पेड न्यूज मीडिया की विश्वसनीयता पर खतरा
´´पेड न्यूज और पत्रकारिता´´ विषयक संगोष्ठी
(राजेन्द्र कश्यप, दीपक शर्मा की संक्षिप्त रिपोर्ट)
भोपाल 28 मार्च 2010। रविवार होने के बावजूद पत्रकारों ने तपती गर्मी के बीच दोपहर 2.30 बजे रविन्द्र भवन के स्वराज भवन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए आयोजकों को अहसास करने पर मजबूर कर दिया कि ´´पेड न्यूज´´ से मीडिया की विश्वसनीयता खतरे में है। विषयक संगोष्ठी में उनकी उपस्थिति दर्शाती है कि अपने पेशे के प्रति उनकी चिन्ता गम्भीर है।
संगोष्ठी में गम्भीर चिन्तन, मनन, आरोप, चेतावनी ने दर्शा दिया कि पाठकों के प्रति सरोकार रखते हुए भी पत्रकार अपने उपर किसी प्रकार के आरोपों से कितने व्यथित चिन्तित होते
हुये भी पत्रकारिता के श्रेष्ठ मापदण्ड, साहस और निभिर्कता का मार्ग नहीं छोड़ सकते। फ्रेण्डस आफ मीडिया के बेनर तले इस संगोष्ठी में शिव अनुराग पटेरिया ने पेड न्यूज को पत्रकारिता के लिये कलंक मानते हुए इसे गम्भीर खतरा माना है। पेड न्यूज पूरे समुदाये को कलंकित करने का काम कर रही है। वहीं रमेश तिवारी ने इसे राजनीति का हथकन्डा निरूपित बताया ।
उनका माननना था कि सत्य की हमेशा जीत होती है। मध्यप्रदेश हरि विष्णु कातथ जैसे नेता भी हुए हैं जो सतरू के सहारे चुनाव जीते जाते हैं। झूठे वादे ओर धन का सहारा कभी नहीं
लिया। रमेश तिवारी आज चरित्र में गिरावट को इस बदलाव के लिए जिम्मेदार मानते है। सेवा की भावना नहीं व्यापार की भावना से भोपाल नगर पालिका के चुनाव में क्यों पार्षद पद के
लिये लाखों, करोड़ों रूपये खर्च किये गये हैं और विजयी पार्षद करोड़ में खेलने लगे हैं।
सूर्यकान्त पाठक आज मीडिया में बिजनिस की तरह काय्र किया जा रहा है और मीडिया के मेनेजर धन्धे की पहले सोचते हैं। संपादक मेनेजर की तरह काम करने लगे है तो जाहिर है
मेनेजर का व्यापार पर ध्यान अधिक होगा।
पंकज पाठक ने आरोप लगाते हुए कहा कि राजनैतिक नेता ही इसको बढ़ावा दे रहे हैं । अब पत्रकारों को भी विज्ञापन लाने को कहा जा रहा है। पाठकों के बीच अखबारों की विश्वससनीयता
कम होने लगी है। मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग द्वारा जो पत्रकारों को सत्कार ओर वाहन की सुविधा दी जाती है उसे तत्काल बन्द कर देना चाहिये।
देशदीप सक्सेना ने कहा पेड न्यूज पहले भी होती थी बाजार में रहते हुए हम कैसे उससे बच सकते है वर्षों से राजनैतिक नेता कहते हैं पहले चुनाव के समय सरकार लठेत पालती थी
अब थे अब पैड न्यूज के पत्रकारों को पालती है और वह पैड न्यूज के पैकेज लेने आते है। जर्नलिस्ट नहीं चाहेंगे तो ऐसा कुछ भी नहीं होगा। हमें यह तय करना होगा की हमें कहा
कितना बिकना है यह तय करना होगा। चुनाव के समय भी हमने अपनी विश्वसनीयता बनाये रखी है। सन् 1975 की धमकी के समय भी पत्रकारों ने जनता के प्रति अपनी विश्वसनीयता
बनाए रखी थी।
वरिष्ठ पत्रकार रामभुवन कुशवाहा ने कहा कि आज भी भारत की पत्रकारिता का लोहा माना जाता है कुछ खामिया हो सकती है। यदि बाजारवाद का समय है तो इस समय कुछ काली भेड़
