Sunday, August 8, 2010

अमेरिका का आध्यात्म, भारत का हिन्दुत्व



हालीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स हिन्दू हो गयी. देशभर की मीडिया इस खबर से अटी पड़ी है है कि उन्हें हिन्दू धर्म ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने पिछले साल स्वामी धर्मदेव से हुई मुलाकात ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया. इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम को मीडिया भले ही आश्चर्य की नजर से देख रहा हो लेकिन खुद स्वामी धर्मदेव को कोई आश्चर्य नहीं है. जूलिया के धर्मपरिवर्तन के बाद उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि वे जबरन धर्म परिवर्तन के पक्ष में नहीं हैं लेकिन अगर जूलिया ने अपनी आत्मा से हिन्दू धर्म को स्वीकार किया है तो उनका स्वागत किया जाना चाहिए.

अमेरिका परिवर्तन पसंद देश है. दो-तीन दशक पहले अगर अमेरिका कूंगफू और कराटे की तरफ भाग रहा था तो इधर एक-डेढ़ दशक से वह योग और आध्यात्म की दिशा में अग्रसर हो गया है. दो दशक के भीतर ही चीन का मार्शल आर्ट पुराना फैशन हो गया और उसकी जगह आसन और प्राणायाम ने ले ली. भौतिक जगत में शीर्ष पर विराजमान अमेरिका में आध्यात्मिक ललक कितनी तीव्र है इसका उदाहरण देखना हो तो अोबामा का चुनाव प्रचार याद करिए. अपने चुनाव प्रचार के दौरान जब ओबामा के चुनाव प्रबंधकों ने उन्हें आध्यात्मिक पूंजी को भौतिक पूंजी से श्रेष्ठ बताने की सलाह दी तो उनके सलाहकार जानते थे कि अमेरिका में भौतिक पूंजी से भरकर बिलबिला रहे लोग आध्यात्मिक शून्य की ओर भागना चाहते हैं. ओबामा ने उस आध्यात्मिक मंत्र का इस्तेमाल किया और उन्हें भौतिक से ज्यादा नैतिक समर्थन हासिल हुआ.

लेकिन हाल के दिनों में अमेरिका में एक मजेदार बहस शुरू हुई है. वह बहस आध्यात्मिकता बनाम हिन्दुत्व की है. अमेरिका में धर्म के रूप में हिन्दुत्व का उल्लेख करनेवाले लोगों की कुल संख्या मुश्किल से दस से बारह लाख है. (अमेिरकी जनगणना, 2001) कुल आबादी के महज 0.4 फीसदी. लेकिन अमेरिकी भौतिकवाद की भट्टी ने इंसान को इतना भस्म कर दिया है कि आध्यात्म के अलावा और कहीं शीतलता दिखाई नहीं देती. अपना अमेरिका कभी जाना नहीं हुआ और कभी जाने का इरादा भी नहीं है. लेकिन पिछले दस बारह सालों से ऋषिकेश जाता रहता हूं. ऋषिकेश नवआध्यात्मवाद का नया तीर्थ बनकर उभरा है. पहाड़ और मैदान के मध्य में स्थित ऋषिकेश के आश्रम वैश्विक पहुंच रखते हैं और दुनियाभर से आध्यात्मिकता की तलाश में नागरिक यहां पहुंचते हैं. यहां के आश्रमों में आपको चीन, जापान से लेकर अमेरिका, यूरोप और अफ्रीकी देशों के नागरिक मिलेंगे. कहा जाता है कि ये लोग नशेड़ी होते हैं. भोगी होते हैं और नशा भोग की खोज में भारत चले आते हैं. लेकिन अपना अनुभव ऐसा नहीं है. सैकड़ों लोगों से मुलाकात हुई है और दर्जनों लोगों से बातें हुई हैं. उनसे बात करते हुए अहसास होता है कि वे हमसे अधिक मुमुक्षु है. हम भारत में पैदा हुए, भारत की आबोहवा में सांस ले रहे हैं, यहीं का पैदा हुआ अन्न ग्रहण कर रहे हैं लेकिन धर्म परायण जीवन की वह ललक खो चुके हैं जो सहज ही हमारे भीतर होनी चाहिए. लेकिन उनके भीतर वह ललक साफ दिखाई देती है.

भारत में पढ़े लिखे लोग जिसे हिन्दू धर्म समझने लगे हैं उसका प्रतिनिधि संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हो गया है जो हिन्दू धर्म को हिन्दुत्व के रूप में हमें समझाने की कोशिश करता है. यह बहुत ही दुखद है कि आज तक भारत में यह बहस खड़ी नहीं हुई कि आरएसएस जिस हिन्दुत्व का पाठ देशवासियों को पढ़ा रहा है क्या वह हिन्दू धर्म को प्रतिबिंबित करता है? लेकिन अमेरिका में यह बहस चल पड़ी है. इसकी शुरूआत भी कुछ ऐसे लोगों ने की है जो आरएसएस के हिन्दुत्व को हिन्दू धर्म मानते हैं. हाल में ही वाशिंगटन पोस्ट में असीम शुक्ला नामक एक व्यक्ति ने एक लेख लिखा है. असीम शुक्ला हिन्दू अमेरिकन फाउण्डेशन के अध्यक्ष हैं. उन्होंने एक लेख लिखा जिसमें कहा है कि अमेरिका में योग का प्रचार तो हुआ लेकिन हिन्दुत्व की कीमत पर. द थेफ्ट आफ योगा नामक अपने इस लेख में उन्होंने अफसोस जाहिर किया है कि कुछ लोगों ने योग को उस हिन्दुत्व से अलग कर दिया है जिसमें इसका जन्म हुआ है.

