लोकतंत्र के तीन मुख्य स्तम्भ है विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका और लोकतंत्र के चैथे स्तम्भ के रूप में सर्वमान्य तरीके से प्रेस या मीडिया को स्वीकार किया गया है। वर्तमान में अगर हम सारी व्यवस्था पर नजर डालें तो पता चलता है कि लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ ने बाकी तीनों स्तम्भों पर हावी होने की कोशिश की है। वर्तमान में मीडिया अपना जो चेहरा पेश कर रहा है वह अब अपने खतरनाक रूप में सामने आ रहा है। मीडिया अपनी भूमिका को ज्यादा आंक कर एक ऐसी तस्वीर पेश कर रहा है कि लोकतंत्र के बाकी तीनों स्तम्भों की कार्यप्रणाली पर इसका प्रभाव पड़ने लगा है।
वास्तव में मीडिया का कार्य है कि वह जनता के सामने सच की तस्वीर लाए और सरकार का जो तंत्र है उसको जनता के सामने प्रस्तुत करें चाहे वह अच्छा हो या बुरा और इसी तरह मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह सरकार के सामने जनता के सही हालात प्रस्तुत करें ताकि तंत्र में बैठा हूक्मरान यह भूले नहीं कि उसकी कुर्सी लोक के जिम्मे ही है और वह उसी भीड़ का नुमाइन्दा है जो आज उसके सामने खड़ी है। वास्तव में मीडिया निष्पक्ष व निर्भीक तरीके से कार्य करें न कि निर्णायक तरीके से। आज के परिदृश्य में हो यह रहा है कि मीडिया अपनी निर्णायक भूमिका में नजर आ रहा है। हर किसी भी प्रकरण में मीडिया तथ्यों को इस तरीके से पेश करता है कि जैसे मीडिया, मीडिया न होकर कोई अदालत हो। मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह तथ्य प्रस्तुत कर दे न कि उन तथ्यों पर निर्णय करे। मीडिया निर्णायक भूमिका में रहे यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि लोकतंत्र बैलेंस का तंत्र है जहाँ विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका परस्पर मैन टू मैन चेकिंग का भी काम करते हैं और इस भूमिका में मीडिया की यह जिम्मेदारी है कि वह इस चैंकिग का हिस्सा बने न कि इन सब पर हंटर लेकर खड़ा हो जाए। मीडिया तीसरी आँख है, समाज का दर्पण है, यह मीडिया के लोगों को हमेषा याद रखना चाहिए। वर्तमान में मीडिया के कारण एक जन दबाब बनता है और इस जन दबाब में सही निर्णय नहीं हो पाते। आज न्यायपालिका, विधायिका सब के सब मीडिया का दबाब महसूस कर रहे हैं। इस दबाब के कारण कार्यपालिका कार्य नहीं कर पाती और न्यायपालिका निर्णय नहीं कर पाती। मीडिया की क्या और कैसी भूमिका हो यह तौलने का समय है।
वर्तमान समय में यह जरूरी है कि मीडिया दादागिरी न करे सहयोगी रहे । मीडिया की दादागिरी के कारण मीडियाकर्मी भी अपने आप को पत्रकार न समझकर न्यायाधीष समझने की भूल कर रहे हैं। मीडियाकर्मी किसी भी सरकारी या गैर सरकारी तंत्र में जाकर अपने आप को विषिष्ट अंदाज में पेश करता है और उसके दिमाग में यह बात रहती है कि मैं इन सब की खैर खबर लेने के लिए ही हूँ । वास्तव में एक पत्रकार समाज सुधारक की भूमिका में नजर आए व अपनी कार्यप्रणाली को समाज के सुधारने की दिशा में ले जाए तभी यह संभव है कि मीडिया का वास्तविक फायदा समाज व राष्ट्र को मिलेगा। मीडिया की दादागिरी का परिणाम यह हो रहा है कि आज मीडियाकर्मी भी अपने इस पेशे को भ्रष्टाचार में डूबाने का काम कर रहे हैं। हाल ही में टूजी स्पेक्ट्रम के मामले में यह बात खुल कर सामने आई है कि मीडिया में कितने स्तर तक भ्रष्टाचार आ चुका है। कहने का मतलब यह है कि लोकतंत्र का यह चैथा स्तम्भ अपने सही व वास्तविक रूप को प्रकट करें न एक ऐसा चेहरा बनाए जो लोकतंत्र के बाकी स्तम्भों से मिलता जुलता नजर आए।
और यहाँ मैं यह कहना चाहूँगा कि इस मामले में इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने कुछ कदम ज्यादा ही काम किया है। वर्तमान में टी.वी. चेनल्स की खबरों का आमजन पर सीधा असर पड़ता है। जल्दी से जल्दी और ज्यादा से ज्यादा खबर देने की चाहत ने मीडिया की विषलेषणात्मक शक्ति को समाप्त सा कर दिया है। जो चीज जब जहाँ और जिस रूप में दिखाई दे रही है उसको उसी रूप में तुरन्त पेश कर देने से आज टीवी चेनल्स बेताब नजर आते हैं, वे उन तथ्यों की तरफ गौर नहीं कर रहे कि इस दिखाई देने वाले तथ्य के पीछे सच्चाई क्या है। जरूरत है कि खबरों का विषलेषण हो, उसकी सत्यता की जांच हो और फिर खबर आम जन के सामने एक रिपोर्ट की तरह पेश आए एक फैसले की तरह नहीं। मीडिया की भूमिका समाज सुधारक व समाज के पथ प्रदर्शक की हो ताकि लोगों को सही और गलत का अंदेशा हो जाए और यह निर्णय आम जन पर ही छोड़ दिया जाए कि वो कौनसा रास्ता चुनना चाहता है। मीडिया में काम करने वालों को यह बात अच्छी तरह से मालूम होती है कि आमजन की समझ कैसी है और किसी भी मुद्दे पर आम लोगों का क्या नजरिया और प्रतिक्रिया रहेगी तो ऐसी स्थिति में मीडिया की जिम्मेदारी है वह समाज में शान्ति, सद्भावना व एकता कायम करने का माहौल बनाए और अपने सकारात्मक रूख को पेश करें और जब वर्तमान में सारी तरफ अव्यवस्था, अशांति और अराजकता का माहौल है तो मीडिया की जिम्मेदारी और ज्यादा हो जाती है।
Tags: impact of media, मीडिया की जिम्मेदारी
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