Tuesday, August 10, 2010

ज़िन्दगी कीड़े-मकोड़े से भी गई-बीती है

मैंने दुनिया के आंसू पोछे,
मैंने हरी सबकी पीड़ा;
लेकिन रहा स्वयं उपेक्षित,
भूखा,नंगा,प्यासा कीड़ा.
ये पंक्तियाँ स्वयं मेरी हैं और मैंने इसे पत्रकारों की स्थिति को बयाँ करने के लिए लिखा है.कितने आश्चर्य की बात है,कितनी बड़ी बिडम्बना है कि समाज के दबे-कुचले लोगों के लिए रहनुमा का काम करनेवाले पत्रकार खुद इतने उपेक्षित हैं कि उनकी ज़िन्दगी कीड़े-मकोड़े से भी गई-बीती है.ऐसा भी नहीं है कि सारे पत्रकारों की आर्थिक स्थिति ख़राब ही हो.ऊपर वाले पत्रकार मजे में हैं लेकिन उनकी ईज्जत मालिकों के सामने चपरासी जितनी ही है और अपने पदों पर बने रहने के लिए उन्हें लगातार मालिकों और प्रबंधन की चाटुकारिता करनी पड़ती है.ऐसा भी नहीं है कि पत्रकारों को शोषण से बचाने के लिए सरकार ने किसी तरह की व्यवस्था नहीं की है.१९५५ में संसद ने पत्रकारों की चिरकालीन मांग को मूर्त रूप देते हुए श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,१९५५ पारित किया.इसका उद्देश्य समाचारपत्रों और संवाद समितियों में काम करनेवाले श्रमजीवी पत्रकारों तथा अन्य व्यक्तियों के लिए कतिपय सेवा-शर्तें निर्धारित व विनियमित करना था.इससे पहले अखबारी कर्मचारियों को श्रेणीबद्ध करने,कार्य के अधिकतम निर्धारित घंटों, छुट्टी,मजदूरी की दरों के निर्धारण और पुनरीक्षण करने,भविष्य-निधि और ग्रेच्युटी आदि के बारे में कोई निश्चित व्यवस्था नहीं थी.पत्रकारों को कानूनी तौर पर कोई आर्थिक व सेवारत सुरक्षा प्राप्त नहीं थी.इस कानून में समाज में पत्रकार के विशिष्ट कार्य और स्थान तथा उसकी गरिमा को मान्यता देते हुए संपादक और अन्य श्रमजीवी पत्रकारों के हित में कुछ विशेष प्रावधान किए गए हैं.इनके आधार पर उन्हें सामान्य श्रमिकों से,जो औद्योगिक सम्बन्ध अधिनियम,१९४७ से विनियमित होते हैं,कुछ अधिक लाभ मिलते हैं.पहले यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर राज्य में लागू नहीं था पर १९७० में इसका विस्तार वहां भी कर दिया गया.अतः अब यह सारे देश के पत्रकारों व अन्य समाचारपत्र-कर्मियों के सिलसिले में लागू है.श्रमजीवी पत्रकार की कानूनी परिभाषा पहली बार इस अधिनियम से ही की गई.इसके अनुसार श्रमजीवी पत्रकार वह है जिसका मुख्य व्यवसाय पत्रकारिता हो और वह किसी समाचारपत्र स्थापन में या उसके सम्बन्ध में पत्रकार की हैसियत से नौकरी करता हो.इसके अन्तर्गत संपादक,अग्रलेख-लेखक,समाचार-संपादक,उप-संपादक,फीचर लेखक,प्रकाशन-विवेचक (कॉपी टेस्टर),रिपोर्टर,संवाददाता (कौरेसपोंडेंट),व्यंग्य-चित्रकार (कार्टूनिस्ट),संचार फोटोग्राफर और प्रूफरीडर आते हैं.अदालतों के निर्णयों के अनुसार पत्रों में काल करनेवाले उर्दू-फारसी के कातिब,रेखा-चित्रकार और सन्दर्भ-सहायक भी श्रमजीवी पत्रकार हैं.