Friday, December 17, 2010

बदलाव क्या आया है? विकीलाक्स और भांडाफोड़ करने वाली ऐसी दूसरी एजेंसियां हमेशा ये तय कर सकती हैं कि उन्हें क्या चीज लीक करनी है और सबसे बड़ा बदलाव ये ह

बदलाव क्या आया है? विकीलाक्स और भांडाफोड़ करने वाली ऐसी दूसरी एजेंसियां हमेशा ये तय कर सकती हैं कि उन्हें क्या चीज लीक करनी है और सबसे बड़ा बदलाव ये है कि विकीलीक्स दुनियाभर के सामने अपनी सूचनाओं को एक ऐसे सिस्टम पर प्रकाशित और प्रोत्साहित कर सकती है जिसपर एकबार प्रकाशन के बाद जिसमें बदलाव करना, उसे हटाना लगभग असंभव है। आखिर ऐसा सिस्टम आया कहां से?
असांज ने विकीलीक्स की स्थापना 2006 में की थी। इससे दुनियाभर के सिटीजन जर्नलिस्टों और भांडाफोड़ करने वाले कार्यकर्ताओं को अपनी सूचनाएं लोगों तक पहुंचाने का जरिया मिल गया। असांज कहते हैं, “विकीलीक्स एक तकनीकी, कानूनी और राजनीतिक औजार का एक मिला-जुला रूप है। ” अपनी स्थापना के बाद से विकीलीक्स बहुत से हाई-प्रोफाइल लीक्स को अंजाम दे चुका है, इनमें केन्या की सरकार में भ्रष्टाचार को उजागर करने से लेकर ब्रिटिश नेशनल पार्टी के सदस्यों की लिस्ट और बदनाम ग्वांटानामो-बे जेल का ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स मैनुअल तक शामिल हैं। लेकिन इस साल हुए विकीलीक्स के लीक्स वाकई बेमिसाल रहे हैं।

जूलियन असांज का जीवन


जूलियन असांज का जन्म ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के टाउन्सविले में 39 साल पहले हुआ था। असांज के माता-पिता एक थियेटर ग्रुप में काम करते थे, लेकिन असांज के जन्म के कुछ दिन बाद ही मां-बाप में अलगाव हो गया। असांज ने जब होश संभाला तो उन्होंने अपने मां-बाप को अदालत में उनकी कस्टडी लेने के लिए झगड़ते हुए देखा। इसके बाद मां ने दूसरी शादी कर ली और घर में असांज का एक सौतेला भाई भी आ गया। लेकिन दूसरे पिता का साया भी जल्दी ही सर से उठ गया। इसके बाद मां दोनों बेटों को सीने से लगाए यहां-वहां इस डर से छिपती फिरती रही कि असांज के पहले पिता कहीं उसे छीनकर न ले जाएं। असांज को बचपन का एक हिस्सा गुमनामी में लगभग भूमिगत रहकर गुजारना पड़ा। हालात इतने बदतर थे कि 14 साल के होते-होते असांज अपनी मां के साथ 37 बार शहर और घर बदल चुके थे। इन हालातों में असांज की ज्यादातर शिक्षा घर में ही हुई, जिसमें असांज की दिलचस्पी साइंस और गणित में ज्यादा थी। टीन एज में असांज की दिलचस्पी कंप्यूटर्स में हुई और जल्दी ही वो मशहूर हैकर बन गया। 1980 में असांज इंटरनेशनल सबवर्सिव्स नाम के एक हैकर ग्रुप के सबसे कम उम्र के सदस्य बन चुके थे। कम उम्र का ये हैकर तमाम सरकारी और कारोबारी सर्वर्स में आराम से घुसपैठ कर लेता था। जल्दी ही ऑस्ट्रेलियाई पुलिस ने असांज को गिरफ्तार कर लिया और 20 साल से कम उम्र में ही असांज अदालत में हैकिंग के जुर्म में मुकदमे का सामना कर रहे थे।

