Tuesday, January 11, 2011

मकर-संक्रांति का पर्व वस्तुत: सूर्य के उत्तरायण होने का उत्सव ही है।


उत्तरायण सूर्य को प्रणाम!Jan 12, भारतीय संस्कृति में मकर-संक्रांति को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि इसी दिन से 'देवताओं का दिन' कहा जाने वाला 'उत्तरायण' प्रारंभ होता है, जो छह मास कर्क-संक्रांति तक रहता है। संक्रांति का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश। मकर-संक्रांति का पर्व वस्तुत: सूर्य के उत्तरायण होने का उत्सव ही है। महाभारत में उल्लेख है कि भीष्म पितामह ने युद्ध में घायल हो जाने के बाद बाणों की शय्या पर पड़े-पड़े प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की ही प्रतीक्षा की थी।

मकर-संक्रांति मूलत: स्नान-दान का महापर्व माना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन प्रयाग में स्नान का विशेष माहात्म्य है। असंख्य श्रद्धालु मकर-संक्रांति को स्नान करने प्रयागराज पहुंचते है। संयोगवश मकर-संक्रांति का पर्व अधिकांशत: माघ के महीने में होता है। ऐसी मान्यता है कि इस मास में प्रयागराज में भू-मंडल के समस्त तीर्थो का आगमन होता है, अत: प्रयाग में माघ-मेला प्रतिवर्ष आयोजित होता है।

मकर-संक्रांति में जरूरतमंदों को दान करने की प्रथा है। इस पर्व के शीतकाल में पड़ने के कारण इसमें उन वस्तुओं को दान देने का विशेष महत्व होता है, जो कि सर्दी में जाड़े से बचाने में सहायक होती हैं, जैसे ऊनी वस्त्र, कंबल तथा अलाव हेतु लकड़ी। इसके अतिरिक्त मकर-संक्रांति में तिल से बने पदार्थो का दान भी आवश्यक माना गया है, क्योंकि तिल पौष्टिक होता है और उसकी तासीर भी गर्म होती है। तिल का दान करने के कारण देश के पूर्वाचल तथा मिथिलांचल में इसे 'तिल-संक्रांति' भी कहा जाने लगा है।

मकर-संक्रांति को उत्तर भारत में 'खिचड़ी' के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाते है। मकर-संक्रांति के दिन ज्यादातर लोग खिचड़ी बनाने की सामग्रियों जैसे- दाल, चावल, नमक एवं घी आदि का दान भी करते है। दक्षिण भारत में मकर-संक्रांति का पर्व 'पोंगल' के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में विवाहित स्त्रियां शादी के बाद पहली मकर-संक्रांति पर तेल, कपास, नमक आदि वस्तुएं सुहागिनों को देती है। बंगाल में इस दिन पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करके तिल का दान करने का प्रचलन है। असम में मकर-संक्रांति को 'बिहू' के नाम से मनाया जाता है। राजस्थान में इस दिन स्त्रियां तिल के लड्डू, घेवर तथा माठ को रुपयों के साथ अपनी सास को भेंट देती है। लोग मकर-संक्रांति पर स्नान करने गंगासागर पहुंचते है।

मकर-संक्रांति से प्रकृति भी करवट बदलती है। इस दिन लोग पतंग भी उड़ाते हैं। उन्मुक्त आकाश में उड़ती पतंगें देखकर स्वतंत्रता का अहसास होता है।

[मकर संक्रांति पर विशेष]

[डॉ. अतुल टंडन]

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