कई पत्रों के लिए तथा अंशकालिक कार्य करनेवाला पत्रकार भी श्रमजीवी पत्रकार है यदि उसकी आजीविका का मुख्य साधन अर्थात उसका मुख्य व्यवसाय पत्रकारिता है.किन्तु,ऐसा कोई व्यक्ति जो मुख्य रूप से प्रबंध या प्रशासन का कार्य करता है या पर्यवेक्षकीय हैसियत से नियोजित होते हुए या तो अपने पद से जुड़े कार्यों की प्रकृति के कारण या अपने में निहित शक्तियों के कारण ऐसे कृत्यों का पालन करता है जो मुख्यतः प्रशासकीय प्रकृति के हैं,तो वह श्रमजीवी पत्रकार की परिभाषा में नहीं आता है.इस तरह एक संपादक श्रमजीवी पत्रकार है यदि वह मुख्यतः सम्पादकीय कार्य करता है और संपादक के रूप में नियोजित है.पर यदि वह सम्पादकीय कार्य कम और मुख्य रूप से प्रबंधकीय या प्रशासकीय कार्य करता है तो वह श्रमजीवी पत्रकार नहीं रह जाता है.लेकिन तृणमूल स्तर के अधिकतर पत्रकारों को नियोजक पत्रकार मानते ही नहीं वे नियुक्ति के समय ही कर्मी से लिखवा लेते हैं कि पत्रकारिता उनका मुख्य व्यवसाय नहीं है और उनका मुख्य व्यवसाय कोई दूसरा है.जब मैं पटना,हिंदुस्तान में काम करने गया था तब मुझे भी एक कागज हस्ताक्षर के लिए दिया गया जिस पर लिखा गया था कि पत्रकारिता मेरा मुख्य कार्य नहीं है.साथ ही उसमें यह भी भरना था कि मेरा मुख्य व्यवसाय क्या है.मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि इस कॉलम में क्या भरूँ.मैंने इस बारे में समाचार समन्वयक देवेन्द्र मिश्र जी से सलाह मांगी क्योंकि मेरा मुख्य पेशा पत्रकारिता ही था.उनके कहने पर मैंने इस कॉलम में टीचिंग भर दिया.हालांकि मैं जानता था कि मेरे साथ अन्याय किया जा रहा है लेकिन मैं मजबूर था जैसे सारे पत्रकार मजबूर होते हैं.मैं अपने कैरिअर की शुरुआत कर रहा था और इस स्थिति में नहीं था कि विरोध कर सकूं.श्रमजीवी पत्रकार होते हुए भी मैं जबरन इसकी परिभाषा से बाहर कर दिया गया और खून के घूँट पीकर रह गया.यहाँ मैं यह भी बताता चलूँ कि अधिनियम की धारा ३ (१) से श्रमजीवी पत्रकारों के सम्बन्ध में वे सब उपबंध लागू किये गए हैं जो औद्योगिक विकास अधिनियम,१९४७ में कर्मकारों (वर्कमैन)पर लागू होते हैं.किन्तु,धारा ३ (२) के जरिये पत्रकारों की छंटनी के विषय में यह सुधार कर दिया गया है कि छंटनी के लिए संपादक को छह मास की और अन्य श्रमजीवी पत्रकारों को तीन मास की सूचना देनी होगी.संपादकों और अन्य श्रमजीवी पत्रकारों को इस सुधार के साथ-साथ वह सभी अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त है जो औद्योगिक विकास कानून के अन्तर्गत अन्य कर्मकारों को सुलभ है.इतना ही नहीं पत्रकारों को ग्रेच्युटी की अदायगी के बारे में भी श्रमजीवी पत्रकार कानून में विशेष उपबंध किये गए हैं.धारा 5 में यह प्रावधान है कि किसी समाचारपत्र में लगातार तीन वर्ष तक कार्य करनेवाले श्रमजीवी पत्रकारों को,अनुशासन की कार्रवाई के तौर पर दिए गए दंड को छोड़कर,किसी कारण से की गई छंटनी पर या सेवानिवृत्ति की आयु हो जाने पर उसके सेवानिवृत्त होने पर,या सेवाकाल के दौरान मृत्यु हो जाने पर,या दस वर्ष तक नौकरी के बाद किसी कारणवश स्वेच्छा से इस्तीफा देने पर,उसे मालिक द्वारा सेवाकाल के हर पूरे किए वर्ष या उसके छह मास से अधिक के किसी भाग पर,१५ दिन के औसत वेतन के बराबर धनराशि दी जाएगी.