भी हो सकती है। पेड न्यूज के लिये पत्रकारों को दोष नहीं दिया जा सकता, इसके लिये दोषी कोई और नहीं मीडिया के मालिक ही हैं। आज विज्ञापनों के बीच अखबार का मत्था दिखता है। आज की नयी पीढ़ी के पत्रकारों के सामने हम जो तस्वीर रख रहे हैं वह भी उचित नहीं है। इसके बावजूद भारतीय पत्रकारिता आज भी अपनी श्रेष्ठता बनाये हुए है और आगे भी बनाए रखेगी।
सुरेश शर्मा ने कहा कि लोकसभा में विपक्षी नेता सुष्मा स्वराज ने सबसे पहले प्रदेश के एक अखबार पर एक करोड़ का पैकेज का मांगने का आरोप लगाया था। वास्तव में राजनैतिक नेता ही सबसे ज्यादा पेड न्यूज का हल्ला मचा रहे हैं। क्योंकि नेता गण पत्रकारिता पर अपना शिंकजा कसना चाहते है। किसी भी तरह पत्रकार हमारी बातों को ही छापते रहें।
दीपक तिवारी ने पत्रकारों को चेतावनी देते हुए कहा कि उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है। चुनाव में पेड न्यूज का चलन हो रहा है। कुछ अखबार मालिक पक्ष और विपक्ष से
पेड न्यूज के नाम से राशि ले रहे हैं । हम अपनी विश्चसनियता बचाने के लिए पाठकों को सचेत करेगें । अखबार की मूल जिम्मेदारी से हम पत्रकार पीछे नहीं हटते है। पेड न्यूज के चलन के बीच हमें ही सोचना है कि हम क्या करें प्रजातन्त्र के चौथे स्तंभ की विश्वसनीयता क्या खतरे में है वर्षो पहले मध्यप्रदेश में जो पहले व्यापारी थे वही अखबार चला रहे हैं।
राजनेताओं के हथकण्डों और धाखे में पत्रकार न आएं और न ही खबर के साथ कोई समझौता करें। पेड न्यूज की बुराई राजनेता ही ला रहे हैं और लांछन हम पर लगा रहे है, लेकिन हमारी पत्रकारिता का प्रभाव आज पैड न्यूज से ज्यादा है और ज्यादा है और हमेशा रहेगा।
मखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष श्री पुष्पेन्द्र पाल ने कहा कि इसमें पत्रकारों का दोष नहीं है न उन पर आरोप लगाने से काम चलने वाला है बल्कि यह नैतिकता से जुड़ा मामला है। समाज में नैतिक्ता का पतन हो रहा हे। यदि पत्रकार दोषी होते तो आज यह संगोष्ठी यहां नहीं हो रही होती । यहां नैतिक्ता पर बहस होनी चाहिए। प्रश्न यह है कि नैतिक किसे मानें ओर किसे नहीं माने पत्रकारिता में नैतिकता कायम रहे और उसकी विश्वसनीयता बनी रहे इसका पुरजोर प्रयास करना चाहिये। क्या आर्थिक मन्दी भी इसकी जिम्मेदार है या बाजारवाद हावी हो रहा है या दोनों ही जिम्मेदार हैं। आर्थिक मंदी से नैतिक्ता में गिरावट आई और पैसा कमाने के लिए अनैतिकता को बढावा दिया है, यह समाज के प्रति 420 भी है, संविधान में कोई प्रवधान नहीं है, यह अधिकार हमें समाज ने दिया है तो हम कही समाज के प्रति जिम्मेदार है।
युवा पत्रकार श्री निमिश जी ने संगोष्ठी में अपने कथन में कहा कि हमारे बीच ऐसी संस्था होनी चाहिये जो हमारे बीच होने वाली बुराईयों पर अंकुश लगा सके। व्यापार अब समाचारों का
भी होगा। सच्चाई ओर ईमानदारी पर क्या व्यापार हाबी होगा यह एक गम्भीर संकट है। इसका निदान ढुंढना जरूरी है। युवा पत्रकार सुनील जी ने कहा बाजारवाद के कारण ही समाचारपत्रों
का ही विकास हुआ हे। पाठक बढ़ने के साथ ही अखबारों के न्यूज की ताकत के साथ ही पाठकों में सामाजिक सारोकारों से जुड़ने का रूझान पैदा हुआ है। इसके बीच पेड न्यूज समाचारों
