Wednesday, December 1, 2010
दांत पीले है इसलिए, हाथ पीले नहीं हो पायेंगें
दांत पीले है इसलिए, हाथ पीले नहीं हो पायेंगें ...!
- रामकिशोर पंवार
शादी - विवाह का मौसम आया और चला भी गया....... इस बार भी सीवनपाट नामक उस गांव में एक बार फिर भी न तो ढोल बजे और न कोई शहनाई गुंजी .......इसके पीछे जो भी कारण हो पर सच्चाई सोलह आने सच है कि इस गांव की लड़कियो के दंतो पर छाए पीलेपन को कोलेगेट से लेकर सिबाका ....... यहाँ तक की डाबर लाल दंत मंजन तक दूर नहीं कर पाया है. यह अपने आप में कम आश्चर्य जनक घटना नही है कि देश - दुनिया की कोई दंत मंजन कंपनी सीवन पाट गांव की उन युवतियों के चेहरो पर मुस्कान नहीं ला सकी है जिनके दांत पीले होने की वज़ह से उनके हाथ पीले नहीं हो पा रहे है। दांतो तो की समस्या पर आधारित उस गांव के हेडपम्प से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ता मीरा पत्नि शिवजी इवने एक हाथ से विकलंाग बन चुकी है। एक हाथ से काम ही नहीं हो पाने के कारण मीरा अपने पीड़ा को अपने गिरधर गोपाल को भी गाकर - बजा कर नहीं सुना सकती है . अपने एक कमजोर हाथ को दिखाती मीरा इवने रो पड़ती है वह कहती है कि साहब जब हाथ ही काम नहीं कर पा रहा है तब दांत के बारे में क्या करू....... ! काफी शिकवा - शिकायते करने के बाद लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के द्घारा बंद किये गये बैतूल से आठनेर जाते समय ताप्ती नदी के उस पार बसे सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य गांव मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के अन्तगर्त आता है. इस गांव के बंद किये गये हेडपम्प के पानी पीने से के पानी की वजह से अकेली मीरा ही विकलांग नहीं है उसकी तरह कक्षा 9 वी में गांव से 6 किलो मीटर दुर बसे कोलगांव में पढऩे जाने वाली गांव कोटवार हृदयराम आत्मज राधेलाल की बेटी रेखा आज भी बैसाखी के सहारे गांव से पैदल ताप्ती मोड़ तक आना- जाना करती है. प्रतिदिन बस से किराया लगा कर स्कूल पढऩे जाने वाली रेखा की हिम्मत को दांद देनी चाहिये क्योकि उसने विकलांगता को चुनौती देकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा . अनुसूचित जाति की कक्षा 9 वी की इस विकलांग छात्रा कुमारी रेखा के पिता हृदयराम अपनी पीड़ा को व्यक्त करते समय रो पड़ता है वह बताता है कि ‘‘ साहब मेरी बेटी कन्या छात्रावास बैतूल में पढ़ती थी लेकिन वह इस पानी के चलते विकलांग बन गई और बीमार रहने लगी जिसके चलते वह एक साल फेल क्या हो गई उसे छात्रावास से छात्रावास अधिक्षका ने निकाल बाहर कर दिया मैंने काफी मन्नते मांगी लेकिन मेरी कोई सुनवाई नहीं हुई ...... ! ’’
हालाकि दांत के पीले होने की त्रासदी से रेखा भी नहीं बच पाई है. गांव में यूँ तो फ्लोराइड़ युक्त पानी ने कई लोगो को शारीरिक रूप में कमजोर बना रखा है. 34 साल की देवला पत्नि राजू भी अपने पीले दांतो को दिखाती हुई कहती है कि मेरी शादी को 20 साल हो गये उस समय से मेरे दांत पीले है आज मैं हाथ - पैर से कमजोर हूं आज मेरे पास कोई काम धंधा नही है....! गांव के स्कूल के पास रहने वाली इस आदिवासी महिला के 4 बच्चे है जिसमें एक बड़ी लडक़ी की वह बमुश्कील शादी करवा सकी है......! पथरी का आपरेशन करवा चुकी देवला और उसके सभी बच्चो के दांत पीले है. उस गांव की युवतियाँ अपने भावी पति के साथ सात जन्मो का साथ निभाने के लिए दिन - प्रति दिन अपने यौवन को खोकर बुढ़ापे की ओर कदम रख रही है लेकिन इन पंक्तियो के लिखे जाने तक कोई भी इन युवतियों से शादी करने को तैयार नहीं है. इस गांव की फुलवा अपनी बेटी की दुखभरी दांस्ता सुनाते रो पड़ती है वह कहती है कि ‘‘साहब इसमें