जिंदगी के दोराहे पर असांज


अदालत ने उन्हें सजा दी, लेकिन अच्छे बर्ताव की वजह से वो जल्दी ही जेल से रिहा हो गए। असांज अब ऐसे दोराहे पर थे जब एक रास्ता अपराध की ओर जा रहा था और दूसरा सामान्य जिंदगी की ओर। उन्होंने इन दोनों रास्तों को छोड़कर अपने लिए एक तीसरा रास्ता तैयार किया, जिसमें अपराधी दिमाग की खुराफात तो थी लेकिन उसका इस्तेमाल आम लोगों के नुकसान के लिए नहीं था।
1989 में असांज अपनी गर्लफ्रैंड के साथ पति-पत्नी की तरह रहने लगे। उनके एक बेटा भी हुआ, लेकिन 1991 में हैकिंग के एक मामले में पुलिस ने जब उनपर छापा मारा तो उनकी गर्लफ्रैंड बेटे को लेकर उनसे अलग हो गई। असांज की जिंदगी जहां से शुरू हुई थी वहीं वापस आकर ठहर गई। असांज जब छोटे थे तब उन्होंने अपने लिए अपने मां-बाप को अदालत में झगड़ते देखा था, अब वो खुद अपने बेटे की कस्टडी पाने के लिए अदालत में अपनी गर्लफ्रेंड से झगड़ रहे थे।
असांज केस हार गए, लेकिन इस हार से उनकी दिलचस्पी सामान्य जिंदगी में बढ़ गई। असांज एक बदलाव के लिए वियतनाम के दौरे पर निकल गए, वहां उन्होंने अमेरिकी हमले और फौजी ज्यादतियों के निशान भी देखे। यहां से असांज के भीतर एक स्वयंसेवक का जज्बा पैदा हुआ। वियतनाम से लौटकर एक नई शुरुआत करने के लिए असांज ने मेलबर्न यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और 2003 से 2006 तक उन्होंने फिजिक्स और मैथमैटिक्स की ग्रैजुएशन पढ़ाई भी की लेकिन वो अपनी डिग्री पूरी नहीं कर सके। लेकिन यूनिवर्सिटी के माहौल ने उनके विचारों को राजनीति और कुछ कर गुजरने के लिए संस्कारित किया और उनके भीतर दबा हुआ क्रांतिकारी का जज्बा आकार लेने लगा। 2006 वो वक्त था जब अपने जैसे समान विचारों वाले कुछ युवाओं के साथ मिलकर उन्होंने विकीलीक्स की स्थापना की। इस साइट की होस्ट एक स्वीडिश इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनी थी। स्वीडन का चुनाव इसलिए किया गया, क्योंकि इस देश के कानून पोल खोलने वाले स्वयंसेवकों को एक तरह की सुरक्षा प्रदान करते हैं।