के रूप में सामने आ रही हे। विवेक पटेरिया ने कहा कि आज राजनीति में परिवारवाद फैल रहा है। विभिन्न नेता अपने सम्बंधियों को चुनाव में जिताने के लिये पेड न्यूज का सहारा ले रहे हैं।
बाहुबल के साथ ही धनबल चुनाव के साथ हाबी है। हर पार्टी अपनी न्यूज समाचार पत्रों में छपवाना चाहती है जबरन छापने के लिये पेड न्यूज का सहारा लिया जा रहा है। कांग्रेस या
भाजपा स्वयं अपने मीडिया प्रबंधकों को न्यूज छपवाने के तरीके सिखाते हैं और पार्टी के वरिष्ठ नेता द्वारा उनको प्रशिक्षित किया जाता रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार राकेश दीवान का कहना है मीडिया अब खुद अपनी विश्वसनीयता खो रहा है। समचार पत्रों में जब गलत बात भी पैसा देकर छपवाई जायेगी तो उसकी विश्वसनीयता क्य रह जायेगी। युवा पत्रकार देवेन्द्र शर्मा ने कहा कि पेड न्यूज द्वारा अपने हित के लिये ब्लेक मनी का उपयोग करते हैं जो कि गलत धंधों से आती है।
संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि पेड न्यूज की चलन के लिये खुद पत्रकारों को ही जिम्मेदार माना जाता है। पत्रकार ही मीडिया का संचालन करते हैं।
युवा पत्रकार बृजेन्द्र राजपूत ने कहा कि जनता जागरूक है और वह सब जानती है। आज पत्रकारिता के कारण देश की जनता इतनी समझदार हो गई है कि वह किसी बहकावे में नहीं आती और चुनाव में अपने फेसले बिना दबाव के ले लेती है। अन्तिम फैसला उसी के हाथ रहता है जो चुनाव के रिजल्ट के समय सामने आता है। पेड न्यूज की पेड भी कुछ दिनों में खत्म हो जायेगी ।
उसका असर भी खत्म हो जायेगा। क्योंकि पब्लिक सब जानती है। आज के युवा पत्रकार श्री अजय त्रिपाठी ने कहा कि अखबार यदि प्रतिदिन अपनी बात से पलटते रहेंगे तो क्या होगा
आज कुछ है, कल कुछ और है और मुख्यमन्त्री से मिलने के बाद अखबार मालिक कहते हैं कि अब सब ठीक हो गया है।
भाजपा के प्रवक्ता डा. वाजपेयी ने कहा की पैसा कितना और कैसे यह एक महत्तवपूर्ण बात है, पैड न्यूज के सहारे पत्रकारों का उपयोग किया जाता है यह एक चिन्ता का विषय है।
पत्रकार शरद द्विवेदी ने पेड न्यूज के प्रति अपनी चिंता जताते हुए उन्होंने अपने मन की पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा की कही ना कही मांगने वाले का सर तो नीचा होता ही है, वह सर उठा कर मांग नहीं सकता और एक पत्रकार कम से कम इस पीड़ा से तो बचना ही चाहता है पर इसी काम के लिए पत्रकारों को मजबूर किया जा रहा है। द्विवेदी जी ने संगोष्ठि का सफल संचालन किया।
गम्भीर संगोष्ठी में जनसंपर्क विभाग के आयुक्त मनोज श्रीवास्तव की उपस्थित आश्यचर्य जनक रही। गंभीर चिन्तक विचारक और कटटर हिन्दी भाषा के समर्थक के रूप में उनकी एक अलग ही
छवि है। पत्रकारों के बीच उनका संगोष्टि में उनका आना पत्रकार के बीच उनका अपनापन स्नेह ओर पत्रकारिता की स्वतन्त्रता के प्रति उनकी निष्ठा दर्शाता है। संगोष्ठि में अचानक किसी
शासकीय कार्य से चले जाने से पत्रकार और श्रोता उनके उद्बोधन से वंचित रह गये।
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पेड न्यूज क्या है
