Thursday, December 23, 2010
राहुल भैया आये हैं, हिन्दू आतंकवाद लाये हैं
छात्र राजनीति से पत्रकारिता में आये संजीव पाण्डेय ने कई अखबारों के लिए काम किया है. हाल-फिलहाल तक अमर उजाला में कार्यरत थे. वर्तमान में चंडीगढ़ में रहकर स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखनअपने पिता की ही तरह राहुल गांधी एक चौकड़ी से घिर गये हैं. इस चौकड़ी ने राहुल गांधी को समझा दिया है कि हिन्दू आतंकवाद का जितना गायन राहुल गांधी करेंगे कांग्रेस के वोटबैंक में उतना ही अधिक इजाफा होगा और इससे उनकी जो सेकुलर छवि बनेगी, वह छवि उन्हें भविष्य में पीएम बनने में मदद करेगी. लेकिन राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि उनकी चौकड़ी उन्हें फंसा रही है. संजीव पांडेय का विश्लेषण-
विकीलीक्स के नए खुलासे ने अब गांधी परिवार को मुसीबत में डाल दिया है। विकीलीक्स के नए खुलासे से कांग्रेस के युवराज विवाद में पड़ गए है। खुलासा भी दिलचस्प है। राहुल गांधी की नजर में लश्कर से ज्यादा खतरनाक, हिंदू आतंकवाद नजर आया है। उन्होंने यह दिल की बात दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क के राजदूत को कभी बताया था। उस राजदूत ने राहुल गांधी के इस उदगार का खुलासा अपने केबल में किया। जिस समय यह खुलासा राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत के सामने किया होगा, वे इस खुलासे के बाद या तो राहुल गांधी के अहसानमंद हुए होंगे, या हंसे होंगे। अगर खुलासा सही होगा तो अहसानमंद होना जरूरी है। क्योंकि यह खुलासा अभी तक अमेरिकी राजदूत के टाप की खुफिया एजेंसी सीआईए ने भी नहीं की। अगर की होती तो निश्चित तौर पर यह विकीलीक्स का एक और खुलासा होता। तो निश्चित तौर पर राहुल के इस खुलासे के बाद अमेरिकी राजदूत हंसे होंगे और मन ही मन राहुल गांधी के सामान्य ज्ञान पर तरस खाया होगा। क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े एजेंसी सीआईए, केजीबी और भारत की एजेंसियां हिंदू आतंकवाद पर अभी तक मौन है। उन्हें यह कहीं से सूचना नहीं मिली है कि हिंदू आतंकवादी तेजी से उभर रहे है। और तो और हमारे दुश्मन मुल्क के आईएसआई को भी हिंदू आतंकवाद का अभी तक अहसास नहीं है। नहीं तो निश्चित तौर पर पाकिस्तान में पिछले दो सालों में लगातार हुए ब्लास्ट में आरएसएस, अभिवन भारत जैसे कई हिंदू संगठनों का हाथ होता। और इसका खुलासा आईएसआई कर देती। साथ ही भारत सरकार को डोजियर देती। लेकिन अभी भी आईएसआई को हिंदू आतंकवाद नजर नहीं आया और पाकिस्तान के ब्लास्ट में उन्हें रॉ जैसे खुफिया संगठनों का हाथ नजर आता है।
राहुल गांधी के हिंदू आतंकवाद को लश्कर से ज्यादा खतरनाक बताने के बाद उनकी मानसिकता का पता चल गया है। वे अपने पिता के राह पर है। उनके पिता राजीव गांधी कुछ लोगों की चौकड़ी में थे। जो चौकड़ी मंडल समझाता वही करते थे। चौकड़ी के लोगों के नाम बताने की जरूरत नहीं है। सारे लोग नाम जानते है। राजीव गांधी को पांच साल बाद ही सता गवांनी पड़ी थी। लश्कर से ज्यादा हिंदू आतंकवाद को खतरा बताना राहुल गांधी का सामान्य ज्ञान बताता है। उनका समान्य ज्ञान कमजोर है। उन्होंने भारत का इतिहास नहीं पड़ा है। उनके चौकड़ मंडल के लोग जो उन्हें पढ़ाते है वो पढ़ते है। चौकड़ मंडल ने एक योजना बनायी है। इस योजना के तहत काम हो रहा है। इस योजना के तहत सफलता मिले या नहीं, पर राहुल गांधी का बंटाधार निश्चित है। राहुल गांधी के युवा सलाहकार और दिग्विजय सिंह जैसे लोग बहुत बढिया खेल खेल रहे है।
चौकड़ मंडल ने राहुल को समझाया है। हिंदू आतंकवाद का खतरा दोहराते रहे। मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हो जाएगा। इससे कांग्रेस की जीत निश्चित है। राहुल गांधी ने इसी योजना के आधार पर आरएसएस की तुलना सिम्मी से की थी। लेकिन इसके पीछे एक खेल और भी है। चौकड़ मंडल के ही कुछ लोग आरएसएस और भाजपा की मदद कर रहे है। वे इसका हौव्वा खड़ा कर हिंदू वोटों की सहानभूति भाजपा की तरफ करना चाहते है। इस खेल को भी समझने वाली बात है। कांग्रेस के अंदर सक्रिय राजशाही मजबूरी में कांग्रेस में शुरू से रहा है। क्या विश्वाथ प्रताप सिंह, क्या अर्जुन सिंह और क्या दिग्विजय सिंह। इन राजशाही को एक जबरजस्त मलाल कांग्रेस से रहा है। पर मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। मलाल था कि राजशाही का