विकीलीक्स की तकनीक


शुरुआत में विकीलीक्स की टीम ने दुनियाभर की वेबसाइट्स खंगालकर उनके डेटा को अपनी साइट में डालना शुरू किया। इसके बार मदद ली गई पियर-टू-पियर नेटवर्क की, जिसपर सेंसरशिप लगाना वर्चुअली असंभव है। पियर-टू-पियर यानि पी-टू-पी वही वर्चुअल नेटवर्क है जिससे दुनियाभर में इंटरनेट से फिल्में मुफ्त में डाउनलोड की जाती हैं। लेकिन ये सब करते हुए असांज की टीम ने अपनी पहचान छिपाए रखने पर भी पूरा ध्यान दिया। विकीलीक्स ने अपने सोर्सेज की पहचान छिपाने के लिए एक ऐसे सिस्टम पर आधारित नेटवर्क का सहारा लिया जिसे ‘टोर’ कहा जाता है। ‘टोर’ ओनियन राउटिंग के ही आगे का संस्करण है जिसे अमेरिकी नौसेना के खुफिया विभाग ने दुनियाभर में काम कर रहे अपने एजेंटों से इंटरनेट पर गोपनीय बातचीत करने के लिए विकसित किया था। इस नेटवर्क के सभी संदेश खुफिया कोड में होते हैं, जिन्हें आम संदेशों की तरह पढ़ा नहीं जा सकता।
यूनिवर्सिटी आफ कैंब्रिज के कंप्यूटर सेक्योरिटी रिसर्चर रॉस एंडरसन बताते हैं, “ मजे की बात ये है कि अमेरिकी सरकार ने जिस सिस्टम को अपनी खुफियागिरी के लिए विकसित किया था, आज वही उसका शिकार बनकर रह गया है।”
सवाल ये कि जूलियन असांज और मुट्ठीभर हैकर्स की उनकी गुमनाम टीम किसी सूचना की पड़ताल कैसे करती है? असांज इसका जवाब देते हैं, “ विकीलीक्स पर कोई सूचना डालने से पहले उसकी गहराई से पड़ताल की जाती है और हर तरह से तसल्ली कर ली जाती है कि जो सूचना दी जा रही है वो असली है या नहीं। हम अपने सोर्स से संपर्क करते हैं और जैसा कि इराक नरसंहार वीडियो के मामले में हमने किया, हमने वीडियो और दस्तावेज देने वाले सोर्स से उस वक्त के जमीनी हालात की छोटी से छोटी तमाम जानकारियां लीं और उन्हें दूसरे सोर्स के जरिए से कन्फर्म किया। अब तक की अपनी जानकारी के हिसाब से हम पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि हमने कोई भी जाली सूचना विकीलीक्स पर प्रकाशित नहीं की है।”
जो चीज स्पष्ट नहीं है, वो ये कि आखिर ये कौन तय करता है कि कौन सी सूचना विकीलीक्स पर प्रकाशित करनी है और कब ? असांज इस सवाल का कोई जवाब नहीं देते कि उनका संगठन काम कैसे करता है। ये भी हैरानी की बात है, कि लोकतंत्र और पारदर्शिता की मशाल उठाने वाले संगठन के कामकाज के तौर-तरीकों पर इतनी गोपनीयता क्यों बरती जा रही है ? और इसका मकसद क्या है ? विकीलीक्स वेबसर्वर के जरिए मैंने अपने स्तर पर ये पड़ताल करने की कोशिश की और विकीलीक्स के एक स्वयंसेवक से संपर्क किया, उसने मुझे बताया कि पांच स्वयंसेवकों की एक कोर कमेटी विकीलीक्स का कंटेंट तय करती है और साइट पर क्या प्रकाशित होगा और क्या नहीं ये तय करने का अधिकार काफी हद तक असांज के पास ही है।
प्रस्तुतकर्ता sandeep पर २:२७ पूर्वाह्न 1 टिप्पणियाँ इसे ईमेल करें इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें Facebook पर साझा करें Google Buzz पर शेयर करें
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सोमवार, २९ नवम्बर २०१०‘स्पेक्ट्रम’ आखिर है क्या ?
17 वीं सदी में महान वैज्ञानिक इसाक न्यूटन ने एक ऐसा प्रयोग किया जिसने साइंस की धारा ही बदल दी। उन्होंने अपनी प्रयोगशाला के सभी खिड़की दरवाजे बंद कर दिए। फिरभी प्रयोगशाला में पूरा अंधेरा नहीं हो सका, क्योंकि खिड़की की एक दरार से सूरज की किरण भीतर आ रही थी। न्यूटन ने मुस्कराते हुए शीशे का एक छोटा प्रिज्म उठाया और उसे सूरज की उस किरण के सामने ले गए। एक जादू सा हो गया और सूरज की रोशनी का रहस्य सामने आ गया। सामने रखे एक सफेद बोर्ड पर इंद्रधनुष खिल उठा, दरअसल शीशे के प्रिज्म ने सूरज की रोशनी में मौजूद सात उन रंगों को अलग कर दिया था। हमारी आंख जो कुछ भी देखती है वो इन सात रंगों की सीमा में ही सिमटा रहता है। न्यूटन ने सूरज की रोशनी में छिपे इन सात रंगों को स्पेक्ट्रम कहा, और फिजिक्स में एक नई शुरुआत हो गई।
