भोपाल गैस त्रासदी
Story Update : Thursday, December 02, 2010 8:28 PM
आज भोपाल त्रासदी की बरसी है। छब्बीस वर्ष पहले, 1984 में दो और तीन दिसंबर की आधी रात को भोपाल में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव के कारण हवा में जहर फैल गया था। उसकी चपेट में आने से न सिर्फ हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, बल्कि कइयों को विकलांग होना पड़ा। आलम यह है कि आज भी वहां जन्म लेने वाली पीढ़ी शारीरिक अक्षमता से जूझ रही है। गैरसरकारी स्रोतों के अनुसार, करीब पंद्रह हजार लोग इस त्रासदी का शिकार बने थे।
दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक हादसों में एक इस त्रासदी की वजह अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कंपनी थी। इस कीटनाशक कंपनी की नींव 1969 में डाली गई, पर मिथाइल आइसोसाइनेट का उत्पादन 1979 से शुरू हुआ। दो-तीन दिसंबर की मध्य रात्रि को फैक्टरी के टैंक नंबर 610 में रखे 42 टन मिथाइल आइसोसाइनेट में पानी चला गया। इस वजह से तेज रासायनिक प्रक्रिया हुई और दबाव के कारण टैंक से गैस का रिसाव होने लगा। इसके लिए यूनियन कार्बाइड कंपनी की व्याप्त अव्यवस्था जिम्मेदार थी। वहां का रख-रखाव कमजोर था और मिथाइल आइसोसाइनेट को अधिकृत स्तर से ज्यादा जमा कर रखा गया था।
इस हादसे से सबक लेते हुए देश की औद्योगिक नीतियों में कई बदलाव किए गए। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986), फैक्टरी (संशोधन) अधिनियम (1987), खतरनाक अपशिष्ट नियम (1989) और सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम (1991) जैसी कोशिशों से लोगों के हितों की सुरक्षा की गई। पर न्याय की आस में बैठे लोग अब भी इस हादसे से उबर नहीं पाए हैं। आलम यह है कि यूनियन कार्बाइड कंपनी के तत्कालीन सीईओ वारेन एंडरसन का अब तक प्रत्यर्पण नहीं हो पाया है और जो अन्य भोपाल जिला कोर्ट में दोषी पाए गए, उन्हें भी मात्र दो वर्ष की सजा हुई। फिलहाल यूनियन कार्बाइड कंपनी पर डाउ
No comments:
Post a Comment