Wednesday, March 2, 2011

शिव की सच्ची उपासना सिद्ध होगी।


विज्ञान की बिग बैंग थ्योरी के अनुसार बकी उत्पत्ति एक महाविस्फोट से हुई थी। इस सिद्धात के बरक्स हम शिव तत्व को रख सकते हैं, जो ऊर्जा के रूप में हमारे पूरे परिवेश में व्याप्त है। सृष्टि के जन्म से अंत तक का परिवेश शिव तत्व है, जिसमें डूबने के लिए हमें जागरूक होना होगा अपने परिवेश और समाज के प्रति..। आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्रीश्री रविशंकर का नजरिया:

शिव वहां होते हैं, जहां मन का विलय होता है। ईश्वर को पाने के लिए लंबी तीर्थ यात्रा पर जाने की आवश्यकता नहीं। हम जहां पर हैं, वहां अगर ईश्वर नहीं मिलता, तो अन्य किसी भी स्थान पर उसे पाना असभव है। जिस क्षण हम स्वय में स्थित, केंद्रित हो जाते हैं, तो पाते हैं कि ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है। शोषितों में, वंचितों में, पेड़-पौधों, जानवरों में.. सभी जगह। इसी को ध्यान कहते हैं।

शिव के कई नामों में से एक है 'विरुपक्ष'। अर्थात जो निराकार है, फिर भी सब देखता है। हमारे चारों ओर हवा है और हम उसे महसूस भी करते हैं, लेकिन अगर हवा हमें महसूस करने लगे तो क्या होगा? आकाश हमारे चारों ओर है, हम उसे पहचानते हैं, लेकिन कैसा होगा अगर वह हमें पहचानने लगे और हमारी उपस्थिति को महसूस करे? ऐसा होता है। केवल हमें इस बात का पता नहीं चलता। वैज्ञानिकों को यह मालूम है और वे इसे सापेक्षता का सिद्धात कहते हैं। जो देखता है और जो दिखता है; दोनों दिखने पर प्रभावित होते हैं। ईश्वर हमारे चारों ओर है और हमें देख रहा है। वह हमारा पूरा परिवेश है। वह दृष्टा, दृश्य और दृष्टित है। यह निराकार दैवत्व शिव है और इस शिव तत्व का अनुभव करना शिवरात्रि है।

साधारणतया उत्सव में जागरूकता खो जाती है, लेकिन उत्सव में जागरूकता के साथ गहरा विश्राम शिवरात्रि है। जब हम किसी समस्या का सामना करते हैं, तब सचेत व जागृत हो जाते हैं। जब सब कुछ ठीक होता है, तब हम विश्राम में रहते हैं। अद्यंतहिनम् अर्थात जिसका न तो आदि है न अंत, सर्वदा वही शिव है। सबका निर्दोष शासक, जो निरंतर सर्वत्र उपस्थित है। हमें लगता है शिव गले में सर्प लिए कहीं बैठे हुए हैं, लेकिन शिव वह हैं, जहां से सब कुछ जन्मा है, जो इसी क्षण सब कुछ घेरे हुए है, जिनमें सारी सृष्टि विलीन हो जाती है। इस सृष्टि में जो भी रूप देखते हैं, सब उसी का रूप है। वह सारी सृष्टि में व्याप्त है। न वह कभी जन्मा है न ही उनका कोई अंत है। वह अनादि है।

शिव के पांच रूप हैं- जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश। इन पांचों तत्वों की समझ तत्व ज्ञान है। शिव तत्व में हम उनके पांचों रूपों का आदर करते हैं। हम उदार हृदय से शुभेच्छा करें कि ससार में कोई भी व्यक्ति दुखी न रहे। सर्वे जन: सुखिनो भवंतु..। पृथ्वी के सभी तत्वों में देवत्व है। वृक्षों, पर्वतों, नदियों और लोगों का सम्मान किए बिना कोई पूजा संपूर्ण नहीं होती। सब के सम्मान को 'दक्षिणा' कहते हैं। दक्षिणा का अर्थ है कुछ देना। जब हम किसी भी विकृति के बिना, कुशलता से समाज में रहते हैं, क्रोध, चिंता, दु:ख जैसी सब नकारात्मक मनोवृत्तियों का नाश होता है। हम अपने तनाव, चिताएं और दु:ख दक्षिणा के रूप में प्रकृति और परिवेश को दे दें और अपना समय दुखियों-पीड़ितों की सेवा को समर्पित कर दें। यही शिव की सच्ची उपासना सिद्ध होगी।

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