हमारा सूरज और एक साधारण अणु ये दोनों ही स्पेक्ट्रम के प्राकृतिक स्रोत हैं। आज स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल हम हर रोज जाने-अनजाने करते रहते हैं, टीवी के रिमोट से लेकर लैपटॉप पर वॉयरलेस इंटरनेट, माइक्रोवेव ओवेन, खिली-खिली धूप और मोबाइल फोन तक सब स्पेक्ट्रम का ही कमाल है। न्यूटन ने हमें स्पेक्ट्रम के गुण के बारे में बताया लेकिन स्पेक्ट्रम की वजह को गहराई से समझा महान भारतीय वैज्ञानिक सर सी.वी. रमन ने। रमन ने अगर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का राज नहीं समझा होता तो आज न तो रिमोट होता और न मोबाइल फोन। हर अणु परमाणुओं सो बनता है और हर परमाणु के केंद्र में एक नाभिक होता है, जिसमें प्रोटान और न्यूट्रॉन होते हैं और अलग-अलग कक्षाओं में परिक्रमा करते इलेक्ट्रान चारों ओर से नाभिक को घेरे रहते हैं। अब शुरू होता है असली खेल, जब परमाणु को गर्म किया जाता है तो नाभिक की परिक्रमा करते इलेक्ट्रान अपनी कक्षा से छलांग लगाकर और ऊपर वाली कक्षा में पहुंच जाते हैं। इसी तरह जब परमाणु को ठंडा किया जाता है तो नाभिक की परिक्रमा कर रहे इलेक्ट्रान निचली कक्षाओं में गिर जाते हैं। सबसे खास बात ये कि नाभिक के चारोंओर घूमता इलेक्ट्रान जब भी अपनी कक्षा से ऊपर छलांग लगाता है या नीचे गिरता है, उस वक्त वो खास स्पेक्ट्रम छोड़ता है। इसे कहते हैं इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम। रमन ने पता लगाया कि कुदरत में मौजूद सभी धातुओं, खनिजों, गैसों और तरल का स्पेक्ट्रम बिल्कुल अलग-अलग होता है। ये स्पेक्ट्रम बिल्कुल उंगलियों के निशान जैसा होता है यानि हर तत्व का स्पेक्ट्रम बिल्कुल अलग और अनोखा। इस खोज के लिए रमन को भौतिकी के नोबेल से सम्मानित किया गया और तत्वों से निकलने वाले स्पेक्ट्रम को रमन इफेक्ट कहा गया। आज रमन इफेक्ट से ही हम चंद्रमा और मंगल ग्रह मौजूद खनिजों का पता लगा रहे हैं, और खोजे जा रहे नए ग्रहों के बारे में यहीं बैठे-बैठे बता सकते हैं कि वहां पानी है या नहीं, या उसका वातवरण कैसा है।
इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन की वजह जानने के बाद अब मनचाही स्पेक्ट्रम को हासिल करना आसान हो गया, और यहीं से स्पेक्ट्रम के कारोबारी इस्तेमाल की शुरुआत हुई। फ्रीक्वेंसी और वेवलेंथ हर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन की खास पहचान होती है, और इसी के आधार पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन को रेडियो, माइक्रोवेव, इंफ्रारेड, विजिबिल, अल्ट्रावॉयलेट, एक्स-रे और गामा-रे की पहचान की गई। ये सारी स्पेक्ट्रम, जिन्हें हम रेडिएशन भी कह सकते हैं, इनमें से कुछ हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचाती और हमारे बेहद काम की हैं, जैसे रेडियो जिससे हम टीवी के प्रोग्राम्स देखते हैं, माइक्रोवेव जिससे सेटेलाइट संचार और ओवन से लेकर मोबाइल फोन तक काम करते हैं और इंफ्रारेड जिसपर सभी रिमोट काम करते हैं। समुद्र के किनारे की धूप में 53 फीसदी इन्फ्रारेड, 44 फीसदी दिखाई देने वाली रोशनी और 3 फीसदी अल्ट्रावॉयलेट किरणें होती हैं। अल्ट्रावॉयलेट, एक्स-रे और गामा-रे स्पेक्ट्रम बेहद खतरनाक हैं और इनके संपर्क में कुछ देर रहने से ही हम बीमार पड़ सकते हैं।
मोबाइल, सेटेलाइट और टेलीविजन इन तीनों में माइक्रोवेव और रेडियो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल किया जाता है। अब सवाल ये कि आखिर इसका कारोबारी इस्तेमाल कैसे होता है? दरअसल किसी स्पेक्ट्रम का कारोबारी इस्तेमाल इन बातों से तय होता है कि उसकी तरंग की लंबाई कितनी है, उसकी फ्रिक्वेंसी (वेवलेंथ या साइकल प्रति सेकंड) क्या है और वो कितनी ऊर्जा कितनी दूर तक साथ ले जा सकती है।
रेडियो वेव स्पेक्ट्रम से लंबी दूरी तय की जा सकती हैं और वह भी बिना किसी दिक्कत के। रेडियो वेव स्पेक्ट्रम की तरंगें काफी लंबी होती हैं। इनकी वेवलेंथ 1 किलोमीटर से लेकर 10 सेंटीमीटर तक की होती है और फ्रिक्वेंसी भी 3 किलोहट्र्ज (3,000 साइकिल प्रति सेकंड) से लेकर 3 गीगाहट्र्ज (3 अरब साइकिल प्रति सेकेंड) तक के बीच होती है। रेडियो तरंगों को सबसे ज्यादा असर भाप और आयन से होता है। साथ ही, इन पर सोलर फ्लेयर और एक्सरे किरणों के विस्फोट का भी असर होता है। साथ ही, पहाड़ों की वजह से भी रेडियो तरंगों से संचार में काफी असर पड़ सकता है। छोटी फ्रिक्वेंसी मकानों और पेड़ों को भी पार कर सकती हैं। साथ ही, ये पहाड़ों के किनारे से भी निकल सकती हैं।
माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम का सबसे फायदेमंद इस्तेमाल दूरसंचार और इंटरनेट में होता है। दूरसंचार और ब्रॉडबैंड के लिए 700-900 मेगाहट्र्ज की छोटी फ्रिक्वेंसी काफी फायदेमंद होती हैं। सेंटीमीटर और मिलीमीटर की रेंज वाली माइक्रोवेव्स की फ्रिक्वेंसी 300 गीगाहट्र्ज तक हो सकती है। इसके अलग-अलग प्रकार के इस्तेमाल को देखते हुए इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। ली बार

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