भोपाल। यूनियन कार्बाइड़ में मौजूद जिन रसायनों के कारण भोपाल में गैस त्रासदी हुई, उन रसायनों को हटाने के लिए कारखाना प्रबंधन ने धेला भी खर्च नहीं किया, उलटे सरकार ने ही पचास हजार रूपए का भुगतान किया। यही नहीं त्रासदी के बाद भी कारखाने में उपयोग होने वाले रसायनों से पड़ने वाले प्रभावों का परीक्षण किया जाता रहा। हैरानी की बात यह है कि परीक्षण केन्द्र सरकार एवं सी.बी.आई. के विशेषज्ञों की उपस्थिति में किए गए।
यह सनसनी खेज खुलासा उन दस्तावेजों से होता है,जो कि वर्ष 1988 में दुबारा हुए गैस रिसाव की जांच के लिए विधानसभा द्वारा बनाई गई समिति ने तैयार किया था। तत्कालीन कांग्रेस सरकार कार्बाइड प्रबंधन के दबाव में किस हद तक थी, रिपोर्ट में इसका उल्लेख 'जनहित' के खाते में डाला गया है। रिपोर्ट के अनुसार कार्बाइड परिसर में जो रसायन मौजूद थे, उनमें 20 मैट्रिक टन क्लोरोफार्मा वर्ष 1986 में बेच दिया गया। इस रसायन को लेकर आशंका यह थी, कि इसमें मिक गैस मिली हुई है। ज्ञातव्य है कि 2 दिसंबर 1984 की रात कार्बाइड़ कारखाने से मिक गैस का रिसाव हुआ था। इस रिसाव के कारण ही हजारों लोगों को अपनी जान गंवा पड़ी थी। दुर्घटना को देखते हुए इसे महत्वपूर्ण साक्ष्य माना जा सकता है। इस साक्ष्य से छेड़छाड़ किसकी अनुमति से की गई, इसका उल्लेख विशेष जांच समिति की रिपोर्ट में नहीं है।
विशेष जांच समिति कार्बाइड कारखाने में वर्ष 1988 में हुई घटना की जांच के लिए बनाई गई थी। जून 1988 में कारखाने में रिसाव हुआ था। इस रिसाव में फैज मोहम्मद नामक कर्मचारी घायल हुआ था। विधानसभा में आए एक कामरोको प्रस्ताव के बाद विधायकों की विशेष जांच समिति बनाई गई थी। जांच समिति के अध्यक्ष तत्कालीन विधानसभा उपाध्यक्ष कन्हैया लाल यादव थे। जांच समिति में आज के गैस राहत मंत्री बाबूलाल गौर भी सदस्य थे। इस जांच समिति ने घायल कर्मचारी के अलावा आवास एवं पर्यावरण विभाग के तत्कालीन सचिव व्ही.एन. कौल, तत्कालीन कृषि सचिव विनोद वैश्य एवं गैस राहत विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव एस.आर.सत्यम के साक्ष्य लिए थे। समिति ने 6 अक्टूबर 1988 को कार्बाइड कारखाने का निरीक्षण भी किया था। निरीक्षण के दौरान कारखाने के रेसीडेन्ट मैनेजर के.सी. हैरन ने समिति को बताया कि सारे रसायन परिसर से हटा दिए गए हैं, क्लोरोसल्फोनिक एसिड के निष्प्रभावीकरण के दौरान कुछ टेस्ट यहां सी.बी.आई. और केन्द्र सरकार के विशेषज्ञों की उपस्थिति में किए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार कारखाने की कारबन मोनोक्साइड इकाई में कोक एवं सेविडाल के नए भंडारों का पता भारत सरकार के वैज्ञानिक डाक्टर एस.वर्धराजन द्वारा इकाई के विस्तृत परीक्षण किया।
रिपोर्ट में गैस राहत विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव साक्ष्य भी है। उन्होंने अपने बयान में समिति को बताया कि कारखाने में मौजूद अर्ध तैयार भिन्न प्रकार के रसायनों से कीटनाशक तैयार कराए गए। इन कीटनाशकों के परिवहन के लिए पचास हजार रूपए की राशि कार्बाइड को सरकारी खजाने से दी गई।
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