पेड न्यूज क्या है ? इसकी परिभाषा क्या है। यह स्पष्ट नहीं किया जा सकता क्योंकि अनेक समाचार ऐसे होते हैं जो दिखने में ऐसे साधारण दिखते हैं परन्तु उसके पीछे गम्भीर षड़यन्त्र की योजना होती है। इमरजेन्सी के समय देश भर के समाचार पत्रों में खासकर मध्यप्रदेश में सत्यनारायण की कथा होने की सूचना समाचार पत्र में छपती थी परन्तु उसका अर्थ होता था यह आमन्त्रण विशेष मीसा बन्दी के समाचार उसके रिश्तेदार तक पहुचाने का माध्यम होता था। इसी तरह पाठक कोई समाचार को साधारण रूप से पढ़ लेता फिर लगता है इसका विशेष प्रयोजन है। मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग का पहले नाम सूचना एवं प्रकाशन था। सूचना देना मुख्य उद्देश्य था। परन्तु किसको सूचना दी जायगी र्षोर्षो प्रदेश की जनता से संपर्क बनाने के लिये प्रदेश के विकास में उनकी सहभागिता बढ़ाने ओर शासन द्वारा शिक्षा, स्वास्थय कृषि, पानी, पर्यावरण एवं बिजली सड़क के विकास के लिये गहन रूप से समाचार के माध्यम से उन तक पहंचना जरूरी है।
क्या प्रदेश के नागरिकों को विज्ञापन, लेखों के माध्यम से जागरूक करने का कार्य किस श्रेणी में आयेंगे। जनता के हित में सबेसे बड़ी पेड न्यूज देने वाली संस्था जनसंपर्क विभाग है। यह जनता के हित में है। आज राजनैतिक नेताओं ने चुनाव के समय ऐसी ऐजेसियों का सहारा लेते हैं जो सभी मीडिया को मेनेज करने का दावा करती है। अपनी इच्छानुसार समाचार छपवाने के लिये धन के साथ शराब और शवाब की व्यवस्था करती है। मध्य प्रदेश के लोकसभा ओर विधानसभा के चुनाव में दिल्ली और भोपाल के होटलों में कर रखी थी । मीडिया को मेनेज करने का यह कार्य मध्य प्रदेश बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में चल रहा है सेक्स शराब का उपयोग आज बड़े टेन्डर पास करने के बाद उनके पूरे होने तक जारी हें किसी परियोजना के घोटालों और भ्रष्टाचार को छुपाने के लिये अखबार को विज्ञापन के माध्यम धन मुआया कराया
जाता है। पेड न्यूज का चलन टाईम्स आफ इण्डिया दिल्ली से 80 के दशक से शुरू हुआ था, जो अब दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता, मद्रास के समाचार (मीडीया) पत्रों के साथ देश के सभी बैंक और बड़ी कंपनीयां 70 के दशक में पूरे पृष्ठ बुक कर लेती थी। जिसमें उनके संस्थान की प्रगति का विवरण छपता था परन्तु अब राजनैतिक पार्टीयां ´´पैड न्यूज´´ का उपयोग करती हैं। मीडिया आज समाचार नहीं दे रहा बल्कि भावनाओं को भड़काने का काम भी कर रहा है। फिल्म समाचार पत्र और मग्जीन हमेशा पेड न्यूज देते रहे हैं। परन्तु भाषायी समाचार पत्र भी पेड न्यूज के चक्कर मे आजकर चारों और समचनातन्त्र, प्रचार तन्त्र में बदलता जा रहा है। नदियों की स्वच्छता, पर्यावरण के प्रति जनता की उदासीनता को मीडिया ललकारता नहीं दिखता।
क्या आने वाले समय में लादेन, दाउद, इब्राहीम, नक्सलवादी भी न्यूज पेड का सहारा नहीं लेंगें? यह प्रवृति खतरनाक है। क्योंकि आज देश में ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरा है। इसका हमें विरोध करना चाहिए।
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