Friday, December 10, 2010



देश के अनेक समाचार-पत्रों में सामायिक मुद्दों पर लेख आदि लिखने के साथ ही टेक्निकल पुस्तकों का स्वतन्त्र लेखन। लेखन या पत्रकारिता का कोई कोर्स नहीं किया। लिखने की शुरुआत 1984 से दिल्ली से प्रकाशित होने वाले 'हिन्दुस्तान' और 'नवभारत टाइम्स' में सम्पादक के नाम पत्रों से की थी। हौसला बढ़ा तो सम्पादकीय पेज पर छपने के लिए लिखना शुरु किया। मशहूर पत्रकार स्व0 उदयन शर्मा मेरे आइडियल रहे हैं। इसलिए कलम का इस्तेमाल हमेशा ही फिरकापरस्त ताकतों के खिलाफ और दबे-कुचले लोगों के पक्ष में चली है। जनवादी लेखक संघ से भी जुड़ा हुआ हूँ।
भड़ास4मीडिया, मौहल्ला लाइव या विस्फोट में से कौन भारत का विकीलीक्स हो सकता है? कुछ लोगों ने इस सवाल को भले ही मजाक में उड़ा दिया हो, लेकिन रवीश का सवाल बहुत मौजू है और इस सवाल के बहाने वेब मीडिया के बारे में बहस की जा सकती है।

मैं अक्सर सोचता था कि सबकी खबर लेने वाले मीडिया की खबर भी किसी को लेनी चाहिए। मीडिया संस्थानों की अन्दरूनी राजनीति कभी बाहर नहीं आती थी। उनका भ्रष्टाचार भी कभी अखबारों की सुर्खियां नहीं बनता था। अखबारों और न्यूज चैनल पर ऐसा सम्भव नहीं था। लेकिन वेब मीडिया ने यह कर दिखाया। पहले भड़ास ब्लॉग और फिर भड़ास4मीडिया पोर्टल के जरिए मीडिया की अन्दरूनी उठापटक को सार्वजनिक करने की शुरूआत का श्रेय सिर्फ और सिर्फ यशवंत को जाता है। इस तरह से यह तो कह ही सकते हैं कि भड़ास भारत के मीडिया का विकीलीक्स है। हालांकि भड़ास के बाद कई और पोर्टल मीडिया की खबरों को देने लगे, लेकिन जो विश्वसनीयता और लोकप्रियता भड़ास की है, किसी और की नहीं है।

दरसअल, भारत में अभी वेब मीडिया शुरूआती दौर में है। इस शुरूआती दौर में वेब मीडिया के सामने पहचान के साथ ही आर्थिक संकट भी जबरदस्त है। भले ही भड़ास, मौहल्ला और विस्फोट को लाखों लोग हिट करते हों, लेकिन इसकी पहुंच सिर्फ उन लोगों तक है, जो किसी न किसी रूप में इंटरनेट से जुड़े हैं। यह भी जरूरी नहीं कि इंटरनेट का प्रयोग करने वाला हर व्यक्ति भड़ास, मौहल्ला या विस्फोट के बारे में जानता हो। अक्सर ऐसा भी हुआ है कि भड़ास और मौहल्ला पर जाने वाले लोगों को भी अभी नहीं पता कि विस्फोट भी कोई पोर्टल है। मैंन खुद ऐसे ही बहुत से लोगों का विस्फोट से परिचय कराया। इन न्यूज पोर्टलों का पाठक भी वही है, जो किसी न किसी रूप से मीडिया से जुड़ा है। अभी आम आदमी तक इसकी पहुंच ना के बराबर ही कही जा सकती है। यही कारण है कि अभी पोर्टलों पर विज्ञापन का टोटा है, इसीलिए पोर्टल हमेशा आर्थिक संकट से जूझते रहते हैं। कुछ लोग पोर्टलों पर विज्ञापन देखकर भ्रम पाल लेते हैं कि पोर्टल चलाना कमाई का धंधा है। इन विज्ञापनों की हकीकत वे ही जानते हैं, जो पोर्टल चला रहे हैं।

कुछ लोग सवाल कर सकते हैं कि जब पोर्टल चलाना कमाई नहीं देता तो क्यों तेजी के साथ पोर्टल लांच हो रहे हैं। दरअसल, कुछ पोर्टल चलाने वाले ऐसे हैं, जिनकी रोटी-रोजी का जरिया कुछ और है, लेकिन कुछ कहने और करने की ललक में वे इस तरफ आए गए। जैसे रविश कुमार वे सब कुछ कहने के लिए जो अपने चैनल पर नहीं कह सकते, अपने ब्लॉग या किसी पोर्टल को माध्यम बनाते हैं। भड़ास, मौहल्ला और विस्फोट अपने-अपने तरीके से आर्थिक संकट का जिक्र करते रहते हैं। संजय तिवारी के बारे में तो कुछ लोग कहते हैं कि विस्फोट संजय तिवारी के कंधे पर चलता है। मदद की अपील पर कभी कोई मदद भी कर देता होगा, लेकिन एक नियमित मदद नहीं मिल पाती, जिससे आर्थिक संकट खत्म नहीं होता। खास बात यह है कि कितना ही आर्थिक संकट हो, भड़ास के यशवंत सिंह, मौहल्ला के अविनाश और विस्फोट के संजय तिवारी जीवट वाले और हवाओं के खिलाफ चलने वाले लोग हैं। तमाम दुश्वारियों के बावजूद मैदान में डटे हुए हैं। बड़े मीडिया हाउस के नोटिस भी झेलते हैं। इन तीनों में ही विकीलीक्स बनने की पूरी क्षमता है, बशर्ते कि इनका आर्थिक संकट खत्म हो। लोग जानते हैं कि एक स्टिंग ऑप्रेशन करने में भी पैसे की दरकार होती है। यहां तो सवाल विकीलीक्स बनने का है। सवाल यह है कि आर्थिक संकट कैसे दूर हो। इसके लिए वे लोग, जो सम्पन्न हैं और वास्तव में कुछ करना चाहते हैं, किसी भी रूप में इनकी मदद कर सकते हैं।

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