भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव अवनि वैश्य की पसंदीदा जगहों में एक नरसिंहगढ़ का चिड़ी खोअभ्यारण्य अतिक्रमण की चपेट में है। मुख्य सचिव अक्सर इस अभ्यारण्य में जाते रहते हैं। इसके बाद भी अतिक्रमण उनकी नजर से बचे हुए है।
यह अभ्यारण्य भोपाल से लगभग 60 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर है। लगभग 45 किमी की परिधि में फैले इस अभयारण्य की सुरक्षा के लिए मात्र 12 वनकर्मी ही तैनात हैं, जो न तो जानवरों की सुरक्षा के लिए काफी हैं। न ही अतिक्रमण रोकने के लिए। अभयारण्य की भूमि पर अतिक्रमण करने वालों में मुख्यत: चैनपुरा, देवगढ़, बिहार, कोटरा, छाबड़, विजयगढ़, रसीदखेड़ी और नरसिंहगढ़ नगर के निवासी हैं। अभयारण्य को सुरक्षा की दृष्टि से आठ बीट, दो डिप्टी सर्कल, एक रेंज में विभाजित किया गया है, जो पर्याप्त नहीं है। जल्द ही अतिक्रमणकारियों पर शिकंजा नहीं कसा गया तो इसका अस्तित्व नाम का ही रह जाएगा। साथ ही अभयारण्य में रहने वाले जानवरों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो जाएगा। वर्ष 2008 की आकलन गणना के अनुसार सात तेंदुआ, 37 साभर , 34 नीलगाय, 377 जंगली सुअर आदि जानवर अभयारण्य के अंदर हैं और वर्ष 2010 की गणना का परिणाम अभी आना बाकी है।
चिड़ीखो अभ्यारण 57.19 वर्गफीट में फैला हुआ है। इसमें वर्ष 1980 के पूर्व 408.398 हेक्टेयर और 1980 के बाद 408.519 भूमि हेक्टेयर पर अतिक्रमणकारियों ने कब्जा किया है। लेकिन सरकारी आकड़ों को छोड़कर वास्तविकता देखी जाए तो यह आकड़ा कई गुना ज्यादा है। अभयारण्य पर अतिक्रमण पर अब सिर्फ मकान ही नहीं बल्कि खेती भी शुरू हो गई है, जो भविष्य में काफी हानिकारक साबित हो सकती है।
क्षेत्र में अतिक्रमण के साथ-साथ वृक्षों की कटाई भी आम बात हो गई है। दर्जनों महिलाएं एवं पुरूष अभयारण्य के पीछे के रास्ते से खुलेआम लकडिया काटकर लाते हैं और बाजार में बेचते हैं। ये महिलाएं पहले वृक्षों को काट देतीं हैं और वृक्ष के सूखने के बाद उसे काटकर बाजार में बेचा जाता है। यह गोरखधंधा भी सालों से फलफूल रहा है।
वन विभाग के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि प्रदेश शासन द्वारा बनाए गए नए अधिनियम से भी वनभूमि में अतिक्त्रमण की और संभावना बढ़ जाएंगी, क्योंकि इस अधिनियम के अन्तर्गत अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वनवासी को
वनभूमि के अंदर से नहीं हटाया जा सकता है।
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