हमारा क्या दोष ......... ! इस गांव के पानी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है . मेरी ही नहीं बल्कि इस गांव की हर दुसरी - तीसरी लडक़ी के हाथ सिर्फ इसलिए पीले नहीं हो पा रहे है क्योकि उनके दांत पीले है.......! ’’ माँ सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का जब यह हेड पम्प नहीं खुदा था तब तक पानी पीने वाले गांव के भूतपूर्व पंच 57 वर्षिय बिरजू आत्मज ओझा धुर्वे कहता है कि ‘‘साहब उस समय हमें कोई बीमारी नहीं हुई न दांत पीले हुये न हाथ - पैर कमज़ोर हुये ........! पता नहीं इस गांव को इस हेड पम्प से क्या दुश्मनी थी कि इसने हमारे पूरे गांव को ही बीमार कर डाला...... .!’’ मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के इस गांव में बने स्कूल में पहली से लेकर पाँचवी तक कक्षाये लगती है . सीवनपाट के स्कूल में पहली कक्षा पढऩे वाली पांच वर्षिय मनीषा आत्मज लालजी के दांत पीले क्यो है उसे पता तक नहीं .....मुंह से बदबू आने वाली बात कहने वाली शिवकला आत्मज रामचारण कक्षा दुसरी तथा कंचन आत्मज शिवदयाल दोनो ही कक्षा दुसरी में पढ़ती है इनके भी दांत पीले पड़ चुके है. 6 वर्षिय प्रियंका आत्मज पंजाब कक्षा दुसरी , 7 वर्षिय योगिता आत्मज रियालाल कक्षा तीसरी की छात्रा है. इसी की उम्र की सरिता आत्मज मानक भी कक्षा तीसरी में पढ़ रही है उसके पीले दांत आने वाले कल के लिए समस्या बन सकते है. गांव की कविता आत्मज लालजी सवाल करते है कि ’‘‘साहब कल मेरी बेटी शादी लायक होगी तब उसे देखने वाले आदमी को जब पता चलेगा कि इसके दांत पीले है तथा उसके मुंह से बदबू आती है तब क्या वह उससे शादी करेगा....? ’’ विनिता आत्मज सुखराम कक्षा तीसरी की तथा कक्षा पांचवी की प्रमिला चैतराम भी अपने दांत दिखाते समय डरी - सहमी से सामने आती है। लगभग तीन घंन्टे तक इस गांव की पीड़ा को परखने गए इस संवाददाता को ग्रामिणो ने बताया कि 290 जनसंख्या वाले इस गांव में सबसे अधिक महिलायें 151 है. 139 पुरूष वाले लगभग 60 से 65 मकान वाले इस गांव में जुलाई 2006 को स्कूली मास्टरो से करवाये गये सर्वे के अनुसार इस गांव में 54 बालिकायें 44 बालक है जिनकी आयु 1 से 14 वर्ष के बीच है. इन 54 बालिकाओं में 49 के दांत पूरी तरह पीले पड़ चुके है। इसी तरह गांव की 151 महिलाओं में से 99 महिलाओं के दांत पीले है. शेष 52 महिलाओं की उम्र 45 से अधिक है जिनके दांतो पर उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी कोई असार नहीं कर सका है. जिला प्रशासन द्घारा लगभग 5 साल पहले ही उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी वाले हेड पम्प को बंद करवा कर उसके बदले में दो फ्लांग की दूरी पर एक हेड पम्प तो खुदवा दिया लेकिन उस हेडपम्प से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी का निकलना जारी है क्योकि जिन लड़कियो की उम्र पाँच साल है जिनके दुंध के दांत टूट कर नये दांत उग आये है वे भी पीले पड़ चुके है . आंगनवाड़ी पढऩे वाली अधिकांश बालिकाओं के पीले दांत इस बात का जीता - जागता उदाहरण है कि गांव में टुयुबवेल से दिलवाये चार नल कनेक्शन से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी निकल रहा है. दस वर्षिय सीमा आत्मज रमेश की माँ रामकला कहती है कि ‘‘आज - नही तो कल जब मेरी लडक़ी को देखने को कोई युवक आयेगा तक क्या वह उसके पीले दांतो को देखने के बाद उससे शादी करने को तैयार हो जाएगा.....? ’’ गांव की मालती आत्मज जुगराम कक्षा दसवी तथा कविता आत्मज बिन्देलाल कक्षा 9 वी में पढऩे के प्रतिदिन कोलगांव आना - जाना करती है. इसी तरह सरिता कक्षा 7 वी में पढऩे के लिए बोरपानी गांव जाती है .
