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६पिछले बीस दिनों से समाचार पत्रों पर जनता एक ही सुर्खियां पढती आ रही है कि गतिरोध जारी ..संसद आज भी नहीं चली । और पूरक खबर के रूप में जो खबर होती है कि आम जनता का फ़लाना ढिमकाना पैसा व्यर्थ चला गया । यहां आम आदमी सोचता है कि आखिर उसका पैसा क्यों व्यर्थ चला गया ..उसका वो पैसा जो सरकार ने ना जाने कौन कौन से करों की आड में , कौन कौन सी सुविधाओं को देने , के एवज में बिल भुगतान के रूप में उससे वसूला है ..और उसने वो उस हिस्से में से दिया है जिसे कमाने के लिए उसे जाने कितनी मेहनत करनी पड रही है । एक नौकरी पेशा फ़िर चाहे वो निजि क्षेत्र का हो या सार्वजनिक क्षेत्र का , वो ये समझने में असमर्थ रहता है कि , जब उसके कार्यकाल में उसके एक दिन के अवकाश के लिए उसे या तो छुट्टी देनी पडती है या फ़िर उसकी तनख्वाह में से उसे उस दिन का पैसा कटवाना होता है तो फ़िर उसी जनता के प्रतिनिधि या उससे भी बढकर जनसेवकों द्वारा लगातार बीस तीस दिनो तक काम नहीं कर पाने के बावजूद आम लोगों का पैसा क्यों व्यर्थ होना चाहिए ।
आज हर तरफ़ भ्रष्टाचार का ही बोलबाला है और इस समय तो जिस तरह से उसकी परतें खुलती दिख रही हैं उससे इसकी व्यापकता भी दिख रही है । आम जनता की नज़र में तो आज प्रशासन , न्यायपालिका , विधायिका और कार्यपालिका सब के सब कटघरे में खडे हैं । अब तो कोई भी स्तर और कोई भी अंग ऐसा नहीं बचा है जहां भ्रष्टाचार की छाया न पडी हो तो फ़िर क्या पक्ष और क्या विपक्ष । इसमें कोई शक नहीं कि आज संसद में एक अच्छे विपक्ष की तरह मौजूदा व विपक्ष भी सरकार के भ्रष्टाचार को बाहर लाने के लिए कमर कसे बैठी है । मगर फ़िर आम जनता ये भी सोच रही है कि आखिर और कितने दिनों तक इस मुद्दे पर आम जनता के लिए भविष्य के लिए तय की जाने वाली नीतियां और कानून बनाने वाले समय को बलि पर चढाया जाता रहेगा ।
इससे अलग एक बात और ये भी है कि , जिस संयुक्त संसदीय जांच समिति के गठन की मांग को लेकर आज विपक्ष अडा हुआ है क्या ये हलफ़नामा दायर कर सकता है ..कोई भी विधायिका , संसद और तमाम संबंधित प्रतिनिधि …है कोई भी जो ये हलफ़नामा दायर कर सके कि उस जांच की रिपोर्ट में दोषी पाए गए लोगों को सजा दिलवाई जा सकेगी । या फ़िर ये कि इस घोटाले में आम जनता का जो भी पैसा डकार लिया गया है उस पैसे को उस दोषी व्यक्ति से वसूल कर देश को वापस किया जा सकेगा । या फ़िर कि ये बताया जा सकता है कि आज तक ऐसी तमाम संयुक्त संसदीय जांच समितियों की रिपोर्ट के आधार पर अमुक अमुक राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों को सजा का फ़रमान सुनाया जा सका , इसलिए जेपीसी ही आखिरी विकल्प बचता है । इस मुद्दे पर सरकार का चाहे जो भी निर्णय हो , किंतु आए दिन संसद में जिस तरह से बार बार ऐसे ही मुद्दों पर संसद में सडक जाम जैसा नज़ारा पेश करने का जो काम देश के जनप्रतिनिधि कर रहे हैं वो न सिर्फ़ देश की जनता की आंखों में खटकने लगा है बल्कि अब तो विश्व समुदाय भी यही सोचने पर विवश है कि आखिर ये उसी देश की सर्वोच्च संस्था है जो दावा कर रहा है कि उसे संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थाई सदस्यता चाहिए । अब वक्त आ गया है कि …काम नहीं तो पैसा नहीं के तर्ज़ पर इन जैसे तमाम लोगों की तनख्वाह और भत्ते बंद कर देने चाहिए॥
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