Wednesday, December 1, 2010

आज रात दस बजे बरखा दत्त NDTV24X7 के कठघरे में होगी।


आज रात दस बजे बरखा दत्त NDTV24X7 के कठघरे में होगी। अभी तक इस चैनल पर बतौर एंकर राज करनेवाली बरखा दत्त आज एक कथित तौर पर आरोपित पत्रकार के रुप में हाजिर होगी। ये सारी बातें एकबारगी तो जरुर हैरान करती है लेकिन एनडीटीवी की ऑफिशियल साइट खोलते ही विज्ञापन की शक्ल में जो मैसेज हमारे सामने आ रहे हैं उससे यही बात निकलकर सामने आ रही है। हालांकि साइट की ओर से कार्यक्रम को लेकर दी गयी सूचना में यह बात कहीं भी शामिल नहीं है कि बरखा दत्त चैनल पर किस भूमिका में शामिल होगी लेकिन एक खास सूचना या कहें कि विज्ञापन की शक्ल में साइट ने जिस तरह हमें बताने की कोशिश की है उसे ये अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि THE RADIA TAPE CONTROVERSY नाम से होनेवाले इस खास शो में मुद्दा किस ओर खिसक सकता है? हमारे इस अनुमान को तब थोड़ी और मजबूती मिल जाती है,जब हम एक बार पैनल की तरफ नजर डालते हैं। पैनल के सभी नाम पत्रकारिता से जुड़े हैं और खास बात कि ओपन पत्रिका के संपादक मनु जोसेफ भी होंगे। ओपेड न्यूज वर्तमान मीडिया विमर्श का सबसे चर्चित विषय है। समाचार को लेकर जिस पवित्रता, निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता और ईमानदारी की शास्त्रीय कल्पना है, उसका विखंडन हम सब अपनी आंखों के सामने देख रहे हैं। मीडिया छवि बनाता और बिगाड़ता है। इस ताकत के बावजूद भारतीय मीडिया अपनी ही छवि का नाश होना नहीं रोक सका। देखते-देखते पत्रकार आदरणीय नहीं रहे। लोकतंत्र का चौथा खंभा आज धूल धूसरित गिरा पड़ा है। खबरें पहले भी बिकती थीं। सरकार और नेता से लेकर कंपनियां और फिल्में बनाने वाले खबरें खरीदते रहे हैं। बदलाव सिर्फ इतना है कि पहले खेल पर्दे के पीछे था। अब मीडिया अपना माल दुकान खोलकर और रेट कार्ड लगाकर बेच रहा है। विलेन के रूप में किसी खास मीडिया हाउस को चिन्हित करना काफी नहीं है। सारा कॉरपोरेट मीडिया ही बाजार में बिकने के लिए खड़ा है। बहरहाल, मीडिया की बंद मुट्ठी क्या खुली, एक मूर्ति टूटकर बिखर गई। यह किताब इसी विखंडन को दर्ज करने की कोशिश है।देश-काल की बड़ी समस्याओं पर लिखी गई किताबों में आम तौर पर समाधान की भी बात होती है। समस्या का विश्लेषण करने के साथ ही अक्सर यह भी बताया जाता है कि रास्ता किस ओर है। इस मायने में यह किताब आपको निराश करेगी। हाल के वर्षों में जनसंचार के क्षेत्र के सबसे विवादित और चर्चित विषय पेड न्यूज को केंद्र में रखकर लिखी गई यह किताब समस्या का कोई समाधान नहीं सुझाती।यह पुस्तक यह समझने की कोशिश भर है कि पेड न्यूज बीमारी है, या फिर बीमार का लक्षण। पुस्तक में मीडिया अर्थशास्त्र और व्यवसाय के जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि अपनी वर्तमान संरचना की वजह से मीडिया के लिए खबरें बेचना अस्वाभाविक नहीं है। मीडिया के लिए पैसा कमाना महत्वपूर्ण है और इसके लिए छवि की कुर्बानी कोई बड़ी कीमत नहीं है। मीडिया के लिए छवि की चिंता उसी हद तक है जहां उसकी कमाई पर बुरा असर न होने लगे। यह पुस्तक मीडिया के बारे में आपकी स्थापित मान्यताओं को लगातार चुनौती देगी, आपको नए सिरे से सोचने के लिए मजबूर करेगी। इसे मीडियाकर्मियों, मीडिया के विद्यार्थियों, शोधार्थियों के साथ ही उन तमाम लोगों को ध्यान में रखकर लिखा गया है जो भारतीय मीडिया को देखकर कहते हैं-यह क्या हो रहा है? (फ्लैप से)