गांव के कृष्णा आत्मज तुलाराम तथा गजानंद आत्मज राधेलाल की शिकायत पर वर्ष 2004 में बंद किये गये इस हेडपम्प के पानी से जहाँ एक ओर राजू आत्मज तोताराम भी विकलांगता की पीड़ा को भोग रहा है. वही दुसरी ओर गांव की फूलवंती आत्मज झुमरू, कला आत्मज चैतू तथा संगीता आत्मज गोररी की भी समस्या दांत के पीले पन से है. उन्हे इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं उनका भावी पति उनके दांतो के पीलेपन तथा मँुह से आने वाली बदबू की वजह से उनसे शादी करने से मना न कर दे . जब प्रदेश की विधानसभा तक में फ्लोराइड युक्त पानी पर बवाल मचा तो बैतूल जिला कलेक्टर भी दौड़े - दौड़े उन गांवो की ओर भागे जिनके हेडपम्पो से फ्लोराइड युक्त पानी निकलता था. बमुश्कील आधा घन्टा भी इस की दहलीज तक पहँचे जिला कलेक्टर ने यहाँ - वहाँ की ढेर सारी बाते की लेकिन जब गांव कोटवार ने ही अपनी बेटी की विकलांगता की बात कहीं तो उसके इलाज की बात कह कर कलेक्टर महोदय चले गये . गांव के पंच संतराम , सुरतलाल , जुगराम , यहाँ तक की महिला पंच रामकली बाई भी कहती है कि ‘‘साहब हमें नेता - अफसर नही चाहिये हमें तो ऐसा आदमी चाहिये जो कि हमारे दांतो का पीला पन दुर कर सके ताकि हम अपनी गांव की लड़कियो के हाथ आसानी से पीले कर सके........! ’’ गांव के हेडपम्प और टुयुबवेल से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी की वजह सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य इस गांव की दुखभरी त्रासदी को सबसे पहले पत्रकारो ने ही जनप्रकाश में लाया लेकिन जिला प्रशासन की दिलचस्पी केवल उन्ही कामो में रही जिनसे कुछ माल मिल सके और यही माल कमाने की अभिलाषा जिले के तीन अफसरो को विधानसभा सत्र के दौरान सस्पैंड करवा चुकी है. लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के अफसरो का अपना तर्क है कि वह इस गांव के बारे में कई बार अपनी रिर्पोट जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार तक भिजवा चुका है लेकिन इस गांव की समस्या से उसे कोई निज़ात नहीं दिलवा सका है. अब जब इस गांव की लडक़ी अपने हाथ पीले होने के इंतजार में बुढ़ापे की दहलीज पर पहँुच रही है तब जाकर मध्यप्रदेश की वर्तमान राज्य सरकार ने यह स्वीकार किया है कि बैतूल जिले के कुछ गांवो में पोलियो की वजह इन गांवो के लोगो द्घारा पीया जाने वाला फ्लोराइड़ युक्त पानी है.
