनाकर खाएं।
एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी डालकर पिएं।
चावल, राजमा, उड़द दाल, चना दाल, भिंडी, अरबी, फूलगोभी और खट्टी चीजें न खाएं।
योगासन
भुजंगासन, अर्ध्यमत्स्येंदासन, मकरासन, गोमुखासन और कटिचक्रासन स्पाइन के लिए फायदेमंद हैं। इसके अलावा, गर्दन को मजबूत बनानेवाली सूक्ष्म क्रियाएं करें। सिर को पूरा गोल घुमाएं। एक बार दाईं से बाईं ओर फिर बाईं से दाईं ओर से पूरा चक्कर लगाएं।
कंधों को गोल-गोल घुमाएं।
हाथों को कंधों पर रखकर कोहनियां गोल-गोल घुमाएं।
पेट के बल लेटकर मुट्ठियों को ठोड़ी के नीचे रखें और सिर को दाएं-बाएं घुमाएं।
ये न करें : स्पाइन से जुड़े दर्द में शीर्षासन, विपरीतकर्णी और जानुशिरासन।
ध्यान रहे
पेनकिलर की आदत न डालें। दर्द हुआ और एक टैब्लेट खा ली, ऐसा नहीं करना चाहिए। लंबे समय तक पेनकिलर लेने से लिवर, किडनी आदि पर बुरा असर पड़ता है और गैस्ट्रिक अल्सर तक हो सकता है। इसी तरह पेन मैनेजमेंट के लिए डाइट पर खास ध्यान देना जरूरी है। दर्द न हो इसके लिए कैल्शियम, विटामिन-डी, एल्फा-थ्री व प्रोटीन (जैसे कि दूध, पनीर, स्प्राउट्स, दालें, गुड़ आदि) से भरपूर डाइट लें। इसके अलावा, गर्दन को चारों तरफ अच्छी तरह घुमाएं। हमारी बॉडी में जितने जॉइंट्स हैं, उनका अच्छी तरह मूवमेंट करते रहना चाहिए वरना उनके जाम होने या खिंचने की आशंका होती है।
घुटने का दर्द
घुटने के दर्द की वजहें भी गर्दन दर्द से मिलती-जुलती हैं। लाइफस्टाइल, टेंशन और खराब पॉश्चर के अलावा मोटापा भी घुटने के दर्द की बड़ी वजह होता है।
अचानक किसी नस के खिंचने या चोट लगने से घुटने में दर्द हो सकता है। इसके अलावा, कार्टिलेज में टूट-फूट या जॉइंट्स को कवर करनेवाले कैप्सूल के टाइट होने या हड्डियों का सही तालमेल न होने की वजह से दर्द हो सकता है।
उम्र बढ़ने के साथ घुटने में दर्द होने की आशंका बढ़ जाती है। 55 साल से ज्यादा की उम्र में जोड़ों में दर्द आम है।
स्पोर्ट्स इंजरी और गठिया बाय भी दर्द की बड़ी वजहें हैं। स्पोर्ट्स इंजरी में थाइ बोन और लेग बोन के बीच का कुशन (मिनेस्कस) डैमेज हो जाता है।
पुरुषों में यूरिक एसिड बढ़ने और महिलाओं में मिनोपॉज के बाद दर्द हो सकता है।
प्रेग्नेंसी में भी कई बार कार्टलेज डेमेज हो जाता है।
बचे रह सकते हैं दर्द से
अपने घुटनों को लगातार चलाते रहें। इससे वे सेहतमंद रहेंगे। हफ्ते में तीन दिन वॉकिंग, जॉगिंग, डांस या दूसरी तरह की अरोबिक्स एक्सरसाइज करें तो घुटने मजबूत रहेंगे। इसके अलावा घुटने के जॉइंट के आसपास की मसल्स और कैप्सूल्स की रेग्युलर स्टेचिंग करें। हमेशा अच्छी क्वॉलिटी के जूते या सैंडल पहनें। हील्स कम पहनें।
दर्द हो तो...