स्वेच्छा से इस्तीफा देने वाले श्रमजीवी पत्रकार को अधिकाधिक साढ़े १२ मास के औसत वेतन के बराबर ग्रेच्युटी मिलेगी.यदि कोई श्रमजीवी पत्रकार कम-से-कम तीन वर्ष की सेवा के बाद अंतःकरण की आवाज के आधार पर इस्तीफा देता है तो उसे भी इसी हिसाब से ग्रेच्युटी दी जाएगी.जहाँ तक काम और विश्राम का सवाल है तो इस अधिनियम के अन्तर्गत बनाए गए नियमों के अध्याधीन रहते हुए लगातार चार सप्ताहों की किसी अवधि के दौरान,भोजन के समयों को छोड़कर, १४४ घंटों से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता है,न ही उसे इससे अधिक समय तक काम करने की अनुमति दी जा सकती है.हर श्रमजीवी पत्रकार को लगातार सात दिन की अवधि के दौरान कम-से-कम लगातार २४ घंटों का विश्राम दिया जाना चाहिए.सप्ताह को शनिवार की मध्य रात्रि से आरम्भ समझा जाता है (धारा ६).श्रमजीवी पत्रकारों के लिए २ प्रकारों की छुट्टियों-उपार्जित छुट्टी और चिकित्सा छुट्टी-का स्पष्ट प्रावधान किया गया है.शेष छुट्टियों के सम्बन्ध में नियम बनाने का उपबंध है.उपार्जित छुट्टी काम पर व्यतीत अवधि की १/११ से कम नहीं होगी और यह पूरी तनख्वाह पर मिलेगी.चिकित्सा प्रमाण-पत्र पर चिकित्सा छुट्टियाँ कार्य पर व्यतीत अवधि की १/१८ से कम नहीं होंगी.यह आधी तनख्वाह पर दी जाएगी.इसका अर्थ मोटे तौर पर यह है कि श्रमजीवी पत्रकार को वर्ष में एक मास की उपार्जित छुट्टी और चिकित्सा प्रमाणपत्र के आधार पर आधी तनख्वाह पर चार सप्ताह की छुट्टी दी जानी चाहिए (धारा ७).काम के घंटों का प्रावधान संपादकों पर लागू नहीं होता.संवाददाताओं,रिपोर्टरों और फोटोग्राफरों को किसी दिन काम शुरू करने के बाद उस समय तक समझा जाएगा जब तक वह उसे पूरा नहीं कर लेते.किन्तु,यदि उनसे पूरे सप्ताह में एक या अधिक बार हीं घन्टे या उससे अधिक का विश्राम देकर इसकी क्षति-पूर्ति करनी होगी.अन्य श्रमजीवी पत्रकारों के लिए सामान्य कार्य-दिवस में दिन की पारी में छह घन्टे और रात की पारी में साढ़े पॉँच घन्टे से ज्यादा समय का नहीं होगा.रात को ११ बजे से सुबह ५ बजे के समय को रात्रि की पारी में माना जाएगा.दिन की पारी में लगातार चार घन्टे के काम के बाद एक घन्टे का और रात्रि की पारी में लगातार तीन घन्टे के कार्य के उपरांत आधे घन्टे विश्राम दिया जाना चाहिए.श्रमजीवी पत्रकार को लगातार दूसरे सप्ताह में रात्रि पारी में काम करने को नहीं कहा जा सकता है.उसे १४ दिनों में एक सप्ताह से ज्यादा रात्रि की पारी में नहीं लगाया जा सकता है.साथ ही एक रात्रि पारी से दूसरी रात्रि पारी में बदले जाने के बीच चौबीस घन्टे का अन्तराल होना चाहिए.