Thursday, December 23, 2010

उमा भारती का प्रदेश निकाला


राष्ट्रभक्ति का त्रिपुण्ड लगाये फिरने वाला संघ परिवार देश की गम्भीर से गम्भीर परिस्तिथि में भी सत्ता की राजनीति के सस्ते हथकण्डे अपनाने से बाज नहीं आता। कश्मीर में विदेशी घुसपैठियों और अलगाववादी तत्वों ने अपने मिशन को पाने के लिए वहाँ जो साम्प्रदायिक तनाव पैदा किया था उसके दुष्परिणाम स्वरूप कुछ हजार कश्मीरी पण्डितों को घाटी छोड़कर प्रदेश के दक्षिणी हिस्से जम्मू और कुछ को दिल्ली में शरण लेनी पड़ी थी।

इस दुखद स्तिथि को संघ परिवार एक हथकण्डे की तरह से लगातार भुनाने में लगा है और इस सम्वेदनशील राज्य में अलगाववादियों के मंसूबों को पूरा करने में मददगार हो रहा है। इन विस्थापित नागरिकों को गत दो दशक से सरकार की ओर से प्रतिमाह आर्थिक मदद दी जाती है जो चार हजार रुपये प्रतिमाह, नौ किलो गेंहूँ, दो किलो चावल, और एक किलो चीनी तक सीमित है। धरती की जन्नत छोड़कर आने वालों को दस गुणा बारह का टीन की छत वाला एक आश्रय उपलब्ध कराया गया है। भले ही देश के नागरिकों की औसत आमदनी से यह सहायता दुगुनी होती है, किंतु अपने वतन से विस्थापित हुओं के लिए इस राशि को कितना भी बड़ा दिया जाये पर उनके जबरन विस्थापन के दर्द का मुआवजा नहीं बन सकता। केन्द्र में किसी भी दल की सरकार रही हो वह यह चाहती रही है कि शरणार्थियों की तरह रह रहे इन विस्थापितों को अपने स्थान पर वापिस लौटने का मौका मिले। यह स्थिति केन्द्र में भाजपा के शासन काल में भी नहीं बदल सकी थी। अंतर केवल इतना है कि जब केन्द्र में भाजपा सरकार नहीं होती तब वे इस दुखद स्थिति पर गैरजिम्मेवाराना राजनीति करते हुए इसे साम्प्रदायिक भेदभाव फैलाने का आधार बना लेते हैं इससे स्थिति और कठिन हो जाती है और सुधार की सम्भावनाओं को ठेस लगती है।

इसी संघ परिवार की राजनीतिक शाखा भाजपा, अपनी एक वरिष्ठ नेता उमा भारती को उनके अपने प्रदेश से निकाला दे रही है, जबकि उमा भारती को उसी तरह मध्य प्रदेश पसन्द है जिस तरह तस्लीमा नसरीन को बंगाल की धरती पसन्द है। सुश्री उमाभारती बचपन से ही जनता के प्रिय काव्य रामचरित मानस को कंठस्थ करने के लिए लोकप्रिय हो गयी थीं। भाजपा ने जब सत्ता पाने के लिए अयोध्या में रामजन्म भूमि मंदिर के बहाने राजनीतिक अभियान छेड़ा था तो सभी तरह की उपलब्ध लोकप्रियता को वोटों में भुनाने की जुगत भिड़ाई थी। सुश्री भारती की लोकप्रियता का राजनीतिक लाभ लेने के लिए उन्हें उनके धार्मिक कार्य से विमुख करके पार्टी में सम्मलित कर लिया गया था और लोकसभा का टिकिट दे दिया गया था। स्मरणीय है कि सुश्री भारती भाजपा के पास टिकिट माँगने नहीं गयी थीं अपितु भाजपा की नेता विजया राजे ने आगे आकर उन्हें उसी तरह टिकिट दिया था, जिस तरह बाद में हेमा मलिनी, स्मृति ईरानी, दीपिका चिखलिया, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, दारा सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू, चेतन चौहान, धर्मेन्द्र, अरविंद त्रिवेदी,आदि आदि को दिया गया था। कहा जाता है कि औपचारिक शिक्षा कम लेने के कारण उनके जन्म वर्ष का उचित रिकार्ड उपलब्ध नहीं था और उनकी उम्र उस समय लोकसभा सदस्य हेतु उम्मीदवार के लिए तय उम्र की सीमा से कम थी, पर इस पर कोई ध्यान ही नहीं गया। उन्हें उनकी लोकप्रियता, प्रवचन कला में प्रवीणता, वाक पटुता और भगवा वस्त्रों के प्रभाव के कारण बाबरी मस्जिद ध्वंस अभियान में आगे आगे रखा गया था, जिसमें वे अभी भी अभियुक्तों की सूची में हैं। उन्होंने अपनी लोकप्रियता के कारण चुनाव में लगातार विजयश्री प्राप्त की और कभी लोकसभा में दो की संख्या तक सिमिट गयी भाजपा की सीटों की बढोत्तरी में अपना अतुल्य योगदान दिया व दूसरी कई सीटों के लिए भी प्रचार कार्य किया। जब केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी तो भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को उन्हें मंत्री बनाना पड़ा।

