Friday, December 17, 2010
विकीलिक्स को क्यों खत्म करने पर तुला है ‘लोकतंत्र का मसीहा’?
वैसे तो अमेरिका ने घोषित-अघोषित तौर पर दुनिया भर में लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सूचना के अधिकार, मानव अधिकारों की रक्षा और प्रसार का ठेका ले रखा है. उसका दावा रहा है कि ये महान विचार और दर्शन अमेरिकी राष्ट्र और उसके राजनय के केन्द्र में रहे हैं. लेकिन दूसरों को उपदेश देना एक बात है और खुद उसपर अमल करना बिल्कुल दूसरी बात. अमेरिका पर यह बात कुछ ज्यादा ही लागू होती है. आश्चर्य नहीं कि जब भी बात उन महान सिद्धांतों पर खुद के अमल की आती है, अमेरिकी सुर बदल जाते हैं.
ताजा मामला विकीलिक्स का है. विकीलिक्स के खुलासों से घबराए अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान ने हर मायने में उसके और उसके संस्थापक जूलियन असान्जे के खिलाफ युद्ध सा छेड दिया है. साम्राज्य की बौखलाहट का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इन दिनों रिपब्लिकन पार्टी और अनुदारवादियों- कन्जर्वेटिव्स की डार्लिंग साराह पालिन चाहती हैं कि ‘असान्जे को ओसामा बिन लादेन की तरह खोजा और मार गिराया (हंट डाउन) जाए.’ अमेरिकी सीनेट में एक विधयेक पेश करके रिपब्लिकन असान्जे को ‘पार-राष्ट्रीय खतरा’ (ट्रांस्नेशनल थ्रेट) घोषित करना चाहते हैं.
सच पूछिए तो अगर दुनिया के इस स्वयम्भू साम्राज्य की चलती तो न सिर्फ असान्जे गुआन्तन्माओ जैसे किसी जेल में सड़ रहे होते और विकीलिक्स का इंटरनेट से नामोनिशान मिट चुका होता. लेकिन चाहकर भी अमेरिका की उतनी नहीं चल पा रही है, इसलिए हमेशा की तरह साम्राज्य अपने आजमाए हुए घटिया तौर-तरीकों और कुटिल तिकडमों पर उतर आया है.
इसके तहत उसने एक ओर विकीलिक्स पर अराजक, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा, लोगों खासकर अमेरिकी अधिकारियों/कर्मचारियों की जान खतरे में डालने जैसे झूठे आरोप लगाते हुए जबरदस्त प्रोपेगंडा अभियान छेड दिया है और दूसरी ओर, आधे-सच्चे झूठे आरोपों में असान्जे को जेल भेजने में कामयाबी हासिल कर ली है.
तथ्य यह है कि साम्राज्य ने अपने तईं विकीलिक्स को बर्बाद करने में कोई कोर कसर नहीं उठा रखी है. सबसे पहले उसके अधिकारियों और सीनेटरों ने उन वेब और डोमेन होस्टिंग सर्वरों को धमकाया जिनपर विकीलिक्स मौजूद है. अमेरिकी दबाव में वेब और डोमेन होस्टिंग सर्वरों को विकीलिक्स को हटाना पड़ा. इसी तरह, अमेरिकी धमकियों के कारण विकीलिक्स तक आर्थिक मदद पहुंचाने के प्रमुख माध्यम जैसे पे-पाल, मास्टरकार्ड और स्विस बैंक ने उसका एकाउंट फ्रीज कर दिया है.
यही नहीं, असान्जे के खिलाफ अमेरिका में आपराधिक जांच-पड़ताल शुरू करने से लेकर स्वीडन पर दबाव डाला गया कि वह एक अजीबोगरीब बलात्कार कानून के तहत असान्जे के खिलाफ मुक़दमा दर्ज करे. इसके बाद साम्राज्य इंटरपोल से असान्जे के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी करवा दिया. लेकिन इसके बावजूद विकीलिक्स को पूरी तरह से बर्बाद करने साम्राज्य नाकाम साबित हो रहा है. अच्छी बात यह है कि हमेशा सच्चाई को दबाकर और झूठ-फरेब के बल खुद को अजेय और अपरिहार्य मानने वाले साम्राज्य के मुकाबले में कई देशों में आम लोग खड़े हो गए हैं.
आश्चर्य नहीं कि अमेरिकी मंसूबों को पटकनी देते हुए विकीलिक्स न सिर्फ जिन्दा है बल्कि साम्राज्य को नंगा करने का उसका अभियान भी जारी है. साइबर स्पेस में एक विकीलिक्स की जगह उसकी सैकड़ों मिरर साइट्स पैदा हो गई हैं जिन्हें ‘हंट डाउन’ कर पाना साम्राज्य के साइबर सिपाहियों के लिए भी मुश्किल होता जा रहा है. यही नहीं, असान्जे के समर्थकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. कई सरकारें भी उसके समर्थन में आगे आ रही हैं. हालांकि अमेरिकी नंगई अब भी जारी है और विकीलिक्स के अस्तित्व पर मंडराता खतरा टला नहीं है लेकिन इस नंगई की सीमाएं और कमजोरियां भी साफ दिखाई देने लगी हैं.
यह सचमुच राहत की बात है कि साम्राज्य इस लड़ाई में हारता हुआ दिख रहा है. निश्चय ही, यह कम बड़ी बात नहीं है कि सच को दबाने की हरसंभव कोशिश के बावजूद खुद अमेरिका में ‘न्यूयार्क टाइम्स’ समेत अधिकांश अख़बारों ने विकीलिक्स के खुलासों को छापा है. यही नहीं, विकीलिक्स को लेकर अमेरिकी रवैये पर खुद उसके खेमे में ही सवाल उठने लगे हैं. सवाल उठ रहे हैं कि लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आज़ादी और मानवाधिकारों की बात करनेवाला साम्राज्य विकीलिक्स द्वारा सच को सामने लाने की कोशिशों के दबाने की कोशिश क्यों कर रहा है?
इसका जवाब नोम चोमस्की ने दिया है. चोमस्की के मुताबिक, “हमें समझने की जरूरत है कि सरकारी गोपनीयता बरतने की सबसे बड़ी वजह अपनी खुद की जनता से सरकारों को बचाना है. इससे इस बात का खुलासा होता है कि अमेरिकी और इजरायली सत्ता प्रतिष्ठानों और राजनीतिक नेतृत्व में लोकतंत्र के खिलाफ जबरदस्त नफरत है.” विकीलिक्स के खिलाफ साम्राज्य का गुस्सा इसका एक और सबूत है.
('अमर उजाला' में सम्पादकीय पृष्ठ पर १७ दिसंबर'१० को प्रकाशित आलेख)
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