दिन की एक पारी से दूसरी पारी में बदले जाने के समय यह अन्तराल १२ घन्टे का होना चाहिए.श्रमजीवी पत्रकार वर्ष में १० सामान्य छुट्टियों का अधिकारी है.यदि वह छुट्टी के दिन काम करता है तो उसे इसकी पूर्ति किसी ऐसे दिन छुट्टी देकर करनी होगी जिस पर नियोजक और पत्रकार दोनों सहमत हों.छुट्टियों और साप्ताहिक अवकाश की मजदूरी श्रमजीवी पत्रकारों को दी जाएगी.काम पर गुजरे ११ मास पर एक मास उपार्जित छुट्टी दी जाएगी.किन्तु,९० उपार्जित छुट्टियाँ एकत्र हो जाने के बाद और छुट्टियाँ उपार्जित नहीं मानी जाएगी.सामान्य छुट्टियों,आकस्मिक छुट्टियों और टीका छुट्टी की अवधि को काम पर व्यतीत अवधि माना जाएगा.प्रत्येक १८ मास की अवधि में एक मास की छुट्टी चिकित्सक के प्रमाण-पत्र पर दी जाएगी.यह छुट्टी आधे वेतन पर होगी.ऐसी महिला श्रमजीवी पत्रकारों को,जिनको सेवा एक वर्ष से अधिक का हो,तीन मास तक की प्रसूति छुट्टी दी जाएगी.यह छुट्टी गर्भपात होने पर भी सुलभ की जाएगी.इसके अलावा नियोजक की ईच्छा पर वर्ष में १५ दिन की आकस्मिक छुट्टी दी जाएगी.नियम ३८ में यह व्यवस्था की गई है कि यदि किसी अन्य नियम,समझौते या अनुबंध का कोई भाग श्रमजीवी पत्रकारों के लिए इन नियमों से अधिक लाभकारी हो तो उन पर वह लागू होगा.ऐसा कोई नियम श्रमजीवी पत्रकारों पर लागू नहीं किया जाएगा जो इन नियमों से कम फायदेमंद हो.लेकिन असलियत एकदम अलग है.खुद मुझे हिंदुस्तान,पटना में नौकरी के आरंभिक ३ महीने तक एक भी दिन छुट्टी नहीं दी गई और कहा जाता रहा कि अभी छुट्टी के दिन का निर्धारण नहीं हो पाया है.हालांकि बाद में इसके बदले मुझे अलग से छुट्टी दे दी गई.इतना ही नहीं मुझे एक दिन की भी उपार्जित या चिकित्सकीय छुट्टी नहीं दी गई.हमें चाहे हमारी ड्यूटी रात की शिफ्ट में हो या दिन की शिफ्ट में हो प्रतिदिन कम-से-कम ८ घन्टे काम करना पड़ता था.कई जगहों पर पत्रकारों से लगातार महीनों तक रात की शिफ्ट में काम कराया जाता है चाहे इसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर ही क्यों न पड़े.इस अधिनियम का एक महत्वपूर्ण उपबंध श्रमजीवी पत्रकारों के लिए मजदूरी की दरें नीयत करने की शक्ति केंद्रीय सरकार में निहित करने के विषय में है.धारा ८ (१) में उपबंधित किया गया है कि केंद्रीय सरकार एक निर्धारित रीति से श्रमजीवी पत्रकारों और अन्य समाचारपत्र-कर्मचारियों के लिए मजदूरी की दरें नियत कर सकेगी और धारा ८ (२) में कहा गया है कि मजदूरी कि दरों को वह ऐसे अंतरालों पर,जैसा वह ठीक समझे,समय-समय पर पुनरीक्षित कर सकेगी.दरों का निर्धारण और पुनरीक्षण कालानुपाती (टाइम वर्क) और मात्रानुपाती (पीस वर्क) दोनों प्रकार के कामों के लिए किया जा सकेगा.पर,यह व्यवस्था भी की गई है कि सरकार वेतन दरों का निर्धारण मनमाने तौर पर न करे.इसलिए धारा ९ में एक मजदूरी बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया है.बोर्ड की सिफफिशों पर विचार करके ही मजदूरी की दरें नियत की जा सकती है.