Friday, December 17, 2010


मध्यप्रदेश की राजनीति में ‘बुआजी’ के नाम से चर्चित और वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रही जमुना देवी ने वर्ष 1995 में कांग्रेस के वर्तमान महासचिव और तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बारे में टिप्पणी की थी, ‘‘ मैं आजकल मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के तंदूर में जल रही हूं।’’ इन्हीं बुआजी ने एक बार कहा था - मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने सलाहकार और वामपंथी विचारधारा के समर्थक संगठनों को विशेष महत्व दे रहे हैं, जिससे नक्सली गतिविधियां फल-फूल रही हैं।
जानकारों के मुताबिक राघोगढ़ ने हमेशा ही अंग्रेजों का साथ दिया। राजा अजीत सिंह के दरम्यान राघोगढ़ के ब्रिटिश राज के ही अधीन रहा। 1904 में राघोगढ़ सिंधिया राज के अधीन हो गया। राघोगढ़ के तब के राजा सिंधिया को नजराना दिया करते थे। राघोगढ़ के राजा बहादुर सिंह भारतीय राजाओं में अंग्रेजों के सबसे वफादार थे। इनकी इच्छा थी कि वे प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से लड़ते हुए मारे जायें। अंग्रेजों की इस वफादारी के लिए राघोगढ़ राजघराने को वायसराय का धन्यवाद भी मिला। इतिहास के पन्नों में इस बात का उल्लेख है कि राघोगढ़ सामंत ने अपने क्षेत्र अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों की हर आवाज को दबाया। 1857 के गदर के दौरान भी यह राजघराना भारतीयों की बजाए अंग्रेजों के ही साथ था। दिग्विजय सिंह को यह अवसर मिला था कि वे राघोगढ़ पर लगने वाले आरोपों का जवाब देते, लेकिन उन्होंने न तो अपने 10 वर्षों
के अपने शासन में और न ही अब ऐसा कोई प्रयास किया। बजाए इसके वे लगतार ऐसे बयान दे रहे हैं जिससे आतंवादियों और उनके पोषक शक्तियों को ही मदद मिल रही है। मामला चाहे बटला हाउस का हो या आजमगढ़ जाकर आतंकियों के परिजनों से मुलाकात का, हर बार दिग्विजय सिंह पर आतंकियों की मदद करने का आरोप लगा।
मध्यप्रदेश भाजपा ने दिग्विजय सिंह और खूखंार अपराधियों के गठजोर को केन्द्र में रखकर एक पुस्तिका प्रकाशित की थी। ‘एक संदिग्ध मुख्यमंत्री’ नाम से प्रकाशित इस पुस्तिका में मालवा क्षेत्र के खूंखार अपराधी खान बन्धुओं और दिग्विजय के संबंधों को उजागर किया गया था। मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 15 अगस्त, 1995 को स्वतंत्रता दिवस पर भेापाल में बोलते हुए कहा कि ‘‘यहां अल्पसंख्यक असुरक्षा की भावना से पीड़ित होते हैं, और इसीलिए वे हथियारों का जमाव करते हैं।’’ दरअसल दिग्गी अपने उपर लगे आरोपों को ही जायज ठहरा रहे थे। भाजपा ने उन पर संगीन आरोप लगाए थे। गौरतलब है कि 1994-95 में जब गुजरात पुलिस ने मालवा के उज्जैन जिले से पप्पू पठान की गिरफ्तारी की तब विदेशी हथियार कांड का भांडा फूटा। यह भी पता चला कि इसमें रतलाम नगर पालिका निगम का पार्षद भी शामिल है जो दिग्विजय सिंह के पैनल से चुनाव लड़ा था। इस पार्षद का नाम आर.आर खान बताया गया। महिदपुर निवासी पप्पू पठान की जानकारी के आधार पर आर.आर खान के छोटे भाई महमूद खान के पास से कार्बाइन सहित अनेक विदेशी हथियार बरामद हुआ। पकड़े गए आरोपियों का संबंध तस्कर छोटा दाउद और सोहराब पठान से भी पाया गया। पुलिस की तफतीश में यह भी पता चला कि इन सभी आरोपियों को दिग्विजय सरकार के कई मंत्रियों और स्वयं मुख्यमंत्री तथा अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष इब्राहीम कुरैशी का संरक्षण भी प्राप्त है। मीडिया और विपक्ष ने दिग्विजय सिंह द्वारा मेहमूद खान और उसके बड़े भाई आर.आर खान के बचाव में दिए गए बयान को खूब उछाला था। यह भी आरोप लगा कि इंदौर स्थित खंडवा रोड पर मालवा फार्म हाउस, जहां से देशी-विदेशी हथियारों का जखीरा पकड़ा गया था, तत्कालीन दिग्विजय सरकार के मंत्रीमंडल के कई सदस्यों द्वारा अय्याशी के लिए उपयोग किया जाता था। यह गठजोड़ न सिर्फ अखबारों की सुर्खियों में आया, बल्कि मध्यप्रदेश की विधानसभा में भी गूंजा।

मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भोपाल में पत्रकारों से बात करते हुए कहा- दिग्विजय सिंह सिर्फ दया के पात्र हैं। वर्ष 2003 में वे मध्यप्रदेश से बेदखल कर दिए गए थे। इस बेदखली में संघ को दोषी मानते हैं। बकौल सुश्री भारती दिग्विजय सिंह को लगता है कि मध्यप्रदेश से कांग्रेस और उनको बेदखल करने में संघ की ही भूमिका थी। इसीलिए वे हर बात में संघ का नाम घसीटते हैं। दिग्विजय सिंह ने हमेशा ही संघ को कटघरे में खड़े करने की कोशिश की है। हिन्दू आतंकवाद का नारा उछालने और संघ को आतंकी संगठन सिद्ध करने के लिए उन्होने हर संभव कोशिश की। हालांकि दिग्विजय सिंह का दामन स्वयं ही दागदार है। कुछ दिन पहले ही माकपा-माओवादी के केन्द्रीय समिति सदस्य तुषारकांत भट्टाचार्य ने एक साप्ताहिक पत्रिका को बताया था कि दिग्विजय सिंह ने पिछले साल अगस्त में उनकी पार्टी से संपर्क साधा थाा। यह कोशिश हैदराबाद के एक कांगेेसी नेता के जरिए की गई थी। भट्टाचार्य के मुताबिक उस वक्त वह वारंगल जेल में था। गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह ने गृहमंत्री चिदंबरम की नक्सल विरोधी नीति की आलोचना की थी।

दिग्विजय सिंह का ताजा बयान यही बयां करता है कि उन्होंने देशभक्ति का कोई सबक नहीं सीखा है, बल्कि इसके उलट वे अंग्रेजो से लेकर आतंकियों और देश विरोधियों के समर्थक के तौर पर उभरे हैं। अब यह सच भी उजागर होन लगा है कि उन्हीं के राज में सिमी, नक्सली गतिविधियां, बांग्लादेशी घुसपैठ और आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा मिला, बल्कि अरुंधती राय जैसी देश विरोधी बुद्धिजीवियों को भी शह मिला। इतिहास के पन्नों में यह दर्ज है कि दिग्विजय सिंह के पुरखे अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे। अब अखबारों में यह दर्ज हो रहा है कि दिग्विजय सिंह ने आर.आर खान से लेकर अजमल कसाब तक की रहनुमाई राजनीति कैसे की। इन सब से कांग्रेस और दिग्विजय की धर्मनिरपेक्ष छवि को कितना बल मिला या उनके वोट बैंक में कितना इजाफा हुआ यह तो नहीं मालूम, लेकिन तब प्रदेश का और अब पूरे देश का नुकसान जरूर हो रहा है।

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