किंतु केन्द्र में मंत्री बनने के लिए तो वे लोग सबसे आगे लगे थे जो चुनाव जितवाने में सबसे पीछे रहते हैं, इसलिए उमाभारती को मंत्री पद से मुक्त करके मध्य प्रदेश में भेज दिया गया क्योंकि उस समय प्रदेश में विधानसभा चुनाव में जीत दिला सकने की जिम्मेवारी लेने वाला कोई नहीं था। वे केन्द्र का मंत्री पद छोड़ना नहीं चाहती थीं उन्होंने पहले तो इंकार किया तथा उसके बाद अपनी अस्वीकार्य योग्य शर्तें रख दीं। परिस्तिथि का तकाजा था कि वे शर्तें भी भाजपा नेतृत्व द्वारा स्वीकार कर ली गयीं, जिनमें टिकिट बाँटने का अधिकार और जीतने की स्तिथि में मुख्यमंत्री पद की पुष्टि की शर्त भी सम्मलित थी। संयोग से चुनाव जीत लिया गया था और वचन बद्धता में अनचाहे उमाजी को मुख्यमंत्री का पद देना पड़ा था। किंतु लोकप्रियता को केवल सत्ता हथियाने के लिए उपयोग करने वाले भाजपा नेतृत्व को यह हजम नहीं हो सका व उन्हें स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने दिया गया। सलाहकारों के नाम पर चार व्यक्तियों का घेरा डाल दिया गया और बाद में तो एक बहाने से उनका स्तीफा ले ही लिया गया और वह कारण समाप्त हो जाने के बाद भी नहीं लौटाया गया। उन्होंने लाख कहा कि यह सरकार उनके बच्चे की तरह है जिसे जबरन छीन लिय गया है, उन्होंने अपने समर्थन में विधायकों के बहुमत होने का परीक्षण कराने को कहा किंतु किसी बात पर ध्यान नहीं दिया गया। सत्ता की ताकत और लालच से उनके जनान्दोलनों को गति नहीं पकड़ने दी गयी। चुनावों में उन्हें हरवाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया, यहाँ तक कि उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री पर उनकी हत्या करवाने के प्रयास का आरोप भी लगाया था।

उनकी वापसी के विचार पर भाजपा हमेशा दो फाड़ रही और एक पक्ष ने उनका आँख मूंद कर विरोध किया जिस कारण उनके लिए भाजपा का दरवाजा सुई के छेद से भी छोटा होता गया। पर जो दल कुछ कूटनीतियों के आधार पर विकसित होते हैं उनको अपनी योजनाओं के भागीदारों को दूर कर पाना सम्भव नहीं होता। जो दबाव अमर सिंह का मुलायम सिंह पर बना हुआ है लगभग वैसा ही दबाव उमाभारती का बाबरी मस्जिद ध्वंस के सहअभियुक्तों पर बना हुआ है। इसलिए उनको वापिस लेने पर अडवाणीजी तैयार हो गये हैं, किंतु वे उन्हें मध्यप्रदेश में कदम नहीं रखने देना चाहते। इस शर्त को उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाने के नाम पर छुपाया जा रहा है। एक सन्यासी की कोई जाति नहीं होती इस कारण से उमाभारती की लोधी या पिछड़ीजाति के नेता के रूप में कोई पहचान नहीं है, जब भी वे कल्याण सिंह के सामने खड़ी होंगीं तो यूपी में उन्हें पीछे ही रखा जायेगा। यूपी में पहले से ही पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, कार्यरत हैं तो कलराज मिश्र, लालजी टंडन समेत, महंत अवैद्यनाथ समेत दर्जन भर बड़े स्थानीय नेता पूर्व से ही हैं, जो भाजपा को चौथे नम्बर पर बमुश्किल बनाये हुये हैं, ऐसे में उमाभारती से कुछ आशा करके जिम्मेवारी सौंपी जा रही है यह मानना हास्यास्पद ही होगा। दर असल उन्हें अपने प्रदेश, मध्यप्रदेश से निकाला दिया जा रहा है क्योंकि उन्होंने प्रदेश भाजपा में जो गुट विकसित कर दिया है वह शिवराज सरकार के लिए खतरा बनता जा रहा है।

स्मरणीय है कि पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, बाबूलाल गौर, उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय,वरिष्ठ सांसद सुमित्रा महाजन जैसे कद के नेता उनकी वापिसी का समर्थन कर चुके हैं। दूसरी ओर शिवराज सिंह, और प्रभात झा जैसे लोग उन्हें पास भी फटकने नहीं देना चाहते। कहा जाता है कि शिवराज सिंह ने तो उन्हें प्रवेश देने की स्तिथि में स्तीफा देने की धमकी दे दी थी। यही कारण है कि उमाभारती को भाजपा में पुनर्प्रवेश देने के लिए प्रदेश से निकाला जा रहा है और उनके समर्थक यह कह रहे हैं कि एक बार प्रवेश हो जाने के बाद प्रदेश में नेता तो वही रहेंगीं, आवाज उनकी ही रहेगी भले ही वह कहीं से लगायी जाये। यदि भाजपा नेता के रूप में उनका मध्यप्रदेश में प्रवेश रोका गया तो यह स्तिथि कश्मीरी पंडितों की स्थिति से भिन्न नहीं होगी।
सन 1969 से देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे वीरेन्द्र जैन जनवादी लेखक संघ के भोपाल ईकाई के अध्यक्ष रहे हैं. व्यंग पर चार पुस्तकें प्रकाशित. संप्रति भोपाल में निवास और स्वतंत्र

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