बोर्ड में अध्यक्ष समेत ७ सदस्य नियुक्त किये जाते हैं.किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय का विद्यमान या भूतपूर्व न्यायधीश ही इसका अध्यक्ष हो सकता है.अन्य सदस्यों में समाचारपत्रों के नियोजकों और श्रमजीवी पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करनेवाले २-२ व्यक्ति और २ स्वतंत्र व्यक्ति होते हैं.मजदूरी बोर्ड समाचारपत्रों-स्थापनों,श्रमजीवी पत्रकारों,गैर-पत्रकार समाचारपत्र-कर्मचारियों तथा इस विषय में हितबद्ध अन्य व्यक्तियों से अभ्यावेदन आमंत्रित करता है.बोर्ड अभ्यावेदनों पर विचार करके तथा अपने समक्ष रखी गई सारी सामग्री की परीक्षा करके अपनी सिफारिशें केंद्रीय सरकार से करता है.इसके बाद केंद्रीय सरकार का काम है कि वह सिफारिशें प्राप्त होने के उपरांत,जहाँ तक हो सके,शीघ्र मजदूरी की दरें नीयत या पुनरीक्षित करने सम्बन्धी आदेश जारी करे.यह आदेश बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार या उसमें ऐसे किसी फेरबदल के साथ,जिसे वह उचित समझे,जारी किया जा सकता है.किन्तु,फेरबदल ऐसा नहीं होना चाहिए जो बोर्ड की सिफारिशों के स्वरुप में महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दे.सिफारिशों को लागू करनवाला केन्द्रीय सरकार का प्रत्येक आदेश राजपत्र में प्रकाशित होने की तारीख़ या आदेश में विनिर्दिष्ट किसी अन्य तारीख से अमल में आता है.केंद्रीय सरकार के आदेश के प्रभाव में आ जाने पर,प्रत्येक श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार समाचारपत्र-कर्मचारी इस बात का हकदार हो जाता है कि उसे उसके नियोजन द्वारा उस दर पर मजदूरी दी जाए जो आदेश विनिर्दिष्ट मजदूरी की दर से किसी दशा में कम न हो (धारा १३).इस अधिनियम का उल्लंघन करनेवाले नियोजक को अधिकतम ५०० रूपये के जुर्माने का प्रावधान है जो एकदम मामूली है.लेकिन वास्तव में होता क्या है पहले ही प्रत्येक कर्मी से नियुक्ति के समय एग्रीमेंट भरवाया जाता है जिससे वह नियोजक रहमो-करम पर काम करने के लिए बाध्य हो जाता है जिस तरह खुद मेरे साथ किया गया.उसे कभी भी बिना नोटिस के निकाल-बाहर कर दिया जाता है.अगरचे तो वह कोर्ट का रूख करता ही नहीं और अगर करता भी है तो कानून के दांव-पेंच में उलझकर रह जाता है.इस प्रकार हमने देखा कि दुनियाभर दुखी-दीनों का ख्याल रखनेवाले पत्रकारों की खुद की दशा ही दयनीय है और उनकी कोई सुध लेनेवाला नहीं है.ग्रामीण क्षेत्रों के रिपोर्टरों को तो पंक्ति के आधार पर पैसे दिए जाते हैं.उनकी रक्षा के लिए कानून बना दिए गए हैं लेकिन उनका पालन नहीं किया जाता.हालांकि इनके कई संगठन भी हैं लेकिन उनके नेता भी सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं.जाने कब स्थितियां बदलेंगी और पत्रकार भी सम्मान के साथ ज़िन्दगी जी सकेंगे,जाने कब??

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