आगामी 10, 11 एवं 12 फरवरी 2011 को मध्यप्रदेश का पहला महाकुंभ पतित पावनी मॉ नर्मदा के पावन तट पर मंडला में होने जा रहा है । माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ की कल्पना राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरस्ता को बल प्रदान करेगी। अनेक उददेश्यों से सामाजिक महाकुंभ के लिये मॉ रेवा के तट पर बसा मंडला चिन्हित किया गया है। मंडला जिले का अपना धार्मिक महत्व तो हैं ही इसका ऐतिहासिक महत्व भी कम नही हैं।
प्रकृति से गहरा लगाव रखने वाली इस क्षेत्र की बहुल्यता वाली जनजातियां विकास के वह आयाम तय नही कर पाई है, जो किया जाना चाहिए था। इन्हे विकास की मुख्य धारा से जोडने के लिये भी यह सामाजिक कुंभ सहायक सिद्ध होगा। अब तक भोले-भाले आदिवासी समाज को दिग्भ्रमित कर,उनकी भावनाओं का शोषण किया जाता रहा है। जिस पर अंकुश लगाने के लिये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा अभियान चलाया जा रहा है।
वर्ष 2011 के फरवरी माह की 10, 11 और 12 तारीख को आयोजित होने वाले इस महाकुंभ में तीस लाख से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है जो प्रदेश सहित देश-विदेश के विभिन्न कोनों से धर्म नगरी मंडला में आकर मॉ नर्मदा का दर्शन लाभ ले पुण्य सलिला मॉ नर्मदा में स्नान कर महाकुंभ में शामिल होकर पुण्य लाभ अर्जित करेंगे। महाकुंभ में आने वाली श्रृध्दालुओं की विशाल संख्या को व्यवस्था प्रदान करने के लिये मां नर्मदा सामाजिक कुंभ की आयोजन समिति हर बिन्दु पर विचार कर व्यवस्थायें जुटाने में लगी हुई है। पिछले समय में गुजरात प्रांत में सम्पन्न हुआ सबरी महाकुंभ बेहतर परिणामकारी रहा है और उसी की प्रेरणा से मध्यप्रदेश में मां नर्मदा के तट पर बसे मंडला जिले में भी सामाजिक कुंभ का आयोजन हो रहा है ।
धार्मिक महत्व
पुण्य सलिला मां नर्मदा के पावन तट पर स्थित मंडला धार्मिक महत्व वाली नगरी है। मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से कुछ ही दूरी पर स्थित और जबलपुर संभाग से महज 100 किलोमीटर की दूरी पर यह ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाली नगरी मंडला आदि शंकराचार्य के गुरू गौद्पादाचार्य की तपोभूमि कहलाती है। यही पर मंडन मिश्र जैसे विद्वान रहते थे। मंडला उनकी जन्म भूमि और कर्म भमि रही है। आदि शंकराचार्य ने इसी स्थान पर मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ किया था। नर्मदा का महत्व गंगा से कम नही है, यहां तक की गंगा दशहरा के दिन मान्यता है कि गंगा नर्मदा मे डुबकी लगाने आती है। नर्मदा का जल औषधीय गुणों से भरपूर माना गया है। अन्य पवित्र नदियों में स्नान का महत्व बताया गया है, जबकि नर्मदा के दर्शन और स्मरण मात्र से पापों का क्षय होने की बात धार्मिक ग्रंथ कहते है।
मंडला का ऐतिहासिक महत्व
गौंडवाना की महारानी दुर्गावती, शहीद शंकर शाह, रघुनाथ शाह की वीरता वाली मंडला की भूमिं स्वतंत्रता को अक्षुण बनाये रखने के लिये अपनी कुर्बानियों के लिये जाना जाता है। यहां मुगल बादशाहो ने आदिवासियों के रण कौशल के समक्ष हमेशा घुटने टेके हैं। स्वतंत्रता की मशाल हमेशा जागृत रखने वाला यह क्षेत्र स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना लोहा मनवाते रहा है। इतिहास में इस क्षेत्र का अपना अलग ही महत्व है। वीरता के साथ ही इस क्षेत्र की जनता सीधी-सादी, भोली-भाली रही है। जिसे लड़कर जीतना असान नही था उसे छल कपट पूर्वक सेवा के नाम पर गुमराह किया जाता रहा है। इस क्षेत्र मे धर्मान्तरण कर उन्हे गुमराह किया गया। और उन्हे राष्ट्र की मुख्य धारा से काटने का कुचक्र किया गया। आजादी के पूर्व भी ऐसे कुचक्रो के विरोध मे आवाज उठते रही है।
मंडला में सामाजिक कुभ आयोजित करने का यह भी एक कारण है इस क्षेत्र मे ईसाई मिशनरियां बडे पैमाने पर कार्य कर रही है। धर्मान्तरण के अतिरिक्त आदिवासी समाज के साथ घिनौना षडयंत्र भी हो रहा है। आज हजारों की संख्या में आदिवासी अंचलो से युवतियां गायब हुई है, जिनकी कोई खोज खबर भी नही है। पिछले वर्षो मे इस प्रकार की घटनाऐं अखबारों की सुर्खिया भी बनी थी। आदिवासी समाज को देश की विभिन्न संस्कृतियों से परिचित कराना और देश के अनेक हिस्सों को इस क्षेत्र के इतिहास ,धार्मिक महत्व एवं प्रकृति के लगाव के साथ जीवन यापन करने वाली भोली-भाली जनता को उनकी संस्कृति से परिचय कराने का भी मां नर्मदा सामाजिक कुं भ मण्डला का आयोजन एक उद्देश माना जा रहा है।
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