राज्य की भगवा रंग में रंगी खाकी हाफपैन्ट छाप भाजपाई सरकार का प्रदेश की जनता के स्वास्थ के प्रति कितन सजग एंव कत्वर्यनिष्ठ है इस बात का पता आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला मुख्यालय की नगरपालिका बात की कार्यप्रणाली से लग सकता है. लोगो को बिमारियो की आगोश में समा देने वाली भाजपाई अध्यक्ष के नेतृत्व में कार्य कर रही इस नगरपालिका को इस बात का पता चल गया था कि बैतूल की जमीन से निकलने वाले पानी को पीने से कई प्रकार की गंभीर बिमारियाँ लग सकती है इसके बाद भी नगर पालिका ने अपने अंधे और बहरे होने का प्रमाण देकर बैतूल की जनता के स्वास्थ के साथ खिलवाड़ किया है। वैसे तो आमला एवं भैसदेही को छोड़ कर जिले की सभी नगरपालिका एवं नगर पंचायतो पर भाजपा का शासन है। जिला मुख्यालय पर श्रीमति पार्वती बाई बारस्कर की अध्यक्षता वाली भाजपा शासित बैतूल नगरपालिका परिषद की काफी बड़ी आबादी बीते डेढ़ महिने से शरीर के लिए निर्धारित मापदण्ड से दुगनी मात्रा वाले फ्लोराइड का पानी बगैर फिल्टर के पी रहे है. जबकि कार्यपालन यंत्री लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय खंड बैतूल ने मुख्य नगरपालिका अधिकारी बैतूल को देड़ माह पूर्व दी जांच रिपोर्ट में साफ कहा है कि संबंधित नलकूपों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा निर्धारित मापदंड से दुगनी है अत: इस पानी का उपयोग पेयजल हेतु नहीं किया जाए. फिर भी नगरपालिका द्वारा शहरवासियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर उन्हें फ्लोराइड युक्त पानी पिलाया जा रहा है. लेकिन न तो जनप्रतिनिधियों और न ही नपा के अफसरों का ध्यान इस ओर है। हालात इतने बदतर हो गए हैं कि नगरपालिका का भगवान ही मालिक है. नपा द्वारा डेढ़ माह से पिलाए जा रहे अत्यधिक फ्लोराइड युक्त पानी के संबंध में डाक्टरों का कहना है कि अधिक मात्रा में फ्लोराइड वाले पानी के लगातार सेवन से हड्डयों और दांतों पर दूरगामी असर पडऩा तय है. दांतो के पीले पन के लिए जिस फ्लोराइड को जिम्मेदार बताया जा रहा है न् वह तो जिला मुख्यालयो भी कई हेड़ पम्पो से लोगो को पिलाया गया. जिला मुख्यालय पर बीती ग्रीष्म ऋतु में नगरपालिका बैतूल द्वारा फिल्टर प्लांट स्थित माचना नदी का पानी पूरी तरह सूख जाने पर केन्द्रीय भूजल विभाग की मशीन से फिल्टर प्लांट परिसर में किए गए बोर का पानी नगर में सप्लाई करवा दिया। एक हजार और पांच सौ फीट के इन बोर का पानी विवेकानंद वार्ड, विकास नगर, शंकर नगर, कोठीबाजार, शिवाजी वार्ड, आर्यपुरा, टिकारी, मोतीवार्ड, दुर्गा वार्ड, में आज भी इस बोर का पानी दिया जा रहा है. नपा के जवाबदार अधिकारियों ने पेयजल सप्लाई के पहले इस पानी की केमिकल जांच किए बिना, फिल्टर किए जल प्रदाय किया गया व आज भी माचना नदी का फिल्टर किया हुआ पानी बोर का पानी साथ साथ सप्लाई कर आपूर्ति की जा रही है. नपा द्वारा उक्त बोर के पानी की केमिकल रिपोर्ट लाने स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से मांगी गई थी जो कि पानी का परीक्षण करने के बाद 6 जुलाई 05 को नपा को सौपी गई थी जिससे एक हजार फीट के इस बोर के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 3.19 मिग्राम