अगर चोट लगने की वजह से घुटने में दर्द हो जाए तो फिजियोथेरपिस्ट को दिखाएं। फौरन ऐसा मुमकिन नहीं है तो RICE का फॉर्म्युला अपनाएं।
REST: आराम करें। ज्यादा घूमे-फिरे नहीं, न ही देर तक खड़े रहें।
ICE: एक कपड़े या बैग में बर्फ रखें और दिन में 4-5 बार 10-10 मिनट के लिए दर्द की जगह पर लगाएं।
COMPRESSION: घुटने पर क्रेप बैंडेज या नी कैप लगाएं। बैंडेज ज्यादा टाइट या लूज न हो।
ELEVATION: लेटते वक्त पैर के नीचे तकिया रख लें ताकि घुटना थोड़ा ऊंचा रहे।
घुटने में चोट के बाद मेडिकल एडवाइस जरूर लें क्योंकि हो सकता है कि दर्द कुछ दिनों में चला जाए लेकिन कई बार मसल्स में हमेशा के लिए कमजोरी बनी रह जाती है। फिजियोथेरपिस्ट इसमें मददगार हो सकते हैं।
अगर दर्द की वजह चोट लगना नहीं है, घुटने के आसपास सूजन नहीं है और किसी पॉश्चर में रहने की वजह से दर्द की आशंका है तो ऑस्टियोऑर्थराटिस हो सकता है। फौरन मेडिकल एडवाइस नहीं ले सकते तो हॉट वॉटर बॉटल से सिकाई करें। थोड़ी ऊंचाई से घुटने पर गर्म पानी डाल सकते हैं। घुटने को ज्यादा स्ट्रेच न करें।
अगर दर्द अचानक या धीरे-धीरे आता है लेकिन चोट इसकी वजह नहीं है और घुटने के आसपास सूजन और लालिमा है और दर्द रात को बढ़ जाता है तो इसकी वजह इन्फेक्शन या गठिया बाय हो सकता है। फौरन ऑथोर्पेडिशियन को दिखाएं।
दर्द में बरतें सावधानी
जमीन पर न बैठें। जमीन पर उठने-बैठने से घुटनों पर कई गुना प्रेशर पड़ता है।
पालथी मारकर न बैठें।
इंडियन स्टाइल टॉयलेट यूज न करें।
हाई हील न पहनें। इससे घुटनों पर प्रेशर पड़ता है।
सीढ़ियों के बजाय लिफ्ट का इस्तेमाल करें।
एक्सर्साइज या योगासन न करें।
दौड़ने से बचें। ट्रेडमिल न करें।
ज्यादा ट्रैवलिंग न करें और ऊबड़-खाबड़ रास्तों से बचें।
ध्यान दें : शरीर के लिए खासकर जॉइंट्स के लिए असेंशल फैटी एसिड्स जरूरी हैं। इसके लिए रोजाना पांच बादाम खाएं। बादाम रात को पानी में भिगो दें और सुबह उठकर खा लें। अगर दर्द ऑस्टियो ऑर्थराइटिस की वजह है तो एक ग्लूकोज अमीन टैब्लेट रोजाना एक-दो महीने तक ले सकते हैं। यह जॉइंट्स के लिए फायदेमंद हो सकती है।
आयुर्वेद
अगर मोटापे की वजह से घुटनों में दर्द है तो सबसे पहले वजन घटाएं। फिर ऑयल थेरपी (तेल से मसाज), क्रोमो थेरपी (लाल रंग की लाइट से सेल्स को हिलाते हैं) और एक्सर्साइज करवाएं।
घुटने के दर्द में कोल्ड एंड हॉट पैक भी लगा सकते हैं। इसके लिए कॉटन की पट्टी को सादा पानी में भिगोकर पैर पर लपेटें। उसके ऊपर ऊनी कपड़ा लपेटें। इससे पैर को सेक मिलेगा।
कढ़ी पत्ता, तुलसी और नीम के 50-50 ग्राम पत्ते लें और एक लीटर नारियल तेल में उबाल लें। पहले तेल का रंग हरा होगा और फिर भूरा। ठंडा करके बोतल में भर लें। इससे घुटनों की मालिश करें।
कुर्सी पर बैठ जाएं और पैर को सामने दूसरी कुसीर् पर रख लें। थोड़ी ऊंचाई से गुनगुना पानी डालें।
ऐक्युप्रेशर और ऐक्युपंक्चर
ऐक्युप्रेशर से एनर्जी का फ्लो होता है। दर्द अगर इतना हो कि हिल नहीं सकते तो एक्युपंक्चर बहुत तेजी से काम करता है। इससे बॉडी से नैचरल पेनकिलर निकलते हैं। ऐक्युपंक्चर हमेशा एक्सपर्ट डॉक्टर (एक्युपंक्चरिस्ट) से ही कराएं। उसके पास एमबीबीएस डिग्री जरूरी है। गली-मुहल्ले में बैठनेवाले झोलाछाप लोगों से न कराएं। ऐक्युपंक्चर में 10 दिन की एक सिटिंग होती है। तेज दर्द में ऐसी एक सिटिंग और पुराने दर्द में तीन सिटिंग्स में मरीज को काफी फायदा हो जाता है। तेज दर्द में 10 से 25 दिन और पुराने दर्द में 45 दिन की एक्युप्रेशर थेरपी काफी होती है।
कब बदलवाएं घुटना
अगर कोई बीमारी नहीं है तो भी 50-60 साल की उम्र से घुटनों का दर्द सता सकता है। दरअसल, हमारे जॉइंट्स काफी स्मूद होते हैं लेकिन उम्र बढ़ने के बाद इनमें कई बार क्रेटर बनने लगते हैं। खासकर महिलाओं में कार्टिलेज सॉफ्ट हो जाता है। दवा और एक्सर्साइज से आराम नहीं आ रहा और पेनकिलर बार-बार लेना पड़ रहा है, दर्द बर्दाश्त से बाहर हो, चलने में छड़ी की जरूरत महसूस हो रही हो तो ऑपरेशन की जरूरत
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