Thursday, December 23, 2010
ज्योतिरादित्य को मिल सकती है प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी
ज्योतिरादित्य को मिल सकती है प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी
लिमटी खरे
केंद्रीय वाणिज्य उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद आलाकमान की नजरों में एकाएक बढ़ गया है। वहीं स्थिति को भांपते हुए कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी सिंधिया की तारीफ में कशीदे गढ़ने आरंभ कर दिए हैं।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ और भविष्य की राजनीति के केंद्र राहुल गांधी के सबसे विश्वस्त दिग्विजय सिंह के द्वारा दिए गए संकेतों ने साफ कर दिया है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को जल्द ही कोई महत्वपूर्ण जवाबदारी से नवाजा जा सकता है।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश में रसातल में जाती कांग्रेस की नैया को खेने के लिए ज्योतिरादित्य को सूबे में कांग्रेस का निजाम बनाकर भेजा जा सकता है। सूत्रों ने कहा कि अगर सिंधिया ने प्रदेश की राजनीति में जाने से इंकार कर दिया तो निश्चित तौर पर उन्हें कांग्रेस संगठन में बड़ा पद या सरकार में उनकी पदोन्नति सुनिश्चत ही है।
सूत्रों ने संकेत दिए कि सिंधिया के इंकार करने की स्थिति में मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए कमल नाथ के करीबी सांसद सज्जन सिंह वर्मा का नाम सबसे उपर चल रहा है। उसके बाद राहुल गांधी की करीबी मंदसौर की सांसद मीनाक्षी नटराजन का नाम है। सूत्रों ने बताया कि मीनाक्षी नटराजन के संसदीय क्षेत्र के अनेक कांग्रेस कार्यकर्ताओं के भाजपा का दामन थामने की खबरें भी आलाकमान को दी गई हैं। अध्यक्ष की दावेदारी में एकाएक उभरे सांसद राजूखेड़ी का नाम अब काफी हद तक पीछे चला गया है।
बुराड़ी महाधिवेशन में युवा सांसद और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने उद्बोधन मंे साफ तौर पर कहा था कि गणेश परिक्रमा के बजाए पराक्रम की राजनीति को पार्टी में स्थान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनावों की टिकिट दिल्ली से बांटने का क्या ओचित्य है? इसके साथ ही साथ उन्होंने प्रस्ताव दिया कि बागियों को पार्टी में वापस लेने की परंपरा बदली जाए, उन्हें छः साल साल बाद ही पार्टी में लिया जाए।
ज्योतिरादित्य के पिता स्व.माधवराव सिंधिया ने भी तत्तकालीन कांग्रेस अध्यक्ष पी.व्ही.नरसिंहराव की कार्यप्रणाली से खफा होकर 1996 में कांग्रेस से किनारा कर लिया था। बाद में सीताराम केसरी के अध्यक्ष बनने के उपरांत वे कांग्रेस में पुनः वापस लौटे थे।
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