Tuesday, December 28, 2010
मासिक धर्म .स्त्री स्वास्थ्य
P अल्पना वर्मा on Monday, December 27
Labels: -अल्पना वर्मा, मासिक धर्म .स्त्री स्वास्थ्य Disclaimer -यहाँ दी गयी जानकारी केवल शैक्षिक एवं सूचना के प्रसार हेतु है.
यह जानकारी किसी भी तरह से चिकित्सीय परामर्श या व्यवसायिक चिकित्सा स्वास्थ्य कर्मचारी का विकल्प न समझी जाए.
इस जानकारी के दुरूपयोग की ज़िम्मेदारी लेखिका या सबाई परिवार की नहीं है.
पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी में सम्बंधित चिकित्सा कर्मचारी से परामर्श करें
चूँकि इस ब्लॉग को पुरुष भी पढते हैं तो इस पोस्ट पर यह प्रश्न उठ सकता है कि क्या महिलाओं की इस 'निजी 'कही जानी वाली जानकारी को पुरुषों को भी बताना कितना ज़रुरी है?
उसका यह जवाब है कि आज हम जिस २१ वीं सदी में हैं उस में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर स्त्रियाँ भी काम कर रही हैं.ऐसे में अब वो समय नहीं रहा जब मासिक धर्म के दिनों में लडकियों को अलग कमरे में घर से बाहर रहने को भेज दिया जाता था और इस के बारे में बात करना गलत माना जाता था.
वैसे भी लगभग सभी को यह ज्ञात है कि यह प्रक्रिया स्त्री शरीर की एक कुदरती प्रक्रिया है और स्वस्थ शरीर में इस प्रक्रिया के दौरान सामान्य रूटीन के कार्य करने से कोई असुविधा या हानि नहीं होती. हर स्त्री को इस विषय के बारे में जानने का जितना अधिकार और आवश्यकता है ,उसी तरह हर पुरुष को भी इस प्रक्रिया को समझने की उतनी ही आवश्यकता है.
स्कूल में जहाँ लडके -लड़कियां एक साथ पढते हैं और महिला -पुरुष अध्यापक पढाते हैं ऐसे में जब किसी लडकी को पहली बार मासिक धर्म[Menarche ] शुरू होता है या किसी लड़की को मासिक धर्म में तेज दर्द [डीस्मेनोरिया ]अचानक उठता है तब यह स्थिति असहजता और शर्मिंदगी का वातावरण न बनाये इसके लिए इस सम्बन्ध में सभी को इस का पूर्व ज्ञान /ज्ञान होना ज़रुरी है. यही बात अन्य कार्य स्थलों के लिए भी लागू होती है.
संयुक्त अरब एमिरात में [सरकारी नियम अनुसार ]सभी स्कूलों की कक्षा ६ की छात्राओं को मासिक धर्म के बारे में व्याख्यान स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा दिया जाता है ताकि वे अपने शरीर में होने वाले इस परिवर्तन के लिए मानसिक रूप से तैयार हो सकें.
विवाह उपरान्त गर्भ धारण करने में /परिवार को प्लान करने में भी इस जानकारी का उपयोग किया जा सकता है.
प्रश्न१-मासिक धर्म या माहवारी या रजोधर्म क्या होता है ?
उत्तर- यह किशोर अवस्था पार कर नव यौवन में प्रवेश करने वाली सामान्यत १० से १६ वर्ष की लड़कियों के शरीर में होने वाला एक हार्मोनल परिवर्तन है जो चक्र के रूप में प्रति मास २८ से ३५ दिन की अवधि में एक बार ३ से ५ दिन के लिए होता है .[एमिरात में ९ वर्ष की उम्र में भी यह चक्र शुरू होते देखा गया है.कुछ स्थानों पर ऋतुस्त्राव की अवधि २ से ७ दिनों को भी सामान्य माना जाता है.]इसकी प्रक्रिया को यहाँ दी गयी विडियो में दिए एक साक्षात्कार में डॉ.शीला गुप्ते इस तरह समझाती हैं-:
स्त्री के शरीर में दो अंडाशय और एक गर्भाशय होता है .हर माह किसी एक ओवरी से एक अंडाणु बनता है***.जैसे जैसे यह अंडाणु परिपक्व होता है ,गर्भाशय की भीतरी सुरक्षा परत भी परिपक्व होती जाती है.जब अंडाणु पूरी तरह परिपक्व हो जाता है और निषेचन योग्य बनता है .अगर यह निषेचित हो जाता है तो यह परत भी उसे ग्रहण करने के लिए तैयार हो जाती है और निषेचित अंडाणु को ग्राभाशय में स्थापित करती है जहाँ शिशु बनता है.
इस का अर्थ है कि इस परत का कार्य निषेचित अंडाणु को आरंभिक पोषण देना है.
