Sunday, August 1, 2010
मानो या ना मानो ‘मीडिया बन चुकी है धनकुबेर की लौंडी
स्वच्छ, निष्छल, निर्भीक, जनसेवा के लिए की जाने वाली पत्रकारिता के दिन लद चुके हैं। अब जमाना पेड न्यूज का आ चुका है। मीडिया की लगाम वाकई में धनपतियों के हाथों में जा चुकी है। पेड न्यूज पर देशभर में हो रही बहस बेमानी नहीं है। नए चुनाव आयुक्त एस.वाई.कुरैशी का कहना है कि आयोग की पेड न्यूज पर पैनी नजर होगी।
सच्चाई तो यह है कि नेता, पार्टी या व्यक्ति विशेष की इमेज बिल्डिंग का काम करने लगा है मीडिया वह भी निहित स्वार्थों के चलते। किसी से उपकृत होकर मीडिया द्वारा उसके उजले पक्ष को बहुत ही करीने से प्रस्तुत किया जाता है, पर उसके काले और भयावह पक्ष के मामले में मौन साध लिया जाता है, जो निंदनीय है। यह उतना ही सच है जितना कि दिन और रात कि राजनेता, नौकरशाह और धनपतियों के पास साधन, संसाधन और धन का अभाव नहीं है, यही कारण है कि मीडिया मुगल कहलाने के शौकीन राजनेताओं आदि द्वारा इनके सामने टुकडे डालकर इन्हें अपने पीछे पूंछ हिलाने पर मजबूर कर दिया जाता है। पैसा लेकर न केवल चुनावों बल्कि हर असवर, हर समय खबरों का प्रसारण प्रकाशन हो रहा है, जिस पर विचार करना ही होगा। यह विचार विमर्श मीडिया से इतर लोग कर रहे हैं, यह दुख का विषय है, वस्तुतः मीडिया को ही इस पर विचार करना होगा, कि धन कुबेरों के दहलीज की लौंडी बन चुकी मीडिया को उसके वास्तविक स्वरूप में कैसे लाया जाए।
‘बुक वार‘ में सोमदा ने दी आमद
सियासत में बहुत सारी बातें एसी होती हैं जो नेता बयान के जरिए नहीं कह पाते हैं, उन बातों को कहने के लिए किताबों का सहारा लेना नेताओं का प्रिय शगल है। जब नेता सक्रिय राजनीति से किनारा करते हैं या करने का मानस बना ही लेते हैं तब आरंभ होता है बुक वार। अनेक मर्तबा अपने प्रतिद्वंदियों को भ्रमित करने भी बुक वार छेड दिया जाता हैै। कांग्रेस के बीसवीं सदी के चाणक्य समझे जाने वाले कुंवर अर्जुन सिंह की किताबों के बाजार में आने के पहले कांग्रेस के आला नेताओं की सांसे अटक ही जाती हैं। सिद्धांतों पर चलने वाले वामदल के नेता सोमनाथ चटर्जी भी इस रंग में रंग गए दिखते हैं। इस बार सभी को बडा आश्चर्य इस बात का हुआ कि बुक वार में वाम नेता और पूर्व लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ही कूद गए। अपनी किताब ‘‘कीपिंग द फेथ: मेमरीज ऑफ द पार्लियामेंटेरियन‘ में सोमदा ने अपनी ही पार्टी को कटघरे में खडा कर दिया है। अपनी इस किताब में चटर्जी ने पार्टी महासचिव प्रकाश करात को जमकर कोसा है। अब देखना यह है कि पार्टी इस मामले में क्या स्टेड लेती है।
सुनंदा का गरूर बनेंगे शशि थरूर
भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह की दूसरी पारी में अगर विवाद शब्द आता है तो बरबस ही पूर्व विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर का नाम ही जेहन में आ जाता है। सोशल नेटवर्किंग वेव साईट ‘ट्विटर‘ पर ट्विट ट्विट करने वाले शशि थरूर का बस चलता तो वे सरकारी काम काज नोटशीट पर करने के स्थान पर ट्विटर पर ही संपादित करते। कभी आलीशान पांच सितारा होटल में रहकर गरीब भारत गणराज्य की सरकार पर लाखों रूपयों का बोझ चढाया तो कभी हवाई जहाज की इकानामी क्लास को मवेशी का बाडा ही कह डाला। अंततः आईपीएल विवाद की बलि चढे। इस मामले में उनकी महिला मित्र सुनंदा पुष्कर का नाम भी जमकर उछला, तब जाकर देशवासियों को पता चला कि जिस महिला को थरूर महोदय बतौर मंत्री रहते हुए साथ पार्टीज में घुमाते रहे हैं वह और कोई नहीं यही सुनंदा थीं। अब खबर है कि 29 सितंबर को भारतीय ज्योतिष के अनुसार जब देवता सो रहे होंगे तब दुबई में शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर परिणय सूत्र में आबद्ध होने जा रहे हैं।
राहुल नहीं साबित हो सके ‘महाजन‘
भारतीय जनता पार्टी के धुरंधर नेता स्व.प्रमोद महाजन के सुपुत्र और इलेक्टन्न्ानिक न्यूज चेनल्स के माध्यम से इक्कीसवीं सदी में स्वयंवर रचाकर मीडिया के माध्यम से चर्चाओं में आए राहुल की दूसरी शादी भी चंद महीने में ही टूटने की कगार पर आ गई है। कहा जाता है कि महाजनी सबसे अच्छी होती है, जिसमें सब कुछ पारदर्शी होता है, किन्तु राहुल खुद को महाजन साबित नहीं कर सके हैं। कहा जाता है कि शक्की राहुल महाजन ने अपनी पत्नि डिम्पी का मोबाईल पर एक मैसेज नहीं पढ पाने के कारण उसकी तबियत से पिटाई कर दी। डिम्पी ने अपने मित्र और परिजनों को बुलाकर वहां से रवानगी डाल दी। लोगों का मानना है कि महज एसएमएस न पढ पाना पिटाई का कारण नहीं हो सकता है, यह हो भी सकता है, पर तब जब कोई होश में न हो। वैसे भी राहुल महाजन को नशीली दवाओं के लेने के लिए अनेक बार समचार चेनल्स ने कटघरे में खडा किया है। यह बात तो राहुल ही बता पाएंगे कि वे नशे में थे या और कोई बात है इस पूरे प्रहसन के पीछे।
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