प्रति लीटर बताई गयी है. जो कि निर्धारित आईएसआई मापदंड 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है. अत: नलकूप के जल का उपयोग पेयजल हेतु नहीं किया जाना चाहिए बावजूद इसके बैतूल नगरपालिका परिषद द्वारा दुगना फ्लोराइड मिला पानी शहर की जनता को पिलाया जा रहा है वहीं उक्त जल का डीफाउंडेशन भी नहीं किया गया. जब फिल्टर प्लांट जाकर वस्तुस्थिति की जानकारी लेनी चाही गई तो अभी भी यहां से स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग की रिपोर्ट के बाद भी फ्लोराइड मिला पानी वितरित किया जा रहा है. फिल्टर प्लांट में लगे उत्फालवन पंखे भी विगत दो वर्षो से खराब पड़े हुए है जबकि पानी को साफ करने हेतु उसमें मिलाया जाने वाला सोडियम हाइड्रोक्लोराइड की 38 लीटर पानी वाली केनो पर भी पर्चियों में जानकारी नहीं लिखी गई है. साथ ही जिस कुएं में पानी स्टोर कर साफ किया जाता है वहां लोग वाहन धो रहे है. जिससे पानी दूषित हो रहा है. इस संबंध में बैतूलनगरपालिका परिषद से संपर्क करना चाहा गया तो वहां पर संबंधित अधिकारी मौजूद नहीं थे.
निर्धारित मापदण्ड से अधिक मात्रा वाले फ्लोराइड के पानी का पेयजल के रूप में लगातार सेवन करना बच्चों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं सहित सभी के लिए अत्यधिक नुकसानदायक है और इसके दुरगामी परिणाम शरीर पर होते है जिसके चलते दात, हड्डी, पर्वस सिस्टम और किडनी पर असर पड़ता है. यह बात प्रसिद्घ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ.योगेश गढ़ेकर से विशेष चर्चा में कही. उन्होंने बताया कि फ्लोराइड की अधिक मात्रा वाले पानी को पीने से फ्लोरोसिस नामक बीमारी होती है. इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर पड़ता है अन्य लोगों पर भी दूरगामी नतीजे नजर आते है. फ्लोराइड युक्त पानी पीने से दांतो, हड्डी, नर्व सिस्टम और किडनी कमजोर होना शुरू हो जाती है. अधिक मात्रा में हड्डी का बनना शुरू हो जाता है. गर्दन, पीठ, जोड़ों, एड़ी में दर्द शुरू हो जाता है. हड्डी बढऩे से सवाईकल रेडिकूलो पेथी, लंबर रेडिकूलो पेथी नामक बीमारी शुरू हो जाती है। किडनी में यूरिया लेबल बढऩा शुरू हो जाता है. डॉ गढ़ेकर ने कहा कि बचाव का सबसे बेहतर उपाय यही है कि फ्लोराइड युक्त पानी का सेवन तत्काल रोका जाये और यदि किसी की उपरोक्त लक्षण नजर आते है तो ऐसे लोगो को तत्काल डाक्टर के पास जाकर अपना स्वास्थ परीक्षण करवाना चाहिए.राज्य सरकार से दूर रखे इस गांव में पोलियो के मरीज मिलना तो आम बात है लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से गांव की युवतियों के दांत पीले है जिसके चलते उन्हे देखने वाला युवक पहली ही बार में उसे अस्वीकार कर देता है। इस गांव को फ्लोराइड़ युक्त पानी से छुटकारा दिलवाने का भरोसा दिलवाने वाला व्यक्ति के रंग - ढंग से बेहद खफा इस गांव में के लोग कहीं इसी समस्या के चलते इस गांव में पहुंचाने वाले उस हर व्यक्ति का हाल का बेहाल न कर दे बस इसी डर से वह दुबारा इस गांव में इसलिए नहीं आ रहा है। बरहाल दांत पीले से हाथ के पीले न होने की समस्या का हल कब निकल पायेगा यह कहना अतित के गर्भ में है।
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