अगर अंडाणु का निषेचन नहीं होता तब यह परत बेकार हो जाती है तब मासिक धर्म के चक्र के अंत में इस परत के उत्तक ,रक्त ,म्युकस का मिला जुला स्त्राव होता है .
यह रक्त मिश्रित स्त्राव के रूप में योनी से बाहर निकलता है.जिसे मासिक स्त्राव कहते हैं .
Updated-:
***पोस्ट प्रकाशित होने के बाद ऊपर दी गयी जानकारी के विषय में माननीय दिनेशराय द्विवेदीजी ने एक बहुत ही अच्छा प्रश्न किया -
''मेरा एक प्रश्न भी है, यहाँ कहा गया है कि .....हर माह किसी एक ओवरी से एक अंडाणु बनता है.जैसे जैसे यह अंडाणु परिपक्व होता है....
जहाँ तक मेरा ज्ञान है दोनों अंडाशयों (ओवेरी) में जितने अंडाणु होते हैं वे सभी स्त्री के अपनी माँ के गर्भ में रहते ही बन जाते हैं, और बालिका के जन्म से ही उस के अंडाशयों में मौजूद रहते हैं, केवल हर माह एक अंडाणु विकसित हो कर गर्भाशय तक पहुँचने के लिए अपनी यात्रा आरंभ करता है। क्या यह जानकारी सही है?''
---अपने प्रश्न में दिनेश जी ने आपने बिलकुल सही बताया कि बालिका के शरीर में जन्म से ही दोनों अंडाशयों में अंडाणु मौजूद होते हैं.
इसे थोड़ा विस्तार से जानिये -:
हम जानते हैं कि स्त्री के गर्भाशय के दायीं और बायीं तरफ़ अंडाशय utero-Ovarian ligament द्वारा जुड़े होते हैं. माँ के गर्भ में ही female fetus में अंडाणु बन जाते हैं जिनकी संख्या '२० हफ्ते के fetus /foetus ' में लगभग ७ मिलियन होती है ,जन्म के समय यह लगभग २ मिलियन रह जाती है .और puberty के समय यह संख्या 300,000 - 500,000 के बीच होती है.यह कम होती संख्या 'atresia 'प्रक्रिया के कारण होती है जो एक सामान्य प्रक्रिया है.एक पूरे reproductive काल में सामान्यत ४००-५०० अंडाणु ही परिपक्व पूर्ण विकसित हो पाते हैं.[ripen in to mature egg ] .
पहले से मौजूद ये अंडाणु अभी अपरिपक्व होते हैं जो कि अंडाशय में फोलिकल में रहते हैं जहाँ उनका पोषण और संरक्षण भी होता है.इस स्थिति में ये 'संभावित अंडाणु ' potential egg भी कहे जाते हैं.
प्रस्तुत विडियो में डॉ.गुप्ते द्वारा अंग्रेजी में दी गयी जानकारी में 'egg is formed' का अनुवाद 'अंडाणु बनता है 'किया गया है. यहाँ 'is formed ' भ्रामक है उस स्थिति में .[यहाँ 'अंडाणु का विकसित होना 'वाक्य अधिक सटीक होता ].
वास्तव में कोई भी immature ovarian follicle /potential egg तब तक ' true egg ' नहीं कहलाता जब तक कि वह निषेचन क्रिया में सक्षम न हो सके.[An immature egg can not get fertilized.]
२८ दिन के मासिक चक्र में ओवरी में follicle-stimulating होर्मोन के प्रभाव से follicles mature होते हैं और नियत समयावधि में परिपक्व egg को रिलीज़ करने के लिए तैयार होते हैं .इस दौरान कई follicles mature होते हैं लेकिन एक या दो ही dominating होते हैं वही ovulatory phase में परिपक्व ovum को रिलीज़ करते हैं .२८ दिनों ke चक्र में यह phase १२-१६ दिनों में होती है.अधिकतर केसेस में ओवा १४ वें दिन रिलीज़ होता है .
सीधे शब्दों में कह सकते हैं कि उन लाखों अण्डाणुओं में से प्रतिमाह मात्र एक ova परिपक्व हो कर रिलीज़ होता है
प्रश्न २-गर्भावस्था के समय माहवारी क्यूँ नहीं होती?
उत्तर - जब यह विकसित अंडा शुक्राणु से निषेचित होता है तब गर्भाशय के संस्तर से जुड़ जाता है और फिर वहीं विकसित होने लगता है जिसे गर्भ ठहराना कहते हैं .इसी के साथ अब विशेष हार्मोन का रिसाव होता है जो इस संस्तर को thick कर देते हैं जिससे स्त्राव बंद हो जाता है और साथ ही कुछ खास हार्मोन इस अवधि में अंडाशय में अंडाणु का बनना रोक देते हैं.