इसका जवाब देते हुए स्पिरिचुअल टीचर और आयुर्वेद चिकित्सक दीपक चोपड़ा ने कहा है कि योग को हिन्दुत्व से जोड़कर नहीं देख सकते. दीपक चोपड़ा का तर्क है कि योग धर्ममुक्त आध्यात्मिकता है जो विभिन्न धर्मो में अलग अलग रूपों में स्थापित है. अमेरिका में यह बहस पहली बार नहीं खड़ी हुई है. अमेरिका में जो लोग योग से जुड़े हुए हैं उनमें बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो इसे हिन्दुत्व का हिस्सा नहीं मानते हैं जबकि कुछ लोग इसे हिन्दुत्व से जोड़कर देखते हैं. असल में जो इसे हिन्दुत्व का हिस्सा मानते हैं, वे भी सही हैं और जो इसे हिन्दुत्व का हिस्सा नहीं मानते हैं वे भी सही है. इसका श्रेय भारत की उस आध्यात्मिक गहराई को देना चाहिए जहां से देखने पर दोनों पक्ष सही नजर आते हैं. योग विद्या को धर्म से जोड़कर भी देख सकते हैं और इसे एक सेकुलर अभ्यास भी मान सकते हैं. समस्या योग को लेकर नहीं है. समस्या भाषा को लेकर है. हिन्दुत्व धार्मिक शब्दावली से निकला शब्द है. भारत में एक धर्म विशेष से जुड़े लोगों को हिन्दू के रूप में चिन्हित करने का काम ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने किया. और यही उनकी पहचान बन गया. लेकिन अमेरिका जिस योग और आध्यात्म को अपना रहा है वह ब्रिटिश प्रदत्त हिन्दुत्व का हिस्सा नहीं है. इसलिए अमेरिकी समाज योग, वेद और वेदान्त को हिन्दुत्व से जोड़कर देखने की बजाय सनातन जीवन पद्धति से जोड़कर देख रहा है.

अमेरिका में पहली बार हिन्दू धर्म ग्रन्थों से परिचय राल्फ वाल्दो इमर्सन ने 200 साल पहले करवाया जब उन्होंने बोस्टन हार्बर पर हिन्दू धर्मग्रन्थों का अनुवादित पाठ किया. लेकिन भारत की ओर से पहली बार जिस संत ने अमेरिका में सनातन धर्म के बारे में सार्वजनिक परिचय करवाया उनका नाम है स्वामी विवेकान्द. 1893 में विश्व धर्म संसद में उनके द्वारा हिन्दू धर्म के बारे में ऐतिहासिक भाषण दिया गया. ईसाई धर्मगुरुओं के तीखे आक्रमणों के बीच स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दू धर्म को बहुत सटीक तरीके से हिन्दुत्व की व्याख्या की. स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिकी जमीन पर जिस आध्यात्मिकता की शुरूआत की वह कालांतर में एक प्रवाह बन गयी. भारत से हजारों की संख्या में साधु सन्यासी अमेरिका गये और वहां आध्यात्मिक जीवन जीने की विधियां सिखानी शुरू की. क्योंकि ये साधु सन्यासी थे और भारत से गये थे इसलिए उन्हें हिन्दू सन्यासी कहकर परिभाषित किया गया. लेकिन इन साधु सन्यासियों ने अपने यहां आनेवाले लोगों को कभी भी हिन्दू धर्म की वकालत नहीं की. ऐसे दर्जनों अवसरों पर मैं खुद मौजूद रहा हूं जब हमने इन संन्यासियों को यह कहते हुए सुना है कि आप जिस धार्मिक परंपरा में विश्वास करते हैं उसमें अपनी निष्ठा बनाये रखें और आध्यात्मिक जीवन की तरफ प्रेरित हो. निश्चित रूप से ऐसा करते हुए इन संन्यासियों की कोशिश किसी धर्म का प्रचार नहीं बल्कि मनुष्य मात्र का जीने की कला सिखाना है. लेकिन तथाकथित हिन्दुत्ववादी जन भारतीय आध्यात्मिकता को राजनीतिक हिन्दुत्व से जोड़कर अपनी प्रासंगिकता साबित कर रहे हैं. लेकिन उनकी इस कोशिश से भारत की उस आध्यात्मिकता को नुकसान होता है जो सनातन धर्म के रूप में संपूर्ण भारत में व्याप्त है. अगर अमेरिका अपनी आध्यात्मिक यात्रा की दो शताब्दी में ही हिन्दुत्व और आध्यात्मिकता के अंतर पर बहस कर रहा है तो भला हम पांच सहस्राब्दी के ज्ञात इतिहास के बाद भी इस फेर में क्यों रहें कि हिन्दुत्व ही आध्यात्मिकता है?

1 comment:

  1. अच्छी जानकारी भरी पोस्ट लिखी है। आभार।

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