Sunday, August 8, 2010
परमाणु सुरक्षा पर बात करते वक़्त याद रखिए हिरोशिमा और नागासाकी
६५ साल पहले,६ अगस्त १९४५ के दिन एक अमरीकी हवाई जहाज़ ने जापान के हिरोशिमा शहर पर पहला परमाणु बम गिराया था . उसके बाद से ही दुनिया परमाणु बम की दहशत में जिंदा है. परमाणु बम गिराने के बाद अमरीका ने बाकी दुनिया से अपने आप को सुपीरियर साबित कर लिया था.जब अमरीका ने तबाही का यह बम जापानी शहर पर गिराया था तो उस वक़्त के अमरीका के राष्ट्रपति हैरी. एस. ट्रूमैन अटलांतिक महासागर में "आगस्ता" जहाज़ी बेड़े पर मौजूद थे और उन्होंने शेखी मारी थी कि इस एक बम के गिर जाने के बाद युद्ध के मानदंड बदल जायेगें.
हिरोशिमा शहर को निशाना इसलिए बनाया गया था कि वहां जापानी सेना का सप्लाई डिपो था. शहर की 60 प्रतिशत से भी अधिक इमारतें नष्ट हो गईं थीं. हिरोशिमा की कुल 3 लाख 50 हज़ार की आबादी में से 1 लाख 40 हज़ार लोग इसमें मारे गए थे. इस बम के कारण 13 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में तबाही फैल गई थी.इनमें सैनिक और वह लोग भी शामिल थे जो बाद में परमाणु विकिरण की वजह से मारे गए. बहुत से लोग लंबी बीमारी और अपंगता के भी शिकार हुए. तीन दिनों बाद अमरीका ने नागासाकी शहर पर पहले से भी बड़ा हमला किया.अमरीकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने कहा था कि परमाणु बम ने दुनिया की मूलभूत शक्तियों को इकट्ठा करने का काम किया है, उन्होंने दावा किया था कि उस बम ने परमाणु हथियार बनाने की दौड़ में जर्मनी पिछड़ गया है .यह बम अमरीका की एक सोची समझी चाल के तहत चलाया गया था. इसके १० दिन पहले अमरीकी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी थी जिसमें जापान को बिना शर्त आत्मसमर्पण करने को कहा गया था. हालांकि पिछले ६५ वर्षों में अमरीका ने हर मंच से यह साबित करने की कोशिश की है कि उसने युद्ध की नीति शास्त्र का पूरी तरह से पालन किया है लेकिन सही बात यह है कि अंतर राष्ट्रीय संबंधों के मामले में यह अमरीकी दादागीरी की शुरुआत का पहला अध्याय है और आज भी उसी परमाणु ताक़त और हथियारों के ज़खीरे के बल पर वह देशों को धमकाता फिरता है.
केंद्र सरकार की परमाणु ज़िम्मेदारी बिल को पास करवाने की कोशिश को समझने के लिए यह ज़रूरी है कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के बाद हुई तबाही को नज़र में रखा जाए. अमरीकी बमबारी के ६५ साल बाद भी आज हिरोशीमा और नागासाकी में लोग परमाणु खतरों से जूझ रहे हैं , बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं और वहां के लोगों की भावी पीढियां तबाह हो गयी हैं. हैरानी की बात यह है कि परमाणु दुर्घटना के मामले में केंद्र सरकार का सुझाव है कि सम्बंधित पक्ष की ज़िम्मेदारी केवल १० साल रखी जाए. अखबारों के माध्यम से सरकार ने खबरें लीक कर के यह कोशिश की कि इसे बढ़ाकर २० साल करने पर विचार किया जा रहा है. बिल के लोक सभा में पेश होने के पहले उस पर संसद की एक समिति विचार कर रही है. ज़्यादातर सदस्यों का कहना है कि इस मामले में समय सीमा तय करने की ज़रुरत नहीं है. उनक अतार्क है कि भोपाल में जो औद्योगिक हादसा हुआ था उसमें तो कहीं कोई परमाणु ज़हर नहीं था लेकिन वहां के लोगआज २५ साल बाद भी उस ज़हर के शिकार हो रहे हैं. इसलिए जब परमाणु ज़हर माहौल में फैलेगा तो २० साल का समय तो कुछ भी नहीं है. वास्तव में इसे हमेशा के लिए लागू किया जाना चाहिए २० या ५० साल की समय सीमा बाँधने का कोई मतलब नहीं है.
सरकार की तरफ से लाये मूल बिल में प्रस्ताव था कि हादसे की सूरत में ज़िम्मेदार पक्ष को पांच सौ करोड़ रूपये के लिए ज़िम्मेदार माना जाए. अब मीडिया के माध्यम से यह सुझाया जा रहा है कि इसे दुगुना या तिगुना किया जा जा सकता है लेकिन बड़ी संख्या में सांसदों के एरे है कि इसे कम सेकम पांच हज़ार करोड़ रूपये पर फिक्स किया जा सकता है . टी सुबीरामी रेड्डी की अध्यक्षता में बनी कमेटी को तय करना है कि सरकार इस बिल में अभे यौर क्या क्या संशोधन करे. सम्बंधित विभागों के अफसरों को तलब कर के उनसे जानकारी ली जा रही है. उसके बाद की तय होगा कि इस बिल का भविष्य क्या होगा लेकिन ज़रूरी है कि टी सुबीरामी रेड्डी कमेटी के बाकी सदस्य बहुत ही ज़िम्मेदारी से फैलसा लें क्योंकि जो कुछ वह तय करेगें ,हमारी भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा उसी पर निर्भर करेगी.
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