इंदिरा गांधी ने प्रिविप्रस समाप्त कर दिया था। इसे राजशाही ने काफी भरे दिल से कबूल किया था। समय-समय पर नेहरू गांधी परिवार को उसी भाषा में राजाओं ने सिखाया। इंदिरा गांधी ने गरीबों का दिल जितने के लिए राजाओं के अधिकार समाप्त किए। ठीक उसी भाषा में मांडा के राजा विश्वानाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस को जवाब दिया। कांग्रेस के गरीब वोट को मंडल कमिशन के नाम पर कांग्रेस से अलग कर दिया। इस तरह से ये वोट अलग हो गया कि अब कांग्रेस के साथ दलित और पिछड़े वोट न के बराबर है। राजीव गांधी को भी सताच्युत वीपी सिंह ने किया। इस खेल को समय-समय पर दूसरे राजा दोहराने की कोशिश करते रहे है। मध्यप्रदेश के एक राजा अर्जुन सिंह ने कई बार यूपीए-1 की सरकार को मुसीबत में डाला। अब उनके दूसरे रिश्तेदार राजा दिग्विजय सिंह भी अपनी खेल को पूरी तरह से चला रहे है। इस खेल से भाजपा मजबूत होगी। कांग्रेस कमजोर होगी।
राहुल गांधी नेगेटिव कैंपेन के शिकार हो गए। सकारात्मक बात करने से उन्हें परहेज है। नरेंद्र मोदी की अच्छाइयां नजर नहीं आती। उनकी बुराइयों की बात वो करते है। पर दिलचस्प बात है कि गुजरात की जनता उन्हें अभी तक सुनने को तैयार नहीं है। गुजरात के युवाओं ने उनसे हाल ही में अहमदाबाद में कुछ इसी तरह का सवाल किया था। बौखलाए राहुल ने मोदी को माओ बता दिया था। लेकिन ठीक इसी तरह का नेगेविट कैंपेन बिहार चुनाव में भी राहुल गांधी ने किया था। भाजपा पर हिंदू कार्ड के आधार पर हमला किया तो नितीश के विकास को लेकर भी नेगेटिव कैंपेन किया। बिना किसी आधार के नितीश की आलोचना करते रहे। साथ ही कहते रहे कि केंद्र का पैसे से विकास हो गया है। जैसे केंद्र का सारा पैसा राहुल गांधी के पिता जी का हो। लोगों के टैक्स से केंद्र का पैसा होता है और वही राज्यों को सरकुलेट होता है। फिर केंद्र ने पैसे देकर बिहार पर कोई अहसान थोड़े ही किया था। राहुल गांधी का यह राग लोगों को पसंद नहीं आया। कांग्रेस चार पर सिमट गई। लेकिन इस रिजल्ट का आकलन करने के बजाए दिग्विजय सिंह ने करकरे राग अलापना शुरू कर दिया है। इससे कांग्रेस ही गुमराह होगी।
संघ की तुलना सिम्मी से करे या लश्कर से। मुस्लिम वोटों का रूझान कांग्रेस की तरफ नहीं है। बिहार चुनावों में मुस्लिम वोट भाजपा को भी मिले। मुस्लिम बहुल इलाकों के बूथों से भाजपा ने लीड ली है। मुसलमानों ने खुलकर कहा, भाजपा अपना एजेंडे से हटे, वे अपने फैसले पर पुनर्विचार करेंगे। उतर प्रदेश में कई उपचुनाव हो चुके है। इन चुनावों में कांग्रेस की जमानत जब्त हो चुकी है। मुस्लिम वोट वापसी के संकेत नहीं है। एक नई पार्टी नजर आ रही है। पीस पार्टी नाम है। दिलचस्प बात है कि मुसलमानों का खासा वोट इस पार्टी को मिला है। यानि की राहुल गांधी अभी भी अपने को मुस्लिम हितैषी के रुप में स्थापित नहीं कर सके है।
जिस आतंकवाद की बात राहुल गांधी ने की है, वही संगठन उनके दादी के समय में भी सक्रिय थे। ये पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में भी सक्रिय थे। लेकिन उन्होंने भी इसे रोकने के लिए इस तरह की थोथी और ओछी ब्यानबाजी नहीं की। यह एतिहासिक तथ्य है कि हिंदू और मुस्लिम हितों का टकराव धर्म के नाम पर इस महाद्वीप में एक हजार से होता रहा है। जिस हिंदू संगठनों की बात आज की जा रही है, वो समय-समय पर अलग-अलग रुप में नजर आते रहे है। इसलिए हिंदुओं टेरोरिज्म को ज्यादा खतरा बताना बहुत ही हास्यास्पद है। क्योंकि इस महाद्वीप में हिंदू टेरोरिज्म पिछले एक हजार साल में कितना खतरनाक रहा है, यह इतिहास बताता है। सुरक्षा एजेंसियों ने ऩिश्चित तौर पर पिछले दिनों में कुछ जांच की है। कई हिंदू संगठन जांच के घेरे में है। लेकिन अभी तक उनकी संलिप्तता पूरी तरह से साबित नहीं हुई है। समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में एक राज्य की पुलिस हिंदू संगठन की करतूत बताती है तो दूसरे राज्य की पुलिस चुप होती है। खुद हरियाणा पुलिस समझौता बलास्ट में हिंदू संगठनों की भूमिका नहीं मानती। केंद्र की इंटेलिजेंस एजेंसिया भी हिंदू आतंकवाद पर बहुत गंभीर नहीं है। उनका मानना है कि देश में इस तरह की कोई बात नहीं है। फिर समझ में नहीं आता है कि राहुल गांधी को लश्कर से ज्यादा हिंदू आतंकवाद के खतरे संबंधी सूचना किसने दी।
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