पन पत्रिका के संपादक मनु जोसेफ ने ही इस स्टोरी को ब्रेक की थी कि 2G स्पेक्ट्रम घोटाले में कुछ दिग्गज पत्रकारों की नीरा राडिया से बातचीत हुई है,उसमें बरखा दत्त का भी नाम शामिल है। पत्रिका के माध्यम से बरखा दत्त की कही गयी ये लाइन-"TELL ME, WHAT SHOULD I TELL THEM?" बहुत ही लोकप्रिय हुई है और बाकी बातों के साथ ही इस लाइन के बिना पर ही बरखा दत्त को शक के घेरे में आम पाठक ले रहा है।


अगर ये शो नीरा राडिया कॉन्ट्रोवर्सी के बहाने अपने ही गिरेबान में चैनल की झांकने की कोशिश है तो हमें निश्चित तौर पर एक ऑडिएंस की हैसियत से चैनल की इस पहल पर स्वागत करनी चाहिए। वैसे भी डॉ प्रणय राय के बारे में सम्मानपूर्वक ये बात प्रचलित है कि वो अपने मीडियाकर्मियों औऱ ब्रांड को बहुत प्यार करते हैं। वो किसी भी हालत में इनदोनों की न तो बदनामी बर्दाश्त कर सकते हैं और न ही किसी तरह के समझौते करना पसंद करते हैं। इस शो के जरिए बरखा दत्त अपना स्टैंड रखती है तो हम उम्मीद करते हैं कि कई ऐसी बातें जो कि अफवाहों की शक्ल में वर्चुअल स्पेस पर तैर रहे हैं,उस पर थोड़ी देर के लिए लगाम लग जाएगी। वैसे बरखा दत्त को ये काम बहुत पहले करना चाहिए था और IS IT NECESSARY TO CONFESS जैसा कोई कार्यक्रम करने चाहिए थे। जब से वर्चुअल स्पेस पर टेप आए और ओपन के लेख हाथ लगे, बरखा दत्त के खिलाफ वो तमाम बातें आनी शुरु हो गई जो कि तथ्यों की समझ बढ़ाने के साथ ही किसी खुर्राट पत्रकार की व्यक्तिगत कुंठा ज्यादा थी। ऐसा करने से मुद्दे न केवल डायवर्ट होते हैं बल्कि प्रतिरोध की ताकत कमजोर होती है और एक बेहतर काम के पीछे भी विपक्ष तैयार होते चले जाते हैं। उम्मीद है कि चैनल के इस स्टैंड से कुछ स्थिति साफ होगी।


आमतौर पर होता ये आया है कि मीडिया अपनी बात कभी नहीं करता। जो संवाददाता जिंदगीभर खबरें और बाइट बटोर-बटोरकर मर जाता है,उसकी खबर कहीं नहीं होती या फिर वो खुद भी नहीं चाहता कि उसकी कोई खबर आए। दूरदर्शन औऱ लोकसभा जैसे चैनल कभी-कभार जब मीडिया को लेकर कोई शो या कार्यक्रम प्रसारित करते भी हैं तो उनका उद्देश्य सीधे तौर पर निजी मीडिया को कूड़ा और अपने को पवित्र गया बताना होता है जो कि उनका भी दामन साफ नहीं है। ऐसा होने से एक बहुत ही क्रूर और खतरनाक साजिश संस्कृति का विस्तार होता है। अगर मीडिया संस्थान बाकी मसलों के साथ-साथ खुद अपनी भी खबर लेनी शुरु करे तो एक बेहतर स्थिति बन सकती है। इसी क्रम में हमने अपनी अर्काइव छाननी शुरु कि तो CNN-IBN के शो की एक टेप मिली जिसमें 8 जून 2008 को मीडिया ट्रायल नाम से एक शो है और राजदीप सरदेसाई एक हद तक कॉन्फेस करतेनजर आते हैं। इससे बाद दूरदर्शन के पचास साल होने पर 2009 में CNN-IBN ने दूरदर्जशन को लेकर स्टोरी बनायी,तब भी राजदीप सरदेसाई ने सलमा सुल्ताना के आगे रुकावट के लिए खेद है से ब्रेकिंग न्यूज तक के दौर तक को याद करते हुए निजी चैनलों पर कटाक्ष किया और अपनी ही पीठ पर चाबुक मारने की कोशिश की। लेकिन गोलमोल तरीके से किसी घटना आधारित न होकर अपनी आलोचना करना स्वाभिक आलोचना के बजाय फैशन का हिस्सा ज्यादा लगता है।


आज हम इस शो के इंतजार में हैं और बरखा दत्त का पक्ष सुनना चाहते हैं। वीर सांघवी ने अपने ब्लॉग और फिर दि हिन्दुस्तान टाइम्स में अपने कॉलम काउन्टर प्वाइंट में जो तर्क दिए वो बहुत ही लचर और इनहाउस मैगजीन की प्रेस रिलीज लगी और हमें निराश किया। हम आज एनडीटीवी पर बरखा दत्त को देखना है कि वो इस पूरे मामले में किस तरह की बातें रखती हैं?

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