Sunday, August 1, 2010

comकम नहीं हो रही पचौरी की दुश्वारियां


लिमटी खरे की खबरें देश के कई अखबारों में छपती हैं. दिल्ली में रहकर स्वतंत्र पत्रकारिता लेखन और विभिन्न मीडिया स्कूलों में पढ़ाते भी हैं. लिमटी की लालटेन नाम से विस्फोट.कॉम में नियमित लिमटी की लालटेन नामक स्तंभ लेखन. limtykhare@gmail.comकम नहीं हो रही पचौरी की दुश्वारियां
सवा सौ साल पुरानी और भारत गणराज्य पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली अखिल भारतीय राष्टन्न्ीय कांग्रेस के चुनावों में भारत के हृदय प्रदेश में वर्तमान अध्यक्ष सुरेश पचौरी को पसीना आने लगा है। आलम यह है कि मध्य प्रदेश के कांग्रेसी क्षत्रप राजा दिग्विजय ंिसह, कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कुंवर अर्जुन सिंह, सुभाष यादव, कांति लाल भूरिया, श्री निवास तिवारी आदि ने चुनावों के तौर तरीकों पर अपनी असहमति जता दी है। नेताओं के बीच मतभेद और मनभेद इस कदर बढ गए हैं कि एआईसीसी के सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने तो कांग्रेस द्वारा गठित मध्य प्रदेश चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष नरेंद्र बुढ़ानिया से चर्चा तक के लिए इंकार कर दिया है। कांग्रेस में गुटबाजी को अहम स्थान दिया गया है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि जब भी मध्य प्रदेश में कोई भी अध्यक्ष पद पर काबिज होता है, वह दूसरे नेताओं की खीची लाईन को मिटाकर अपनी लाईन को ही बढाने का जतन करता है। इस बार के चुनावों की कवायद में भी यही हुआ। अध्यक्ष सुरेश पचौरी ने बीआरओ और डीआरओ के चयन में अन्य क्षत्रपों की जमकर उपेक्षा की जिससे आला नेताओं में रोष और असंतोष व्याप्त हो गया है।

कौआ कोसे नहीं मरता है ढोर
बुंदेलखण्ड की मशहूर कहावत है ‘‘कौआ कोसे ढोर नहीं मरत‘‘ इसका अर्थ है भूखा काक जब कुछ खाने को नहीं होता है तब ढोर यानी जानवर को कोसने लगता है कि वह मर जाए, पर ईश्वर की लीला अपरंपार है, उसके कोसने बुरा चाहने पर भी जानवर नहीं मरता है। इसी तर्ज पर पूर्व केंद्रीय खेल मंत्री मणिशंकर अय्यर द्वारा कामन वेल्थ गेम्स को कोसा जा रहा है। मेजबानी प्राप्त होने और खेल के महज तीन माह पहले मणि शंकर ने अपनी जुबान खोलकर कहा है कि यह पैसे की बरबादी है, और कोई शैतान ही इसका समर्थन कर सकता है। अरे मणि भाई आप उस वक्त कहां थे, जब पहली बार सरकार ने इसके लिए राशि आवंटित की थी, इतना ही नहीं बारंबार आवंटन बढता गया और आप भारत गणराज्य के खेल मंत्री रहे हैं, आप फिर भी खामोश रहे। अब जब दरवाजे पर बारात आ गई है तब आप कह रहे हैं कि द्वारचार के पहले हम जरा ‘‘पॉटी‘‘ करके आते हैं। अगर आपको यह पैसे की बरबादी लग रही थी तो आपको पहले ही अपनी चोंच खोलना चाहिए था। लगता है आपका भी कोई हित नहीं सध सका है, जो आप कर्कश स्वर में नया राग अलापने में लगे हैं।

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