प्रश्न ३ -क्या माहवारी के समय सभी स्त्रियों को दर्द होता है ?
उत्तर -माहवारी शुरू होने से पहले कमर /पेडू में हल्का दर्द या बेआरामी की शिकायत आम है जिसे पूर्व माहवारी दर्द कहते हैं.
सामान्य रूप से इस स्त्राव के दौरान थोड़े दर्द या बेआरामी की शिकायत कुछ स्त्रियाँ करती हैं.तो अधिकतर कोई तकलीफ महसूस नहीं करतीं.
माहवारी के समय बहुत सी महिलाओं में सामान्य रूप से कमर में दर्द के साथ साथ पाँव में दर्द ,शरीर में भारीपन,उलटी जैसा आना,सर दर्द,दस्त लगना या कब्ज होना,स्तनों में टेंडरनेस,भारीपन ,मूड में बदलाव देखा गया है .
माहवारी के दौरान बार बार तेज असहनीय दर्द ,अत्यधिक स्त्राव या थक्के के रूप में खून बहना साधारण नहीं है यह किसी सम्बंधित रोग के लक्षण हो सकते हैं .इसलिए डॉक्टर से जांच अवश्य कराएं.
प्रश्न ४-क्या महिला में मानसिक तनाव या बदलते मौसम इस के चक्र के देर से या समयावधि से पूर्व होने का कोई कारण हैं?
उत्तर -हाँ ,ऐसा देखा गया है परन्तु इसके कोई ठोस मेडिकल कारण ज्ञात नहीं हैं.
प्रश्न ५ -महावरी के दिनों में महिलाएं अक्सर चिढ चिढ़ी हो जाती हैं ,ऐसा क्यूँ?
उत्तर -इस का कोई ठोस कारण ज्ञात नहीं है परन्तु कुछ विशेषज्ञ इस स्वभाव परिवर्तन का कारण चक्र के समय बहने वाले होरमोन को मानते हैं.
प्रश्न६ -क्या यह चक्र सारी उम्र चलता है ?
उत्तर -नहीं , यह चक्र स्त्री की ४० से ६० आयु के बीच में कभी भी बंद हो जाता है .उम्र के अंतिम मासिक चक्र को रजोनिवृत्ति[ मेनोपोस] कहते हैं .अधिकतर स्त्रियों में रजोनिवृत्ति की औसत उम्र 51 साल देखी गयी है.
प्रश्न ७ -कितना रक्त एक चक्र में महिला के शरीर से बहता है?
उत्तर -एक सामान्य चक्र में औसतन ३५ मिलीलीटर or १५ to ८० मिलीलीटर तक खून स्त्री के शरीर से बह जाता है.
प्रश्न ८-स्त्राव के दौरान लगाये पेड [pad ] को कितनी देर में बदलना चाहिए?
उत्तर-प्रस्तुत विडियो में डॉ शीला ने कहा है कि जब भी पेड पूरा गीला हो जाये बदल देना चाहिए और नहीं तो हर ८ घंटे में ,रात को सोने के बाद सुबह इसे बदला देना चाहिए .सारा दिन लगाये रखने से इस में जीवाणु पनपेंगे जो दुर्गन्ध और इन्फेक्शन फैलायेंगे.इसलिए इस समय सफाई का खास ध्यान महिलाओं को रखना चाहिए .
प्रश्न९-मासिक धर्म के चक्र में गिनती कैसे की जाये?
उत्तर - २८ दिन के चक्र का पहला दिन माना जाता है जिस दिन स्त्राव शुरू होता है उस दिन से २८ दिन गिन कर २९ वें दिन से अगला चक्र शुरू होना चाहिए.
जैसे अगर १ दिसंबर को किसी को स्त्राव शुरू हुआ है तो अगला चक्र २९ दिसंबर से होना चाहिए और उससे अगला चक्र २६ जनवरी को.
डॉ गुप्ते के अनुसार मासिक चक्र को देर से या जल्दी लाने वाली दवाएं नहीं खानी चाहिए .इसका विपरीत असर चक्र की नियमितता पर पड़ता है.ऐसी हार्मोनल दवाओं के अधिक इस्तमाल करने से रक्त के जमने पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है.
इस विषय में फैली भ्रांतियों-विभिन्न धारणाओं के बारे में हम अगली पोस्ट में बात करेंगे .
[इस जानकारी के स्त्रोत -विभिन्न वेब साईट और सबंधित पुस्तक ]
अब प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शीला गुप्ते से सुनीये और विडियो में देखीये कि मासिक धर्म क्या होता है और इस समय स्त्रियों को स्वच्छता का किस तरह और क्यूँ ध्यान रखना चाहिए.
Dr. (Mrs.) Sheela Gupte [M.D.],
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